Resources
Labeled content
EmojisImages
Videos
Storybook paragraphs containing word (289)
"चिड़िया थक कर पहाड़ पर बैठ गई."
कहानी- बादल की सैर
"कुछ बनबिलावों पर गोल छाप होती है।"
बनबिलाव! बनबिलाव!
"कुछ बनबिलाव ऊँचे पर्वतों पर रहते हैं।"
बनबिलाव! बनबिलाव!
"कुछ बनबिलावों के कान पर ढेर सारे बाल होते हैं।"
बनबिलाव! बनबिलाव!
"मेरी टोपी एक पुराने पीपल के पेड़ की डाली पर जा लटकी।"
चाँद का तोहफ़ा
"देर रात में, चाँद निकला। उसने पुराने पीपल पर मेरी टोपी देखी।"
चाँद का तोहफ़ा
"मैं नाचती वो भी मेरे साथ नाचती| मैं खेलती वो भी खेलती| मैं हँसती तो वो भी मेरे साथ हँसती| पर मुझ से बात नहीं करती| कभी मेरे पास नहीँ आती|"
मैं और मेरी दोस्त टीना|
"कितना अंधेरा है! कौन है वहां पर !"
मैं नहीं डरती !
"वह दाएँ मुड़ा फिर बाएँ मुड़ा। उसने कंबल ओढ़ा, फिर उतार फेंका। वह पेट के बल लेटा, फिर चित हुआ, इधर-उधर करवट बदली, पर नहीं! वह सो ही नहीं पाया!"
सो जाओ टिंकु!
"पेड़ की शाख पर उलटा लटक गया।"
सो जाओ टिंकु!
"गर्मी के दिन थे, भीड़-भाड़ वाले एक चौराहे पर अर्जुन खड़ा इंतज़ार कर रहा था। शिरीष जी के पीछे अधेड़ उम्र की सुरमई बालों वाली, पुरानी सी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी।"
उड़ने वाला ऑटो
"उस औरत ने भी पानी पिया और पीते-पीते आगे बढ़ते अर्जुन पर भी
थोड़ा-सा पानी छलक कर गिर गया।"
उड़ने वाला ऑटो
"आगे बढ़ते ही अर्जुन को अचानक महसूस हुआ कि उसके पहिये पर दबाव कम होने लगा है, उसके सामने की भीड़ छँटने लगी है और वह बहुत आराम से आगे बढ़ गया है, “जाने दो अर्जुन भाई,” उसके चाचा ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो
"अब उस औरत की साड़ी चमक रही थी, जिस पर सोने के धागों से कढ़ाई की गई थी। उसने हँस कर कहा, “जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था।
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो
" पर मुझे दीवार पर तस्वीर बनाना मना है।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!
"पिशि ने अपने बड़े बड़े मीनपक्ष फड़फड़ाए ताकि वह सुरक्षित जगह पर पहुँच जाए।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"बादल गरजे और बिजली कड़की। पिशि ने सुध बुध खो दी। सागर बिलकुल काला पड़ गया। एक बड़ी सी लहर ने पिशि को जहाज़ के नीचे धकेल दिया। आह! उसके पेट पर घाव हो गया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"उसे पता था उसे क्या करना चाहिए। पिशि ने होश सँभाले। वह अपने दोस्तों के बीच वापस जाना चाहती थी। पर उस से पहले घाव का ठीक होना ज़रूरी था। वह तेज़ी से तट की ओर तैरने लगी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"जब उसे तट पर प्रकाश स्तम्भ दिखाई दिया वह ख़ुशी से उछल पड़ी। पिशि कुदरत के अस्पताल पहुँच गयी थी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"प्रिय पाठक, क्या आपको मालूम है कि प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में हिन्द महासागर को ‘रत्नाकर’ कहा जाता था? रत्नाकर यानि हीरे जवाहरात की खान। मैंटा रे मछलियाँ अक्सर सफ़ाई के ठिकानों पर जाया करती हैं। सफ़ाई के ठिकानों को कुदरत का अस्पताल कहा जा सकता है। यहीं एंजेल फ़िश जैसी छोटी मछलियाँ मैंटा रे के गलफड़ों के अन्दर और खाल के ऊपर तैरती हैं। वे क्लीनर फ़िश कहलाती हैं क्योंकि वे मैंटा रे के ऊपर मौजूद परजीवियों व मृत खाल को खा कर उसकी सफ़ाई करती हैं। मैंटा रे मछलियाँ विशाल होने के बावजूद बहुत कोमल स्वभाव की होती हैं। बड़ी शार्क, व्हेल मछलियाँ व मनुष्य उनका शिकार करते हैं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"जंगल में पेड़। पहाड़ पर पत्थर। आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव) में बर्फ़। गाँव में मिट्टी, छप्पर के लिए बड़े-बड़े पत्ते और बाँस। शहरों में ईंट, सीमेंट और काँच होता है।"
सबसे अच्छा घर
"सर्कस के जोकर की तरह लठ्ठों पर खड़े मकान नम, गीली ज़मीन से ऊपर..."
सबसे अच्छा घर
"जगह और सामान मिल जाने पर हम मकान बनाना शुरू करते हैं।"
सबसे अच्छा घर
"खेमा: मंगोलिया के लोग लकड़ी के ढाँचे और मोटे ऊनी नमदे के कालीनों से ख़ूब गर्म और हल्के घर बनाते हैं। जब कहीं और जाना हो तो लोग लकड़ी की पट्टियों और नमदों को घोड़ों और याकों पर लाद कर मकान को भी साथ ले जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर
"इग्लू: क्या आप सोच सकते हैं कि बर्फ़ की बड़ी-बड़ी ईंटों से बने इग्लू बाहर बर्फ़ जमी होने पर भी अंदर से गर्म रहते हैं? जब बाहर का तापमान -40 डिग्री सेंटिग्रेड होता है तो लोग इग्लू के अंदर आराम से रहते हैं। इन्हें आप कनाडा के ध्रुवीय इलाकों और ग्रीनलैंड के थूले द्वीप में देख सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर
"लठ्ठों पर खड़े मकान: यह भला कैसा आकार है? किसी मकोड़े जैसा? लठ्ठों पर खड़े मकान नम, गीली ज़मीन से ऊपर रहने के कारण लोगों को सीलन से बचाते हैं। हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में भी ऐसे मकान दिखते हैं।"
सबसे अच्छा घर
"इसके अलावा अगर पूरियों को कम तापक्रम पर तला जाता है तो उनमें भाप बहुत धीरे-धीरे बनती है, प्रेशर ठीक से नहीं बनता और फिर पूरी फूल नहीं पाती।"
पूरी क्यों फूलती है?
"अब फिर इसे एक बड़े बर्तन में रख देते है अब बर्तन के अंदर रखे गूँधे आटे पर इतना पानी डालते है जिससे वो उसमे डूब जाए। पानी के अंदर डूबे आटे को गूँधते रहते है जब तक पानी का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता। इस पानी को फैक कर बर्तन में थोड़ा और ताजा पानी लेते है इसे तब तक करते रहे जब तक गुँधे आटे को और गूंधने से पानी सफ़ेद नहीं होता। इसका मतलब यह है कि आटे का सारा स्टार्च खत्म हो गया है और उसमें बस ग्लूटेन ही बचा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्च पानी में घुल जाता है लेकिन ग्लूटेन नहीं घुलता। अब इस बचे हुए आटे यानि ग्लूटेन से थोड़ा सा आटा लेते है इसे हम एक रबड़बैंड कि तरह खीच सकते है। अगर इसे खीच कर छोड़ते है तो यह वापस पहले जैसा हो जाता है। इससे इसके लचीलेपन का पता चलता है आप इसे चोड़ाई में फैला सकते है इससे पता चलता है कि इसमें कितनी प्लाटीसिटी है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"क्या ज्वार, बाजरे या चावल के आटे से पूरियाँ बन सकती है, अगर नहीं तो क्यों? गेहूँ के आटे से पूरियों के अलावा हम और क्या चीज़ें बना सकते हैं? अगर आटे में ज़्यादा पानी डाल दिया जाये तो क्या होगा? अगर हम आटे को खाना पकाने के दूसरे तरीकों, जैसे तंदूर या तवा पर पकाते हैं तो क्या होता है?"
