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Revision #0 (2020-07-14 04:01)
Nya Ξlimu
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Storybook paragraphs containing word (49)

"मैं नाचती वो भी मेरे साथ नाचती| मैं खेलती वो भी खेलती| मैं हँसती तो वो भी मेरे साथ हँसती| पर मुझ से बात नहीं करती| कभी मेरे पास नहीँ आती|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|

"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो

"रात में कनॉट प्लेस की ख़ूबसूरती देखने से उसका मन कभी नहीं भरता। 
रेलवे स्टेशन की चहल-पहल और क्रिकेट मैच के बाद फ़िरोज़शाह कोटला 
मैदान से उमड़ती भीड़ उसे रोमांचित कर देती।"
उड़ने वाला ऑटो

"“लेकिन हम क्या कर रहे हैं?” अर्जुन ने सोचा। “हम कहाँ जा रहे हैं? अगर मुझे चलाया नहीं गया तो मेरा क्या होगा?” अर्जुन ने अब से पहले कभी इतना आज़ाद महसूस नहीं किया था, और न ही इतना परेशान।"
उड़ने वाला ऑटो

"“क्या फ़ायदा इसका?,” वह सोचने लगे। जीवन में ऐसा कुछ बहुत पहले कभी उन्होंने चाहा था। लेकिन अब वह जान गए थे कि जो सच है वह सच ही रहेगा। शिरीष जी को अब अपना ही चेहरा चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो

"हर सफ़र एक नया सफ़र, कभी न खत्म होने वाले एक लम्बे सफ़र का अनोखा हिस्सा।"
उड़ने वाला ऑटो

"3. इन्सानो की तरह मधुमक्खियाँ भी चेहरे पहचानती है! चेहरे के हर हिस्से को वो पहले ध्यान से देखती है फिर उसे जोड़ कर चेहरा याद कर लेती है! तो याद रखे कि किसी भी मधुमक्खी को कभी छेड़े नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"पक्षी उड़ने के समय अपने पंख फड़फड़ाते हैं, लेकिन हमने हवाई जहाज़ के पंखों को फड़फड़ाते हुए कभी नहीं देखा! पक्षी अपने पंख फड़फड़ाते हैं ताकि वे अपने शरीर को ऊपर धकेलने में हवा का उपयोग कर सकें।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

""फिर कुछ साल बाद," मुत्तज्जी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "मेरी शादी हो गयी। उस समय कानून था कि शादी के लिए लड़की की उम्र कम से कम 15 साल होनी चाहिए, और मेरे पिता कानून कभी नहीं तोड़ते थे। तो उस समय मेरी उम्र करीब 16 साल की रही होगी। और मेरी शादी के बाद जल्द ही तुम्हारे मुत्तज्जा को बम्बई में नौकरी मिल गयी और हम मैसूर छोड़कर वहाँ चले गए।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● क्या तुमने कभी दंत मंजन का उपयोग किया है? इसमें कितने तरह की खुशबू आ सकती है? क्या तुमने इसे खोजा है?"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"ठीक 5 बजते ही, इंजी, स्कूल की किसी पुरानी बस की तरह दौड़ता-हाँफता चला आता है। इंजी, चॉकलेटी रंग की आंखों वाला उनका प्यारा पिल्ला है, जिसकी पूँछ हमेशा हिलने के बावजूद कभी नहीं थकती।"
आओ, बीज बटोरें!

"यह कहकर पोई इमली के पेड़ से गले लग गई। पच्चा खिलखिलाया, ”आज से पहले मुझे कभी किसी छोटी लड़की ने गले नहीं लगाया है।  मुझे गुदगुदी हो रही है!”"
आओ, बीज बटोरें!

"”और हम भी इससे पहले कभी किसी बोलने वाले पेड़ से नहीं मिले!” टूका ने चहकते हुए कहा। ”इसलिए, हम सभी के लिए कुछ न कुछ नया है।” इतना सुनकर, पच्चा जोर से हँसा, और उसके हँसते ही, उसके डालों की सारी पत्तियाँ सुर्ख़ हरी हो गई।"
आओ, बीज बटोरें!

"आधा बिस्तर पर और आधा कक्षा में... फिर मुझसे सुबह की प्रार्थना कभी नहीं छूटती!"
क्या होता अगर?

""क्या कभी कोई मुझसे भी करेगा यारी?""
सूरज का दोस्त कौन ?

"“हाँ, मगर लगता है उसका गला खराब है! मैंने न, पहले कभी भी खराब गले वाली कोयल नहीं देखी। चलो, चलकर ढूँढते हैं उसे!” स्टेल्ला ने सुझाया।"
कोयल का गला हुआ खराब

"क्या कभी आपने सोचा है?"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"क्या आपने कभी सर्कस के बाज़ीगर देखे हैं?"
निराली दादी

"कभी उनकी ऐनक बाथरूम में, कभी बिस्तर पर तो कभी माथे के ऊपर होती।"
नानी की ऐनक

"मैं सोचता हूँ कि बारिश का मौसम सबको अच्छा लगता है। यह चारों मौसमों में सबसे अच्छा मौसम है। यह गर्मी के मौसम के तुरंत बाद आता है। बारिश के साथ कभी कभी आँधी आती है,बादल गरजते हैं और बिजली भी चमकती है।"
बारिश हो रही छमा छम

"क्या आपने कभी डायनासोर देखा है?"
बारिश में क्या गाएँ ?

"कभी फुदक कर पेड़ के ऊपर तो कभी पेड़ के नीचे। कभी दोनों पैरों पर खड़ी होकर छलाँगें लगाती तो कभी चिड़ियों के पीछे दौड़ लगाती।"
चुलबुल की पूँछ

"वह उस गाँव से बहुत दूर उ़ड गया और फिर कभी वापस नहीं आया।"
काका और मुन्नी

"कई तरह से बच्चों को पटा कर, मिन्नतें कर, जब वह बच्चों से रेडियो लेती तब तक समाचार खतम ही हो जाते थे। “अब समाचार समाप्त हुए,” बस कभी कभार यही सुनने को मिलता।"
मछली ने समाचार सुने

"तीनों पंछी बहुत ही प्रतिभाशाली थे। लक्का कितनी ऊँची उड़ान भर लेता था। और लोटन मियाँ डाल-डाल, पात-पात, कभी कलैया तो कभी कलाबाज़ी, और कभी तो नाचने लग जाते! मुनिया भी कम निराली नहीं थी। किसी भी इंसान की बोली बोलना उसके बाएँ पंख का खेल था। मुमताज़ हमेशा मुनिया से उसकी नक्ल उतारने को कहती रहती। जब"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“अरे, तो क्या वह कभी भी घर से बाहर नहीं जाती थीं?” मुन्नु हैरान था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“अरे वाह, तो तुम पाठशाला भी गई हो!” मुन्नु चहका। मुन्नु भी छुटपन से अपने पिता के काम में हाथ बँटाता आया था। इसलिए उसे कभी पाठशाला जाने का मौका नहीं मिला।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"प्रिय... जो भी हो, तुम जानती ही हो कि तुम कौन हो। और यूँ भी तुम यह पत्र कभी नहीं देख पाओगी।"
थोड़ी सी मदद

"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद

"गणित के सवाल, विज्ञान,फुटबॉल खेलना और स्कूल के कार्यक्रमों में गाना - यह सब उसे पसंद था। पर फिर क्यों, क्यों वह कभी भी समय से स्कूल नहीं पहुँच पाता था? मास्टर जी भी यह समझ नहीं पाते थे। अब परसों की बात थी कि कल्लू की खिल्ली उड़ाते हुए बोले थे कि बेहतर होगा कि कल्लू रात को स्कूल के बरामदे में ही सो रहे और यह सुन के सब बच्चे कल्लू पर हँसे थे।"
कल्लू कहानीबाज़

"“नहीं मास्टर जी,” कल्लू की आँखों में आँसू छलक आये और ये सचमुच के आँसू थे। जब चाहो निकाल दो वाले मगरमच्छी आँसू नहीं। वह सच में शो में भाग लेना चाहता था। “मास्टर जी!” उसकी आवाज़ में घबराहट और बेचारगी दोनों थी
 “मैं वादा करता हूँ मैं फिर कभी देर नहीं करुँगा। एक मौका...”"
कल्लू कहानीबाज़

"ध्यान चंद की मेहनत रंग लार्इ। लोग कहते हैं कि कर्इ बार वे रेल की पटरी पर अभ्यास किया करते थे और दौड़ते हुए कभी भी गेंद को पटरी से नीचे नहीं गिरने देते थे। शायद यही कारण था कि हॉकी के वास्तविक खेल में भी उन्होंने गेंद पर नियंत्रण के लिए बहुत नाम कमाया। आखिरकार उन्होंने इसे बड़ी मेहनत से रेल की पटरियों पर अभ्यास करके कमाया था।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"सेना में अपनी सेवा के दौरान समे वर का हमेशा स्थानांतरण होता रहा, इसलिए समे वर दत्त कभी भी अपने बच्चों के लिए निर्बाध शिक्षा को सुनिश्चत नहीं कर सके। अंत में जब सरकार ने उन्हें झाँसी में अपना मकान बनाने के लिए कुछ ज़मीन दी, तभी उनके जीवन में कुछ ठहराव आया। लेकिन तब तक ध्यान छह साल तक पढ़ कर स्कूल छोड़ चुके थे।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"दुर्भाग्य से तब तक भारत हॉकी की एक शक्ति से पतन की ओर अग्रसर था। वो विश् व कप शायद अंतिम महत्वपूर्ण टूर्नामेंट था जिसे भारत जीत पाया था। रिटायर्ड मेजर, जिसके पास इस खेल में विजय की इतनी गौरवशाली यादें थीं कभी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए कि जो खेल उनके दिल के इतने करीब था, उसमें उनकी टीम इतना संघर्ष कर रही थी। जब १९७६ के मांट्रियल ओलंपिक में भारतीय टीम छठे स्थान पर रही तब ध्यान चंद ने दर्द बयान करते हुए कहा, “कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा।”"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"ध्यान चंद ने अपने अंतिम वर्ष अपने प्रिय स्थान झाँसी में बिताए। वहाँ रहने वाले लोग इस महान पुरूष को देखा करते थे, जो कभी बाज़ार जा रहे होते तो कभी अपने मित्रों से मिलने अथवा कभी घर के काम निपटाने के लिए सार्इकिल पर जाते हुए दिखार्इ दे जाते थे। उनका निधन ३ दिसम्बर १९७९ को नर्इ दिल्ली के एक अस्पताल में हुआ। उनका पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ झाँसी हीरोज़ ग्राउंड पर अंतिम संस्कार किया गया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"आज हम उनके जन्मदिन, २९ अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं, और भारतीय खेल जगत के सर्वकालिक सर्वोच्च पुरस्कार, ध्यान चंद पुरस्कार को उनके नाम पर रखा गया है। यदि भारत खेल में पुन: कभी शक्तिकेंद्र के रूप में उभरता है तो हम कह सकते हैं कि इसके पीछे इस महान व्यक्ति की प्रेरणा है। एक जादूगर जो कभी हॉकी खेलता था, जिसने पूरी दुनिया को रोमांचित कर दिया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"मोरू को अंक अच्छे लगते थे। 1 का अंक उसे दुबला और अकेला सा लगता था तो 100 मोटा और अमीर सा। 9 कितना इकहरा और आकर्षक लगता खास तौर पर वह जब 1 के बगल में खड़ा हो कर 19 बन जाता। अंक उसे कभी न ख़त्म होने वाली सीढ़ी जैसे लगते। मोरू कल्पना करता कि वह एक-एक कर के सीढ़ी चढ़ रहा है।"
मोरू एक पहेली

"जब वह थक जाता तो खुद को सीढ़ियों के जंगले पर फिसलते हुए देखता और सब अंक उसकी ओर हाथ हिला रहे होते। दोपहर के खाने में अक्सर सबके आधे पेट रह जाने पर ख़त्म हो जाने वाले चावल से नहीं, उन दोस्तों से नहीं जिन्हें खेल जमते ही घर जाना होता, अंक हमेशा मोरू के पास रहते। कभी न ख़त्म होने वाले अंक कि जब चाहे उनके साथ बाज़ीगरी करो, छाँटो, मिलाओ, बाँटो, एक पंक्ति में लगाओ, फेंको, एक साथ मिलाओ या अलग कर दो।"
मोरू एक पहेली

"(दीदी, क्या उसकी अम्मी उसकी पिटाई नहीं करतीं? अगर घर पर मैंने कभी ऐसे गुस्सा दिखाया तो अम्मी तो मेरी कस कर पिटाई करतीं!)"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"भूल जाते हैं कि वह कभी ऊबे भी थे।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"मगर इधर रसोईए, संगीतकार, विदूषक, मालिश वाले और रानी का क्या हाल हुआ? वो रात भर सेवा में तत्पर रहे, उन्हें कभी यह नहीं पता होता था कि कब राजा जाग जाएँ और उन्हें बुला बैठें। और अब ये सब लोग दिन भर थके और चिड़़चिड़़े रहने लगे। वही हाल उनका भी था जो उनका इंतज़ार करते थे- रसोइए की बीवी, संगीतकार का बेटा, विदूषक का भाई, मालिश वाले के पिताजी, रानी की परिचारिका, परिचारिका का पति, पति का भाई, भाई का दोस्त, दोस्त के माँ - बाप... सारा शहर।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"रीफ़ ऑक्टोपस दूसरों की नज़रों से बचने के लिए अपना रंग बदल लेते है! कभी चिकने और कभी खुरदुरे हो जाते हैं। यह रीफ़ यानी मूंगे कि दीवार में बनी गुफ़ाओं में रहते हैं, या फ़िर समुद्र की तली में, रेती में घुस जाते हैं!"
गहरे सागर के अंदर!

"एक साल महानद सूखकर एक पतली सी धारा भर रह जाता तो दूसरे साल उसमें बाढ़ आ जाती। कभी उसके सैलाब में काफ़ी सारी रेत बह कर आ जाती, तो कभी उसकी धारा में तमाम रेत बह जाती। ज़ोरदार बारिश के दिन आए और चले गए। लेकिन जादव ने बाँस की रोपाई जारी रखी।"
जादव का जँगल

"सुबह नारँगी और दिन में नीला नज़र आने वाला आसमान कभी बैंगनी तो कभी गुलाबी नज़र आने लगा।"
जादव का जँगल

"जो कभी एक बिना-पेड़ों-वाली-जगह हुआ करती थी, ऐसी बँजर और बेकार जगह अब एक शानदार, हरियाली से भरी कई-पेड़ों-वाली-जगह बन गई थी।अब यहाँ हरे-भरे पेड़ लहलहा रहे थे।"
जादव का जँगल

"मीमी थोड़ा घबराई। उससे कभी किसी ने ऐसा सवाल नहीं किया था! सोचते हुए उसकी आँखें गोल हुईं, "क्या आप शेर की कहानी सुना सकती हैं?""
कहानियों का शहर

"क्या आप कभी चिड़िया घर में काम करना पसंद करेंगे?"
कहाँ गया गोगो?