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Storybook paragraphs containing word (253)
"एक राजा था। वह बहुत मोटा था।"
एक था मोटा राजा
"कुत्ते ने एक चिड़िया को देखा। वह कुत्ता उस चिड़िया के पीछे दौड़ा।"
एक था मोटा राजा
"घर जाते समय ज़ोर की हवा चली। वह मेरी टोपी उड़ा ले गई।"
चाँद का तोहफ़ा
"मुझे बाहर कुछ काली बड़ी चीज दिख रही है ! वह क्या है ?"
मैं नहीं डरती !
"वह आवाज कैसी है! किड़ किड़ ! वह क्या है?"
मैं नहीं डरती !
"अरे वह तो मेरी बहन कुएं से पानी निकाल रही है! मैं नहीं डरती।"
मैं नहीं डरती !
"अरे यह तो मेरी माँ हैं। वह खेत से काम कर के घर आई हैं।"
मैं नहीं डरती !
"“मुझे नींद नहीं आ रही अम्मा!” टिंकु फुसफुसाया। लेकिन अम्मा ने उसकी बात सुनी ही नहीं। वह गहरी नींद में थी।"
सो जाओ टिंकु!
"वह दाएँ मुड़ा फिर बाएँ मुड़ा। उसने कंबल ओढ़ा, फिर उतार फेंका। वह पेट के बल लेटा, फिर चित हुआ, इधर-उधर करवट बदली, पर नहीं! वह सो ही नहीं पाया!"
सो जाओ टिंकु!
"वह जानना चाहता था कि रात में उसे कौन मिल सकता है। ऊपर आसमान में टिंकु ने चाँद देखा। सफ़ेद, जगमग करता गोल चाँद जो मुस्कराता हुआ उसे देख रहा था। वह बहुत ख़ुश हुआ। रात बहुत सुंदर है, टिंकु ने सोचा।"
सो जाओ टिंकु!
"“वह रोशनी कैसी?” वह चकित हुआ। एक छोटी सी रोशनी उड़ती हुई उसके पास आई।"
सो जाओ टिंकु!
"टिंकु और उसके दोस्त हँसे और उछले-कूदे। वे इधर से उधर लुढ़के, जब तक कि टिंकु को उबासी आने लगी। हा! वह बहुत थक गया था। “मुझे नींद आ रही है अब घर जाना है,” टिंकु बोला।"
सो जाओ टिंकु!
"वह घर लौटते समय बहुत ख़ुश था कि उसने आज बहुत से नए दोस्त बनाए थे। वह अपनी अम्मा से कसकर लिपट गया। उसने फुसफुसाते हुए कहा, “रात अकेली नहीं होती अम्मा! रात में तो बहुत से अद्भुत जीव मिलते हैं।”"
सो जाओ टिंकु!
"अर्जुन के तीन पहिये थे, एक हेड लाइट थी और एक हरे-पीले रंग का
कोट भी था।
दिल्ली के बहुत बड़े परिवार का वह एक हिस्सा था। जहाँ-जहाँ अर्जुन जाता, उसको हर जगह मिलते उसके रिश्तेदार, भाई-बहन, चाचा-चाची, मौसा-मौसी, वे सभी हॉर्न बजा बजाकर कहते, “आराम से जाना।”"
उड़ने वाला ऑटो
"“फट फट टूका, टूका टुक”, वह चलता रहता, “फट फट टूका, टूका टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो
"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो
"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो
"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो
"हँसते हुए वह औरत बोली, “जादू!”
उस लड़के ने हामी भरते हुए उत्साह से सिर हिलाया। अर्जुन को लगा मानो उसका सिर बस अभी गिरा।"
उड़ने वाला ऑटो
"“फट फट टूका, टूका टुक” करते हुए वह आगे बढ़ा और अपने एक भाई को मुस्करा कर कहा, “हेलो!”"
उड़ने वाला ऑटो
"आगे बढ़ते ही अर्जुन को अचानक महसूस हुआ कि उसके पहिये पर दबाव कम होने लगा है, उसके सामने की भीड़ छँटने लगी है और वह बहुत आराम से आगे बढ़ गया है, “जाने दो अर्जुन भाई,” उसके चाचा ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन के पहिये सड़क से ऊपर थे, ऊपर और ऊपर वह उड़ता जा रहा था।"
उड़ने वाला ऑटो
"उसे सड़कों का बहुत बड़ा जाल दिखाई दिया मानो किसी शरारती मकड़े ने बनाया हो।
फटी आँखों से शिरीष जी खुशी में चीख रहे थे। न तो वह हैंडल बार को पकड़े हुए थे और न ही गाड़ियों से बचने की कोशिश कर रहे थे।"
उड़ने वाला ऑटो
"उस औरत ने अपनी सुन्दर साड़ी को ठीक किया। शीशे में देखते हुए वह बोली, “भाई, आपका चेहरा!”"
उड़ने वाला ऑटो
"“क्या फ़ायदा इसका?,” वह सोचने लगे। जीवन में ऐसा कुछ बहुत पहले कभी उन्होंने चाहा था। लेकिन अब वह जान गए थे कि जो सच है वह सच ही रहेगा। शिरीष जी को अब अपना ही चेहरा चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन की हेड लाइट मद्धिम पड़ रही थी। उसे अब सब कुछ बेकार लग रहा था। वह शिरीष जी की बातें भाँप रहा था। अब वह उस औरत के भावों को भी समझ सकता था।"
उड़ने वाला ऑटो
"वह नीचे और नीचे आया, उसे शहर की गर्माहट महसूस होने लगी थी। जितना करीब वह पहुँच रहा था उतनी ही ऊर्जा उसे मिल रही थी।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था।
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो
"मैं माँ की तस्वीर बनाता हूँ। वह बिना हिले बैठी रहती हैं।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"मैं अपनी बहन की तस्वीर बनाता हूँ। वह बिना हिले नहीं बैठती।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"मैं बिल्ली की तस्वीर बनाता हूँ। वह मोटी है।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"मैं मछली बनाता हूँ। वह छोटी है।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"पिशि दुखी थी। कल तक वह अंडमान निकोबार के तट से दूर, मैंटा रे मछलियों के समूह का हिस्सा थी। वह हिन्द महासागर की सुन्दर लहरों के बीच भर पेट खाना खाती और मज़े से रहती थी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"पिशि ने अपने बड़े बड़े मीनपक्ष फड़फड़ाए ताकि वह सुरक्षित जगह पर पहुँच जाए।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"उसे पता था उसे क्या करना चाहिए। पिशि ने होश सँभाले। वह अपने दोस्तों के बीच वापस जाना चाहती थी। पर उस से पहले घाव का ठीक होना ज़रूरी था। वह तेज़ी से तट की ओर तैरने लगी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। काश कि वह इतनी बड़ी नहीं होती, १० मीटर लम्बी और ९०० किलो से ज़्यादा भारी! उसे जल्दी किसी अस्पताल पहुँचना था। आखिर जान का सवाल था।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"जब उसे तट पर प्रकाश स्तम्भ दिखाई दिया वह ख़ुशी से उछल पड़ी। पिशि कुदरत के अस्पताल पहुँच गयी थी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"...घर वह तब बनता है जब उसमें परिवार रहता है।"
सबसे अच्छा घर
"हमने देखा है कि गुब्बारे के अंदर मुँह से हवा भरने के बाद वह फूल जाता है। पिताजी अपनी साइकिल के टायर में पंप से हवा भरते है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"आटे में जैसे ही पानी डाला जाता है, यह अणु उसे पी लेते हैं। वे पानी पीने के बाद बड़े और मोटे हो जाते हैं। वे फैल जाते हैं। ज़ाहिर है कि उनके पास आराम से बैठने के लिये जगह नहीं होती है – इसलिए वह एक दूसरे को छूते हैं और धक्कामुक्की करते हैं। वे एक दूसरे से चिपक जाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?
