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Storybook paragraphs containing word (48)
"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो
"अलग-अलग परिवारों को लाजपत नगर के बाज़ार ले जाना, अर्जुन को बहुत पसंद था। सैलानी जब चार पहियों की जगह तीन पहियों की सवारी चुनते तो उसका मन खुशी से झूम उठता। शिरीष जी के साथ कुतुब मीनार के पास पेड़ की छाँव में आराम करना उसे बहुत अच्छा लगता।"
उड़ने वाला ऑटो
"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो
"गर्मी के दिन थे, भीड़-भाड़ वाले एक चौराहे पर अर्जुन खड़ा इंतज़ार कर रहा था। शिरीष जी के पीछे अधेड़ उम्र की सुरमई बालों वाली, पुरानी सी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी।"
उड़ने वाला ऑटो
"“हम सबको और क्या चाहिए? थोड़ा-सा ज़ादू,” उस औरत ने कहा। बच्चे को कुछ रुपये देकर उसने दो बोतलें खरीद लीं। उसने एक बोतल शिरीष जी को दे दी।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी खुश होकर मुस्कराने लगे। मुस्कराते ही पान से रंगे उनके दाँत दिखने लगे। उन्होंने जल्दी से पानी पिया, फिर भीड़ छटने लगी। “लो जादू तो अभी हो गया,” शिरीष जी ने मज़ाक में कहा।"
उड़ने वाला ऑटो
"खुली साफ़ सड़क को देख कर शिरीष जी हैरान रह गए। शीशे में देखते हुए पीछे बैठी औरत से उन्होंने कहा, “हाँ बहन जी, बिलकुल जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो
"उसे सड़कों का बहुत बड़ा जाल दिखाई दिया मानो किसी शरारती मकड़े ने बनाया हो।
फटी आँखों से शिरीष जी खुशी में चीख रहे थे। न तो वह हैंडल बार को पकड़े हुए थे और न ही गाड़ियों से बचने की कोशिश कर रहे थे।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो
"अब तक शिरीष जी भी अपने हीरोनुमा चेहरे से थक चुके थे।"
उड़ने वाला ऑटो
"“क्या फ़ायदा इसका?,” वह सोचने लगे। जीवन में ऐसा कुछ बहुत पहले कभी उन्होंने चाहा था। लेकिन अब वह जान गए थे कि जो सच है वह सच ही रहेगा। शिरीष जी को अब अपना ही चेहरा चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन की हेड लाइट मद्धिम पड़ रही थी। उसे अब सब कुछ बेकार लग रहा था। वह शिरीष जी की बातें भाँप रहा था। अब वह उस औरत के भावों को भी समझ सकता था।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था।
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो
"ऊपर की एक खिड़की से उस औरत के नाती-नातिन ने हाथ हिलाया। ऑटो से नीचे उतर कर उसने शिरीष जी को किराया दिया।"
उड़ने वाला ऑटो
"वह आज बहुत खुश थे! आज तो मुत्तज्जी जी का जन्मदिन था और उन दोनों को रेलगाड़ी से उनसे मिलने जाना था।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे। अहमदाबाद के पास, महात्मा गाँधी के साबरमति आश्रम में-जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गाँधी जी की तरह, वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गाँधी जी के व्याख्यान सुनते।"
स्वतंत्रता की ओर
"उस दिन सुबह, धनी बिन्नी को हरी घास खिला कर, उसके बर्तन में पानी डालते हुए बोला, “कोई बात ज़रूर है बिन्नी! वे सब गाँधी जी के कमरे में बैठकर बातें करते हैं। कोई योजना बनाई जा रही है। मैं सब समझता हूँ।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”अम्मा, क्या गाँधी जी कहीं जा रहे हैं?“ उसने पूछा। खाँसते हुए माँ बोलीं, ”वे सब यात्रा पर जा रहे हैं।“"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर
"”नमक?“ धनी चौंक कर उठ बैठा, ”नमक क्यों बनायेंगे? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है।“
”हाँ, मुझे मालूम है।“ बिन्दा हँसा, ”पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?“"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”गाँधी जी तो थक जायेंगे। वे दाँडी बस या ट्रेन से क्यों नहीं जा सकते?“"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी उस झोंपड़ी के पास पहुँचा जहाँ गाँधी जी ठहरे थे। उसने खिड़की से झाँक कर देखा। आश्रम के कई लोग गाँधी जी से बात कर रहे थे। धनी को सुनाई दिया कि वे दाँडी पहुँचने का रास्ता तय कर रहे थे, जिस पर वे पैदल चलेंगे। अपने पिता को भी इनके बीच देखकर धनी खुश हो गया।"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी के पिता ने चरखा रोक कर बड़े धीरज से समझाया, ”स़िर्फ वे लोग जायेंगे जिन्हें महात्मा जी ने खुद चुना है।”"
