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Storybook paragraphs containing word (191)
"मैंने अज्जी से पूछा, “क्या मैं कुछ लड्डू खा लूँ?”"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"लेकिन मैं कल तक रुकना नहीं चाहता।"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"मैंने अज्जा से पूछा, “क्या मैं अपने दोस्तों के साथ खेलने जाऊँ?”"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"लेकिन मैं अभी सोना नहीं चाहता।"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"मैंने मम्मी से पूछा, “क्या मैं ये कपड़े पहन लूँ?”"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"लेकिन मैं कल तक रुकना नहीं चाहता।"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"मैंने पापा से पूछा, “क्या मैं उस सुंदर से डिब्बे को खोल लूँ?”"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"“अभी नहीं, अभी नहीं। तुम्हें थोड़ा रुकना पड़ेगा!”
लेकिन मैं रुकना नहीं चाहता।"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"उस रात मैं ग़ुस्से में सो गया।"
अभी नहीं, अभी नहीं!
"अगले दिन, मैं जल्दी उठा और रसोई में गया। अज्जी ने कहा, “तुम ये लड्डू खा सकते हो।”"
अभी नहीं, अभी नहीं!
""तुम जाओ! मैं तुम्हारे साथ नहीं उड़ सकती.""
कहानी- बादल की सैर
"चाँद ने मेरी टोपी पहनी और खुशी से मुस्कराया। मैं भी मुस्कराया।"
चाँद का तोहफ़ा
"मैं और मेरी दोस्त टीना दोनों साथ-साथ रहतीं| मैं खिड़की से देखती और वो भी मेरे साथ-साथ देखती| जहाँ जातीं हरदम साथ रहतीं|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"मैं नाचती वो भी मेरे साथ नाचती| मैं खेलती वो भी खेलती| मैं हँसती तो वो भी मेरे साथ हँसती| पर मुझ से बात नहीं करती| कभी मेरे पास नहीँ आती|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"जब मैं रोती तो वो भी मेरे साथ रोने लग जाती| मैं क्या करूँ?"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"टीना मेरी सबसे अच्छी दोस्त है | मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ और हरदम साथ रहूँगी|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"मैं बड़ी हो गई हूँ । मैं घर के बाहर अकेली जाती हूँ ।"
मैं नहीं डरती !
"“जब अँधेरा हो जाता है, मैं झीं... झीं... झनकार सी आवाज़ निकालता हूँ।”"
सो जाओ टिंकु!
"मैं बड़ा हो गया हूँ। मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"सरला हड़बड़ा कर खड़ी हुई और बोली, "सॉरी मैडम!" मैं चील को देख रही थी। काश! हम भी चिड़िया की तरह उड़ पाते या फिर एक हवाई जहाज़ की तरह..."
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"मुत्तज्जी मुस्कराई, "देखो, मैं इतना जानती हूँ कि मेरे पैदा होने से करीब 5 साल पहले, हिन्दुस्तान भर के महाराजा और महारानियों के लिए दिल्ली में हुई दावत में हमारे महाराजा भी गए थे। एक अंग्रेज राजा और रानी भारत आए थे और तब हमारे महाराजा को सोने का तमगा मिला था।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""रुको," मुत्तज्जी बोलीं, "जरा कुछ और याद करने दो। ओह! जब मैं तुम्हारे बराबर की, यानि 9 या 10 साल की थी, तब मेरे काका बम्बई से हमसे मिलने आए थे और उन्होंने हमें ऐसी साफ़ रेलगाड़ी के बारे में बताया था जिसमें सफ़र करने से कपड़े गंदे नहीं होते थे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"बड़े दुख से मुत्तज्जी ने कहा, "हाँ, उस साल दशहरे के त्यौहार के समय, हमारे महाराजा ने एक बड़े बांध और उसके पास कई सुंदर बागों का उद्घाटन किया था। लेकिन मै वह सब नहीं देख सकी थी क्योंकि मैं बम्बई में थी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""इस साल मै 74 साल की हो जाऊँगी," अज्जी ने कहा। "तो मैं पैदा हुई थी...?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन-ही-मन बड़बड़ाया।"