"कभी-कभी खेलते समय आप भी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक क़तार बनाते हैं और फिर वह पूरी क़तार ही एक साथ चलती है। उसी तरह कण भी एक दूसरे के साथ चिपक कर एक नेटवर्क सा बना लेते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?
"अम्मा ने आटे को गूँध लिया है। वह अब अपनी हथेली में थोड़ा सा तेल लगा कर उसे अच्छी तरह गूँधने के लिये कह रही है। आटे को अच्छी तरह गूँधने के लिये मजबूत हाथ चाहिए। उनका कहना है कि अगर आटे को अच्छी तरह गूँधा नहीं जाता है तो पूरी नहीं फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"इस गूँधे हुये आटे को अम्मा थोड़ी देर के लिये एक तरफ़ रख देती हैं। अब वह खीर बना रही हैं जैसे ही वह पूरियाँ बेलना शुरू करेंगी, हम वापिस आ जायेंगे।"
पूरी क्यों फूलती है?
"अम्मा और बाबा दोनों तैयार हैं। अम्मा ने कढ़ाई चढ़ा (फ्राई पैन चढ़ा) कर उस में थोड़ा तेल डाल दिया है। वह गूँधे हुये आटे से थोड़ा सा आटा लेती हैं। अब वह एक पूरी बेल रही हैं। गर्म तेल में पूरी को डालते हैं। थोड़ी देर में पूरी फूल जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"बाबा अब पूरी को पलट देते हैं ताकि वह दूसरी तरफ़ से भी सुनहरी हो जाये। उन्होंने कढ़ाई से पूरी निकाल ली है और उसे एक बर्तन में रख दिया है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"कभी-कभी पूरी को बेलने के बाद उस में जानबूझ कर एक कांटे से छोटे-छोटे छेद किये जाते हैं ताकि तलते समय जो भाप बने वह छेद से बाहर निकल जाये। इसी वजह से पूरी फूल नहीं सकती।"
पूरी क्यों फूलती है?
"एक दिन, विज्ञान की कक्षा में खिड़की के बाहर वह आकाश में पंख फैलाए उड़ती चील देख रही थी। वह चिड़िया कितनी खुश होगी! उसे हवाई जहाज़ को उड़ते देखना भी बहुत पसंद था।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"कुछ ही दिनों में वह पशु-पक्षियों के बारे में बहुत कुछ जान गई और यह भी कि हम हवाई जहाज़ की तरह क्यों नहीं उड़ सकते!"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"2. 'फ़्लाइ - डोंट फ़्लाइ' गेम: मित्रों का एक समूह बनाओ और एक -दूसरे को बिना छुए कमरे के चारों तरफ़ जहाज़ की तरह उड़ो। डेन (चोर) एक कोने में खड़ा होकर उड़ने वाली और ना उड़ने वाली चीज़ों के नाम कहेगा। जैसे ही वह किसी ना उड़ने वाली चीज़ (जैसे कि मेज़/टेबुल) कहे तो जहाज़ों को ज़मीन पर उतरना (बैठ जाना) होगा। जो ग़लती करेगा, वह अगला डेन होगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"मुत्तज्जी इन जुड़वां भाई-बहन की माँ की माँ की माँ थीं! ओर वह मैसूर में अज्जी के साथ रहती थीं, जो इन दोनों की माँ की माँ, यानी नानी, थीं। किसी को पता नहीं था कि मुत्तज्जी का जन्मदिन असल में कब होता है, लेकिन अज्जी हमेशा से मकर सक्रांति की छुट्टी के दिन उनका जन्मदिन मनाती थीं।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""ओह! दावत! फिर तो वहाँ बहुत सारे केक रहे होंगे!" पुट्टी बोली। "वह कौन से राजा थे, मुत्तज्जी? अगर आप को यह पता हो तो हम जान सकते है कि वह यहाँ कब आए थे। फिर उसमे 5 जोड़ देने से पता चल जाएगा कि आप कब पैदा हुईं थीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"बड़े दुख से मुत्तज्जी ने कहा, "हाँ, उस साल दशहरे के त्यौहार के समय, हमारे महाराजा ने एक बड़े बांध और उसके पास कई सुंदर बागों का उद्घाटन किया था। लेकिन मै वह सब नहीं देख सकी थी क्योंकि मैं बम्बई में थी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""बड़ा बांध?" पुट्टा उठ के बैठ गया। "क्या वह अब भी है?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""हाँ, के आर एस।" मुत्तज्जी ने बड़े प्यार से अज्जी को देखा और कहा, "तुम्हारी अज्जी मेरी पाँचवी संतान थी, सबसे छोटी, लेकिन सबसे ज़्यादा समझदार। तुम जानते हो बच्चों, मेरे बच्चे ख़ास समय के अंतर पर हुए। हर दूसरे मानसून के बाद एक, और जिस दिन तुम्हारी अज्जी को पैदा होना था, उस दिन तुम्हारे मुत्तज्जा का कहीं अता-पता ही नहीं था। बाद मेँ उन्होंने बताया कि वो उस दिन ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी का भाषण सुनने चले गए थे। और उस दिन उन्हें ऐसा जोश आ गया था कि वह सारे दिन बस "भारत छोड़ो” के नारे लगाते रहे। बुद्धू कहीं के... नन्हीं सी बच्ची को दिन भर परेशान करते रहे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""भारत छोड़ो!" पुट्टी की आँखें हैरानी से और फैल गयीं। "हमने इतिहास में पढ़ा है! पुट्टा, ये वह आंदोलन है जो 1942 में शुरू हुआ था, इसका मतलब है कि 1942 में ही...""