पूरी क्यों फूलती है?
"जब मधुमक्खियाँ शहद चूसने के लिए फूलों पर बैठती हैं, तभी पराग के दाने उनके पाँवों व शरीर पर चिपक जाते हैं।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"फिर जब वही मधुमक्खियाँ किसी और फूल के पास जा कर भन-भन करते हुए ज़ोर-शोर से नाचती हैं, तो इस धमा-चौकड़ी में दाने दूसरे फूलों पर गिर जाते हैं। फिर मधुमक्खियाँ और फूलों तक उड़ती हुई जाती हैं, कुछ दाने उठाती हैं व कुछ गिराती चलती हैं। यह कार्यक्रम इसी तरह चलता रहता है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"वैसे क्या तुम अपनी साँसे सुन सकते हो? नहीं ना! पर मधुमक्खियाँ सुन सकती हैं। भन-भन की आवाज़ मधुमक्खियों के साँस लेने से भी होती है। उनका शरीर छोटा व कई टुकड़ों में बँटा होता है। तो जब साँस लेने से हवा अंदर जाती है, तो उसे कई टेढ़े-मेढ़े व ऊँचे-नीचे रास्तों को पार कर के जाना पड़ता है। और इसी वजह से भन-भन की आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"4. केफीन – नाम के केमिकल को इस्तेमाल करते हुये पोंधे हानिकारक कीड़े मकोड़ों को दूर रखते है और इसी की मदद से यह जान जाती है कि कोई फूल कहाँ पर है और इसी तरह से वो बार बार वहाँ पहुचती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
""सुनो! तुम्हारा नाम क्या है? क्या तुम्हें बोर्ड पर ध्यान नहीं देना चाहिए?" कक्षा में पढ़ा रही नई अध्य्यापिका ने कहा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"सरला ने सीखा कि मानव भी उड़ सकते हैं, पर पक्षियों की तरह नहीं। हम मनुष्य के एक महान आविष्कार, हवाई जहाज़ में बैठकर विश्व के किसी भी नगर से उड़ान भर सकते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"हवाई जहाज़ बहुत बड़े और बहुत भारी होते हैं। उसके दोनों किनारे पर पक्षी की तरह ही पंख बने होते हैं, जो उन्हें उड़ने में मदद करते हैं। इन जहाजों के पंखों की बनावट ठीक पक्षियों के पंखों जैसी होती हैं। नीचे से सपाट और ऊपर से मुड़े हुए, जो उन्हें आसमान में बहुत ऊँचे तक उड़ने में मदद करते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"विमानों को उड़ान भरने और उतरने के लिए बड़ी लंबी सड़क की ज़रूरत होती है। इन लंबी सड़कों को 'रनवे' कहा जाता है। विमान को उड़ान भरने और उतरने से पहले रनवे पर बहुत ही तेज़ गति से दौड़ना होता है। हवा में ऊपर उठने के लिए विमान को बहुत ही तेज़ गति की ज़रूरत होती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"विमान जानते हैं कि उन्हें कहाँ जाना है, क्योंकि विमानचालक उन्हें चलाते हैं। ये चालक विमान के अंदर, सामने की एक जगह, जिसे चालक स्थल (कॉकपिट) कहते हैं, से उन्हें नियंत्रित (कंट्रोल) करते हैं। वे बहुत ही सटीक और आधुनिक डिवाइसों के द्वारा हवाई अड्डों (एक जगह जहाँ हवाई जहाज़ उड़ान भरते और उतरते हैं) के संपर्क में रहते हैं। जिस तरह हमारी मदद के लिए सड़क पर सिग्नल और पुलिस होती है, वैसे ही वायु यातायात नियंत्रक (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) होते हैं जो विमान चालक को बताते हैं कि कब और किस ओर उड़ान भरनी है और कब उड़ान भरना या उतरना सुरक्षित रहेगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
"2. 'फ़्लाइ - डोंट फ़्लाइ' गेम: मित्रों का एक समूह बनाओ और एक -दूसरे को बिना छुए कमरे के चारों तरफ़ जहाज़ की तरह उड़ो। डेन (चोर) एक कोने में खड़ा होकर उड़ने वाली और ना उड़ने वाली चीज़ों के नाम कहेगा। जैसे ही वह किसी ना उड़ने वाली चीज़ (जैसे कि मेज़/टेबुल) कहे तो जहाज़ों को ज़मीन पर उतरना (बैठ जाना) होगा। जो ग़लती करेगा, वह अगला डेन होगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?
""नहीं," पुट्टा ने कहा। "बुज़ुर्गों के जन्मदिन पर केक नहीं काटा जाता। और फिर 200 मोमबत्तियां लगाने के लिये तो बहुत बड़े केक की जरूरत होगी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""हाँ!" मुत्तज्जी ने चहकते हुए कहा, "बम्बई में उसी साल उनकी शुरुआत हुई थी। उनमे सफर करते हुए कोई गंदा नहीं होता था। कपड़ों ओर चेहरे पर ज़रा सी भी कालिख, या मिट्टी, या गंदगी, कुछ भी नहीं लगती थी!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""हाँ, के आर एस।" मुत्तज्जी ने बड़े प्यार से अज्जी को देखा और कहा, "तुम्हारी अज्जी मेरी पाँचवी संतान थी, सबसे छोटी, लेकिन सबसे ज़्यादा समझदार। तुम जानते हो बच्चों, मेरे बच्चे ख़ास समय के अंतर पर हुए। हर दूसरे मानसून के बाद एक, और जिस दिन तुम्हारी अज्जी को पैदा होना था, उस दिन तुम्हारे मुत्तज्जा का कहीं अता-पता ही नहीं था। बाद मेँ उन्होंने बताया कि वो उस दिन ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी का भाषण सुनने चले गए थे। और उस दिन उन्हें ऐसा जोश आ गया था कि वह सारे दिन बस "भारत छोड़ो” के नारे लगाते रहे। बुद्धू कहीं के... नन्हीं सी बच्ची को दिन भर परेशान करते रहे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"अज्जा ने सिर हिला कर कहा, "हाँ, क्योंकि तब स्टीम इंजन होते थे जो कोयले से चलते थे, बिजली से नहीं।" उन्होंने कहा, "उसकी चिमनी से कोयले की काली राख निकल कर हर चीज़ पर चिपक जाती थी। बड़ी गंदगी हो जाती थी!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"उसने झटपट भारतीय रेलवे पर एक किताब निकाली और उसमें दिखाते हुए कहा, "देखो, इसमें लिखा है कि भारत में सबसे पहले इलेक्ट्रिक ट्रेन आई थी, 1925 में बंबई में।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"अज्जा सोचने लगे, "1911... यह तारीख़ इतनी जानी-पहचानी सी क्यो लग रही है? आह! हाँ, उसी साल तो बम्बई में गेटवे ऑफ़ इंडिया बनाया गया था। और वह तो भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश राजा, जॉर्ज (पंचम) के स्वागत में बनवाया गया था। और तब एक नहीं, बल्कि कई बड़ी-बड़ी दावत हुई होंगी!" अज्जा ने ख़ुश होते हुए कहा।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन-ही-मन बड़बड़ाया।"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे। अहमदाबाद के पास, महात्मा गाँधी के साबरमति आश्रम में-जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गाँधी जी की तरह, वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गाँधी जी के व्याख्यान सुनते।"
स्वतंत्रता की ओर
"”अम्मा, क्या गाँधी जी कहीं जा रहे हैं?“ उसने पूछा। खाँसते हुए माँ बोलीं, ”वे सब यात्रा पर जा रहे हैं।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”बिन्दा चाचा,“ धनी उनके पास बैठ गया, ”आप भी यात्रा पर जा रहे हैं क्या?“"
स्वतंत्रता की ओर
"बिन्दा ने खोदना रोक दिया और कहा, ”तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस मुई बकरी को बाँधो! मेरा सारा पालक चबा रही है!“"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, बिल्कुल। मैं जानता हूँ वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाये। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो बेवकूफ़ी की बात हुई!“"
स्वतंत्रता की ओर
"”बिल्कुल बेवकूफ़ी नहीं है धनी! क्या तुम्हें पता है कि हमें नमक पर कर देना पड़ता है?“"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर
"”क्योंकि, यदि वे इस लम्बी यात्रा पर दाँडी तक पैदल जायेंगे तो यह खबर फैलेगी। अखबारों में फ़ोटो छपेंगी, रेडियो पर रिपोर्ट जायेगी!
