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Storybook paragraphs containing word (259)
"“वाह कालू! ढूँढ निकाले आलू,” टोकरी भर कर बोला मालू।"
आलू-मालू-कालू
"चिड़िया थक कर पहाड़ पर बैठ गई."
कहानी- बादल की सैर
"उसे देख कर फल, फूल,"
कहानी- बादल की सैर
"रुक कर क्या करूंगा?""
कहानी- बादल की सैर
""हम-तुम मिल कर खेलेंगे." मीनू ने"
कहानी- बादल की सैर
"दौड़ दौड़ कर मोटा राजा भी कुत्ते की तरह पतला हो गया।"
एक था मोटा राजा
"हम बगीचे में भी गए |पेड़ के पास छिप कर हमने लुका –छिपी खेला |हमने मेमने को भी खेलाया |"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"अरे यह तो मेरी माँ हैं। वह खेत से काम कर के घर आई हैं।"
मैं नहीं डरती !
"और टिप टिप कर टपकी "
रिमझिम बरसे बादल
"झूम झूम कर नाची मुनिया"
रिमझिम बरसे बादल
"गप्पू गलत जो कर रही थी।"
गप्पू नाच नहीं सकती
"और आप सब भी ऐसा कर सकते हैं!"
गप्पू नाच नहीं सकती
"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो
"रात में कनॉट प्लेस की ख़ूबसूरती देखने से उसका मन कभी नहीं भरता।
रेलवे स्टेशन की चहल-पहल और क्रिकेट मैच के बाद फ़िरोज़शाह कोटला
मैदान से उमड़ती भीड़ उसे रोमांचित कर देती।"
उड़ने वाला ऑटो
"गर्मी के दिन थे, भीड़-भाड़ वाले एक चौराहे पर अर्जुन खड़ा इंतज़ार कर रहा था। शिरीष जी के पीछे अधेड़ उम्र की सुरमई बालों वाली, पुरानी सी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी।"
उड़ने वाला ऑटो
"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो
"उस औरत ने भी पानी पिया और पीते-पीते आगे बढ़ते अर्जुन पर भी
थोड़ा-सा पानी छलक कर गिर गया।"
उड़ने वाला ऑटो
"“फट फट टूका, टूका टुक” करते हुए वह आगे बढ़ा और अपने एक भाई को मुस्करा कर कहा, “हेलो!”"
उड़ने वाला ऑटो
"खुली साफ़ सड़क को देख कर शिरीष जी हैरान रह गए। शीशे में देखते हुए पीछे बैठी औरत से उन्होंने कहा, “हाँ बहन जी, बिलकुल जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो
"अब उस औरत की साड़ी चमक रही थी, जिस पर सोने के धागों से कढ़ाई की गई थी। उसने हँस कर कहा, “जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो
"उसे सड़कों का बहुत बड़ा जाल दिखाई दिया मानो किसी शरारती मकड़े ने बनाया हो।
फटी आँखों से शिरीष जी खुशी में चीख रहे थे। न तो वह हैंडल बार को पकड़े हुए थे और न ही गाड़ियों से बचने की कोशिश कर रहे थे।"
उड़ने वाला ऑटो
"“लेकिन हम क्या कर रहे हैं?” अर्जुन ने सोचा। “हम कहाँ जा रहे हैं? अगर मुझे चलाया नहीं गया तो मेरा क्या होगा?” अर्जुन ने अब से पहले कभी इतना आज़ाद महसूस नहीं किया था, और न ही इतना परेशान।"
उड़ने वाला ऑटो
"वे तो मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। यही तो है मेरे जीवन का असली जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो
"ऊपर की एक खिड़की से उस औरत के नाती-नातिन ने हाथ हिलाया। ऑटो से नीचे उतर कर उसने शिरीष जी को किराया दिया।"
उड़ने वाला ऑटो
"मेरी बहन सब गड़बड़ कर देती है ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"प्रिय पाठक, क्या आपको मालूम है कि प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में हिन्द महासागर को ‘रत्नाकर’ कहा जाता था? रत्नाकर यानि हीरे जवाहरात की खान। मैंटा रे मछलियाँ अक्सर सफ़ाई के ठिकानों पर जाया करती हैं। सफ़ाई के ठिकानों को कुदरत का अस्पताल कहा जा सकता है। यहीं एंजेल फ़िश जैसी छोटी मछलियाँ मैंटा रे के गलफड़ों के अन्दर और खाल के ऊपर तैरती हैं। वे क्लीनर फ़िश कहलाती हैं क्योंकि वे मैंटा रे के ऊपर मौजूद परजीवियों व मृत खाल को खा कर उसकी सफ़ाई करती हैं। मैंटा रे मछलियाँ विशाल होने के बावजूद बहुत कोमल स्वभाव की होती हैं। बड़ी शार्क, व्हेल मछलियाँ व मनुष्य उनका शिकार करते हैं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"जानवरों की खालों और छड़ियों से बनी आदिवासी अमेरिकनों की टीपी ठंड से बचाती है। इन्हें लपेट कर कहीं ले जाना भी आसान होता है।"
सबसे अच्छा घर
"खेमा: मंगोलिया के लोग लकड़ी के ढाँचे और मोटे ऊनी नमदे के कालीनों से ख़ूब गर्म और हल्के घर बनाते हैं। जब कहीं और जाना हो तो लोग लकड़ी की पट्टियों और नमदों को घोड़ों और याकों पर लाद कर मकान को भी साथ ले जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर
"टीपी: अमेरिका के मैदानी इलाकों के आदिवासी छड़ियों और जानवरों की खालों से बहुत हल्के घर बनाते हैं। खेमे की तरह इन्हें भी खोल कर कहीं और ले जा सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर
"कभी-कभी खेलते समय आप भी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक क़तार बनाते हैं और फिर वह पूरी क़तार ही एक साथ चलती है। उसी तरह कण भी एक दूसरे के साथ चिपक कर एक नेटवर्क सा बना लेते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?
"अम्मा ने आटे को गूँध लिया है। वह अब अपनी हथेली में थोड़ा सा तेल लगा कर उसे अच्छी तरह गूँधने के लिये कह रही है। आटे को अच्छी तरह गूँधने के लिये मजबूत हाथ चाहिए। उनका कहना है कि अगर आटे को अच्छी तरह गूँधा नहीं जाता है तो पूरी नहीं फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"अम्मा और बाबा दोनों तैयार हैं। अम्मा ने कढ़ाई चढ़ा (फ्राई पैन चढ़ा) कर उस में थोड़ा तेल डाल दिया है। वह गूँधे हुये आटे से थोड़ा सा आटा लेती हैं। अब वह एक पूरी बेल रही हैं। गर्म तेल में पूरी को डालते हैं। थोड़ी देर में पूरी फूल जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"याद है न कि आटे को गूँधने के लिये इस में पानी मिलाया गया था? ज़्यादा तापक्रम की वजह से पूरी के अंदर का पानी भाप बन कर उड़ जाता है। यह भाप बहुत ताकतवर होती है और इससे ग्लूटेन की सतह ऊपर चली जाती है। इसी वजह से पूरी फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"कभी-कभी पूरी को बेलने के बाद उस में जानबूझ कर एक कांटे से छोटे-छोटे छेद किये जाते हैं ताकि तलते समय जो भाप बने वह छेद से बाहर निकल जाये। इसी वजह से पूरी फूल नहीं सकती।"
पूरी क्यों फूलती है?
"पानी की मदद से आटा गूँध लेते है। आटे को गूँधते समय बस इतना ही पानी डाले कि आटा न बहुत कड़ा हो और ना ही बहुत मुलायम। हथेली के निचले हिस्से की मदद से कुछ मिनट तक इसे थोड़ा और गूँधते है। चाहें तो, थोड़ा सा तेल भी इस्तेमाल कर सकते है जिससे गुँधा आटा आपके हाथ में चिपके नहीं। गुँधे आटे को करीब 10 मिनट तक ढ़क कर रख देते है। अब इस गुँधे आटे को, कुछ मिनट के लिए दोबारा गूँधते है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"अब फिर इसे एक बड़े बर्तन में रख देते है अब बर्तन के अंदर रखे गूँधे आटे पर इतना पानी डालते है जिससे वो उसमे डूब जाए। पानी के अंदर डूबे आटे को गूँधते रहते है जब तक पानी का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता। इस पानी को फैक कर बर्तन में थोड़ा और ताजा पानी लेते है इसे तब तक करते रहे जब तक गुँधे आटे को और गूंधने से पानी सफ़ेद नहीं होता। इसका मतलब यह है कि आटे का सारा स्टार्च खत्म हो गया है और उसमें बस ग्लूटेन ही बचा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्च पानी में घुल जाता है लेकिन ग्लूटेन नहीं घुलता। अब इस बचे हुए आटे यानि ग्लूटेन से थोड़ा सा आटा लेते है इसे हम एक रबड़बैंड कि तरह खीच सकते है। अगर इसे खीच कर छोड़ते है तो यह वापस पहले जैसा हो जाता है। इससे इसके लचीलेपन का पता चलता है आप इसे चोड़ाई में फैला सकते है इससे पता चलता है कि इसमें कितनी प्लाटीसिटी है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"फिर जब वही मधुमक्खियाँ किसी और फूल के पास जा कर भन-भन करते हुए ज़ोर-शोर से नाचती हैं, तो इस धमा-चौकड़ी में दाने दूसरे फूलों पर गिर जाते हैं। फिर मधुमक्खियाँ और फूलों तक उड़ती हुई जाती हैं, कुछ दाने उठाती हैं व कुछ गिराती चलती हैं। यह कार्यक्रम इसी तरह चलता रहता है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"वैसे क्या तुम अपनी साँसे सुन सकते हो? नहीं ना! पर मधुमक्खियाँ सुन सकती हैं। भन-भन की आवाज़ मधुमक्खियों के साँस लेने से भी होती है। उनका शरीर छोटा व कई टुकड़ों में बँटा होता है। तो जब साँस लेने से हवा अंदर जाती है, तो उसे कई टेढ़े-मेढ़े व ऊँचे-नीचे रास्तों को पार कर के जाना पड़ता है। और इसी वजह से भन-भन की आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"3. इन्सानो की तरह मधुमक्खियाँ भी चेहरे पहचानती है! चेहरे के हर हिस्से को वो पहले ध्यान से देखती है फिर उसे जोड़ कर चेहरा याद कर लेती है! तो याद रखे कि किसी भी मधुमक्खी को कभी छेड़े नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"मधुमक्खी बन कर देखो"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"1. मधुमक्खी नाच कर, छत्ते में रहने वाली बाकी मधुमक्खीयों को यह बताती है कि शहद कहाँ मिलेगा तो आप भी कोशिश कीजिये नाच कर कुछ बताने की और देखिये कि क्या आपके दोस्त आपकी बातों को समझ पाते है या नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"सरला हड़बड़ा कर खड़ी हुई और बोली, "सॉरी मैडम!" मैं चील को देख रही थी। काश! हम भी चिड़िया की तरह उड़ पाते या फिर एक हवाई जहाज़ की तरह..."