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""मुत्तज्जी को लगता है की वह 16 साल की थीं जब उनकी शादी हुई थी," पुट्टी ने कहा,"लेकिन वह 15 या 17 या 18 साल की भी हो सकती थीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""और मुत्तज्जी का कहना है कि वह तब करीब 9 साल की थीं। अगर वह ठीक कह रही हैं, तो मुत्तज्जी 1916* मे पैदा हुई थीं!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""पर वह गलत भी तो हो सकती हैं," पुट्टी ने सोचते हुए कहा।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"अज्जा सोचने लगे, "1911... यह तारीख़ इतनी जानी-पहचानी सी क्यो लग रही है? आह! हाँ, उसी साल तो बम्बई में गेटवे ऑफ़ इंडिया बनाया गया था। और वह तो भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश राजा, जॉर्ज (पंचम) के स्वागत में बनवाया गया था। और तब एक नहीं, बल्कि कई बड़ी-बड़ी दावत हुई होंगी!" अज्जा ने ख़ुश होते हुए कहा।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"बिन्नी ने घास चबाते हुए सर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही थी। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर
"”नमक?“ धनी चौंक कर उठ बैठा, ”नमक क्यों बनायेंगे? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है।“
”हाँ, मुझे मालूम है।“ बिन्दा हँसा, ”पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?“"
स्वतंत्रता की ओर
"दोपहर को जब आश्रम में थोड़ी शान्ति छाई, धनी अपने पिता को ढूँढने निकला। वह बैठ कर चरखा चला रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"”ठीक है! मैं उन्हीं से बात करूँगा। वह ज़रूर हाँ कहेंगे!“ धनी दृढ़ होकर बोला और वहाँ से चल दिया।"
स्वतंत्रता की ओर
"गाँधी जी बड़े व्यस्त रहते थे। उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था। पर धनी को वह समय मालूम था जब उन्हें बात सुनने का समय होगा-रोज़ सुबह, वह आश्रम में पैदल घूमते थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"अगले दिन जैसे सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़ कर गाँधी जी को ढूँढने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बन्दगोभी देखते हुए बिन्दा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"यह डॉ. शेफील्ड का बेटा ल्यूसियस था, जिसने अब अपने दातुन को टूथपेस्ट के मर्तबान में डुबाने से इनकार कर दिया और फैसला किया कि वह आगे से दंतमंजन का उपयोग करेगा। लेकिन एक विचार उसके दिमाग में घूमता रहा - टूथपेस्ट के उपयोग का इससे बेहतर कोई तो तरीक़ा होगा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"टूका और पोई ने एक-दूसरे को हैरानी से देखा। उन्हें आस-पास कोई नहीं दिखाई दे रहा था। तभी उन्हें दुबारा वह आवाज सुनाई दी, "यहां ऊपर देखो, ऊपर.....।” टूका और पोई ने ऊपर-नीचे, अपने आस-पास, चारों ओर देखा, लेकिन उन्हें कोई भी नहीं दिखा।"
आओ, बीज बटोरें!
"कर उत्सुकता से भौंक रहा था जैसे मानो वह भी जानना चाहता हो कि पच्चा क्या कह रहा है।"
आओ, बीज बटोरें!
"कठोर भूरे रंग के नारियल का हर हिस्सा हमारे लिए उपयोगी होता है। उसके बाहर वाले बालों के हिस्से से रस्सी बनाई जाती है, वहीं अंदर का नरम सफेद हिस्सा कई प्रकार के भोजन में इस्तेमाल किया जाता है और नारियल पानी मज़ेदार पेय होता है, विशेषरूप से उस समय, जब बाहर बहुत गर्मी होती है। क्या आपको मालूम है कि आप अपने बालों में जो तेल लगाते हैं, वो कहां से आता है? वह तेल भी नारियल से ही निकाला जाता है।"
आओ, बीज बटोरें!
"हम सब अपने-अपने घर, एक विशाल से घर के अंदर बनाते हैं। वह घर है हमारी पृथ्वी!"
जीव-जन्तुओं के घर
"जब वह देख रहा होता है, मैं सुरक्षित रहता हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?
"आखिरकार राजू एक बड़े से हॉल में पहुँचा जिसकी दीवारे काँच की थीं। वह बाहर खड़े बहुत सारे हवाई जहाज़ देख पा रहा था।एक हवाई जहाज़ उड़ान भरने को तैयार था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
""चेची कितनी किस्मत वाली है। वह कितने हवाई-जहाज़ों में घूम चुकी है। मुझसे बड़े होने तक का इंतज़ार नहीं होता, अम्मा।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"दस मिनट बाद वह अपनी सीट पर ठीक तरह से कुर्सी की पेटी बाँध कर बैठ गए। जहाज़ चलने पर राजू खिड़की से बाहर देखने लगा। जहाज़ पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ा फिर देखते ही देखते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो गई। राजू को लगा कि उसकी कुर्सी थरथरा रही है।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"तितलियाँ! मुझे दिख रही हैं लाल,हरी और पीली तितलियाँ! अरे एक छोटी तितली मेरी अंगुली पर बैठी है! क्या आप को वह दिख रही है?"
तितलियां
""माँ, वह क्या है?""
टुमी के पार्क का दिन
"- जो लोग परवेज़ से धीरे से बात करते हैं, वह उन्हें बेहतर समझ पाता है, और ख़ास तौर से जब वे उसकी तरफ देखकर बात कर रहे हों। परवेज़ ठीक से सुन नहीं सकता है, पर वो देख, सूँघ, समझ और सीख सकता है, वह महसूस कर सकता है, और पकड़म-पकड़ाई खेल सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"आज घूम-घूम बड़े जोश में थी। वह पहली बार तैरने जाने वाली थी।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"अरे मिल गए घर वाले! वह खिलखिला कर हँसी और उस आवाज़ की ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"उसे अपना परिवार मिल गया था। वह लोग ज़्यादा दूर नहीं थे! घूम-घूम खिलखिला उठी, आवाज़ों की ओर तैरने लगी।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"तेज़ी से तैर कर घूम-घूम नदी के किनारे तक जा पहुँची। वह तैरती-तैरती थक गई थी। रेंगती हुई वह रेत पर पहुँची।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"उसने एक बड़ा सा साया अपनी ओर बढ़ते देखा। वह उसके पापा थे।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"घूम-घूम गंगा नदी में अपने बड़े से घड़ियाल परिवार के साथ रहती है जो दिन भर पानी में छपाके मार-मार कर शोर मचाता रहता है। वह रोज़ खाने के लिए मछलियों और कीड़े-मकोड़ों की तलाश में निकल जाती है। रोज़ ही घूम-घूम की मुलाकात तरह-तरह के जीवों से होती है। घोंघे, ऊदबिलाव, डॉल्फ़िन, मछुआरे, माँझी, बगुले, सारस, भैंस, साँप और कई दूसरे जीव उसे मिलते हैं।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"सत्यम को रविवार का इंतज़ार रहता है क्योंकि हर रविवार वह माँ के साथ खेत पर जाता है।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"हमारी ही तरह वह भी ज़्यादातर बढ़िया खाने और रहने की आरामदेह जगह या प्यार करने वाले परिवार की तलाश में एक से दूसरी जगह घूमते-फिरते हैं। कभी-कभी वे अपने उन दुश्मनों से बचने के लिए भी घूमते-फिरते हैं जो उन्हें पकड़ कर खा सकते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"ज़मीन पर रहने वाले जीवों में चीते सबसे ज़्यादा तेज़ी से दौड़ते हैं। वह फर्राटे भी लगाते हैं। क्या आप फर्राटे लगा सकते हैं?"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"टिड्डे अपने आकार की तुलना में कई ज़्यादा ऊँची कुदान मार सकते हैं। ख़ासतौर से तब, जब वह किसी शिकार करने वाले जीव की पकड़ में आने से बचना चाहते हों। क्या आप इतनी ऊँची कुदान मार सकते हैं?"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"“जाओ यहाँ से! मुझे सोने दो!” वह बुदबुदाई।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"अपनी हड़बड़ाहट में वह एक बड़े पत्थर"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"जो तुम इतनी सुबह-सुबह रो रही हो?” वह बोला।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"आंक छी! वह ज़ोर से छींकी।"
जादुर्इ गुटका
"ओ! नहीं... वह पैन तक पहुँच नहीं पा रही।"
जादुर्इ गुटका
"फिर वह फुट्टे को पलंग के नीचे सरकाती है"
जादुर्इ गुटका
"नारियल के पेड़ वाले मोटे-से भँवरे को गिनती बहुत पसंद है! वह फूलों की पत्तियाँ गिन रहा है!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"गुबरैला ने ज़ोर से धक्का दिया, और ज़ोर से, बहुत ज़ोर से! लेकिन वह उस नारियल के पेड़ वाले हट्टे-कट्टे भँवरे को पलट नहीं सकी।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"लेकिन वह सब मिलकर भी नारियल वाले भँवरे को पलट नहीं सके!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"तभी उसकी नजर एक मोमबत्ती पर पड़ी। वह उसकी ओर गया।"
मेंढक की तरकीब
"अगली शाम वह तालाब से बाहर आया।"
मेंढक की तरकीब
"मगर वह अपने पंख गीले नहीं करना चाहती।"
द्रुवी की छतरी
"सुनकर वह शरमा गया।"
कुत्ते के अंडे
"घूमते फिरते बच्चों की तरफ ताकते हुए वह एक जगह पर बैठ गई।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"लेकिन वह ज़रा भी ख़ुश नहीं है। उसका परिवार कोलकाता से दिल्ली जा रहा है, क्योंकि उन्हें अब वहीं रहना है।"
एक सफ़र, एक खेल
"माँ और बाबा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह और क्या कर सकते हैं। फिर बाबा मुस्कराए।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘कुछ देख रही हूँ मैं, नीले रंग का,’’ वह बोली।"
एक सफ़र, एक खेल
"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अपनी प्रजाति का वह आखिरी जीव था और सैकड़ों वर्षों से यह प्रजाति विलुप्त मान ली गयी थी। लोग नहीं जानते थे कि उस प्रजाति का जीवित अवशेष, जो एक को छोड़ अपने बाकी सारे पंख गँवा चुका था, अब भी अधनिया के जंगलों में विचरता था। गजपक्षी और गाँव वाले एक दूसरे से एक सुरक्षित दूरी बनाये रखते थे। पर मुनिया नहीं। हालाँकि चलते समय वह लँगड़ाती थी, लेकिन थी बड़ी हिम्मत वाली। अक्सर वह जंगल में घुस जाती और एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी को देखने के लिए झील पर जाया करती थी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"दिन के समय वह गजपक्षी झील के पास आया करता या तो धूप तापने या फिर झील में पानी छपछपाते हुए अकेला खुद से ही खेलने। कभी-कभी वह पानी में आधा-डूब बैठा रहता और बाकी समय उसका कोई सुराग़ ही न मिलता। तब शायद वह घने जंगल के किसी बीहड़ कोने में बैठा आराम कर रहा होता। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी एक पेड़ जितना ऊँचा था। उसकी एक लम्बी और मज़बूत गर्दन थी, पंजों वाली हाथी समान लम्बी टाँगें थीं और भाले जैसा एक भारी-भरकम भाल था। उसके लम्बे-लम्बे पंजे और नाखून डरावने लगते थे।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"पर मुनिया जल्द ही यह जान गयी कि वह शर्मीला और घासफूस खाने वाला एक शान्त पक्षी है। वह बस झील के किनारे लगे पौधे और पत्तियाँ चबाता रहता। मुनिया को महसूस हुआ कि उसमें और उस गजपक्षी में कुछ समानता है। सही तो है, विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उड़ नहीं सकता था और मुनिया दौड़ नहीं सकती थी! गाँव के बाकी सारे बच्चे उसके लँगड़ाने का मज़ाक उड़ाते और अपने खेलों में उसे शामिल न करते। इसलिए उसे अकेले रहना ही अच्छा लगता।