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Storybook paragraphs containing word (559)

"अगले दिन, मैं जल्दी उठा और रसोई में गया। अज्जी ने कहा, “तुम ये लड्डू खा सकते हो।”"
अभी नहीं, अभी नहीं!

"पापा ने कहा, “तुम ये डिब्बा खोल सकते हो!”
 और उन सभी ने कहा, “जन्मदिन मुबारक हो!”"
अभी नहीं, अभी नहीं!

"मालू ने तोड़े लाल टमाटर, लम्बे बैंगन और हरी-भरी भिण्डी।"
आलू-मालू-कालू

"मालू ने सारे पेड़, बेलें और पौधे देखे। आलू कहीं दिखाई नहीं दिये।"
आलू-मालू-कालू

"पौधे, पेड़ और भंवरे नाचने लगे."
कहानी- बादल की सैर

"जैसे तेंदुआ और तेंदुआ बिल्ली।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"जैसे मारबल्ड बिल्ली और धूमिल तेंदुआ।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"जैसे हिमप्रदेशीय तेंदुआ और पल्लास बिल्ली।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"जैसे स्याहगोश और लिन्क्स।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"जैसे सुनहरी बिल्ली और जंगली बिल्ली।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"उस मोटे राजा के पास एक पतला कुत्ता था। एक दिन मोटा राजा और उसका पतला कुत्ता  सैर करने गए।"
एक था मोटा राजा

"वो दोनों दौड़े - भागे और बहुत दिनों तक दौड़ते भागते रहे।"
एक था मोटा राजा

"पापा ने चिन्टू के लिए फ़ैंसी चश्मे खरीदे। माँ ने मेरे लिए एक चमकती नीली टोपी खरीदी और मुन्नी को मिली टॉफ़ी।"
चाँद का तोहफ़ा

"मैं खूब रोया। और रात का खाना भी नहीं खाया।"
चाँद का तोहफ़ा

"चाँद ने मेरी टोपी पहनी और खुशी से मुस्कराया। मैं भी मुस्कराया।"
चाँद का तोहफ़ा

"उस रात, चाँद और मैं, दोनों ने अपनी टोपियाँ पहनीं और मुस्कराए।"
चाँद का तोहफ़ा

"मैं और मेरी दोस्त टीना दोनों साथ-साथ रहतीं| मैं खिड़की से देखती और वो भी मेरे साथ-साथ देखती| जहाँ जातीं हरदम साथ रहतीं|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|

"ढेर सारी बातें भी की | मुझे अच्छा लगा और मजा भी आया |"
मैं और मेरी दोस्त टीना|

"टीना मेरी सबसे अच्छी दोस्त है | मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ और हरदम साथ रहूँगी|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|

"घर से निकली बकरी छमिया और गुड़िया लेकर रेनकोट।"
रिमझिम बरसे बादल

"मुनीया चली स्कूल और मिल गया मोर।"
रिमझिम बरसे बादल

"दे दना दन घूम घूम, पूरे कमरे में तेज़ और धीमे घूम"
गप्पू नाच नहीं सकती

"वह उठा और निकल पड़ा।"
सो जाओ टिंकु!

"टिंकु और उसके दोस्त हँसे और उछले-कूदे। वे इधर से उधर लुढ़के, जब तक कि टिंकु को उबासी आने लगी। हा! वह बहुत थक गया था। “मुझे नींद आ रही है अब घर जाना है,” टिंकु बोला।"
सो जाओ टिंकु!

"“हाँ!” अम्मा बोली, “तुम्हारे रात के दोस्त रात को ही अपना काम करते हैं। वे रात को ही खाते और खेलते हैं। वे दिन में आराम करते हैं। तुम अब सो जाओ। नींद तुम्हें ताकत देगी, ताकि कल तुम अपने दिन के दोस्तों के साथ खेल सको। सो जाओ मेरे प्यारे बच्चे!”"
सो जाओ टिंकु!

"अर्जुन के तीन पहिये थे, एक हेड लाइट थी और एक हरे-पीले रंग का 
कोट भी था।
 दिल्ली के बहुत बड़े परिवार का वह एक हिस्सा था। जहाँ-जहाँ अर्जुन जाता, उसको हर जगह मिलते उसके रिश्तेदार, भाई-बहन, चाचा-चाची, मौसा-मौसी, वे सभी हॉर्न बजा बजाकर कहते, “आराम से जाना।”"
उड़ने वाला ऑटो

"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो

"रात में कनॉट प्लेस की ख़ूबसूरती देखने से उसका मन कभी नहीं भरता। 
रेलवे स्टेशन की चहल-पहल और क्रिकेट मैच के बाद फ़िरोज़शाह कोटला 
मैदान से उमड़ती भीड़ उसे रोमांचित कर देती।"
उड़ने वाला ऑटो

"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
 वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
 शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो

"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो

"“हम सबको और क्या चाहिए? थोड़ा-सा ज़ादू,” उस औरत ने कहा। बच्चे को कुछ रुपये देकर उसने दो बोतलें खरीद लीं। उसने एक बोतल शिरीष जी को दे दी।"
उड़ने वाला ऑटो

"उस औरत ने भी पानी पिया और पीते-पीते आगे बढ़ते अर्जुन पर भी 
थोड़ा-सा पानी छलक कर गिर गया।"
उड़ने वाला ऑटो

"“फट फट टूका, टूका टुक” करते हुए वह आगे बढ़ा और अपने एक भाई को मुस्करा कर कहा, “हेलो!”"
उड़ने वाला ऑटो

"आगे बढ़ते ही अर्जुन को अचानक महसूस हुआ कि उसके पहिये पर दबाव कम होने लगा है, उसके सामने की भीड़ छँटने लगी है और वह बहुत आराम से आगे बढ़ गया है, “जाने दो अर्जुन भाई,” उसके चाचा ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो

"अर्जुन के पहिये सड़क से ऊपर थे, ऊपर और ऊपर वह उड़ता जा रहा था।"
उड़ने वाला ऑटो

"“फट, फट, टूका, टूका, टुक”... ऊपर, ऊपर और ऊपर!"
उड़ने वाला ऑटो

"अर्जुन जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम और इंडिया गेट के ऊपर से उड़ रहा था। उसे नीचे दिखाई दिए हुमायूँ का मकबरा, यमुना नदी और अक्षरधाम का भव्य मंदिर।"
उड़ने वाला ऑटो

"उसे सड़कों का बहुत बड़ा जाल दिखाई दिया मानो किसी शरारती मकड़े ने बनाया हो।
 फटी आँखों से शिरीष जी खुशी में चीख रहे थे। न तो वह हैंडल बार को पकड़े हुए थे और न ही गाड़ियों से बचने की कोशिश कर रहे थे।"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो

"“लेकिन हम क्या कर रहे हैं?” अर्जुन ने सोचा। “हम कहाँ जा रहे हैं? अगर मुझे चलाया नहीं गया तो मेरा क्या होगा?” अर्जुन ने अब से पहले कभी इतना आज़ाद महसूस नहीं किया था, और न ही इतना परेशान।"
उड़ने वाला ऑटो

"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद 
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
 अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
 एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो

"“मैं तो अपनी बेटी और उसके बच्चों से मिलने जा रही थी,” उसने सोचा।"
उड़ने वाला ऑटो

"वह नीचे और नीचे आया, उसे शहर की गर्माहट महसूस होने लगी थी। जितना करीब वह पहुँच रहा था उतनी ही ऊर्जा उसे मिल रही थी।"
उड़ने वाला ऑटो

"मैं तस्वीर बना सकता हूँ।कई और चीज़ें भी बना सकता हूँ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"मैं काग़ज़ की नाव,चिड़ियाँ और हवाई जहाज़ बनाता हूँ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"मैं घर और रेलगाड़ी बनाता हूँ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"पिशि दुखी थी। कल तक वह अंडमान निकोबार के तट से दूर, मैंटा रे मछलियों के समूह का हिस्सा थी। वह हिन्द महासागर की सुन्दर लहरों के बीच भर पेट खाना खाती और मज़े से रहती थी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"बादल गरजे और बिजली कड़की। पिशि ने सुध बुध खो दी। सागर बिलकुल काला पड़ गया। एक बड़ी सी लहर ने पिशि को जहाज़ के नीचे धकेल दिया। आह! उसके पेट पर घाव हो गया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। काश कि वह इतनी बड़ी नहीं होती, १० मीटर लम्बी और ९०० किलो से ज़्यादा भारी! उसे जल्दी किसी अस्पताल पहुँचना था। आखिर जान का सवाल था।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"प्रिय पाठक, क्या आपको मालूम है कि प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में हिन्द महासागर को ‘रत्नाकर’ कहा जाता था? रत्नाकर यानि हीरे जवाहरात की खान। मैंटा रे मछलियाँ अक्सर सफ़ाई के ठिकानों पर जाया करती हैं। सफ़ाई के ठिकानों को कुदरत का अस्पताल कहा जा सकता है। यहीं एंजेल फ़िश जैसी छोटी मछलियाँ मैंटा रे के गलफड़ों के अन्दर और खाल के ऊपर तैरती हैं। वे क्लीनर फ़िश कहलाती हैं क्योंकि वे मैंटा रे के ऊपर मौजूद परजीवियों व मृत खाल को खा कर उसकी सफ़ाई करती हैं। मैंटा रे मछलियाँ विशाल होने के बावजूद बहुत कोमल स्वभाव की होती हैं। बड़ी शार्क, व्हेल मछलियाँ व मनुष्य उनका शिकार करते हैं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"बिलकुल मेरी तरह उन्हें भी इमारतें और मकान बनाना अच्छा लगता है।"
सबसे अच्छा घर

"यह कोई बहुत ही ऊँची और दूर तक फैली शहरी इमारत भी हो सकता है।"
सबसे अच्छा घर

"जंगल में पेड़। पहाड़ पर पत्थर। आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव) में बर्फ़। गाँव में मिट्टी, छप्पर के लिए बड़े-बड़े पत्ते और बाँस। शहरों में ईंट, सीमेंट और काँच होता है।"
सबसे अच्छा घर

"लकड़ी और पत्थर से बने मकानों की ढलवाँ छत से बारिश का पानी या बर्फ़ झट से गिर जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"जानवरों की खालों और छड़ियों से बनी आदिवासी अमेरिकनों की टीपी ठंड से बचाती है। इन्हें लपेट कर कहीं ले जाना भी आसान होता है।"
सबसे अच्छा घर

"जगह और सामान मिल जाने पर हम मकान बनाना शुरू करते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"आपके मकान की बनावट और आकार कैसे भी हो सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"बड़े अक्षरों में लिखे मकानों के बारे में और जानकारी के लिए किताब का पिछला भाग देखें।"
सबसे अच्छा घर

"खेमा: मंगोलिया के लोग लकड़ी के ढाँचे और मोटे ऊनी नमदे के कालीनों से ख़ूब गर्म और हल्के घर बनाते हैं। जब कहीं और जाना हो तो लोग लकड़ी की पट्टियों और नमदों को घोड़ों और याकों पर लाद कर मकान को भी साथ ले जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"टीपी: अमेरिका के मैदानी इलाकों के आदिवासी छड़ियों और जानवरों की खालों से बहुत हल्के घर बनाते हैं। खेमे की तरह इन्हें भी खोल कर कहीं और ले जा सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"टोडा डोगल: नीलगिरि के टोडा लोग बाँस और घास से ढोल जैसे घर बनाते हैं। डोगल का दरवाज़ा बहुत छोटा होता है। लोग घुटनों के बल घर के अंदर जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"इग्लू: क्या आप सोच सकते हैं कि बर्फ़ की बड़ी-बड़ी ईंटों से बने इग्लू बाहर बर्फ़ जमी होने पर भी अंदर से गर्म रहते हैं? जब बाहर का तापमान -40 डिग्री सेंटिग्रेड होता है तो लोग इग्लू के अंदर आराम से रहते हैं। इन्हें आप कनाडा के ध्रुवीय इलाकों और ग्रीनलैंड के थूले द्वीप में देख सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"पर्व-त्योहार हमसब को अच्छे लगते हैं। तब ख़ूब मस्ती और शरारत करते हैं साथ ही ढेर सारा लज़ीज़ खाना भी खाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"हमारी थालियों और हमारे दिमाग में हलवा-पूरी, खीर-पूरी और श्रीखंड-पूरी की एक ख़ास जगह होती है। छुट्टियों में तो छोले-पूरी या आलू-पूरी सबसे ज़्यादा पसंद किये जाते हैं। पूरी तलने की ख़ुशबू सब को अपनी ओर खींचती है। कढ़ाई में तैरती पूरी को देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। ज़रा उस सुनहरे रंग की करारी, गर्मागर्म फूली-फूली पूरी को तो देखिये। थाली में रखते ही सबसे गोल और सबसे फूली पूरी को लेने की हम कोशिश करते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"तो चलो आज जब अम्मा पूरी तल रही होंगी तब हम इसी के बारे में देखेंगे, जानेंगे, पूछेंगे और पता लगायेंगे।"
पूरी क्यों फूलती है?

"एक बड़े से बर्तन में अम्मा ने थोड़ा-सा आटा लिया। उन्होंने उसमें थोड़ा-सा तेल और नमक डाला और फिर थोड़ा-सा पानी मिलाया।"
पूरी क्यों फूलती है?

"आटे में दो तरह के प्रोटीन होते हैं - ग्लाइडीन और ग्लोटेनिन। इन दोनों प्रोटीन के अणुओं को बहुत प्यास लगती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"आटे में जैसे ही पानी डाला जाता है, यह अणु उसे पी लेते हैं। वे पानी पीने के बाद बड़े और मोटे हो जाते हैं। वे फैल जाते हैं। ज़ाहिर है कि उनके पास आराम से बैठने के लिये जगह नहीं होती है – इसलिए वह एक दूसरे को छूते हैं और धक्कामुक्की करते हैं। वे एक दूसरे से चिपक जाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"कभी-कभी खेलते समय आप भी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक क़तार बनाते हैं और फिर वह पूरी क़तार ही एक साथ चलती है। उसी तरह कण भी एक दूसरे के साथ चिपक कर एक नेटवर्क सा बना लेते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"जब हम आटे को गूँधते हैं तो एक दूसरे से चिपके कण, फैलने लगते हैं और फिर इस तरह फैलने के बाद एक नया प्रोटीन बन जाता है, जिसे कहते हैं ग्लूटेन। ग्लूटेन, रबर की तरह लचीला होता है, इसलिए गूँधे हुये आटे को हम कोई भी आकार दे सकते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अम्मा और बाबा दोनों तैयार हैं। अम्मा ने कढ़ाई चढ़ा (फ्राई पैन चढ़ा) कर उस में थोड़ा तेल डाल दिया है। वह गूँधे हुये आटे से थोड़ा सा आटा लेती हैं। अब वह एक पूरी बेल रही हैं। गर्म तेल में पूरी को डालते हैं। थोड़ी देर में पूरी फूल जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"याद है न कि आटे को गूँधने के लिये इस में पानी मिलाया गया था? ज़्यादा तापक्रम की वजह से पूरी के अंदर का पानी भाप बन कर उड़ जाता है। यह भाप बहुत ताकतवर होती है और इससे ग्लूटेन की सतह ऊपर चली जाती है। इसी वजह से पूरी फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"बाबा अब पूरी को पलट देते हैं ताकि वह दूसरी तरफ़ से भी सुनहरी हो जाये। उन्होंने कढ़ाई से पूरी निकाल ली है और उसे एक बर्तन में रख दिया है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"आप ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि भेल-पूरी और दही-पूरी में इस्तेमाल होने वाली पूरियाँ फूली नहीं होती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"पूरी बहुत पतली बेली गई है, और उसमें सही मात्रा में पानी नहीं डाला गया है जिससे भाप और प्रेशर बन सके और पूरी फूल सके।"
पूरी क्यों फूलती है?