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"पक्षी उड़ने के समय अपने पंख फड़फड़ाते हैं, लेकिन हमने हवाई जहाज़ के पंखों को फड़फड़ाते हुए कभी नहीं देखा! पक्षी अपने पंख फड़फड़ाते हैं ताकि वे अपने शरीर को ऊपर धकेलने में हवा का उपयोग कर सकें।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"अज्जी ने दरवाजे से अंदर झाँकते हुए कहा, "अम्मा, आप के आर एस की बात कर रही हैं क्या?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"पुट्टी ने जल्दी से हिसाब लगा कर कहा, "1942* में!" अज्जी ने सर हिलाकर हामी भरी।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"दोनों ने सिर हिला कर कहा, "म्म्म्म्म.." पुट्टी बोली, "आप सबसे बढ़िया खीर बनाती हैं, अज्जी!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"अज्जी ने ज़रा सोच कर जवाब दिया, "पक्का तो नहीं, लेकिन तुम दोनों दोपहर के खाने के बाद अपने अज्जा के साथ लाइब्रेरी जाकर वहाँ पता कर सकते हो।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""यह देखो!" उसने फुसफुसा कर कहा, " 'मैसूर की 2 सबसे मशहूर जगहों, के आर एस बांध और उसके पास बने वृन्दावन गार्डन्स, को 1932 में जनता के लिए खोला गया था।' ""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"अज्जा ने सिर हिला कर कहा, "हाँ, क्योंकि तब स्टीम इंजन होते थे जो कोयले से चलते थे, बिजली से नहीं।" उन्होंने कहा, "उसकी चिमनी से कोयले की काली राख निकल कर हर चीज़ पर चिपक जाती थी। बड़ी गंदगी हो जाती थी!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"दोनों भाग कर अज्जा के पास पहुँचे।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"बिन्दा ने सर हिला कर मना किया। उसके कुछ बोलने से पहले धनी ने उतावला होकर पूछा, ”कौन जा रहे हैं? कहाँ जा रहे हैं? क्या हो रहा है?“"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर
"”नमक?“ धनी चौंक कर उठ बैठा, ”नमक क्यों बनायेंगे? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है।“
”हाँ, मुझे मालूम है।“ बिन्दा हँसा, ”पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?“"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, बिल्कुल। मैं जानता हूँ वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाये। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो बेवकूफ़ी की बात हुई!“"
स्वतंत्रता की ओर
"”बिल्कुल बेवकूफ़ी नहीं है धनी! क्या तुम्हें पता है कि हमें नमक पर कर देना पड़ता है?“"
स्वतंत्रता की ओर
"”नमक की ज़रूरत सभी को है...इसका मतलब है कि हर भारतवासी, गरीब से गरीब भी, यह कर देता है,“ बिन्दा चाचा ने आगे समझाया।"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”एक महीने तक पैदल चलेंगे!“ धनी सोच कर परेशान हो रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी उस झोंपड़ी के पास पहुँचा जहाँ गाँधी जी ठहरे थे। उसने खिड़की से झाँक कर देखा। आश्रम के कई लोग गाँधी जी से बात कर रहे थे। धनी को सुनाई दिया कि वे दाँडी पहुँचने का रास्ता तय कर रहे थे, जिस पर वे पैदल चलेंगे। अपने पिता को भी इनके बीच देखकर धनी खुश हो गया।"
स्वतंत्रता की ओर
"दोपहर को जब आश्रम में थोड़ी शान्ति छाई, धनी अपने पिता को ढूँढने निकला। वह बैठ कर चरखा चला रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी के पिता ने चरखा रोक कर बड़े धीरज से समझाया, ”स़िर्फ वे लोग जायेंगे जिन्हें महात्मा जी ने खुद चुना है।”"
स्वतंत्रता की ओर
"अगले दिन जैसे सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़ कर गाँधी जी को ढूँढने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बन्दगोभी देखते हुए बिन्दा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"अन्त में, गाँधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने धनी को पुकारा, ”यहाँ आओ, बेटा!“ धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।"
स्वतंत्रता की ओर
"”बिल्कुल सही। तो क्या तुम आश्रम में रह कर मेरे लिये बिन्नी की देखभाल करोगे?“ गाँधी जी प्यार से बोले।"
स्वतंत्रता की ओर
"1. मार्च 1930 में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये नमक कर के विरोध में दाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया। गाँधी जी और उनके अनुयायी, गुजरात में 24 दिन तक पैदल चले। पूरे रास्ते उनका स्वागत फूलों और गीतों से हुआ। विश्व भर के अखबारों ने यात्रा पर खबरें छापीं।"
स्वतंत्रता की ओर
"2. दाँडी में गाँधी जी और उनके साथियों ने समुद्र तट से नमक उठाया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी के बाद असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ और पूरे भारत में लोगों ने स्कूल, कॉलेज व दफ़्तरों का बायकॉट किया।"
स्वतंत्रता की ओर
"यह डॉ. शेफील्ड का बेटा ल्यूसियस था, जिसने अब अपने दातुन को टूथपेस्ट के मर्तबान में डुबाने से इनकार कर दिया और फैसला किया कि वह आगे से दंतमंजन का उपयोग करेगा। लेकिन एक विचार उसके दिमाग में घूमता रहा - टूथपेस्ट के उपयोग का इससे बेहतर कोई तो तरीक़ा होगा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"पच्चा ने पूछा,”वैसे, तुम दोनों आज यहां क्या कर रहे हो?” टूका और पोई ने कहा, ”हम चीज़ें इकट्ठी कर रहे हैं!”"
आओ, बीज बटोरें!
"“अरे वाह, तुम लोगों ने तो बहुत सारे बीज इकट्ठे कर लिए हैं", बैग देखकर पच्चा ने कहा। "वैसे क्या तुम लोग यह जानते हो कि ऐसे ही इमली के एक छोटे बीज से मैं बना हूँ? और अब मुझे देखो, कितना बड़ा हो गया हूँ। मेरी ढेर सारी शाखाएँ हैं जिन पर बहुत सारी गौरेया, गिलहरियाँ और कौए रहते हैं।“"
आओ, बीज बटोरें!
"मिर्च हर आकार, रूप और रंग की होती हैं और पूरे विश्व में इनका उत्पादन होता है। इसके बीज छोटे, गोल और चपटे होते हैं और इनका इस्तेमाल दाल या भाजी में चटपटापन लाने के लिए किया जाता है। जब आप इन्हें छुएं तो सावधान रहें, ये आपकी उंगलियों में जलन पैदा कर सकतीं हैं।"
आओ, बीज बटोरें!
"क्या मैं थोड़ा लालच कर के एक-दो भुट्टे भी खा लूँ?"
गरजे बादल नाचे मोर
"“मैं इनका प्रयोग कर सकती हूँ!”"
मलार का बड़ा सा घर
"मैं मुस्कराया। सपनों की दुनिया के बारे में सोच कर मज़ा आ रहा है।"
क्या होता अगर?
"तो उसका मल कौन चट कर जाता है?"
अरे, यह सब कौन खा गया?
"मैं अपने दांतों को ब्रश नहीं कर सकता हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?
"चिड़िया अपनी चोंच से दांतों को साफ कर देती है।"
हमारे मित्र कौन है?
"चिड़िया मेरे सिर पर पहुंच कर खुजला सकती है।"
हमारे मित्र कौन है?
