Peer-review:

Edit word

ब न

Add letter-sound correspondence launch
Delete
Peer-review 🕵🏽‍♀📖️️️️

Do you approve the quality of this word?



Contributions 👩🏽‍💻
Revision #1 (2020-08-14 12:40)
Nya Ξlimu
https://forvo.com/word/%E0%A4%AC%E0%A4%A8/#hi
Resources
Hindi resources:
  1. Forvo
  2. Google Translate
Labeled content
Emojis
None

Images
None

Videos
// TODO

Storybook paragraphs containing word (33)

"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"जब हम आटे को गूँधते हैं तो एक दूसरे से चिपके कण, फैलने लगते हैं और फिर इस तरह फैलने के बाद एक नया प्रोटीन बन जाता है, जिसे कहते हैं ग्लूटेन। ग्लूटेन, रबर की तरह लचीला होता है, इसलिए गूँधे हुये आटे को हम कोई भी आकार दे सकते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"दर असल पूरी के साथ यह होता है - गूँधे हुये आटे में ग्लूटेन होने की वजह से उसे बेला जा सकता है। जब इस आटे की एक छोटी सी लोई को बेला जाता है तो पूरी में ग्लूटेन की एक सतह बन जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"याद है न कि आटे को गूँधने के लिये इस में पानी मिलाया गया था? ज़्यादा तापक्रम की वजह से पूरी के अंदर का पानी भाप बन कर उड़ जाता है। यह भाप बहुत ताकतवर होती है और इससे ग्लूटेन की सतह ऊपर चली जाती है। इसी वजह से पूरी फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"पूरी बहुत पतली बेली गई है, और उसमें सही मात्रा में पानी नहीं डाला गया है जिससे भाप और प्रेशर बन सके और पूरी फूल सके।"
पूरी क्यों फूलती है?

"क्या ज्वार, बाजरे या चावल के आटे से पूरियाँ बन सकती है, अगर नहीं तो क्यों? गेहूँ के आटे से पूरियों के अलावा हम और क्या चीज़ें बना सकते हैं? अगर आटे में ज़्यादा पानी डाल दिया जाये तो क्या होगा? अगर हम आटे को खाना पकाने के दूसरे तरीकों, जैसे तंदूर या तवा पर पकाते हैं तो क्या होता है?"
पूरी क्यों फूलती है?

"मधुमक्खी बन कर देखो"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"क्लीन ट्रेन (1925) – 3 फ़रवरी, 1925 के दिन भारत की पहली इलैक्ट्रिक ट्रेन ने बंबई के विक्टोरिया टर्मिनस से कुर्ला स्टेशन तक की यात्रा की। और इसी के साथ, भारत एशिया का तीसरा और दुनिया का 24बीसवाँ ऐसा देश बन गया जहां इलैक्ट्रिक ट्रेन की शुरुआत हुई।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन-ही-मन बड़बड़ाया।"
स्वतंत्रता की ओर

"बारिश से ज़मीन पर तरह-तरह के नमूने बन जाते हैं। मेरे चाचा ने वर्षा का पानी एकत्रित करने के लिए कई जगह बालटियाँ और ड्रम रखे हैं। परनालों से छत का पानी इन ड्रमों में गिरता है। मैं इन्हें झरना कहती हूँ!"
गरजे बादल नाचे मोर

"“हाँ बहुत अच्छा। ये तो बहुत सुंदर महल बन गया है!”"
मलार का बड़ा सा घर

"बत्तख बन जाती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"संख्या चार पर 4, लिखने से सुन्दर डिजाइन या रंगोली बन जाती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"संख्या पांच से सुन्दर तितली बन जाती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"‘पपीते के पेड़ के पत्तों से एक प्यारी छतरी बन सकती है,’ द्रुवी सोचती है।"
द्रुवी की छतरी

"किल्ले से वह बन गया बूटा।"
सबरंग

""बाँस में फ़ूको तो सुर बन जाता,"
संगीत की दुनिया

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"कभी सोचा है कि जो कचरा हम कूड़ेदान में फेंक देते है उसका क्या होता होगा? नहीं, वह हमारे सिर पर बादल बन कर नहीं मँडराता लेकिन जो भी कचरा हम फेंकते है वो हमारे घर के पास बने बड़े से कचराघर में जमा हो जाता है। सब कुछ एक साथ, सड़ती सब्जियाँ, टॉफ़ी के रैपर, किताबों-कापियों के फटे पन्ने।"
कचरे का बादल