"इसके अलावा अगर पूरियों को कम तापक्रम पर तला जाता है तो उनमें भाप बहुत धीरे-धीरे बनती है, प्रेशर ठीक से नहीं बनता और फिर पूरी फूल नहीं पाती।"
पूरी क्यों फूलती है?

"पानी की मदद से आटा गूँध लेते है। आटे को गूँधते समय बस इतना ही पानी डाले कि आटा न बहुत कड़ा हो और ना ही बहुत मुलायम। हथेली के निचले हिस्से की मदद से कुछ मिनट तक इसे थोड़ा और गूँधते है। चाहें तो, थोड़ा सा तेल भी इस्तेमाल कर सकते है जिससे गुँधा आटा आपके हाथ में चिपके नहीं। गुँधे आटे को करीब 10 मिनट तक ढ़क कर रख देते है। अब इस गुँधे आटे को, कुछ मिनट के लिए दोबारा गूँधते है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अब फिर इसे एक बड़े बर्तन में रख देते है अब बर्तन के अंदर रखे गूँधे आटे पर इतना पानी डालते है जिससे वो उसमे डूब जाए। पानी के अंदर डूबे आटे को गूँधते रहते है जब तक पानी का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता। इस पानी को फैक कर बर्तन में थोड़ा और ताजा पानी लेते है इसे तब तक करते रहे जब तक गुँधे आटे को और गूंधने से पानी सफ़ेद नहीं होता। इसका मतलब यह है कि आटे का सारा स्टार्च खत्म हो गया है और उसमें बस ग्लूटेन ही बचा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्च पानी में घुल जाता है लेकिन ग्लूटेन नहीं घुलता। अब इस बचे हुए आटे यानि ग्लूटेन से थोड़ा सा आटा लेते है इसे हम एक रबड़बैंड कि तरह खीच सकते है। अगर इसे खीच कर छोड़ते है तो यह वापस पहले जैसा हो जाता है। इससे इसके लचीलेपन का पता चलता है आप इसे चोड़ाई में फैला सकते है इससे पता चलता है कि इसमें कितनी प्लाटीसिटी है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"सीरिया मे दमसकस के पास की गई खुदाई से पता चलता है कि गेहूँ का इतिहास करीब 9000 साल पुराना है इसी जगह पर, गेहूं को बोने और उसकी फसल को काटने और साथ ही उसे पीसने के लिए जरूरी औज़ार भी मिले है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"क्या ज्वार, बाजरे या चावल के आटे से पूरियाँ बन सकती है, अगर नहीं तो क्यों? गेहूँ के आटे से पूरियों के अलावा हम और क्या चीज़ें बना सकते हैं? अगर आटे में ज़्यादा पानी डाल दिया जाये तो क्या होगा? अगर हम आटे को खाना पकाने के दूसरे तरीकों, जैसे तंदूर या तवा पर पकाते हैं तो क्या होता है?"
पूरी क्यों फूलती है?

"मधुमक्खियाँ, ख़ासकर भौंरे, उड़ते हुए भन-भन की ज़ोरदार आवाज़ करते हैं। यह आवाज़ उनके पंखों के ऊपर-नीचे हिलने से होती है। जितने छोटे पंख होते हैं, उन्हें उतनी ही तेज़ी से हिलाना पड़ता है। और जितनी तेज़ी से पंख हिलते हैं, उतनी ही ज़ोर से आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"फिर जब वही मधुमक्खियाँ किसी और फूल के पास जा कर भन-भन करते हुए ज़ोर-शोर से नाचती हैं, तो इस धमा-चौकड़ी में दाने दूसरे फूलों पर गिर जाते हैं। फिर मधुमक्खियाँ और फूलों तक उड़ती हुई जाती हैं, कुछ दाने उठाती हैं व कुछ गिराती चलती हैं। यह कार्यक्रम इसी तरह चलता रहता है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"वैसे क्या तुम अपनी साँसे सुन सकते हो? नहीं ना! पर मधुमक्खियाँ सुन सकती हैं। भन-भन की आवाज़ मधुमक्खियों के साँस लेने से भी होती है। उनका शरीर छोटा व कई टुकड़ों में बँटा होता है। तो जब साँस लेने से हवा अंदर जाती है, तो उसे कई टेढ़े-मेढ़े व ऊँचे-नीचे रास्तों को पार कर के जाना पड़ता है। और इसी वजह से भन-भन की आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"1. मधुमक्खी बहुत मेहनती होती है – सर्दी के मौसम में यह नो महीने तक ज़िंदा रह सकती है और गर्मियों में सिर्फ दो महीने तक! लगातार काम करने से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"4. केफीन – नाम के केमिकल को इस्तेमाल करते हुये पोंधे हानिकारक कीड़े मकोड़ों को दूर रखते है और इसी की मदद से यह जान जाती है कि कोई फूल कहाँ पर है और इसी तरह से वो बार बार वहाँ पहुचती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"5. बंबल बिज़, मधुमक्खी और दूसरी तरह कि बीज़ से ज्यादा बड़ी होती है! उन्हे छत्ते में रहना और मिलना जुलना अच्छा लगता है! कई बंबल बीज में डंक नहीं होता है! वो ज्यादा शहद तो नहीं बनाती लेकिन वो बेहतरीन पोल्लीनेटर होती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"1. मधुमक्खी नाच कर, छत्ते में रहने वाली बाकी मधुमक्खीयों को यह बताती है कि शहद कहाँ मिलेगा तो आप भी कोशिश कीजिये नाच कर कुछ बताने की और देखिये कि क्या आपके दोस्त आपकी बातों को समझ पाते है या नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"2. मधुमक्खी की तरह भिनभिनाने कि कोशिश कीजिये अपनी बाहों को उपर और नीचे (फ्लेप) कीजिये और देखिये कि क्या भिनभिनाट होती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"3. छत्ता यानि मधुमखियों का घर जैसे इंजीनियरिंग की एक मिसाल होता है! आप को क्या लगता है! छाते की तरह बेहतरीन षट्कोन (हेक्सागोनस) बनाने कि मदद से इसके मॉडल्स बनाइये! 4. तब शायद आपको इसका जवाब मिल जाए और तब आप समझ जाएंगे की अलग अलग फूलों के रस से बने शहद का स्वाद भी एकदम अलग अलग होता है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"सरला हड़बड़ा कर खड़ी हुई और बोली, "सॉरी मैडम!" मैं चील को देख रही थी। काश! हम भी चिड़िया की तरह उड़ पाते या फिर एक हवाई जहाज़ की तरह..."
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

""सरला! तुम्हें कुछ समय पुस्तकालय में बिताना चाहिए। वहाँ पक्षियों और विमानों के बारे में बहुत -सी किताबें हैं, और यंत्रों के बारे में भी, जैसे कि हवाई जहाज़।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"कुछ ही दिनों में वह पशु-पक्षियों के बारे में बहुत कुछ जान गई और यह भी कि हम हवाई जहाज़ की तरह क्यों नहीं उड़ सकते!"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"इस महान यंत्र की सहायता से हम हवा में उड़ने का मज़ा ले सकते हैं। पक्षी हवाई जीव होते हैं जिन्हें उड़ने के लिए बाहरी यंत्र की ज़रूरत नहीं होती। आमतौर पर, एक पक्षी के पंख उसके शरीर से बड़े होते हैं। पंख बड़े हल्के होते हैं और इसलिए वे उड़ पाते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"हवाई जहाज़ बहुत बड़े और बहुत भारी होते हैं। उसके दोनों किनारे पर पक्षी की तरह ही पंख बने होते हैं, जो उन्हें उड़ने में मदद करते हैं। इन जहाजों के पंखों की बनावट ठीक पक्षियों के पंखों जैसी होती हैं। नीचे से सपाट और ऊपर से मुड़े हुए, जो उन्हें आसमान में बहुत ऊँचे तक उड़ने में मदद करते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"इंजिन बहुत ही मज़बूत यंत्र है जो हवाई जहाज़ के दिमाग की तरह (तेज़) काम करती है। जिस तरह पक्षी अपना दिमाग लगाते हैं और सीखते हैं कि कैसे उड़ा जाय,वैसे ही इंजिन विमान को ज़मीन से ऊपर की ओर धकेलती है और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"जब विमान की इंजिन ईंधन को जलाती है तो वे बहुत ही तेज़ गति से गर्म गैसें छोड़ती हैं, जिससे इंजिन के पीछे हवा का दबाव बनता है और उससे विमान आगे बढ़ता है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"कार एवं अन्य वाहन भी इंजिन की सहायता से ही चलते हैं, मगर वे विमान की तरह आसमान में उड़ नहीं सकते। हवा विमान के उन पंखों के ऊपर और अंदर बहती है जो पक्षी के पंख जैसे होते है, इन्हीं के दबाव से विमान ऊपर उठते हैं और टिके रहते हैं। विमान की भी पूँछ होती हैं - बिलकुल चिड़िया की तरह, जो उन्हें हवा में टिकने और दिशा बदलने में मदद करती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमानों को उड़ान भरने और उतरने के लिए बड़ी लंबी सड़क की ज़रूरत होती है। इन लंबी सड़कों को 'रनवे' कहा जाता है। विमान को उड़ान भरने और उतरने से पहले रनवे पर बहुत ही तेज़ गति से दौड़ना होता है। हवा में ऊपर उठने के लिए विमान को बहुत ही तेज़ गति की ज़रूरत होती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"अधिकांश हवाई जहाज़ तभी उड़ पाते हैं जब वे बहुत ही तेज़ी से दौड़ते हैं। रनवे हवाई अड्डा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हवाई जहाज़ों को अपनी गति बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय देता है। और अंत में वे उड़ान भरते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान जानते हैं कि उन्हें कहाँ जाना है, क्योंकि विमानचालक उन्हें चलाते हैं। ये चालक विमान के अंदर, सामने की एक जगह, जिसे चालक स्थल (कॉकपिट) कहते हैं, से उन्हें नियंत्रित (कंट्रोल) करते हैं। वे बहुत ही सटीक और आधुनिक डिवाइसों के द्वारा हवाई अड्डों (एक जगह जहाँ हवाई जहाज़ उड़ान भरते और उतरते हैं) के संपर्क में रहते हैं। जिस तरह हमारी मदद के लिए सड़क पर सिग्नल और पुलिस होती है, वैसे ही वायु यातायात नियंत्रक (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) होते हैं जो विमान चालक को बताते हैं कि कब और किस ओर उड़ान भरनी है और कब उड़ान भरना या उतरना सुरक्षित रहेगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान वास्तव में एक विशाल पक्षी है! न सिर्फ़ इसका आकार पक्षी की तरह है, बल्कि ये उड़ते भी हैं, हालाँकि पक्षियों की तरह नहीं। सरला बड़ी होकर विमान चालक बनना चाहती है और हवाई जहाज़ उड़ाना चाहती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"1. दोस्तों के साथ इन खेलों के मज़े लें काग़ज़ के हवाई जहाज़ बनाओ और देखो कि किसका जहाज़ सबसे दूर जाता है। ज़रा सोचो, क्यों? क्या यह कमाल काग़ज़ का है या उसके बनाने के तरीक़े का? ग़ौर करो, क्या होता है जब कोई जहाज़ छोड़ा जाता है? जब तुम जहाज़ को छोड़ने के पहले उसके ऊपर फूँक मारते हो या उसके अंदर या कि उसके नीचे, तब क्या वहाँ कोई अंतर दिखता है?"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"2. 'फ़्लाइ - डोंट फ़्लाइ' गेम: मित्रों का एक समूह बनाओ और एक -दूसरे को बिना छुए कमरे के चारों तरफ़ जहाज़ की तरह उड़ो। डेन (चोर) एक कोने में खड़ा होकर उड़ने वाली और ना उड़ने वाली चीज़ों के नाम कहेगा। जैसे ही वह किसी ना उड़ने वाली चीज़ (जैसे कि मेज़/टेबुल) कहे तो जहाज़ों को ज़मीन पर उतरना (बैठ जाना) होगा। जो ग़लती करेगा, वह अगला डेन होगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"पुट्टा और पुट्टी ने बड़े सवेरे ही बिस्तर छोड़ दिया!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"वह आज बहुत खुश थे! आज तो मुत्तज्जी जी का जन्मदिन था और उन दोनों को रेलगाड़ी से उनसे मिलने जाना था।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""अम्मा, क्या केक खाने को मिलेगा?" पुट्टी ने पूछा। "एक बड़ा सा नरम-मुलायम स्पंजी केक, गुलाबी आइसिंग वाला और जिसके ऊपर गुलाब बना हो?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""नहीं," पुट्टा ने कहा। "बुज़ुर्गों के जन्मदिन पर केक नहीं काटा जाता। और फिर 200 मोमबत्तियां लगाने के लिये तो बहुत बड़े केक की जरूरत होगी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी ने दोनों को गले लगाते हुए कहा, "मैं कितने साल की हूँ? कौन जाने? और इससे फर्क भी क्या पड़ता है?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""हमें जानना है, बस!" पुट्टा और पुट्टी एक साथ ज़ोर से बोल पड़े।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी मुस्कराई, "देखो, मैं इतना जानती हूँ कि मेरे पैदा होने से करीब 5 साल पहले, हिन्दुस्तान भर के महाराजा और महारानियों के लिए दिल्ली में हुई दावत में हमारे महाराजा भी गए थे। एक अंग्रेज राजा और रानी भारत आए थे और तब हमारे महाराजा को सोने का तमगा मिला था।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""रुको," मुत्तज्जी बोलीं, "जरा कुछ और याद करने दो। ओह! जब मैं तुम्हारे बराबर की, यानि 9 या 10 साल की थी, तब मेरे काका बम्बई से हमसे मिलने आए थे और उन्होंने हमें ऐसी साफ़ रेलगाड़ी के बारे में बताया था जिसमें सफ़र करने से कपड़े गंदे नहीं होते थे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""फिर कुछ साल बाद," मुत्तज्जी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "मेरी शादी हो गयी। उस समय कानून था कि शादी के लिए लड़की की उम्र कम से कम 15 साल होनी चाहिए, और मेरे पिता कानून कभी नहीं तोड़ते थे। तो उस समय मेरी उम्र करीब 16 साल की रही होगी। और मेरी शादी के बाद जल्द ही तुम्हारे मुत्तज्जा को बम्बई में नौकरी मिल गयी और हम मैसूर छोड़कर वहाँ चले गए।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बड़े दुख से मुत्तज्जी ने कहा, "हाँ, उस साल दशहरे के त्यौहार के समय, हमारे महाराजा ने एक बड़े बांध और उसके पास कई सुंदर बागों का उद्घाटन किया था। लेकिन मै वह सब नहीं देख सकी थी क्योंकि मैं बम्बई में थी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"डटा है। उसी बांध में कावेरी का पानी इकठ्ठा होता है। बांध की बदौलत, अब बरसात के दिनों मेँ बाढ़ नहीं आती, और गर्मी मेँ खेतों के लिए पानी की भी कमी नहीं पड़ती।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""हाँ, के आर एस।" मुत्तज्जी ने बड़े प्यार से अज्जी को देखा और कहा, "तुम्हारी अज्जी मेरी पाँचवी संतान थी, सबसे छोटी, लेकिन सबसे ज़्यादा समझदार। तुम जानते हो बच्चों, मेरे बच्चे ख़ास समय के अंतर पर हुए। हर दूसरे मानसून के बाद एक, और जिस दिन तुम्हारी अज्जी को पैदा होना था, उस दिन तुम्हारे मुत्तज्जा का कहीं अता-पता ही नहीं था। बाद मेँ उन्होंने बताया कि वो उस दिन ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी का भाषण सुनने चले गए थे। और उस दिन उन्हें ऐसा जोश आ गया था कि वह सारे दिन बस "भारत छोड़ो” के नारे लगाते रहे। बुद्धू कहीं के... नन्हीं सी बच्ची को दिन भर परेशान करते रहे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""भारत छोड़ो!" पुट्टी की आँखें हैरानी से और फैल गयीं। "हमने इतिहास में पढ़ा है! पुट्टा, ये वह आंदोलन है जो 1942 में शुरू हुआ था, इसका मतलब है कि 1942 में ही...""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""अज्जी मुत्तज्जी की पाँचवी संतान हैं, और उनके सभी बच्चों के बीच 2 - 2 साल का अंतर है..." पुट्टा ने कहा "अगर अज्जी 1942 में पैदा हुईं...""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""...तो मुत्तज्जी की चौथी संतान पैदा हुई थी 1942 - 2, यानी 1940 में, और तीसरी"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"1940 - 2, यानी 1938, दूसरी 1938 - 2, 1936 में और सबसे पहले 1936 - 2, यानी 1934 में।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""शायद इससे तुम्हें कुछ मदद मिले, बच्चों," अज्जी बोलीं। वह सब के लिए मुत्तज्जी की मनपसंद सेवईं की खीर से भरी कटोरियाँ लेकर आईं थीं। "के आर एस का मतलब है कृष्ण राजा सागर बांध, और उसके पास में ही हैं वृन्दावन गार्डन्स। याद है न, हम पिछले साल वहाँ संगीत की धुन के साथ चलने वाले फव्वारे देखने गए थे?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""यह देखो!" उसने फुसफुसा कर कहा, " 'मैसूर की 2 सबसे मशहूर जगहों, के आर एस बांध और उसके पास बने वृन्दावन गार्डन्स, को 1932 में जनता के लिए खोला गया था।' ""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"उसने झटपट भारतीय रेलवे पर एक किताब निकाली और उसमें दिखाते हुए कहा, "देखो, इसमें लिखा है कि भारत में सबसे पहले इलेक्ट्रिक ट्रेन आई थी, 1925 में बंबई में।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""यह तय करने के लिये," पुट्टा बोला, "हमें पता लगाना होगा कि दिल्ली में राजा ओर रानियों की जो शाही दावत हुई थी, और जो मुत्तज्जी के पैदा होने से 5 साल पहले हुई थी, वो 1911** के आसपास हुई या नहीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"अज्जा सोचने लगे, "1911... यह तारीख़ इतनी जानी-पहचानी सी क्यो लग रही है? आह! हाँ, उसी साल तो बम्बई में गेटवे ऑफ़ इंडिया बनाया गया था। और वह तो भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश राजा, जॉर्ज (पंचम) के स्वागत में बनवाया गया था। और तब एक नहीं, बल्कि कई बड़ी-बड़ी दावत हुई होंगी!" अज्जा ने ख़ुश होते हुए कहा।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""तुम दोनों तो बहुत बड़े जासूस हो गए हो!" अम्मा मुस्कायीं। "और मुझे लगता है तुम दोनों और मुत्तज्जी की ख़ास दावत होनी चाहिए - यानि एक बड़ा सा केक, गुलाबी आइसिंग और जिसके ऊपर लगा हो एक गुलाब!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"याद है इस कहानी में मूताजी ने कितनी सारी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओ के बारे में बताया था? यह सारी घटनाए असल में हुईं थीं। तो चलो इनके बारे में थोड़ा और जानते हैं!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"महाराजा महारानी की शानदार दावत (1911) – 1911 में ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज (पंचम) और उनकी पत्नी क्वीन मैरी, भारत में पहली बार आए थे, तब उन्होने 400 से ज्यादा भारतीय महाराजा और महारानियों के लिए एक शाही दावत दी थी, जिसे कहा गया था दिल्ली दरबार। इसमे आए 200,000 मेहमानों की दावत के लिए कई बेकरियों में हर दिन 20000 से ज्यादा ब्रैड बनाई गयी थी और 1000 से ज़्यादा कैटल और बकरों को काटा गया था! बादशाह ने कई भारतीय राजाओं को सोने के मेडल (तमगे) भी दिये थे, जिनमे मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वाडियार (चतुर्थ) भी शामिल थे!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"क्लीन ट्रेन (1925) – 3 फ़रवरी, 1925 के दिन भारत की पहली इलैक्ट्रिक ट्रेन ने बंबई के विक्टोरिया टर्मिनस से कुर्ला स्टेशन तक की यात्रा की। और इसी के साथ, भारत एशिया का तीसरा और दुनिया का 24बीसवाँ ऐसा देश बन गया जहां इलैक्ट्रिक ट्रेन की शुरुआत हुई।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ आ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव आ गया। और कृष्ण राजा सागर (के आर एस) रिसर्वोयर का निर्माण हुआ। आज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"गांधीजी का भाषण (1 942 ) - 8 अगस्त 1942 के दिन, बंबई के ग्वालिया टँक मैदान में गांधीजी ने 'भारत छोड़ो भाषण' दिया था। गांधीजी ने लोगों से कहा कि उन्हे अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ लड़ना होगा। इसके लिए उन्हे हिंसा नहीं, बल्कि उनके साथ असहयोग करना होगा। इसके 5 साल बाद, 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ो का शासन खत्म हुआ और भारत आज़ाद हुआ। आज उसी शांत क्रांति की स्मृति में ग्वालिया टैंक मैदान को अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है !"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे। अहमदाबाद के पास, महात्मा गाँधी के साबरमति आश्रम में-जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गाँधी जी की तरह, वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गाँधी जी के व्याख्यान सुनते।"
स्वतंत्रता की ओर

"साबरमति में सबको कोई न कोई काम करना होता-खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था-बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसन्द था क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।"
स्वतंत्रता की ओर

"बिन्नी ने घास चबाते हुए सर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही थी। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर

"”समुद्र के पास कहीं। अब सवाल पूछना बन्द करो और जाओ यहाँ से धनी!“ अम्मा ज़रा गुस्से से बोलीं, ”पहले मुझे खाना पकाने दो।“"
स्वतंत्रता की ओर

"बिन्दा ने खोदना रोक दिया और कहा, ”तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस मुई बकरी को बाँधो! मेरा सारा पालक चबा रही है!“"
स्वतंत्रता की ओर

"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, बिल्कुल। मैं जानता हूँ वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाये। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो बेवकूफ़ी की बात हुई!“"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्‍चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”क्योंकि, यदि वे इस लम्बी यात्रा पर दाँडी तक पैदल जायेंगे तो यह खबर फैलेगी। अखबारों में फ़ोटो छपेंगी, रेडियो पर रिपोर्ट जायेगी!
और पूरी दुनिया के लोग यह जान जायेंगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिये लड़ रहे हैं। और ब्रिटिश सरकार के लिये यह बड़ी शर्म की बात होगी।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”पिता जी, क्या आप और अम्मा दाँडी यात्रा पर जा रहे हैं?“ धनी ने सीधे काम की बात पूछी।"
स्वतंत्रता की ओर

"”मैं जा रहा हूँ। तुम और अम्मा यहीं रहोगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”मैं नौ साल का हूँ और आपसे तेज़ दौड़ सकता हूँ!“
 धनी ने हठ पकड़ ली, ”आप मुझे साथ आने से रोक नहीं सकते।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”ठीक है! मैं उन्हीं से बात करूँगा। वह ज़रूर हाँ कहेंगे!“ धनी दृढ़ होकर बोला और वहाँ से चल दिया।"
स्वतंत्रता की ओर

"अगले दिन जैसे सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़ कर गाँधी जी को ढूँढने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बन्दगोभी देखते हुए बिन्दा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर

"”बहुत अच्छा!“ गाँधी जी ने हाथ हिलाकर कहा, ”अब यह बताओ धनी कि तुम और बिन्नी सुबह से मेरे पीछे क्यों घूम रहे हो?“"
स्वतंत्रता की ओर

"”जी, गाँधी जी, करूँगा,“ धनी बोला, ”और बिन्नी और मैं, आपका इन्तज़ार करेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"1. मार्च 1930 में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये नमक कर के विरोध में दाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया। गाँधी जी और उनके अनुयायी, गुजरात में 24 दिन तक पैदल चले। पूरे रास्ते उनका स्वागत फूलों और गीतों से हुआ। विश्‍व भर के अखबारों ने यात्रा पर खबरें छापीं।"
स्वतंत्रता की ओर

"2. दाँडी में गाँधी जी और उनके साथियों ने समुद्र तट से नमक उठाया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी के बाद असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ और पूरे भारत में लोगों ने स्कूल, कॉलेज व दफ़्तरों का बायकॉट किया।"
स्वतंत्रता की ओर

"और दूसरी चीज़ मैंने क्या कही थी? 'टूथपेस्ट के मर्तबान?' बिलकुल सही! टूथपेस्ट के लिए ट्यूब नहीं बना था। वे केवल मर्तबान में मिलते थे। और खुमारी भरी आँख लिए बच्चे अपने दिन की शुरुआत टूथपेस्ट से भरे चीनी मिट्टी के मर्तबान में दातुन डुबाकर करते थे।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"दरअसल, टूथपेस्ट भरे उसी चीनी मिट्टी के मर्तबान में घर के सभी सदस्य अपना दातुन डुबाते थे। यहाँ तक कि उनकी बूढ़ी चाची भी, जिनके पीले और काले दाँत उनके दातुन से मेल खाते थे।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"यह डॉ. शेफील्ड का बेटा ल्यूसियस था, जिसने अब अपने दातुन को टूथपेस्ट के मर्तबान में डुबाने से इनकार कर दिया और फैसला किया कि वह आगे से दंतमंजन का उपयोग करेगा। लेकिन एक विचार उसके दिमाग में घूमता रहा - टूथपेस्ट के उपयोग का इससे बेहतर कोई तो तरीक़ा होगा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"कुछ साल बाद, ल्यूसियस दंत विज्ञान की पढ़ाई के लिए पेरिस गया। वहाँ उन्होने कलाकार (पेंटर) को धातु की ट्यूब दबाकर उससे पेंट की थोड़ी मात्रा निकाल, पेंट-ब्रश पर लगाते देखा। क्यों न हम इसी तरह के ट्यूब का उपयोग टूथपेस्ट रखने के लिए करें! वह घर आया और अपना सुझाव पिता के सामने रखा। उन्हें भी यह सुझाव बहुत पसंद आया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"यह उतना गंदा नहीं था, जितना तुम सोच रहे हो! डॉ. शेफील्ड और उनकी टीम ने बिना ढक्कन खोले इसे... भरा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"हाँ, बिलकुल सही! उन्होंने ढक्कन को पेंच से कसा और ट्यूब के दूसरे हिस्से को पूरी तरह खुला छोड़ा। ट्यूब के बड़े पिछले हिस्से को भरना सचमुच आसान था! ख़ासकर जब तुम्हारे पास पेस्ट के साथ पंप के लिए कुछ हो, जैसे कि पिचकारी। इसके बाद यही करना बाकी रहा कि ट्यूब के उस खुले सिरे को कसकर बंद किया जाए ताकि पेस्ट बाहर न निकले।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● कारखाने में ब्रश तैयार होने के बावजूद बहुत से लोग नीम या बबूल की पतली टहनी से दातुन करते हैं। दातुन हमारे दाँतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखते हैं, मगर क्या तुम जानते हो कि विश्व में सबसे अच्छा ब्रश कौन सा है? तुम्हारी उंगली! दंत-चिकित्सक मानते हैं कि यह दाँतों और मसूड़ों के लिए सबसे बेहतर है।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● पुदीना, लौंग, दालचीनी, काली मिर्च और तुलसी सहित अन्य जड़ी- बूटियाँ और मसाले दाँत के लिए अच्छे होते हैं।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● रेशे वाले फल और सब्जियाँ खाने से दाँत मज़बूत होते हैं, जैसे कि सेब, गाजर, दाँत साफ़ रखने में सहायक हैं।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"चीजें इकट्ठी करना टूका और पोई को बहुत पसंद है। नदी के किनारे  बीने गए चिकने कंकड़, फ़र्न के घुमावदार और गुदगुदे पत्ते, सुर्ख़ लाल रंग के बटन जो उनकी स्कूल यूनिफॉर्म से गिरे हों - टूका और पोई सब बटोर लेते हैं। रोज़ ही, स्कूल के बाद, वे नदी के किनारे झुके हुए नारियल के पेड़ के पास मिलते हैं और अपने सबसे प्यारे दोस्त का इंतज़ार करते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका, पोई और इंजी, एक साथ टहलते हुए, सिर झुकाए, चमकती सड़क और उसके किनारों में, घास में और काई से ढकी चट्टानों पर कुछ मज़ेदार चीजों को ढूंढने में लगे रहते हैं। लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा मज़ा बीजों को इकट्ठा करने में आता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका और पोई सोनपंखी की तरह दिखने वाले चमकीले लाल बीज, कपड़ों में चिपक जाने वाले गोखरू और पीले गुलमोहर की बड़ी आकार वाली फलियाँ इकट्ठी करते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"जब टूका और पोई इन्हें हिलाते हैं, तो इन फलियों से"
आओ, बीज बटोरें!

"वह इस गीत को बार-बार दोहराती रहती है, जिसे सुनकर टूका को बहुत हँसी आती है और इंजी भी ख़ुश होकर भौंकता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"एक दिन टूका, पोई और इंजी, रोज़ की तरह, इमली के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। टूका का पसंदीदा बीज, इसी पेड़ से मिलता था।"
आओ, बीज बटोरें!

"उस पेड़ पर लगी हुई इमली का खट्टा-मीठा स्वाद टूका को बेहद पसंद था। वह उसे चूसते हुए मज़ेदार चेहरे बनाता था और उसके बाद उसमें अंदर से भूरे रंग के चमकदार बीज निकालता था। इमली के चटपटे स्वाद से टूका की गर्दन के रौंगटे खड़े हो जाते थे।"
आओ, बीज बटोरें!

"“मैं बोल रहा हूँ, पच्चा, इमली का पेड़।“ इंजी, ज़ोर से भौंकने लगा और अपनी पूँछ को और भी ज़्यादा तेज़ी से हिलाने लगा। उसकी पूँछ से"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका और पोई बिना हिले खड़े थे । उनकी आंखें, फटी की फटी रह गईं और उनका मुंह, खुला का खुला।"
आओ, बीज बटोरें!

"आखिर, पोई झेंपती हुई मुस्कराई और बोली - “हैलो, पच्चा। आपसे मिलकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मेरा नाम पोई है।“"
आओ, बीज बटोरें!

"”और हम भी इससे पहले कभी किसी बोलने वाले पेड़ से नहीं मिले!” टूका ने चहकते हुए कहा। ”इसलिए, हम सभी के लिए कुछ न कुछ नया है।” इतना सुनकर, पच्चा जोर से हँसा, और उसके हँसते ही, उसके डालों की सारी पत्तियाँ सुर्ख़ हरी हो गई।"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने पूछा,”वैसे, तुम दोनों आज यहां क्या कर रहे हो?” टूका और पोई ने कहा, ”हम चीज़ें इकट्ठी कर रहे हैं!”"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका और पोई ने पच्चा को फूलों, चिकने पत्थरों और पकी हुई इमली से भरा अपना बैग दिखाया।"
आओ, बीज बटोरें!

"“अरे वाह, तुम लोगों ने त‍ो बहुत सारे बीज इकट्ठे कर लिए हैं", बैग देखकर पच्चा ने कहा। "वैसे क्या तुम लोग यह जानते हो कि ऐसे ही इमली के एक छोटे बीज से मैं बना हूँ? और अब मुझे देखो, कितना बड़ा हो गया हूँ। मेरी ढेर सारी शाखाएँ हैं जिन पर बहुत सारी गौरेया, गिलहरियाँ और कौए रहते हैं।“"
आओ, बीज बटोरें!

"“क्या सारे बीज इमली के पेड़ ही बनते हैं?“ पोई ने पूछा और याद करने की कोशिश की कि घर में उसके पास कितने तरीके के बीज थे।“अरे नहीं! बीजों से त‍ो कई प्रकार की जीवंत चीज़ें विकसित होती हैं,“ पच्चा ने उत्तर देते हुए कहा।"
आओ, बीज बटोरें!