""अम्मा मैं उठ गया हूँ।" अम्मा अटैची बंद कर रही थीं।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"इसे अंग्रेजी में कन्वेयर बेल्ट कहते हैं। वर्दी पहने हुई, एक बहुत कठोर दिखने वाली महिला, मशीन के पीछे रखी स्क्रीन में देख कर सामान की जाँच कर रही थी। राजू स्क्रीन को देखकर हैरान रह गया। स्क्रीन में तो अटैची के साथ-साथ उसमें रखा सामान भी दिख रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"दस मिनट बाद वह अपनी सीट पर ठीक तरह से कुर्सी की पेटी बाँध कर बैठ गए। जहाज़ चलने पर राजू खिड़की से बाहर देखने लगा। जहाज़ पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ा फिर देखते ही देखते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो गई। राजू को लगा कि उसकी कुर्सी थरथरा रही है।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"संख्या छह को उलट कर लिखने से मेंढक के सिर की छतरी / मशरूम बनती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"रविवार के दिन, माँ-बाबा ने मनु को एक लाल रंग की बरसाती ख़रीद कर दी।"
लाल बरसाती
"पर परवेज़ तो पहले ही उस पार कूद चुका था। फिर वापस फांद कर स्टेल्ला के पास आ जाता है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"परवेज़ ने उसका हाथ पकड़ा और दोनों ने एक साथ छलांग लगा कर पार कर लिया।"
कोयल का गला हुआ खराब
"परवेज़ अपना बैग उठाकर अमीना दादी की ओर भागा। वो रोज़ की तरह आज भी स्कूल के फाटक के पास खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थीं।"
कोयल का गला हुआ खराब
"- जो लोग पूरी तरह से बधिर होते है, वो कुछ भी नहीं सुन सकते। परवेज़ आँशिक रूप से नहीं सुन सकता है। इसलिए उसे शीला मिस जैसी एक विशेष शिक्षक की ज़रूरत है जो उसे संकेत की भाषा, होंठों को पढ़ने और संवाद करने के अन्य तरीके सीखने में मदद कर सके।"
कोयल का गला हुआ खराब
"- जो लोग परवेज़ से धीरे से बात करते हैं, वह उन्हें बेहतर समझ पाता है, और ख़ास तौर से जब वे उसकी तरफ देखकर बात कर रहे हों। परवेज़ ठीक से सुन नहीं सकता है, पर वो देख, सूँघ, समझ और सीख सकता है, वह महसूस कर सकता है, और पकड़म-पकड़ाई खेल सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"उसने ख़ुद को अकेला पाया। परिवार के दूसरे सदस्य उसे छोड़ कर आगे निकल गए थे।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""क्या आप मेरे परिवार को ढूँढने में मदद कर सकते हैं घोंघा मामा?" घूम-घूम ने पूछा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"अरे मिल गए घर वाले! वह खिलखिला कर हँसी और उस आवाज़ की ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""हाँ, हाँ! मैं ही हूँ घूम-घूम!" घूम-घूम ने चहक कर कहा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"तेज़ी से तैर कर घूम-घूम नदी के किनारे तक जा पहुँची। वह तैरती-तैरती थक गई थी। रेंगती हुई वह रेत पर पहुँची।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"घूम-घूम ने ख़ुश हो कर पुकारा, "पापा!""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"पापा ने झुक कर घूम-घूम को प्यार किया।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"घूम-घूम गंगा नदी में अपने बड़े से घड़ियाल परिवार के साथ रहती है जो दिन भर पानी में छपाके मार-मार कर शोर मचाता रहता है। वह रोज़ खाने के लिए मछलियों और कीड़े-मकोड़ों की तलाश में निकल जाती है। रोज़ ही घूम-घूम की मुलाकात तरह-तरह के जीवों से होती है। घोंघे, ऊदबिलाव, डॉल्फ़िन, मछुआरे, माँझी, बगुले, सारस, भैंस, साँप और कई दूसरे जीव उसे मिलते हैं।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""अरे बंदर, ज़रा मज़बूत डाल पकड़," माँ ने डर कर कहा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
""ज़रा पैर जमा कर!" माँ ने घबरा कर कहा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"थक कर सत्यम माँ की पीठ पर लद गया। दोनों ऊँची-नीची पगडंडियों पर चढ़ते उतरते, खेत-जंगल-झरने पार करते घर लौटे।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"दीदी ने मनपसंद कहानी सुना कर सुलाया।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"हमारी ही तरह वह भी ज़्यादातर बढ़िया खाने और रहने की आरामदेह जगह या प्यार करने वाले परिवार की तलाश में एक से दूसरी जगह घूमते-फिरते हैं। कभी-कभी वे अपने उन दुश्मनों से बचने के लिए भी घूमते-फिरते हैं जो उन्हें पकड़ कर खा सकते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"वह इतरा कर बोली। “और इतनी जल्दबाज़ी किसलिए?”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“क्या तुम मेरी मदद कर सकोगी?” गोजर ने पूछा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"क्या तुम मेरी मदद कर सकोगे?” गोजर ने पूछा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“अरे, हाँ! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“अब तुम बेहतर महसूस कर रही हो?” उसने पूछा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"पक कर गिरी फलियाँ जो भी खाये, मारे चटखारे।"
हर पेड़ ज़रूरी है!
"उसने मेज़ की दराज़ को खींच कर खोला।"
जादुर्इ गुटका
"रिंकी ने खींच कर कलम और गुटके को अलग किया।"
जादुर्इ गुटका
"एक बोतल का ढक्कन उछल कर गुटके से चिपक गया!"
जादुर्इ गुटका
"रिंकी ने दराज़ अंदर खिसका कर बंद कर दिया।"
जादुर्इ गुटका
"और विनती करते हुए कहा, “क्या तुम मुझे सीधा कर दोगी, मैं पलट गया हूँ?”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"गुबरैला ने चिल्ला कर कहा, “झींगुरों आओ!”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"ज़रा मेरी पूँछ को पकड़ कर तो देखो।"
अरे...नहीं!
"ज़रा मेरे सामने चिल्ला कर तो देखो लल्लू!"
अरे...नहीं!
