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Chapter 1/24

editयह हैं जादव। जादव को पेड़🌲🌳 लगाने का जुनून है।
editइन्हें कई-पेड़ों-वाली-जगहें अच्छी लगती हैं क्योंकि वह ज़िन्दगी से भरपूर होती हैं।
editपेड़-पौधों और जानवरों को देख इन्हें ख़ुशी मिलती है। बिना-पेड़ों-वाली-जगहें देख जादव बहुत उदास हो जाते हैं क्योंकि वहाँ सब कुछ बेजान होता है।
Chapter 2/24

editबरसों पहले जादव ब्रह्मपुत्र महानदी के किनारे-किनारे कहीं जा रहे थे कि वह एक बेजान, बिना-पेड़ों-वाली-जगह जा पहुँचे।
editवह जगह बिलकुल सूखी और गर्म थी। वहां की रेत भुरभुरी थी, और उस पर धारियाँ सी नज़र आ रही थीं।
Chapter 3/24

editरेत पर धारियाँ? अजीब सी बात👄 थी!
editग़ौर से देखने के लिए जादव थोड़ा क़रीब गये।
editदूर से जो धारियाँ नज़र आ रही थीं, वह दरअसल साँप थे!
editजादव ने सोचा कि बीती रात🌃 पानी🌊🌧️💦💧🚰 बढ़ा होगा जिससे यह किनारे पर आ गए होंगे।
Chapter 4/24

editयह साँप सामान्य, स्वस्थ साँपों की तरह सरसरा और लहरा नहीं रहे थे। जादव उनके बीच पहुँचे तो भी न तो उन्होंने फुफकारा, न वहां से भागे और न ही उन्हें काटने की कोशिश की। वह तो बस🚌🚍🚏 रस्सियों की तरह थके-हारे, अलसाये से पड़े रहे।
edit“बेचारे साँप गर्मी से बेहाल हैं! काश, इन्हें यहाँ थोड़ी सी छाया मिल🏭 जाती! काश, इस उजाड़ जगह पर कुछ पेड़🌲🌳 होते!”
Chapter 5/24

editजादव से साँपों को इस तरह धूप में झुलस कर मरते नहीं देखा जा रहा था। यह नज़ारा देख कर वह इतने दुःखी हुए कि वहीं बैठ कर रोने लगे।
editलेकिन जल्दी ही उनकी बुद्धि काम करने लगी। “अब और रोना नहीं है। अब से सिर्फ़ कोशिश करनी है!”
editवह तेज़ी से अपने गाँव की ओर दौड़े और वहाँ पहुँच कर बाँस के अँखुए एक थैले में ठूँस-ठूँस कर भरने लगे।“दूसरे पेड़-पौधे गर्म रेत में नहीं पनप पाएँगे, लेकिन बाँस लग जाएगा। बाँस बहुत कुछ सह सकता है!”
Chapter 6/24

editबाँस के अँखुए लेकर जादव उस बँजर रेतीली जगह पर पहुँचे और उन्हें जगह-जगह रोपने लगे। गर्म मौसम में यह बहुत कठिन काम था और उन्हें इसमें कई बरस लग गये।
editएक साल महानद सूखकर एक पतली सी धारा भर रह जाता🚶 तो दूसरे साल उसमें बाढ़ आ जाती। कभी उसके सैलाब में काफ़ी सारी रेत बह कर आ जाती, तो कभी उसकी धारा में तमाम रेत बह जाती। ज़ोरदार बारिश🌧️ के दिन🌤️ आए और चले गए। लेकिन जादव ने बाँस की रोपाई जारी रखी।
Chapter 7/24

editसमय📅 आने पर बाँस के अँखुओं में से जड़ें फूटीं, और बाँस के झुरमुट पनपने लगे। बाँसों के बढ़ने के साथ रेत पर छाया रहने लगी, और इस छाया में कीड़े-मकोड़े पनपने लगे।
editकीड़े-मकोड़े ज़मीन के अंदर घुस कर अपनी सुरँगें बनाने लगे। बाँस के साये में ज़मीन का हुलिया बदलने लगा। भुरभुरी सफ़ेद रेत की जगह अब भूरी मिट्टी जमने लगी। बेजान रेत जड़ों में जान फूँकने वाली मिट्टी में बदल गयी।
Chapter 8/24
editअब जादव को कोई ग़म नहीं था, लेकिन वह पूरी🥞 तरह ख़ुश भी नहीं थे।
editउन्होंने अपने बाँस के झुरमुट में नज़र दौड़ायी और सोचने लगे,
edit“बिना-पेड़ों-वाली-जगह से कुछ-पेड़ों-वाली-जगह बेहतर है,
editलेकिन कितना अच्छा हो अगर यह कई-पेड़ों-वाली-जगह बन सके!”
editयह बात👄 सोचकर ही वह रोमाँचित हो उठे।
editजादव अपने गाँव लौटे, और वहाँ पहुँच कर तरह-तरह के
editपेड़-पौधों के बीज🌾 और पौध इकट्ठे करने लगे।
editउन्होंने वालकोल, अर्जुन, एजार, गुलमोहर, कोरई, मोज और हिमोलू
editकी पौध और बीजों से तीन बड़े-बड़े थैले भर लिये।
edit“अब हमारी जगह बँजर नहीं है।
editवहां कम से कम कुछ हरियाली है, और वहाँ सूखी रेत नहीं, भूरी मिट्टी है।
editअब हम वहाँ इनमें से कोई भी पौध रोप सकते, बहुत कुछ उगा सकते हैं!”
Chapter 9/24