और पूरी दुनिया के लोग यह जान जायेंगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिये लड़ रहे हैं। और ब्रिटिश सरकार के लिये यह बड़ी शर्म की बात होगी।“"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी उस झोंपड़ी के पास पहुँचा जहाँ गाँधी जी ठहरे थे। उसने खिड़की से झाँक कर देखा। आश्रम के कई लोग गाँधी जी से बात कर रहे थे। धनी को सुनाई दिया कि वे दाँडी पहुँचने का रास्ता तय कर रहे थे, जिस पर वे पैदल चलेंगे। अपने पिता को भी इनके बीच देखकर धनी खुश हो गया।"
स्वतंत्रता की ओर
"”पिता जी, क्या आप और अम्मा दाँडी यात्रा पर जा रहे हैं?“ धनी ने सीधे काम की बात पूछी।"
स्वतंत्रता की ओर
"गाँधी जी बड़े व्यस्त रहते थे। उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था। पर धनी को वह समय मालूम था जब उन्हें बात सुनने का समय होगा-रोज़ सुबह, वह आश्रम में पैदल घूमते थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"1. मार्च 1930 में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये नमक कर के विरोध में दाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया। गाँधी जी और उनके अनुयायी, गुजरात में 24 दिन तक पैदल चले। पूरे रास्ते उनका स्वागत फूलों और गीतों से हुआ। विश्व भर के अखबारों ने यात्रा पर खबरें छापीं।"
स्वतंत्रता की ओर
"क्या? क्या मैंने अभी कहा - 'दातुन'? हाँ, बिलकुल सही! 1870 ई. में वे अपने दाँत साफ़ करने के लिए दातुन का उपयोग करते थे। दातुन एक पतली टहनी को तोड़कर बनाया गया टुकड़ा था जिसका अंतिम सिरा अस्त-व्यस्त सा था। कुछ भाग्यशाली बच्चों के पास दातुन के एक सिरे पर जंगली सूअर के बाल लगे होते थे, जिससे उसमें अलग चमक आती थी।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"कुछ साल बाद, ल्यूसियस दंत विज्ञान की पढ़ाई के लिए पेरिस गया। वहाँ उन्होने कलाकार (पेंटर) को धातु की ट्यूब दबाकर उससे पेंट की थोड़ी मात्रा निकाल, पेंट-ब्रश पर लगाते देखा। क्यों न हम इसी तरह के ट्यूब का उपयोग टूथपेस्ट रखने के लिए करें! वह घर आया और अपना सुझाव पिता के सामने रखा। उन्हें भी यह सुझाव बहुत पसंद आया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"की सुरीली ध्वनि निकलती है। पोई, इन फलियों को हिलाकर, उनकी ताल पर बहुत मज़ेदार गीत बनाती है।"
आओ, बीज बटोरें!
""इंजी हमारा दुलारा है, मेंढक इसे लगता प्यारा है, बीज, चींटी, पक्षी, घोंघे - इसे भाएँ खूब, पर सबसे प्यारी लगे इसे अपनी पूँछ!""
आओ, बीज बटोरें!
"उस पेड़ पर लगी हुई इमली का खट्टा-मीठा स्वाद टूका को बेहद पसंद था। वह उसे चूसते हुए मज़ेदार चेहरे बनाता था और उसके बाद उसमें अंदर से भूरे रंग के चमकदार बीज निकालता था। इमली के चटपटे स्वाद से टूका की गर्दन के रौंगटे खड़े हो जाते थे।"
आओ, बीज बटोरें!
"“अरे वाह, तुम लोगों ने तो बहुत सारे बीज इकट्ठे कर लिए हैं", बैग देखकर पच्चा ने कहा। "वैसे क्या तुम लोग यह जानते हो कि ऐसे ही इमली के एक छोटे बीज से मैं बना हूँ? और अब मुझे देखो, कितना बड़ा हो गया हूँ। मेरी ढेर सारी शाखाएँ हैं जिन पर बहुत सारी गौरेया, गिलहरियाँ और कौए रहते हैं।“"
आओ, बीज बटोरें!
"चावल सामान्य नाम: राइस या चावल। वैज्ञानिक मुझे कहते हैं: ऑरिज़ा सटाईवा। चावल, सबसे लोकप्रिय अनाजों में से एक है। जहां तक मुझे मालूम है, भारतीय घरों में अन्य अनाजों की तुलना में चावल सबसे ज़्यादा खाया जाता है। जब चावल पौधे पर लगा होता है तो उसके दानों पर जैकेट की तरह एक खुरदुरा, भूरे रंग का छिलका होता है जिसके कारण इसके दाने अंदर सुरक्षित और साबुत बने रहते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!
"बारिश से ज़मीन पर तरह-तरह के नमूने बन जाते हैं। मेरे चाचा ने वर्षा का पानी एकत्रित करने के लिए कई जगह बालटियाँ और ड्रम रखे हैं। परनालों से छत का पानी इन ड्रमों में गिरता है। मैं इन्हें झरना कहती हूँ!"
गरजे बादल नाचे मोर
"स्कूल से घर लौटते हुए रास्ते में, मैं वर्षा से भीग गई, पर बड़ा मज़ा आया। हमारे घर के पास वाले खेत में मोर नाच रहे थे। लेकिन वो
तो भीग नहीं रहे थे!"
गरजे बादल नाचे मोर
"मनु ने बड़े वाले पेड़ से एक झूला बाँधा है और मैं अभी झूलना चाहती हूँ। झूलते हुए बारिश की ठंडी फुहार मेरे मुँह पर पड़ेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर
"हम सभी वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं पर किसान तो वर्षा के देवताओं की पूजा करते हैं।
मानसून में मेरा आम का पौधा काफी लम्बा हो गया है। अब मुझे उसे सींचने की ज़रूरत नहीं पड़ती! पिछले महीने जब बड़ी तेज़ आँधी चली थी, मेरा पौधा मज़बूती से खड़ा रहा। क्या मेरा आम का पेड़ इस पेड़ के जितना बड़ा हो जायेगा?"
गरजे बादल नाचे मोर
"मैं उस पर चढ़ी थी। "
तारा की गगनचुंबी यात्रा
"“जब उस पर चढ़कर मैंने नीचे देखा तो बादलों के टुकड़े तैर रहे थे।"
तारा की गगनचुंबी यात्रा
"तभी मेरी नज़र सहमती-मुस्कराती गिलहरियों पर पड़ी, जो पत्तियों के बीच छिप रही थीं।”"
तारा की गगनचुंबी यात्रा
"मुझे उस पर बिठाया और फिर घर तक लेकर आए।”"
तारा की गगनचुंबी यात्रा
"देखो देखो, मैं चन्द्रमा पर कितनी ऊँची छलांग लगा सकती हूँ!"
आज, मैं हूँ...
"आधा बिस्तर पर और आधा कक्षा में... फिर मुझसे सुबह की प्रार्थना कभी नहीं छूटती!"
क्या होता अगर?
"मेरे सारे दोस्त उस पर उछलते-कूदते रहते!"
