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Chapter 1/18

edit"कल्लू उठ! स्कूल🎒🏫🚌 के लिये फिर देर हो जायेगी। अरे
editओ कल्लन!”
editकल्लू और उसका दोस्त दामू, सपने में नदी में एक विशाल मछली पकड़ रहे थे और आप सच मानें, मछली
editमुस्करा रही थी! अब ऐसे सपने में यह बेसुरी आवाज़!🔊 उफ़! कल्लू ने रज़ाई में से मुचड़ा मुँह बाहर निकाल के मिनमिनी आवाज़🔊 में कहा, “शब्बो, अभी कैसे? मैं अभी तो सोया था!”
Chapter 2/18
edit“नहीं रे,” शब्बो ने कड़क के कहा “सूरज कब का चढ़ आया है। अम्मी ने भैंस दुह ली है और हम सब ने नाश्ता कर लिया है।”
editठंड में कल्लू दाँत किटकिटाता हुआ उठा, “सूरज? कहाँ है सूरज?”
edit“अरे कल्लन कोहरा है तो क्या करें? तुझे सूरज कहाँ से दिखाएँ? अब्बू कब से खेत पर चले गये हैं और मोहल्ले के सब बच्चे🚸 कब के स्कूल🎒🏫🚌 चले गये,” शब्बो ने कड़क के कहा।
editकल्लन ने जम्हाई मुँह में गटक ली “मुनिया भी?”
editशब्बो ने संगीन चेहरा बना के सर हिलाया।
editरज़ाई फेंक के कल्लू ने बिस्तर छोड़ा। स्कूल🎒🏫🚌 देर से नहीं पहुँच सकता था वह! किसी हालत में नहीं। परसों मास्टर जी ने ऐसा धमकाया था कि एक दिन🌤️ भी वह फिर देर से आया तो सज़ा ऐसी होगी कि वह याद रखेगा।उन्होंने तो यह भी कह डाला कि अगली कक्षा में नहीं चढ़ायेंगे। और इसके ऊपर से घंटों तक उसे कोने में कान पकड़ के खड़ा रहना पड़ा था।
Chapter 3/18
edit“मुझे एक बढ़िया कहानी चाहिये। अभी।” अपनी चप्पलों को ढूँढ़ते कल्लू का दिमाग तेज़ी से दौड़ रहा था।
edit“एक बहुत ही बढ़िया, सनसनीखेज़, बिल्कुल सच्ची लगने वाली कहानी...”
editहर सुबह के जैसे आज भी कल्लू बिजली की सी फुर्ती से इधर-उधर भाग के तैयार होने लगा। पानी🌊🌧️💦💧🚰 की बाल्टी से बर्फीले पानी🌊🌧️💦💧🚰 के कुछ छींटे आँखों पर डाल के उसने खुद को जगाया। नहाने का तो सवाल ही नहीं था। शुक्र है कि सर्दियों का मौसम था नहीं तो अम्मी कहाँ मानने वाली थीं। कमीज़, पतलून और स्वेटर आनन फानन में पहन के, चप्पलों में पैर घुसाये।
editअपने छोटे भाई की ओर देख के हाँफते हुए बोला, “शब्बो, सच तू कितना भाग्यवान है। पूरे महीने स्कूल🎒🏫🚌 से छुट्टी!” खिड़की के पास बैठा शब्बो अपने पलस्तर चढ़े पैर को देख के चिहुँका, “हाँ, बिल्कुल ठीक कहा भाईजान। पैर तोड़ने में बहुत ही मज़ा आता है। सारे दिन🌤️ यहाँ बैठ के इतना बोर हो जाता🚶 हूँ सोचता हूँ अपने बाल👦👧 नोच डालूँ जब आप दामू के साथ फ़ुटबॉल खेलते हो। ज़रूर, बहुत ही भाग्यवान हूँ मैं?”