editख़ूब सारे पौधे और बीज🌾 लेकर जादव एक कुछ-पेड़ों-वाली-जगह जा पहुँचे, और इस तरह वह खाली जगह देख कर वहाँ पौधे रोपने लगे और बीज🌾 बोने लगे।
Chapter 10/24
editउन्हें पौधे लगाते-लगाते कई बरस बीत गये।
editगाँव कस्बों में बदल गये। ज़मीन तो ज़मीन, आसमान तक की रँगत में फ़र्क पड़ गया।
editसुबह नारँगी और दिन🌤️ में नीला नज़र आने वाला आसमान कभी बैंगनी तो कभी गुलाबी नज़र आने लगा।
editहवा🌬️🍃💨 धूल भरी हो गयी, और नदी मटमैली।
editलेकिन जादव के हितैषी कीड़े-मकोड़े मिट्टी को उलट-पलट कर उपजाऊ बनाते रहे,
editउनके ऊँचे-ऊँचे बाँसों ने छाँव दी💗 और हवा🌬️🍃💨 को ठंडा रखा।
editऔर जादव ने ज़्यादा ये ज़्यादा पौधे लगाने की मुहिम को जारी रखा।
Chapter 11/24

editजल्दी ही उनके रोपे वालकोल, अर्जुन, एजर, गुलमोहर, करोई, मोज और हिमोलू के पौधों ने जड़ें पकड़ लीं और बड़े होने लगे।
editबड़े होने पर उनके बीज🌾 बिखरने लगे। नए बीज🌾 से निकले पौधे जड़ें फैलाने लगे। नाज़ुक पौधे मोटे-मज़बूत तने वाले हो गये। तनों से और डालियाँ निकलीं, और डालियों आसमान को छूने की कोशिश करने लगीं।
Chapter 12/24

editजो कभी एक बिना-पेड़ों-वाली-जगह हुआ करती थी, ऐसी बँजर और बेकार जगह अब एक शानदार, हरियाली से भरी कई-पेड़ों-वाली-जगह बन गई थी।अब यहाँ हरे-भरे पेड़🌲🌳 लहलहा रहे थे।
editलेकिन जहाँ बहुत सारे पेड़🌲🌳 हों, वहाँ पेड़ों पर रहने वाले जीव-जंतु न हों, ऐसा कैसे हो सकता था? एक जीव से शुरू हुआ यह सिलसिला आगे बढ़ता चला गया।
Chapter 13/24

editसबसे पहले पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 आए।
editकोई पास से तो कोई दूर से, तमाम सारे पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 मुलाई के लगाए पेड़ों में घोसले बनाने के लिए आ गए।
editइनमें गिद्ध भी थे और हवासील भी, सारस भी थे और बत्तखें भी।
editसुरीली आवाज़ में गाने वाले पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 भी आए, और तीखे स्वर बिखेरने वाले भी पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 आए, और वार्बलर, थ्रश, दुम हिलाकर फुदकने वाले पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 आए और एक स्वर में रट लगाने वाले पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 भी आए जादव के बनाए मधुबन में।
Chapter 14/24

editवहाँपेड़ों की कमी नहीं थी, इसलिए वहाँ आ बसने के लिए जानवरों का ताँता लग गया। कोई कूद-फाँद कर आया, कोई डाल-डाल पर छलाँगे मारते हुए, तो कोई मटक-मटक कर चलते हुए। गौर, हिरन, खरगोश और गिब्बन आए। हाथी🐘 आये, बाघ आए और गैंडे भी आकर बस🚌🚍🚏 गए।
Chapter 15/24

editलहराते, बलखाते, सरसराते साँप जादव के पेड़ों की छाँव में ठँडक का मज़ा लेने के लिए।
editजब जादव ने देखा कि साँप आ गए हैं, तो उनका जी भर आया। वह धम्म से ज़मीन पर बैठ गए और ख़ुशी के आँसू उनकी आँखों से बह निकले। ख़ुशी के मारे उन्हें साँपों के काटने का भी डर नहीं रहा।
Chapter 16/24