क्या होता अगर?
"पक्षी अपने घर ऊँचाई पर बनाते हैं।"
जीव-जन्तुओं के घर
"घोंघों और कछुओं के घरों का विकास उनकी पीठ पर होता है।"
जीव-जन्तुओं के घर
"मेंढक पानी में और ज़मीन पर भी रह सकते हैं।"
जीव-जन्तुओं के घर
"जब ज़मीन पर टहनियाँ, पत्तियाँ और बारिश की बूँदें गिरती हैं,"
अरे, यह सब कौन खा गया?
"तो कौन इस दावत पर आता है?"
अरे, यह सब कौन खा गया?
"चिड़िया मेरे सिर पर पहुंच कर खुजला सकती है।"
हमारे मित्र कौन है?
"अलार्म की आवाज़ से राजू की नींद टूटी। "ओह, मेरा इतना बढ़िया सपना टूट गया!" पर आज सपना टूटने पर राजू उदास नहीं हुआ।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"राजू पहली बार हवाई-अड्डे के अंदर आया था। उस चौड़े-बड़े से पट्टे पर रखने में अम्मा की मदद की जो सामान को एक मशीन के अंदर ले जा रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"राजू ने उस महिला अफ़सर से कुछ पूछने के लिए अपना मुँह खोला पर अम्मा ने उसे रोक दिया।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
""बिलकुल, वैसे ही जैसे बस चालक या समुद्री जहाज़ के कप्तान का। इन पर भी इतने सारे यात्रियों की सुरक्षित यात्रा की ज़िम्मेदारी होती है।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"में घूमी है। पर तुम अभी सिर्फ नौ वर्ष के हो। बहुत समय है तुम्हारे पास, राजू।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"तभी राजू ने देखा कि लोग गेट नंबर 8 के पास एक कतार में खड़े हो रहे हैं। "वह हमारा गेट है अम्मा। जहाज़ पर चढ़ने का समय हो गया।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"दस मिनट बाद वह अपनी सीट पर ठीक तरह से कुर्सी की पेटी बाँध कर बैठ गए। जहाज़ चलने पर राजू खिड़की से बाहर देखने लगा। जहाज़ पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ा फिर देखते ही देखते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो गई। राजू को लगा कि उसकी कुर्सी थरथरा रही है।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"संख्या चार पर 4, लिखने से सुन्दर डिजाइन या रंगोली बन जाती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"संख्या नौ से पेड़ पर बैठी गिलहरी बनती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"तितलियाँ! मुझे दिख रही हैं लाल,हरी और पीली तितलियाँ! अरे एक छोटी तितली मेरी अंगुली पर बैठी है! क्या आप को वह दिख रही है?"
तितलियां
""क्या मैं इस पर जा सकती हूँ?""
टुमी के पार्क का दिन
"चीता, चीटियल हिरण, मुझे अपनी त्वचा पर सब कुछ है।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी
"मैं लेडीबर्ड्स और तितलियों पर भी हूं।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी
"गुरुवार को मनु पिकनिक पर गया।"
लाल बरसाती
"“नहीं, प्यारे बेटे! आज बारिश नहीं होगी। नन्हे सफ़ेद बादल आसमान में बहुत ऊँचाई पर हैं,” माँ बोलीं।"
लाल बरसाती
"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने आप खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"“मुझे तो एक कोयल उस डाल पर बैठी दिख रही है!” उमा ने इशारा किया।"
कोयल का गला हुआ खराब
"- जो लोग परवेज़ से धीरे से बात करते हैं, वह उन्हें बेहतर समझ पाता है, और ख़ास तौर से जब वे उसकी तरफ देखकर बात कर रहे हों। परवेज़ ठीक से सुन नहीं सकता है, पर वो देख, सूँघ, समझ और सीख सकता है, वह महसूस कर सकता है, और पकड़म-पकड़ाई खेल सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"उसे किनारे के पास पत्थर पर एक घोंघा दिखाई दिया।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""माफ़ करना, पर आराम करने के लिए सपाट चट्टान चाहिए तो मैं बता दूँ!" घोंघे ने कहा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"वह तुम्हें सब जगह ढूँढ रहे थे छुटकी! सुनो, नदी में आगे कुछ दूरी पर तुम्हें सब मिल जाएँगे। ध्यान से सुनो, उनकी आवाज़ें भी सुनाई दे रही हैं।""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"तेज़ी से तैर कर घूम-घूम नदी के किनारे तक जा पहुँची। वह तैरती-तैरती थक गई थी। रेंगती हुई वह रेत पर पहुँची।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""मैं एक अनोखे और मज़ेदार सफ़र पर गई थी, पापा!" घूम-घूम ने खिलखिलाकर कहा और बोली - "और कल फिर मुझे जाना है!""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"इस पृष्ठ पर और अगले पृष्ठ पर चित्रों में तुम घूम-घूम के कितने दोस्तों को पहचान सकते हो?"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
""पूरी कक्षा सिर पर उठा रखी है," स्कूल में मैडम कहतीं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"सत्यम को रविवार का इंतज़ार रहता है क्योंकि हर रविवार वह माँ के साथ खेत पर जाता है।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"उसने मन ही मन सोचा कि मैं चील की तरह आसमान में उड़ रहा हूँ - बादलों पर तैर रहा हूँ, बिना पँख फड़फड़ाए!"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"थक कर सत्यम माँ की पीठ पर लद गया। दोनों ऊँची-नीची पगडंडियों पर चढ़ते उतरते, खेत-जंगल-झरने पार करते घर लौटे।"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"ज़मीन पर रहने वाले जीवों में चीते सबसे ज़्यादा तेज़ी से दौड़ते हैं। वह फर्राटे भी लगाते हैं। क्या आप फर्राटे लगा सकते हैं?"
सत्यम, ज़रा संभल के!
"जंगल पर सूरज की कोमल"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"एक मकड़ा अपने जाल पर खुशी-खुशी"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"पारिजात के छ: पेड़ घने मेंड़ पर खड़े,"
हर पेड़ ज़रूरी है!
"गुलाबी फूलों पर उमड़े पक्षी छोटे-बड़े।"
हर पेड़ ज़रूरी है!
"ऊँचे पहाड़ पर टिके सात लंबे देवदार,"
हर पेड़ ज़रूरी है!
"“रिंकी,” भैया ने पूछा, “फ़र्श पर यह नारियल क्यों रखा है?”"
जादुर्इ गुटका
"तभी उसकी नजर एक मोमबत्ती पर पड़ी। वह उसकी ओर गया।"
मेंढक की तरकीब
"किनारे पर एक मोमबत्ती लगाई। फिर उसे जला दिया।"
मेंढक की तरकीब
"टप! बारिश की एक बूँद द्रुवी के सिर पर गिरती है।"
द्रुवी की छतरी
"वह गुलमोहर के पेड़ पर जाती है।"
द्रुवी की छतरी
"वह रोज़ उन पर बैठती।"
कुत्ते के अंडे
"अंडों पर एक कुत्ता लेटा था।"
कुत्ते के अंडे
"घूमते फिरते बच्चों की तरफ ताकते हुए वह एक जगह पर बैठ गई।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"दीदी बिस्तर पर लेटी थी। बीमार और उदास दिख रही थी।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"चेहरे पर न कोई मुस्कान, न कोई चमक थी। डॉक्टर ने दवाई दी थी।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"‘‘मुझे एक लम्बा सा जानवर दिख रहा है जिस पर भूरे रंग के धब्बे हैं,’’ बाबा ने कहा।"
एक सफ़र, एक खेल
"बाबा और माँ ने एक कंबल सीट पर बिछाया। फिर हवा वाले एक तकिये को फूंक कर फुलाया।"
एक सफ़र, एक खेल
"फिर बोली, ‘‘मुझे मालूम है कि नयी जगह पर यह खेल खेलने में तो और भी मज़ा आयेगा!’’"
एक सफ़र, एक खेल
"अपनी प्रजाति का वह आखिरी जीव था और सैकड़ों वर्षों से यह प्रजाति विलुप्त मान ली गयी थी। लोग नहीं जानते थे कि उस प्रजाति का जीवित अवशेष, जो एक को छोड़ अपने बाकी सारे पंख गँवा चुका था, अब भी अधनिया के जंगलों में विचरता था। गजपक्षी और गाँव वाले एक दूसरे से एक सुरक्षित दूरी बनाये रखते थे। पर मुनिया नहीं। हालाँकि चलते समय वह लँगड़ाती थी, लेकिन थी बड़ी हिम्मत वाली। अक्सर वह जंगल में घुस जाती और एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी को देखने के लिए झील पर जाया करती थी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"और हर कोई उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी पर शक करने लगा। नटखट को सर्वत्र ढूँढ चुकने के बाद, मुनिया समेत गाँव के सभी छोटे-बड़े पुराने बरगद की छाँव तले गाँव की चौपाल पर इकट्ठा हुए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"सब लोगों ने सहमति में हुंकारा। मुनिया यह सारी कार्यवाही चुपचाप देखे जा रही थी। वह बोलना चाहती थी, लेकिन जिसकी अनुमति नहीं थी उसकी सज़ा क्या होगी? और अगर वह बोलती भी तो कौन उसकी बात पर यकीन करता?"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"इस पर मुखिया गाँव वालों की गुस्सैल आवाज़ों से भी ऊँची आवाज़ में बोला, “भाइयों, यह बात सही है कि हमारा सामना एक राक्षस से है, लेकिन हमारे पास संख्या की शक्ति है। इसलिए आइये इकट्ठे हो अपनी हिम्मत बाँध उसे ख़त्म करें!” बदले में एक सहमति भरी हुंकार गूँज उठी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“लेकिन उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़ा नहीं खाया,” मुनिया ने लँगड़ाते हुए आगे बढ़कर बहुत धीमे स्वर में कहा। “जिस वक्त घोड़ा ग़ायब हुआ, उस वक्त मैं उसके साथ वहीं पर थी!” समूची सभा में एक गहरा सन्नाटा सा छा गया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया एक पल को तो ठिठकी पर अगले ही पल उसे जंगल में आराम से सोते उस महाकाय का ख़याल आया। वह अगर नहीं गयी तो वह शायद अगली रात भी न देख पाये। एक गहरी साँस लेकर उस आधी रात को ही जंगल से होकर चन्देसरा जाने वाले रास्ते पर लँगड़ाते-लँगड़ाते चल पड़ी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"वह गेट पर रुक गईं। मुझे अंदर अकेले जाना है।"
स्कूल का पहला दिन
"माँ छुट्टी होने पर वहीं मिलेंगी!"
स्कूल का पहला दिन
"वह गेट पर रुक गईं। मुझे अंदर अकेले जाना है।"
स्कूल का पहला दिन
"माँ छुट्टी होने पर वहीं मिलेंगी!"
स्कूल का पहला दिन
"मैं बताती हूँ, “देखो, मैं अपनी टाँगों पर नाच सकती हूँ।”"
टिमी और पेपे
"मैं अपने कपड़े खूँटी पर टाँगती हूँ।"
मेरा घर
"दूसरे दिन गौरी “माँ...माँ...” रंभाती रही पर भीमा नहीं जागा।"
भीमा गधा
"“हाँ... हाँ...” मोती बोला। अगले दिन मोती “भौं... भौं...” भौंकता रहा पर भीमा की नींद नहीं खुली।"
भीमा गधा
"मगर भीमा पर कोई असर ना हुआ।"
भीमा गधा
"“हाँ... हाँ... जरूर।” कालू बोला। अगले दिन कालू
“काँव... काँव” करता रहा पर भीमा नहीं जागा।"
भीमा गधा
"“मैंने जगाया।” उसके सिर पर बैठी मक्खी बोली।"
भीमा गधा
"“मगर अब डिब्बे कहाँ बनाऊँ?” सलेट पर तो जगह ही नहीं थी।"
छुक-छुक-छक
"नन्ही ने सलेट फ़र्श पर रखी और सोचने लगी।"
छुक-छुक-छक
"बैठे-बैठे नन्ही ने फ़र्श पर एक डिब्बा बनाया। डिब्बे के साथ एक और डिब्बा, फिर एक डिब्बा, फिर एक और... नन्ही बनाती गई।"
छुक-छुक-छक
"पुताई वाले अपने काम में लगे थे। उनमें से एक सीढ़ी पर था, और दूसरा छत से झूले पर लटक रहा था।"
नन्हे मददगार
"कुछ रंग ज़मीन पर छलका। कुछ रंग दीवार पर गिरा। और बहुत सारा उन दोनों पर!"
नन्हे मददगार
"आख़िरकार काम खत्म हुआ। उन्होंने ज़मीन पर गिरे रंग को पोंछा। उन्होंने दीवार पर गिरे रंग को पोंछा।"
नन्हे मददगार
"छिलके सड़क पर फेंकते।"
पहलवान जी और केला
"‘‘इस बार माफ़ किया। दोबारा छिलके सड़क पर मत फेंकना।’’"
पहलवान जी और केला
"मैं बताती हूँ, “देखो, मैं अपनी टाँगों पर नाच सकती हूँ।”"
टिमी और पेपे
"सोना की माँ साड़ी पर ठप्पे से छपाई कर रही थीं।"
सोना बड़ी सयानी
"जब माँ के कमरे से चुप्पी हो, तो सोना जान जाती माँ ठप्पे पर अच्छे से रंग लगा रही होंगी। तब वह भी रंग लगाती। जब आवाज़ आती ठप्प तो सोना भी अपना ठप्पा कपड़े पर दबा देती।"
सोना बड़ी सयानी
"की दुकान पर गई।"
सोना की नाक बड़ी तेज
"चाचा तरह-तरह के स्वाद और ख़ुशबू वाले रस तैयार कर रहे थे। चार-चार पतीलों में आग पर इकट्ठे रस पक रहा था।"
सोना की नाक बड़ी तेज
"बेचारा सृंगेरी श्रीनिवास। लगता है इस सालाना बाल-कटाई दिवस पर कोई उसके बाल नहीं काटेगा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस
"हाथ नहीं पर कुछ भी आया।"
सबरंग
"अम्मा गई काम पर बाहर"
सबरंग
"मेरे सिर पर ही सारा घर।"
सबरंग
"ताक़ पर धर दूँ पढ़ना लिखना?"