"“क्या तुम्हारे पास बैग में कोई फल है?“ पच्चा ने पूछा।  टूका ने अपने बैग से एक छोटा, लाल सेब और एक नरम केला निकाला।"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने समझाते हुए बताया, “बीज सभी आकृति और आकार के होते हैं।“ इंजी सेब का बचा हुआ हिस्सा खाने में जुटा था। “क्या ये सभी पेड़ों के बच्चे हैं?" पोई ने पूछा।"
आओ, बीज बटोरें!

"“हां! और हर बीज में अंदर एक नन्हा पौधा होता है जो बाहर आने का इंतजार करता रहता है और दुनिया देखना चाहता है,“ पच्चा ने कहा।"
आओ, बीज बटोरें!

"शाम को टूका, पोई और इंजी घर वापस जाते हुए सड़क के किनारे के सभी पेड़ों को बड़े ध्यान से देखते हुए चल रहे थे।"
आओ, बीज बटोरें!

"और सबसे अद्भुत बात यह थी कि इतना बड़ा और महत्वपूर्ण पेड़ एक नन्हे से बीज से बनता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"अब भी टूका, पोई और इंजी हर शाम स्कूल के बाद मिलते हैं। लेकिन अब, टूका और पोई, उन चीजों को इक्ट्ठा करते हैं जिनमें वे पौधे उगा सकें। पुराने जूते, नारियल का कवच, यहां तक कि पानी की पुरानी बोतलें – सब कुछ, जिन्हें गमले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।"
आओ, बीज बटोरें!

"हैलो! मेरा नाम पच्चा है, मैं एक इमली का पेड़ हूँ। लेकिन मेरे और भी कई नाम हैं। हिंदी में मुझे इमली, तमिल में पुली और बंगाली में तेंतुल कहा जाता है। वैज्ञानिक मुझे, टैमरिंडस इंडिका कहते हैं। चलिए मैं आपको अपने कुछ अन्य बीज मित्रों से मिलवाता हूँ। शायद उनमें से कईयों को आपने अपने भोजन की थाली में ज़रूर देखा होगा।"
आओ, बीज बटोरें!

"मिर्च हर आकार, रूप और रंग की होती हैं और पूरे विश्व में इनका उत्पादन होता है। इसके बीज छोटे, गोल और चपटे होते हैं और इनका इस्तेमाल दाल या भाजी में चटपटापन लाने के लिए किया जाता है। जब आप इन्हें छुएं तो सावधान रहें, ये आपकी उंगलियों में जलन पैदा कर सकतीं हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"कॉफी के बारे में तो आप सभी जानते होंगे, जिसे आपके मम्मी-पापा हर सुबह पीते हैं? ये कॉफी बैरीज़ से बनती है। बैरीज़ से मिलने वाले दानों को सुखाकर, भूनकर और पीसकर पाउडर बना दिया जाता है। दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में कॉफी के बागान हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"बैरीज़, सेब, केला, तरबूज और कटहल - इन सभी फलों में बीज होता है। कुछ बीजों को हम खा नहीं सकते हैं जैसे कि आम की गुठली। लेकिन कई बीज; जैसे कटहल के बीज; इन्हें पानी में भिगोने के बाद सब्ज़ी बनाकर खाए जा सकते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"कठोर भूरे रंग के नारियल का हर हिस्सा हमारे लिए उपयोगी होता है। उसके बाहर वाले बालों के हिस्से से रस्सी बनाई जाती है, वहीं अंदर का नरम सफेद हिस्सा कई प्रकार के भोजन में इस्तेमाल किया जाता है और नारियल पानी मज़ेदार पेय होता है, विशेषरूप से उस समय, जब बाहर बहुत गर्मी होती है। क्या आपको मालूम है कि आप अपने बालों में जो तेल लगाते हैं, वो कहां से आता है? वह तेल भी नारियल से ही निकाला जाता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"सभी पौधों को मिट्टी से बहुत प्रेम होता है, लेकिन मूंगफली को धरती से ज्यादा ही प्यार है, इसी कारण ये जमीन के अंदर ही बढ़ती हैं। इसके छोटे-छोटे दाने खाने में बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं। इन दानों को कच्चा, उबालकर और भूनकर खाया जाता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"चावल सामान्य नाम: राइस या चावल। वैज्ञानिक मुझे कहते हैं: ऑरिज़ा सटाईवा। चावल, सबसे लोकप्रिय अनाजों में से एक है। जहां तक मुझे मालूम है, भारतीय घरों में अन्य अनाजों की तुलना में चावल सबसे ज़्यादा खाया जाता है। जब चावल पौधे पर लगा होता है तो उसके दानों पर जैकेट की तरह एक खुरदुरा, भूरे रंग का छिलका होता है जिसके कारण इसके दाने अंदर सुरक्षित और साबुत बने रहते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"सामान्य नाम: चॉकलेट। वैज्ञानिक मुझे कहते हैं: थियोब्रोमा ककाओ (जिसका अर्थ होता है - देवताओं का भोजन) इसमें कोई संदेह नहीं है कि चावल सबसे लोकप्रिय अनाज है लेकिन ककाओ भी लोगों की खास पसंद है – खासकर टूका और पोई की। चॉकलेट ककाओ के बीजों से बनती है। हर ककाओ फल में 30-50 बीज होते हैं जिन्हें भूना जाता है और फिर पीसकर, चीनी व दूध में मिलाकर स्वादिष्ट चॉकलेट बार बनाया जाता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"आकाश में बड़े-बड़े काले बादल घिर आए हैं और मुझे उनकी गड़गड़ाहट भी सुनाई दे रही है। शीघ्र ही मानसून आने वाला है। इसे वर्षा ॠतु कहते हैं। मुझे बारिश से भीगी मिट्टी की सौंधी महक बहुत अच्छी लगती है। लम्बी गर्मियों के बाद मिट्टी भी बारिश की बूँदों की राह देखती है। मुझे ऐसा ही लगता है।"
गरजे बादल नाचे मोर

"बारिश से ज़मीन पर तरह-तरह के नमूने बन जाते हैं। मेरे चाचा ने वर्षा का पानी एकत्रित करने के लिए कई जगह बालटियाँ और ड्रम रखे हैं। परनालों से छत का पानी इन ड्रमों में गिरता है। मैं इन्हें झरना कहती हूँ!"
गरजे बादल नाचे मोर

"मनु ने बड़े वाले पेड़ से एक झूला बाँधा है और मैं अभी झूलना चाहती हूँ। झूलते हुए बारिश की ठंडी फुहार मेरे मुँह पर पड़ेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर

"माँ हमें पीने को गर्म दूध देती हैं। कल उन्होंने मसालेदार मुरमुरे बनाए थे। और माँ ने कहा है कि कल वे पूड़ियाँ बनाने वाली हैं!"
गरजे बादल नाचे मोर

"सभी पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाएँगे और खुश दिखाई देंगे। ठीक उस हरे दुपट्टे की तरह जिसे हरी भैया ने जयपुर से भेजा है। वो बता रहे थे कि उसे धानी चुनरिया कहते हैं। धानी जैसे धान के नन्हे पौधों का रंग। दादा कह रहे थे कि अच्छी बारिश होने से किसानों को अच्छी फसल मिलेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर

"मुझे उस पर बिठाया और फिर घर तक लेकर आए।”"
तारा की गगनचुंबी यात्रा

"अरे बच के! मेरे मगरमच्छ और डायनासोर भूखे हैं... गरररर।"
आज, मैं हूँ...

"अब गेंदबाज़ी की बारी मेरी। और यह हो गए आप... आउट!"
आज, मैं हूँ...

"मलार ने कहा, “मेरा घर इतना ऊँचा और इतना बड़ा होगा!”"
मलार का बड़ा सा घर

"मलार ने गिलासों को उठाया और फिर से एक के ऊपर एक रखना शुरू किया।"
मलार का बड़ा सा घर

"आधा बिस्तर पर और आधा कक्षा में... फिर मुझसे सुबह की प्रार्थना कभी नहीं छूटती!"
क्या होता अगर?

"मैं दूर और पास की सभी आवाज़ें सुन पाऊँ!"
क्या होता अगर?

"घोंघों और कछुओं के घरों का विकास उनकी पीठ पर होता है।"
जीव-जन्तुओं के घर

"मेंढक पानी में और ज़मीन पर भी रह सकते हैं।"
जीव-जन्तुओं के घर

"खरगोश और चूहे ज़मीन के"
जीव-जन्तुओं के घर

"बंदर और सभी प्रकार के वानर पेड़ो को ही अपना घर बनाते हैं।"
जीव-जन्तुओं के घर

"भालू और भेड़िये गुफ़ाओं में रहते हैं।"
जीव-जन्तुओं के घर

"एक बड़ा घर। कुछ जीव हमारे समीप रहते हैं और कुछ हमसे बहुत दूर।"
जीव-जन्तुओं के घर

"लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूरी दुनिया के जीव-जंतुओं और हममें क्या समानता है?"
जीव-जन्तुओं के घर

"गिद्ध और लकड़बग्घे!"
अरे, यह सब कौन खा गया?

"जब गिद्ध और लकड़बग्घों का खाना बेकार जाता है,"
अरे, यह सब कौन खा गया?

"मक्खियाँ और भुनगे!"
अरे, यह सब कौन खा गया?

"जब ज़मीन पर टहनियाँ, पत्तियाँ और बारिश की बूँदें गिरती हैं,"
अरे, यह सब कौन खा गया?

"दीमक और कवक!"
अरे, यह सब कौन खा गया?

"वे पक्षियों को पकड़ लेते हैं और एक-एक करके अपने घर ले आते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"एक दिन, बंटी उठता है और देखता है कि उसका कोई भी पक्षी नहीं गा रहा है।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"वह उन्हें खुश करने और वो फिर से गाने लगें उसका तरीका ढूँढने की कोशिश करता है।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"बंटी और उसके पिता पक्षियों को जंगल में ले जाते हैं और उन्हें मुक्त करते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"दिन में मैं और रात में तुम,"
सूरज का दोस्त कौन ?

"अचानक थरथराहट बंद हुई और जहाज़ हवा में उड़ने लगा।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

""देवियों और सज्जनों, मैं हूँ आपकी कप्तान आर्या। विमान में आपका स्वागत है।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"तितलियाँ! मुझे दिख रही हैं लाल,हरी और पीली तितलियाँ! अरे एक छोटी तितली मेरी अंगुली पर बैठी है! क्‍या आप को वह दिख रही है?"
तितलियां

"रात को, चाँद मुझे हँसकर देखता है। और मैं उसे उल्लू की गोल आँखों से देखता हूँ।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"यहां तक ​​कि छोटे नींबू - मेरे जैसे सभी लग रहे हैं - और मिठाई भी!"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"मैं लेडीबर्ड्स और तितलियों पर भी हूं।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"खेलों के मैदान में, मैं एक गेंद के रूप में हूं, और कई और खेल मैं भी!"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"“नहीं, बेटे! केवल तभी, जब बारिश होगी। और अभी तो आसमान साफ़ है।”"
लाल बरसाती

"“अरे! बारिश हो रही है, बारिश हो रही है,” मनु ने गाना गाया और बाहर भागा।"
लाल बरसाती

"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने आप खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"स्टेल्ला और परवेज़ पेड़ों की ओर भागते हुए पहुँचे।"
कोयल का गला हुआ खराब

"परवेज़ ने उसका हाथ पकड़ा और दोनों ने एक साथ छलांग लगा कर पार कर लिया।"
कोयल का गला हुआ खराब

"वे दौड़कर अन्दर गए और अपने खाने के डब्बे खोल लिए। स्टेल्ला ख़ुशी से चिल्लाई, “वाह, इडली!”"
कोयल का गला हुआ खराब

"- जो लोग पूरी तरह से बधिर होते है, वो कुछ भी नहीं सुन सकते। परवेज़ आँशिक रूप से नहीं सुन सकता है। इसलिए उसे शीला मिस जैसी एक विशेष शिक्षक की ज़रूरत है जो उसे संकेत की भाषा, होंठों को पढ़ने और संवाद करने के अन्य तरीके सीखने में मदद कर सके।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- जो लोग परवेज़ से धीरे से बात करते हैं, वह उन्हें बेहतर समझ पाता है, और ख़ास तौर से जब वे उसकी तरफ देखकर बात कर रहे हों। परवेज़ ठीक से सुन नहीं सकता है, पर वो देख, सूँघ, समझ और सीख सकता है, वह महसूस कर सकता है, और पकड़म-पकड़ाई खेल सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"घूम-घूम ने इधर-उधर पैर चलाए और पूँछ हिलाई।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"घूम-घूम ने आगे देखा और पीछे देखा। दाएँ देखा-बाएँ देखा। "पापा?""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"यह उसके परिवार वालों की आवाज़ें थीं। उसे लगा सब वहीं आसपास हैं। घूम-घूम खिलखिला उठी! और तैरती हुई उसी ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"अरे मिल गए घर वाले! वह खिलखिला कर हँसी और उस आवाज़ की ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

""मैं एक अनोखे और मज़ेदार सफ़र पर गई थी, पापा!" घूम-घूम ने खिलखिलाकर कहा और बोली - "और कल फिर मुझे जाना है!""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"घूम-घूम गंगा नदी में अपने बड़े से घड़ियाल परिवार के साथ रहती है जो दिन भर पानी में छपाके मार-मार कर शोर मचाता रहता है। वह रोज़ खाने के लिए मछलियों और कीड़े-मकोड़ों की तलाश में निकल जाती है। रोज़ ही घूम-घूम की मुलाकात तरह-तरह के जीवों से होती है। घोंघे, ऊदबिलाव, डॉल्फ़िन, मछुआरे, माँझी, बगुले, सारस, भैंस, साँप और कई दूसरे जीव उसे मिलते हैं।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"इस पृष्ठ पर और अगले पृष्ठ पर चित्रों में तुम घूम-घूम के कितने दोस्तों को पहचान सकते हो?"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"वह दौड़ता है, छलाँगें मारता है, चक्कर काटता है और कलामुंडियाँ खाता है..."
सत्यम, ज़रा संभल के!

"खेत घर से बहुत दूर है। रास्ते में पड़ते हैं खेत, टेढ़ी–मेढ़ी पगडंडियाँ, घना जंगल और कलकल-छलछल बहते झरने भी।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह कनखजूरे की तरह सरका और साँप की तरह रेंगा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह मकड़े की तरह झूला और लँगूर की तरह कूदा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"उसने बतख़ की तरह पैरों से चप्पू चलाया और मेंढक की तरह तैरा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह छिपकली की तरह ऊपर चढ़ा और बकरी की तरह कूदा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"सत्यम ने अपनी बाँहें पँखों की तरह फैलाईं और उड़ने की कोशिश की।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह घर पहुँचा तो उसे कीचड़–मिट्टी से सना देख बाबा, दीदी और दादा खूब हँसे।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"सपने में सत्यम दौड़ा और कूदा और घूमा और उसने कलामुंडियाँ खाईं..."
सत्यम, ज़रा संभल के!

"... और उड़ चला। ऊपर! और ऊपर!"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"उफ़! कैसी-कैसी चाल चलता है सत्यम! जानते हो, जानवर, पंछी और कीड़े-मकोड़े भी अलग-अलग कारणों से अलग-अलग तरह की चाल चलते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"हमारी ही तरह वह भी ज़्यादातर बढ़िया खाने और रहने की आरामदेह जगह या प्यार करने वाले परिवार की तलाश में एक से दूसरी जगह घूमते-फिरते हैं। कभी-कभी वे अपने उन दुश्मनों से बचने के लिए भी घूमते-फिरते हैं जो उन्हें पकड़ कर खा सकते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"बोली और इधर-उधर नज़रें घुमाकर"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"से जा टकराई और गिर पड़ी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"गौरैया बोली और वहाँ से फुर्र हो गई।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“मेरा एक पैर टूट गया और मुझे तकलीफ़ हो रही है।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"एक सौ और आह! यही है मेरा टूटा पैर!"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"घूमता रहा और अपने जाले के रेशमी धागे से उसे बाँध दिया।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"रिंकी ने खींच कर कलम और गुटके को अलग किया।"
जादुर्इ गुटका

"पैन उसके हाथ से उछला और पलंग के नीचे ग़ायब हो गया।"
जादुर्इ गुटका

"लो जी! यह तो और दूर सरक गया।"
जादुर्इ गुटका

"तानो, तानो, थोड़ा और तानो..."
जादुर्इ गुटका

"पैन और काला गुटका दराज़ के अंदर गया। किताबें और स्टैपलर भी दराज़ के अंदर गए। स्टील का फुट्टा दराज़ के अंदर गया।"
जादुर्इ गुटका

"बस तभी! तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी और भैया कमरे में आए।"
जादुर्इ गुटका

"चुंबक सभी चीज़ों से नहीं चिपकता। यह सिर्फ उन कुछ चीज़ों से चिपकता है जिनमें कुछ ख़ास तत्व होते हैं। किसी वस्तु को चुंबक से चिपकाने वाले यह ख़ास तत्व हैं लोहा, निकिल, स्टील और कोबाल्ट।"
जादुर्इ गुटका

"गुबरैला ने ज़ोर से धक्का दिया, और ज़ोर से, बहुत ज़ोर से! लेकिन वह उस नारियल के पेड़ वाले हट्टे-कट्टे भँवरे को पलट नहीं सकी।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"इसके बाद पच्चीस कीड़ों ने पूरी ताक़त लगाकर ज़ोर से धक्का दिया, और फिर!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"सम और विषम संख्याओं की वस्तुओं को गिनिए।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"वे मेंढकों को तंग करती है और मच्छरों को अपना आहार बनाती है।"
द्रुवी की छतरी

"वह चिड़ियों के घोंसलों और मकड़ों के जालों को देखती है।"
द्रुवी की छतरी

"पतले पत्ते हैं और मोटे भी, बड़े हैं और छोटे भी।"
द्रुवी की छतरी

"ये पत्ते न तो बहुत बड़े हैं और न ही बहुत छोटे।"
द्रुवी की छतरी

"जिन्हें हम अपने मैदानों और बगीचों में पाते हैं, खुला समुद्र पार करके"
द्रुवी की छतरी

"अक्तूबर में शुरू करते हैं और विदेशों में, जैसे कि तंज़ानिया"
द्रुवी की छतरी

"ज़रा उठाकर और अपने पेट को सूर्य की तरफ करके आराम करते हैं।"
द्रुवी की छतरी

"इसी बीच कुत्ता भी जाग गया। और फिर वहाँ से जाने लगा।"
कुत्ते के अंडे

"सलीम और मैं मित्र हैं।"
आनंद

"उसे ढोलक बजाना अच्छा लगता है और मुझे नृत्य करना।"
आनंद

"पूरे शहर की फेंकी हुई चीज़ें और गन्दगी से भरा हुआ रहता था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"बच्चे और पास पास आते गए।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"दीदी से खूब कहानियाँ सुनने लगे। कुछ दिनों में वे अक्षर और शब्द पढ़ने लगे।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"दीदी बिस्तर पर लेटी थी। बीमार और उदास दिख रही थी।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"रोज़ शाम को मिलने लगे हैं। खूब हंसने और पढ़ने लगे हैं। मिल कर मौज मस्ती करने लगे हैं, बच्चे, दीदी और उनकी किताबें!"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"‘‘परेशान मत हो, नीना,’’ बाबा बोले। ‘‘तुम्हें नये साथी-सहेली मिल जाएंगे और नया पुचकेवाला भी मिल जायेगा।’’"
एक सफ़र, एक खेल

"लेकिन नीना कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं है। रेलगाड़ी में माँ और बाबा ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की।"
एक सफ़र, एक खेल

"माँ और बाबा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह और क्या कर सकते हैं। फिर बाबा मुस्कराए।"
एक सफ़र, एक खेल

"‘‘सही जवाब है सूटकेस!’’ बाबा तालियाँ बजाते हुए बोले। नीना ने किताब नीचे रख दी और उनकी बातें सुनने लगी।"
एक सफ़र, एक खेल

"नीना हंस पड़ी और उनके साथ शामिल हो गयी।"
एक सफ़र, एक खेल

"‘‘घास!’’ माँ और बाबा एक साथ बोले।"
एक सफ़र, एक खेल

"बाबा और माँ ने एक कंबल सीट पर बिछाया। फिर हवा वाले एक तकिये को फूंक कर फुलाया।"
एक सफ़र, एक खेल

"फिर बोली, ‘‘मुझे मालूम है कि नयी जगह पर यह खेल खेलने में तो और भी मज़ा आयेगा!’’"
एक सफ़र, एक खेल

"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अपनी प्रजाति का वह आखिरी जीव था और सैकड़ों वर्षों से यह प्रजाति विलुप्त मान ली गयी थी। लोग नहीं जानते थे कि उस प्रजाति का जीवित अवशेष, जो एक को छोड़ अपने बाकी सारे पंख गँवा चुका था, अब भी अधनिया के जंगलों में विचरता था। गजपक्षी और गाँव वाले एक दूसरे से एक सुरक्षित दूरी बनाये रखते थे। पर मुनिया नहीं। हालाँकि चलते समय वह लँगड़ाती थी, लेकिन थी बड़ी हिम्मत वाली। अक्सर वह जंगल में घुस जाती और एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी को देखने के लिए झील पर जाया करती थी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"दिन के समय वह गजपक्षी झील के पास आया करता या तो धूप तापने या फिर झील में पानी छपछपाते हुए अकेला खुद से ही खेलने। कभी-कभी वह पानी में आधा-डूब बैठा रहता और बाकी समय उसका कोई सुराग़ ही न मिलता। तब शायद वह घने जंगल के किसी बीहड़ कोने में बैठा आराम कर रहा होता। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी एक पेड़ जितना ऊँचा था। उसकी एक लम्बी और मज़बूत गर्दन थी, पंजों वाली हाथी समान लम्बी टाँगें थीं और भाले जैसा एक भारी-भरकम भाल था। उसके लम्बे-लम्बे पंजे और नाखून डरावने लगते थे।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"पर मुनिया जल्द ही यह जान गयी कि वह शर्मीला और घासफूस खाने वाला एक शान्त पक्षी है। वह बस झील के किनारे लगे पौधे और पत्तियाँ चबाता रहता। मुनिया को महसूस हुआ कि उसमें और उस गजपक्षी में कुछ समानता है। सही तो है, विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उड़ नहीं सकता था और मुनिया दौड़ नहीं सकती थी! गाँव के बाकी सारे बच्चे उसके लँगड़ाने का मज़ाक उड़ाते और अपने खेलों में उसे शामिल न करते। इसलिए उसे अकेले रहना ही अच्छा लगता।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“तुम्हें इसमें हँसी-ठठ्ठा नज़र आता है?” उसने अपने दाँत पीसे और मुड़ कर चली गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“नटखट का कहीं कोई नामोनिशान नहीं। हो सकता है बाड़े का दरवाज़ा ठीक से बंद न किया गया हो और वह भाग निकला हो।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के अलावा और कौन हो सकता है भला? उसे तो ख़त्म कर देना चाहिए!” दूधवाले ने कहा, “बरसों से यूँ चुपचाप पड़े-पड़े वह दुष्ट अपनी योजनाएँ बनाता रहा है!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"सब लोगों ने सहमति में हुंकारा। मुनिया यह सारी कार्यवाही चुपचाप देखे जा रही थी। वह बोलना चाहती थी, लेकिन जिसकी अनुमति नहीं थी उसकी सज़ा क्या होगी? और अगर वह बोलती भी तो कौन उसकी बात पर यकीन करता?"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“अपनी चुटिया तो बना नहीं सकती और चली हो हमें सलाह देने?” मुनिया के बाबूजी आँखें तरेरते हुए उसकी तरफ़ बढ़े। “जाओ, जाकर अपने दोस्तों के साथ खेलो!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"लम्बी दाढ़ी और हल्के कूबड़ वाला एक आदमी अपने हाथ में नटखट की लगाम थामे नज़र आया। “क्या हो रहा है?” उसने अपना सवाल दोहराया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुखिया ने हैरत भरी नज़र से पूछा, “सारथी, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और यह नटखट तुम्हारे साथ क्यों है?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“जैसा कि आप जानते हैं, कुछ साल पहले मैंने नटखट को बेच दिया था। कल मैं नटखट के भाइयों - बाँका और बलवान के द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में सवार आपके गाँव से गुज़र रहा था। मुझे नहीं मालूम कि किस तरह से नटखट अपने आपको छुड़ा हमारे पीछे-पीछे भागकर चन्देसरा चला आया। मैं उसे पहचान न सका और यह समझ न पाया कि इसका करूँ तो करूँ क्या। फिर आज सुबह मैंने इस नन्ही-सी बच्ची को एक झोंपड़ी से दूसरी झोंपड़ी जाते और एक गुमशुदा घोड़े के बारे में पूछते हुए देखा। लेकिन या इलाही ये माजरा क्या है?” तीसरी बार उसने अपना वही सवाल किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"यह कहानी एक वास्तविक गजपक्षी से प्रेरित है। इस विशाल पक्षी, एलिफेंट बर्ड, को वैज्ञानिकों ने एपियोरनिस मेक्सिमस का नाम दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी था और मेडागास्कर के द्वीपों में पाया जाता था। वनों के नष्ट होने और आबादी बढ़ने से ये विशाल पक्षी 1700 ई. के आस-पास लुप्त हो गए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"स्कूल में आज मेरा पहला दिन है। माँ मेरा हाथ पकड़े हुए हैं और मेरे साथ चल रही हैं।"
स्कूल का पहला दिन

"मुझे नहीं लगता कि मैं बड़ी हो चुकी हूँ। मैं उनका हाथ पकड़ती हूँ और कहती हूँ, “मत जाओ!”"
स्कूल का पहला दिन

"स्कूल में आज मेरा पहला दिन है। माँ मेरा हाथ पकड़े हुए हैं और मेरे साथ चल रही हैं।"
स्कूल का पहला दिन

"मुझे नहीं लगता कि मैं बड़ी हो चुकी हूँ। मैं उनका हाथ पकड़ती हूँ और कहती हूँ, "मत जाओ!""
स्कूल का पहला दिन

"“मगर मैंने पेन्सिल और धागे की रील कहाँ रख दी?” पापा ढूँढने लगे।"
सोना सयानी

"सोना ने पापा के एक कान के पीछे से पेन्सिल निकाली, और दूसरे कान के पीछे से रील।"
सोना सयानी

"जवाब में वह कहता है, “गुर्रर्रर्र...,” और मुड़कर अपनी छोटी सी पूँछ दिखाता है। इसका मतलब उसके पास पूँछ है और मेरे पास नहीं!"
टिमी और पेपे

"मुझे पेपे बहुत ही प्यारा लगता है। और वह भी मुझसे प्यार करता है।"
टिमी और पेपे

"हम अपने जूते और चप्पल यहाँ उतारते हैं।"
मेरा घर

"मेरी माँ और दादी अपनी साड़ियाँ बक्से में रखती हैं।"
मेरा घर

"नन्ही ने सलेट और चॉक उठाई। वह एक लम्बी रेलगाड़ी बनाना चाहती थी।"
छुक-छुक-छक

"नन्ही ने सलेट फ़र्श पर रखी और सोचने लगी।"
छुक-छुक-छक

"बैठे-बैठे नन्ही ने फ़र्श पर एक डिब्बा बनाया। डिब्बे के साथ एक और डिब्बा, फिर एक डिब्बा, फिर एक और... नन्ही बनाती गई।"
छुक-छुक-छक

"गोल गोल घूमता है, और यह झूलता भी है।
""
खोया पाया

"गोल गोल घूमता है, और यह झूलता भी है।
""
खोया पाया

"गोल गोल घूमता है, और यह झूलता भी है।
""
खोया पाया

"वीना और विनय इधर-उधर बिखरे रंगों के डिब्बों के बीच बगीचे में थे।"
नन्हे मददगार

"स़फेद रंग और लाल रंग, हरा रंग और पीला रंग, और नीला रंग। सभी तरह के रंग थे वहाँ।"
नन्हे मददगार

"पुताई वाले अपने काम में लगे थे। उनमें से एक सीढ़ी पर था, और दूसरा छत से झूले पर लटक रहा था।"
नन्हे मददगार

"“क्या हम आपकी कुछ मदद कर सकते हैं?” वीना और विनय ने पूछा।"
नन्हे मददगार

"वीना और विनय ने रंग के दो डिब्बे उठाए और हो गए काम के लिए तैयार।"
नन्हे मददगार

"कुछ रंग ज़मीन पर छलका। कुछ रंग दीवार पर गिरा। और बहुत सारा उन दोनों पर!"
नन्हे मददगार

"वह उठा और फिर दौड़ा।"
पहलवान जी और केला

"पहलवान फिर फिसला और गिरा धड़ाम से। ‘‘अच्छी कलाबाज़ी खाते हो। तुम्हें तो सर्कस में काम करना चाहिये।’’ गप्पू हँस पड़ा।"
पहलवान जी और केला

"जवाब में वह कहता है, “गुर्रर्रर्र...,” और मुड़कर अपनी छोटी सी पूँछ दिखाता है। इसका मतलब उसके पास पूँछ है और मेरे पास नहीं!"
टिमी और पेपे

"मुझे पेपे बहुत ही प्यारा लगता है। और वह भी मुझसे प्यार करता है।"
टिमी और पेपे

"माँ ने सोना को कपड़ा और रंग दिए। सोना ने तीन चार ठप्पे उठा लिए।"
सोना बड़ी सयानी

"माँ और सोना एक साथ काम करने लगे।"
सोना बड़ी सयानी

"मगर बीच में से हल्की सी, एक और आवाज़ आती,"
सोना बड़ी सयानी

"“यह क्या सोना?” माँ और परेशान हो गईं।"
सोना बड़ी सयानी

"चाचा तरह-तरह के स्वाद और ख़ुशबू वाले रस तैयार कर रहे थे। चार-चार पतीलों में आग पर इकट्ठे रस पक रहा था।"
सोना की नाक बड़ी तेज

"चाचा बोले, "नहीं, सोना, तुम बस ध्यान से देखो।" चाचा ने एक पतीले में रंग और खुशबू डाली।"
सोना की नाक बड़ी तेज

""मगर कुछ और गंध भी है।" सोना ने नाक सिकोड़ी, "अच्छी गंध नहीं चाचा।""
सोना की नाक बड़ी तेज

""मगर कुछ और बेकार सी गंध भी है चाचा," सोना ने नाक सिकोड़ी।"
सोना की नाक बड़ी तेज

"वह दहाड़ते हुए बाहर निकला और सृंगेरी श्रीनिवास के सामने अपने भारी-भरकम पंजे हिलाने लगा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस

"विवान यह सुनकर बहुत खुश हुआ और वह दोनो मौसी के साथ हाल के पीछे एक कमरे में गये।"
संगीत की दुनिया

"विवान को याद आया और वह गाते हुए बोला..."
संगीत की दुनिया

"माँ और मौसी ज़ोर से हँस पड़े।"
संगीत की दुनिया

"विवान और माँ हाल में जाकर अपनी अपनी कुर्सी पर बेठे।"
संगीत की दुनिया

"काटो का मन हुआ, वह उचककर उन्हें छू ले। और इस चक्कर में वह पानी में जा गिरा। गिरते-गिरते काटो ने कुछ मछलियों को उसका रास्ता काटते हुए देखा। “मुझे बचाओ, बचाओ मुझे,” पानी की लम्बी घूँटें लेते हुए उसने उन्हें पुकारा।"
नौका की सैर

"हंस ने उसकी पुकार सुनते ही पानी में अपना सिर डुबोया और बड़ी आसानी से काटो को अपनी चोंच में
 उठाकर नौका में डाल दिया।"
नौका की सैर

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"जब नौका किनारे पर पहुँची, काटो जल्दी से जल्दी सबको अपने कारनामे के बारे में बता देना चाहता था। दिन की सारी घटनाओं के बाद, काटो का सिर नौका की तरह चक्कर खा रहा था। खाने की मेज़ पर जैसे ही उसने सिर रखा, उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह गहरी नींद में डूब गया।"
नौका की सैर

"उनके माथे पर, बाथरूम में, उनकी अलमारी में, पूजा की जगह उनकी पसंदीदा कुर्सी के नीचे और खाने की मेज़ पर।"
नानी की ऐनक

"तुम्हें तो पता ही है कि वह कितनी गप्पी है! हम दोनों ने कई बार चाय पी और वे सारे लड्‌डू खा गई जो तुम्हारी माँ ने बनाए थे।" नानी बोलीं।"
नानी की ऐनक

"ऐनक ऊन में लिपटी पड़ी थी। उनकी कलम के बगल में, फोन के नीचे, मेज़ के ऊपर। और वहीं पर मुझे आधा खाया हुआ लड्‌डू भी मिला।"
नानी की ऐनक

"मुझे लगता है कि नानी के अगले जन्मदिन पर एक और ऐनक खरीदने के लिए मैं पैसे जमा कर लेती हूँ।"
नानी की ऐनक

"मेरे कुछ दोस्त उड़ते हैं। और कुछ दोस्त तैरते भी हैं।"
मेरे दोस्त

"मैं सोचता हूँ कि बारिश का मौसम सबको अच्छा लगता है। यह चारों मौसमों में सबसे अच्छा मौसम है। यह गर्मी के मौसम के तुरंत बाद आता है। बारिश के साथ कभी कभी आँधी आती है,बादल गरजते हैं और बिजली भी चमकती है।"
बारिश हो रही छमा छम

"बारिश के मौसम में बच्चे गीली मिट्टी में खेलते हैं,नाचते हैं और मजे करते हैं,मीठे आम खाते हैं और कागज की छोटी छोटी नावें बनाते हैं।"
बारिश हो रही छमा छम

"पशु पक्षी भी बारिश में आनंदित होते हैं क्योंकि उन्हें पीने और बढ़ने को बहुत पानी मिल जाता है।"
बारिश हो रही छमा छम

"एक घना जंगल था।
 जंगल अँधेरा और घना था।"
जंगल का स्कूल

"उनके बीच पगडंडियाँ थीं।
 बहुत सारे जानवर और चिड़ियाँ जंगल में रहते थे।"
जंगल का स्कूल

"मोटे और लम्बू को एक कमरा दिखा।"
जंगल का स्कूल

"फिर एक और ऊँची गरज।"
जंगल का स्कूल

"उसके बाद एक और ज़ोरदार गरज।"
जंगल का स्कूल

"पुराखा और मिंकू परेशान हो गये।
धीमे डर गया।"
जंगल का स्कूल

"पापा, मम्मी, भैया और मैं।"
चाचा की शादी

"हमारे साथ दो बड़े और दो छोटे थैले हैं।"
चाचा की शादी

"सुखिया काका ने मूँछें उमेठीं और निकल पड़े।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"सुखिया काका और दीनू दोनों गा रहे थे, साथ में ठुमका भी लगा रहे थे।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"बिजली चमकी, हवा चली और घने काले बादल घिर आये।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"दीनू और काका सब देख हर्षाये!"
बारिश में क्या गाएँ ?

"सुखिया काका और दीनू ने नन्ही सी छतरी तानी।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें

"हर सुबह, जैसे ही उसके पापा दाढ़ी बनाना शुरू करते हैं, अनु भी उनके पास आकर बैठ जाती है। बड़े ध्यान से उन्हें दाढ़ी बनाते हुए देखती है। उसके पापा अपनी दो उँगलियों में एक छुटकू-सी कैंची पकड़े, कच-कच-कच... अपनी मूँछों को तराशने में जुट जाते हैं।
 और अनु है कि कहती जाती है, “थोड़ा बाएँ... अब थोड़ा-सा दाएँ... पापा नहीं ना! आप अपनी मूँछों को और छोटा मत कीजिए!
 आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे कट्टी हो जाऊँगी!”"
पापा की मूँछें

"बस फिर क्या, पापा की मूँछें दिखने लगती हैं - रौबीली और तन-तना-तन।"
पापा की मूँछें

"अनु हमेशा सोचा करती है, पापा अगर एक अच्छा कुरता पहन लें, सिर पर एक पगड़ी रख अपनी कमर पर एक तलवार लटका लें और एक घोड़े पर सवार हो जायें, तो कितने शानदार लगेंगे पापा!"
पापा की मूँछें

"वे यदि एक चुन्नट डली पगड़ी पहन लें, और अपने कंधे पर एक बड़ी-सी गदा उठा लें, तो बहुत रौबीले दिखेंगे!"
पापा की मूँछें

"अगर वे एक काला टोप और एक लम्बा काला ओवरकोट पहन लें... अपनी आँखों पर एक काला चश्मा लगा लें, तो वे एकदम उस टीवी वाले जासूस की तरह लगेंगे जो सब चोरों को पकड़ लेता है!"
पापा की मूँछें

"हर सुबह, वह अपना साबुन भिगोती है, ढेर सारा झाग बनाती है और फिर उससे अपनी तरह-तरह की मूँछें बनाती है।"
पापा की मूँछें

"“एकदम झक सफेद, और मुलायम-मुलायम, है न?”"
पापा की मूँछें

"उन्होंने बाल्टी का चक्कर लगाया और दाने को खींचकर घर ले चलीं।"
दाल का दाना

"झाड़ू के ज़ोर से चींटी दूर जा गिरी और दाना कहीं और जा गिरा।"
दाल का दाना

"अलग अलग दालों के बारे में अपने मित्रों से साथ दाल के खेल खेलकर जानिए। घर के किसी बड़े से रसोई से विभिन्न प्रकार की दालों के दाने लेकर देने का अनुरोध कीजिये। उदाहरण के लिए, राजमा, अरहर या तूअर, सफ़ेद चना, सोयाबीन, साबुत मूँग और मटर के दाने। इन सब को एक बड़े कटोरे में डालिये।"
दाल का दाना

"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना

"चुलबुल ने मन में सोचा और तरह-तरह की पूँछ देखने लगी।"
चुलबुल की पूँछ

"बिल्ली की पूँछ निकाल कर उन्होंने चुलबुल की पूँछ दोबारा लगा दी। अपनी पूँछ पाते ही चुलबुल ने चैन की साँस ली और खुश होकर घर की ओर चल दी।"
चुलबुल की पूँछ

"क्या मैं अपने दिल को और तेज़ कर सकती हूँ? और आवाज़ भी बढ़ा सकती हूँ...?
 हाँ, अगर मैं बीस बार ऊपर-नीचे कूदूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"एक दिन दादाजी ने मेरे भाई और मुझे कुछ पैसे दिये।"
चलो किताबें खरीदने

"और हम दोनों पढ़ते गये, पढ़ते गये और पढ़ते गये।"
चलो किताबें खरीदने

"बोली और इधर-उधर नज़रें घुमाकर"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"से जा टकराई और गिर पड़ी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"गौरैया बोली और वहाँ से फुर्र हो गई।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“मेरा एक पैर टूट गया और मुझे तकली़फ़ हो रही है।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"एक सौ और आह! यही है मेरा टूटा पैर!"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"घूमता रहा और अपने जाले के रेशमी धागे से उसे बाँध दिया।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"सबसे पहले उसे दादीमाँ ने देखा। वह ज़ोर से सोफे पर कूदी और चिल्लाईं,"चूहा!""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"बिल्ली ने चूहे को देखा और बिस्तर के नीचे दुबक गई!"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"मिथुन चिल्लाया,"चूहा!" और वह बिल्ली के साथ भाग गया।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"उन्होंने झाड़ू निकाला और चूहे को इधर-उधर ढूँढने लगी।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"दादी सोफ़े से नीचे उतरी और बोलीं,"मैं जानती हूँ कि क्या करना है!""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"फिर उन्होंने अख़बार को मोड़ा और उसे इधर उधर खोसने लगीं।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

""चूहा, वहाँ तुम्हारी बाईं तरफ!"पापा ख़िड़की पर और ऊँचे चढ़ते हुए चिल्लाये।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"दादी ने चूहे को देखा और बिस्तर के नीचे जा छुपीं। पापा ने धीमे से कहा,"अब क्या करूँ?""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"वो खिड़की पर और ऊपर नहीं चढ़ सकते थे। वो ख़िड़की से नीचे उतरे और इससे पहले कि चूहा उनको देखता, वह बिस्तर के नीचे घुस गये।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"उसकी दो आँखें, चार पाँव और एक लम्बी पूँछ थी।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"छोटी ने चूहे को देखा और चूहा भागने लगा। छोटी उसके पीछे लपकी!"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

""क्या बताऊँ बेटा!मेरा चश्मा टूट गया है, और उसके बिना मैं पढ़ नहीं सकता," दादाजी बोले।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""ओह, परेशान न हों दादाजी, मैं अभी जाता हूँ और अपना बक्सा लेकर आता हूँ।""
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""अगर आप इस से देखें, तो आपको सब कुछ दिखेगा बड़ा और बेहतर!""
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""मुझे इस पैकेट से तेल निकाल कर बोतल में डालना है, और देखो ना, बोतल का मुंह कितना छोटा है!मुझे यकीन है कि आज मेरी रसोई ज़रूर गंदी हो जाएगी।" मंगल चाचा ने कहा।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""चिंता न करें चाचा, मैं बस यूँ गया और यूँ आया।" गुल्ली बोला।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"इस में ऊपर से कुछ भी उड़ेलें और देखें कितनी सफाई से वह बूँद-बूँद निकलता है।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""यह लीजिये मंगल चाचा, इसके इस्तेमाल से आपकी रसोई रहेगी एकदम साफ़ और खाना बनाना होगा आसान।""
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""अरे बेटा! मैं दादाजी की ऊनी टोपी की सिलाई कर रही थी, और मेरे हाथ से सुई नीचे गिर गई," दादी माँ बोलीं।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""आप यहाँ आराम से कुर्सी पर बैठें, और मैं ले आता हूँ अपने छोटे, भूरे बक्से में से कुछ ख़ास चीज़।""
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""अब मैं इसे ज़मीन पर घुमाऊँगा और जल्द ही सुई मिल जाएगी।" गुल्ली बोला।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""यह देखिए दादी माँ, आपकी सुई मिल गई, और साथ ही और बहुत सी खोई हुई चीज़ें भी!""
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""धन्यवाद गुल्ली बेटा, तुम तो बहुत सयाने हो। और तुम्हारा यह छोटा, भूरा बक्सा सचमुच गज़ब का है," दादी माँ मुस्कुराते हुए बोलीं।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"स्कूल की छुट्टी होने में पाँच मिनट रह गये थे पर चीनू और इन्तज़ार नहीं कर सकता था। उसने बाहर देखा। वहाँ कोई नहीं था। तभी कहीं पास से घंटी की टनटनाहट सुनाई दी।"
कबाड़ी वाला

"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला

"उस घर से अखबार और पत्रिकाएँ।"
कबाड़ी वाला

"नीचे वाले घर से, अखबार और पत्रिकाएँ और खाली बोतलें।"
कबाड़ी वाला

"चीनू दौड़ कर ठेले से एक और खाली बोरी ले आया। वे लिफ्ट में ऊपर जाने वाले थे! चीनू की आँखें बड़ी-बड़ी और गोल हो गईं।"
कबाड़ी वाला

"पाँचवीं मंज़िल से, अखबार और पत्रिकाएँ, बोतलें, डिब्बे और किताबें मिलीं।"
कबाड़ी वाला

"उड़ते उड़ते चन्दू और ऊँचा गया।"
उड़ते उड़ते

"उड़ते उड़ते चन्दू और भी ऊपर गया।"
उड़ते उड़ते

"उड़ते उड़ते चन्दू और भी ऊपर जाने लगा।
 इधर-उधर देखने लगा।"
उड़ते उड़ते

"माँ ने चन्दू को जगाया और कहा, “जागो, बेटा!”"
उड़ते उड़ते

"चन्दू ने माँ को प्यार किया और बोला, “सबसे अच्छा तो अब लग रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"संतरे के छिलके और बिस्कुट के खाली लिफ़ाफ़े,"
कचरे का बादल

"टूटे खिलौने, और पेंसिल की छीलन,"
कचरे का बादल

"लेकिन चीकू ने उनकी बात नहीं मानी। वह हँसती रही और कूड़ा फैलाती रही।"
कचरे का बादल

"अम्मा की बात सच साबित हुई और उसके बाद चीकू हँसना बस भूल ही गई!"
कचरे का बादल

"रीमा आंटी थैलियाँ उठाकर वहाँ से चली गई! अगले दिन जब चीकू सो कर उठी, तो बादल और भी छोटा हो गया था।चीकू मुस्कराई, वह समझ गई थी कि उसे क्या करना है।"
कचरे का बादल

"गाँव और ज़्यादा साफ़ रहने लगा। और चीकू का बादल और छोटा होने लगा।"
कचरे का बादल

"जब भी हम केले के छिलके या पेंसिल की छीलन सड़क पर फेंकते है, तो यह कचरा सड़क के किनारे इकठ्ठा हो जाता है। कुछ उन नालियों के अंदर चला जाता है और उन में जमा हो जाता है। रूकी हुई नालियों में मक्खी-मच्छर पैदा होते हैं जो बीमारियाँ फैलाते हैं! इससे हमारा पर्यावरण गन्दा होता है और अपने आसपास कूड़ा- कचरा तो किसी को भी अच्छा नहीं लगता। चीकू के दिल से पूछिये।"
कचरे का बादल

"धारा की बात सुनकर काका गाँव के कुम्हार के पास गया और बोला,"
काका और मुन्नी

"“अजी ओ कुम्हार प्यारे, काका आया पास तुम्हारे एक कसोरा तुम बनाओ जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी

"अब काका उड़कर पास के खेत पर गया और खेत से बोला,"
काका और मुन्नी

"उसे दो ख़तरनाक से कुत्ते दिखे। काका फ़ौरन उनके पास जा पहुँचा और उनकी खुशामद करने लगा,"
काका और मुन्नी

"“अजी ओ भैया कुत्ते प्यारे, काका आया पास तुम्हारे आज तुम्हें दावत खिलवाऊँ मोटा-ताज़ा हिरन दिखाऊँ, बस सींग उसका मैं ले लूँगा उससे थोड़ी मिट्टी खोदूँगा मिट्टी कुम्हार को दे दूँगा जिससे बनाये वो एक कसोरा जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी

"अब काका भूसा खा कर जुगाली कर रही भैंस के पास पहुँचा और बोला,"
काका और मुन्नी

"यह सुनकर काका उगी घास के ऊपर मँडराया और बोला,"
काका और मुन्नी

"फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ"
काका और मुन्नी

"ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी

"वह झपटता हुआ लुहार के पास पहुँचा और बोला,"
काका और मुन्नी

"ताकि सभी सुनें और जान जायें"
काका और मुन्नी

"बाकी सभी की तरह लुहार भी मुन्नी के अंडों को बचाना चाहता था। उसने कहा, “अभी बनाता हूँ हँसिया। तुम ज़रा पीछे जाकर भट्ठी का दरवाज़ा खोलो और इस लोहे के टुकड़े को उसमें रख दो”"
काका और मुन्नी

"काका ने खुशी-खुशी भट्ठी का दरवाज़ा खोला। तभी हवा का तेज़ झोंका आया और काका भट्ठी के कोयलों पर उलटा जा गिरा। उसकी पूँछ जल गयी। पूँछ की आग बुझाता काका चीखा,"
काका और मुन्नी

"वह उस गाँव से बहुत दूर उ़ड गया और फिर कभी वापस नहीं आया।"
काका और मुन्नी

"(Collage) हैं। कोलाज, अलग-अलग चीज़ों के टुकड़ों को जोड़कर एक नयी तस्वीर को बनाने का एक तरीका होता है। यह चीज़ें हाथों से बनी या इस किताब की तरह छपा हुआ काग़ज, अखबार और मैगज़ीन की कतरनें, पुराने कार्ड, छायाचित्र, कपड़ा, रिबन, सूखे फूल या पत्ते, या आसानी से मिल जानेवाली कोई भी चीज़ हो सकती है!"
काका और मुन्नी

"‘कोलाज’ शब्द फ़्रेंच शब्द ‘कोले’ से बना है जिसका अर्थ है- चिपकाना। एक कोलाज बनाने के लिए अलग-अलग चीज़ों, उन्हें काटने के लिए कैंची और फिर उन्हें चिपकाने के लिए ढेर सारे गोंद की ज़रूरत होती है।"
काका और मुन्नी

"इस पृष्ठ में चार तत्वों वायु, जल, पृथ्वी और दहकते हुए सूर्य को दर्शाया गया है। जैसे इस किताब में कागज़ के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ है वैसे ही तुम कागज़ के टुकड़े"
काका और मुन्नी

"रबड़ी और मलाई।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"पहने कुरता और पाजामा।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"धूप और गर्मी से उनको, है यह खूब बचाता।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल

"फ़सल तैयार हो गई और उसे बेचा गया। ओम ने कहा, “मुझे धनराशि का ज़्यादा भाग मिलना चाहिए क्योंकि मैंने खेत में ज़्यादा मेहनत की है।” दूसरी ओर घनश्याम ने कहा, “मैंने भी दिन-रात भगवान की पूजा की जिससे अच्छी फ़सल तैयार हुई है।”"
मेहनत का फल

"यह झगड़ा बढ़ गया तो दोनों मुखिया के पास गए। मुखिया ने दोनों की बात सुनकर दोनों को एक-एक बोरी कंकड़ मिला चावल दिया और बोला, “कल साफ़ करके ले आना। फिर मैं फ़ैसला सुनाऊँगा।""
मेहनत का फल

"मेंढक और कछुए, मछली के परिवार को बड़ी इज्ज़त देते थे।"
मछली ने समाचार सुने

"मछलियों के घर में एक बड़ा-सा रेडियो था। उनकी इज्ज़त इससे और भी बढ़ गई थी।"
मछली ने समाचार सुने

"मछलियों के घर एक बुज़ुर्ग मछली थी जिसका कहना मेंढक और कछुए भी मानते थे। उसे सब दादा कहते थे।"
मछली ने समाचार सुने

"फ़िल्मी गीत सुनना सभी को बहुत पसंद था। छोटी-छोटी मछलियाँ, मेंढक और कछुए हमेशा रेडियो से चिपके रहते।"
मछली ने समाचार सुने

"मेंढक और कछुए भी बहुत डर गए। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब निराश होकर बैठ गये। रोज़ की तरह दादा से रेडियो छीनने कोई नहीं आया। आगे की चिन्ता सभी को सता रही थी।"
मछली ने समाचार सुने

"मुखिया और दादा मछली अच्छे दोस्त थे। दादा ने उस लड़की से मुखिया को वहाँ आने का सन्देश भिजवाया।"
मछली ने समाचार सुने

"बाज़ार में यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ आते-जाते लोग नए-नए जोड़े पहने इतराते घूमते थे। दुकानों में मिठाइयों के ढेर मुँह में पानी भरते-इमरती, लड्डू, दिलबहार और चमचम, ज़ायकेदार गुनगुने बड़े कबाब, गर्मागर्म छुनछुन करती आलू की टिक्कियाँ...हर तरह का खाने का सामान, कपड़ा-लत्ता, चमचम करते चाँदी के ज़ेवरात-बाज़ार के चौक की दुकानें दुल्हन जैसी सजी थीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तोहफ़ों से लदीं, मेहरुनिस्सा और कमरुनिस्सा अपने भाई अज़हर मियाँ के साथ हाथों में मीठी-निमकी की पत्तलें लिए चली जा रही थीं। ईद के मौके पर तीनों को बहुत उम्दा चिकनकारी किए नए कपड़े मिले थे जिन्हें पहन कर उनका मन बल्लियों उछल रहा था। मेहरु के कुरते पर गहरे गुलाबी रंग के फूल कढ़े थे और कमरु भी फूल-पत्तीदार कढ़ाई वाला कुरता पहने थी। अज़हर मियाँ भी अपनी बारीक कढ़ी नई टोपी पहने काफ़ी खुश दिखाई देते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"उनके अब्बू ठेकेदारी करते थे। चौक के थोक का सामान रखने वाले दुकानदार उन्हें कपड़ा देते थे और अब्बू घर पर ही कढ़ाई का काम करने वाली औरतों से उस कपड़े पर चिकनकारी करवाते थे। दुकानदार हर औरत को कढ़ाई के हर कपड़े का पैसा देता था। अब्बू भी कपड़े के हिसाब से आढ़त पाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"एकाएक अज़हर मियाँ रुक गए, “घर पर बैठी हमारी एक और बहन भी तो है जिसने आज नए कपड़े नहीं पहने हैं। हम में से किसी ने भी उसके बारे में सोचा तक नहीं।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“मुमताज़ हमारी मौसेरी बहन ही तो है। और वह घर पर इसलिए है क्योंकि वह चल नहीं सकती,” कमरु और मेहरु इकट्ठा चिहुंकीं, “लेकिन हाँ, हमें उसके लिए भी कुछ मिठाई-पकवान तो ले ही लेना चाहिए।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"बच्चे गोमती के किनारे वाले मेले पहुँच चुके थे। क्या मज़े-मज़े की चीज़े थीं वहाँ! रंगबिरंगी काँच की चूड़ियाँ, रिबन, हार, मिट्टी के बने पशु-पक्षी, सिपाही और गुड़िया-सब के लिए कुछ न कुछ! मेले की चकाचौंध में बच्चे अपनी बहन के बारे में सब भूल-भुला गए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कढ़ाई कर रहे थे लेकिन उसका मन दूर अपने घर हरदोई में था जहाँ उसकी अम्मी और दो बहनें रहती थीं। क्या उनको भी उसकी उतनी ही याद आती थी जितनी उनकी उसे?"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"चाय के दौर चलते तो साथ ही चटपटी इधर-उधर की खूब गपशप भी होती लेकिन काम बराबर चलता रहता। शाम होती तो सब औरतें अपना काम समेटतीं और घर को रवाना होतीं। उन्हें अपने-अपने परिवार का खाना भी तो तैयार करना होता था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कढ़े हुए कपड़े आबिदा ख़ाला कमरु और मेहरु के अब्बू को भेज देतीं और वे मेहनताने के साथ-साथ और कपड़ा भेजते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ ही रोज़ पहले मुमताज़ आबिदा ख़ाला के साथ लखनऊ आई थी जिससे कशीदाकारी के कुछ नए टाँके सीख सके और घर लौट कर बाकी औरतों को सिखा"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ अपने घर से दूर तो थी लेकिन परिवार का एक प्यारा-सा हिस्सा उसके पास भी तो था! उसकी प्यारी तोती मुनिया और दो कबूतर-लक्का और लोटन! ये तीनों उसका दिल बहलाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तीनों पंछी बहुत ही प्रतिभाशाली थे। लक्का कितनी ऊँची उड़ान भर लेता था। और लोटन मियाँ डाल-डाल, पात-पात, कभी कलैया तो कभी कलाबाज़ी, और कभी तो नाचने लग जाते! मुनिया भी कम निराली नहीं थी। किसी भी इंसान की बोली बोलना उसके बाएँ पंख का खेल था। मुमताज़ हमेशा मुनिया से उसकी नक्ल उतारने को कहती रहती। जब"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ काम करती तो लक्का और लोटन दाना चुग कर बादलों में गुम हो जाते लेकिन कुछ ही देर बाद थोड़ा और दाना चुगने लौट आते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"लखनऊ आकर मुमताज़ को एक और दोस्त मिला-पड़ोस के सब्ज़ी वाले का आठ साल का बेटा, मुन्नु! मुन्नु हर रोज़ अपने पिता के साथ सब्ज़ी-भाजी लिए जगह-जगह फेरी लगाता और अपने ख़ास अंदाज़ में गुहार लगाता, “सब्ज़ी ले लो...ओ...ओ।” हाल ही में उसकी दोस्ती मुमताज़ के साथ हुई थी। हर रोज़ मुमताज़ अपना नाश्ता उसके साथ बाँटती और खाते-खाते दोनों बच्चे लक्का और लोटन के खेल देखा करते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"ईद के दिन भी दोनों दोस्त अपने पंछियों की उछल-कूद देख रहे थे। मुन्नु को लगा मुमताज़ आज बहुत उदास है, इतनी उदास कि कहीं वह रो ही न दे। “क्या बात है, आपा, आज इतनी गुमसुम क्यों हो? क्या हरदोई की याद आ रही है? क्या वहाँ तुम्हारे और भी पालतू पंछी हैं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“नहीं, नहीं, पंछी तो नहीं लेकिन हाँ मेरी अम्मी और मेरी बहनें, रेहाना और सलमा वहीं रहते हैं,” कह कर मुमताज़ कढ़ाई शुरू करने लगी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“देखती हूँ न! देखती हूँ कि मैं भी लोटन और लक्का की तरह नीले आसमान में उड़ रही हूँ और न जाने कहाँ-कहाँ जाती हूँ सपनों में,” मुमताज़ बोली, “शायद उड़ते-उड़ते किसी रोज़ कहीं नानी से मुलाकात ही हो जाए...।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“ऐसा है तो जल्दी से जाओ और अपनी नानी की चादर ले आओ, मैं तुम्हें एक खेल दिखाता हूँ,” मुन्नु रुआब से बोला। उसने मुमताज़ को चाँद पाशा के बारे में बताया। चाँद पाशा एक बीमार, बूढ़ा जादूगर था जिससे मुन्नु की मुलाकात अपने पिता के साथ फेरी लगाते हुई थी। उसने मुन्नु को एक बहुत ही मज़ेदार जादू सिखाया था। मुन्नु चाहता था कि मुमताज़ वह जादू देखकर अपना दुःख भूल जाए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“अच्छा, अब अपनी आँखें बंद करो और चादर का एक कोना थाम लो। दूसरा कोना मैं पकड़ लेता हूँ। अब एक लंबी साँस लो और खूब अच्छी तरह सोचो कि ऐसी कौन सी चीज़ है जो तुम्हें सबसे ज़्यादा चाहिए,” मुन्नु बोला।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"भागती जा रही है, तेज़, तेज़...और तेज़। लोटन ने अपनी चोंच में चादर का तीसरा कोना और लक्का ने चौथा कोना पकड़ा और वे सब उड़ने लगे, ज़मीन नीचे छूटती जा रही थी और आसमान नज़दीक आ रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"वे सब किसी दूर, अनजाने शहर में पहुँच गए थे। वहाँ पहाड़ नीले थे, और नीले-नीले आसमान में तरह-तरह के रंगों वाले पंछी उड़ रहे थे। नीचे वादी में फलों से लदे पेड़ और फूलों से महकते बग़ीचे थे। लोटन और लक्का मुमताज़ को लेकर एक फ़िरोज़ी रंग के तालाब के किनारे उतरे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"किनारे पर लंबे-लंबे गर्म फिरन पहने, पीठ झुकाए कुछ आदमी अपने काम में मसरूफ़ थे। वे लोग बहुत ही महीन सुइयों से गर्म दुशालों पर कढ़ाई कर रहे थे-रंगबिरंगे फूल, पत्तियाँ और पंछी...हूबहू वादी के फूलों और पंछियों जैसे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"उनमें सबसे बुज़ुर्ग कशीदाकार, खुरशीद ने मुमताज़ को सलाम कहा और पूछा कि वह कहाँ से आई है। “जी, मैं लखनऊ से हूँ,” मुमताज़ ने भी बड़े मियाँ को सलाम किया, “मैं चिकनकार हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"खुरशीद ने मुमताज़ को वह दुशाला दिखाया जो वे काढ़ रहे थे, “देखो बेटी, मैंने कश्मीर के पंछी और फूल अपने शॉल में उतार लिए हैं। यह है गुलिस्तान, फूलों से भरा बग़ीचा और ये रहीं बुलबुल। यह जो देख रही हो, इसे हम चश्म-ए-बुलबुल कहते हैं यानि बुलबुल की आँख। जिस तरह बुलबुल अपने चारों ओर देख सकती है, वैसे ही यह टाँका हर तरफ़ से एक जैसा दिखाई देता है!” कह कर खुरशीद ने मुमताज़ को वह टाँका काढ़ना सिखाया।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ नया टाँका जल्दी से सीख गई और उसकी उँगलियाँ शॉल पर दौड़ने लगीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ देर बाद खुरशीद ने मुमताज़ को कहवा-कश्मीरी चाय और ताज़े सिके गर्मागर्म नान पेश किए। उसने बताया कि कई साल पहले कश्मीर के कशीदाकारों ने लखनऊ के नवाब के यहाँ जाकर वहाँ के चिकनकारों के साथ काम किया था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"लेकिन मेहरु और कमरु को अपनी बहन का काम देखकर खुशी कम, जलन ज़्यादा हुई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दोनों बहनों ने एक तरकीब सोच ली। एक शाम जब मुमताज़ लक्का-लोटन के लिए दाने का इंतज़ाम करने निकली तो मेहरु ने काम करने के लिए मुमताज़ को दिया गया सारा रंगीन कपड़ा और धागे कहीं छिपा दिए। सिर्फ़ सफ़ेद कपड़ा ही बचा रहा, “तो अब देखते हैं,” मेहरु उँगलियाँ नचाती बोली, “हमारी प्यारी बहन की तारीफ़ कौन करता है!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अगले रोज़ मुन्नु ने देखा कि मुमताज़ अपने कबूतरों के पास उदास बैठी है। पूछने पर वह बोली “सफ़ेद कपड़े पर कढ़ाई करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि वह बहुत जल्दी गंदा हो जाता है। और अपने रंगीन धागों के बिना मैं काढ़ूँगी भी कैसे?” मुमताज़ मायूस थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“उदास न हो, आपा,” मुन्नु बोला, “नानी की चादर कब काम आएगी! जाओ, उसे ले आओ और खूब ध्यान लगाकर सोचो। कौन जाने आज तुम किस जादुई नगरी में पहुँच जाओ!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"और फिर मुमताज़ ने अपनी नानी को देखा! एक चौड़ी सड़क के किनारे नीम के पेड़ तले बैठी थीं! मुमताज़ खुशी के मारे चिल्लाई और “नानी, नानी” करती उनके गले से लग गई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"नानी ने मुमताज़ के माथे को बड़े प्यार से चूमा और बोली, “क्यों मेरी बच्ची, तू इतनी उदास क्यों है? तुझे शायद पता नहीं कि असली चिकनकारी रंगीन कपड़े पर तो होती ही नहीं। उसे तो सदियों से सफ़ेद मलमल पर ही काढ़ते थे क्योंकि यह कुरते आदमी ही पहना करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"जब मुमताज़ इस विस्मय-नगरी से लौटी तो उसने एक बड़ा सफ़ेद कपड़ा लिया और उस पर सफ़ेद धागे से फूल काढ़ने बैठ गई। उसने हरदोई के आमों और कश्मीर के बादाम के जैसे पत्ते काढ़े और फूलों के गुच्छों से लदी झाड़ियों के बीचोंबीच एक बहुत ही खूबसूरत मोर भी! वह किसी जादुई चादर से कम नहीं लगती थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के काम ने तो सभी का मन मोह लिया था। थोक के व्यापारी और चिकनदार-सबकी ज़ुबाँ पर हरदोई से आई एक छोटी-सी चिकनकारिन का ही नाम था! अपनी नुमाइशों में दिखाने के लिए कुछ आला, अमीर औरतें आबिदा खाला से मुमताज़ का काम माँगने आईं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कमरु और मेहरु ने तय किया कि वे मुमताज़ के लिए छपाई भी नहीं कराएँगी। लेकिन मुमताज़ भी अब ऐसी छोटी-मोटी रुकावटों से घबराने वाली कहाँ थी। सपनों ने उसकी कल्पना को पंख दे दिए थे और उसे कढ़ाई के नमूनों की कोई कमी नहीं थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"ईनाम के जलसे में कमरु और मेहरु ने देखा कि सब मुमताज़ को कितनी इज़्जत दे रहे थे। कुछ-एक ने तो उन्हें भी ऐसी हुनर वाली लड़की की बहनें होने की बधाई दी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ कुछ पल तो ख़ामोश रही। फिर उसने अपना जादू अपनी बहनों को बताने का फ़ैसला कर लिया। मुस्करा कर, वह कमरु से बोली, “चलो, तुम भी मेरी नानी की चादर का एक कोना पकड़ो और ख़ूब ध्यान लगा कर सोचो।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कमरु ने कोना पकड़ तो लिया लेकिन वह कुछ पशोपेश में भी थी। आखिर मुमताज़ कह क्या रही थी! उसे तो वहाँ नाचती मुनिया और गुटरगूँ करते, खेलते हुए लक्का-लोटन के इलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"साँझी की प्राचीन कला आज भी भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा और वृंदावन में प्रचलित है। एक ज़माने में कलाकार पेड़ की पतली छाल का प्रयोग करते थे लेकिन अब तो तरह-तरह के कागज़ भी इस्तेमाल किये जाते हैं। नमूने बहुत विस्तृत होते हैं और अधिकतर धार्मिक दृश्य, फूल-पत्ते, वयन और रेखागणित संरचनाएँ दर्शाते हैं। इस जटिल कला का उपयोग मंदिरों में प्रतिमाएँ सजाने के लिए, कपड़े पर देवी-देवताओं के स्टैंसिल या बच्चों के लिए स्टैंसिल काटने के लिए किया जाता है। तस्वीर में रंग या चमक देने के लिए स्टैंसिल के नीचे रंगीन या धात्विक कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दस्तकार हाट समिति भारतीय शिल्पकारों की एक विशाल संस्था है जो कि इस देश की पारंपरिक दस्तकारी से जुड़े लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कार्यरत है। चार कहानियों की इस शृंखला को चित्रित करने के लिए प्रांतीय कला और शिल्प के नमूनों का इस्तेमाल किया गया है जिससे भारत की भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक संवेदनाओं को साझा किया जा सके। हम युनेस्को, नई दिल्ली, के आभारी हैं जिनके योगदान से यह कार्य पूरा हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"रज़ा के अब्बा, रहमत खान, भी कोई छोटे-मोटे आदमी नहीं थे। वह बादशाह के शाही दर्ज़ी थे। बादशाह उन्हीं के हाथ के अंगरखे पहनना पसंद करते थे-जी हाँ, चुस्त चूड़ीदार पायजामा और ढीला कोटनुमा कुरता-जिसे अंगरखा कहते हैं। यही थी बादशाह की पसंद की पोशाक।"
रज़ा और बादशाह

