Edit storybook
Chapter 1/19

editयुवा ध्यान चंद को हॉकी से बहुत प्रेम था। लड़कपन में वे और उनके दोस्त ताड़ के पेड़🌲🌳 से टहनियों को काट कर उनका उपयोग हॉकी स्टिक के रूप में किया करते थे।
editबहुत कम लोगों को यह पता है कि वे सेना में भर्ती होने के पहले से ही सेना के लिए हॉकी खेलने लग गए थे। १४ साल की उम्र में वे अपने पिताजी के साथ सेना की दो टीमों के बीच मैच देखने गए थे। जब एक टीम हारने लगी जो ध्यान चंद ने अपने पिताजी से कहा कि अगर उनके पास हॉकी स्टिक होती तो वे उस टीम को जिता देते।
editयह सुनकर पास बैठे एक अंग्रेज़ अधिकारी ने उनको डाँट दिया और कहा कि गप्प नहीं हाँकनी चाहिये, लेकिन साथ ही उन्हें खेलने का एक अवसर भी दिया। अपनी कही बात👄 का पालन करते हुए उन्होंने चार गोल किये।
Chapter 2/19

editवो अधिकारी उस बात👄 से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ध्यान चंद को बच्चा पलटन में शामिल कर लिया।
editप्रचलित कहानियों के अनुसार ध्यान चंद सैनिक के अपने कार्य को पूरा करने के बाद हॉकी का अभ्यास किया करते थे। लेकिन तब तक रात🌃 हो जाया करती थी, और उस ज़माने में फ़्लड लार्इट्स नहीं थीं। इसलिए ध्यान चंद अभ्यास करने के लिए चाँद उगने का इंतज़ार किया करते थे। चाँदनी रातों में पेड़🌲🌳 दूधिया रोशनी में नहाए होते, जब कुत्ते🐕🐩🐶 हर जगह रो रहे होते, तब ये दुबला पतला नौजवान अपनी तेज़ गति से चलने वाली हॉकी स्टिक के साथ मैदान में दिखार्इ पड़ता जहाँ वो गेंद को गोल पोस्ट में डाल रहा होता।
editक्योंकि वे अपना खेल शुरु करने से पहले चाँद उगने का इंतजार किया करते थे, सेना में उनके साथी उन्हें चाँद कहा करते थे और यह नाम उनके साथ बरकरार रह गया। वो ध्यान चंद थे, जो चाँदनी रात🌃 में अपने हुनर को निखारते रहते थे।
Chapter 3/19