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"इससे पहले कि वह खुला मैदान पार कर पाती, कोई गोलाकार चीज़ उसके पाँवों से आ टकरायी। उसे देखने के लिए वह रुकी। किसी पेड़ का वह एक खोखला गोलाकार फल था। विशाल गजपक्षी खेलना चाहता था! फलनुमा गेंद पकड़ने के लिए उसने अपना एक पंजा ऊपर किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"झिझकते-झिझकते उसने वह गेंद उसकी ओर फेंकी। आड़े-तिरछे ढुलक कर उसने गेंद को अपनी चोंच में पकड़ लिया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“नटखट का कहीं कोई नामोनिशान नहीं। हो सकता है बाड़े का दरवाज़ा ठीक से बंद न किया गया हो और वह भाग निकला हो।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के अलावा और कौन हो सकता है भला? उसे तो ख़त्म कर देना चाहिए!” दूधवाले ने कहा, “बरसों से यूँ चुपचाप पड़े-पड़े वह दुष्ट अपनी योजनाएँ बनाता रहा है!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"सब लोगों ने सहमति में हुंकारा। मुनिया यह सारी कार्यवाही चुपचाप देखे जा रही थी। वह बोलना चाहती थी, लेकिन जिसकी अनुमति नहीं थी उसकी सज़ा क्या होगी? और अगर वह बोलती भी तो कौन उसकी बात पर यकीन करता?"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“यही कि वह राक्षस मेरा दोस्त है, यह काम उसका नहीं है!” “इस लड़की का तो दिमाग़ फिर गया है!” पीछे से कोई आदमी चिल्लाया। बाकी सारे बच्चों ने मुँह बिचका दिये। “वह तो सिर्फ पत्तियाँ खाता है! तो फिर वह घोड़ा कैसे खा सकता है?” अपनी जगह से हिले-डुले बिना ही मुनिया चिल्लाकर बोली।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया एक पल को तो ठिठकी पर अगले ही पल उसे जंगल में आराम से सोते उस महाकाय का ख़याल आया। वह अगर नहीं गयी तो वह शायद अगली रात भी न देख पाये। एक गहरी साँस लेकर उस आधी रात को ही जंगल से होकर चन्देसरा जाने वाले रास्ते पर लँगड़ाते-लँगड़ाते चल पड़ी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"सूरज को नींद आई, वह सोने चला गया,"
और चीकू भी
"क्या वह गायब हो जाएँगी? मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"मैं उनका हाथ छोड़ देती हूँ। वह हाथ हिलाती हैं।"
स्कूल का पहला दिन
"क्या वह गायब हो जायेंगी? मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"मैं उनका हाथ छोड़ देती हूँ। वह हाथ हिलाती हैं।"
स्कूल का पहला दिन
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसकी भी नाक है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसके भी कान हैं।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब है उसकी भी आँखें हैं।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ, भऊ, भऊ, भऊ।”"
टिमी और पेपे
"इसका मतलब वह भी नाच सकता है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसकी भी जीभ है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊऊऊ।”"
टिमी और पेपे
"इसका मतलब वह मुझसे भी अच्छा सोच सकता है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “गुर्रर्रर्र...,” और मुड़कर अपनी छोटी सी पूँछ दिखाता है। इसका मतलब उसके पास पूँछ है और मेरे पास नहीं!"
टिमी और पेपे
"मुझे पेपे बहुत ही प्यारा लगता है। और वह भी मुझसे प्यार करता है।"
टिमी और पेपे
"नन्ही ने सलेट और चॉक उठाई। वह एक लम्बी रेलगाड़ी बनाना चाहती थी।"
छुक-छुक-छक
"बंदर ने पैर सहलाया। वह चुप न हुआ।"
वह हँस दिया
"भालू दादा ने गोद उठाया। वह चुप न हुआ।"
वह हँस दिया
"माँ हँस दीं। वह भी हँसने लगा।"
वह हँस दिया
"बंदर ने पैर सहलाया। वह चुप न हुआ।"
वह हँस दिया
"भालू दादा ने गोद उठाया। वह चुप न हुआ।"
वह हँस दिया
"माँ हँस दीं। वह भी हँसने लगा।"
वह हँस दिया
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसकी भी नाक है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसके भी कान हैं।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब है उसकी भी आँखें हैं।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ, भऊ, भऊ, भऊ।”"
टिमी और पेपे
"इसका मतलब वह भी नाच सकता है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसकी भी जीभ है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊऊऊ।”"
टिमी और पेपे
"इसका मतलब वह मुझसे भी अच्छा सोच सकता है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “गुर्रर्रर्र...,” और मुड़कर अपनी छोटी सी पूँछ दिखाता है। इसका मतलब उसके पास पूँछ है और मेरे पास नहीं!"
टिमी और पेपे
"मुझे पेपे बहुत ही प्यारा लगता है। और वह भी मुझसे प्यार करता है।"
टिमी और पेपे
"जब माँ के कमरे से चुप्पी हो, तो सोना जान जाती माँ ठप्पे पर अच्छे से रंग लगा रही होंगी। तब वह भी रंग लगाती। जब आवाज़ आती ठप्प तो सोना भी अपना ठप्पा कपड़े पर दबा देती।"
सोना बड़ी सयानी
"सृंगेरी श्रीनिवास के लिए वह बहुत ख़ास दिन था - उसका सालाना बाल-कटाई दिवस।"
सालाना बाल-कटाई दिवस
"हमेशा की तरह, वह गाँव के नाई के पास जाने के लिए घर से निकल पड़ा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस
"रोते हुए वह अकेले गाँव के जंगल से गुज़रा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस
"किल्ले से वह बन गया बूटा।"
सबरंग
"विवान यह सुनकर बहुत खुश हुआ और वह दोनो मौसी के साथ हाल के पीछे एक कमरे में गये।"
संगीत की दुनिया
"विवान को याद आया और वह गाते हुए बोला..."
संगीत की दुनिया
"काटो का मन हुआ, वह उचककर उन्हें छू ले। और इस चक्कर में वह पानी में जा गिरा। गिरते-गिरते काटो ने कुछ मछलियों को उसका रास्ता काटते हुए देखा। “मुझे बचाओ, बचाओ मुझे,” पानी की लम्बी घूँटें लेते हुए उसने उन्हें पुकारा।"
नौका की सैर
"विक्की को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। वह नौका के एक छोर से दूसरे छोर तक कूदता रहा और"
नौका की सैर
"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर
"जब नौका किनारे पर पहुँची, काटो जल्दी से जल्दी सबको अपने कारनामे के बारे में बता देना चाहता था। दिन की सारी घटनाओं के बाद, काटो का सिर नौका की तरह चक्कर खा रहा था। खाने की मेज़ पर जैसे ही उसने सिर रखा, उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह गहरी नींद में डूब गया।"
नौका की सैर
""मैं कहाँ ढूँढू, मैंने उसे कहाँ रख दिया?" वह हमेशा कहती रहतीं। अपनी ऐनक के बिना, वह ऐनक नहीं ढूँढ़ सकतीं। इसलिए उन्हें मेरी ज़रूरत है, उनकी आँखें बनकर उनकी आँखें ढूँढ़ने के लिए!"