स्वतंत्रता की ओर
"उस दिन सुबह, धनी बिन्नी को हरी घास खिला कर, उसके बर्तन में पानी डालते हुए बोला, “कोई बात ज़रूर है बिन्नी! वे सब गाँधी जी के कमरे में बैठकर बातें करते हैं। कोई योजना बनाई जा रही है। मैं सब समझता हूँ।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, बिल्कुल। मैं जानता हूँ वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाये। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो बेवकूफ़ी की बात हुई!“"
स्वतंत्रता की ओर
"”ठीक है! मैं उन्हीं से बात करूँगा। वह ज़रूर हाँ कहेंगे!“ धनी दृढ़ होकर बोला और वहाँ से चल दिया।"
स्वतंत्रता की ओर
"”मैं आपसे कुछ पूछना चाहता था,“ धनी थोड़ा घबराया। ”क्या मैं आपके साथ दाँडी आ सकता हूँ?“ हिम्मत करके उसने कह डाला। गाँधी जी मुस्कराये, ”तुम अभी छोटे हो बेटा! दाँडी तो 385 किलोमीटर दूर है! स़िर्फ तुम्हारे पिता जैसे नौजवान ही मेरे साथ चल पायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, ठीक बात है,“ कुछ सोचकर गाँधी जी बोले, ”मगर एक समस्या है। अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा? इतना चलने के बाद, मैं तो कमज़ोर हो जाऊँगा। इसलिये, जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे खूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे कि मेरी ताकत लौट आये।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”हूँ... यह बात तो ठीक है, गाँधी जी! बिन्नी तभी खाती है, जब मैं उसे खिलाता हूँ,“ धनी ने प्यार से बिन्नी का सर सहलाया, ”और स़िर्फ मैं जानता हूँ कि इसे क्या पसन्द है।“"
स्वतंत्रता की ओर
"“अरे वाह, तुम लोगों ने तो बहुत सारे बीज इकट्ठे कर लिए हैं", बैग देखकर पच्चा ने कहा। "वैसे क्या तुम लोग यह जानते हो कि ऐसे ही इमली के एक छोटे बीज से मैं बना हूँ? और अब मुझे देखो, कितना बड़ा हो गया हूँ। मेरी ढेर सारी शाखाएँ हैं जिन पर बहुत सारी गौरेया, गिलहरियाँ और कौए रहते हैं।“"
आओ, बीज बटोरें!
"हैलो! मेरा नाम पच्चा है, मैं एक इमली का पेड़ हूँ। लेकिन मेरे और भी कई नाम हैं। हिंदी में मुझे इमली, तमिल में पुली और बंगाली में तेंतुल कहा जाता है। वैज्ञानिक मुझे, टैमरिंडस इंडिका कहते हैं। चलिए मैं आपको अपने कुछ अन्य बीज मित्रों से मिलवाता हूँ। शायद उनमें से कईयों को आपने अपने भोजन की थाली में ज़रूर देखा होगा।"
आओ, बीज बटोरें!
"बारिश से ज़मीन पर तरह-तरह के नमूने बन जाते हैं। मेरे चाचा ने वर्षा का पानी एकत्रित करने के लिए कई जगह बालटियाँ और ड्रम रखे हैं। परनालों से छत का पानी इन ड्रमों में गिरता है। मैं इन्हें झरना कहती हूँ!"
गरजे बादल नाचे मोर
"बनारस वाली शुभा मौसी ने मुझे कुछ सुंदर गीत सिखाए हैं। इन गीतों को कजरी कहते हैं। क्या आपको मालूम है कि सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रसिद्ध गायक थे मियाँ तानसेन? कहा जाता है कि वो “मियाँ की मल्हार” नाम का एक राग गाते थे तो वर्षा आ जाती थी। मैं भी संगीत सीखूँगी-शास्त्रीय संगीत।"
गरजे बादल नाचे मोर
"स्कूल से घर लौटते हुए रास्ते में, मैं वर्षा से भीग गई, पर बड़ा मज़ा आया। हमारे घर के पास वाले खेत में मोर नाच रहे थे। लेकिन वो
तो भीग नहीं रहे थे!"
गरजे बादल नाचे मोर
"मनु ने बड़े वाले पेड़ से एक झूला बाँधा है और मैं अभी झूलना चाहती हूँ। झूलते हुए बारिश की ठंडी फुहार मेरे मुँह पर पड़ेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर
"क्या मैं थोड़ा लालच कर के एक-दो भुट्टे भी खा लूँ?"
गरजे बादल नाचे मोर
"लेकिन पेड़ से उतरना मैं जानती ही नहीं थी।”"
तारा की गगनचुंबी यात्रा
"आज, मैं एक अंतरिक्ष यात्री हूँ।"
आज, मैं हूँ...
"देखो देखो, मैं चन्द्रमा पर कितनी ऊँची छलांग लगा सकती हूँ!"
आज, मैं हूँ...
"आज, मैं हूँ एक शिल्पकार।"
आज, मैं हूँ...
"आज, मैं हूँ एक क्रिकेट खिलाड़ी।"
आज, मैं हूँ...
"आज, मैं हूँ, एक वनस्पति शास्त्री।"
आज, मैं हूँ...
"आज, मैं हूँ, एक नगाड़ा बजाने वाली।"
आज, मैं हूँ...
"आज, मैं इतना कुछ बनी।"
आज, मैं हूँ...
"कल... अब कल मैं क्या बनूँ?"
आज, मैं हूँ...
"मैं हूँ श्याम। मैं दस साल का हूँ।"
क्या होता अगर?
"ज़रा सोचिए, मैं क्या कुछ नहीं चबा लूँ!"
क्या होता अगर?
"मैंने पाया कि मैं वहीं खड़ा हूँ ब्रश हाथ में लिए।"
क्या होता अगर?
"जब वह देख रहा होता है, मैं सुरक्षित रहता हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?
"अब मैं भी हूँ अकेली"।"
सूरज का दोस्त कौन ?
""मेरा भी है अब एक दोस्त, अब मैं नही अकेला,"
सूरज का दोस्त कौन ?
"दिन में मैं और रात में तुम,"
सूरज का दोस्त कौन ?
""आज मैं पहली बार हवाई जहाज़ में यात्रा करूँगा!""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
""अम्मा मैं उठ गया हूँ।" अम्मा अटैची बंद कर रही थीं।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
""देवियों और सज्जनों, मैं हूँ आपकी कप्तान आर्या। विमान में आपका स्वागत है।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
""क्या मैं इस पर जा सकती हूँ?""
टुमी के पार्क का दिन
""देखो माँ, मैं बंदर की तरह झूल रही हूँ।""
टुमी के पार्क का दिन
"रात को, चाँद मुझे हँसकर देखता है। और मैं उसे उल्लू की गोल आँखों से देखता हूँ।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी
"खेलों के मैदान में, मैं एक गेंद के रूप में हूं, और कई और खेल मैं भी!"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी
"अपने ट्रक, हवाई जहाज़, कार, चक्र, चल नहीं पाएंगे... अगर मैं नहीं होता।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी
"“माँ, क्या मैं इसे अभी पहन सकता हूँ?”"
लाल बरसाती
"“माँ, अगर बारिश हुई तो? क्या मैं अपने साथ बरसाती ले जाऊँ?” मनु ने पूछा।"
लाल बरसाती
"“और मुझे यह मोटा-सा चश्मा नहीं पसंद, मगर मैं तो पहनती हूँ न इन्हें, कि नहीं?” दादी ने पूछा।"
कोयल का गला हुआ खराब
""देखो पापा! मैं तैर रही हूँ! देखो!""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""माफ़ करना, पर आराम करने के लिए सपाट चट्टान चाहिए तो मैं बता दूँ!" घोंघे ने कहा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""हाँ, हाँ! मैं ही हूँ घूम-घूम!" घूम-घूम ने चहक कर कहा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"उसने मन ही मन सोचा कि मैं चील की तरह आसमान में उड़ रहा हूँ - बादलों पर तैर रहा हूँ, बिना पँख फड़फड़ाए!"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"“अरे तुमने एक पैर तोड़ लिया? अगर मेरे पास इतने पैर होते तो मैं भी एक तोड़ लेती! देखो! देखो मुझे!! मेरे दो पैर हैं। एक दूसरे के साथ चलते है। कोई परेशानी नहीं! आसान!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“अरे, हाँ! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"लेकिन तुम्हारे इतने सारे पैरों में से मैं टूटा पैर कैसे खोजूँ?"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“धन्यवाद, प्रिय मकड़े! मैं नहीं जानती"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"कि तुम्हारे बिना मैं क्या करती!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"और विनती करते हुए कहा, “क्या तुम मुझे सीधा कर दोगी, मैं पलट गया हूँ?”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"“वो तो मैं भी जानूँ ”, रॉकी मिमियाया।"
रोज़ और रॉकी चले कम्पोस्ट बनाने
"हैलो! तुम्हें पता है, मैं बहुत फुर्तीला हूँ।"
अरे...नहीं!
"जब मैं कोई गाना सुनता हूँ तो कुछ अजीब-सा होने लगता है।"
अरे...नहीं!
"जब मैं देर करता हूँ, श्रीमती मेसक्रेनास बहुत गुस्सा हो जाती हैं।"
आनंद
"उन्नी अंकल तब तक नहीं मानते जब तक मैं कचरे का प्रत्येक अंश इकट्ठा न कर लूँ।"
आनंद
"सलीम और मैं मित्र हैं।"
आनंद
"‘‘और मैं देख रहा हूँ कुछ सफ़ेद,’’ बाबा बोले।"
एक सफ़र, एक खेल
"“लेकिन उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़ा नहीं खाया,” मुनिया ने लँगड़ाते हुए आगे बढ़कर बहुत धीमे स्वर में कहा। “जिस वक्त घोड़ा ग़ायब हुआ, उस वक्त मैं उसके साथ वहीं पर थी!” समूची सभा में एक गहरा सन्नाटा सा छा गया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“जैसा कि आप जानते हैं, कुछ साल पहले मैंने नटखट को बेच दिया था। कल मैं नटखट के भाइयों - बाँका और बलवान के द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में सवार आपके गाँव से गुज़र रहा था। मुझे नहीं मालूम कि किस तरह से नटखट अपने आपको छुड़ा हमारे पीछे-पीछे भागकर चन्देसरा चला आया। मैं उसे पहचान न सका और यह समझ न पाया कि इसका करूँ तो करूँ क्या। फिर आज सुबह मैंने इस नन्ही-सी बच्ची को एक झोंपड़ी से दूसरी झोंपड़ी जाते और एक गुमशुदा घोड़े के बारे में पूछते हुए देखा। लेकिन या इलाही ये माजरा क्या है?” तीसरी बार उसने अपना वही सवाल किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“मैं अब बड़ी हो गई हूँ,” मैं कहती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"मैं एक क़दम चलती हूँ। मैं दूसरा क़दम बढ़ाती हूँ। मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"जैसे मैं आगे बढ़ती जाती हूँ, माँ छोटी दिखती जाती हैं।"
स्कूल का पहला दिन
"क्या वह गायब हो जाएँगी? मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"मुझे नहीं लगता कि मैं बड़ी हो चुकी हूँ। मैं उनका हाथ पकड़ती हूँ और कहती हूँ, “मत जाओ!”"
स्कूल का पहला दिन
"सभी अंदर जा चुके हैं। सिर्फ मैं बाहर हूँ। टीचर दीदी बाहर आती हैं।"
स्कूल का पहला दिन
"वे मुझे देख मुस्कराती हैं। मैं भी मुस्कराती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"माँ कहती हैं, “रानी जब तुम बाहर आओगी मैं यहीं मिलूँगी।”"
स्कूल का पहला दिन
"“मैं अब बड़ी हो गई हूँ,” मैं कहती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"मैं दूसरा क़दम बढ़ाती हूँ। मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"जैसे मैं आगे बढ़ती जाती हूँ, माँ छोटी दिखती जाती हैं।"
स्कूल का पहला दिन
"क्या वह गायब हो जायेंगी? मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"मुझे नहीं लगता कि मैं बड़ी हो चुकी हूँ। मैं उनका हाथ पकड़ती हूँ और कहती हूँ, "मत जाओ!""
स्कूल का पहला दिन
"सभी अंदर जा चुके हैं। सिर्फ मैं बाहर हूँ। टीचर दीदी बाहर आती हैं।"
स्कूल का पहला दिन
"वे मुझे देख मुस्कराती हैं। मैं भी मुस्कराती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"माँ कहती हैं, “रानी जब तुम बाहर आओगी मैं यहीं मिलूँगी।”"
स्कूल का पहला दिन
"“देखो मेरे कान हैं,” मैं कहती हूँ।"
टिमी और पेपे
"मैं बताती हूँ, “देखो, मैं अपनी टाँगों पर नाच सकती हूँ।”"
टिमी और पेपे
"“अरे, मैं कैसे जाग गया!”"
भीमा गधा
"चूहा बोला, “अबसे मैं यही खाऊँगा।"
सैर सपाटा
"“देखो मेरे कान हैं,” मैं कहती हूँ।"
टिमी और पेपे
"मैं बताती हूँ, “देखो, मैं अपनी टाँगों पर नाच सकती हूँ।”"
टिमी और पेपे
"सोना बोली, “माँ, मैं भी छपाई करूँगी।”"
सोना बड़ी सयानी
"“माँ मैं ध्यान से सुन रही थी,” सोना हँसी, “चुप-ठप-छन, चुप-ठप-छन!”"
सोना बड़ी सयानी
"सोना ने कहा, "चाचा मैं भी रस पकाऊँगी।""
सोना की नाक बड़ी तेज
""अब मैं डाल रहा हूँ ‘गुलाबी शीरे’ की चुस्की का मसाला," चाचा ने तीसरे पतीले में करछी चलाई।"
सोना की नाक बड़ी तेज
"चूहा बोला, “अबसे मैं यही खाऊँगा।"
सैर सपाटा
"“शाम भी हो गई। अब मैं अपने बाल काटने का वादा कैसे पूरा करूँगा? हे भगवान, मेरी मदद करो!”"
सालाना बाल-कटाई दिवस
"बड़े-बड़े मैं काम करूँगा दुनिया भर में नाम करूँगा।"
सबरंग
"पहुचूँगा मैं झटपट भाग।"
सबरंग
"जलते ही मैं कूद पड़ूँगा"
सबरंग
"किधर-किधर मैं करूँ बताओ"
सबरंग
"भोलेपन में मैं कह उठती"
सबरंग
"कार्यक्रम शुरू होने में अभी समय है, क्या तुम अंदर आना चाहोगे? मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूँ।""
संगीत की दुनिया
"“रहने भी दे डरपोक! विक्की के रहते, तुझे किस बात का डर? मैं तो कितनी बार नाव पर गया हूँ।”आगे-आगे विक्की अकड़ते हुए चला।"
नौका की सैर
""नानी! आपका चश्मा आपके सिर पर है," मैं कहती।"
नानी की ऐनक
""सचमुच! मैं बड़ी बेवकूफ़ हूँ। शुक्रिया ॠचा बेटी!" वह हँसती हुई कहतीं।"
नानी की ऐनक
"मुझे लगता है कि नानी के अगले जन्मदिन पर एक और ऐनक खरीदने के लिए मैं पैसे जमा कर लेती हूँ।"
नानी की ऐनक
"अचानक मेरे सिर पर बारिश क़ी एक बूंद गिरती है,जब मैं आसमान की ओर देखता हूँ बूँदों क़ी झड़ी लग जाती है।"
बारिश हो रही छमा छम
"हर सुबह, जैसे ही उसके पापा दाढ़ी बनाना शुरू करते हैं, अनु भी उनके पास आकर बैठ जाती है। बड़े ध्यान से उन्हें दाढ़ी बनाते हुए देखती है। उसके पापा अपनी दो उँगलियों में एक छुटकू-सी कैंची पकड़े, कच-कच-कच... अपनी मूँछों को तराशने में जुट जाते हैं।
और अनु है कि कहती जाती है, “थोड़ा बाएँ... अब थोड़ा-सा दाएँ... पापा नहीं ना! आप अपनी मूँछों को और छोटा मत कीजिए!
आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे कट्टी हो जाऊँगी!”"
पापा की मूँछें
"उनके अस्पताल में विभिन्न जानवरों की पूँछ, टाँग, कान अलमारी में सजे हुए थे। जब तक डॉक्टर बोम्बो भालू आते हैं तब तक मैं अपने लिए एक पूँछ ही चुन लेती हूँ।"
चुलबुल की पूँछ
""ठीक है, अगर तुम नहीं मानती हो तो मैं तुम्हारी पूँछ बदल देता हूँ," डॉक्टर बोम्बो ने नाक पर चश्मा ऊपर खिसकाया।"
चुलबुल की पूँछ
""ओफ़! इस पूँछ के साथ तो मैं भाग भी नहीं पा रही हूँ। मेरी अपनी पूँछ कितनी हल्की थी। मैं कितने आराम से भाग सकती थी," चुलबुल अपनी गलती पर पछताने लगी। किसी तरह गिरते पड़ते वह फिर से डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
"आज मैं स्कूल नहीं जाऊँगी
।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"आज मैं टीवी नहीं देखूँगी
।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"आज मैं अपने शरीर की आवाज़
सुनूँगी!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"ताकि मैं अपने शरीर को सुन सकूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"हाँ, अब मैं अपनी साँस सुन सकती हूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"और अब, मैं अपने दिल की धड़कन सुन सकती हूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"क्या मैं अपने दिल को और तेज़ कर सकती हूँ? और आवाज़ भी बढ़ा सकती हूँ...?
हाँ, अगर मैं बीस बार ऊपर-नीचे कूदूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"अगर मैं अपनी उंगलियाँ अपनी कलाई पर रखूँ तो मैं अपनी नब्ज़ सुन सकती
हूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"सबसे ज़्यादा मैं सुन सकती हूँ..."
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"अब मैं अपने जबड़ों को चबाते हुए सुनना चाहती हूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"“अरे तुमने एक पैर तोड़ लिया? अगर मेरे पास इतने पैर होते तो मैं भी एक तोड़ लेती! देखो! देखो मुझे!! मेरे दो पैर हैं। एक दूसरे के साथ चलता है। कोई परेशानी नहीं! आसान!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“अरे, हाँ! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"लेकिन तुम्हारे इतने सारे पैरों में से मैं टूटा पैर कैसे खोजूँ?"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“धन्यवाद, प्रिय मकड़े! मैं नहीं जानती"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"कि तुम्हारे बिना मैं क्या करती!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
""क्या बताऊँ बेटा!मेरा चश्मा टूट गया है, और उसके बिना मैं पढ़ नहीं सकता," दादाजी बोले।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""ओह, परेशान न हों दादाजी, मैं अभी जाता हूँ और अपना बक्सा लेकर आता हूँ।""
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""धन्यवाद बेटा! यह तो कमाल का है।अब मैं एक-एक शब्द साफ़ पढ़ सकता हूँ।" दादा जी बोले।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""चिंता न करें चाचा, मैं बस यूँ गया और यूँ आया।" गुल्ली बोला।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""अरे बेटा! मैं दादाजी की ऊनी टोपी की सिलाई कर रही थी, और मेरे हाथ से सुई नीचे गिर गई," दादी माँ बोलीं।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""आप यहाँ आराम से कुर्सी पर बैठें, और मैं ले आता हूँ अपने छोटे, भूरे बक्से में से कुछ ख़ास चीज़।""
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""अब मैं इसे ज़मीन पर घुमाऊँगा और जल्द ही सुई मिल जाएगी।" गुल्ली बोला।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""क्या मैं तुम्हारा पेंसिल शार्पनर इस्तेमाल कर लूँ?" उसने स्वीटी से पूछा।"
कचरे का बादल
"“ए मुन्नी! परे हट, मैं तेरे अंडे खाने आया हूँ,” वह चहक कर बोला। मुन्नी समझदार गौरैया थी। वह झटपट बोली, “काका किसी की क्या मजाल कि तुम्हारी बात न माने? लेकिन मेरी एक विनती है। मेरे अंडों को खाने से पहले तुम ज़रा अपनी चोंच धो आओ। यह तो बहुत गन्दी लग रही है।”"
काका और मुन्नी
"“अजी ओ कुम्हार प्यारे, काका आया पास तुम्हारे एक कसोरा तुम बनाओ जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी
"थोड़ी मिट्टी मैं ले लूँ"
काका और मुन्नी
"जिसमें मैं पानी भर लाऊँ"
काका और मुन्नी
"“बरसात अभी हुई नहीं है। मैं अभी सूखा सख्त हूँ, मुझे खोदने के लिए फ़ौरन कोई नुकीली चीज़ ले आओ,” खेत बोला।"
काका और मुन्नी
"जिसमें मैं पानी भर लाऊँ"
काका और मुन्नी
"हिरन चिढ़ कर बोला “अरे अकलमन्द की पूँछ, ज़रा यह बता तो सही कि जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तू मेरा सींग कैसे ले सकता है?”"