सबरंग
"हृदयहीनता पर झल्लाई"
सबरंग
"आकाशी गंगा पर उड़ती"
सबरंग
"विवान और माँ हाल में जाकर अपनी अपनी कुर्सी पर बेठे।"
संगीत की दुनिया
"मंच पर सभी संगीतकारों ने अपने-अपने वाद्य-यंत्र बजाये।"
संगीत की दुनिया
"शहर के एक छोटे से बगीचे में पीपल का एक बड़ा सा पेड़ है। उस पेड़ पर गिलहरियों का एक परिवार रहता है। विक्की उस कुनबे का बड़ा ही शेखीमार सदस्य है। उसका चचेरा भाई काटो, दूर जंगल से उससे मिलने आया है।"
नौका की सैर
"“रहने भी दे डरपोक! विक्की के रहते, तुझे किस बात का डर? मैं तो कितनी बार नाव पर गया हूँ।”आगे-आगे विक्की अकड़ते हुए चला।"
नौका की सैर
"किनारे पर एक नाव बाँस से बँधी हुई थी। वे दोनों उसकी रस्सी खोलने भागे। नौका पर सवार होकर, वे सैर का मज़ा ले रहे थे।"
नौका की सैर
"जब नौका किनारे पर पहुँची, काटो जल्दी से जल्दी सबको अपने कारनामे के बारे में बता देना चाहता था। दिन की सारी घटनाओं के बाद, काटो का सिर नौका की तरह चक्कर खा रहा था। खाने की मेज़ पर जैसे ही उसने सिर रखा, उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह गहरी नींद में डूब गया।"
नौका की सैर
"कभी उनकी ऐनक बाथरूम में, कभी बिस्तर पर तो कभी माथे के ऊपर होती।"
नानी की ऐनक
""नानी! आपका चश्मा आपके सिर पर है," मैं कहती।"
नानी की ऐनक
"अम्मा बोली,"वह बहुत देर तक तुम्हारी मौसी से बात भी करती रही थीं। उन्होंने उस स्वेटर को भी पूरा किया, जो वह राजू के लिए बुन रही थीं। फिर वह टहलने निकल गई थीं।"अब मुझे खोज के लिए कई सूत्र मिल गए। मैंने घर में तुरंत ही नई जगहों पर ढूँढ़ना शुरू किया।"
नानी की ऐनक
"ऐनक ऊन में लिपटी पड़ी थी। उनकी कलम के बगल में, फोन के नीचे, मेज़ के ऊपर। और वहीं पर मुझे आधा खाया हुआ लड्डू भी मिला।"
नानी की ऐनक
"मुझे लगता है कि नानी के अगले जन्मदिन पर एक और ऐनक खरीदने के लिए मैं पैसे जमा कर लेती हूँ।"
नानी की ऐनक
"अचानक मेरे सिर पर बारिश क़ी एक बूंद गिरती है,जब मैं आसमान की ओर देखता हूँ बूँदों क़ी झड़ी लग जाती है।"
बारिश हो रही छमा छम
"मिंकू एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते हुए गया।"
जंगल का स्कूल
"शोर मचने लगा। ट्रेन आ रही है! ट्रेन आ रही है!
सब ट्रेन में चढ़ने की कोशिश में थे। पर वह कहाँ हैं, जिनकी शादी में हम सब जा रहे हैं?"
चाचा की शादी
"अनु हमेशा सोचा करती है, पापा अगर एक अच्छा कुरता पहन लें, सिर पर एक पगड़ी रख अपनी कमर पर एक तलवार लटका लें और एक घोड़े पर सवार हो जायें, तो कितने शानदार लगेंगे पापा!"
पापा की मूँछें
"वे यदि एक चुन्नट डली पगड़ी पहन लें, और अपने कंधे पर एक बड़ी-सी गदा उठा लें, तो बहुत रौबीले दिखेंगे!"
पापा की मूँछें
"अगर वे एक काला टोप और एक लम्बा काला ओवरकोट पहन लें... अपनी आँखों पर एक काला चश्मा लगा लें, तो वे एकदम उस टीवी वाले जासूस की तरह लगेंगे जो सब चोरों को पकड़ लेता है!"
पापा की मूँछें
"चींटी दाने को लेकर बाल्टी पर चढ़ने लगी। लेकिन फिसलकर गिर पड़ी।"
दाल का दाना
"उसने दाने पर चोंच मारी लेकिन उसका निशाना चूक गया।"
दाल का दाना
"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना
"कभी फुदक कर पेड़ के ऊपर तो कभी पेड़ के नीचे। कभी दोनों पैरों पर खड़ी होकर छलाँगें लगाती तो कभी चिड़ियों के पीछे दौड़ लगाती।"
चुलबुल की पूँछ
"एक दिन एक पेड़ की डाल पर बैठी वह अखरोट खा रही थी। अचानक उसकी निगाह अपनी ही पूँछ पर पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ
"जैसे ही डॉक्टर बोम्बो कमरे में आए, चुलबुल उछल कर मेज़ पर बैठ गई।"
चुलबुल की पूँछ
""ठीक है, अगर तुम नहीं मानती हो तो मैं तुम्हारी पूँछ बदल देता हूँ," डॉक्टर बोम्बो ने नाक पर चश्मा ऊपर खिसकाया।"
चुलबुल की पूँछ
""मैं भी बंदर भैया की तरह पेड़ की ऊँची डाल पर अपनी लम्बी पूँछ लटका कर बैठूँगी," यूँ सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ
""पेड़ पर चढ़ कर थोड़ा आराम कर लूँ," सोचते हुए वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ
"लेकिन यह क्या? वह तो एक इंच भी पेड़ पर नहीं चढ़ पाई। कई बार उसने कोशिश की, हर बार वह गिर जाती। आखिर थक कर वह बैठ गई।"
चुलबुल की पूँछ
""ओफ़! इस पूँछ के साथ तो मैं भाग भी नहीं पा रही हूँ। मेरी अपनी पूँछ कितनी हल्की थी। मैं कितने आराम से भाग सकती थी," चुलबुल अपनी गलती पर पछताने लगी। किसी तरह गिरते पड़ते वह फिर से डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ
"उसके होठों पर एक गीत था।"
चुलबुल की पूँछ
"अगर मैं अपनी उंगलियाँ अपनी कलाई पर रखूँ तो मैं अपनी नब्ज़ सुन सकती
हूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...
"मैं फ़र्श पर बैठ गई।
वह कुर्सी पर बैठ गया।"
चलो किताबें खरीदने
"हम दौड़कर दादाजी के पास घर आये। उनके बिस्तर पर चढ़कर बैठ गये।"
चलो किताबें खरीदने
"जंगल पर सूरज की कोमल"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"एक मकड़ा अपने जाल पर खुशी-खुशी"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"सबसे पहले उसे दादीमाँ ने देखा। वह ज़ोर से सोफे पर कूदी और चिल्लाईं,"चूहा!""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"सारे कुशन फर्श पर गिर गये।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"लपक कर खिड़की पर चढ़ते हुए पापा ने पूछा,"कहाँ?""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"माँ ने ज़ोर से कहा,"वहाँ!"और मेज़ पर चढ़ गईं।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"सारी प्लेटें फर्श पर धड़ाम से गिर गईं।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
""चूहा, वहाँ तुम्हारी बाईं तरफ!"पापा ख़िड़की पर और ऊँचे चढ़ते हुए चिल्लाये।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"वो खिड़की पर और ऊपर नहीं चढ़ सकते थे। वो ख़िड़की से नीचे उतरे और इससे पहले कि चूहा उनको देखता, वह बिस्तर के नीचे घुस गये।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"शोर से छोटी जग गई। आँखें मलते हुए वो अपनी दरी पर बैठ गई।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"अरे उसके तकिये पर वो क्या था?"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"सोफे पर छलाँग लगाकर, खिड़की पर चढ़ते, मेज पर कूदते, तकियों पर कलाबजियाँ खाते...."
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"... पर्दों के बीच से दौड़ते, प्लेटों पर से फिसलते हुए सीधे दरवाज़े से बाहर!"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
""आप यहाँ आराम से कुर्सी पर बैठें, और मैं ले आता हूँ अपने छोटे, भूरे बक्से में से कुछ ख़ास चीज़।""
गुल्ली का गज़ब पिटारा
""अब मैं इसे ज़मीन पर घुमाऊँगा और जल्द ही सुई मिल जाएगी।" गुल्ली बोला।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा
"स्कूल की छुट्टी होने में पाँच मिनट रह गये थे पर चीनू और इन्तज़ार नहीं कर सकता था। उसने बाहर देखा। वहाँ कोई नहीं था। तभी कहीं पास से घंटी की टनटनाहट सुनाई दी।"
कबाड़ी वाला
"स्कूल की घंटी बजी। चीनू पिता जी के पास दौड़ कर पहुँचा। चेहरे पर बड़ी सी
मुस्कान खेल रही थी। स्कूल में वह अकेला बच्चा था जिसके पिता जी उसे लेने आते थे।"
कबाड़ी वाला
"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला
"घर पर सब सामान सहेज कर रखने के बाद चीनू के पिता जी ने उसे बुलाया।"
कबाड़ी वाला
"क्योंकि उसके सिर पर हमेशा एक बादल मँडराता।"
कचरे का बादल
"और इन सब पर भिनभिनाते मक्खियों के झुंड।"
कचरे का बादल
"कोई भी बच्चा ऐसी लड़की के साथ नहीं खेलना चाहता था जिसके सिर पर हमेशा कचरे का बादल मँडराता हो।"
कचरे का बादल
"कहीं कोई केले का छिल्का उसके सर पर गिर पड़े तो? छी!"