editध्यान चंद की मेहनत रंग🎨 लार्इ। लोग कहते हैं कि कर्इ बार वे रेल की पटरी पर अभ्यास किया करते थे और दौड़ते हुए कभी भी गेंद को पटरी से नीचे नहीं गिरने देते थे। शायद यही कारण था कि हॉकी के वास्तविक खेल में भी उन्होंने गेंद पर नियंत्रण के लिए बहुत नाम कमाया। आखिरकार उन्होंने इसे बड़ी मेहनत से रेल की पटरियों पर अभ्यास करके कमाया था।
editखेल के दौरान कर्इ अवसरों पर वे पूरे मैदान को दौड़ कर पार कर लिया करते थे और इस दौरान गेंद उनकी स्टिक से ऐसे चिपकी रहती थी मानो उसे गोंद से चिपका दिया गया हो, और गेंद तभी उनकी स्टिक से अलग होती जब वो गेंद को गोल पोस्ट के अंदर दाग दिया करते। पूरे समय📅 के दौरान सभी खिलाड़ी और गोलकीपर असहाय नज़र आते।
Chapter 4/19
editएक बार महान धावक मिल्खा सिंह ने ध्यान चंद से पूछा कि वे अपने खेल में इतने निपुण कैसे हैं। ध्यान चंद ने जवाब दिया कि वे एक खाली टायर को गोल से बाँध देते और पूरे दिन🌤️ गेंद को उस टायर में से निकालते रहते। ध्यान चंद बहुत सारे गोल किया करते थे और आने वाले वर्षों में उन्होंने भारत🇮🇳 के लिए बहुत से मैच और पदक जीते।
editलेकिन जो चीज़ उनकी ख़ास बात👄 बनकर उभरी थी वो था हॉकी स्टिक चलाने का उनका असाधारण कौशल, हॉकी स्टिक के साथ गेंद को इस प्रकार नियंत्रित करने की क्षमता, मानो मैदान में और कोर्इ खिलाड़ी है ही नहीं। मानो जैसे वे दोबारा रात🌃 को अकेले अपने खेल के मैदान में अभ्यास कर रहे हों।
editलेकिन वे सिर्फ़ हॉकी स्टिक के अपने कौशल के सहारे की ध्यान चंद नहीं बने। हॉकी, जो कि एक टीम का खेल है, उसमें ध्यान चंद एक प्रभावी टीम साथी के रूप में उभरे। जब वे मैदान में दौड़ रहे होते, उनका मस्तिष्क एक शतरंज की बाज़ी के रूप में सोचता। जैसे अपको पता होता है कि आपकी कक्षा में आपके मित्र कौन कौन से स्थान पर बैठते हैं और आप बिना देखे यह बता सकते हैं कि “काव्या यहाँ बैठती है, रोमिल यहाँ बैठता है” ध्यान चंद के लिए हॉकी ठीक वैसा ही था। बिना देखे उनको पता होता था कि उनके टीम के साथी कहाँ खड़े हैं, और वे किसको गेंद पास कर सकते हैं।
editऔर इन सटीक पासों की वजह से वे जादूगर के रूप में जाने जाते थे। उनके अवकाश प्राप्ति के कर्इ सालों बाद उन्होंने अपने सुंदर खेल के बारे में इस प्रकार से समझाया, “रहस्य मेरे दोनों हाथों, दिमाग और नियमित प्रशिक्षण में है।”
Chapter 5/19

editध्यान जो कहना चाहते थे, वो यह है कि प्रतिभा एक चीज़ है। वो जानते थे कि उनके हाथ हॉकी के लिए एकदम अनुकूल थे, लेकिन खेल के अन्य महान सितारों की तरह प्रतिभा को प्रभावी बनाने के लिए जिस चीज़ की आवश्यकता होती है, वह है मेहनत। इतने लंबे समय📅 तक जितने सर्वश्रेष्ठ तरीके से वे खेले, वैसा खेलने के लिए उनको अपने शरीर को दुरुस्त व दिमाग को चुस्त रखने की आवश्यकता थी।
editध्यान चंद के पिता समे वर दत्त सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में नौकरी करते थे और वे स्वयं भी हॉकी खेला करते थे।
Chapter 6/19

editलोग कहा करते थे कि उनको छोटी उम्र से ही रबड़ी बहुत पसंद थी। उनकी माँ👩 उनके लिए अक्सर रबड़ी बनाया करती थीं। क्या यही कारण था कि उनकी कलार्इयाँ लचकदार व जाँघें मज़बूत स्टील की स्प्रिंग जैसी थीं जो हॉकी खेलने में सहायता करती थीं?
editलेकिन ममता रखने वाली प्रत्येक माँ👩 की तरह ही वो अपने बेटे को बड़े प्रेम से खिलाया पिलाया करती थीं, बिना यह सोचे कि आगे चलकर वो क्या बनेंगे।
Chapter 7/19

editसेना में अपनी सेवा के दौरान समे वर का हमेशा स्थानांतरण होता रहा, इसलिए समे वर दत्त कभी भी अपने बच्चों के लिए निर्बाध शिक्षा को सुनिश्चत नहीं कर सके। अंत में जब सरकार ने उन्हें झाँसी में अपना मकान🏠 बनाने के लिए कुछ ज़मीन दी,💗 तभी उनके जीवन में कुछ ठहराव आया। लेकिन तब तक ध्यान छह साल तक पढ़ कर स्कूल🎒🏫🚌 छोड़ चुके थे।
editहालाँकि झाँसी में ध्यान स्कूल🎒🏫🚌 जाना🚶 बंद कर चुके थे, लेकिन उन्होंने अपने पिता
editके खेल को पूरे जोश के साथ अपनाया। १६ साल की उम्र में जब वे सेना में भर्ती
Chapter 8/19

edit१९२० के दशक के मध्य में वे एक उभरते हुए हॉकी खिलाड़ी थे। उस दौरान उन्होंने सेना की टीम के साथ न्यूज़ीलैंड का दौरा भी किया, और अपनी टीम को २१ में से १८ मैच जीतने में सहयोग किया। स्वाभाविक रूप से उन्हें १९२८ में भारतीय टीम में चुन लिया गया जो एम्सटर्डम ओलंपिक जाने वाली थी।
editटीम यूरोप रवाना होने से पहले अपने अभ्यास मैच में हार गर्इ - ध्यान ने टीम की ओर से दो गोल किये, लेकिन उनकी विरोधी बॉम्बे टीम ने तीन गोल कर दिये। इस हार ने टीम को जोश दिला दिया। उन्होंने इंग्लैंड व यूरोप में अभ्यास मैचों को इतने बड़े अंतर से जीता कि, मर्इ के महिने में जब टूर्नामेंट शुरु हुआ, बाकी टीमों के मन में ज़रूर भारत🇮🇳 की इस तूफ़ानी टीम का डर बैठ गया होगा।
Chapter 9/19

editएम्सटर्डम में भारत🇮🇳 ने ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क और स्विटज़रलेंड को हराया। २६ मर्इ को फ़ाइनल मैच में भारत🇮🇳 ने नीदरलैंड को हराया। पूरे टूर्नामेंट के दौरान भारतीय टीम ने एक भी गोल नहीं खाया। भारत🇮🇳 की ओर से किये गए २९ गोल में से ध्यान चंद ने १४ गोल किये।
editएक स्थानीय अखबार ने इसके बारे में कुछ इस प्रकार से लिखा, “यह हॉकी का खेल नहीं है, यह जादू है, ध्यान चंद वास्तव में हॉकी के जादूगर हैं।” जिसने भी ध्यान चंद की स्टिक से गेंद को चिपके हुए देखा है, उसको वास्तव में यह पता है कि इन शब्दों का क्या अर्थ है।
Chapter 10/19

editभारत🇮🇳 ने ओलंपिक में हॉकी का स्वर्ण पदक जीत लिया था।
editऔर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी २२ वर्षीय भारतीय ध्यान चंद थे।
edit१९३२ के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में केवल ३ टीमों ने हॉकी
Chapter 11/19

editतब तक ध्यान चंद के छोटे भार्इ रूप भी टीम में आ चुके थे और दोनों भार्इयों ने मिल🏭 कर ३५ में से २५ गोल किये थे। एक अमेरिकी पत्रकार ने लिखा कि यह भारतीय टीम “पूर्व का एक तूफ़ान है।” और यह तूफ़ान अभी शुरु ही हो रहा था। १९३२ के अपने विजयी दौरे में भारतीय टीम ने ३७ मैचे खेले और इनमें ३३८ गोल किये। इनमें से १३३ ध्यान ने किये थे। १९३४ में ४८ मैचों में भारतीय टीम ने ५८४ गोल किये, जिसमें से ध्यान चंद ने २०१ गोल किये।
Chapter 12/19