"आज सुबह रज़ा और उसके अब्बा, फ़तेहपुर सीकरी के महल जा रहे थे। बादशाह के गर्मी के मौसम के अंगरखे उन्हें दिखलाने थे। कपड़ों के मामले में राजा साहब काफ़ी नखरैले थे। रहमत खान ने बड़ी मेहनत से अंगरखे बनाये थे-देर रात तक कटाई और सिलाई करी थी। रज़ा ने भी उनका हाथ बँटाया था-सबसे बारीक सुईं और बेहतरीन रेशम के धागे से महीन टाँके लगाये थे।"
रज़ा और बादशाह

"पहरेदार एक और आदमी को लेकर आया जिसे देखकर रहमत ने झुक कर सलाम किया, “गर्मी के कपड़े लाया हूँ, धनी जी।”"
रज़ा और बादशाह

"”बादशाह का निजी महल, जहाँ उनकी बैठक और सोने का कमरा है।“"
रज़ा और बादशाह

"काफ़ी लम्बा रास्ता था। रज़ा ने चारों तरफ़ देखा तो उसकी आँखें आश्‍चर्य से खुली की खुली रह गईं। मुग़लों के महल कितने सुन्दर थे! पतले नक्काशीदार खम्भे और मेहराब-सब लाल रंग के बालुकाश्म से बने हुए। कहीं कहीं फुलवारी वाले बग़ीचे, जिनमें कमलों से सजे तालाब और झिलमिलाते फव्वारे नज़र आ रहे थे। रज़ा ने मन से सोचा कि जन्नत ऐसी ही होती होगी।"
रज़ा और बादशाह

"बादशाह के कमरे के दरवाज़े पर इन्तज़ार करते हुए रज़ा ने धनी सिंह को ध्यान से देखा। दर्ज़ी का बेटा होने के नाते सबसे पहले कपड़ों पर नज़र टिकी। लाल और स़फेद, फूलदार सूती अंगरखा और स़फेद चूड़ीदार। धनी सिंह की नागरा की जूतियों की नोक अन्दर की तरफ़ उमेठी हुई थी। उनकी कमर पर कपड़े की पट्टी बँधी हुई थी जिसे पटका कहा जाता है। पर रज़ा को सबसे ज़्यादा पसन्द उनकी चटख़ लाल रंग की पगड़ी आई, जिस पर स़फेद और पीले चौरस और बुंदकियों का नमूना था।"
रज़ा और बादशाह

"”शुक्रिया! मैं राजपूत हूँ और इस नमूने को मेरे देश में बाँधनी कहते हैं।“"
रज़ा और बादशाह

"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने झुक कर सलाम किया और फिर अपने बादशाह की तरफ़ देखा। एक खिदमतगार हाथ में डिब्बा लिये खड़ा था और अकबर उसमें से गहने चुन रहे थे। कद में बहुत लम्बे नहीं थे पर उनके एक तलवारबाज़ के जैसे चौड़े कन्धे थे। बड़ी बड़ी, थोड़ी तिरछी आँखें, नीचे की ओर मुड़ी मूँछें और ओठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था।"
रज़ा और बादशाह

"उनके आने की आहट पाते ही अकबर पलट कर मुस्कराये,”आओ रहमत! अंगरखे लाये हो? और यह लड़का कौन है तुम्हारे साथ?“"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने पोटली खोली और अंगरखे पलंग पर सजा दिये। बेहतरीन मलमल से बने हुए थे और बड़ी बारीक कढ़ाई थी। सभी गर्मी के हल्के रंगों में थे, नींबुई, आसमानी, धानी, हल्का जामनी और झकाझक स़फेद। रज़ा जानता था कि बादशाह का पसंदीदा रंग स़फेद था।"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने अकबर को एक स़फेद अंगरखा पहनने में मदद करी। धनी सिंह एक बड़ा-सा आईना ले आये और राजा के सामने लेकर खड़े हो गये।"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने कई पटके उठाये और अकबर की कमर पर एक आसमानी रंग का पटका ऐसे बाँधा कि झालरदार सिरे आगे की तरफ़ लटकें।"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा और उसके अब्बा ने, एक के बाद एक कई पटके बाँध कर दिखाये-हरा और पीला, नारंगी और जामनी, पर अकबर को कोई भी न सुहाया।"
रज़ा और बादशाह

"उसने यहाँ-वहाँ नज़र दौड़ाई और अनायास बोल पड़ा,”हुज़ूर क्या आप चटख़ लाल पर स़फेद और पीली बुंदकियों वाला देखना पसन्द करेंगे?“"
रज़ा और बादशाह

"”हूँ...“अकबर ने धनी सिंह के मूछों वाले चेहरे को घूर कर देखा और कहा,”ठीक है, देखते हैं।“"
रज़ा और बादशाह

"”धनी, रहमत को अंगरखों और पटकों की कीमत अदा कर दो। हमें सारे चाहियें।“"
रज़ा और बादशाह

"इतिहास के कुछ रोचक तथ्य 1. रज़ा, बादशाह अकबर के शासनकाल में अब से 400 साल पहले रहता था। अकबर मुग़ल राजवंश का सबसे महान राजा था। वह एक प्रसिद्ध योद्धा भी था। उसे नये नमूनों के कपड़े पहनने का बहुत शौक़ था। वह पतंगबाज़ी और आम खाने का भी शौकीन था। 2. बाबर, मुग़ल राजवंश का संस्थापक, काबुल का राजा था। उसने 1526 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया। अकबर, बाबर का पोता था। वह भी एक बड़ा कामयाब सेनापति था और अपने 49 साल के शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं हारा।"
रज़ा और बादशाह

"3. दो मुग़ल बादशाहों ने नये शहर बनवाये। अकबर ने आगरा के पास, फ़तेहपुर सीकरी बनवाया और शाहजहाँ ने दिल्ली में, शाहजहाँनाबाद। फ़तेहपुर सीकरी, आज वीरान पड़ा है पर शाहजहाँनाबाद (आज पुरानी दिल्ली कहलाता है) में आज भी लोग रहते हैं और वहाँ ज़िन्दगी की चहल-पहल बरक़रार है।"
रज़ा और बादशाह

"प्रिय... जो भी हो, तुम जानती ही हो कि तुम कौन हो। और यूँ भी तुम यह पत्र कभी नहीं देख पाओगी।"
थोड़ी सी मदद

"मैडम ने कहा था कि मुझे तुम्हारी मदद करनी है और तुम्हें यह दिखाना है कि स्कूल में कौन सी जगह कहाँ है, क्योंकि तुम स्कूल में नई आई हो। लेकिन उन्होंने मुझे इस बारे में और कुछ नहीं बताया था।"
थोड़ी सी मदद

"स्कूल से घर लौटते हुए अली, गौरव, सुमी और रानी, मुझसे बार-बार मेरी इस नई ज़िम्मेदारी के बारे में पूछते रहे। मैंने बात टालने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो मालूम था कि मुझे क्या काम सौंपा गया है। मैंने उनसे कहा कि पता नहीं तुम लोग किस चीज़ के बारे में बात कर रहे हो। लेकिन यह बात सच नहीं थी। मुझे अच्छी तरह पता था कि वे किस के बारे में पूछ रहे हैं?"
थोड़ी सी मदद

"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद

"मैं सबसे कहता हूँ कि वे जो कुछ भी जानना चाहते हैं ख़ुद तुमसे ही पूछ लें। मुझसे पूछने का क्या मतलब? मुझे कैसे पता हो सकता है कि तुम्हारे पास वह चीज क्यों है और वह कैसे काम करती है?"
थोड़ी सी मदद

"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद

"आज मेरी बड़ी दीदी का फोन आया। वह दिल्ली में इँजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं। मैंने उन्हें बताया कि हमारी कक्षा में एक लड़की है और उसका एक हाथ नकली है। दीदी ने बताया कि उसे 'प्रॉस्थेटिक हैंड’ कहते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"सुमी अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकी। और खेलने के बाद भी उसे जूते के फीते बाँधने का ध्यान नहीं रहा, और वह उलझ कर गिर पड़ी। उसकी ठोड़ी में चोट लग गई। जब मैडम ने उसकी ठोड़ी की चोट देखी तो उस पर ऐंटीसेप्टिक क्रीम तो लगा दी, लेकिन उसे लापरवाही बरतने के लिए डाँट भी पड़ी। “जूतों के फीते बाँधे बिना पहाड़ों में दौड़ लगाई जाती है? घर जाते समय गिर पड़तीं या और कुछ हो जाता तो क्या होता?“"
थोड़ी सी मदद

"तुम जानती हो न कि सँयोग क्या होता है? यह ऐसी बात है कि जैसे तुम कुछ कहो और थोड़ी देर में वही बात कुछ अलग तरीके से सच हो जाए। पिछले पत्र में मैंने तुम्हें सुमी और जूतों के फीतों के बारे में बताया था। और उसके बाद, आज, मैंने तुम्हें जूतों के फीते बाँधते हुए देखा। वाह, यह अद्भुत था! मैं सोचता हूँ कि तुमने यह काम मुझसे ज़्यादा जल्दी किया जबकि मैं दोनों हाथों से काम करता हूँ। अगर तुम मेरी दोस्त न होतीं तो मैं तुम्हारे साथ जूते के फीते बाँधने की रेस लगाता। नहीं, नहीं, शायद मैं तुम्हें कहता कि मुझे भी एक हाथ से फीते बाँधना सिखाओ।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद

"फ़िल्म सच में बहुत ही बढ़िया थी, है न? मैं इतना हँसा कि मेरा पेट दुखने लगा और मेरे आँसू निकल आए। जब भी स्कूल में फ़िल्म दिखाई जाती है मुझे बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि उस दिन पढ़ाई की छुट्टी।"
थोड़ी सी मदद

"पिछली बार, हमारे स्कूल में तुम्हारे आने से पहले, हमें एक बाघ के बच्चे की फ़िल्म दिखाई गयी थी जो जँगल में भटक गया था। हम भी उसे लेकर चिंता में पड़ गए थे क्योंकि वह एक सच्ची कहानी थी। बाद में वह बाघ का बच्चा किसी को मिल जाता है और वह उसे उसके परिवार से मिला देता है। जानती हो ऐसी सच्ची कहानियों को डॉक्यूमेंट्री कहा जाता है। बाघ के बच्चे बड़े प्यारे होते हैं, हैं न?"
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"पिछले बरस, हमारे घर के पास एक पिल्ला रहता था। वह भी बहुत प्यारा था, लेकिन फिर वह बड़ा हो गया और पहले जैसा प्यारा नहीं रह गया। अच्छा, अब चलता हूँ! मैं"
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"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद

"अच्छा भई, मैं बहुत थक गया हूँ और सोने जा रहा हूँ। कल स्कूल में मिलेंगे।"
थोड़ी सी मदद

"पता नहीं इसका क्या मतलब है, लेकिन वे बहुत परेशान दिखते हैं। तुमने उनके बाल देखे हैं? वह ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने बिजली का नँगा तार छू लिया हो और उन्हें करारा झटका लगा हो! वैसे, मुझे लगता है कि रानी ने उनकी कुर्सी पर मेंढक रख कर अच्छा नहीं किया।"
थोड़ी सी मदद

"तुम्हारा नया हाथ तो बहुत ही बढ़िया है! बुरा न मानना, लेकिन पुराना वाला हाथ कुछ उबाऊ था। बस था... नाम को। जबकि नया वाला तो बिल्कुल जादू जैसा है, और तुम उँगलियाँ भी चला सकती हो और उनसे चीजें भी पकड़ सकती हो! मुझे उम्मीद है कि अगर मैं तुमसे हाथ मिलाने के लिए कहूँ तो तुम बुरा नहीं मानोगी। अरे यह बात बस मेरे मुँह से यूँ ही निकल गई। कल देखेंगे कि क्या तुम इस से कुछ सामान भी उठा सकती हो।"
थोड़ी सी मदद

"ओह! मुझे अभी अहसास हुआ है कि मैंने तुम्हें जो दो आखीरी पत्र लिखे हैं, उनमें मैंने तुम्हारे प्रॉस्थेटिक हाथ के बारे में बात ही नहीं की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैं इसके बारे में बिल्कुल ही भूल गया था और मेरे पास तुम्हें बताने के लिए और भी बातें थीं। मज़ेदार बात यह है कि तुम्हारे हाथ को लेकर अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं उठते। न जाने क्यों!"
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"अ. मज़ा आ गया! एक और दोस्त!"
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"अब देखें कि आप ने कितने अँक पाए और इसका क्या मतलब है..."
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"आप स्वतन्त्र किस्म के व्यक्ति हैं और मानते हैं कि सभी को ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप को किसी की चिन्ता नहीं होती। बस आप दूसरों पर दबाव नहीं बनाना चाहते।"
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"आप ज़रा शर्मीले लेकिन दयालु हैं। आप दूसरों की मदद करने और उन्हें सहज अनुभव करवाने के लिए जो भी कर सकते हैं जरूर करेंगे। लेकिन बिना किसी तरह का दिखावा किए।"
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