कचरे का बादल
""सड़क पर केले का छिलका मत फेंको।""
कचरे का बादल
"साथ ही सिर पर कचरे का बादल मँडरा रहा था।"
कचरे का बादल
"इसके बाद चीकू ने बाला को देखा सड़क पर केले का छिलका फेंकते हुए।"
कचरे का बादल
"चीकू को गुस्सा आ गया। क्या बाला को मेरे सिर पर कचरे का बादल नहीं दिख रहा?"
कचरे का बादल
"वो चिल्लाई, "अरे बुदधू, छिलके को सड़क पर मत फेंको, कोई फिसल जाएगा!""
कचरे का बादल
"कभी सोचा है कि जो कचरा हम कूड़ेदान में फेंक देते है उसका क्या होता होगा? नहीं, वह हमारे सिर पर बादल बन कर नहीं मँडराता लेकिन जो भी कचरा हम फेंकते है वो हमारे घर के पास बने बड़े से कचराघर में जमा हो जाता है। सब कुछ एक साथ, सड़ती सब्जियाँ, टॉफ़ी के रैपर, किताबों-कापियों के फटे पन्ने।"
कचरे का बादल
"जब भी हम केले के छिलके या पेंसिल की छीलन सड़क पर फेंकते है, तो यह कचरा सड़क के किनारे इकठ्ठा हो जाता है। कुछ उन नालियों के अंदर चला जाता है और उन में जमा हो जाता है। रूकी हुई नालियों में मक्खी-मच्छर पैदा होते हैं जो बीमारियाँ फैलाते हैं! इससे हमारा पर्यावरण गन्दा होता है और अपने आसपास कूड़ा- कचरा तो किसी को भी अच्छा नहीं लगता। चीकू के दिल से पूछिये।"
कचरे का बादल
"तो उसका छिलका सड़क पर न फेंके।"
कचरे का बादल
"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी
"अब काका उड़कर पास के खेत पर गया और खेत से बोला,"
काका और मुन्नी
"काका ने खुशी-खुशी भट्ठी का दरवाज़ा खोला। तभी हवा का तेज़ झोंका आया और काका भट्ठी के कोयलों पर उलटा जा गिरा। उसकी पूँछ जल गयी। पूँछ की आग बुझाता काका चीखा,"
काका और मुन्नी
"फूल-फूल पर उड़ती थी,"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"फूलों पर फूलों सी तितली"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"पलकों पर भी ये आ जाएँ,"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला
"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल
"इसीलिए बड़ी मछली रेडियो पर समाचार सुनने को तरसती रह जाती।"
मछली ने समाचार सुने
"उस दिन भी यही सिलसिला चल रहा था। पर वह समाचार का आखिरी हिस्सा सुन पाई। उसे बहुत खुशी हुई कि कम से कम इतना तो सुनने को मिला।"
मछली ने समाचार सुने
"मुखिया तुरंत नदी की ओर चल पड़ा। उसके आते ही दादा ने मुखिया का स्वागत कर उसे बिठाया। घर के भीतर की ओर पुकार कर कॉफ़ी बनाने के लिए कहा। फिर रेडियो पर सुनी बात बताई।"
मछली ने समाचार सुने
"तोहफ़ों से लदीं, मेहरुनिस्सा और कमरुनिस्सा अपने भाई अज़हर मियाँ के साथ हाथों में मीठी-निमकी की पत्तलें लिए चली जा रही थीं। ईद के मौके पर तीनों को बहुत उम्दा चिकनकारी किए नए कपड़े मिले थे जिन्हें पहन कर उनका मन बल्लियों उछल रहा था। मेहरु के कुरते पर गहरे गुलाबी रंग के फूल कढ़े थे और कमरु भी फूल-पत्तीदार कढ़ाई वाला कुरता पहने थी। अज़हर मियाँ भी अपनी बारीक कढ़ी नई टोपी पहने काफ़ी खुश दिखाई देते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"उनके अब्बू ठेकेदारी करते थे। चौक के थोक का सामान रखने वाले दुकानदार उन्हें कपड़ा देते थे और अब्बू घर पर ही कढ़ाई का काम करने वाली औरतों से उस कपड़े पर चिकनकारी करवाते थे। दुकानदार हर औरत को कढ़ाई के हर कपड़े का पैसा देता था। अब्बू भी कपड़े के हिसाब से आढ़त पाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"एकाएक अज़हर मियाँ रुक गए, “घर पर बैठी हमारी एक और बहन भी तो है जिसने आज नए कपड़े नहीं पहने हैं। हम में से किसी ने भी उसके बारे में सोचा तक नहीं।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“मुमताज़ हमारी मौसेरी बहन ही तो है। और वह घर पर इसलिए है क्योंकि वह चल नहीं सकती,” कमरु और मेहरु इकट्ठा चिहुंकीं, “लेकिन हाँ, हमें उसके लिए भी कुछ मिठाई-पकवान तो ले ही लेना चाहिए।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"किनारे पर लंबे-लंबे गर्म फिरन पहने, पीठ झुकाए कुछ आदमी अपने काम में मसरूफ़ थे। वे लोग बहुत ही महीन सुइयों से गर्म दुशालों पर कढ़ाई कर रहे थे-रंगबिरंगे फूल, पत्तियाँ और पंछी...हूबहू वादी के फूलों और पंछियों जैसे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ नया टाँका जल्दी से सीख गई और उसकी उँगलियाँ शॉल पर दौड़ने लगीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अगले रोज़ मुन्नु ने देखा कि मुमताज़ अपने कबूतरों के पास उदास बैठी है। पूछने पर वह बोली “सफ़ेद कपड़े पर कढ़ाई करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि वह बहुत जल्दी गंदा हो जाता है। और अपने रंगीन धागों के बिना मैं काढ़ूँगी भी कैसे?” मुमताज़ मायूस थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"नानी ने मुमताज़ के माथे को बड़े प्यार से चूमा और बोली, “क्यों मेरी बच्ची, तू इतनी उदास क्यों है? तुझे शायद पता नहीं कि असली चिकनकारी रंगीन कपड़े पर तो होती ही नहीं। उसे तो सदियों से सफ़ेद मलमल पर ही काढ़ते थे क्योंकि यह कुरते आदमी ही पहना करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"फिर जब औरतों ने चिकन के कुरते पहनना शुरु किए तो यह काम रंगीन कपड़े पर भी होने लगा। लेकिन चिकन की बेहतरीन कढ़ाई सफ़ेद मलमल पर सफ़ेद धागे से ही होती है। यही इस काम का सार है, उसकी रूह है...और एक काबिल कशीदाकारिन का सबसे बड़ा इम्तिहान भी।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"जब मुमताज़ इस विस्मय-नगरी से लौटी तो उसने एक बड़ा सफ़ेद कपड़ा लिया और उस पर सफ़ेद धागे से फूल काढ़ने बैठ गई। उसने हरदोई के आमों और कश्मीर के बादाम के जैसे पत्ते काढ़े और फूलों के गुच्छों से लदी झाड़ियों के बीचोंबीच एक बहुत ही खूबसूरत मोर भी! वह किसी जादुई चादर से कम नहीं लगती थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ के काम ने तो सभी का मन मोह लिया था। थोक के व्यापारी और चिकनदार-सबकी ज़ुबाँ पर हरदोई से आई एक छोटी-सी चिकनकारिन का ही नाम था! अपनी नुमाइशों में दिखाने के लिए कुछ आला, अमीर औरतें आबिदा खाला से मुमताज़ का काम माँगने आईं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"साँझी की प्राचीन कला आज भी भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा और वृंदावन में प्रचलित है। एक ज़माने में कलाकार पेड़ की पतली छाल का प्रयोग करते थे लेकिन अब तो तरह-तरह के कागज़ भी इस्तेमाल किये जाते हैं। नमूने बहुत विस्तृत होते हैं और अधिकतर धार्मिक दृश्य, फूल-पत्ते, वयन और रेखागणित संरचनाएँ दर्शाते हैं। इस जटिल कला का उपयोग मंदिरों में प्रतिमाएँ सजाने के लिए, कपड़े पर देवी-देवताओं के स्टैंसिल या बच्चों के लिए स्टैंसिल काटने के लिए किया जाता है। तस्वीर में रंग या चमक देने के लिए स्टैंसिल के नीचे रंगीन या धात्विक कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कबूतरों की गुटरगूँ सुनते हुए, दोनों फ़तेहपुर सीकरी के महल पर पहुँचे। भाले लिये दो पहरेदार, फाटक पर तैनात थे।"