स्वतंत्रता की ओर
"गाँधी जी बड़े व्यस्त रहते थे। उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था। पर धनी को वह समय मालूम था जब उन्हें बात सुनने का समय होगा-रोज़ सुबह, वह आश्रम में पैदल घूमते थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"अगले दिन जैसे सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़ कर गाँधी जी को ढूँढने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बन्दगोभी देखते हुए बिन्दा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"अन्त में, गाँधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने धनी को पुकारा, ”यहाँ आओ, बेटा!“ धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।"
स्वतंत्रता की ओर
"”बहुत अच्छा!“ गाँधी जी ने हाथ हिलाकर कहा, ”अब यह बताओ धनी कि तुम और बिन्नी सुबह से मेरे पीछे क्यों घूम रहे हो?“"
स्वतंत्रता की ओर
"”मैं आपसे कुछ पूछना चाहता था,“ धनी थोड़ा घबराया। ”क्या मैं आपके साथ दाँडी आ सकता हूँ?“ हिम्मत करके उसने कह डाला। गाँधी जी मुस्कराये, ”तुम अभी छोटे हो बेटा! दाँडी तो 385 किलोमीटर दूर है! स़िर्फ तुम्हारे पिता जैसे नौजवान ही मेरे साथ चल पायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”मैं बहुत अच्छे से चलता हूँ,“ गाँधी जी ने कहा।"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, ठीक बात है,“ कुछ सोचकर गाँधी जी बोले, ”मगर एक समस्या है। अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा? इतना चलने के बाद, मैं तो कमज़ोर हो जाऊँगा। इसलिये, जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे खूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे कि मेरी ताकत लौट आये।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”बिल्कुल सही। तो क्या तुम आश्रम में रह कर मेरे लिये बिन्नी की देखभाल करोगे?“ गाँधी जी प्यार से बोले।"
स्वतंत्रता की ओर
"1. मार्च 1930 में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये नमक कर के विरोध में दाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया। गाँधी जी और उनके अनुयायी, गुजरात में 24 दिन तक पैदल चले। पूरे रास्ते उनका स्वागत फूलों और गीतों से हुआ। विश्व भर के अखबारों ने यात्रा पर खबरें छापीं।"
स्वतंत्रता की ओर
"2. दाँडी में गाँधी जी और उनके साथियों ने समुद्र तट से नमक उठाया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी के बाद असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ और पूरे भारत में लोगों ने स्कूल, कॉलेज व दफ़्तरों का बायकॉट किया।"
स्वतंत्रता की ओर
"3. इस यात्रा में गाँधी जी के साथ 78 स्वेच्छा कर्मियों (वालंटियरों) ने भाग लिया। उन्होंने 385 किलोमीटर की दूरी तय की।"
स्वतंत्रता की ओर
"पापा जी कहते हैं,"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"मेरे दादा जी अपनी छड़ी कोने में रखते हैं।"
मेरा घर
"मेरे पिता जी अपनी मोटरसाइकिल बाहर रखते हैं।"
मेरा घर
"पहलवान जी ५० केले खाते।"
पहलवान जी और केला
""धन्यवाद बेटा! यह तो कमाल का है।अब मैं एक-एक शब्द साफ़ पढ़ सकता हूँ।" दादा जी बोले।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
"स्कूल की घंटी बजी। चीनू पिता जी के पास दौड़ कर पहुँचा। चेहरे पर बड़ी सी
मुस्कान खेल रही थी। स्कूल में वह अकेला बच्चा था जिसके पिता जी उसे लेने आते थे।"
कबाड़ी वाला
"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला
"जब एक चौकीदार ने उन्हें रोका, चीनू नीचे कूदा। एक खाली बोरी लेकर वह अपने पिता जी के साथ गया। आज उन्हें जो भी सामान मिलेगा वह इस बोरी में भरा जायेगा।"
कबाड़ी वाला
"जब तक उसके पिता जी उस महिला से बात कर रहे थे, चीनू ने सब सामान ऐसे समेटा कि किताबें सबसे ऊपर थीं।"
कबाड़ी वाला
"अब तो ठेले को धक्का देने के लिए चीनू को पिता जी का हाथ बँटाना पड़ा!"
कबाड़ी वाला
"घर पर सब सामान सहेज कर रखने के बाद चीनू के पिता जी ने उसे बुलाया।"
कबाड़ी वाला
"” जी हुज़ूर, उन्होंने खुद नमूने पसंद किये थे।“"
रज़ा और बादशाह
"”हुज़ूर,“रज़ा सँभल कर बोला,”धनी जी को पगड़ी की ज़रूरत पड़ेगी। हमने उनकी वाली तो ले ली है।“"
रज़ा और बादशाह