"तभी अंडों से बच्चे निकलने लगे। एक-एक कर चार बच्चे।"
कुत्ते के अंडे
"बच्चे थक कर रुक गए।"
कुत्ते के अंडे
"उन्नी अंकल तब तक नहीं मानते जब तक मैं कचरे का प्रत्येक अंश इकट्ठा न कर लूँ।"
आनंद
"अपने थैले से कुछ निकाल कर देखने लगी।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"पहले बच्चे दूर से घूर रहे थे। फिर थोड़ा करीब आ कर देखने लगे।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"खोज खोज कर बच्चे परेशान हो गए। थक कर वापस जा ही रहे थे कि किसी ने एक लाल दुपट्टा देखा।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"बच्चे दौड़ कर वहाँ पहुंच गए। दीदी को एक दम गले लगाया।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"किताबों का थैला उन्हें दिखाया। बच्चो ने कुछ पढ़ कर सुनाया।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"रोज़ शाम को मिलने लगे हैं। खूब हंसने और पढ़ने लगे हैं। मिल कर मौज मस्ती करने लगे हैं, बच्चे, दीदी और उनकी किताबें!"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"माँ और बाबा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह और क्या कर सकते हैं। फिर बाबा मुस्कराए।"
एक सफ़र, एक खेल
"बाबा और माँ ने एक कंबल सीट पर बिछाया। फिर हवा वाले एक तकिये को फूंक कर फुलाया।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘क्या यह खेल हम दिल्ली पहुँच कर भी खेल सकते हैं?’’ नीना ने मुस्कुराते हुए पूछा।"
एक सफ़र, एक खेल
"दिन के समय वह गजपक्षी झील के पास आया करता या तो धूप तापने या फिर झील में पानी छपछपाते हुए अकेला खुद से ही खेलने। कभी-कभी वह पानी में आधा-डूब बैठा रहता और बाकी समय उसका कोई सुराग़ ही न मिलता। तब शायद वह घने जंगल के किसी बीहड़ कोने में बैठा आराम कर रहा होता। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी एक पेड़ जितना ऊँचा था। उसकी एक लम्बी और मज़बूत गर्दन थी, पंजों वाली हाथी समान लम्बी टाँगें थीं और भाले जैसा एक भारी-भरकम भाल था। उसके लम्बे-लम्बे पंजे और नाखून डरावने लगते थे।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“तुम्हें इसमें हँसी-ठठ्ठा नज़र आता है?” उसने अपने दाँत पीसे और मुड़ कर चली गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"इससे पहले कि वह खुला मैदान पार कर पाती, कोई गोलाकार चीज़ उसके पाँवों से आ टकरायी। उसे देखने के लिए वह रुकी। किसी पेड़ का वह एक खोखला गोलाकार फल था। विशाल गजपक्षी खेलना चाहता था! फलनुमा गेंद पकड़ने के लिए उसने अपना एक पंजा ऊपर किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"झिझकते-झिझकते उसने वह गेंद उसकी ओर फेंकी। आड़े-तिरछे ढुलक कर उसने गेंद को अपनी चोंच में पकड़ लिया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के अलावा और कौन हो सकता है भला? उसे तो ख़त्म कर देना चाहिए!” दूधवाले ने कहा, “बरसों से यूँ चुपचाप पड़े-पड़े वह दुष्ट अपनी योजनाएँ बनाता रहा है!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुखिया ने हैरत भरी नज़र से पूछा, “सारथी, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और यह नटखट तुम्हारे साथ क्यों है?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"चाँद उठ कर मुस्कुराया,"
और चीकू भी
"पापा परेशान थे। सोना हँसने लगी,”मैं ढूँढ कर दूँ?”"
सोना सयानी
"“ठीक है,”
चीनू बोला। अगली सुबह "कुकड़ू-कू, कुकड़ू-कू" कर चीनू ज़ोर से बांग लगाता रहा।"
भीमा गधा
"नन्ही ने उठ कर देखा। वाह!"
छुक-छुक-छक
"मुझे इससे खेल कर बहुत मज़ा आता है!
""
खोया पाया
"मुझे इससे खेल कर बहुत मज़ा आता है!
""
खोया पाया
"मुझे इससे खेल कर बहुत मज़ा आता है!
""
खोया पाया
"खंडहर पार कर गया।"
वह हँस दिया
"खंडहर पार कर गया।"
वह हँस दिया
"“क्या हम आपकी कुछ मदद कर सकते हैं?” वीना और विनय ने पूछा।"
नन्हे मददगार
"सोना की माँ साड़ी पर ठप्पे से छपाई कर रही थीं।"
सोना बड़ी सयानी
"माँ ने कहा, “सोना तुम बाहर बैठ कर छपाई कर लो। मेरी छपाई की आवाज़ ध्यान से सुनना।”"
सोना बड़ी सयानी
"आवाज़ सुन कर सोना मुस्कराने लगती।"
सोना बड़ी सयानी
"चाचा तरह-तरह के स्वाद और ख़ुशबू वाले रस तैयार कर रहे थे। चार-चार पतीलों में आग पर इकट्ठे रस पक रहा था।"
सोना की नाक बड़ी तेज
"सोना ने सूँघ कर कहा, "गले में खट से लगने वाली गंध। चाचा यह ‘काली खट्टी’ चुस्की का रसा है।""
सोना की नाक बड़ी तेज
"चाचा ने पलट कर झाँका।"
सोना की नाक बड़ी तेज
"और गुफ़ा के पास बैठ कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस
"हाँफ-हाँफ कर ज़ोर लगाया।"
सबरंग
"पढ़-पढ़ कर बनता है ज्ञानी"
सबरंग
"ठुमक-ठुमक कर उड़ती-फिरती"
सबरंग
"मौसी ने मुस्कुरा कर गाते हुए कहा..."
संगीत की दुनिया
"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर
"मुझे लगता है कि नानी के अगले जन्मदिन पर एक और ऐनक खरीदने के लिए मैं पैसे जमा कर लेती हूँ।"
नानी की ऐनक
"सभी ट्रेन का इन्तज़ार कर रहे हैं।"
चाचा की शादी
"सुखिया काका उसे देख कर खुश हो गए।"
बारिश में क्या गाएँ ?
"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें
"पापा जब नहा कर बाहर निकलते हैं तो अनु एक छोटी कंघी से बड़ी सफ़ाई से उनकी मूँछों के बाल काढ़ती है।"
पापा की मूँछें
"इसके बाद, वह मूँछ की नोकों को अपनी उँगलियों की चुटकी में पकड़ कर उमेठ देती है!"
