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Revision #0 (2020-07-13 02:20)
Nya Ξlimu
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Nya Ξlimu
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Storybook paragraphs containing word (57)

"अरे यह तो मेरी माँ हैं। वह खेत से काम कर के घर आई हैं।"
मैं नहीं डरती !

"“हाँ!” अम्मा बोली, “तुम्हारे रात के दोस्त रात को ही अपना काम करते हैं। वे रात को ही खाते और खेलते हैं। वे दिन में आराम करते हैं। तुम अब सो जाओ। नींद तुम्हें ताकत देगी, ताकि कल तुम अपने दिन के दोस्तों के साथ खेल सको। सो जाओ मेरे प्यारे बच्चे!”"
सो जाओ टिंकु!

"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद 
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
 अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
 एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू 
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था। 
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
 उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
 वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो

"मधुमक्खियाँ एक बहुत फायदे के काम के लिए भी भन-भन करती हैं; वे पराग यानि छोटे-छोटे भुरभुरे दानों को एक फूल से दूसरे तक ले जाती हैं, जैसे कोई डाकिया चिट्ठियाँ पहुँचा रहा हो।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"इन छोटे भुरभुरे दानों से पौधे बीज बनाते हैं। मधुमक्खियाँ इन छोटे दानों को लाने-ले जाने के काम में बड़ी उस्ताद हैं। उन्हीं की वजह से कई नए पौधे फलते-फूलते रहते हैं।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"1. मधुमक्खी बहुत मेहनती होती है – सर्दी के मौसम में यह नो महीने तक ज़िंदा रह सकती है और गर्मियों में सिर्फ दो महीने तक! लगातार काम करने से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"2. मधुमक्खियों से जुड़ी एक मजेदार बात आपको बताते है, नन्ही मधुमक्खी के दिमाग की तरह काम करते समय इनका दिमाग बूढ़ा नहीं होता, वो बस किसी नन्ही मधुमक्खी के दिमाग की तरह काम करने लगता है अब आप भी चाहते है न एक मधुमक्खी बनना !"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"इंजिन बहुत ही मज़बूत यंत्र है जो हवाई जहाज़ के दिमाग की तरह (तेज़) काम करती है। जिस तरह पक्षी अपना दिमाग लगाते हैं और सीखते हैं कि कैसे उड़ा जाय,वैसे ही इंजिन विमान को ज़मीन से ऊपर की ओर धकेलती है और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"साबरमति में सबको कोई न कोई काम करना होता-खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था-बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसन्द था क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।"
स्वतंत्रता की ओर

"”पिता जी, क्या आप और अम्मा दाँडी यात्रा पर जा रहे हैं?“ धनी ने सीधे काम की बात पूछी।"
स्वतंत्रता की ओर

""वह महिला अफ़सर सुरक्षा जाँच टीम की सदस्य है। उन्हें इस बात का ध्यान रखना होता है कि कोई भी यात्री अपने सामान में विस्फोटक या चाक़ू जैसी ख़तरनाक चीज़ें न ले जा पाए। हमें उनके काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

""पायलॅट का काम बहुत महत्वपूर्ण होता है ना अम्मा?""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने आप खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"मुझे अभी काम करने हैं।”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“यही कि वह राक्षस मेरा दोस्त है, यह काम उसका नहीं है!” “इस लड़की का तो दिमाग़ फिर गया है!” पीछे से कोई आदमी चिल्लाया। बाकी सारे बच्चों ने मुँह बिचका दिये। “वह तो सिर्फ पत्तियाँ खाता है! तो फिर वह घोड़ा कैसे खा सकता है?” अपनी जगह से हिले-डुले बिना ही मुनिया चिल्लाकर बोली।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अब भीमा खुश था। यह तरक़ीब काम आई!"
भीमा गधा

"पुताई वाले अपने काम में लगे थे। उनमें से एक सीढ़ी पर था, और दूसरा छत से झूले पर लटक रहा था।"
नन्हे मददगार

"वीना और विनय ने रंग के दो डिब्बे उठाए और हो गए काम के लिए तैयार।"
नन्हे मददगार

"आख़िरकार काम खत्म हुआ। उन्होंने ज़मीन पर गिरे रंग को पोंछा। उन्होंने दीवार पर गिरे रंग को पोंछा।"
नन्हे मददगार

