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Revision #0 (2020-07-14 04:03)
Nya Ξlimu
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Storybook paragraphs containing word (45)

"मुझे पैरों की आवाज़ आ रही है! कौन है? कौन है?"
मैं नहीं डरती !

"झीं... झीं! वहाँ झीं... झीं की आवाज़ गूँजी।"
सो जाओ टिंकु!

"यह आवाज़ कैसी? टिंकु चारों ओर देखने लगा।"
सो जाओ टिंकु!

"“जब अँधेरा हो जाता है, मैं झीं... झीं... झनकार सी आवाज़ निकालता हूँ।”"
सो जाओ टिंकु!

"मधुमक्खियाँ, ख़ासकर भौंरे, उड़ते हुए भन-भन की ज़ोरदार आवाज़ करते हैं। यह आवाज़ उनके पंखों के ऊपर-नीचे हिलने से होती है। जितने छोटे पंख होते हैं, उन्हें उतनी ही तेज़ी से हिलाना पड़ता है। और जितनी तेज़ी से पंख हिलते हैं, उतनी ही ज़ोर से आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"वैसे क्या तुम अपनी साँसे सुन सकते हो? नहीं ना! पर मधुमक्खियाँ सुन सकती हैं। भन-भन की आवाज़ मधुमक्खियों के साँस लेने से भी होती है। उनका शरीर छोटा व कई टुकड़ों में बँटा होता है। तो जब साँस लेने से हवा अंदर जाती है, तो उसे कई टेढ़े-मेढ़े व ऊँचे-नीचे रास्तों को पार कर के जाना पड़ता है। और इसी वजह से भन-भन की आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"जल्दी-जल्दी दोसा बनाती हुई अम्मा की आवाज़ आ रही है।"
क्या होता अगर?

"अचानक कॉकपिट से *टीटीटी* जैसी आवाज़ आई। यह क्या आवाज़ थी? कहीं जेट शत्रु देश की सीमा में तो नहीं? या इंजन में कोई तकनीकी गड़बड़ी?"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"शनिवार को बिजली के ज़ोर-ज़ोर से कड़कने की आवाज़ हुई।"
लाल बरसाती

"“माँ, क्या यह बिजली के कड़कने की आवाज़ है, क्या अभी बारिश होगी?” मनु ने पूछा।"
लाल बरसाती

"“कू-ऊऊ, कू-ऊऊ!” स्टेल्ला आवाज़ देती है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“यह आवाज़ कैसी है!” स्टेल्ला ने हंसकर पूछा।"
कोयल का गला हुआ खराब

"तभी उसके कानों में कहीं से हलकी सी कोयल की आवाज़ सुनाई दी।"
कोयल का गला हुआ खराब

"शीला मिस कहतीं हैं कि उसकी आवाज़ भी ठीक हो जाएगी। समय लग सकता है, मगर ठीक ज़रूर होगी।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“पकड़ो मुझे।” परवेज़ ने भागते हुए आवाज़ दी। अब खेलने का समय जो था।"
कोयल का गला हुआ खराब

"बस तभी! तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी और भैया कमरे में आए।"
जादुर्इ गुटका

"इस पर मुखिया गाँव वालों की गुस्सैल आवाज़ों से भी ऊँची आवाज़ में बोला, “भाइयों, यह बात सही है कि हमारा सामना एक राक्षस से है, लेकिन हमारे पास संख्या की शक्ति है। इसलिए आइये इकट्ठे हो अपनी हिम्मत बाँध उसे ख़त्म करें!” बदले में एक सहमति भरी हुंकार गूँज उठी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"व्हूऊऊऊ... जंगल की फ़िज़ा में उल्लू की आवाज़ गूँज रही थी। दूर से एक सियार के गुर्राने की आवाज़ आयी। यूँ लगता था जैसे पेड़ों की छायाएँ अपनी काली-काली उँगलियाँ लहरा रही हों।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"माँ ने कहा, “सोना तुम बाहर बैठ कर छपाई कर लो। मेरी छपाई की आवाज़ ध्यान से सुनना।”"
सोना बड़ी सयानी

"जब माँ के कमरे से चुप्पी हो, तो सोना जान जाती माँ ठप्पे पर अच्छे से रंग लगा रही होंगी। तब वह भी रंग लगाती। जब आवाज़ आती ठप्प तो सोना भी अपना ठप्पा कपड़े पर दबा देती।"
सोना बड़ी सयानी

"मगर बीच में से हल्की सी, एक और आवाज़ आती,"
सोना बड़ी सयानी

"थोड़ी देर बाद माँ ने आवाज़ दी, “सोना तुमने मेरी चाभियाँ देखी हैं? मुझे कहीं मिल ही नहीं रहीं।”"
सोना बड़ी सयानी

""डॉक्टर दादा, डॉक्टर दादा, यह पूँछ तो बहुत भारी है। कोई हल्की पूँछ लगा दो," चुलबुल ने थकी आवाज़ में कहा।"
चुलबुल की पूँछ

"थकी हुई थी इसलिये उसे तुरन्त नींद आ गई। अचानक, ज़ोर की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूटी।"
चुलबुल की पूँछ

""डॉक्टर दादा, डॉक्टर दादा, मुझे बचाओ," चिल्लाती हुई वह अन्दर भागी। कुत्ता बाहर ही खड़ा रह गया। भों भों की आवाज़ आती रही।"
चुलबुल की पूँछ

"आज मैं अपने शरीर की आवाज़ 
सुनूँगी!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"मैं अपनी साँसों की आवाज़ ऊँची कर सकती हूँ... र-स-स!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"क्या मैं अपने दिल को और तेज़ कर सकती हूँ? और आवाज़ भी बढ़ा सकती हूँ...?
 हाँ, अगर मैं बीस बार ऊपर-नीचे कूदूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"शरीर की आवाज़ सुनने में मज़ा आता है
।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"कितनी शान्ति थी वहाँ!
 कहीं कोई आवाज़ नहीं।"
चलो किताबें खरीदने

"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला

"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुस्करा रही थी! अब ऐसे सपने में यह बेसुरी आवाज़! उफ़! कल्लू ने रज़ाई में से मुचड़ा मुँह बाहर निकाल के मिनमिनी आवाज़ में कहा, “शब्बो, अभी कैसे? मैं अभी तो सोया था!”"
कल्लू कहानीबाज़

"“रिहर्सल के लिये फिर से देर से आये हो इसलिये शो से तुम्हें निकाला जा रहा है।” मास्टर जी की आवाज़ मानो बर्फ़ीली चाबुक थी।"
कल्लू कहानीबाज़

"“नहीं मास्टर जी,” कल्लू की आँखों में आँसू छलक आये और ये सचमुच के आँसू थे। जब चाहो निकाल दो वाले मगरमच्छी आँसू नहीं। वह सच में शो में भाग लेना चाहता था। “मास्टर जी!” उसकी आवाज़ में घबराहट और बेचारगी दोनों थी
 “मैं वादा करता हूँ मैं फिर कभी देर नहीं करुँगा। एक मौका...”"
कल्लू कहानीबाज़

"रोज़ सुबह शिक्षक बोर्ड पर कुछ लिख देते थे। उसके बाद ऊँची आवाज़ में सब बच्चों को अपनी स्लेटों पर उसे उतारने का आदेश देते। फिर वह बाहर चले जाते। अगर लड़के बोर्ड पर लिखी चीज़ों की नकल अच्छे से करते तो वह उन पर नज़र डाल लेते। अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो वह नाराज़ हो जाते। जब वह गुस्से में होते तो बच्चों को बुरा भला कहते। और जब गुस्सा और बढ़ जाता तो वह उन्हें मारते थे।"
मोरू एक पहेली

"तभी बादलों से गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"तब जो आवाज़ होती है,"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"धमाके की आवाज़ के साथ"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"निद्रा देवी को यह बेचैनी पसंद नहीं आई। सो वो दूर ही रहीं। एक घंटे बाद, थकी हुई आवाज़ लेकर विदूषक थका हारा सा अपने घर लौट गया। और राजा? वो तो अब भी जाग रहे थे।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"मीमी चुपचाप सुन रही थी। उसे सिर्फ़ दीदी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। उसे लगा जंगल के विशाल पेड़ों की टहनियाँ हवा में हिल रही हैं। ऊँची-ऊँची घास सरसरा रही है। नन्हे शेर के बाल मुलायम थे।"
कहानियों का शहर

"मेयर की रौबीली आवाज़ गूँजी,"कहानियों ने तो नाक में दम कर रखा है। हमारा इतना बड़ा शहर ठप्प हो गया है। आखिर हम करें क्या?" कमरे में सन्नाटा छा गया।"
कहानियों का शहर

"खिड़की के बाहर हल्की सी आवाज़ तैर रही थी। वहाँ मेयर का माली उनके अंगरक्षकों को कहानी सुना रहा था।"
कहानियों का शहर

"उनकी आवाज़ साफ़ सुनाई दी, "ठीक है! एक शर्त है। आप ऐलान कर दीजिए कि इस शहर में हर सुबह और हर शाम को एक कहानी सुनाई जाएगी। इस तरह सबके पास कहानियाँ होंगी और वे अपना काम भी कर सकेंगे।""
कहानियों का शहर