Chapter 4/18
editजब तक शब्बो अपनी बात👄 पूरी🥞 करता, कल्लू घर🏠 से निकल कर गली के मुहाने पर पहुँच चुका था। शब्बो ने खिड़की से झाँक के देखा कि दौड़ते कल्लन भाई कोहरे के गुबार में आँख से ओझल हो गये। एक बड़ी सी मुस्कराहट शब्बो के चेहरे पर फैल गई।
edit“गया,” शब्बो ने हँसी दबा के गाना🎵🎶🎼 गाया, “मुनिया बाहर आ जा!”
editउसकी बहन👧 मुनिया एक अल्मारी के पीछे से प्रकट हुई। उसके चेहरे पर भी चौड़ी मुस्कान खेल रही थी। दोनों इतनी ज़ोर से हँसे कि मुनिया को हिचकियाँ आ गईं। निकलते हुए कल्लू ने रसोई से एक सूखी रोटी उठा ली थी। उसे चबाते हुए वह खुद से बात👄 करते हुए चला जा रहा था।"कहानी कल्लन मियाँ। एक नई, मानने लायक कहानी नहीं तो फिर कोने में खड़े पाये जाओगे।”
editजीवन एक रहस्य है- कल्लू को ऐसा ही लगता था। उसे स्कूल🎒🏫🚌 पसंद था, सच में पसंद था।
Chapter 5/18
Chapter 6/18
editगणित के सवाल, विज्ञान,फुटबॉल खेलना और स्कूल🎒🏫🚌 के कार्यक्रमों में गाना🎵🎶🎼 - यह सब उसे पसंद था। पर फिर क्यों, क्यों वह कभी भी समय📅 से स्कूल🎒🏫🚌 नहीं पहुँच पाता था? मास्टर जी भी यह समझ नहीं पाते थे। अब परसों की बात👄 थी कि कल्लू की खिल्ली उड़ाते हुए बोले थे कि बेहतर होगा कि कल्लू रात🌃 को स्कूल🎒🏫🚌 के बरामदे में ही सो रहे और यह सुन के सब बच्चे🚸 कल्लू पर हँसे थे।
editमुश्किल यह थी कि अब मामला गम्भीर होता जा रहा था। अब मास्टर जी ने अगर उसे कक्षा नौ में नहीं चढ़ाया तो कल्लू को लेने के देने पड़ जाने वाले थे क्योंकि अब्बू स्कूल🎒🏫🚌 छुड़ा के उसे खेतों में काम पर लगा देंगे। अब कौन पालक तोड़ेगा और गाजर और मटर बटोरेगा जब कि वह स्कूल🎒🏫🚌 जा सकता है।
editस्कूल🎒🏫🚌 तो उससे सौ गुना अच्छा था और उसे पता था कि अगर वह बारहवीं का बोर्ड का इम्तिहान पास कर ले तो उसे नौकरी मिल🏭 सकती है, शायद कॉलेज भी जा सके। कॉलेज... वाह! वह तो कल्लू का सपना था।
Chapter 7/18
editकल्लू असल में बारहवीं कर के कमप्यूटर सीखना
editचाहता था। मास्टर जी कहते थे कि उसका दिमाग तेज़ था।
editपिछले महीने वे पास के शहर में कल्लू की कक्षा को कमप्यूटर की प्रदर्शनी में ले गये थे। क्या मशीनें थीं! वाह! वहाँ के दुकानदार ने उन्हें सही तरह से "माउस" का इस्तेमाल सिखाया था और इन्टरनेट पर जाने का तरीका भी। वह तो बिल्कुल जादू के जैसा था। अब कल्लू और दामू भी माउस की जादूगरी सीखना चाहते थे कि वे भी कमप्यूटर की स्क्रीन पर "ज़िप-ज़ैप" दौड़ सकें।
editजब वे बस🚌🚍🚏 में लौट रहे थे तो दामू और उसने मिल🏭 के एक कमाल की योजना बनाई थी। नया राजमार्ग खजूरिया गाँव के बगल से निकलता था। दामू और कल्लन मिल🏭 के वहाँ एक ढाबा, एस टी डी फ़ोन बूथ, कमप्यूटर सेन्टर खोल सकते थे। दामू, जिसे सपने में भी खाने🍴 के ख़याल आते थे, ढाबा चला सकता था और कल्लू एस टी डी बूथ। बूथ से लोग घर🏠 को फ़ोन लगायेंगे और आस-पास के सभी गाँवों के लोग मण्डी में सब्ज़ी, गेहूँ और गन्ना भेजने से पहले इन्टरनेट पर आज के भाव देख सकते थे।
Chapter 8/18
Chapter 9/18
edit“क्या बात!👄 दामोदार ढाबा और कल्लन कमप्यूटर सेन्टर!” दामू मुस्कराया पर फिर उसके चेहरे पर चिन्ता की रेखा दिखी, “अगर तू स्कूल🎒🏫🚌 समय📅 पर पहुँच जाता🚶 तो...”
