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Storybook paragraphs containing word (78)
"पर हैं ये सब बनबिलाव ही!"
बनबिलाव! बनबिलाव!
"हम सब दशहरा का मेला देखने गए।"
चाँद का तोहफ़ा
"हम सब दोस्त !"
रिमझिम बरसे बादल
"और आप सब भी ऐसा कर सकते हैं!"
गप्पू नाच नहीं सकती
"जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक था, अर्जुन को इस से ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन की हेड लाइट मद्धिम पड़ रही थी। उसे अब सब कुछ बेकार लग रहा था। वह शिरीष जी की बातें भाँप रहा था। अब वह उस औरत के भावों को भी समझ सकता था।"
उड़ने वाला ऑटो
"मेरी बहन सब गड़बड़ कर देती है ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"मकान बनाने के लिए सब से पहले तो जगह चाहिए होती है।"
सबसे अच्छा घर
"हमारी थालियों और हमारे दिमाग में हलवा-पूरी, खीर-पूरी और श्रीखंड-पूरी की एक ख़ास जगह होती है। छुट्टियों में तो छोले-पूरी या आलू-पूरी सबसे ज़्यादा पसंद किये जाते हैं। पूरी तलने की ख़ुशबू सब को अपनी ओर खींचती है। कढ़ाई में तैरती पूरी को देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। ज़रा उस सुनहरे रंग की करारी, गर्मागर्म फूली-फूली पूरी को तो देखिये। थाली में रखते ही सबसे गोल और सबसे फूली पूरी को लेने की हम कोशिश करते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?
"बड़े दुख से मुत्तज्जी ने कहा, "हाँ, उस साल दशहरे के त्यौहार के समय, हमारे महाराजा ने एक बड़े बांध और उसके पास कई सुंदर बागों का उद्घाटन किया था। लेकिन मै वह सब नहीं देख सकी थी क्योंकि मैं बम्बई में थी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""शायद इससे तुम्हें कुछ मदद मिले, बच्चों," अज्जी बोलीं। वह सब के लिए मुत्तज्जी की मनपसंद सेवईं की खीर से भरी कटोरियाँ लेकर आईं थीं। "के आर एस का मतलब है कृष्ण राजा सागर बांध, और उसके पास में ही हैं वृन्दावन गार्डन्स। याद है न, हम पिछले साल वहाँ संगीत की धुन के साथ चलने वाले फव्वारे देखने गए थे?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन-ही-मन बड़बड़ाया।"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे। अहमदाबाद के पास, महात्मा गाँधी के साबरमति आश्रम में-जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गाँधी जी की तरह, वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गाँधी जी के व्याख्यान सुनते।"
स्वतंत्रता की ओर
"उस दिन सुबह, धनी बिन्नी को हरी घास खिला कर, उसके बर्तन में पानी डालते हुए बोला, “कोई बात ज़रूर है बिन्नी! वे सब गाँधी जी के कमरे में बैठकर बातें करते हैं। कोई योजना बनाई जा रही है। मैं सब समझता हूँ।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”अम्मा, क्या गाँधी जी कहीं जा रहे हैं?“ उसने पूछा। खाँसते हुए माँ बोलीं, ”वे सब यात्रा पर जा रहे हैं।“"
स्वतंत्रता की ओर
"बिन्दा ने खोदना रोक दिया और कहा, ”तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस मुई बकरी को बाँधो! मेरा सारा पालक चबा रही है!“"
स्वतंत्रता की ओर
"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"चीजें इकट्ठी करना टूका और पोई को बहुत पसंद है। नदी के किनारे बीने गए चिकने कंकड़, फ़र्न के घुमावदार और गुदगुदे पत्ते, सुर्ख़ लाल रंग के बटन जो उनकी स्कूल यूनिफॉर्म से गिरे हों - टूका और पोई सब बटोर लेते हैं। रोज़ ही, स्कूल के बाद, वे नदी के किनारे झुके हुए नारियल के पेड़ के पास मिलते हैं और अपने सबसे प्यारे दोस्त का इंतज़ार करते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!
"अब भी टूका, पोई और इंजी हर शाम स्कूल के बाद मिलते हैं। लेकिन अब, टूका और पोई, उन चीजों को इक्ट्ठा करते हैं जिनमें वे पौधे उगा सकें। पुराने जूते, नारियल का कवच, यहां तक कि पानी की पुरानी बोतलें – सब कुछ, जिन्हें गमले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।"
आओ, बीज बटोरें!
"हम सब अपने-अपने घर, एक विशाल से घर के अंदर बनाते हैं। वह घर है हमारी पृथ्वी!"
जीव-जन्तुओं के घर
"तितलियाँ! ये मुझे सब से ज्यादा पसंद हैं! ये कितनी सुन्दर हैं?"