पापा की मूँछें
"लेकिन सबसे बढ़िया मूँछें तो, पास वाले मकान में रहने वाले उन दादाजी की हैं! ऐसा लगता है मानो एक बड़ा-सा स़फेद बादल आसमान से उतर कर उनकी नाक के नीचे रहने चला आया है! अब उनका मुँह जो है, उस बादल के पीछे छिपा रहता है।"
पापा की मूँछें
"रास्ते में नल से पानी गिर कर बह रहा था।"
दाल का दाना
"इस पुस्तक में चींटी को एक हरा अंकुरित मूँग का दाना मिला। अंकुरित दालें स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी होती हैं। हम किसी भी दाल को भिगो कर अंकुरित बना सकते हैं जैसे राजमा, सफ़ेद चना, काला चना, मटर आदि।"
दाल का दाना
"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना
"कभी फुदक कर पेड़ के ऊपर तो कभी पेड़ के नीचे। कभी दोनों पैरों पर खड़ी होकर छलाँगें लगाती तो कभी चिड़ियों के पीछे दौड़ लगाती।"
चुलबुल की पूँछ
"जैसे ही डॉक्टर बोम्बो कमरे में आए, चुलबुल उछल कर मेज़ पर बैठ गई।"
चुलबुल की पूँछ
""डॉक्टर दादा, मुझे बन्दर की पूँछ लगा दो," उसने चहक कर कहा।"
चुलबुल की पूँछ
"चुलबुल खुश हो गई। डॉक्टर बोम्बो ने उसकी पूँछ निकाल कर उसकी जगह बन्दर की पूँछ लगा दी।"
चुलबुल की पूँछ
""मैं भी बंदर भैया की तरह पेड़ की ऊँची डाल पर अपनी लम्बी पूँछ लटका कर बैठूँगी," यूँ सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ
"अपनी भारी पूँछ के साथ चलना उसे बहुत मुश्किल लग रहा था। किसी तरह पूँछ खींच-खींच कर वह पेड़ के पास पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
""पेड़ पर चढ़ कर थोड़ा आराम कर लूँ," सोचते हुए वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ
"लेकिन यह क्या? वह तो एक इंच भी पेड़ पर नहीं चढ़ पाई। कई बार उसने कोशिश की, हर बार वह गिर जाती। आखिर थक कर वह बैठ गई।"
चुलबुल की पूँछ
"डॉक्टर बोम्बो ने बन्दर की पूँछ हटा कर बिल्ली की पूँछ लगा दी। "यह पूँछ बन्दर की पूँछ से तो हल्की है," सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी। पूँछ की अदला-बदली में वह अब तक बहुत थक गई थी। वह पास के एक पेड़ के पीछे लेट कर आराम करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ
"बिल्ली की पूँछ निकाल कर उन्होंने चुलबुल की पूँछ दोबारा लगा दी। अपनी पूँछ पाते ही चुलबुल ने चैन की साँस ली और खुश होकर घर की ओर चल दी।"
चुलबुल की पूँछ
"उछल-कूद कर दौड़ लगाती,"
चुलबुल की पूँछ
"मैं अपनी साँसों की आवाज़ ऊँची कर सकती हूँ... र-स-स!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"क्या मैं अपने दिल को और तेज़ कर सकती हूँ? और आवाज़ भी बढ़ा सकती हूँ...?
हाँ, अगर मैं बीस बार ऊपर-नीचे कूदूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"हमने तय कर लिया कि अभी जाते हैं।"
चलो किताबें खरीदने
"हम तय नहीं कर पाये।"
चलो किताबें खरीदने
"वह इतरा कर बोली। “और इतनी जल्दबाज़ी किसलिए?”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“क्या तुम मेरी मदद कर सकोगी?” गोजर ने पूछा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"क्या तुम मेरी मदद कर सकोगे?” गोजर ने पूछा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“अरे, हाँ! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“अब तुम बेहतर महसूस कर रही हो?” उसने पूछा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"लपक कर खिड़की पर चढ़ते हुए पापा ने पूछा,"कहाँ?""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
""मुझे इस पैकेट से तेल निकाल कर बोतल में डालना है, और देखो ना, बोतल का मुंह कितना छोटा है!मुझे यकीन है कि आज मेरी रसोई ज़रूर गंदी हो जाएगी।" मंगल चाचा ने कहा।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""अरे बेटा! मैं दादाजी की ऊनी टोपी की सिलाई कर रही थी, और मेरे हाथ से सुई नीचे गिर गई," दादी माँ बोलीं।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
"स्कूल की छुट्टी होने में पाँच मिनट रह गये थे पर चीनू और इन्तज़ार नहीं कर सकता था। उसने बाहर देखा। वहाँ कोई नहीं था। तभी कहीं पास से घंटी की टनटनाहट सुनाई दी।"
कबाड़ी वाला
"स्कूल की घंटी बजी। चीनू पिता जी के पास दौड़ कर पहुँचा। चेहरे पर बड़ी सी
मुस्कान खेल रही थी। स्कूल में वह अकेला बच्चा था जिसके पिता जी उसे लेने आते थे।"
कबाड़ी वाला
"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला
"चीनू दौड़ कर ठेले से एक और खाली बोरी ले आया। वे लिफ्ट में ऊपर जाने वाले थे! चीनू की आँखें बड़ी-बड़ी और गोल हो गईं।"
कबाड़ी वाला
"जब तक उसके पिता जी उस महिला से बात कर रहे थे, चीनू ने सब सामान ऐसे समेटा कि किताबें सबसे ऊपर थीं।"
कबाड़ी वाला
"घर पर सब सामान सहेज कर रखने के बाद चीनू के पिता जी ने उसे बुलाया।"
कबाड़ी वाला
""क्या मैं तुम्हारा पेंसिल शार्पनर इस्तेमाल कर लूँ?" उसने स्वीटी से पूछा।"
कचरे का बादल
"स्वीटी मुँह चिढ़ाते हुए अपनी जगह बदल कर आशा के पास बैठ गई।"
कचरे का बादल
"अगले दिन जब चीकू सो कर उठी तो चारों तरफ मक्खियाँ भिनभिना रही थी, हर तरफ बदबू ही बदबू थी।"
कचरे का बादल
"उसने चीख-चीख कर बादल से हटने को कहा।"
कचरे का बादल
"रीमा आंटी थैलियाँ उठाकर वहाँ से चली गई! अगले दिन जब चीकू सो कर उठी, तो बादल और भी छोटा हो गया था।चीकू मुस्कराई, वह समझ गई थी कि उसे क्या करना है।"
कचरे का बादल
"कभी सोचा है कि जो कचरा हम कूड़ेदान में फेंक देते है उसका क्या होता होगा? नहीं, वह हमारे सिर पर बादल बन कर नहीं मँडराता लेकिन जो भी कचरा हम फेंकते है वो हमारे घर के पास बने बड़े से कचराघर में जमा हो जाता है। सब कुछ एक साथ, सड़ती सब्जियाँ, टॉफ़ी के रैपर, किताबों-कापियों के फटे पन्ने।"
कचरे का बादल
"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी
"“ए मुन्नी! परे हट, मैं तेरे अंडे खाने आया हूँ,” वह चहक कर बोला। मुन्नी समझदार गौरैया थी। वह झटपट बोली, “काका किसी की क्या मजाल कि तुम्हारी बात न माने? लेकिन मेरी एक विनती है। मेरे अंडों को खाने से पहले तुम ज़रा अपनी चोंच धो आओ। यह तो बहुत गन्दी लग रही है।”"
काका और मुन्नी
"हिरन चिढ़ कर बोला “अरे अकलमन्द की पूँछ, ज़रा यह बता तो सही कि जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तू मेरा सींग कैसे ले सकता है?”"