नानी की ऐनक
""सचमुच! मैं बड़ी बेवकूफ़ हूँ। शुक्रिया ॠचा बेटी!" वह हँसती हुई कहतीं।"
नानी की ऐनक
"मैंने उसे हर जगह ढूँढ़ा, जहाँ वह अक्सर रखी रहती।"
नानी की ऐनक
"नहीं... कहीं नहीं मिली। कहाँ गई वह ऐनक?"
नानी की ऐनक
"तुम्हें तो पता ही है कि वह कितनी गप्पी है! हम दोनों ने कई बार चाय पी और वे सारे लड्डू खा गई जो तुम्हारी माँ ने बनाए थे।" नानी बोलीं।"
नानी की ऐनक
"राजू ने कहा,"नानी आज बहुत व्यस्त रहीं। वह अपनी पेन्शन के लिए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख रही थीं।""
नानी की ऐनक
"अम्मा बोली,"वह बहुत देर तक तुम्हारी मौसी से बात भी करती रही थीं। उन्होंने उस स्वेटर को भी पूरा किया, जो वह राजू के लिए बुन रही थीं। फिर वह टहलने निकल गई थीं।"अब मुझे खोज के लिए कई सूत्र मिल गए। मैंने घर में तुरंत ही नई जगहों पर ढूँढ़ना शुरू किया।"
नानी की ऐनक
"मेरे भाई को भूख लगी है।
वह चिप्स खाना चाहता है।"
चाचा की शादी
"शोर मचने लगा। ट्रेन आ रही है! ट्रेन आ रही है!
सब ट्रेन में चढ़ने की कोशिश में थे। पर वह कहाँ हैं, जिनकी शादी में हम सब जा रहे हैं?"
चाचा की शादी
"इसके बाद, वह मूँछ की नोकों को अपनी उँगलियों की चुटकी में पकड़ कर उमेठ देती है!"
पापा की मूँछें
"हर सुबह, वह अपना साबुन भिगोती है, ढेर सारा झाग बनाती है और फिर उससे अपनी तरह-तरह की मूँछें बनाती है।"
पापा की मूँछें
"“मेरी मूँछें सबसे अच्छी,” वह कहती है।"
पापा की मूँछें
"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना
"एक दिन एक पेड़ की डाल पर बैठी वह अखरोट खा रही थी। अचानक उसकी निगाह अपनी ही पूँछ पर पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ
"अपनी भारी पूँछ के साथ चलना उसे बहुत मुश्किल लग रहा था। किसी तरह पूँछ खींच-खींच कर वह पेड़ के पास पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
""पेड़ पर चढ़ कर थोड़ा आराम कर लूँ," सोचते हुए वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ
"लेकिन यह क्या? वह तो एक इंच भी पेड़ पर नहीं चढ़ पाई। कई बार उसने कोशिश की, हर बार वह गिर जाती। आखिर थक कर वह बैठ गई।"
चुलबुल की पूँछ
""नहीं, यह पूँछ ठीक नहीं है। इसे बदलना पड़ेगा," यह कहते हुए उसने अपनी लम्बी पूँछ को हाथ से उठाने की कोशिश की। किसी तरह लड़खड़ाते हुए वह दोबारा डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल में पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
"डॉक्टर बोम्बो ने बन्दर की पूँछ हटा कर बिल्ली की पूँछ लगा दी। "यह पूँछ बन्दर की पूँछ से तो हल्की है," सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी। पूँछ की अदला-बदली में वह अब तक बहुत थक गई थी। वह पास के एक पेड़ के पीछे लेट कर आराम करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ
""ओफ़! इस पूँछ के साथ तो मैं भाग भी नहीं पा रही हूँ। मेरी अपनी पूँछ कितनी हल्की थी। मैं कितने आराम से भाग सकती थी," चुलबुल अपनी गलती पर पछताने लगी। किसी तरह गिरते पड़ते वह फिर से डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
""डॉक्टर दादा, डॉक्टर दादा, मुझे बचाओ," चिल्लाती हुई वह अन्दर भागी। कुत्ता बाहर ही खड़ा रह गया। भों भों की आवाज़ आती रही।"
चुलबुल की पूँछ
"क्या हमें वह किताब खरीदनी चाहिए जिसमें खूब कहानियाँ हों?"
चलो किताबें खरीदने
"मैं फ़र्श पर बैठ गई।
वह कुर्सी पर बैठ गया।"
चलो किताबें खरीदने
"“जाओ यहाँ से! मुझे सोने दो!” वह बुदबुदाई।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"अपनी हड़बड़ाहट में वह एक बड़े पत्थर"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"जो तुम इतनी सुबह-सुबह रो रही हो?” वह बोला।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"सबसे पहले उसे दादीमाँ ने देखा। वह ज़ोर से सोफे पर कूदी और चिल्लाईं,"चूहा!""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"मिथुन चिल्लाया,"चूहा!" और वह बिल्ली के साथ भाग गया।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"वो खिड़की पर और ऊपर नहीं चढ़ सकते थे। वो ख़िड़की से नीचे उतरे और इससे पहले कि चूहा उनको देखता, वह बिस्तर के नीचे घुस गये।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"इस में ऊपर से कुछ भी उड़ेलें और देखें कितनी सफाई से वह बूँद-बूँद निकलता है।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
"स्कूल की घंटी बजी। चीनू पिता जी के पास दौड़ कर पहुँचा। चेहरे पर बड़ी सी
मुस्कान खेल रही थी। स्कूल में वह अकेला बच्चा था जिसके पिता जी उसे लेने आते थे।"
कबाड़ी वाला
"जब एक चौकीदार ने उन्हें रोका, चीनू नीचे कूदा। एक खाली बोरी लेकर वह अपने पिता जी के साथ गया। आज उन्हें जो भी सामान मिलेगा वह इस बोरी में भरा जायेगा।"
कबाड़ी वाला
"जहाँ वह उन्हें देख सकता था।"
कबाड़ी वाला
"सपने में वह उड़ने लगा।"
उड़ते उड़ते
"लेकिन चीकू ने उनकी बात नहीं मानी। वह हँसती रही और कूड़ा फैलाती रही।"
कचरे का बादल
"लेकिन वह उसे हटा नहीं सकी।"
कचरे का बादल
"अगले दिन, कचरे का वह बादल थोड़ा सा छोटा हो गया!"