editजादव ने अपनी कोशिशों से जिस बिना-पेड़ों-वाली-जगह को पेड़ों से भर दिया था, वहाँ अब जिधर देखो पँख, चोंच, डैने, पँजे, पूँछ और ज़हरीले दाँत नज़र आते थे!
editजिधर जाए नज़र, उधर हरियाली का रँग भरा। धूप में भी हरा, छाँव में भी हरा। हर तरफ़ हरा ही हरा!
editजादव की कई-पेड़ों-वाली-जगह अब जँगल में बदल चुकी थी! और जादव की ख़ुशी का ठिकाना न था!
Chapter 17/24
editइसके बाद जादव के मन में एक और विचार आया -
edit“एक कई-पेड़ों-वाली-जगह होना अच्छी बात👄 है।
editलेकिन कितना अच्छा हो कई कई-पेड़ों-वाली-जगहें हों!”
editइसलिए अपना बीज़ों से भरा थैला कंधे पर लाद,
editवह निकल पड़े दुनिया भर में पेड़🌲🌳 लगाने।
editचलते-चलते उन्हें जहाँ कहीं बिना-पेड़ों-वाली-जगह मिलती, वह वहाँ बीज🌾 बोते जाते।
editलेकिन दुनिया में बिना-पेड़ों-वाली-जगह बहुत हैं।
Chapter 18/24
Chapter 19/24
Chapter 20/24
editपुराने समय📅 में जितने जँगल थे,
editउन सब को फिर से खड़ा करना कठिन काम है।
editसमुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, और हवाओं में ठंडक बढ़ती जा रही है।
editकस्बे शहर बन गये हैं और जादव बूढ़े होते जा रहे हैं।
editलेकिन अब भी उन्होंने पेड़🌲🌳 लगाना बंद नहीं किया है।
Chapter 21/24
Chapter 22/24

editजादव, असल जीवन
editजादव ‘मुलाई’ पायेंग एक पर्यावरण सँरक्षणकर्ता हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है, जो कि भारत🇮🇳 सरकार द्वारा दिए जाने वाले सबसे बड़े नागरिक सम्मानों में से एक है। जादव असम के माजुली गाँव में रहते हैं।
editसोलह साल की उम्र में ब्रह्मपुत्र के रेतीले किनारे पर साँपों को गर्मी में तड़प-तड़प कर मरते देख जादव बेहद दुःखी हुए, और उन्होंने वहाँकुछ छायादार पेड़🌲🌳 लगाने का फ़ैसला किया। सबसे पहले उन्होंने आसानी से पनपने वाले बाँस लगाए। बड़ी मेहनत से एक-एक करके लगातार पेड़🌲🌳 लगाते-लगाते उन्होंने पूरा जँगल ही खड़ा कर दिया। यह 1979 की बात👄 है।
editअगले तीन दशकों में जादव ने पेड़🌲🌳 लगा-लगा कर बंजर ज़मीन की सूरत और सीरत बदल डाली। नदी की धारा में साढ़े पाँच सौ हैक्टेयर का रेतीला टापू अब घने जँगल में बदल चुका है जिसमें किस्म-किस्म के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं। इनमें हाथी,🐘 बाघ, कपि, हिरन और कई किस्म के स्थानीय और प्रवासी पक्षी🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 शामिल हैं। जादव ने हर रोज़ ख़ुद जाकर अपने जँगल की देखरेख का सिलसिला जारी रखा है। आज भी उन्हें जहाँ कहीं थोड़ी सी ख़ाली जगह दिखाई देती है, वह वहाँ पेड़-पौधे लगा देते हैं।
Chapter 23/24