editचाय की दुकान के पास तीर की तरह उड़ते कल्लू ने पुकारा, “सलाम, धरम चाचा।”
editचाय की दुकान वाले धरमपाल ने उबलती केतली पर से आँख हटाई। उसने आश्चर्य से कहा “अरे, यह तो कल्लू है।” उसके चेहरे पर हँसी खेल गई और भवें उचकाते हुए उसने कहा, “क्या बात👄 है? आज सूरज पश्चिम से निकला है क्या? इतनी सवेरे कहाँ चले?”
edit“पहले पकोड़े खाते जाओ!” धरमपाल हँसा, “गरम-गरम धरम के पकोड़े!”
Chapter 10/18
Chapter 11/18
editभागते कल्लू के पास जवाब देने की फुर्सत कहाँ थी? धरमपाल चाचा को मज़ाक सूझता रहता है, बड़बड़ाते कल्लू ने कदम ताल न तोड़ी। यहाँ कल्लू की जान पर बन आई थी और उन्हें अपने पकोड़ों से फुर्सत नहीं। और कल्लू की स्कूल🎒🏫🚌 की देरी में हँसने वाली कौन सी बात👄 थी? वह तो हर हफ़्ते की कहानी थी!
editहाँ, सबसे बुरा तो तब हुआ था जब वह परसों देर से पहुँचा था। 26 जनवरी के कार्यक्रम का रिहर्सल था और जब वह स्कूल🎒🏫🚌 के अहाते में पहुँचा तो राष्ट्रगान की “जय जय जय जय हे” वाली पंक्ति गाई जा रही थी। और कल्लू को वहाँ सामने होना चाहिये था। दामू, मुनिया, और सरू के साथ गाने की अगुआई करते हुए।
editपीछे खड़े हो के उसने जोश के साथ “जय हे” गाया और चुपचाप कक्षा की तरफ़ सरक रहा था जब किसी ने उसे कॉलर पकड़ के पीछे झटका दिया। मास्टर जी के तमतमाये चेहरे को देख के तो उसके दिल की मानो धड़कन ही रुक गई।
Chapter 12/18
edit“रिहर्सल के लिये फिर से देर से आये हो इसलिये शो से तुम्हें निकाला जा रहा है।” मास्टर जी की आवाज़🔊 मानो बर्फ़ीली चाबुक थी।
edit“नहीं मास्टर जी,” कल्लू की आँखों में आँसू छलक आये और ये सचमुच के आँसू थे। जब चाहो निकाल दो वाले मगरमच्छी आँसू नहीं। वह सच में शो में भाग लेना चाहता था। “मास्टर जी!” उसकी आवाज़🔊 में घबराहट और बेचारगी दोनों थी “मैं वादा करता हूँ मैं फिर कभी देर नहीं करुँगा। एक मौका...”
edit“अच्छा ठीक है,” मास्टर जी थोड़े पसीज गये, “इस बार जाने दे रहा हूँ पर एक बार भी और देर से आये तो तुम शो से बाहर। समझ रहे हो?”