editइसके बाद आया बर्लिन ओलंपिक। उस समय📅 जर्मनी, एडोल्फ़ हिटलर के नेतृत्व में नाज़ी शासन के अपने प्रारंभिक काल में था। हिटलर का यह मानना था कि जर्मन दुनिया के दूसरे लोगों की तुलना में जीवन के सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ हैं।
editउनकी यह धारणा आने वाले वर्षों में मानवीय इतिहास के सबसे बर्बर रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत हुर्इ। लेकिन १९३६ में, हिटलर ने बर्लिन ओलंपिक को अपने विकृत विचारों को दुनिया व देश को दिखाने के अवसर के रूप में देखा।
Chapter 13/19
editलेकिन हिटलर की योजना को अधिक कामयाबी नहीं मिली, और इसका आंशिक कारण ध्यान चंद व भारतीय हॉकी टीम थी। पूर्व का तूफ़ान शांत नहीं हुआ था और उसने हंगरी, अमेरिका, जापान और फ़्रांस को हराते हुए फ़ाइनल में प्रवेश किया। जर्मनी भी फ़ाइनल में पहुँच चुका था, और हिटलर ने सोचा कि जर्मनी की टीम पूर्व से आए इन भूरे लोगों को अपना वास्तविक स्थान दिखा देगी। और फ़ाइनल में जर्मनी ने एक गोल कर दिया था, जो चारों टीमें मिलाकर भारत🇮🇳 के ख़िलाफ़ अब तक नहीं कर पार्इ थीं।
editसमस्या यह थी कि भारत🇮🇳 की टीम ने ८ गोल कर दिये थे। एडोल्फ़ हिटलर ने क्या सोचा होगा? जर्मनों के सर्वश्रेष्ठ होने की धारणा को इस पराजय से कितनी ठेस पहुँची होगी?
editभारत🇮🇳 के लिए एक और स्वर्ण पदक। ध्यान चंद के लिए कर्इ और गोल। अब वो एक ‘सुपरस्टार’ बन चुके थे, अपने ज़माने के रोजर फेडरर अथवा राहुल द्रविड। उनका भारत🇮🇳 एवं उन अन्य सभी जगह असाधारण सम्मान होता जहाँ हॉकी खेली जाती।
editअपने इर्द गिर्द प्रसिद्धी का घेरा होने के बावजूद उनकी दृष्टि में उनका सर्वश्रेष्ठ मैच १९३३ का बैटन कप का फ़ाइनल मैच था, जो एक भारतीय टूर्नामेंट था। अपनी घरेलू टीम झाँसी हीरोज़ के लिए खेलते हुए उन्होंने अपने साथी खिलाड़ी र्इस्माइल को एक लंबा पास दिया, र्इस्माइल “जेसी ओवेन्स की गति से लगभग आधा मैदान भागे” और उन्होंने मैच का इकलौता गोल किया।
Chapter 14/19

editध्यान चंद के लिए टीम वर्क, यानि पूरे दल के साथ समन्वय, हमेशा महत्वपूर्ण रहा। और शायद उनका जेसी ओवेन्स - एक महान धावक जिन्होंने बर्लिन में मैडल जीता और सिद्ध किया कि हिटलर के विचार कितने विकृत थे - के बारे में उल्लेख करना यह प्रदर्शित करता है कि वे ओलंपिक को कितना महत्वपूर्ण समझते थे।
Chapter 15/19

editध्यान चंद १९५६ में सेना से मेजर के पद से रिटायर हुए। उस साल उन्हें पद्म भूषण के सम्मान से नवाज़ा गया। इसके बाद उनको पटियाला में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पोर्ट्स में चीफ़ हॉकी कोच के पद पर नियुक्त किया गया।
editउन्होंने कर्इ वर्षों तक वहाँ, और देश के कर्इ हिस्सों में विभिन्न कैंपों में प्रशिक्षण दिया। वे इस बात👄 से बहुत खुश थे कि उनके बाद उनके पुत्र अशोक ने भी हॉकी खेलने की परिवार👪 की परंपरा को आगे बढ़ाया।
Chapter 16/19
editअशोक भी अपने पिता की भाँति एक विश्व स्तरीय खिलाड़ी थे जिनको हॉकी के कुछ अद् भुत कौशल अपने पिता से विरासत में मिले थे। अशोक ने १९७५ के फ़ाइनल में वो गोल किया था जिसने भारत🇮🇳 को विश्व विजेता बनाया था।
editदुर्भाग्य से तब तक भारत🇮🇳 हॉकी की एक शक्ति से पतन की ओर अग्रसर था। वो विश् व कप शायद अंतिम महत्वपूर्ण टूर्नामेंट था जिसे भारत🇮🇳 जीत पाया था। रिटायर्ड मेजर, जिसके पास इस खेल में विजय की इतनी गौरवशाली यादें थीं कभी इस बात👄 को स्वीकार नहीं कर पाए कि जो खेल उनके दिल के इतने करीब था, उसमें उनकी टीम इतना संघर्ष कर रही थी। जब १९७६ के मांट्रियल ओलंपिक में भारतीय टीम छठे स्थान पर रही तब ध्यान चंद ने दर्द बयान करते हुए कहा, “कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन🌤️ भी देखना पड़ेगा।”
Chapter 17/19