"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद

"भागते कल्लू के पास जवाब देने की फुर्सत कहाँ थी? धरमपाल चाचा को मज़ाक सूझता रहता है, बड़बड़ाते कल्लू ने कदम ताल न तोड़ी। यहाँ कल्लू की जान पर बन आई थी और उन्हें अपने पकोड़ों से फुर्सत नहीं। और कल्लू की स्कूल की देरी में हँसने वाली कौन सी बात थी? वह तो हर हफ़्ते की कहानी थी!"
कल्लू कहानीबाज़

"हुए, तब तक वे स्वयं एक बहुत ही सक्षम खिलाड़ी बन चुके थे।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"भारत के लिए एक और स्वर्ण पदक। ध्यान चंद के लिए कर्इ और गोल। अब वो एक ‘सुपरस्टार’ बन चुके थे, अपने ज़माने के रोजर फेडरर अथवा राहुल द्रविड। उनका भारत एवं उन अन्य सभी जगह असाधारण सम्मान होता जहाँ हॉकी खेली जाती।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"मोरू को अंक अच्छे लगते थे। 1 का अंक उसे दुबला और अकेला सा लगता था तो 100 मोटा और अमीर सा। 9 कितना इकहरा और आकर्षक लगता खास तौर पर वह जब 1 के बगल में खड़ा हो कर 19 बन जाता। अंक उसे कभी न ख़त्म होने वाली सीढ़ी जैसे लगते। मोरू कल्पना करता कि वह एक-एक कर के सीढ़ी चढ़ रहा है।"
मोरू एक पहेली

"फिर आई अंकों वाली किताबें। मोरू की आँखें और उंगलियों की तेज़ी कुछ ढीली पड़ी। मोटे अंक पतले अंकों के साथ नाच रहे थे। दो अंक एक के ऊपर एक ऐसे बैठ गये जैसे कोई ढुलमुल इमारत हो जो अपनी नींव भरने का इन्तज़ार कर रही हो। गुणा के सवालों में जैसे संख्या बढ़ती जाती थी, वो कुछ नाटे और नीचे की तरफ़ चौड़ाते लग रहे थे। भाग इसका ठीक उलटा था। शुरूआत में बड़ी संख्या और अगर ध्यान से करते जाओ तो अन्त में लम्बी पतली आकर्षक पूँछ बन जाती थी। अगर भाग्यशाली हो तो अन्त में कुछ नहीं बचेगा। एक-एक कर के सारे अंक और उनके करतब मोरू के पास लौट आये।"
मोरू एक पहेली

"अब गरजते बादलों में, वायु ब़र्फ के टुकड़े और पानी की बूँदों को ऊपर की ओर ले जाती है। यह जब आपस में टकराते हैं तो इनके परमाणु आयन बन जाते हैं। अब धन आवेश वाले आयन हल्के होने की वजह से ऊपर उठते हैं और ॠण आवेश वाले आयन धरती की ओर, बादल के निचले हिस्से की ओर जाते हैं।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"पैरेटफ़िश के दांत तोते की चोंच जैसे नज़र आते हैं। अपने बड़े और मज़बूत दांतों से ये मछलियां सख़्त प्रवाल पर जमी काई खुरच कर खाती हैं। कुछ किस्म की पैरेटफ़िश तो हरियाली के साथ थोड़ा बहुत प्रवाल भी खुरंच कर खा जाती हैं। खुरंच कर खाया हुआ प्रवाल इनकी आंतों से बाहर आते-आते बारीक पिस चुका होता है, और लहरों के साथ किनारे आकर ख़ूबसूरत 'बीच’ यानी समुद्रतट की सफ़ेद रेत का हिस्सा बन जाता है।"
गहरे सागर के अंदर!

"लेकिन कितना अच्छा हो अग‍र यह कई-पेड़ों-वाली-जगह बन सके!”"
जादव का जँगल

"जो कभी एक बिना-पेड़ों-वाली-जगह हुआ करती थी, ऐसी बँजर और बेकार जगह अब एक शानदार, हरियाली से भरी कई-पेड़ों-वाली-जगह बन गई थी।अब यहाँ हरे-भरे पेड़ लहलहा रहे थे।"
जादव का जँगल

"कस्बे शहर बन गये हैं और जादव बूढ़े होते जा रहे हैं।"
जादव का जँगल

"कई-पेड़ों-वाली-जगह नहीं बन जाती।"
जादव का जँगल

"दीदी रोज़ स्कूल आने लगीं और बच्चों की दोस्त बन गयीं और टीचर की भी।"
कहानियों का शहर