काका और मुन्नी
"अब काका भूसा खा कर जुगाली कर रही भैंस के पास पहुँचा और बोला,"
काका और मुन्नी
"“सूखा पुआल खा कर दूध कहाँ से दूँ? हाँ थोड़ी रसीली घास खाने को मिल जाए तो मैं ज़रूर तुम्हें दूध दे दूँ,” भैंस ने रम्भा कर जवाब दिया।"
काका और मुन्नी
"घूम घूम कर चारों ओर"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"घूम घूम कर चारों ओर"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"लिख सकती है सुंदर अक्षर, हल कर सकती कई सवाल।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"रेखा खींच खड़े कर सकती घर-आँगन, लगती क्या देर?"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"उछल पुछल कर जाती गेंद।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"ओम पूरी मेहनत से चावल साफ़ करने लगा। रात भर वह जितना चावल साफ़ कर सकता था, उतना उसने किया। घनश्याम ने केवल भगवान की प्रार्थना की।"
मेहनत का फल
"सुबह मुखिया ने दोनों को चावल दिखाने को कहा। ओम ने आधे से ज़्यादा चावल साफ़ कर दिए थे। घनश्याम से बोला गया तो उसने कहा, “मैंने भगवान से प्रार्थना की है, चावल साफ़ हो गए होंगे।""
मेहनत का फल
"लेकिन वह समाचार तो खुश करने वाला नहीं था, "नदी में दवाई छिड़क कर मछलियों को पकड़ने वाले आ रहे हैं। अनेकों नदियों से ऐसे ही वे लोग मछलियाँ पकड़ कर ले गये हैं।" यह सुनकर उसे गहरा धक्का लगा। बाकी मछलियों को भी यह समाचार पता चला।"
मछली ने समाचार सुने
"मुखिया तुरंत नदी की ओर चल पड़ा। उसके आते ही दादा ने मुखिया का स्वागत कर उसे बिठाया। घर के भीतर की ओर पुकार कर कॉफ़ी बनाने के लिए कहा। फिर रेडियो पर सुनी बात बताई।"
मछली ने समाचार सुने
"“आपको कोई तकलीफ़ न हो इसकी व्यवस्था मैं करूँगा।” सभी की मानो जान में जान आई। कॉफ़ी पीकर मुखिया उनको निश्चित रहने का ढाँढस बँधा कर घर गया।"
मछली ने समाचार सुने
"तोहफ़ों से लदीं, मेहरुनिस्सा और कमरुनिस्सा अपने भाई अज़हर मियाँ के साथ हाथों में मीठी-निमकी की पत्तलें लिए चली जा रही थीं। ईद के मौके पर तीनों को बहुत उम्दा चिकनकारी किए नए कपड़े मिले थे जिन्हें पहन कर उनका मन बल्लियों उछल रहा था। मेहरु के कुरते पर गहरे गुलाबी रंग के फूल कढ़े थे और कमरु भी फूल-पत्तीदार कढ़ाई वाला कुरता पहने थी। अज़हर मियाँ भी अपनी बारीक कढ़ी नई टोपी पहने काफ़ी खुश दिखाई देते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कढ़ाई कर रहे थे लेकिन उसका मन दूर अपने घर हरदोई में था जहाँ उसकी अम्मी और दो बहनें रहती थीं। क्या उनको भी उसकी उतनी ही याद आती थी जितनी उनकी उसे?"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कुछ ही रोज़ पहले मुमताज़ आबिदा ख़ाला के साथ लखनऊ आई थी जिससे कशीदाकारी के कुछ नए टाँके सीख सके और घर लौट कर बाकी औरतों को सिखा"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ काम करती तो लक्का और लोटन दाना चुग कर बादलों में गुम हो जाते लेकिन कुछ ही देर बाद थोड़ा और दाना चुगने लौट आते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“नहीं, नहीं, पंछी तो नहीं लेकिन हाँ मेरी अम्मी और मेरी बहनें, रेहाना और सलमा वहीं रहते हैं,” कह कर मुमताज़ कढ़ाई शुरू करने लगी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"किनारे पर लंबे-लंबे गर्म फिरन पहने, पीठ झुकाए कुछ आदमी अपने काम में मसरूफ़ थे। वे लोग बहुत ही महीन सुइयों से गर्म दुशालों पर कढ़ाई कर रहे थे-रंगबिरंगे फूल, पत्तियाँ और पंछी...हूबहू वादी के फूलों और पंछियों जैसे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"खुरशीद ने मुमताज़ को वह दुशाला दिखाया जो वे काढ़ रहे थे, “देखो बेटी, मैंने कश्मीर के पंछी और फूल अपने शॉल में उतार लिए हैं। यह है गुलिस्तान, फूलों से भरा बग़ीचा और ये रहीं बुलबुल। यह जो देख रही हो, इसे हम चश्म-ए-बुलबुल कहते हैं यानि बुलबुल की आँख। जिस तरह बुलबुल अपने चारों ओर देख सकती है, वैसे ही यह टाँका हर तरफ़ से एक जैसा दिखाई देता है!” कह कर खुरशीद ने मुमताज़ को वह टाँका काढ़ना सिखाया।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ अपनी कढ़ाई में जुट गई। उसके दिमाग में अपनी यात्रा के दौरान देखे कितने ही नए-नए नमूने घूम रहे थे। कुछ ही दिनों में मुमताज़ ने फूल-पत्तियों-पंछियों से भरा एक बड़ा ही खूबसूरत कुरता तैयार कर लिया। हर नमूने के बीचोंबीच चश्म-ए-बुलबुल कढ़ी थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“आखिर मुमताज़ ने यह सब कहाँ से सीखा? न वह कहीं बाहर आती-जाती है, न कोई नई चीज़ ही देखती है-तो फिर इतने सुंदर रंगों में ऐसी बढ़िया कढ़ाई वह कैसे बना लेती है,” मेहरु तुनक कर बोली।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ कुछ पल तो ख़ामोश रही। फिर उसने अपना जादू अपनी बहनों को बताने का फ़ैसला कर लिया। मुस्करा कर, वह कमरु से बोली, “चलो, तुम भी मेरी नानी की चादर का एक कोना पकड़ो और ख़ूब ध्यान लगा कर सोचो।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"पहरेदार एक और आदमी को लेकर आया जिसे देखकर रहमत ने झुक कर सलाम किया, “गर्मी के कपड़े लाया हूँ, धनी जी।”"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा ने झुक कर सलाम किया और फिर अपने बादशाह की तरफ़ देखा। एक खिदमतगार हाथ में डिब्बा लिये खड़ा था और अकबर उसमें से गहने चुन रहे थे। कद में बहुत लम्बे नहीं थे पर उनके एक तलवारबाज़ के जैसे चौड़े कन्धे थे। बड़ी बड़ी, थोड़ी तिरछी आँखें, नीचे की ओर मुड़ी मूँछें और ओठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था।"
रज़ा और बादशाह
"उनके आने की आहट पाते ही अकबर पलट कर मुस्कराये,”आओ रहमत! अंगरखे लाये हो? और यह लड़का कौन है तुम्हारे साथ?“"
रज़ा और बादशाह
"”नहीं,“अकबर अनख कर बोले,”ज़्यादा हल्का रंग है... हमें ज़रा शोख रंग चाहिये।“"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा और उसके अब्बा ने, एक के बाद एक कई पटके बाँध कर दिखाये-हरा और पीला, नारंगी और जामनी, पर अकबर को कोई भी न सुहाया।"
रज़ा और बादशाह
"”हमें ये रंग जँच नहीं रहे, रहमत!“अकबर ज़रा तुनक कर बोले।"
रज़ा और बादशाह
"”कैसा लाल रंग?“अकबर हुंकार कर बोले,”दिखाओ हमें।“"
रज़ा और बादशाह
"”हूँ...“अकबर ने धनी सिंह के मूछों वाले चेहरे को घूर कर देखा और कहा,”ठीक है, देखते हैं।“"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा ने लपक कर धनी सिंह की पगड़ी थामी। उसके लपेटे सीधे करके अकबर की कमर पर बाँध दी। जब तक अकबर आड़े-टेढ़े होकर अपने आप को आईने में निहार रहे थे,"
रज़ा और बादशाह
"वह साँस रोके खड़ा रहा। उसने देखा कि धनी सिंह मुस्करा रहे हैं-शायद उन्हें यह देख कर हँसी आ रही थी कि राजा साहब ने उनकी पगड़ी का पटका बना दिया था!"
रज़ा और बादशाह
"”धनी, रहमत को अंगरखों और पटकों की कीमत अदा कर दो। हमें सारे चाहियें।“"
रज़ा और बादशाह
"”हुज़ूर,“रज़ा सँभल कर बोला,”धनी जी को पगड़ी की ज़रूरत पड़ेगी। हमने उनकी वाली तो ले ली है।“"
रज़ा और बादशाह
"6. मुग़लों के महलों में कई रसोईघर थे। हर रसोईघर से बादशाह के लिये खाना भेजा जाता। ज़ाहिर है कि जब बादशाह सलामत खाने बैठते तो वे तीस किस्म की लज़ीज़ चीज़ों में से अपनी पसन्द की चीज़ खाते। ओहो! मुँह में पानी भर आता है मुग़लई खाने का नाम आने पर- बिरयानी, पुलाओ, कलिया, कोर्मा-यह सब पकवान मुग़लई रसोईघरों से ही निकल कर आये हैं।"
रज़ा और बादशाह
"स्कूल से घर लौटते हुए अली, गौरव, सुमी और रानी, मुझसे बार-बार मेरी इस नई ज़िम्मेदारी के बारे में पूछते रहे। मैंने बात टालने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो मालूम था कि मुझे क्या काम सौंपा गया है। मैंने उनसे कहा कि पता नहीं तुम लोग किस चीज़ के बारे में बात कर रहे हो। लेकिन यह बात सच नहीं थी। मुझे अच्छी तरह पता था कि वे किस के बारे में पूछ रहे हैं?"
थोड़ी सी मदद
"आज मेरी बड़ी दीदी का फोन आया। वह दिल्ली में इँजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं। मैंने उन्हें बताया कि हमारी कक्षा में एक लड़की है और उसका एक हाथ नकली है। दीदी ने बताया कि उसे 'प्रॉस्थेटिक हैंड’ कहते हैं।"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद
"सुमी अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकी। और खेलने के बाद भी उसे जूते के फीते बाँधने का ध्यान नहीं रहा, और वह उलझ कर गिर पड़ी। उसकी ठोड़ी में चोट लग गई। जब मैडम ने उसकी ठोड़ी की चोट देखी तो उस पर ऐंटीसेप्टिक क्रीम तो लगा दी, लेकिन उसे लापरवाही बरतने के लिए डाँट भी पड़ी। “जूतों के फीते बाँधे बिना पहाड़ों में दौड़ लगाई जाती है? घर जाते समय गिर पड़तीं या और कुछ हो जाता तो क्या होता?“"
थोड़ी सी मदद
"सच बताऊँ? घर जाकर मैंने एक हाथ से जूते के फीते बाँधने की कोशिश की थी। लेकिन मेरे लिए यह कर पाना असम्भव है। तुम ऐसा कैसे कर पाती हो? शायद मैं यह बात कल तुमसे पूछूँ।"
थोड़ी सी मदद
"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद
"पता नहीं इसका क्या मतलब है, लेकिन वे बहुत परेशान दिखते हैं। तुमने उनके बाल देखे हैं? वह ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने बिजली का नँगा तार छू लिया हो और उन्हें करारा झटका लगा हो! वैसे, मुझे लगता है कि रानी ने उनकी कुर्सी पर मेंढक रख कर अच्छा नहीं किया।"
थोड़ी सी मदद
"यह प्रश्नोत्तरी हल करके पता लगाएँ कि नए लोगों के बीच जगह बनाने की कोशिश कर रहे लोगों की मदद करने में आप कितने कारगर साबित हो सकते हैं!"
थोड़ी सी मदद
"अ. कक्षा की सबसे होशियार छात्रा से कहेंगे कि वह अपने नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे दे। ब. अध्यापिका से कहेंगे कि उसकी मदद करना उनका काम है। स. उससे पूछेंगे कि क्या उसे आपकी मदद चाहिए। 4. आपकी कक्षा की नई छात्रा जरा शर्मीली है। वह किसी के साथ नहीं खेलती। आप क्या करेंगे? अ. उससे कुछ नहीं कहेंगे। जब उसकी झिझक मिट जाएगी तब खेलने लगेगी। ब. उसे बुला कर खेल में शामिल होने को कहेंगे। स. उस के पास जा बैठेंगे। शायद वह बातें करने लगे।"
थोड़ी सी मदद
"आप ज़रा शर्मीले लेकिन दयालु हैं। आप दूसरों की मदद करने और उन्हें सहज अनुभव करवाने के लिए जो भी कर सकते हैं जरूर करेंगे। लेकिन बिना किसी तरह का दिखावा किए।"
थोड़ी सी मदद