रज़ा और बादशाह
"बादशाह के कमरे के दरवाज़े पर इन्तज़ार करते हुए रज़ा ने धनी सिंह को ध्यान से देखा। दर्ज़ी का बेटा होने के नाते सबसे पहले कपड़ों पर नज़र टिकी। लाल और स़फेद, फूलदार सूती अंगरखा और स़फेद चूड़ीदार। धनी सिंह की नागरा की जूतियों की नोक अन्दर की तरफ़ उमेठी हुई थी। उनकी कमर पर कपड़े की पट्टी बँधी हुई थी जिसे पटका कहा जाता है। पर रज़ा को सबसे ज़्यादा पसन्द उनकी चटख़ लाल रंग की पगड़ी आई, जिस पर स़फेद और पीले चौरस और बुंदकियों का नमूना था।"
रज़ा और बादशाह
"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा ने झुक कर सलाम किया और फिर अपने बादशाह की तरफ़ देखा। एक खिदमतगार हाथ में डिब्बा लिये खड़ा था और अकबर उसमें से गहने चुन रहे थे। कद में बहुत लम्बे नहीं थे पर उनके एक तलवारबाज़ के जैसे चौड़े कन्धे थे। बड़ी बड़ी, थोड़ी तिरछी आँखें, नीचे की ओर मुड़ी मूँछें और ओठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था।"
रज़ा और बादशाह
"रहमत ने पोटली खोली और अंगरखे पलंग पर सजा दिये। बेहतरीन मलमल से बने हुए थे और बड़ी बारीक कढ़ाई थी। सभी गर्मी के हल्के रंगों में थे, नींबुई, आसमानी, धानी, हल्का जामनी और झकाझक स़फेद। रज़ा जानता था कि बादशाह का पसंदीदा रंग स़फेद था।"
रज़ा और बादशाह
"रहमत ने कई पटके उठाये और अकबर की कमर पर एक आसमानी रंग का पटका ऐसे बाँधा कि झालरदार सिरे आगे की तरफ़ लटकें।"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा और उसके अब्बा ने, एक के बाद एक कई पटके बाँध कर दिखाये-हरा और पीला, नारंगी और जामनी, पर अकबर को कोई भी न सुहाया।"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा ने देखा कि अब्बा के माथे पर परेशानी झलक रही थी। हाय, अगर बादशाह सलामत को पटके पसन्द नहीं आये तो क्या वे सारे कपड़े लौटा देंगे, मुझे फ़ौरन कुछ करना होगा, उसने सोचा।"
रज़ा और बादशाह
"उसने यहाँ-वहाँ नज़र दौड़ाई और अनायास बोल पड़ा,”हुज़ूर क्या आप चटख़ लाल पर स़फेद और पीली बुंदकियों वाला देखना पसन्द करेंगे?“"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा ने लपक कर धनी सिंह की पगड़ी थामी। उसके लपेटे सीधे करके अकबर की कमर पर बाँध दी। जब तक अकबर आड़े-टेढ़े होकर अपने आप को आईने में निहार रहे थे,"
रज़ा और बादशाह
"इतिहास के कुछ रोचक तथ्य 1. रज़ा, बादशाह अकबर के शासनकाल में अब से 400 साल पहले रहता था। अकबर मुग़ल राजवंश का सबसे महान राजा था। वह एक प्रसिद्ध योद्धा भी था। उसे नये नमूनों के कपड़े पहनने का बहुत शौक़ था। वह पतंगबाज़ी और आम खाने का भी शौकीन था। 2. बाबर, मुग़ल राजवंश का संस्थापक, काबुल का राजा था। उसने 1526 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया। अकबर, बाबर का पोता था। वह भी एक बड़ा कामयाब सेनापति था और अपने 49 साल के शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं हारा।"
रज़ा और बादशाह
"3. दो मुग़ल बादशाहों ने नये शहर बनवाये। अकबर ने आगरा के पास, फ़तेहपुर सीकरी बनवाया और शाहजहाँ ने दिल्ली में, शाहजहाँनाबाद। फ़तेहपुर सीकरी, आज वीरान पड़ा है पर शाहजहाँनाबाद (आज पुरानी दिल्ली कहलाता है) में आज भी लोग रहते हैं और वहाँ ज़िन्दगी की चहल-पहल बरक़रार है।"
रज़ा और बादशाह
"4. शाहजहाँ का मशहूर मयूर सिंहासन (पीकॉक थ्रोन) एक चौकोर चपटा आसन था। उसके हर कोने पर पतले खम्बे थे जो बेशकीमती नगीनों से सजे हुए थे। आसन के ऊपर एक छत्र था जिसके ऊपर नगीनों से जड़ी मोर की आकृति थी। बादशाह इस छत्र के नीचे, रेशमी गद्दियों की टेक लेकर बैठा करता था।"
रज़ा और बादशाह
"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद
"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद
"सुमी अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकी। और खेलने के बाद भी उसे जूते के फीते बाँधने का ध्यान नहीं रहा, और वह उलझ कर गिर पड़ी। उसकी ठोड़ी में चोट लग गई। जब मैडम ने उसकी ठोड़ी की चोट देखी तो उस पर ऐंटीसेप्टिक क्रीम तो लगा दी, लेकिन उसे लापरवाही बरतने के लिए डाँट भी पड़ी। “जूतों के फीते बाँधे बिना पहाड़ों में दौड़ लगाई जाती है? घर जाते समय गिर पड़तीं या और कुछ हो जाता तो क्या होता?“"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद
"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद
"मुझे लगता है कि मुझे यह बात पहले ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी- जब भी वार्षिकोत्सव आने वाला होता है, प्रिंसिपल साहब कुछ सनक से जाते हैं। वे तुम पर चिल्ला सकते हैं - वे किसी को भी फटकार सकते हैं। अगर ऐसा हो, तो बुरा न मानना। मेरी माँ कहती है कि वे बहुत ज़्यादा तनाव में आ जाते हैं, क्योंकि वार्षिकोत्सव कैसा रहा इससे पता चलता है कि उन्होंने काम कैसा किया है।"
थोड़ी सी मदद
"पता नहीं इसका क्या मतलब है, लेकिन वे बहुत परेशान दिखते हैं। तुमने उनके बाल देखे हैं? वह ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने बिजली का नँगा तार छू लिया हो और उन्हें करारा झटका लगा हो! वैसे, मुझे लगता है कि रानी ने उनकी कुर्सी पर मेंढक रख कर अच्छा नहीं किया।"
थोड़ी सी मदद
"2. आपकी कक्षा की एक लड़की लँगड़ाते हुए चलती है। बाकी बच्चे उस पर हँसते हैं। आप क्या करेंगे?"
थोड़ी सी मदद
"आप स्वतन्त्र किस्म के व्यक्ति हैं और मानते हैं कि सभी को ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप को किसी की चिन्ता नहीं होती। बस आप दूसरों पर दबाव नहीं बनाना चाहते।"
थोड़ी सी मदद