तितलियां
"चीता, चीटियल हिरण, मुझे अपनी त्वचा पर सब कुछ है।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी
"यह उसके परिवार वालों की आवाज़ें थीं। उसे लगा सब वहीं आसपास हैं। घूम-घूम खिलखिला उठी! और तैरती हुई उसी ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"वह तुम्हें सब जगह ढूँढ रहे थे छुटकी! सुनो, नदी में आगे कुछ दूरी पर तुम्हें सब मिल जाएँगे। ध्यान से सुनो, उनकी आवाज़ें भी सुनाई दे रही हैं।""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"“अगर एक टूट भी गया तो उसकी इतनी परवाह क्यों करती हो। बंद करो ये सब नाटक!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"लेकिन वह सब मिलकर भी नारियल वाले भँवरे को पलट नहीं सके!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"आख़िरकार, उन सब ने मिलकर उस मुटल्ले नारियल पेड़ के भँवरे को पलट ही दिया!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"एक दिन उन्हें दीदी का पता किताब में मिल गया। बच्चे तुरंत दीदी की खोज में निकल पड़े। साथ में किताबों का थैला उठाना नहीं भूले। खोजते खोजते बच्चों ने एक बस का नंबर पढ़ लिया। चलते चलते उस सड़क का नाम समझ लिया। क्योंकि दीदी ने उन्हें सब सिखाया था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"नीना का इतना कहना था कि सब खिलखिलाकर हंसने लगे।"
एक सफ़र, एक खेल
"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अब नींद आयी, सब सो जाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना
"अब नींद आयी, सब सो जाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना
"एक दिन सब पिकनिक मनाने गये।"
सैर सपाटा
"गप्पू हँसा तो सब हँस पड़े।"
पहलवान जी और केला
"एक दिन सब पिकनिक मनाने गये।"
सैर सपाटा
"सुनकर सब की चीख़ा चिल्ली।"
सबरंग
"सब की सब तब परियाँ आईं"
सबरंग
"हम सब वहाँ चलते हैं।”"
जंगल का स्कूल
"“लगता है सब कुछ उल्टा लिखा है।”"
जंगल का स्कूल
"जल्दी ही सब दोस्त वहाँ इकट्ठा हो गए।"
जंगल का स्कूल
"वे सब चिल्लाने लगे, “टीचर, टीचर!"
जंगल का स्कूल
"हम सब शादी में जा रहे हैं।
सब लोग ट्रेन से गाँव जायेंगे।"
चाचा की शादी
"शोर मचने लगा। ट्रेन आ रही है! ट्रेन आ रही है!
सब ट्रेन में चढ़ने की कोशिश में थे। पर वह कहाँ हैं, जिनकी शादी में हम सब जा रहे हैं?"
चाचा की शादी
"हम सब तैयार हैं। लेकिन चाचाजी कहाँ हैं?"
चाचा की शादी
"हम सब ट्रेन में बैठ जाते हैं।
ट्रेन स्टेशन से चल पड़ती है।"
चाचा की शादी
"दीनू और काका सब देख हर्षाये!"
बारिश में क्या गाएँ ?
"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें
"अगर वे एक काला टोप और एक लम्बा काला ओवरकोट पहन लें... अपनी आँखों पर एक काला चश्मा लगा लें, तो वे एकदम उस टीवी वाले जासूस की तरह लगेंगे जो सब चोरों को पकड़ लेता है!"
पापा की मूँछें
"अलग अलग दालों के बारे में अपने मित्रों से साथ दाल के खेल खेलकर जानिए। घर के किसी बड़े से रसोई से विभिन्न प्रकार की दालों के दाने लेकर देने का अनुरोध कीजिये। उदाहरण के लिए, राजमा, अरहर या तूअर, सफ़ेद चना, सोयाबीन, साबुत मूँग और मटर के दाने। इन सब को एक बड़े कटोरे में डालिये।"
दाल का दाना
"“अगर एक टूट भी गया तो उसकी इतनी परवाह क्यों करती हो। बंद करो ये सब नाटक!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
""घर के अंदर चूहा!" सब एक साथ चिल्ला उठे।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
""अगर आप इस से देखें, तो आपको सब कुछ दिखेगा बड़ा और बेहतर!""