"पहलवान फिर फिसला और गिरा धड़ाम से। ‘‘अच्छी कलाबाज़ी खाते हो। तुम्हें तो सर्कस में काम करना चाहिये।’’ गप्पू हँस पड़ा।"
पहलवान जी और केला

"माँ और सोना एक साथ काम करने लगे।"
सोना बड़ी सयानी

"बड़े-बड़े मैं काम करूँगा दुनिया भर में नाम करूँगा।"
सबरंग

"अम्मा गई काम पर बाहर"
सबरंग

"घर वालों के काम न आए"
सबरंग

"“यह ब्लॉक किस काम के हैं?”"
जंगल का स्कूल

"मुझे अभी काम करने हैं।”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“इतनी गर्मी में तो यह बहुत कड़ा काम है,”"
काका और मुन्नी

"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल

"जब देखा गया तो चावल की पूरी बोरी उसी तरह थी। फिर मुखिया ने फ़ैसला सुनाया – “मेहनत करने से ही कार्य सफ़ल होता है। केवल ईश्वर के ऊपर आश्रित होकर प्रार्थना करने से कोई भी काम पूरा नहीं होता। अतः ओम ने ज़्यादा मेहनत की है। अतः उसे ज़्यादा रुपया मिलेगा।”"
मेहनत का फल

"उनके अब्बू ठेकेदारी करते थे। चौक के थोक का सामान रखने वाले दुकानदार उन्हें कपड़ा देते थे और अब्बू घर पर ही कढ़ाई का काम करने वाली औरतों से उस कपड़े पर चिकनकारी करवाते थे। दुकानदार हर औरत को कढ़ाई के हर कपड़े का पैसा देता था। अब्बू भी कपड़े के हिसाब से आढ़त पाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के अब्बू के गुज़र जाने के बाद घर में पैसे की किल्लत रहने लगी थी। एक दिन आबिदा ख़ाला उसकी अम्मी से कहने लगीं कि मुहल्ले की औरतों को इकट्ठा करके कढ़ाई का काम शुरू करें।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"चाय के दौर चलते तो साथ ही चटपटी इधर-उधर की खूब गपशप भी होती लेकिन काम बराबर चलता रहता। शाम होती तो सब औरतें अपना काम समेटतीं और घर को रवाना होतीं। उन्हें अपने-अपने परिवार का खाना भी तो तैयार करना होता था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ काम करती तो लक्का और लोटन दाना चुग कर बादलों में गुम हो जाते लेकिन कुछ ही देर बाद थोड़ा और दाना चुगने लौट आते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“अरे वाह, तो तुम पाठशाला भी गई हो!” मुन्नु चहका। मुन्नु भी छुटपन से अपने पिता के काम में हाथ बँटाता आया था। इसलिए उसे कभी पाठशाला जाने का मौका नहीं मिला।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ अंदर से चादर ले आई। यह चादर नानी ने अपने हाथों से काढ़ी थी, उनका अपनी दोहती के लिए आखिरी तोहफा। इतना सुंदर काम था-किनारी की बखिया भी, एक-एक टाँका मोती जैसा पिरोया हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"किनारे पर लंबे-लंबे गर्म फिरन पहने, पीठ झुकाए कुछ आदमी अपने काम में मसरूफ़ थे। वे लोग बहुत ही महीन सुइयों से गर्म दुशालों पर कढ़ाई कर रहे थे-रंगबिरंगे फूल, पत्तियाँ और पंछी...हूबहू वादी के फूलों और पंछियों जैसे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ देर बाद खुरशीद ने मुमताज़ को कहवा-कश्मीरी चाय और ताज़े सिके गर्मागर्म नान पेश किए। उसने बताया कि कई साल पहले कश्मीर के कशीदाकारों ने लखनऊ के नवाब के यहाँ जाकर वहाँ के चिकनकारों के साथ काम किया था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"लेकिन मेहरु और कमरु को अपनी बहन का काम देखकर खुशी कम, जलन ज़्यादा हुई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दोनों बहनों ने एक तरकीब सोच ली। एक शाम जब मुमताज़ लक्का-लोटन के लिए दाने का इंतज़ाम करने निकली तो मेहरु ने काम करने के लिए मुमताज़ को दिया गया सारा रंगीन कपड़ा और धागे कहीं छिपा दिए। सिर्फ़ सफ़ेद कपड़ा ही बचा रहा, “तो अब देखते हैं,” मेहरु उँगलियाँ नचाती बोली, “हमारी प्यारी बहन की तारीफ़ कौन करता है!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“उदास न हो, आपा,” मुन्नु बोला, “नानी की चादर कब काम आएगी! जाओ, उसे ले आओ और खूब ध्यान लगाकर सोचो। कौन जाने आज तुम किस जादुई नगरी में पहुँच जाओ!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर जब औरतों ने चिकन के कुरते पहनना शुरु किए तो यह काम रंगीन कपड़े पर भी होने लगा। लेकिन चिकन की बेहतरीन कढ़ाई सफ़ेद मलमल पर सफ़ेद धागे से ही होती है। यही इस काम का सार है, उसकी रूह है...और एक काबिल कशीदाकारिन का सबसे बड़ा इम्तिहान भी।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के काम ने तो सभी का मन मोह लिया था। थोक के व्यापारी और चिकनदार-सबकी ज़ुबाँ पर हरदोई से आई एक छोटी-सी चिकनकारिन का ही नाम था! अपनी नुमाइशों में दिखाने के लिए कुछ आला, अमीर औरतें आबिदा खाला से मुमताज़ का काम माँगने आईं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"”धनी सिंह। ख्वाबगाह में काम करते हैं।“"
रज़ा और बादशाह