editकल्लू ने नाक पोंछ के सिर हिलाया। तब तक वे दोनों कक्षा में पहुँच चुके थे और कल्लू अपनी जगह की तरफ़ बढ़ा। मास्टर जी तुरन्त बोले, “कहाँ जा रहे हो? कोने में खड़े हो जाओ। कान पकड़ो।” उसके सहपाठी हँसने लगे और मास्टर जी ने आखिरी धमकी फेंकी, “शायद मैं तुम्हें अगली कक्षा में न चढ़ाऊँ। कल्लन-आठवीं फेल देर से आने से अंक कटने की वजह से।” और आज वह फिर देर से जा रहा था।
Chapter 13/18
editउसकी ज़िन्दगी तो समझो अब बरबाद हो गई थी।
edit“एक अच्छी कहानी... एक विश्वास करने लायक बहाना।” पहले कितने बहाने खोजे थे उसने। आज एक नया बहाना खोजना इतना मुश्किल क्यों लग रहा था? उसके दिमाग में वह छवि कौंध गयी जहाँ मास्टर जी भवें सिकोड़े उसकी तरफ़ अविश्वास से घूर रहे हैं और वह हकलाता-तुतलाता बहाना बना रहा है। इतना मग्न था कल्लन कि सीधे भैंसों के झुण्ड से जा टकराया।
editहाय मेरी किस्मत, अपने पर कुढ़ता हुआ रंभाती भैसों से बच के निकला। यहाँ जान के लाले पड़े हैं और मैं पहुँचा भी तो कहाँ? बदरी और उसकी मोटी भैसों के पास घास चरने। हाँफता, मिट्टी में फिसलता वह किसी तरह से वहाँ से भागा। बदरी, भैसों का अजीबोग़रीब मालिक अपनी मन भर की पगड़ी पहने डंडा लहरा रहा था और मोटी मूछों के पीछे मुस्करा रहा था।
edit“आज तो बड़ी जल्दी निकल आये कल्लू? स्कूल🎒🏫🚌 जाने से पहले मेरी भैसों को नहला दो?”
Chapter 14/18
Chapter 15/18
edit“नहीं। पाँच रुपये दूँगा। अभी तो समय📅 है। तुम जल्दी आये हो।” “हाँ, मैं जल्दी आया हूँ,” कल्लू भुनभुनाया, “इतनी जल्दी आया हूँ कि आज, आज नहीं कल है। कहो तो भैंसों की सानी भी कर दूँ और थोड़ा नाच भी...” “हा हा हैं हैं,” बदरी ने भैंस पर हाथ मारा, “तुम तो बड़ी ठिठोली करते हो कल्लन भाई।”
editकल्लू भागता रहा। मन ही मन उसने सोचा, पूरा गाँव मेरे खिलाफ़ है, दिमाग का पेंच ढीला बदरी भी। मुझ गरीब का मज़ाक बनाने में उन्हें मज़ा आता है। फिर उसे झटके से याद आया कहानी-बहाने की समस्या तो अभी वैसी ही बनी हुई थी। विकराल और हल-विहीन। अम्मी बीमार थी और उसे नाश्ता बनाना था। नहीं। दो बार इस्तेमाल कर चुका था। इस बार नहीं चलेगा।
editबकरी भाग गई थी। ना। पिछली बार भी नहीं चला था।
editकिसी ने उसका कलम चुरा लिया? कलम तो उसके बस्ते में था। उसकी चप्पल टूट गई और उसे मरम्मत कराने जाना🚶 पड़ा। नहीं रे। चप्पल तो उसकी बिल्कुल नई थी।
Chapter 16/18
editदामू के घर🏠 से गुज़रते उसने देखा उसका सबसे प्यारा दोस्त और उसकी बहन👧 सरु, आँगन में चारपाई पर बैठे नाश्ता खा रहे थे। हा! उन्हें भी देर हो गई थी, कल्लू ने विजयी भाव से सोचा और अभी तो वे खा रहे थे इसलिये मेरे बाद ही पहुँचेंगे। शायद मास्टर जी उन पर गुस्सा दिखाने में मुझे भूल ही जायें?
editदामू ने कल्लू को देखा तो उसकी आँखें फैल गईं, “ओए कल्लू। मेरे लिये रुक जा यार!”
edit“पराँठे, कल्लू भैया,” सरु ने पुकारा “गोभी के पराँठे।” “बिल्कुल समय📅 नहीं है।” कल्लू ने भागते हुए, हाँफते हुए जवाब दिया, “स्कूल🎒🏫🚌 में मिलेंगे।"
edit“ठीक है। स्कूल🎒🏫🚌 में मिलते हैं” दामू ने कंधे उचका दिये और खाना🍲 खाने🍴 लगा।
editदामू और सरु के लिये कितना आसान है, कल्लू मन ही मन बुदबुदाया। स्कूल🎒🏫🚌 के बगल में रहते हैं। स्कूल🎒🏫🚌 की घंटी बजने पर भी घर🏠 छोड़ेंगे तो देर नहीं होगी। स्कूल🎒🏫🚌 के फाटक पर पहुँचते-पहुँचते कल्लू का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। मुँह में पान की गिलौरी दबाते वहाँ कौन खड़ा था भला? मास्टर जी। हाय री किस्मत!
Chapter 17/18
editकल्लू ने पैरों पर ब्रेक लगाया और जल्दी-जल्दी बोलने लगा, “मास्टर जी, माफ़ कर दीजिये मुझे देरी हो गयी। पर आज बिल्कुल भी मेरी गलती नहीं थी! मुझे शब्बो को नहलाने के लिये मदद करनी थी। आप जानते हैं न उसकी टाँग टूट गई है और।“अचानक से कल्लू चुप हो गया। उसने कुछ ऐसा देखा जिससे कि उसकी ज़बान पर ताला पड़ गया। मास्टर जी, दुनिया के सबसे डरावने इन्सान, ठहाका मार के हँस रहे थे।
edit“ठहर जाओ,” मास्टर जी पान को गलत सटकने के डर से हाथ उठा के बोले, “आज मुझे नई कहानी क्यों सुना रहे हो?”
edit“कहानी? कौन सी कहानी?” कल्लू ने गंभीर चेहरा बना के अचरज दिखाने की कोशिश की, “मैं कहानियाँ नहीं सुनाता... मतलब... कि” यह सब क्या हो रहा है, कल्लू ने सोचा, “एक-एक शब्द सौ प्रतिशत सच मास्टर जी।” “आज तो समय📅 से पन्द्रह मिनट पहले आ गये कल्लन,” मास्टर जी की मुस्कान खिली।
edit“समय📅 से पहले?” कल्लू को मानो काठ मार गया, “क्या मतलब? समय📅 से पहले?”
Chapter 18/18
editमास्टर जी ने घड़ी दिखाई, “देखो? सात बज के पैंतालिस मिनट।”
edit“अभी तो कोई भी नहीं पहुँचा,” मास्टर जी के हँसी के फव्वारे के साथ पान की पीक का भी फव्वारा छूटा, “तुम्हारे सिवाय!”
editकल्लू हिला नहीं, “यानि मैं और सो सकता था? नाश्ता खा सकता था?” उसने साँस भरी।
edit“अब पता चला। शब्बो और मुनिया। उनकी तो ख़ैर नहीं। छोडूँगा नहीं उन्हें! शब्बो बोर हो रहा है तो मेरे साथ ऐसी चाल खेली...”
edit“हाँ, और एक अच्छी खासी कहानी भी बरबाद हो गई,” मास्टर जी ने हमदर्दी जताई “चलो, अब अन्दर तो आ ही जाओ।” “शब्बो को भुगतना पड़ेगा,” कल्लू ने दाँत पीसे, “छोड़ूँगा नहीं उसे।” “क्या करोगे?” “दूसरी टाँग तोड़ दूँगा!” कल्लू ने बिफ़र कर कहा।
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ा | 698 |
े | 583 |
क | 525 |
र | 384 |
ह | 357 |
ी | 353 |
स | 351 |
ल | 336 |
न | 329 |
् | 271 |
म | 249 |
ो | 205 |
त | 198 |
ब | 184 |
ं | 174 |
प | 163 |
ि | 158 |
य | 147 |
ू | 136 |
ु | 125 |
द | 123 |
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ज | 121 |
च | 103 |
थ | 95 |
ँ | 91 |
व | 79 |
ट | 76 |
भ | 73 |
ै | 72 |
उ | 67 |
ख | 58 |
आ | 57 |
अ | 53 |
औ | 49 |
ड़ | 49 |
श | 40 |
ई | 33 |
ए | 32 |
छ | 28 |
फ | 27 |
ज़ | 25 |
ठ | 20 |
इ | 18 |
झ | 17 |
ौ | 17 |
ड | 14 |
ध | 14 |
- | 13 |
फ़ | 12 |
घ | 11 |
ढ़ | 10 |
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