कचरे का बादल
"रीमा आंटी थैलियाँ उठाकर वहाँ से चली गई! अगले दिन जब चीकू सो कर उठी, तो बादल और भी छोटा हो गया था।चीकू मुस्कराई, वह समझ गई थी कि उसे क्या करना है।"
कचरे का बादल
"लेकिन वह डरती कि कहीं कचरे का बादल फिर न आ जाए।"
कचरे का बादल
"कभी सोचा है कि जो कचरा हम कूड़ेदान में फेंक देते है उसका क्या होता होगा? नहीं, वह हमारे सिर पर बादल बन कर नहीं मँडराता लेकिन जो भी कचरा हम फेंकते है वो हमारे घर के पास बने बड़े से कचराघर में जमा हो जाता है। सब कुछ एक साथ, सड़ती सब्जियाँ, टॉफ़ी के रैपर, किताबों-कापियों के फटे पन्ने।"
कचरे का बादल
"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी
"“ए मुन्नी! परे हट, मैं तेरे अंडे खाने आया हूँ,” वह चहक कर बोला। मुन्नी समझदार गौरैया थी। वह झटपट बोली, “काका किसी की क्या मजाल कि तुम्हारी बात न माने? लेकिन मेरी एक विनती है। मेरे अंडों को खाने से पहले तुम ज़रा अपनी चोंच धो आओ। यह तो बहुत गन्दी लग रही है।”"
काका और मुन्नी
"काका खुद को बहुत बाँका समझता था। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह सा़फ -सुथरा नहीं दिख रहा। वह झटपट पानी की धारा के पास पहुँचा। वह धारा में अपनी चोंच डुबो ही रहा था कि धारा ज़ोर से चिल्लाई, “काका! रुको! अगर तुमने अपनी गन्दी चोंच मुझ में डुबोई तो मेरा सारा पानी गन्दा हो जायेगा। तुम एक कसोरा ले आओ। उस में पानी भरकर अपनी चोंच उसी में धो लो।”"
काका और मुन्नी
"काका जंगल में जा पहुँचा। उसे नुकीले सींगो वाला एक हिरन दिखा तो वह उससे बोला,"
काका और मुन्नी
"काका को ज़ोरों की भूख लगी थी, वह तेज़ी से मँडराया तभी..."
काका और मुन्नी
"इस किताब में आपने जितने भी चित्र देखे वह कोलाज"
काका और मुन्नी
"मन करता है वह भी झूले,"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"दूर कहीं वह बहती जाए।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"लहरें नाचें, वह भी नाचे"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"ओम पूरी मेहनत से चावल साफ़ करने लगा। रात भर वह जितना चावल साफ़ कर सकता था, उतना उसने किया। घनश्याम ने केवल भगवान की प्रार्थना की।"
मेहनत का फल
"कई तरह से बच्चों को पटा कर, मिन्नतें कर, जब वह बच्चों से रेडियो लेती तब तक समाचार खतम ही हो जाते थे। “अब समाचार समाप्त हुए,” बस कभी कभार यही सुनने को मिलता।"
मछली ने समाचार सुने
"उस दिन भी यही सिलसिला चल रहा था। पर वह समाचार का आखिरी हिस्सा सुन पाई। उसे बहुत खुशी हुई कि कम से कम इतना तो सुनने को मिला।"
मछली ने समाचार सुने
"लेकिन वह समाचार तो खुश करने वाला नहीं था, "नदी में दवाई छिड़क कर मछलियों को पकड़ने वाले आ रहे हैं। अनेकों नदियों से ऐसे ही वे लोग मछलियाँ पकड़ कर ले गये हैं।" यह सुनकर उसे गहरा धक्का लगा। बाकी मछलियों को भी यह समाचार पता चला।"
मछली ने समाचार सुने
"सभी को लगा कि दादा मछली ने अगर उस दिन वह समाचार न सुना होता तो यह दुर्घटना घट ही जाती।"
मछली ने समाचार सुने
"“मुमताज़ हमारी मौसेरी बहन ही तो है। और वह घर पर इसलिए है क्योंकि वह चल नहीं सकती,” कमरु और मेहरु इकट्ठा चिहुंकीं, “लेकिन हाँ, हमें उसके लिए भी कुछ मिठाई-पकवान तो ले ही लेना चाहिए।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"ईद के दिन भी दोनों दोस्त अपने पंछियों की उछल-कूद देख रहे थे। मुन्नु को लगा मुमताज़ आज बहुत उदास है, इतनी उदास कि कहीं वह रो ही न दे। “क्या बात है, आपा, आज इतनी गुमसुम क्यों हो? क्या हरदोई की याद आ रही है? क्या वहाँ तुम्हारे और भी पालतू पंछी हैं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“अरे, तो क्या वह कभी भी घर से बाहर नहीं जाती थीं?” मुन्नु हैरान था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“ऐसा है तो जल्दी से जाओ और अपनी नानी की चादर ले आओ, मैं तुम्हें एक खेल दिखाता हूँ,” मुन्नु रुआब से बोला। उसने मुमताज़ को चाँद पाशा के बारे में बताया। चाँद पाशा एक बीमार, बूढ़ा जादूगर था जिससे मुन्नु की मुलाकात अपने पिता के साथ फेरी लगाते हुई थी। उसने मुन्नु को एक बहुत ही मज़ेदार जादू सिखाया था। मुन्नु चाहता था कि मुमताज़ वह जादू देखकर अपना दुःख भूल जाए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ सोचने लगी। सोचने लगी वह बादलों के ऊपर उड़ रही है, नई-नई जगह देख रही है, नए-नए लोगों से मिल रही है। उसे लगा कि बखिया की तरह वह भी दूर"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"उनमें सबसे बुज़ुर्ग कशीदाकार, खुरशीद ने मुमताज़ को सलाम कहा और पूछा कि वह कहाँ से आई है। “जी, मैं लखनऊ से हूँ,” मुमताज़ ने भी बड़े मियाँ को सलाम किया, “मैं चिकनकार हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"खुरशीद ने मुमताज़ को वह दुशाला दिखाया जो वे काढ़ रहे थे, “देखो बेटी, मैंने कश्मीर के पंछी और फूल अपने शॉल में उतार लिए हैं। यह है गुलिस्तान, फूलों से भरा बग़ीचा और ये रहीं बुलबुल। यह जो देख रही हो, इसे हम चश्म-ए-बुलबुल कहते हैं यानि बुलबुल की आँख। जिस तरह बुलबुल अपने चारों ओर देख सकती है, वैसे ही यह टाँका हर तरफ़ से एक जैसा दिखाई देता है!” कह कर खुरशीद ने मुमताज़ को वह टाँका काढ़ना सिखाया।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“आखिर मुमताज़ ने यह सब कहाँ से सीखा? न वह कहीं बाहर आती-जाती है, न कोई नई चीज़ ही देखती है-तो फिर इतने सुंदर रंगों में ऐसी बढ़िया कढ़ाई वह कैसे बना लेती है,” मेहरु तुनक कर बोली।