editध्यान चंद ने अपने अंतिम वर्ष अपने प्रिय स्थान झाँसी में बिताए। वहाँ रहने वाले लोग इस महान पुरूष को देखा करते थे, जो कभी बाज़ार जा रहे होते तो कभी अपने मित्रों से मिलने अथवा कभी घर🏠 के काम निपटाने के लिए सार्इकिल पर जाते हुए दिखार्इ दे जाते थे। उनका निधन ३ दिसम्बर १९७९ को नर्इ दिल्ली के एक अस्पताल में हुआ। उनका पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ झाँसी हीरोज़ ग्राउंड पर अंतिम संस्कार किया गया।
Chapter 18/19

editआज हम उनके जन्मदिन, २९ अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं, और भारतीय खेल जगत के सर्वकालिक सर्वोच्च पुरस्कार, ध्यान चंद पुरस्कार को उनके नाम पर रखा गया है। यदि भारत🇮🇳 खेल में पुन: कभी शक्तिकेंद्र के रूप में उभरता है तो हम कह सकते हैं कि इसके पीछे इस महान व्यक्ति की प्रेरणा है। एक जादूगर जो कभी हॉकी खेलता था, जिसने पूरी🥞 दुनिया को रोमांचित कर दिया।
editएक भारतीय विलक्षण प्रतिभा, एक पूर्ण भारतीय, चंद्रमा के तले जन्मा ध्यान चंद।
Chapter 19/19

editध्यान चंद का भारत🇮🇳 ओलंपिक में
edit१९२८ ओलंपिक एम्सटर्डम, नीदरलैंड में
editभारत🇮🇳 - स्विटज़रलैंड: ६ - ०
edit१९३२ ओलंपिक लॉस एंजिल्स में
edit१९३६ बर्लिन ओलंपिक
Peer-review 🕵🏽♀📖️️️️
Contributions 👩🏽💻
Word frequency
Letter frequency
Letter | Frequency |
---|---|
े | 680 |
ा | 638 |
क | 587 |
र | 485 |
न | 423 |
् | 337 |
ि | 305 |
ी | 304 |
ं | 289 |
स | 286 |
त | 267 |
म | 264 |
ह | 261 |
ो | 225 |
ल | 223 |
य | 214 |
प | 195 |
द | 167 |
व | 144 |
ब | 102 |
थ | 101 |
ज | 99 |
भ | 98 |
ग | 94 |
ट | 91 |
च | 90 |
अ | 85 |
उ | 78 |
ए | 73 |
ु | 73 |
इ | 71 |
ै | 70 |
ख | 59 |
ू | 55 |
ध | 52 |
श | 50 |
औ | 36 |
ॉ | 30 |
ँ | 28 |
१ | 26 |
- | 25 |
ड | 24 |
ष | 24 |
ण | 23 |
ड़ | 23 |
आ | 22 |
ज़ | 21 |
ौ | 20 |
९ | 19 |
फ़ | 17 |
३ | 17 |
ओ | 16 |
२ | 15 |
ठ | 14 |
० | 12 |
छ | 11 |
६ | 8 |
झ | 7 |
४ | 7 |
८ | 7 |
५ | 6 |
5 | |
घ | 5 |
७ | 5 |
ृ | 4 |
ऑ | 3 |
फ | 3 |
ऐ | 2 |
़ | 2 |
ख़ | 2 |
ढ़ | 2 |
| 1 |
‘ | 1 |
’ | 1 |