"स्कूल से घर लौटते हुए अली, गौरव, सुमी और रानी, मुझसे बार-बार मेरी इस नई ज़िम्मेदारी के बारे में पूछते रहे। मैंने बात टालने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो मालूम था कि मुझे क्या काम सौंपा गया है। मैंने उनसे कहा कि पता नहीं तुम लोग किस चीज़ के बारे में बात कर रहे हो। लेकिन यह बात सच नहीं थी। मुझे अच्छी तरह पता था कि वे किस के बारे में पूछ रहे हैं?"
थोड़ी सी मदद

"मैं सबसे कहता हूँ कि वे जो कुछ भी जानना चाहते हैं ख़ुद तुमसे ही पूछ लें। मुझसे पूछने का क्या मतलब? मुझे कैसे पता हो सकता है कि तुम्हारे पास वह चीज क्यों है और वह कैसे काम करती है?"
थोड़ी सी मदद

"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"तुम जानती हो न कि सँयोग क्या होता है? यह ऐसी बात है कि जैसे तुम कुछ कहो और थोड़ी देर में वही बात कुछ अलग तरीके से सच हो जाए। पिछले पत्र में मैंने तुम्हें सुमी और जूतों के फीतों के बारे में बताया था। और उसके बाद, आज, मैंने तुम्हें जूतों के फीते बाँधते हुए देखा। वाह, यह अद्भुत था! मैं सोचता हूँ कि तुमने यह काम मुझसे ज़्यादा जल्दी किया जबकि मैं दोनों हाथों से काम करता हूँ। अगर तुम मेरी दोस्त न होतीं तो मैं तुम्हारे साथ जूते के फीते बाँधने की रेस लगाता। नहीं, नहीं, शायद मैं तुम्हें कहता कि मुझे भी एक हाथ से फीते बाँधना सिखाओ।"
थोड़ी सी मदद

"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद

"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद

"मुझे लगता है कि मुझे यह बात पहले ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी- जब भी वार्षिकोत्सव आने वाला होता है, प्रिंसिपल साहब कुछ सनक से जाते हैं। वे तुम पर चिल्ला सकते हैं - वे किसी को भी फटकार सकते हैं। अगर ऐसा हो, तो बुरा न मानना। मेरी माँ कहती है कि वे बहुत ज़्यादा तनाव में आ जाते हैं, क्योंकि वार्षिकोत्सव कैसा रहा इससे पता चलता है कि उन्होंने काम कैसा किया है।"
थोड़ी सी मदद

"अ. कक्षा की सबसे होशियार छात्रा से कहेंगे कि वह अपने नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे दे। ब. अध्यापिका से कहेंगे कि उसकी मदद करना उनका काम है। स. उससे पूछेंगे कि क्या उसे आपकी मदद चाहिए। 4. आपकी कक्षा की नई छात्रा जरा शर्मीली है। वह किसी के साथ नहीं खेलती। आप क्या करेंगे? अ. उससे कुछ नहीं कहेंगे। जब उसकी झिझक मिट जाएगी तब खेलने लगेगी। ब. उसे बुला कर खेल में शामिल होने को कहेंगे। स. उस के पास जा बैठेंगे। शायद वह बातें करने लगे।"
थोड़ी सी मदद