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अगले रोज़ मुन्नु ने देखा कि मुमताज़ अपने कबूतरों के पास उदास बैठी है। पूछने पर वह बोली “सफ़ेद कपड़े पर कढ़ाई करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि वह बहुत जल्दी गंदा हो जाता है। और अपने रंगीन धागों के बिना मैं काढ़ूँगी भी कैसे?” मुमताज़ मायूस थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"जब मुमताज़ इस विस्मय-नगरी से लौटी तो उसने एक बड़ा सफ़ेद कपड़ा लिया और उस पर सफ़ेद धागे से फूल काढ़ने बैठ गई। उसने हरदोई के आमों और कश्मीर के बादाम के जैसे पत्ते काढ़े और फूलों के गुच्छों से लदी झाड़ियों के बीचोंबीच एक बहुत ही खूबसूरत मोर भी! वह किसी जादुई चादर से कम नहीं लगती थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"शहर से मुमताज़ को न्यौता आया कि वह वहाँ आकर अपना ईनाम ले।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ कुछ पल तो ख़ामोश रही। फिर उसने अपना जादू अपनी बहनों को बताने का फ़ैसला कर लिया। मुस्करा कर, वह कमरु से बोली, “चलो, तुम भी मेरी नानी की चादर का एक कोना पकड़ो और ख़ूब ध्यान लगा कर सोचो।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कमरु ने कोना पकड़ तो लिया लेकिन वह कुछ पशोपेश में भी थी। आखिर मुमताज़ कह क्या रही थी! उसे तो वहाँ नाचती मुनिया और गुटरगूँ करते, खेलते हुए लक्का-लोटन के इलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"रज़ा के अब्बा, रहमत खान, भी कोई छोटे-मोटे आदमी नहीं थे। वह बादशाह के शाही दर्ज़ी थे। बादशाह उन्हीं के हाथ के अंगरखे पहनना पसंद करते थे-जी हाँ, चुस्त चूड़ीदार पायजामा और ढीला कोटनुमा कुरता-जिसे अंगरखा कहते हैं। यही थी बादशाह की पसंद की पोशाक।"
रज़ा और बादशाह
"इतिहास के कुछ रोचक तथ्य 1. रज़ा, बादशाह अकबर के शासनकाल में अब से 400 साल पहले रहता था। अकबर मुग़ल राजवंश का सबसे महान राजा था। वह एक प्रसिद्ध योद्धा भी था। उसे नये नमूनों के कपड़े पहनने का बहुत शौक़ था। वह पतंगबाज़ी और आम खाने का भी शौकीन था। 2. बाबर, मुग़ल राजवंश का संस्थापक, काबुल का राजा था। उसने 1526 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया। अकबर, बाबर का पोता था। वह भी एक बड़ा कामयाब सेनापति था और अपने 49 साल के शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं हारा।"
रज़ा और बादशाह
"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद
"मैं सबसे कहता हूँ कि वे जो कुछ भी जानना चाहते हैं ख़ुद तुमसे ही पूछ लें। मुझसे पूछने का क्या मतलब? मुझे कैसे पता हो सकता है कि तुम्हारे पास वह चीज क्यों है और वह कैसे काम करती है?"
थोड़ी सी मदद
"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद
"आज मेरी बड़ी दीदी का फोन आया। वह दिल्ली में इँजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं। मैंने उन्हें बताया कि हमारी कक्षा में एक लड़की है और उसका एक हाथ नकली है। दीदी ने बताया कि उसे 'प्रॉस्थेटिक हैंड’ कहते हैं।"
थोड़ी सी मदद
"सुमी अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकी। और खेलने के बाद भी उसे जूते के फीते बाँधने का ध्यान नहीं रहा, और वह उलझ कर गिर पड़ी। उसकी ठोड़ी में चोट लग गई। जब मैडम ने उसकी ठोड़ी की चोट देखी तो उस पर ऐंटीसेप्टिक क्रीम तो लगा दी, लेकिन उसे लापरवाही बरतने के लिए डाँट भी पड़ी। “जूतों के फीते बाँधे बिना पहाड़ों में दौड़ लगाई जाती है? घर जाते समय गिर पड़तीं या और कुछ हो जाता तो क्या होता?“"
थोड़ी सी मदद
"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद
"पिछली बार, हमारे स्कूल में तुम्हारे आने से पहले, हमें एक बाघ के बच्चे की फ़िल्म दिखाई गयी थी जो जँगल में भटक गया था। हम भी उसे लेकर चिंता में पड़ गए थे क्योंकि वह एक सच्ची कहानी थी। बाद में वह बाघ का बच्चा किसी को मिल जाता है और वह उसे उसके परिवार से मिला देता है। जानती हो ऐसी सच्ची कहानियों को डॉक्यूमेंट्री कहा जाता है। बाघ के बच्चे बड़े प्यारे होते हैं, हैं न?"
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"पिछले बरस, हमारे घर के पास एक पिल्ला रहता था। वह भी बहुत प्यारा था, लेकिन फिर वह बड़ा हो गया और पहले जैसा प्यारा नहीं रह गया। अच्छा, अब चलता हूँ! मैं"
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"पता नहीं इसका क्या मतलब है, लेकिन वे बहुत परेशान दिखते हैं। तुमने उनके बाल देखे हैं? वह ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने बिजली का नँगा तार छू लिया हो और उन्हें करारा झटका लगा हो! वैसे, मुझे लगता है कि रानी ने उनकी कुर्सी पर मेंढक रख कर अच्छा नहीं किया।"
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"ब. उससे कहेंगे कि उनकी परवाह न करे। वह बदतमीज़ हैं।"
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"अ. कक्षा की सबसे होशियार छात्रा से कहेंगे कि वह अपने नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे दे। ब. अध्यापिका से कहेंगे कि उसकी मदद करना उनका काम है। स. उससे पूछेंगे कि क्या उसे आपकी मदद चाहिए। 4. आपकी कक्षा की नई छात्रा जरा शर्मीली है। वह किसी के साथ नहीं खेलती। आप क्या करेंगे? अ. उससे कुछ नहीं कहेंगे। जब उसकी झिझक मिट जाएगी तब खेलने लगेगी। ब. उसे बुला कर खेल में शामिल होने को कहेंगे। स. उस के पास जा बैठेंगे। शायद वह बातें करने लगे।"
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