गुल्ली का गज़ब पिटारा
"जब तक उसके पिता जी उस महिला से बात कर रहे थे, चीनू ने सब सामान ऐसे समेटा कि किताबें सबसे ऊपर थीं।"
कबाड़ी वाला
"घर पर सब सामान सहेज कर रखने के बाद चीनू के पिता जी ने उसे बुलाया।"
कबाड़ी वाला
"और इन सब पर भिनभिनाते मक्खियों के झुंड।"
कचरे का बादल
"कभी सोचा है कि जो कचरा हम कूड़ेदान में फेंक देते है उसका क्या होता होगा? नहीं, वह हमारे सिर पर बादल बन कर नहीं मँडराता लेकिन जो भी कचरा हम फेंकते है वो हमारे घर के पास बने बड़े से कचराघर में जमा हो जाता है। सब कुछ एक साथ, सड़ती सब्जियाँ, टॉफ़ी के रैपर, किताबों-कापियों के फटे पन्ने।"
कचरे का बादल
"- केले वाले लिफ़ाफ़े की तरह कई चीज़ें आपको बेकार लगती होंगी, लेकिन सब चीज़ें बेकार नहीं होतीं। छिलके के साथ लिफ़ाफ़े को बिल्कुल नहीं फेंकना, उसे वापस घर ले जाकर दोबारा इस्तेमाल कीजिये।"
कचरे का बादल
"उसमें मछली, मेंढक, कछुए सब खुशी खुशी रहते थे। मछलियों का परिवार बहुत बड़ा था।"
मछली ने समाचार सुने
"मछलियों के घर एक बुज़ुर्ग मछली थी जिसका कहना मेंढक और कछुए भी मानते थे। उसे सब दादा कहते थे।"
मछली ने समाचार सुने
"मेंढक और कछुए भी बहुत डर गए। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब निराश होकर बैठ गये। रोज़ की तरह दादा से रेडियो छीनने कोई नहीं आया। आगे की चिन्ता सभी को सता रही थी।"
मछली ने समाचार सुने
"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"बच्चे गोमती के किनारे वाले मेले पहुँच चुके थे। क्या मज़े-मज़े की चीज़े थीं वहाँ! रंगबिरंगी काँच की चूड़ियाँ, रिबन, हार, मिट्टी के बने पशु-पक्षी, सिपाही और गुड़िया-सब के लिए कुछ न कुछ! मेले की चकाचौंध में बच्चे अपनी बहन के बारे में सब भूल-भुला गए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"चाय के दौर चलते तो साथ ही चटपटी इधर-उधर की खूब गपशप भी होती लेकिन काम बराबर चलता रहता। शाम होती तो सब औरतें अपना काम समेटतीं और घर को रवाना होतीं। उन्हें अपने-अपने परिवार का खाना भी तो तैयार करना होता था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"भागती जा रही है, तेज़, तेज़...और तेज़। लोटन ने अपनी चोंच में चादर का तीसरा कोना और लक्का ने चौथा कोना पकड़ा और वे सब उड़ने लगे, ज़मीन नीचे छूटती जा रही थी और आसमान नज़दीक आ रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"वे सब किसी दूर, अनजाने शहर में पहुँच गए थे। वहाँ पहाड़ नीले थे, और नीले-नीले आसमान में तरह-तरह के रंगों वाले पंछी उड़ रहे थे। नीचे वादी में फलों से लदे पेड़ और फूलों से महकते बग़ीचे थे। लोटन और लक्का मुमताज़ को लेकर एक फ़िरोज़ी रंग के तालाब के किनारे उतरे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कुरते को देखकर मुहल्ले की सब औरतें दंग रह गईं। कितनी उम्दा कढ़ाई, कितना सजीव चित्रण!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“आखिर मुमताज़ ने यह सब कहाँ से सीखा? न वह कहीं बाहर आती-जाती है, न कोई नई चीज़ ही देखती है-तो फिर इतने सुंदर रंगों में ऐसी बढ़िया कढ़ाई वह कैसे बना लेती है,” मेहरु तुनक कर बोली।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“हाँ, लेकिन हमें जल्दी ही कुछ करना होगा वरना सब के सब उसी की तारीफ़ के पुल बाँधते नज़र आएँगे,” कमरु ने कहा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"ईनाम के जलसे में कमरु और मेहरु ने देखा कि सब मुमताज़ को कितनी इज़्जत दे रहे थे। कुछ-एक ने तो उन्हें भी ऐसी हुनर वाली लड़की की बहनें होने की बधाई दी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"जलसे के बाद जब सब घर लौटे तो कमरु ने मुमताज़ से पूछा, “ऐसे सुंदर, एक से एक बढ़िया नमूने तुम कहाँ से लाईं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"6. मुग़लों के महलों में कई रसोईघर थे। हर रसोईघर से बादशाह के लिये खाना भेजा जाता। ज़ाहिर है कि जब बादशाह सलामत खाने बैठते तो वे तीस किस्म की लज़ीज़ चीज़ों में से अपनी पसन्द की चीज़ खाते। ओहो! मुँह में पानी भर आता है मुग़लई खाने का नाम आने पर- बिरयानी, पुलाओ, कलिया, कोर्मा-यह सब पकवान मुग़लई रसोईघरों से ही निकल कर आये हैं।"
रज़ा और बादशाह
"यह सब तुम्हारी ही वजह से हुआ।"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद
"उस दिन खाने की छुट्टी के दौरान जो कुछ हुआ, मैं देख रहा था। आख़िर मैं भी सब कुछ जानना चाहता हूँ। क्या किसी का एक ही हाथ होना कोई अजीब बात है? सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही ऐसा है या फिर तुम्हारी पूरी बाँह ही नकली... माफ़ करना, प्रॉस्थेटिक है?"
थोड़ी सी मदद
"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद
"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद