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Revision #1 (2020-08-06 14:35)
Nya Ξlimu
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Storybook paragraphs containing word (33)

"घर जाते समय ज़ोर की हवा चली। वह मेरी टोपी उड़ा ले गई।"
चाँद का तोहफ़ा

"उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। काश कि वह इतनी बड़ी नहीं होती, १० मीटर लम्बी और ९०० किलो से ज़्यादा भारी! उसे जल्दी किसी अस्पताल पहुँचना था। आखिर जान का सवाल था।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"मधुमक्खियाँ, ख़ासकर भौंरे, उड़ते हुए भन-भन की ज़ोरदार आवाज़ करते हैं। यह आवाज़ उनके पंखों के ऊपर-नीचे हिलने से होती है। जितने छोटे पंख होते हैं, उन्हें उतनी ही तेज़ी से हिलाना पड़ता है। और जितनी तेज़ी से पंख हिलते हैं, उतनी ही ज़ोर से आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

""हमें जानना है, बस!" पुट्टा और पुट्टी एक साथ ज़ोर से बोल पड़े।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"“माँ, आज ज़रूर बारिश होगी, है ना!” मनु ज़ोर से बोला।"
लाल बरसाती

"“खाने की घंटी बज गयी!” भानु ज़ोर से चिल्लाया।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- परवेज़ जब सिर्फ पांच महीने का था तब उसके माता-पिता ने देखा कि वो ज़ोर की आवाजें बिलकुल भी नहीं सुन पाता था। वे उसे डॉक्टर के पास ले गए जिन्होंने बताया कि परवेज़ ने सुनने की शक्ति खो दी है। डॉक्टर ने समझाया कि परवेज़ की मदद कैसे की जा सकती है ताकि वो हर वो चीज़ सीख सके जो आम बच्चा सुन सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"आंक छी! वह ज़ोर से छींकी।"
जादुर्इ गुटका

"“अरे ओ गुबरैला बहन!” उसने ज़ोर से पुकारा।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"गुबरैला ने ज़ोर से धक्का दिया, और ज़ोर से, बहुत ज़ोर से! लेकिन वह उस नारियल के पेड़ वाले हट्टे-कट्टे भँवरे को पलट नहीं सकी।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"फिर गुबरैला ने ज़ोर से चिल्लाकर कहा, “ओ रंग-बिरंगे पतंगे, इधर आओ!”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"“अरे कोई उन जालीदार पंखों वाले पतंगों को बुलाओ,” गुबरैला ने ज़ोर से कहा। नौ जालीदार पंखों वाले पतंगे मदद के लिए आगे आए।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"इसके बाद पच्चीस कीड़ों ने पूरी ताक़त लगाकर ज़ोर से धक्का दिया, और फिर!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"उसे ज़ोर की भूख लगी।"
कुत्ते के अंडे

"“सही है, इधर बरसों की आराम की ज़िन्दगी ने उसे ख़तरनाक बना दिया है,” मुनिया के पिताजी ज़ोर देकर बोले। “आज एक घोड़ा गया है, कल को हमारे बच्चों की बारी हो सकती है...”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"सोना ने ज़ोर से बोला।"
सोना की नाक बड़ी तेज

"पकड़ी चोटी, ज़ोर लगाया"
सबरंग

"मिलकर उसने ज़ोर लगाया।"
सबरंग

"हाँफ-हाँफ कर ज़ोर लगाया।"
सबरंग

"सबने मिलकर ज़ोर लगाया"
सबरंग

"धीमे घोंघे ने ज़ोर से कहा, “चलो जल्दी,"
जंगल का स्कूल

"थकी हुई थी इसलिये उसे तुरन्त नींद आ गई। अचानक, ज़ोर की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूटी।"
चुलबुल की पूँछ

""वह कुत्ता मेरे पीछे पड़ गया है। मुझे किसी की पूँछ नहीं चाहिए। आप बस मेरी पूँछ लगा दो!" चुलबुल ने ज़ोर से सिर हिलाते हुए कहा।"
चुलबुल की पूँछ

"सबसे पहले उसे दादीमाँ ने देखा। वह ज़ोर से सोफे पर कूदी और चिल्लाईं,"चूहा!""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"माँ ने ज़ोर से कहा,"वहाँ!"और मेज़ पर चढ़ गईं।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला

"काका खुद को बहुत बाँका समझता था। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह सा़फ -सुथरा नहीं दिख रहा। वह झटपट पानी की धारा के पास पहुँचा। वह धारा में अपनी चोंच डुबो ही रहा था कि धारा ज़ोर से चिल्लाई, “काका! रुको! अगर तुमने अपनी गन्दी चोंच मुझ में डुबोई तो मेरा सारा पानी गन्दा हो जायेगा। तुम एक कसोरा ले आओ। उस में पानी भरकर अपनी चोंच उसी में धो लो।”"
काका और मुन्नी

"अब तक काका को बहुत ज़ोर की भूख लग चुकी थी,"
काका और मुन्नी

"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह

"”उन्हें एक पटका दे दो,“अकबर ज़ोर से हँसे।”वह धुले से नीले रंग वाला। उनकी पगड़ी तो अब हमने रख ली है।“"
रज़ा और बादशाह

"उसकी बहन मुनिया एक अल्मारी के पीछे से प्रकट हुई। उसके चेहरे पर भी चौड़ी मुस्कान खेल रही थी। दोनों इतनी ज़ोर से हँसे कि मुनिया को हिचकियाँ आ गईं।
 निकलते हुए कल्लू ने रसोई से एक सूखी रोटी उठा ली थी। उसे चबाते हुए वह खुद से बात करते हुए चला जा रहा था।"कहानी कल्लन मियाँ। एक नई, मानने लायक कहानी नहीं तो फिर कोने में खड़े पाये जाओगे।”"
कल्लू कहानीबाज़

"बरसात का मौसम आया और गरमी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुला। सबने सोचा कि अब तक मोरू भूल-भाल गया होगा और सबके साथ वह स्कूल चला जायेगा। “नहीं!” उसने ज़ोर से कहा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। सबने मोरू से कोई भी आशा रखनी छोड़ दी। शायद मोरू ने भी ऐसा ही किया। वह और बहुत कुछ करने लगा। बाज़ार में जा कर वह सब्ज़ीवालों की नाक में दम किये रहता।"
मोरू एक पहेली

"“क्योंकि रोहन ज़ोर से रोने लगा था।""
अम्मा जब स्कूल गयीं