काका और मुन्नी
"“अजी ओ भैया कुत्ते प्यारे, काका आया पास तुम्हारे आज तुम्हें दावत खिलवाऊँ मोटा-ताज़ा हिरन दिखाऊँ, बस सींग उसका मैं ले लूँगा उससे थोड़ी मिट्टी खोदूँगा मिट्टी कुम्हार को दे दूँगा जिससे बनाये वो एक कसोरा जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी
"जिसके सींग मैं ले लूँगा"
काका और मुन्नी
"जिसमें मैं पानी भर लाऊँ"
काका और मुन्नी
"“सूखा पुआल खा कर दूध कहाँ से दूँ? हाँ थोड़ी रसीली घास खाने को मिल जाए तो मैं ज़रूर तुम्हें दूध दे दूँ,” भैंस ने रम्भा कर जवाब दिया।"
काका और मुन्नी
"उसके सींग मैं ले लूँगा"
काका और मुन्नी
"जिसमें मैं पानी भर लाऊँ"
काका और मुन्नी
"ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी
"उसके सींग मैं ले लूँगा"
काका और मुन्नी
"जिसमें मैं पानी भर लाऊँ"
काका और मुन्नी
"यह झगड़ा बढ़ गया तो दोनों मुखिया के पास गए। मुखिया ने दोनों की बात सुनकर दोनों को एक-एक बोरी कंकड़ मिला चावल दिया और बोला, “कल साफ़ करके ले आना। फिर मैं फ़ैसला सुनाऊँगा।""
मेहनत का फल
"“आपको कोई तकलीफ़ न हो इसकी व्यवस्था मैं करूँगा।” सभी की मानो जान में जान आई। कॉफ़ी पीकर मुखिया उनको निश्चित रहने का ढाँढस बँधा कर घर गया।"
मछली ने समाचार सुने
"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“देखती हूँ न! देखती हूँ कि मैं भी लोटन और लक्का की तरह नीले आसमान में उड़ रही हूँ और न जाने कहाँ-कहाँ जाती हूँ सपनों में,” मुमताज़ बोली, “शायद उड़ते-उड़ते किसी रोज़ कहीं नानी से मुलाकात ही हो जाए...।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“ऐसा है तो जल्दी से जाओ और अपनी नानी की चादर ले आओ, मैं तुम्हें एक खेल दिखाता हूँ,” मुन्नु रुआब से बोला। उसने मुमताज़ को चाँद पाशा के बारे में बताया। चाँद पाशा एक बीमार, बूढ़ा जादूगर था जिससे मुन्नु की मुलाकात अपने पिता के साथ फेरी लगाते हुई थी। उसने मुन्नु को एक बहुत ही मज़ेदार जादू सिखाया था। मुन्नु चाहता था कि मुमताज़ वह जादू देखकर अपना दुःख भूल जाए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“अच्छा, अब अपनी आँखें बंद करो और चादर का एक कोना थाम लो। दूसरा कोना मैं पकड़ लेता हूँ। अब एक लंबी साँस लो और खूब अच्छी तरह सोचो कि ऐसी कौन सी चीज़ है जो तुम्हें सबसे ज़्यादा चाहिए,” मुन्नु बोला।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"उनमें सबसे बुज़ुर्ग कशीदाकार, खुरशीद ने मुमताज़ को सलाम कहा और पूछा कि वह कहाँ से आई है। “जी, मैं लखनऊ से हूँ,” मुमताज़ ने भी बड़े मियाँ को सलाम किया, “मैं चिकनकार हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अगले रोज़ मुन्नु ने देखा कि मुमताज़ अपने कबूतरों के पास उदास बैठी है। पूछने पर वह बोली “सफ़ेद कपड़े पर कढ़ाई करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि वह बहुत जल्दी गंदा हो जाता है। और अपने रंगीन धागों के बिना मैं काढ़ूँगी भी कैसे?” मुमताज़ मायूस थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"”यहीं ठहरो। मैं शाही खिदमतगार को बुलाता हूँ,“पहरेदार ने अन्दर का रुख किया।"
रज़ा और बादशाह
"”शुक्रिया! मैं राजपूत हूँ और इस नमूने को मेरे देश में बाँधनी कहते हैं।“"
रज़ा और बादशाह
"माँ कहती है कि लोगों को घूरना अच्छी बात नहीं है। लेकिन मैं तो देखता हूँ कि सभी तुम्हें घूरते हैं। वे मुझे भी घूरते हैं क्योंकि मुझे तुम्हारे साथ रहना होता है, तुम्हारा ध्यान रखने के लिए। तुम हमारे स्कूल में क्यों आइं? तुमने अपनी पढ़ाई उसी स्कूल में जारी क्यों नहीं रखी जहाँ तुम पहले पढ़ती थीं?"
