Resources
Labeled content
EmojisImages
Videos
Storybook paragraphs containing word (111)
"मालू आलू खोज रहा था कि उसे सुनाई दिया, “भौं, भौं, भौं।”"
आलू-मालू-कालू
"वह जंगल के ऊपर से जा रहा था."
कहानी- बादल की सैर
""मैं तो घूमने जा रहा हूँ. यहाँ"
कहानी- बादल की सैर
"वह जानना चाहता था कि रात में उसे कौन मिल सकता है। ऊपर आसमान में टिंकु ने चाँद देखा। सफ़ेद, जगमग करता गोल चाँद जो मुस्कराता हुआ उसे देख रहा था। वह बहुत ख़ुश हुआ। रात बहुत सुंदर है, टिंकु ने सोचा।"
सो जाओ टिंकु!
"कोई छिप रहा था!"
सो जाओ टिंकु!
"गर्मी के दिन थे, भीड़-भाड़ वाले एक चौराहे पर अर्जुन खड़ा इंतज़ार कर रहा था। शिरीष जी के पीछे अधेड़ उम्र की सुरमई बालों वाली, पुरानी सी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी।"
उड़ने वाला ऑटो
"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन के पहिये सड़क से ऊपर थे, ऊपर और ऊपर वह उड़ता जा रहा था।"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम और इंडिया गेट के ऊपर से उड़ रहा था। उसे नीचे दिखाई दिए हुमायूँ का मकबरा, यमुना नदी और अक्षरधाम का भव्य मंदिर।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो
"अर्जुन की हेड लाइट मद्धिम पड़ रही थी। उसे अब सब कुछ बेकार लग रहा था। वह शिरीष जी की बातें भाँप रहा था। अब वह उस औरत के भावों को भी समझ सकता था।"
उड़ने वाला ऑटो
"वह नीचे और नीचे आया, उसे शहर की गर्माहट महसूस होने लगी थी। जितना करीब वह पहुँच रहा था उतनी ही ऊर्जा उसे मिल रही थी।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था।
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो
"उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। काश कि वह इतनी बड़ी नहीं होती, १० मीटर लम्बी और ९०० किलो से ज़्यादा भारी! उसे जल्दी किसी अस्पताल पहुँचना था। आखिर जान का सवाल था।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"लेकिन आटा इतनी जल्दी सारा पानी कैसे सोख रहा है!"
पूरी क्यों फूलती है?
"मधुमक्खियाँ एक बहुत फायदे के काम के लिए भी भन-भन करती हैं; वे पराग यानि छोटे-छोटे भुरभुरे दानों को एक फूल से दूसरे तक ले जाती हैं, जैसे कोई डाकिया चिट्ठियाँ पहुँचा रहा हो।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"बिन्नी ने घास चबाते हुए सर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही थी। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी सब्ज़ी की क्यारियों की तरफ़ निकल गया जहाँ बूढ़ा बिन्दा आलू खोद रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर
"बिन्दा ने सर हिला कर मना किया। उसके कुछ बोलने से पहले धनी ने उतावला होकर पूछा, ”कौन जा रहे हैं? कहाँ जा रहे हैं? क्या हो रहा है?“"
स्वतंत्रता की ओर
"”एक महीने तक पैदल चलेंगे!“ धनी सोच कर परेशान हो रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर
"”मैं जा रहा हूँ। तुम और अम्मा यहीं रहोगे।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”मैं आपके साथ आ रहा हूँ।“"
स्वतंत्रता की ओर
"यह डॉ. शेफील्ड का बेटा ल्यूसियस था, जिसने अब अपने दातुन को टूथपेस्ट के मर्तबान में डुबाने से इनकार कर दिया और फैसला किया कि वह आगे से दंतमंजन का उपयोग करेगा। लेकिन एक विचार उसके दिमाग में घूमता रहा - टूथपेस्ट के उपयोग का इससे बेहतर कोई तो तरीक़ा होगा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"हाँ, बिलकुल सही! उन्होंने ढक्कन को पेंच से कसा और ट्यूब के दूसरे हिस्से को पूरी तरह खुला छोड़ा। ट्यूब के बड़े पिछले हिस्से को भरना सचमुच आसान था! ख़ासकर जब तुम्हारे पास पेस्ट के साथ पंप के लिए कुछ हो, जैसे कि पिचकारी। इसके बाद यही करना बाकी रहा कि ट्यूब के उस खुले सिरे को कसकर बंद किया जाए ताकि पेस्ट बाहर न निकले।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"टूका और पोई ने एक-दूसरे को हैरानी से देखा। उन्हें आस-पास कोई नहीं दिखाई दे रहा था। तभी उन्हें दुबारा वह आवाज सुनाई दी, "यहां ऊपर देखो, ऊपर.....।” टूका और पोई ने ऊपर-नीचे, अपने आस-पास, चारों ओर देखा, लेकिन उन्हें कोई भी नहीं दिखा।"
आओ, बीज बटोरें!
"कर उत्सुकता से भौंक रहा था जैसे मानो वह भी जानना चाहता हो कि पच्चा क्या कह रहा है।"
आओ, बीज बटोरें!
"नारियल के पेड़ की पत्तियां कितनी सुडौल थीं, ऐसा लग रहा था कि हवा में नाच रही हों। नीले-नीले आसमान में लाल गुलमोहर के फूल कितने निराले लग रहे थे। सुंदर सी खुरदुरी छाल वाला आम का पेड़ कितना अच्छा लग रहा था।"
आओ, बीज बटोरें!
"मैं मुस्कराया। सपनों की दुनिया के बारे में सोच कर मज़ा आ रहा है।"
क्या होता अगर?
"जब वह देख रहा होता है, मैं सुरक्षित रहता हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?
"एक दिन, बंटी उठता है और देखता है कि उसका कोई भी पक्षी नहीं गा रहा है।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी
"राजू पहली बार हवाई-अड्डे के अंदर आया था। उस चौड़े-बड़े से पट्टे पर रखने में अम्मा की मदद की जो सामान को एक मशीन के अंदर ले जा रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"इसे अंग्रेजी में कन्वेयर बेल्ट कहते हैं। वर्दी पहने हुई, एक बहुत कठोर दिखने वाली महिला, मशीन के पीछे रखी स्क्रीन में देख कर सामान की जाँच कर रही थी। राजू स्क्रीन को देखकर हैरान रह गया। स्क्रीन में तो अटैची के साथ-साथ उसमें रखा सामान भी दिख रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"आखिरकार राजू एक बड़े से हॉल में पहुँचा जिसकी दीवारे काँच की थीं। वह बाहर खड़े बहुत सारे हवाई जहाज़ देख पा रहा था।एक हवाई जहाज़ उड़ान भरने को तैयार था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"पर कुछ समझ नहीं आ रहा है,"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने आप खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"उसने मन ही मन सोचा कि मैं चील की तरह आसमान में उड़ रहा हूँ - बादलों पर तैर रहा हूँ, बिना पँख फड़फड़ाए!"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"झूल रहा था। उसने गोजर को रोते हुए देखा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"घूमता रहा और अपने जाले के रेशमी धागे से उसे बाँध दिया।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"नारियल के पेड़ वाले मोटे-से भँवरे को गिनती बहुत पसंद है! वह फूलों की पत्तियाँ गिन रहा है!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"वह भूख से परेशान था। सोच रहा था..."
मेंढक की तरकीब
"‘अरे नहीं! इससे तो बारिश का पानी पूरी तरह अंदर आ रहा है।’"
द्रुवी की छतरी
"लेकिन वह ज़रा भी ख़ुश नहीं है। उसका परिवार कोलकाता से दिल्ली जा रहा है, क्योंकि उन्हें अब वहीं रहना है।"
एक सफ़र, एक खेल
"माँ और बाबा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह और क्या कर सकते हैं। फिर बाबा मुस्कराए।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘मैं देख रहा हूँ...’’ बाबा ने कहना शुरू किया।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘मुझे कुछ दिखाई दे रहा है जिसका रंग भूरा है,’’ बाबा ने कहा।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘मुझे पीला-पीला कुछ दिख रहा है।’’"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘और मैं देख रहा हूँ कुछ सफ़ेद,’’ बाबा बोले।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘मुझे कुछ काले रंग का दिखाई दे रहा है,’’ माँ ने कहा।"
एक सफ़र, एक खेल
"‘‘मुझे एक लम्बा सा जानवर दिख रहा है जिस पर भूरे रंग के धब्बे हैं,’’ बाबा ने कहा।"
एक सफ़र, एक खेल
"दिन के समय वह गजपक्षी झील के पास आया करता या तो धूप तापने या फिर झील में पानी छपछपाते हुए अकेला खुद से ही खेलने। कभी-कभी वह पानी में आधा-डूब बैठा रहता और बाकी समय उसका कोई सुराग़ ही न मिलता। तब शायद वह घने जंगल के किसी बीहड़ कोने में बैठा आराम कर रहा होता। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी एक पेड़ जितना ऊँचा था। उसकी एक लम्बी और मज़बूत गर्दन थी, पंजों वाली हाथी समान लम्बी टाँगें थीं और भाले जैसा एक भारी-भरकम भाल था। उसके लम्बे-लम्बे पंजे और नाखून डरावने लगते थे।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के अलावा और कौन हो सकता है भला? उसे तो ख़त्म कर देना चाहिए!” दूधवाले ने कहा, “बरसों से यूँ चुपचाप पड़े-पड़े वह दुष्ट अपनी योजनाएँ बनाता रहा है!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“क्या हो रहा है?” भीड़ में पीछे से कोई चिल्लाया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"लम्बी दाढ़ी और हल्के कूबड़ वाला एक आदमी अपने हाथ में नटखट की लगाम थामे नज़र आया। “क्या हो रहा है?” उसने अपना सवाल दोहराया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“जैसा कि आप जानते हैं, कुछ साल पहले मैंने नटखट को बेच दिया था। कल मैं नटखट के भाइयों - बाँका और बलवान के द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में सवार आपके गाँव से गुज़र रहा था। मुझे नहीं मालूम कि किस तरह से नटखट अपने आपको छुड़ा हमारे पीछे-पीछे भागकर चन्देसरा चला आया। मैं उसे पहचान न सका और यह समझ न पाया कि इसका करूँ तो करूँ क्या। फिर आज सुबह मैंने इस नन्ही-सी बच्ची को एक झोंपड़ी से दूसरी झोंपड़ी जाते और एक गुमशुदा घोड़े के बारे में पूछते हुए देखा। लेकिन या इलाही ये माजरा क्या है?” तीसरी बार उसने अपना वही सवाल किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“हाँ... हाँ...” मोती बोला। अगले दिन मोती “भौं... भौं...” भौंकता रहा पर भीमा की नींद नहीं खुली।"
भीमा गधा
"“हाँ... हाँ... जरूर।” कालू बोला। अगले दिन कालू
“काँव... काँव” करता रहा पर भीमा नहीं जागा।"
भीमा गधा
"हिरण का बच्चा दौड़ रहा था।"
वह हँस दिया
"हिरण का बच्चा दौड़ रहा था।"
वह हँस दिया
"पुताई वाले अपने काम में लगे थे। उनमें से एक सीढ़ी पर था, और दूसरा छत से झूले पर लटक रहा था।"
नन्हे मददगार
"मुँह गोल हो रहा है।"
क्यों भई क्यों?
"चाचा तरह-तरह के स्वाद और ख़ुशबू वाले रस तैयार कर रहे थे। चार-चार पतीलों में आग पर इकट्ठे रस पक रहा था।"
सोना की नाक बड़ी तेज
""अब मैं डाल रहा हूँ ‘गुलाबी शीरे’ की चुस्की का मसाला," चाचा ने तीसरे पतीले में करछी चलाई।"
सोना की नाक बड़ी तेज
"मन में घोल रहा था रंग।"
सबरंग
"मचा रहा है कैसा हल्ला।"
सबरंग
"बिलख रहा था छोटा भाई"
सबरंग
"वह अपनी माँ के साथ एक शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में जा रहा था।"
संगीत की दुनिया
"विक्की को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। वह नौका के एक छोर से दूसरे छोर तक कूदता रहा और"
नौका की सैर
"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर
"जब नौका किनारे पर पहुँची, काटो जल्दी से जल्दी सबको अपने कारनामे के बारे में बता देना चाहता था। दिन की सारी घटनाओं के बाद, काटो का सिर नौका की तरह चक्कर खा रहा था। खाने की मेज़ पर जैसे ही उसने सिर रखा, उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह गहरी नींद में डूब गया।"
नौका की सैर
"दीनू डायनासोर उनका गाना सुनने दौड़ा चला आ रहा था!"
बारिश में क्या गाएँ ?
"रास्ते में नल से पानी गिर कर बह रहा था।"
दाल का दाना
"दरवाज़े के पास एक कुत्ता सो रहा था।"
दाल का दाना
"बाहर बरामदे के पास एक चूज़ा घूम रहा था।"
दाल का दाना
"वह जगह-जगह ज़मीन में अपनी चोंच मार रहा था।"
दाल का दाना
"उसका घर... अरे! उसका घर तो अब सामने दिख रहा था।"
दाल का दाना
"लेकिन यह क्या, चला क्यों नहीं जा रहा है, शरीर इतना भारी क्यों लग रहा है? चुलबुल थोड़ी सी परेशान हो गई।बड़ी मुश्किल से दरवाज़े के बाहर निकली।"
चुलबुल की पूँछ
"अपनी भारी पूँछ के साथ चलना उसे बहुत मुश्किल लग रहा था। किसी तरह पूँछ खींच-खींच कर वह पेड़ के पास पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
"अरे बाप रे बाप! एक बड़ा सा कुत्ता उसकी पूँछ देखकर उसे बिल्ली समझ उसकी ओर दौड़ता चला आ रहा था!"
चुलबुल की पूँछ
"और पेट कह रहा है..."
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"झूल रहा था। उसने गोजर को रोते हुए देखा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"घूमता रहा और अपने जाले के रेशमी धागे से उसे बाँध दिया।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"“चीनू क्या हो रहा है?” टीचर ने कहा"
कबाड़ी वाला
"“तुम्हारे लिये कुछ है,” वे बोले। वही किताब जिसे चीनू पूरी दोपहर भर देखता रहा था।"
कबाड़ी वाला
"तितली ने पूछा, “क्यूँ भाई कैसा लग रहा है?”"
उड़ते उड़ते
"चन्दू ने कहा, “मज़ा आ रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"गौरैया ने पूछा, “क्यूँ बड़े भाई, कैसा लग रहा है?”"
उड़ते उड़ते
"चन्दू ने कहा, “मज़ा आ रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"गरूड़ ने पूछा, “क्यूँ सेठ, कैसा लग रहा है?”"
उड़ते उड़ते
"चन्दू बोला, “मज़ा आ रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"हवाई जहाज़ ने पूछा, “क्यूँ साहब, कैसा लग रहा है?”"
उड़ते उड़ते
"चन्दू बोला, “मज़ा आ रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"रॉकेट ने पूछा, “क्यूँ सर, कैसा लग रहा है?”"
उड़ते उड़ते
"चन्दू ने कहा, “मज़ा आ रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"मगर चन्दू ने अपने आप उन्हें बता दिया, “अब तो बहुत ही अच्छा लग रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"चन्दू ने माँ को प्यार किया और बोला, “सबसे अच्छा तो अब लग रहा है।”"
उड़ते उड़ते
"साथ ही सिर पर कचरे का बादल मँडरा रहा था।"
कचरे का बादल
"काका खुद को बहुत बाँका समझता था। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह सा़फ -सुथरा नहीं दिख रहा। वह झटपट पानी की धारा के पास पहुँचा। वह धारा में अपनी चोंच डुबो ही रहा था कि धारा ज़ोर से चिल्लाई, “काका! रुको! अगर तुमने अपनी गन्दी चोंच मुझ में डुबोई तो मेरा सारा पानी गन्दा हो जायेगा। तुम एक कसोरा ले आओ। उस में पानी भरकर अपनी चोंच उसी में धो लो।”"
काका और मुन्नी
"नाच रहा है देखो मोर"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"उस दिन भी यही सिलसिला चल रहा था। पर वह समाचार का आखिरी हिस्सा सुन पाई। उसे बहुत खुशी हुई कि कम से कम इतना तो सुनने को मिला।"
मछली ने समाचार सुने
"मेंढक और कछुए भी बहुत डर गए। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब निराश होकर बैठ गये। रोज़ की तरह दादा से रेडियो छीनने कोई नहीं आया। आगे की चिन्ता सभी को सता रही थी।"
मछली ने समाचार सुने
"तोहफ़ों से लदीं, मेहरुनिस्सा और कमरुनिस्सा अपने भाई अज़हर मियाँ के साथ हाथों में मीठी-निमकी की पत्तलें लिए चली जा रही थीं। ईद के मौके पर तीनों को बहुत उम्दा चिकनकारी किए नए कपड़े मिले थे जिन्हें पहन कर उनका मन बल्लियों उछल रहा था। मेहरु के कुरते पर गहरे गुलाबी रंग के फूल कढ़े थे और कमरु भी फूल-पत्तीदार कढ़ाई वाला कुरता पहने थी। अज़हर मियाँ भी अपनी बारीक कढ़ी नई टोपी पहने काफ़ी खुश दिखाई देते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"भागती जा रही है, तेज़, तेज़...और तेज़। लोटन ने अपनी चोंच में चादर का तीसरा कोना और लक्का ने चौथा कोना पकड़ा और वे सब उड़ने लगे, ज़मीन नीचे छूटती जा रही थी और आसमान नज़दीक आ रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कमरु ने कोना पकड़ तो लिया लेकिन वह कुछ पशोपेश में भी थी। आखिर मुमताज़ कह क्या रही थी! उसे तो वहाँ नाचती मुनिया और गुटरगूँ करते, खेलते हुए लक्का-लोटन के इलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह
"”सीख रहा हूँ, हुज़ूर,“रज़ा ने घबराया-सा जवाब दिया,”पर कपड़ा काटने में अभी भी गलती हो जाती हैं।“"
रज़ा और बादशाह
"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद
"उस दिन खाने की छुट्टी के दौरान जो कुछ हुआ, मैं देख रहा था। आख़िर मैं भी सब कुछ जानना चाहता हूँ। क्या किसी का एक ही हाथ होना कोई अजीब बात है? सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही ऐसा है या फिर तुम्हारी पूरी बाँह ही नकली... माफ़ करना, प्रॉस्थेटिक है?"
थोड़ी सी मदद
"अच्छा भई, मैं बहुत थक गया हूँ और सोने जा रहा हूँ। कल स्कूल में मिलेंगे।"
थोड़ी सी मदद
"मुझे लगता है कि मुझे यह बात पहले ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी- जब भी वार्षिकोत्सव आने वाला होता है, प्रिंसिपल साहब कुछ सनक से जाते हैं। वे तुम पर चिल्ला सकते हैं - वे किसी को भी फटकार सकते हैं। अगर ऐसा हो, तो बुरा न मानना। मेरी माँ कहती है कि वे बहुत ज़्यादा तनाव में आ जाते हैं, क्योंकि वार्षिकोत्सव कैसा रहा इससे पता चलता है कि उन्होंने काम कैसा किया है।"
थोड़ी सी मदद