editआम खाएँ और पेड़🌲🌳 लगाएँ, पेड़🌲🌳 के साथ बड़े हो जाएँ!
editआम खाया? मज़ा आया? एक और खाने🍴 का मन है? बेशक, आप दुकान पर जाकर ख़रीद सकते हैं। लेकिन इससे कहीं ज़्यादा मज़ा आएगा तब, वह भी मुफ़्त में, जब आप अपने खाए आम की गुठली से और आम तैयार करेंगे! बस🚌🚍🚏 इसके लिए आपको चाहिए ढेर सारा समय📅 और धैर्य!
editसबसे पहले अपने घर🏠 के पास एक अच्छी सी ख़ाली जगह ढूँढें। आम खाने🍴 के बाद जो गुठली बचा कर रखी है, उसे बोने के लिए ऐसी जगह चुने जहाँ ज़मीन ज़्यादा सख़्त न हो और धूप ख़ूब आती हो। अपने दोस्त, भाई-बहन या किसी बड़े की मदद से आठ-दस इँच गहरा गड्ढा खोद कर बीज🌾 को उसमें डालें और मिट्टी से ढक दें।
editफिर दो जग पानी🌊🌧️💦💧🚰 डाल कर सींचें। आपको कई हफ़्ते तक मिट्टी सूखने पर सिंचाई करनी पड़ेगी, और इंतज़ार करना पड़ेगा तब कहीं गुठली में से पौधा निकलेगा! पौधे को बड़ा होने में बहुत समय📅 लगता है। इसलिए फिक्र न करें, और जल्दबाज़ी तो बिलकुल भी नहीं!
Chapter 24/24
editआपकी बोई हुई गुठली में से अंकुर फूटने के बाद वह आम के स्वस्थ पौधे के रूप में पनप जाए, तो तैयार रहें उसकी सिंचाई, देखभाल और पहले से भी ज़्यादा इंतज़ार के लिए! ध्यान रखें कि कहीं आपके पोधे को कीड़े-मकोड़े या कोई जानवर न खा जाएँ या फिर कोई उसे अपने पैरों तले न रौंद जाएँ। अगर इंतज़ार करते-करते आप ऊबने लगें तो कुछ किताबें पढ़ डालें, कुछ गीत गुनगुना लें, और कुछ और पौधे लगा दें!
editकुछ साल में, जब आप पहले से लंबे हो जाएँगे, तब आपका आम का पेड़🌲🌳 भी आपके साथ बढ़ रहा होगा। बढ़ते-बढ़ते वह एक बड़े पेड़🌲🌳 में बदल जाएगा जिस पर आप चाहें तो चढ़ सकेंगे, या फिर उसके साये में पिकनिक कर सकेंगे। तब शुरू होगा असली मज़ा! तब आपका पेड़🌲🌳 आम देने लगेगा, जिन्हें आप और आपके दोस्त खा सकेंगे। इससे भी ज़्यादा बढ़िया बात👄 यह होगी कि आम खाना🍲 पसंद करने वाले तमाम दूसरे जीव भी आपके पेड़🌲🌳 की ओर खिंचे चले आएंगे - पक्षी,🐔🐤🐦🐧🕊️🦃🦅🦆🦉 चींटियाँ, गिलहरियाँ, चमगादड़, बन्दर और मकड़ियाँ।
editइनमें से कुछ फल खाने🍴 आएँगे, कुछ पेड़🌲🌳 का रस पीने आएँगे, कुछ इसके फूलों का रस पीने आएँगे और कुछ जीव इस पेड़🌲🌳 पर जमघट लगाये जीवों को चट करने के चक्कर में होंगे! सभी पेट भरने के चक्कर में रहेंगे, ऐसा भी नहीं है। कुछ ऐसे भी जीव होंगे जो आपके पेड़🌲🌳 की छाँव में आराम करने, उसकी डालों में कुछ देर चैन की नींद लेने आएँगे। आपका पेड़🌲🌳 अलग-अलग जीवों के लिए अलग काम का होगा!
editतब आप रोज़ाना कुछ समय📅 यह देखने में बिता सकते हैं कि आपके आम के पेड़🌲🌳 पर कौन आता है, कब आता है, और क्या करता है। आप जो कुछ देखें उसे एक जगह लिख कर रखें। इसके अलावा, आप जो कुछ देखें उसके चित्र भी बना कर रखें।
editदेखा आपने, सिर्फ़ एक आम की गुठली के ज़रिये आपने कितना कुछ किया, कितना कुछ जाना?🚶
editअब जरा सोचिए, जादव को पेड़ों से भरा अपना पूरा जँगल लगाने में कितना मज़ा आया होगा!
Peer-review 🕵🏽♀📖️️️️
Contributions 👩🏽💻
Word frequency
Letter frequency
Letter | Frequency |
---|---|
े | 639 |
ा | 560 |
क | 410 |
र | 410 |
ह | 336 |
ी | 315 |
न | 292 |
ं | 251 |
ल | 247 |
स | 247 |
ज | 228 |
प | 218 |
ो | 194 |
ब | 189 |
ग | 188 |
त | 183 |
म | 183 |
़ | 171 |
ि | 160 |
व | 136 |
द | 135 |
ु | 116 |
् | 115 |
ँ | 109 |
ड | 107 |
य | 95 |
- | 90 |
आ | 86 |
ए | 82 |
ख | 72 |
ै | 72 |
औ | 66 |
भ | 55 |
अ | 51 |
च | 50 |
उ | 44 |
थ | 42 |
ू | 42 |
ध | 40 |
छ | 39 |
ई | 34 |
ट | 33 |
इ | 28 |
ौ | 28 |
श | 27 |
फ | 25 |
ठ | 20 |
ढ | 19 |
ष | 10 |
घ | 7 |
ऐ | 5 |
ऊ | 4 |
ओ | 4 |
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झ | 3 |
ः | 2 |
ण | 2 |
9 | 2 |
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