थोड़ी सी मदद
"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद
"उस दिन खाने की छुट्टी के दौरान जो कुछ हुआ, मैं देख रहा था। आख़िर मैं भी सब कुछ जानना चाहता हूँ। क्या किसी का एक ही हाथ होना कोई अजीब बात है? सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही ऐसा है या फिर तुम्हारी पूरी बाँह ही नकली... माफ़ करना, प्रॉस्थेटिक है?"
थोड़ी सी मदद
"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद
"तुम जानती हो न कि सँयोग क्या होता है? यह ऐसी बात है कि जैसे तुम कुछ कहो और थोड़ी देर में वही बात कुछ अलग तरीके से सच हो जाए। पिछले पत्र में मैंने तुम्हें सुमी और जूतों के फीतों के बारे में बताया था। और उसके बाद, आज, मैंने तुम्हें जूतों के फीते बाँधते हुए देखा। वाह, यह अद्भुत था! मैं सोचता हूँ कि तुमने यह काम मुझसे ज़्यादा जल्दी किया जबकि मैं दोनों हाथों से काम करता हूँ। अगर तुम मेरी दोस्त न होतीं तो मैं तुम्हारे साथ जूते के फीते बाँधने की रेस लगाता। नहीं, नहीं, शायद मैं तुम्हें कहता कि मुझे भी एक हाथ से फीते बाँधना सिखाओ।"
थोड़ी सी मदद
"सच बताऊँ? घर जाकर मैंने एक हाथ से जूते के फीते बाँधने की कोशिश की थी। लेकिन मेरे लिए यह कर पाना असम्भव है। तुम ऐसा कैसे कर पाती हो? शायद मैं यह बात कल तुमसे पूछूँ।"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद
"फ़िल्म सच में बहुत ही बढ़िया थी, है न? मैं इतना हँसा कि मेरा पेट दुखने लगा और मेरे आँसू निकल आए। जब भी स्कूल में फ़िल्म दिखाई जाती है मुझे बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि उस दिन पढ़ाई की छुट्टी।"
थोड़ी सी मदद
"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद
"अच्छा भई, मैं बहुत थक गया हूँ और सोने जा रहा हूँ। कल स्कूल में मिलेंगे।"
थोड़ी सी मदद
"अच्छा, इससे पहले कि प्रिंसिपल सर मुझे यह पत्र लिखते हुए पकड़ें, मैं लिखना बंद करूँ!"
थोड़ी सी मदद
"तुम्हारा नया हाथ तो बहुत ही बढ़िया है! बुरा न मानना, लेकिन पुराना वाला हाथ कुछ उबाऊ था। बस था... नाम को। जबकि नया वाला तो बिल्कुल जादू जैसा है, और तुम उँगलियाँ भी चला सकती हो और उनसे चीजें भी पकड़ सकती हो! मुझे उम्मीद है कि अगर मैं तुमसे हाथ मिलाने के लिए कहूँ तो तुम बुरा नहीं मानोगी। अरे यह बात बस मेरे मुँह से यूँ ही निकल गई। कल देखेंगे कि क्या तुम इस से कुछ सामान भी उठा सकती हो।"
थोड़ी सी मदद
"ओह! मुझे अभी अहसास हुआ है कि मैंने तुम्हें जो दो आखीरी पत्र लिखे हैं, उनमें मैंने तुम्हारे प्रॉस्थेटिक हाथ के बारे में बात ही नहीं की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैं इसके बारे में बिल्कुल ही भूल गया था और मेरे पास तुम्हें बताने के लिए और भी बातें थीं। मज़ेदार बात यह है कि तुम्हारे हाथ को लेकर अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं उठते। न जाने क्यों!"
थोड़ी सी मदद