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Storybook paragraphs containing word (23)
"“बड़े हमेशा क्यों कहते रहते हैं, अभी नहीं, अभी नहीं?”"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"टीना मुझे हमेशा आईने में ही दिखती है ऐसे नहीं दिखती|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो
"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो
"मुत्तज्जी इन जुड़वां भाई-बहन की माँ की माँ की माँ थीं! ओर वह मैसूर में अज्जी के साथ रहती थीं, जो इन दोनों की माँ की माँ, यानी नानी, थीं। किसी को पता नहीं था कि मुत्तज्जी का जन्मदिन असल में कब होता है, लेकिन अज्जी हमेशा से मकर सक्रांति की छुट्टी के दिन उनका जन्मदिन मनाती थीं।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"ठीक 5 बजते ही, इंजी, स्कूल की किसी पुरानी बस की तरह दौड़ता-हाँफता चला आता है। इंजी, चॉकलेटी रंग की आंखों वाला उनका प्यारा पिल्ला है, जिसकी पूँछ हमेशा हिलने के बावजूद कभी नहीं थकती।"
आओ, बीज बटोरें!
"अरे नहीं! यह हमेशा के लिए साफ करना होगा।"
आनंद
"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"तबला हमेशा जोड़े में है आता,"
संगीत की दुनिया
"नानी की ऐनक हमेशा गुम हो जाती है।"
नानी की ऐनक
""मैं कहाँ ढूँढू, मैंने उसे कहाँ रख दिया?" वह हमेशा कहती रहतीं। अपनी ऐनक के बिना, वह ऐनक नहीं ढूँढ़ सकतीं। इसलिए उन्हें मेरी ज़रूरत है, उनकी आँखें बनकर उनकी आँखें ढूँढ़ने के लिए!"
नानी की ऐनक
"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें
"अनु हमेशा सोचा करती है, पापा अगर एक अच्छा कुरता पहन लें, सिर पर एक पगड़ी रख अपनी कमर पर एक तलवार लटका लें और एक घोड़े पर सवार हो जायें, तो कितने शानदार लगेंगे पापा!"
पापा की मूँछें
"वह हमेशा हमारी मदद करता है।"
चलो किताबें खरीदने
"क्योंकि उसके सिर पर हमेशा एक बादल मँडराता।"
कचरे का बादल
"कोई भी बच्चा ऐसी लड़की के साथ नहीं खेलना चाहता था जिसके सिर पर हमेशा कचरे का बादल मँडराता हो।"
कचरे का बादल
"अम्मा हमेशा उसे कूड़ा फैलाने से मना करती थी।"
कचरे का बादल
"फिर एक दिन अम्मा को बहुत गुस्सा आ गया, उसने कहा, "देखना अब यह कूड़ा हमेशा तुम्हारे साथ ही रहेगा!" चीकू हँसती रही।"
कचरे का बादल
"फ़िल्मी गीत सुनना सभी को बहुत पसंद था। छोटी-छोटी मछलियाँ, मेंढक और कछुए हमेशा रेडियो से चिपके रहते।"
मछली ने समाचार सुने
"तीनों पंछी बहुत ही प्रतिभाशाली थे। लक्का कितनी ऊँची उड़ान भर लेता था। और लोटन मियाँ डाल-डाल, पात-पात, कभी कलैया तो कभी कलाबाज़ी, और कभी तो नाचने लग जाते! मुनिया भी कम निराली नहीं थी। किसी भी इंसान की बोली बोलना उसके बाएँ पंख का खेल था। मुमताज़ हमेशा मुनिया से उसकी नक्ल उतारने को कहती रहती। जब"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद