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Storybook paragraphs containing word (497)

"कुछ बनबिलाव घरेलू बिल्लियों की तरह दिखते हैं।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"दौड़ दौड़ कर मोटा राजा भी कुत्ते की तरह पतला हो गया।"
एक था मोटा राजा

"घर जाते समय ज़ोर की हवा चली। वह मेरी टोपी उड़ा ले गई।"
चाँद का तोहफ़ा

"मेरी टोपी एक पुराने पीपल के पेड़ की डाली पर जा लटकी।"
चाँद का तोहफ़ा

"आपका क्या ख्याल है? क्या सूरज को टोपी की ज़रूरत है?"
चाँद का तोहफ़ा

"ढेर सारी बातें भी की | मुझे अच्छा लगा और मजा भी आया |"
मैं और मेरी दोस्त टीना|

"मुझे पैरों की आवाज़ आ रही है! कौन है? कौन है?"
मैं नहीं डरती !

"बारिश की ठंडी ठंडी बूँदे  ! "
रिमझिम बरसे बादल

"पानी की गोल गोल बूँदे देख "
रिमझिम बरसे बादल

"ये बुधवार की कक्षा में होने वाले नाटक के लिए हैं।"
गप्पू नाच नहीं सकती

"वह बच्चों से कहती हैं, “गप्पू की तरह करो!”"
गप्पू नाच नहीं सकती

"पेड़ की शाख पर उलटा लटक गया।"
सो जाओ टिंकु!

"“तुम कौन हो?” टिंकु ने पूछा।
 “मैं उल्लू हूँ।” जवाब आया।
 “मैं रात को अपने भोजन की तलाश में निकलता हूँ।”"
सो जाओ टिंकु!

"झीं... झीं! वहाँ झीं... झीं की आवाज़ गूँजी।"
सो जाओ टिंकु!

"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो

"अलग-अलग परिवारों को लाजपत नगर के बाज़ार ले जाना, अर्जुन को बहुत पसंद था। सैलानी जब चार पहियों की जगह तीन पहियों की सवारी चुनते तो उसका मन खुशी से झूम उठता। शिरीष जी के साथ कुतुब मीनार के पास पेड़ की छाँव में आराम करना उसे बहुत अच्छा लगता।"
उड़ने वाला ऑटो

"रात में कनॉट प्लेस की ख़ूबसूरती देखने से उसका मन कभी नहीं भरता। 
रेलवे स्टेशन की चहल-पहल और क्रिकेट मैच के बाद फ़िरोज़शाह कोटला 
मैदान से उमड़ती भीड़ उसे रोमांचित कर देती।"
उड़ने वाला ऑटो

"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
 वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
 शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो

"लेकिन अर्जुन जानता था कि यह तो बस एक सपना है। ऑटो में हेलिकॉप्टर के पंख होना तो ठीक ऐसा था जैसे हाथी के पंख निकल आना, या फिर रॉकेट की तरह अंतरिक्ष में ढेर सारे डिब्बों वाली ट्रेन का होना।"
उड़ने वाला ऑटो

"गर्मी के दिन थे, भीड़-भाड़ वाले एक चौराहे पर अर्जुन खड़ा इंतज़ार कर रहा था। शिरीष जी के पीछे अधेड़ उम्र की सुरमई बालों वाली, पुरानी सी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी।"
उड़ने वाला ऑटो

"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो

"आगे बढ़ते ही अर्जुन को अचानक महसूस हुआ कि उसके पहिये पर दबाव कम होने लगा है, उसके सामने की भीड़ छँटने लगी है और वह बहुत आराम से आगे बढ़ गया है, “जाने दो अर्जुन भाई,” उसके चाचा ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो

"अब उस औरत की साड़ी चमक रही थी, जिस पर सोने के धागों से कढ़ाई की गई थी। उसने हँस कर कहा, “जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो

"चिड़ियों का झुण्ड उसे देख तितर-बितर हो गया। अर्जुन की हेड लाइट जगमगा उठी।"
उड़ने वाला ऑटो

"उसे सड़कों का बहुत बड़ा जाल दिखाई दिया मानो किसी शरारती मकड़े ने बनाया हो।
 फटी आँखों से शिरीष जी खुशी में चीख रहे थे। न तो वह हैंडल बार को पकड़े हुए थे और न ही गाड़ियों से बचने की कोशिश कर रहे थे।"
उड़ने वाला ऑटो

"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद 
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
 अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
 एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो

"उस औरत ने नीचे देखते हुए वहाँ की ढेर सारी खुशियों के बारे में सोचा। साड़ी की चमक उसे याद नहीं रही।"
उड़ने वाला ऑटो

"अर्जुन की हेड लाइट मद्धिम पड़ रही थी। उसे अब सब कुछ बेकार लग रहा था। वह शिरीष जी की बातें भाँप रहा था। अब वह उस औरत के भावों को भी समझ सकता था।"
उड़ने वाला ऑटो

"वह नीचे और नीचे आया, उसे शहर की गर्माहट महसूस होने लगी थी। जितना करीब वह पहुँच रहा था उतनी ही ऊर्जा उसे मिल रही थी।"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू 
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था। 
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
 उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
 वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो

"ऊपर की एक खिड़की से उस औरत के नाती-नातिन ने हाथ हिलाया। ऑटो से नीचे उतर कर उसने शिरीष जी को किराया दिया।"
उड़ने वाला ऑटो

"मैं माँ की तस्वीर बनाता हूँ। वह बिना हिले बैठी रहती हैं।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"मैं अपनी बहन की तस्वीर बनाता हूँ। वह बिना हिले नहीं बैठती।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"मैं बहुत सी ची़जों की तस्वीरें बनाता हूँ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"मैं बिल्ली की तस्वीर बनाता हूँ। वह मोटी है।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"मैं काग़ज़ की नाव,चिड़ियाँ और हवाई जहाज़ बनाता हूँ।"
मैं बहुत कुछ बना सकता हूँ!

"पिशि दुखी थी। कल तक वह अंडमान निकोबार के तट से दूर, मैंटा रे मछलियों के समूह का हिस्सा थी। वह हिन्द महासागर की सुन्दर लहरों के बीच भर पेट खाना खाती और मज़े से रहती थी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"उसे पता था उसे क्या करना चाहिए। पिशि ने होश सँभाले। वह अपने दोस्तों के बीच वापस जाना चाहती थी। पर उस से पहले घाव का ठीक होना ज़रूरी था। वह तेज़ी से तट की ओर तैरने लगी।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"क्लीनर फ़िश नाम की मछलियों ने फटी खाल के टुकड़े खा लिए। पिशि को आराम महसूस हुआ। हिन्द महासागर में रहने वाली ५००० किस्म की मछलियाँ उसे पहले से भी ज़्यादा अच्छी लगने लगीं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"प्रिय पाठक, क्या आपको मालूम है कि प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में हिन्द महासागर को ‘रत्नाकर’ कहा जाता था? रत्नाकर यानि हीरे जवाहरात की खान। मैंटा रे मछलियाँ अक्सर सफ़ाई के ठिकानों पर जाया करती हैं। सफ़ाई के ठिकानों को कुदरत का अस्पताल कहा जा सकता है। यहीं एंजेल फ़िश जैसी छोटी मछलियाँ मैंटा रे के गलफड़ों के अन्दर और खाल के ऊपर तैरती हैं। वे क्लीनर फ़िश कहलाती हैं क्योंकि वे मैंटा रे के ऊपर मौजूद परजीवियों व मृत खाल को खा कर उसकी सफ़ाई करती हैं। मैंटा रे मछलियाँ विशाल होने के बावजूद बहुत कोमल स्वभाव की होती हैं। बड़ी शार्क, व्हेल मछलियाँ व मनुष्य उनका शिकार करते हैं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"लकड़ी और पत्थर से बने मकानों की ढलवाँ छत से बारिश का पानी या बर्फ़ झट से गिर जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"जानवरों की खालों और छड़ियों से बनी आदिवासी अमेरिकनों की टीपी ठंड से बचाती है। इन्हें लपेट कर कहीं ले जाना भी आसान होता है।"
सबसे अच्छा घर

"सर्कस के जोकर की तरह लठ्‌ठों पर खड़े मकान नम, गीली ज़मीन से ऊपर..."
सबसे अच्छा घर

"...और जँगली जानवरों की पहुँच से दूर रहते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"आपके मकान की बनावट और आकार कैसे भी हो सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"छोटा सा, गोल, मिट्‌टी से बना, छप्पर की टोपी वाला। आसमान को छूता गगनचुंबी। उल्टी रखी कुल्फ़ी या आइसक्रीम के कोन जैसी टीपी।"
सबसे अच्छा घर

"खेमा: मंगोलिया के लोग लकड़ी के ढाँचे और मोटे ऊनी नमदे के कालीनों से ख़ूब गर्म और हल्के घर बनाते हैं। जब कहीं और जाना हो तो लोग लकड़ी की पट्टियों और नमदों को घोड़ों और याकों पर लाद कर मकान को भी साथ ले जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"टीपी: अमेरिका के मैदानी इलाकों के आदिवासी छड़ियों और जानवरों की खालों से बहुत हल्के घर बनाते हैं। खेमे की तरह इन्हें भी खोल कर कहीं और ले जा सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"इग्लू: क्या आप सोच सकते हैं कि बर्फ़ की बड़ी-बड़ी ईंटों से बने इग्लू बाहर बर्फ़ जमी होने पर भी अंदर से गर्म रहते हैं? जब बाहर का तापमान -40 डिग्री सेंटिग्रेड होता है तो लोग इग्लू के अंदर आराम से रहते हैं। इन्हें आप कनाडा के ध्रुवीय इलाकों और ग्रीनलैंड के थूले द्वीप में देख सकते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"हमारी थालियों और हमारे दिमाग में हलवा-पूरी, खीर-पूरी और श्रीखंड-पूरी की एक ख़ास जगह होती है। छुट्टियों में तो छोले-पूरी या आलू-पूरी सबसे ज़्यादा पसंद किये जाते हैं। पूरी तलने की ख़ुशबू सब को अपनी ओर खींचती है। कढ़ाई में तैरती पूरी को देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। ज़रा उस सुनहरे रंग की करारी, गर्मागर्म फूली-फूली पूरी को तो देखिये। थाली में रखते ही सबसे गोल और सबसे फूली पूरी को लेने की हम कोशिश करते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"लेकिन माँ अपनी पूरी को फूलाने के लिये ऐसे किसी भी तरीके का इस्तेमाल नहीं करती है – कमाल की बात है!"
पूरी क्यों फूलती है?

"जब हम आटे को गूँधते हैं तो एक दूसरे से चिपके कण, फैलने लगते हैं और फिर इस तरह फैलने के बाद एक नया प्रोटीन बन जाता है, जिसे कहते हैं ग्लूटेन। ग्लूटेन, रबर की तरह लचीला होता है, इसलिए गूँधे हुये आटे को हम कोई भी आकार दे सकते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"दर असल पूरी के साथ यह होता है - गूँधे हुये आटे में ग्लूटेन होने की वजह से उसे बेला जा सकता है। जब इस आटे की एक छोटी सी लोई को बेला जाता है तो पूरी में ग्लूटेन की एक सतह बन जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"और जब पूरी को गर्म तेल में डालते हैं तो उसकी निचली सतह तेल की वजह से बहुत गर्म हो जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"याद है न कि आटे को गूँधने के लिये इस में पानी मिलाया गया था? ज़्यादा तापक्रम की वजह से पूरी के अंदर का पानी भाप बन कर उड़ जाता है। यह भाप बहुत ताकतवर होती है और इससे ग्लूटेन की सतह ऊपर चली जाती है। इसी वजह से पूरी फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अब एक कांटे की मदद से पूरी में एक छेद करते हैं। देखा, भाप कैसे बाहर निकल रही है। फूली हुई पूरी में हवा नहीं होती। उसमें भाप होती है, समझ गये!"
पूरी क्यों फूलती है?

"पानी की मदद से आटा गूँध लेते है। आटे को गूँधते समय बस इतना ही पानी डाले कि आटा न बहुत कड़ा हो और ना ही बहुत मुलायम। हथेली के निचले हिस्से की मदद से कुछ मिनट तक इसे थोड़ा और गूँधते है। चाहें तो, थोड़ा सा तेल भी इस्तेमाल कर सकते है जिससे गुँधा आटा आपके हाथ में चिपके नहीं। गुँधे आटे को करीब 10 मिनट तक ढ़क कर रख देते है। अब इस गुँधे आटे को, कुछ मिनट के लिए दोबारा गूँधते है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"सीरिया मे दमसकस के पास की गई खुदाई से पता चलता है कि गेहूँ का इतिहास करीब 9000 साल पुराना है इसी जगह पर, गेहूं को बोने और उसकी फसल को काटने और साथ ही उसे पीसने के लिए जरूरी औज़ार भी मिले है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"मधुमक्खियाँ, ख़ासकर भौंरे, उड़ते हुए भन-भन की ज़ोरदार आवाज़ करते हैं। यह आवाज़ उनके पंखों के ऊपर-नीचे हिलने से होती है। जितने छोटे पंख होते हैं, उन्हें उतनी ही तेज़ी से हिलाना पड़ता है। और जितनी तेज़ी से पंख हिलते हैं, उतनी ही ज़ोर से आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"इन छोटे भुरभुरे दानों से पौधे बीज बनाते हैं। मधुमक्खियाँ इन छोटे दानों को लाने-ले जाने के काम में बड़ी उस्ताद हैं। उन्हीं की वजह से कई नए पौधे फलते-फूलते रहते हैं।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"वैसे क्या तुम अपनी साँसे सुन सकते हो? नहीं ना! पर मधुमक्खियाँ सुन सकती हैं। भन-भन की आवाज़ मधुमक्खियों के साँस लेने से भी होती है। उनका शरीर छोटा व कई टुकड़ों में बँटा होता है। तो जब साँस लेने से हवा अंदर जाती है, तो उसे कई टेढ़े-मेढ़े व ऊँचे-नीचे रास्तों को पार कर के जाना पड़ता है। और इसी वजह से भन-भन की आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"काफी मज़ेदार लगता है ना? मधुमक्खियाँ भी सच में कमाल की हैं, हैं ना?"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"2. मधुमक्खियों से जुड़ी एक मजेदार बात आपको बताते है, नन्ही मधुमक्खी के दिमाग की तरह काम करते समय इनका दिमाग बूढ़ा नहीं होता, वो बस किसी नन्ही मधुमक्खी के दिमाग की तरह काम करने लगता है अब आप भी चाहते है न एक मधुमक्खी बनना !"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"3. इन्सानो की तरह मधुमक्खियाँ भी चेहरे पहचानती है! चेहरे के हर हिस्से को वो पहले ध्यान से देखती है फिर उसे जोड़ कर चेहरा याद कर लेती है! तो याद रखे कि किसी भी मधुमक्खी को कभी छेड़े नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"4. केफीन – नाम के केमिकल को इस्तेमाल करते हुये पोंधे हानिकारक कीड़े मकोड़ों को दूर रखते है और इसी की मदद से यह जान जाती है कि कोई फूल कहाँ पर है और इसी तरह से वो बार बार वहाँ पहुचती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"1. मधुमक्खी नाच कर, छत्ते में रहने वाली बाकी मधुमक्खीयों को यह बताती है कि शहद कहाँ मिलेगा तो आप भी कोशिश कीजिये नाच कर कुछ बताने की और देखिये कि क्या आपके दोस्त आपकी बातों को समझ पाते है या नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"2. मधुमक्खी की तरह भिनभिनाने कि कोशिश कीजिये अपनी बाहों को उपर और नीचे (फ्लेप) कीजिये और देखिये कि क्या भिनभिनाट होती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"3. छत्ता यानि मधुमखियों का घर जैसे इंजीनियरिंग की एक मिसाल होता है! आप को क्या लगता है! छाते की तरह बेहतरीन षट्कोन (हेक्सागोनस) बनाने कि मदद से इसके मॉडल्स बनाइये! 4. तब शायद आपको इसका जवाब मिल जाए और तब आप समझ जाएंगे की अलग अलग फूलों के रस से बने शहद का स्वाद भी एकदम अलग अलग होता है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"एक दिन, विज्ञान की कक्षा में खिड़की के बाहर वह आकाश में पंख फैलाए उड़ती चील देख रही थी। वह चिड़िया कितनी खुश होगी! उसे हवाई जहाज़ को उड़ते देखना भी बहुत पसंद था।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"सरला हड़बड़ा कर खड़ी हुई और बोली, "सॉरी मैडम!" मैं चील को देख रही थी। काश! हम भी चिड़िया की तरह उड़ पाते या फिर एक हवाई जहाज़ की तरह..."
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

""अरे वाह! क्या तुम जानती हो कि भारत की पहली महिला विमान चालक (पायलॉट) का नाम भी सरला था? मेरा नाम हंसा है, मतलब 'हंस'। क्या तुम जानती हो कि हंस भी उड़ने वाले बड़े पक्षियों में से एक हैं? अध्यापिका ने कहा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"कुछ ही दिनों में वह पशु-पक्षियों के बारे में बहुत कुछ जान गई और यह भी कि हम हवाई जहाज़ की तरह क्यों नहीं उड़ सकते!"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"सरला ने सीखा कि मानव भी उड़ सकते हैं, पर पक्षियों की तरह नहीं। हम मनुष्य के एक महान आविष्कार, हवाई जहाज़ में बैठकर विश्व के किसी भी नगर से उड़ान भर सकते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"इस महान यंत्र की सहायता से हम हवा में उड़ने का मज़ा ले सकते हैं। पक्षी हवाई जीव होते हैं जिन्हें उड़ने के लिए बाहरी यंत्र की ज़रूरत नहीं होती। आमतौर पर, एक पक्षी के पंख उसके शरीर से बड़े होते हैं। पंख बड़े हल्के होते हैं और इसलिए वे उड़ पाते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"हवाई जहाज़ बहुत बड़े और बहुत भारी होते हैं। उसके दोनों किनारे पर पक्षी की तरह ही पंख बने होते हैं, जो उन्हें उड़ने में मदद करते हैं। इन जहाजों के पंखों की बनावट ठीक पक्षियों के पंखों जैसी होती हैं। नीचे से सपाट और ऊपर से मुड़े हुए, जो उन्हें आसमान में बहुत ऊँचे तक उड़ने में मदद करते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"हवाई जहाज़ भी हवा के दवाब की मदद से ही उड़ते हैं। यह यंत्र अपने अंदर लगी इंजिन के सहारे विमान के नीचे हवा का दवाब बनाता है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"इंजिन बहुत ही मज़बूत यंत्र है जो हवाई जहाज़ के दिमाग की तरह (तेज़) काम करती है। जिस तरह पक्षी अपना दिमाग लगाते हैं और सीखते हैं कि कैसे उड़ा जाय,वैसे ही इंजिन विमान को ज़मीन से ऊपर की ओर धकेलती है और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"जब विमान की इंजिन ईंधन को जलाती है तो वे बहुत ही तेज़ गति से गर्म गैसें छोड़ती हैं, जिससे इंजिन के पीछे हवा का दबाव बनता है और उससे विमान आगे बढ़ता है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"कार एवं अन्य वाहन भी इंजिन की सहायता से ही चलते हैं, मगर वे विमान की तरह आसमान में उड़ नहीं सकते। हवा विमान के उन पंखों के ऊपर और अंदर बहती है जो पक्षी के पंख जैसे होते है, इन्हीं के दबाव से विमान ऊपर उठते हैं और टिके रहते हैं। विमान की भी पूँछ होती हैं - बिलकुल चिड़िया की तरह, जो उन्हें हवा में टिकने और दिशा बदलने में मदद करती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमानों को उड़ान भरने और उतरने के लिए बड़ी लंबी सड़क की ज़रूरत होती है। इन लंबी सड़कों को 'रनवे' कहा जाता है। विमान को उड़ान भरने और उतरने से पहले रनवे पर बहुत ही तेज़ गति से दौड़ना होता है। हवा में ऊपर उठने के लिए विमान को बहुत ही तेज़ गति की ज़रूरत होती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान जानते हैं कि उन्हें कहाँ जाना है, क्योंकि विमानचालक उन्हें चलाते हैं। ये चालक विमान के अंदर, सामने की एक जगह, जिसे चालक स्थल (कॉकपिट) कहते हैं, से उन्हें नियंत्रित (कंट्रोल) करते हैं। वे बहुत ही सटीक और आधुनिक डिवाइसों के द्वारा हवाई अड्डों (एक जगह जहाँ हवाई जहाज़ उड़ान भरते और उतरते हैं) के संपर्क में रहते हैं। जिस तरह हमारी मदद के लिए सड़क पर सिग्नल और पुलिस होती है, वैसे ही वायु यातायात नियंत्रक (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) होते हैं जो विमान चालक को बताते हैं कि कब और किस ओर उड़ान भरनी है और कब उड़ान भरना या उतरना सुरक्षित रहेगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान वास्तव में एक विशाल पक्षी है! न सिर्फ़ इसका आकार पक्षी की तरह है, बल्कि ये उड़ते भी हैं, हालाँकि पक्षियों की तरह नहीं। सरला बड़ी होकर विमान चालक बनना चाहती है और हवाई जहाज़ उड़ाना चाहती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"2. 'फ़्लाइ - डोंट फ़्लाइ' गेम: मित्रों का एक समूह बनाओ और एक -दूसरे को बिना छुए कमरे के चारों तरफ़ जहाज़ की तरह उड़ो। डेन (चोर) एक कोने में खड़ा होकर उड़ने वाली और ना उड़ने वाली चीज़ों के नाम कहेगा। जैसे ही वह किसी ना उड़ने वाली चीज़ (जैसे कि मेज़/टेबुल) कहे तो जहाज़ों को ज़मीन पर उतरना (बैठ जाना) होगा। जो ग़लती करेगा, वह अगला डेन होगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"मुत्तज्जी इन जुड़वां भाई-बहन की माँ की माँ की माँ थीं! ओर वह मैसूर में अज्जी के साथ रहती थीं, जो इन दोनों की माँ की माँ, यानी नानी, थीं। किसी को पता नहीं था कि मुत्तज्जी का जन्मदिन असल में कब होता है, लेकिन अज्जी हमेशा से मकर सक्रांति की छुट्टी के दिन उनका जन्मदिन मनाती थीं।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""नहीं," पुट्टा ने कहा। "बुज़ुर्गों के जन्मदिन पर केक नहीं काटा जाता। और फिर 200 मोमबत्तियां लगाने के लिये तो बहुत बड़े केक की जरूरत होगी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""मुत्तज्जी 200 साल की नहीं हैं, बुद्धू!" पुट्टी ने कहा, "अम्मा, मुत्तज्जी"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"कितने साल की हैं?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""आपको जन्मदिन मुबारक हो मुत्तज्जी! आज आप कितने साल की हो गयीं?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी ने दोनों को गले लगाते हुए कहा, "मैं कितने साल की हूँ? कौन जाने? और इससे फर्क भी क्या पड़ता है?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""रुको," मुत्तज्जी बोलीं, "जरा कुछ और याद करने दो। ओह! जब मैं तुम्हारे बराबर की, यानि 9 या 10 साल की थी, तब मेरे काका बम्बई से हमसे मिलने आए थे और उन्होंने हमें ऐसी साफ़ रेलगाड़ी के बारे में बताया था जिसमें सफ़र करने से कपड़े गंदे नहीं होते थे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""फिर कुछ साल बाद," मुत्तज्जी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "मेरी शादी हो गयी। उस समय कानून था कि शादी के लिए लड़की की उम्र कम से कम 15 साल होनी चाहिए, और मेरे पिता कानून कभी नहीं तोड़ते थे। तो उस समय मेरी उम्र करीब 16 साल की रही होगी। और मेरी शादी के बाद जल्द ही तुम्हारे मुत्तज्जा को बम्बई में नौकरी मिल गयी और हम मैसूर छोड़कर वहाँ चले गए।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं। "बिलकुल है! एकदम चट्टान की तरह मज़बूती से"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"डटा है। उसी बांध में कावेरी का पानी इकठ्ठा होता है। बांध की बदौलत, अब बरसात के दिनों मेँ बाढ़ नहीं आती, और गर्मी मेँ खेतों के लिए पानी की भी कमी नहीं पड़ती।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"अज्जी ने दरवाजे से अंदर झाँकते हुए कहा, "अम्मा, आप के आर एस की बात कर रही हैं क्या?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""भारत छोड़ो!" पुट्टी की आँखें हैरानी से और फैल गयीं। "हमने इतिहास में पढ़ा है! पुट्टा, ये वह आंदोलन है जो 1942 में शुरू हुआ था, इसका मतलब है कि 1942 में ही...""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""इस साल मै 74 साल की हो जाऊँगी," अज्जी ने कहा। "तो मैं पैदा हुई थी...?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""अज्जी मुत्तज्जी की पाँचवी संतान हैं, और उनके सभी बच्चों के बीच 2 - 2 साल का अंतर है..." पुट्टा ने कहा "अगर अज्जी 1942 में पैदा हुईं...""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""...तो मुत्तज्जी की चौथी संतान पैदा हुई थी 1942 - 2, यानी 1940 में, और तीसरी"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""यानी मुत्तज्जी की शादी - 1932 में हुई थी, " पुट्टी ने कहा।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""शायद इससे तुम्हें कुछ मदद मिले, बच्चों," अज्जी बोलीं। वह सब के लिए मुत्तज्जी की मनपसंद सेवईं की खीर से भरी कटोरियाँ लेकर आईं थीं। "के आर एस का मतलब है कृष्ण राजा सागर बांध, और उसके पास में ही हैं वृन्दावन गार्डन्स। याद है न, हम पिछले साल वहाँ संगीत की धुन के साथ चलने वाले फव्वारे देखने गए थे?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""यह देखो!" उसने फुसफुसा कर कहा, " 'मैसूर की 2 सबसे मशहूर जगहों, के आर एस बांध और उसके पास बने वृन्दावन गार्डन्स, को 1932 में जनता के लिए खोला गया था।' ""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"दोनों भाई - बहन मुस्कराए। इसका मतलब यह कि मुत्तज्जी की शादी सचमुच ही 1932 में हुई थी। 84* साल पहले!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""मुत्तज्जी को लगता है की वह 16 साल की थीं जब उनकी शादी हुई थी," पुट्टी ने कहा,"लेकिन वह 15 या 17 या 18 साल की भी हो सकती थीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"पुट्टा ने कहा, "उन्होंने बताया था कि जब उनके बम्बई वाले अंकल ने उनको साफ रेलगाड़ी के बारे मे बताया था तब वह 9 -10 साल की थीं। अज्जा शायद इस बारे में जानते होंगें।”"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"अज्जा ने सिर हिला कर कहा, "हाँ, क्योंकि तब स्टीम इंजन होते थे जो कोयले से चलते थे, बिजली से नहीं।" उन्होंने कहा, "उसकी चिमनी से कोयले की काली राख निकल कर हर चीज़ पर चिपक जाती थी। बड़ी गंदगी हो जाती थी!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""और मुत्तज्जी का कहना है कि वह तब करीब 9 साल की थीं। अगर वह ठीक कह रही हैं, तो मुत्तज्जी 1916* मे पैदा हुई थीं!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""यह तय करने के लिये," पुट्टा बोला, "हमें पता लगाना होगा कि दिल्ली में राजा ओर रानियों की जो शाही दावत हुई थी, और जो मुत्तज्जी के पैदा होने से 5 साल पहले हुई थी, वो 1911** के आसपास हुई या नहीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""बिलकुल! बहुत अच्छी है।" दोनों ने ज़ोर से कहा, "धन्यवाद, अज्जा!" अब दोनों बच्चे जान गए थे कि मुत्तज्जी कितने साल की हैं।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"पांच मिनट बाद, दोनों अपने घर की तरफ भागे जा रहे थे।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""तुम दोनों तो बहुत बड़े जासूस हो गए हो!" अम्मा मुस्कायीं। "और मुझे लगता है तुम दोनों और मुत्तज्जी की ख़ास दावत होनी चाहिए - यानि एक बड़ा सा केक, गुलाबी आइसिंग और जिसके ऊपर लगा हो एक गुलाब!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"महाराजा – महारानी की शानदार दावत – (और साथ ही इतिहास से जुड़ी कुछ ओर मनोरंजक जानकारी )"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"महाराजा महारानी की शानदार दावत (1911) – 1911 में ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज (पंचम) और उनकी पत्नी क्वीन मैरी, भारत में पहली बार आए थे, तब उन्होने 400 से ज्यादा भारतीय महाराजा और महारानियों के लिए एक शाही दावत दी थी, जिसे कहा गया था दिल्ली दरबार। इसमे आए 200,000 मेहमानों की दावत के लिए कई बेकरियों में हर दिन 20000 से ज्यादा ब्रैड बनाई गयी थी और 1000 से ज़्यादा कैटल और बकरों को काटा गया था! बादशाह ने कई भारतीय राजाओं को सोने के मेडल (तमगे) भी दिये थे, जिनमे मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वाडियार (चतुर्थ) भी शामिल थे!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"क्लीन ट्रेन (1925) – 3 फ़रवरी, 1925 के दिन भारत की पहली इलैक्ट्रिक ट्रेन ने बंबई के विक्टोरिया टर्मिनस से कुर्ला स्टेशन तक की यात्रा की। और इसी के साथ, भारत एशिया का तीसरा और दुनिया का 24बीसवाँ ऐसा देश बन गया जहां इलैक्ट्रिक ट्रेन की शुरुआत हुई।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ आ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव आ गया। और कृष्ण राजा सागर (के आर एस) रिसर्वोयर का निर्माण हुआ। आज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"गांधीजी का भाषण (1 942 ) - 8 अगस्त 1942 के दिन, बंबई के ग्वालिया टँक मैदान में गांधीजी ने 'भारत छोड़ो भाषण' दिया था। गांधीजी ने लोगों से कहा कि उन्हे अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ लड़ना होगा। इसके लिए उन्हे हिंसा नहीं, बल्कि उनके साथ असहयोग करना होगा। इसके 5 साल बाद, 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ो का शासन खत्म हुआ और भारत आज़ाद हुआ। आज उसी शांत क्रांति की स्मृति में ग्वालिया टैंक मैदान को अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है !"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे। अहमदाबाद के पास, महात्मा गाँधी के साबरमति आश्रम में-जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गाँधी जी की तरह, वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गाँधी जी के व्याख्यान सुनते।"
स्वतंत्रता की ओर

"साबरमति में सबको कोई न कोई काम करना होता-खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था-बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसन्द था क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।"
स्वतंत्रता की ओर

"बिन्नी ने घास चबाते हुए सर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही थी। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर

"धनी सब्ज़ी की क्यारियों की तरफ़ निकल गया जहाँ बूढ़ा बिन्दा आलू खोद रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर

"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर

"”नमक?“ धनी चौंक कर उठ बैठा, ”नमक क्यों बनायेंगे? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है।“
 ”हाँ, मुझे मालूम है।“ बिन्दा हँसा, ”पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?“"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, बिल्कुल। मैं जानता हूँ वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाये। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो बेवकूफ़ी की बात हुई!“"
स्वतंत्रता की ओर

"”नमक की ज़रूरत सभी को है...इसका मतलब है कि हर भारतवासी, गरीब से गरीब भी, यह कर देता है,“ बिन्दा चाचा ने आगे समझाया।"
स्वतंत्रता की ओर

"”लेकिन यह तो सरासर नाइंसाफ़ी है!“ धनी की आँखों में गुस्सा था।"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्‍चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”क्योंकि, यदि वे इस लम्बी यात्रा पर दाँडी तक पैदल जायेंगे तो यह खबर फैलेगी। अखबारों में फ़ोटो छपेंगी, रेडियो पर रिपोर्ट जायेगी!
और पूरी दुनिया के लोग यह जान जायेंगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिये लड़ रहे हैं। और ब्रिटिश सरकार के लिये यह बड़ी शर्म की बात होगी।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”गाँधी जी, बड़े ही अक्लमन्द हैं, हैं न?“ धनी की आँखें चमकीं।"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, वो तो हैं ही!“ बिन्दा की आँखों के आस-पास हँसी कीकीरें खिंच गईं, ”उन्होंने वायसरॉय को चिट्ठी भी लिखी है कि वे ऐसा करने जा रहे हैं! ब्रिटिश सरकार को तो पता ही नहीं कि उसकी क्या गत बनने वाली है!“"
स्वतंत्रता की ओर

"”पिता जी, क्या आप और अम्मा दाँडी यात्रा पर जा रहे हैं?“ धनी ने सीधे काम की बात पूछी।"
स्वतंत्रता की ओर

"”बेकार की बात मत करो धनी! तुम इतना लम्बा नहीं चल पाओगे। आश्रम के नौजवान ही जा रहे हैं।“"
स्वतंत्रता की ओर

"अन्त में, गाँधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने धनी को पुकारा, ”यहाँ आओ, बेटा!“ धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।"
स्वतंत्रता की ओर

"”बिल्कुल सही। तो क्या तुम आश्रम में रह कर मेरे लिये बिन्नी की देखभाल करोगे?“ गाँधी जी प्यार से बोले।"
स्वतंत्रता की ओर

"1. मार्च 1930 में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये नमक कर के विरोध में दाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया। गाँधी जी और उनके अनुयायी, गुजरात में 24 दिन तक पैदल चले। पूरे रास्ते उनका स्वागत फूलों और गीतों से हुआ। विश्‍व भर के अखबारों ने यात्रा पर खबरें छापीं।"
स्वतंत्रता की ओर

"3. इस यात्रा में गाँधी जी के साथ 78 स्वेच्छा कर्मियों (वालंटियरों) ने भाग लिया। उन्होंने 385 किलोमीटर की दूरी तय की।"
स्वतंत्रता की ओर

"5. सन 2005 में दाँडी यात्रा की 75 वीं जयंती थी।"
स्वतंत्रता की ओर

"साल 1870 का था। स्थान न्यू लंदन, कनेक्टिकट, यूनाइटेड स्टेट्स; सुबह सात बजे बच्चे बिस्तर से कूदे, उनकी माँओं ने उन्हें दाँत साफ़ करने की जल्दी मचाई, उनके हाथ में दातुन (टूथस्टिक) और टूथपेस्ट के मर्तबान दिए।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"और दूसरी चीज़ मैंने क्या कही थी? 'टूथपेस्ट के मर्तबान?' बिलकुल सही! टूथपेस्ट के लिए ट्यूब नहीं बना था। वे केवल मर्तबान में मिलते थे। और खुमारी भरी आँख लिए बच्चे अपने दिन की शुरुआत टूथपेस्ट से भरे चीनी मिट्टी के मर्तबान में दातुन डुबाकर करते थे।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"कुछ साल बाद, ल्यूसियस दंत विज्ञान की पढ़ाई के लिए पेरिस गया। वहाँ उन्होने कलाकार (पेंटर) को धातु की ट्यूब दबाकर उससे पेंट की थोड़ी मात्रा निकाल, पेंट-ब्रश पर लगाते देखा। क्यों न हम इसी तरह के ट्यूब का उपयोग टूथपेस्ट रखने के लिए करें! वह घर आया और अपना सुझाव पिता के सामने रखा। उन्हें भी यह सुझाव बहुत पसंद आया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"आज टूथपेस्ट मशीन से भरी जाती है। सभी ढक्कन लगे खाली ट्यूब नीचे सिरे से क़तार में कन्वेयर बेल्ट से लगे आगे बढ़ते हैं जिनका दूसरा सिरा ऊपर की तरफ़ खुला होता है। एक बड़े बर्तन में टूथपेस्ट भरा होता है जो कन्वेयर बेल्ट के साथ लगा होता है।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● कारखाने में ब्रश तैयार होने के बावजूद बहुत से लोग नीम या बबूल की पतली टहनी से दातुन करते हैं। दातुन हमारे दाँतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखते हैं, मगर क्या तुम जानते हो कि विश्व में सबसे अच्छा ब्रश कौन सा है? तुम्हारी उंगली! दंत-चिकित्सक मानते हैं कि यह दाँतों और मसूड़ों के लिए सबसे बेहतर है।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● क्या तुमने कभी दंत मंजन का उपयोग किया है? इसमें कितने तरह की खुशबू आ सकती है? क्या तुमने इसे खोजा है?"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"ठीक 5 बजते ही, इंजी, स्कूल की किसी पुरानी बस की तरह दौड़ता-हाँफता चला आता है। इंजी, चॉकलेटी रंग की आंखों वाला उनका प्यारा पिल्ला है, जिसकी पूँछ हमेशा हिलने के बावजूद कभी नहीं थकती।"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका और पोई सोनपंखी की तरह दिखने वाले चमकीले लाल बीज, कपड़ों में चिपक जाने वाले गोखरू और पीले गुलमोहर की बड़ी आकार वाली फलियाँ इकट्ठी करते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"उस पेड़ पर लगी हुई इमली का खट्टा-मीठा स्वाद टूका को बेहद पसंद था। वह उसे चूसते हुए मज़ेदार चेहरे बनाता था और उसके बाद उसमें अंदर से भूरे रंग के चमकदार बीज निकालता था। इमली के चटपटे स्वाद से टूका की गर्दन के रौंगटे खड़े हो जाते थे।"
आओ, बीज बटोरें!

"”और हम भी इससे पहले कभी किसी बोलने वाले पेड़ से नहीं मिले!” टूका ने चहकते हुए कहा। ”इसलिए, हम सभी के लिए कुछ न कुछ नया है।” इतना सुनकर, पच्चा जोर से हँसा, और उसके हँसते ही, उसके डालों की सारी पत्तियाँ सुर्ख़ हरी हो गई।"
आओ, बीज बटोरें!

"“क्या सारे बीज इमली के पेड़ ही बनते हैं?“ पोई ने पूछा और याद करने की कोशिश की कि घर में उसके पास कितने तरीके के बीज थे।“अरे नहीं! बीजों से त‍ो कई प्रकार की जीवंत चीज़ें विकसित होती हैं,“ पच्चा ने उत्तर देते हुए कहा।"
आओ, बीज बटोरें!

"“ये बीज, छोटे चमकदार कीड़ों की तरह हैं!“ पोई ने कहा।"
आओ, बीज बटोरें!

"“मुझे केले के बीज दिखाई दे रहे हैं! ये तो सोते हुए गोजर, वो कई पैरों वाले कीड़े, की तरह दिख रहे हैं,“ टूका उत्साहित होकर बोला।"
आओ, बीज बटोरें!

"नारियल के पेड़ की पत्तियां कितनी सुडौल थीं, ऐसा लग रहा था कि हवा में नाच रही हों। नीले-नीले आसमान में लाल गुलमोहर के फूल कितने निराले लग रहे थे। सुंदर सी खुरदुरी छाल वाला आम का पेड़ कितना अच्छा लग रहा था।"
आओ, बीज बटोरें!

"अब भी टूका, पोई और इंजी हर शाम स्कूल के बाद मिलते हैं। लेकिन अब, टूका और पोई, उन चीजों को इक्ट्ठा करते हैं जिनमें वे पौधे उगा सकें। पुराने जूते, नारियल का कवच, यहां तक कि पानी की पुरानी बोतलें – सब कुछ, जिन्हें गमले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।"
आओ, बीज बटोरें!

"हैलो! मेरा नाम पच्चा है, मैं एक इमली का पेड़ हूँ। लेकिन मेरे और भी कई नाम हैं। हिंदी में मुझे इमली, तमिल में पुली और बंगाली में तेंतुल कहा जाता है। वैज्ञानिक मुझे, टैमरिंडस इंडिका कहते हैं। चलिए मैं आपको अपने कुछ अन्य बीज मित्रों से मिलवाता हूँ। शायद उनमें से कईयों को आपने अपने भोजन की थाली में ज़रूर देखा होगा।"
आओ, बीज बटोरें!

"मिर्च हर आकार, रूप और रंग की होती हैं और पूरे विश्व में इनका उत्पादन होता है। इसके बीज छोटे, गोल और चपटे होते हैं और इनका इस्तेमाल दाल या भाजी में चटपटापन लाने के लिए किया जाता है। जब आप इन्हें छुएं तो सावधान रहें, ये आपकी उंगलियों में जलन पैदा कर सकतीं हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"बैरीज़, सेब, केला, तरबूज और कटहल - इन सभी फलों में बीज होता है। कुछ बीजों को हम खा नहीं सकते हैं जैसे कि आम की गुठली। लेकिन कई बीज; जैसे कटहल के बीज; इन्हें पानी में भिगोने के बाद सब्ज़ी बनाकर खाए जा सकते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"चावल सामान्य नाम: राइस या चावल। वैज्ञानिक मुझे कहते हैं: ऑरिज़ा सटाईवा। चावल, सबसे लोकप्रिय अनाजों में से एक है। जहां तक मुझे मालूम है, भारतीय घरों में अन्य अनाजों की तुलना में चावल सबसे ज़्यादा खाया जाता है। जब चावल पौधे पर लगा होता है तो उसके दानों पर जैकेट की तरह एक खुरदुरा, भूरे रंग का छिलका होता है जिसके कारण इसके दाने अंदर सुरक्षित और साबुत बने रहते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"सामान्य नाम: चॉकलेट। वैज्ञानिक मुझे कहते हैं: थियोब्रोमा ककाओ (जिसका अर्थ होता है - देवताओं का भोजन) इसमें कोई संदेह नहीं है कि चावल सबसे लोकप्रिय अनाज है लेकिन ककाओ भी लोगों की खास पसंद है – खासकर टूका और पोई की। चॉकलेट ककाओ के बीजों से बनती है। हर ककाओ फल में 30-50 बीज होते हैं जिन्हें भूना जाता है और फिर पीसकर, चीनी व दूध में मिलाकर स्वादिष्ट चॉकलेट बार बनाया जाता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"आकाश में बड़े-बड़े काले बादल घिर आए हैं और मुझे उनकी गड़गड़ाहट भी सुनाई दे रही है। शीघ्र ही मानसून आने वाला है। इसे वर्षा ॠतु कहते हैं। मुझे बारिश से भीगी मिट्टी की सौंधी महक बहुत अच्छी लगती है। लम्बी गर्मियों के बाद मिट्टी भी बारिश की बूँदों की राह देखती है। मुझे ऐसा ही लगता है।"
गरजे बादल नाचे मोर

"बनारस वाली शुभा मौसी ने मुझे कुछ सुंदर गीत सिखाए हैं। इन गीतों को कजरी कहते हैं। क्या आपको मालूम है कि सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रसिद्ध गायक थे मियाँ तानसेन? कहा जाता है कि वो “मियाँ की मल्हार” नाम का एक राग गाते थे तो वर्षा आ जाती थी। मैं भी संगीत सीखूँगी-शास्त्रीय संगीत।"
गरजे बादल नाचे मोर

"मनु ने बड़े वाले पेड़ से एक झूला बाँधा है और मैं अभी झूलना चाहती हूँ। झूलते हुए बारिश की ठंडी फुहार मेरे मुँह पर पड़ेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर

"रसोई से माँ के तले पकौड़ों की सुगन्ध आ रही है।"
गरजे बादल नाचे मोर

"सभी पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाएँगे और खुश दिखाई देंगे। ठीक उस हरे दुपट्टे की तरह जिसे हरी भैया ने जयपुर से भेजा है। वो बता रहे थे कि उसे धानी चुनरिया कहते हैं। धानी जैसे धान के नन्हे पौधों का रंग। दादा कह रहे थे कि अच्छी बारिश होने से किसानों को अच्छी फसल मिलेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर

"हम सभी वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं पर किसान तो वर्षा के देवताओं की पूजा करते हैं।
 मानसून में मेरा आम का पौधा काफी लम्बा हो गया है। अब मुझे उसे सींचने की ज़रूरत नहीं पड़ती! पिछले महीने जब बड़ी तेज़ आँधी चली थी, मेरा पौधा मज़बूती से खड़ा रहा। क्या मेरा आम का पेड़ इस पेड़ के जितना बड़ा हो जायेगा?"
गरजे बादल नाचे मोर

"क्या तुम विश्वास करोगी कि उस विमान के चालक ने गिलहरियों की पुकार सुनी?”"
तारा की गगनचुंबी यात्रा

"अब गेंदबाज़ी की बारी मेरी। और यह हो गए आप... आउट!"
आज, मैं हूँ...

"मैंने एक नए प्रकार के पौधे की खोज की है।"
आज, मैं हूँ...

"ढश टश ढश... मेरे नगाड़े की छड़ें इतनी तेज़ी से चल रही हैं कि आप इन्हें देख भी नहीं सकते!"
आज, मैं हूँ...

"मलार रसोई घर की तरफ दौड़ी। सभी व्यस्त हैं।"
मलार का बड़ा सा घर

"जल्दी-जल्दी दोसा बनाती हुई अम्मा की आवाज़ आ रही है।"
क्या होता अगर?

"और दिमाग में तरह-तरह की बातें आने लगी हैं।"
क्या होता अगर?

"आधा बिस्तर पर और आधा कक्षा में... फिर मुझसे सुबह की प्रार्थना कभी नहीं छूटती!"
क्या होता अगर?

"स्कूल की इमारत सिर्फ़ मेरे घुटनों तक आए!"
क्या होता अगर?

"मैं दूर और पास की सभी आवाज़ें सुन पाऊँ!"
क्या होता अगर?

"मैं मुस्कराया। सपनों की दुनिया के बारे में सोच कर मज़ा आ रहा है।"
क्या होता अगर?

"जब ज़मीन पर टहनियाँ, पत्तियाँ और बारिश की बूँदें गिरती हैं,"
अरे, यह सब कौन खा गया?

"मैं दूर की वस्तुएं नहीं देख सकता हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?

"पक्षी की बड़ी-बड़ी आँखें होती हैं।"
हमारे मित्र कौन है?

"वह उन्हें खुश करने और वो फिर से गाने लगें उसका तरीका ढूँढने की कोशिश करता है।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"जैसे ही पक्षी उड़ते हैं, वे मुस्कुराते हुए बंटी की ओर देखते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"चंदा से तारों ने की दोस्ती"
सूरज का दोस्त कौन ?

"तालाब की मछलियों में थी दोस्ती प्यारी"
सूरज का दोस्त कौन ?

"अचानक कॉकपिट से *टीटीटी* जैसी आवाज़ आई। यह क्या आवाज़ थी? कहीं जेट शत्रु देश की सीमा में तो नहीं? या इंजन में कोई तकनीकी गड़बड़ी?"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"अलार्म की आवाज़ से राजू की नींद टूटी। "ओह, मेरा इतना बढ़िया सपना टूट गया!" पर आज सपना टूटने पर राजू उदास नहीं हुआ।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"राजू पहली बार हवाई-अड्डे के अंदर आया था। उस चौड़े-बड़े से पट्टे पर रखने में अम्मा की मदद की जो सामान को एक मशीन के अंदर ले जा रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"इसे अंग्रेजी में कन्वेयर बेल्ट कहते हैं। वर्दी पहने हुई, एक बहुत कठोर दिखने वाली महिला, मशीन के पीछे रखी स्क्रीन में देख कर सामान की जाँच कर रही थी। राजू स्क्रीन को देखकर हैरान रह गया। स्क्रीन में तो अटैची के साथ-साथ उसमें रखा सामान भी दिख रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

""वह महिला अफ़सर सुरक्षा जाँच टीम की सदस्य है। उन्हें इस बात का ध्यान रखना होता है कि कोई भी यात्री अपने सामान में विस्फोटक या चाक़ू जैसी ख़तरनाक चीज़ें न ले जा पाए। हमें उनके काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"आखिरकार राजू एक बड़े से हॉल में पहुँचा जिसकी दीवारे काँच की थीं। वह बाहर खड़े बहुत सारे हवाई जहाज़ देख पा रहा था।एक हवाई जहाज़ उड़ान भरने को तैयार था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

""बिलकुल, वैसे ही जैसे बस चालक या समुद्री जहाज़ के कप्तान का। इन पर भी इतने सारे यात्रियों की सुरक्षित यात्रा की ज़िम्मेदारी होती है।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"दस मिनट बाद वह अपनी सीट पर ठीक तरह से कुर्सी की पेटी बाँध कर बैठ गए। जहाज़ चलने पर राजू खिड़की से बाहर देखने लगा। जहाज़ पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ा फिर देखते ही देखते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो गई। राजू को लगा कि उसकी कुर्सी थरथरा रही है।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"आर्या की कहानी जानने के लिए यहाँ क्लिक करें"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"संख्या छह को उलट कर लिखने से मेंढक के सिर की छतरी / मशरूम बनती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"(बांग्ला की संख्याएं)"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"यह बांग्ला भाषा की कहानी का हिंदी अनुवाद है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

""देखो माँ, मैं बंदर की तरह झूल रही हूँ।""
टुमी के पार्क का दिन

"रात को, चाँद मुझे हँसकर देखता है। और मैं उसे उल्लू की गोल आँखों से देखता हूँ।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"रविवार के दिन, माँ-बाबा ने मनु को एक लाल रंग की बरसाती ख़रीद कर दी।"
लाल बरसाती

"“माँ, कब होगी पूरी मेरे मन की बात?” मनु ने पूछा।"
लाल बरसाती

"शनिवार को बिजली के ज़ोर-ज़ोर से कड़कने की आवाज़ हुई।"
लाल बरसाती

"“माँ, क्या यह बिजली के कड़कने की आवाज़ है, क्या अभी बारिश होगी?” मनु ने पूछा।"
लाल बरसाती

"स्टेल्ला और परवेज़ पेड़ों की ओर भागते हुए पहुँचे।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“खाने की घंटी बज गयी!” भानु ज़ोर से चिल्लाया।"
कोयल का गला हुआ खराब

"परवेज़ अपना बैग उठाकर अमीना दादी की ओर भागा। वो रोज़ की तरह आज भी स्कूल के फाटक के पास खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थीं।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“परवेज़, तुमने आज सुनने की मशीन नहीं लगायी है! तुम जानते हो ठीक से सुनने के लिए तुम्हें उसकी ज़रूरत पड़ती है न,”"
कोयल का गला हुआ खराब

"उन्होंने छोटी सी मशीन परवेज़ की कमीज़ की जेब से निकालकर उसके कान में लगा दी।"
कोयल का गला हुआ खराब

"तभी उसके कानों में कहीं से हलकी सी कोयल की आवाज़ सुनाई दी।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- परवेज़ जब सिर्फ पांच महीने का था तब उसके माता-पिता ने देखा कि वो ज़ोर की आवाजें बिलकुल भी नहीं सुन पाता था। वे उसे डॉक्टर के पास ले गए जिन्होंने बताया कि परवेज़ ने सुनने की शक्ति खो दी है। डॉक्टर ने समझाया कि परवेज़ की मदद कैसे की जा सकती है ताकि वो हर वो चीज़ सीख सके जो आम बच्चा सुन सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- जो लोग पूरी तरह से बधिर होते है, वो कुछ भी नहीं सुन सकते। परवेज़ आँशिक रूप से नहीं सुन सकता है। इसलिए उसे शीला मिस जैसी एक विशेष शिक्षक की ज़रूरत है जो उसे संकेत की भाषा, होंठों को पढ़ने और संवाद करने के अन्य तरीके सीखने में मदद कर सके।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- कुछ बच्चे चश्मा लगाते हैं ताकि वे अच्छी तरह से देख सकें, ठीक वैसे ही परवेज़ सुनने की मशीन लगाता है ताकि उसे सुनने में आसानी हो। उसे अपनी मशीन को लेकर थोड़ा सचेत रहने की ज़रूरत है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"ब्राआआआप... घ्रूऊऊऊऊंब की आवाज़ें निकालते हुए उसके परिवार के दूसरे घड़ियालों ने ख़ुशी जताई।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"यह उसके परिवार वालों की आवाज़ें थीं। उसे लगा सब वहीं आसपास हैं। घूम-घूम खिलखिला उठी! और तैरती हुई उसी ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"उसके परिवार वाले! घूम-घूम ख़ुशी से खिलखिलाती हुई उस आवाज़ की ओर तैर चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"तभी "भरररर्र! झरररररर्र!" की आवाज़ सुनाई दी!"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"अरे मिल गए घर वाले! वह खिलखिला कर हँसी और उस आवाज़ की ओर बढ़ चली।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"उसे अपना परिवार मिल गया था। वह लोग ज़्यादा दूर नहीं थे! घूम-घूम खिलखिला उठी, आवाज़ों की ओर तैरने लगी।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"घूम-घूम गंगा नदी में अपने बड़े से घड़ियाल परिवार के साथ रहती है जो दिन भर पानी में छपाके मार-मार कर शोर मचाता रहता है। वह रोज़ खाने के लिए मछलियों और कीड़े-मकोड़ों की तलाश में निकल जाती है। रोज़ ही घूम-घूम की मुलाकात तरह-तरह के जीवों से होती है। घोंघे, ऊदबिलाव, डॉल्फ़िन, मछुआरे, माँझी, बगुले, सारस, भैंस, साँप और कई दूसरे जीव उसे मिलते हैं।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"सत्यम ख़रगोश की तरह फुदका, उसने हिरण की तरह कुलाँचें भरीं... "अरे! संभल कर! कीचड़ में फिसल मत जाना," माँ ने कहा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह कनखजूरे की तरह सरका और साँप की तरह रेंगा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह मकड़े की तरह झूला और लँगूर की तरह कूदा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"उसने बतख़ की तरह पैरों से चप्पू चलाया और मेंढक की तरह तैरा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वह छिपकली की तरह ऊपर चढ़ा और बकरी की तरह कूदा।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"सत्यम ने अपनी बाँहें पँखों की तरह फैलाईं और उड़ने की कोशिश की।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"उसने मन ही मन सोचा कि मैं चील की तरह आसमान में उड़ रहा हूँ - बादलों पर तैर रहा हूँ, बिना पँख फड़फड़ाए!"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"थक कर सत्यम माँ की पीठ पर लद गया। दोनों ऊँची-नीची पगडंडियों पर चढ़ते उतरते, खेत-जंगल-झरने पार करते घर लौटे।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"वे कितनी तरह की चालें चलते हैं?"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"उफ़! कैसी-कैसी चाल चलता है सत्यम! जानते हो, जानवर, पंछी और कीड़े-मकोड़े भी अलग-अलग कारणों से अलग-अलग तरह की चाल चलते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"हमारी ही तरह वह भी ज़्यादातर बढ़िया खाने और रहने की आरामदेह जगह या प्यार करने वाले परिवार की तलाश में एक से दूसरी जगह घूमते-फिरते हैं। कभी-कभी वे अपने उन दुश्मनों से बचने के लिए भी घूमते-फिरते हैं जो उन्हें पकड़ कर खा सकते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"टिड्डे अपने आकार की तुलना में कई ज़्यादा ऊँची कुदान मार सकते हैं। ख़ासतौर से तब, जब वह किसी शिकार करने वाले जीव की पकड़ में आने से बचना चाहते हों। क्या आप इतनी ऊँची कुदान मार सकते हैं?"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"यह एक नए दिन की शुरुआत थी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"जंगल पर सूरज की कोमल"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"चिड़ियों की चहचहाहट ने उसे जगा दिया।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"भोजन की खोज करने लगी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"मैं फिर से पहले की तरह चलना चाहती हूँ।”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"खड़े तीन पीपल गाँव की डगर पर,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"इमली के आठ पेड़ कस्बे की सड़क के किनारे,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"मिट्टी की उपजाऊ पर्त बचाते,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"बचाते हैं हमें कुदरत की मार से,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"हर कहीं, हर एक पेड़ की अपनी अहमियत है,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"हर एक पेड़ की बात निराली है!"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"रिंकी को अपने बड़े भाई की लिखार्इ अच्छी लगती है।"
जादुर्इ गुटका

"उसने मेज़ की दराज़ को खींच कर खोला।"
जादुर्इ गुटका

"भैया की किताबें बाहर गिरीं।"
जादुर्इ गुटका

"भूरी जटाओं वाले नारियल से रिंकी की नाक में गुदगुदी हुर्इ।"
जादुर्इ गुटका

"वह फुट्टे की सहायता से पैन तक पहुँचने की कोशिश करती है।"
जादुर्इ गुटका

"बस तभी! तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी और भैया कमरे में आए।"
जादुर्इ गुटका

"घोड़े की नाल के आकार के हो सकते हैं।"
जादुर्इ गुटका

"नारियल के पेड़ वाले मोटे-से भँवरे को गिनती बहुत पसंद है! वह फूलों की पत्तियाँ गिन रहा है!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"पाँच रंग-बिरंगे लिली पतंगे मदद के लिए आगे आए। नारियल वाले मोटे भँवरे ने अपने दोस्तों की गिनती की।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"सम और विषम संख्याओं की वस्तुओं को गिनिए।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"वह खाने की तलाश में था।"
मेंढक की तरकीब

"अब रोज रात्रीभोज होता है। मोमबत्तियों की रोशनी में।"
मेंढक की तरकीब

"“पिछवाड़े की बगिया में बना लूँ, अप्पा?” रोज़ ने रॉकी का कान खींचते हुए पूछा।"
रोज़ और रॉकी चले कम्पोस्ट बनाने

"टप! बारिश की एक बूँद द्रुवी के सिर पर गिरती है।"
द्रुवी की छतरी

"द्रुवी बरगद की ओर उड़ती है।"
द्रुवी की छतरी

"ज़रा उठाकर और अपने पेट को सूर्य की तरफ करके आराम करते हैं।"
द्रुवी की छतरी

"उसे ज़ोर की भूख लगी।"
कुत्ते के अंडे

"फिर खाने की तलाश में निकल पड़ी।"
कुत्ते के अंडे

"अनिया आंटी की नाक बहुत तेज़ है।"
आनंद

"मुझे सलीम की गली में जाना अच्छा लगता है।"
आनंद

"कैलेंडर की गुलाम है।"
छुट्टी

"पूरे शहर की फेंकी हुई चीज़ें और गन्दगी से भरा हुआ रहता था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"प्लास्टिक की बोतलें खोजते थे। कपडे के टुकड़े निकालते थे..."
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"घूमते फिरते बच्चों की तरफ ताकते हुए वह एक जगह पर बैठ गई।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"चलो दीदी की जगह को ख़ूबसूरत बनाएं। बच्चे कचरे से एक कुर्सी-टेबल ले आए।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"एक दिन उन्हें दीदी का पता किताब में मिल गया। बच्चे तुरंत दीदी की खोज में निकल पड़े। साथ में किताबों का थैला उठाना नहीं भूले। खोजते खोजते बच्चों ने एक बस का नंबर पढ़ लिया। चलते चलते उस सड़क का नाम समझ लिया। क्योंकि दीदी ने उन्हें सब सिखाया था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"दीदी फिर से मुस्कुराने लगी। उनकी आँखों की चमक वापस आने लगी।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"लेकिन नीना कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं है। रेलगाड़ी में माँ और बाबा ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की।"
एक सफ़र, एक खेल

"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"इस प्रकार मुनिया की दोस्ती गजपक्षी से हो गई। अन्ततः जब उसे एक दोस्त मिला भी तो नटखट घोड़ा ग़ायब हो गया!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"और हर कोई उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी पर शक करने लगा। नटखट को सर्वत्र ढूँढ चुकने के बाद, मुनिया समेत गाँव के सभी छोटे-बड़े पुराने बरगद की छाँव तले गाँव की चौपाल पर इकट्ठा हुए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“सही है, इधर बरसों की आराम की ज़िन्दगी ने उसे ख़तरनाक बना दिया है,” मुनिया के पिताजी ज़ोर देकर बोले। “आज एक घोड़ा गया है, कल को हमारे बच्चों की बारी हो सकती है...”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"इस पर मुखिया गाँव वालों की गुस्सैल आवाज़ों से भी ऊँची आवाज़ में बोला, “भाइयों, यह बात सही है कि हमारा सामना एक राक्षस से है, लेकिन हमारे पास संख्या की शक्ति है। इसलिए आइये इकट्ठे हो अपनी हिम्मत बाँध उसे ख़त्म करें!” बदले में एक सहमति भरी हुंकार गूँज उठी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"व्हूऊऊऊ... जंगल की फ़िज़ा में उल्लू की आवाज़ गूँज रही थी। दूर से एक सियार के गुर्राने की आवाज़ आयी। यूँ लगता था जैसे पेड़ों की छायाएँ अपनी काली-काली उँगलियाँ लहरा रही हों।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"लम्बी दाढ़ी और हल्के कूबड़ वाला एक आदमी अपने हाथ में नटखट की लगाम थामे नज़र आया। “क्या हो रहा है?” उसने अपना सवाल दोहराया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"पापा सोना के लिए लकड़ी की गाड़ी बनाने लगे।"
सोना सयानी

"“मगर मैंने पेन्सिल और धागे की रील कहाँ रख दी?” पापा ढूँढने लगे।"
सोना सयानी

"एक दिन पड़ोस की गाय गौरी ने पूछा, “भीमा तू उदास क्यों है?”"
भीमा गधा

"“हाँ... हाँ...” मोती बोला। अगले दिन मोती “भौं... भौं...” भौंकता रहा पर भीमा की नींद नहीं खुली।"
भीमा गधा

"“आ..आ..आक छीं!” ऐसा होते ही भीमा की नींद खुल गयी।"
भीमा गधा

"नन्ही की रेल चली छुक-छुक-छक, इधर से उधर।"
छुक-छुक-छक

"मेरी बहन की फ्रॉक के नीचे नहीं।"
खोया पाया

"मेरी बहन की फ्रॉक के नीचे नहीं।"
खोया पाया

"मेरी बहन की फ्रॉक के नीचे नहीं।"
खोया पाया

"फिर खाने की बारी आयी।"
सैर सपाटा

"गप्पू ने अब की बार सारे छिलके फेंक दिये।"
पहलवान जी और केला

"सोना की माँ साड़ी पर ठप्पे से छपाई कर रही थीं।"
सोना बड़ी सयानी

"माँ ने कहा, “सोना तुम बाहर बैठ कर छपाई कर लो। मेरी छपाई की आवाज़ ध्यान से सुनना।”"
सोना बड़ी सयानी

"सोना ने माँ की कमर में दबा ओढ़नी का सिरा निकाला।"
सोना बड़ी सयानी

"'बर्फ़ की चुस्कियों'"
सोना की नाक बड़ी तेज

""अब मैं डाल रहा हूँ ‘गुलाबी शीरे’ की चुस्की का मसाला," चाचा ने तीसरे पतीले में करछी चलाई।"
सोना की नाक बड़ी तेज

"फिर खाने की बारी आयी।"
सैर सपाटा

"हमेशा की तरह, वह गाँव के नाई के पास जाने के लिए घर से निकल पड़ा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस

"तब बुड्ढी की आई बिल्ली"
सबरंग

"सुनकर सब की चीख़ा चिल्ली।"
सबरंग

"चंदू की थी बुद्धि थोथी"
सबरंग

"हरता जो परजन की पीर"
सबरंग

"और सुनी चंदू की गाथा।"
सबरंग

"और खेल की मोटर ऊपर।"
सबरंग

"देखी परियों की टोली"
सबरंग

"सब की सब तब परियाँ आईं"
सबरंग

"माँ की प्रिय सहेली, राधिका मौसी कार्यक्रम में हिस्सा ले रहीं थीं।"
संगीत की दुनिया

"उसने एक सुन्दर नीला कुर्ता पहना। माँ ने भी नीले रंग की साड़ी पहनी।"
संगीत की दुनिया

"काटो का मन हुआ, वह उचककर उन्हें छू ले। और इस चक्कर में वह पानी में जा गिरा। गिरते-गिरते काटो ने कुछ मछलियों को उसका रास्ता काटते हुए देखा। “मुझे बचाओ, बचाओ मुझे,” पानी की लम्बी घूँटें लेते हुए उसने उन्हें पुकारा।"
नौका की सैर

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"जब नौका किनारे पर पहुँची, काटो जल्दी से जल्दी सबको अपने कारनामे के बारे में बता देना चाहता था। दिन की सारी घटनाओं के बाद, काटो का सिर नौका की तरह चक्कर खा रहा था। खाने की मेज़ पर जैसे ही उसने सिर रखा, उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह गहरी नींद में डूब गया।"
नौका की सैर

"और दादी की आँखें ललचायीं!"
निराली दादी

"हाथों में है ग़ज़ब की फुर्ती"
निराली दादी

"नानी की ऐनक हमेशा गुम हो जाती है।"
नानी की ऐनक

"मगर, इस बार नानी की ऐनक मुझे नहीं मिली...अब तक तो नहीं!"
नानी की ऐनक

"उनके माथे पर, बाथरूम में, उनकी अलमारी में, पूजा की जगह उनकी पसंदीदा कुर्सी के नीचे और खाने की मेज़ पर।"
नानी की ऐनक

""मैंने आज कुछ ख़ास नहीं किया, सिवाय वीणा की सास से बातें करने के।"
नानी की ऐनक

"अचानक मेरे सिर पर बारिश क़ी एक बूंद गिरती है,जब मैं आसमान की ओर देखता हूँ बूँदों क़ी झड़ी लग जाती है।"
बारिश हो रही छमा छम

"बारिश के मौसम में बच्चे गीली मिट्टी में खेलते हैं,नाचते हैं और मजे करते हैं,मीठे आम खाते हैं और कागज की छोटी छोटी नावें बनाते हैं।"
बारिश हो रही छमा छम

"बारिश का मौसम किसानों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि खेती के लिये पानी की अधिक आवश्यकता होती है।"
बारिश हो रही छमा छम

"सब टीचर की ओर देख रहे थे।
 ऊपर-नीचे, बड़े ही ध्यान से।
 फिर उन्होंने एक दूसरे की ओर देखा।"
जंगल का स्कूल

"टीचर ब्लैक बोर्ड की तरफ़ मुड़े।"
जंगल का स्कूल

"मेरे चाचा की शादी है।
 शादी गाँव में होगी।"
चाचा की शादी

"और एक लाल रंग की पानी की बोतल।"
चाचा की शादी

"दादीजी का बैग बड़ा है।
 शायद उसमें खाने की बहुत सी अच्छी अच्छी चीज़ें हैं।"
चाचा की शादी

"शोर मचने लगा। ट्रेन आ रही है! ट्रेन आ रही है!
 सब ट्रेन में चढ़ने की कोशिश में थे। पर वह कहाँ हैं, जिनकी शादी में हम सब जा रहे हैं?"
चाचा की शादी

"सुखिया काका की सुरीली तानों के बिना हर जलसा अधूरा था।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"बूँदों की झड़ी लग गयी।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"अब दोनों पकोड़े खाने झलौरा गाँव की तरफ़ चल पड़े हैं।"
बारिश में क्या गाएँ ?

"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें

"अनु को अपने पापा की ये सारी चीज़ें अच्छी लगती हैं।"
पापा की मूँछें

"लेकिन क्या आप जानते हैं कि अनु को अपने पापा की कौन सी चीज़ सबसे ज़्यादा अच्छी लगती है?"
पापा की मूँछें

"पापा की मूँछें!"
पापा की मूँछें

"इसके बाद, वह मूँछ की नोकों को अपनी उँगलियों की चुटकी में पकड़ कर उमेठ देती है!"
पापा की मूँछें

"बस फिर क्या, पापा की मूँछें दिखने लगती हैं - रौबीली और तन-तना-तन।"
पापा की मूँछें

"ठीक एक चश्मे वाले सैनिक की तरह!"
पापा की मूँछें

"ये मोटी-मोटी मूँछ है उनकी! मूँछें काढ़ने के लिए उन्हें एक अच्छे-खासे मोटे कंघे की ज़रूरत पड़ती है।"
पापा की मूँछें

"साहिल के पापा की मूँछ पेंसिल कीकीर सी पतली हैं। अनु सोचती है कि वे अपनी मूँछें भला इतनी पतली कैसे बनाते होंगे।"
पापा की मूँछें

"अगर वे एक काला टोप और एक लम्बा काला ओवरकोट पहन लें... अपनी आँखों पर एक काला चश्मा लगा लें, तो वे एकदम उस टीवी वाले जासूस की तरह लगेंगे जो सब चोरों को पकड़ लेता है!"
पापा की मूँछें

"लेकिन सबसे बढ़िया मूँछें तो, पास वाले मकान में रहने वाले उन दादाजी की हैं! ऐसा लगता है मानो एक बड़ा-सा स़फेद बादल आसमान से उतर कर उनकी नाक के नीचे रहने चला आया है! अब उनका मुँह जो है, उस बादल के पीछे छिपा रहता है।"
पापा की मूँछें

"अनु को दादाजी की चिन्ता होने लगी है... उस बादल के रहते वे खाना कैसे खा पाते होंगे भला?"
पापा की मूँछें

"हर सुबह, वह अपना साबुन भिगोती है, ढेर सारा झाग बनाती है और फिर उससे अपनी तरह-तरह की मूँछें बनाती है।"
पापा की मूँछें

"एक चींटी खाने की खोज में घूम रही थी।"
दाल का दाना

"चींटी दाने को खींचकर अपने घर की ओर ले जाने लगी।"
दाल का दाना

"चींटी सँभलकर कुत्ते की नाक के पास पहुँची।"
दाल का दाना

"चींटी दाल के दाने को लेकर फिर घर की ओर चल पड़ी।"
दाल का दाना

"तब तक चूज़े की माँ पपीते के पेड़ के नीचे से चिल्लाई-कुड़ कुड़ कुड़ कुड़।"
दाल का दाना

"अलग अलग दालों के बारे में अपने मित्रों से साथ दाल के खेल खेलकर जानिए। घर के किसी बड़े से रसोई से विभिन्न प्रकार की दालों के दाने लेकर देने का अनुरोध कीजिये। उदाहरण के लिए, राजमा, अरहर या तूअर, सफ़ेद चना, सोयाबीन, साबुत मूँग और मटर के दाने। इन सब को एक बड़े कटोरे में डालिये।"
दाल का दाना

"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना

"एक दिन एक पेड़ की डाल पर बैठी वह अखरोट खा रही थी। अचानक उसकी निगाह अपनी ही पूँछ पर पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ

"उनके अस्पताल में विभिन्न जानवरों की पूँछ, टाँग, कान अलमारी में सजे हुए थे। जब तक डॉक्टर बोम्बो भालू आते हैं तब तक मैं अपने लिए एक पूँछ ही चुन लेती हूँ।"
चुलबुल की पूँछ

"चुलबुल ने मन में सोचा और तरह-तरह की पूँछ देखने लगी।"
चुलबुल की पूँछ

"काफ़ी सोच विचार के बाद उसे बंदर की पूँछ पसंद आई।"
चुलबुल की पूँछ

""डॉक्टर दादा, मुझे बन्दर की पूँछ लगा दो," उसने चहक कर कहा।"
चुलबुल की पूँछ

""अरे भाई, बन्दर की पूँछ तुम्हारे लिए ठीक नहीं है," डॉक्टर बोम्बो ने उसे समझाया।"
चुलबुल की पूँछ

"चुलबुल खुश हो गई। डॉक्टर बोम्बो ने उसकी पूँछ निकाल कर उसकी जगह बन्दर की पूँछ लगा दी।"
चुलबुल की पूँछ

""मैं भी बंदर भैया की तरह पेड़ की ऊँची डाल पर अपनी लम्बी पूँछ लटका कर बैठूँगी," यूँ सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ

""पेड़ पर चढ़ कर थोड़ा आराम कर लूँ," सोचते हुए वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ

""नहीं, यह पूँछ ठीक नहीं है। इसे बदलना पड़ेगा," यह कहते हुए उसने अपनी लम्बी पूँछ को हाथ से उठाने की कोशिश की। किसी तरह लड़खड़ाते हुए वह दोबारा डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल में पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ

""गलती हो गई डॉक्टर दादा। आप मुझे बिल्ली की पूँछ लगा दो," चुलबुल ने अपनी गलती मानते हुए सलाह दी।"
चुलबुल की पूँछ

"डॉक्टर बोम्बो ने बन्दर की पूँछ हटा कर बिल्ली की पूँछ लगा दी। "यह पूँछ बन्दर की पूँछ से तो हल्की है," सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी। पूँछ की अदला-बदली में वह अब तक बहुत थक गई थी। वह पास के एक पेड़ के पीछे लेट कर आराम करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ

"थकी हुई थी इसलिये उसे तुरन्त नींद आ गई। अचानक, ज़ोर की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूटी।"
चुलबुल की पूँछ

""डॉक्टर दादा, डॉक्टर दादा, मुझे बचाओ," चिल्लाती हुई वह अन्दर भागी। कुत्ता बाहर ही खड़ा रह गया। भों भों की आवाज़ आती रही।"
चुलबुल की पूँछ

""वह कुत्ता मेरे पीछे पड़ गया है। मुझे किसी की पूँछ नहीं चाहिए। आप बस मेरी पूँछ लगा दो!" चुलबुल ने ज़ोर से सिर हिलाते हुए कहा।"
चुलबुल की पूँछ

"बिल्ली की पूँछ निकाल कर उन्होंने चुलबुल की पूँछ दोबारा लगा दी। अपनी पूँछ पाते ही चुलबुल ने चैन की साँस ली और खुश होकर घर की ओर चल दी।"
चुलबुल की पूँछ

"आज मैं अपने शरीर की आवाज़ 
सुनूँगी!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"मैं अपनी साँसों की आवाज़ ऊँची कर सकती हूँ... र-स-स!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"और अब, मैं अपने दिल की धड़कन सुन सकती हूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"देखा? अब मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई
।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"ताली की आवाज़
।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"शरीर की आवाज़ सुनने में मज़ा आता है
।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"और अपने पेट को, माँ की स्वादिष्ट, गरम-गरम जलेबियाँ हड़पते!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"हमें किताबों की छोटी दुकान पसंद है।"
चलो किताबें खरीदने

"यह एक नए दिन की शुरूआत थी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"जंगल पर सूरज की कोमल"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"चिड़ियों की चहचहाट ने उसे जगा दिया।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"भोजन की खोज करने लगी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"मैं फिर से पहले की तरह चलना चाहती हूँ।”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

""अरे बेटा! मैं दादाजी की ऊनी टोपी की सिलाई कर रही थी, और मेरे हाथ से सुई नीचे गिर गई," दादी माँ बोलीं।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"चुम्बक! जिससे लोहे की चीज़ें चिपक जाएँगी।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"स्कूल की छुट्टी होने में पाँच मिनट रह गये थे पर चीनू और इन्तज़ार नहीं कर सकता था। उसने बाहर देखा। वहाँ कोई नहीं था। तभी कहीं पास से घंटी की टनटनाहट सुनाई दी।"
कबाड़ी वाला

"तभी, “पेपरवाला, पेपर! पुराने अखबार, कबाड़ी!” चीनू के पिता, कबाड़ी वाले ने गाकर पुकारा। चीनू की मुस्कराहट बाहर तक चमक रही थी।"
कबाड़ी वाला

"स्कूल की घंटी बजी। चीनू पिता जी के पास दौड़ कर पहुँचा। चेहरे पर बड़ी सी 
मुस्कान खेल रही थी। स्कूल में वह अकेला बच्चा था जिसके पिता जी उसे लेने आते थे।"
कबाड़ी वाला

"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला

"चीनू दौड़ कर ठेले से एक और खाली बोरी ले आया। वे लिफ्ट में ऊपर जाने वाले थे! चीनू की आँखें बड़ी-बड़ी और गोल हो गईं।"
कबाड़ी वाला

"माँ की कहानी सुनते सुनते चन्दू को गहरी नींद आ गई।"
उड़ते उड़ते

"वो अपनी क्लास की सबसे दुखी लड़की थी।"
कचरे का बादल

"शायद वो दुनिया की सबसे दुखी लड़की थी।"
कचरे का बादल

"टूटे खिलौने, और पेंसिल की छीलन,"
कचरे का बादल

"प्लास्टिक की टेढ़ी-मेढ़ी बोतलें,"
कचरे का बादल

"अम्मा की बात सच साबित हुई और उसके बाद चीकू हँसना बस भूल ही गई!"
कचरे का बादल

"चीकू ने एक झाड़ू लेकर बादल को हटाने की कोशिश की,"
कचरे का बादल

"उसने तो बादल को कूड़ेदान में फेंकने की भी"
कचरे का बादल

"फिर चीकू ने देखा, कि रमा आंटी, प्लास्टिक की थैलियों को फेंक रहीं थीं।"
कचरे का बादल

"फिर जब भी कोई बिस्कुट का पैकेट/लिफ़ाफ़ा या पेंसिल की छीलन फेंकता चीकू उसे रोक देती।"
कचरे का बादल

"प्लास्टिक की हर बेकार बोतल उठाकर कूड़ेदान में डाल देती।"
कचरे का बादल

"और चीकू शायद दुनिया की सबसे ख़ुश लड़की हो गई।"
कचरे का बादल

"चलो अब हम कचरे की बात करें!"
कचरे का बादल

"जब भी हम केले के छिलके या पेंसिल की छीलन सड़क पर फेंकते है, तो यह कचरा सड़क के किनारे इकठ्ठा हो जाता है। कुछ उन नालियों के अंदर चला जाता है और उन में जमा हो जाता है। रूकी हुई नालियों में मक्खी-मच्छर पैदा होते हैं जो बीमारियाँ फैलाते हैं! इससे हमारा पर्यावरण गन्दा होता है और अपने आसपास कूड़ा- कचरा तो किसी को भी अच्छा नहीं लगता। चीकू के दिल से पूछिये।"
कचरे का बादल

"- केले वाले लिफ़ाफ़े की तरह कई चीज़ें आपको बेकार लगती होंगी, लेकिन सब चीज़ें बेकार नहीं होतीं। छिलके के साथ लिफ़ाफ़े को बिल्कुल नहीं फेंकना, उसे वापस घर ले जाकर दोबारा इस्तेमाल कीजिये।"
कचरे का बादल

"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी

"“ए मुन्नी! परे हट, मैं तेरे अंडे खाने आया हूँ,” वह चहक कर बोला। मुन्नी समझदार गौरैया थी। वह झटपट बोली, “काका किसी की क्या मजाल कि तुम्हारी बात न माने? लेकिन मेरी एक विनती है। मेरे अंडों को खाने से पहले तुम ज़रा अपनी चोंच धो आओ। यह तो बहुत गन्दी लग रही है।”"
काका और मुन्नी

"काका खुद को बहुत बाँका समझता था। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह सा़फ -सुथरा नहीं दिख रहा। वह झटपट पानी की धारा के पास पहुँचा। वह धारा में अपनी चोंच डुबो ही रहा था कि धारा ज़ोर से चिल्लाई, “काका! रुको! अगर तुमने अपनी गन्दी चोंच मुझ में डुबोई तो मेरा सारा पानी गन्दा हो जायेगा। तुम एक कसोरा ले आओ। उस में पानी भरकर अपनी चोंच उसी में धो लो।”"
काका और मुन्नी

"धारा की बात सुनकर काका गाँव के कुम्हार के पास गया और बोला,"
काका और मुन्नी

"कुम्हार बोला, “मैं तो बड़ी खुशी से तुम्हारे लिए कसोरा बनाऊँ, लेकिन मुझे उसके लिए मिट्टी की ज़रूरत है। तुम ज़रा फटाफट मिट्टी ले आओ।”"
काका और मुन्नी

"हिरन चिढ़ कर बोला “अरे अकलमन्द की पूँछ, ज़रा यह बता तो सही कि जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तू मेरा सींग कैसे ले सकता है?”"
काका और मुन्नी

"काका को ज़ोरों की भूख लगी थी, वह तेज़ी से मँडराया तभी..."
काका और मुन्नी

"कुत्तों की मुझे मदद चाहिए"
काका और मुन्नी

"अब तक काका को बहुत ज़ोर की भूख लग चुकी थी,"
काका और मुन्नी

"कुत्तों की मुझे मदद चाहिए"
काका और मुन्नी

"बाकी सभी की तरह लुहार भी मुन्नी के अंडों को बचाना चाहता था। उसने कहा, “अभी बनाता हूँ हँसिया। तुम ज़रा पीछे जाकर भट्ठी का दरवाज़ा खोलो और इस लोहे के टुकड़े को उसमें रख दो”"
काका और मुन्नी

"काका ने खुशी-खुशी भट्ठी का दरवाज़ा खोला। तभी हवा का तेज़ झोंका आया और काका भट्ठी के कोयलों पर उलटा जा गिरा। उसकी पूँछ जल गयी। पूँछ की आग बुझाता काका चीखा,"
काका और मुन्नी

"घमंडी काका नहीं चाहता था कि लोग जान जाएँ कि उस की पूँछ जल गई है।"
काका और मुन्नी

"(Collage) हैं। कोलाज, अलग-अलग चीज़ों के टुकड़ों को जोड़कर एक नयी तस्वीर को बनाने का एक तरीका होता है। यह चीज़ें हाथों से बनी या इस किताब की तरह छपा हुआ काग़ज, अखबार और मैगज़ीन की कतरनें, पुराने कार्ड, छायाचित्र, कपड़ा, रिबन, सूखे फूल या पत्ते, या आसानी से मिल जानेवाली कोई भी चीज़ हो सकती है!"
काका और मुन्नी

"‘कोलाज’ शब्द फ़्रेंच शब्द ‘कोले’ से बना है जिसका अर्थ है- चिपकाना। एक कोलाज बनाने के लिए अलग-अलग चीज़ों, उन्हें काटने के लिए कैंची और फिर उन्हें चिपकाने के लिए ढेर सारे गोंद की ज़रूरत होती है।"
काका और मुन्नी

"रंगों की इक लहर बनाए"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"भीग रही चिड़ियों की पाँखें।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"कागज़ की इक नाव बनाएँ उसको पानी में तैराएँ।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल

"फ़सल तैयार हो गई और उसे बेचा गया। ओम ने कहा, “मुझे धनराशि का ज़्यादा भाग मिलना चाहिए क्योंकि मैंने खेत में ज़्यादा मेहनत की है।” दूसरी ओर घनश्याम ने कहा, “मैंने भी दिन-रात भगवान की पूजा की जिससे अच्छी फ़सल तैयार हुई है।”"
मेहनत का फल

"यह झगड़ा बढ़ गया तो दोनों मुखिया के पास गए। मुखिया ने दोनों की बात सुनकर दोनों को एक-एक बोरी कंकड़ मिला चावल दिया और बोला, “कल साफ़ करके ले आना। फिर मैं फ़ैसला सुनाऊँगा।""
मेहनत का फल

"ओम पूरी मेहनत से चावल साफ़ करने लगा। रात भर वह जितना चावल साफ़ कर सकता था, उतना उसने किया। घनश्याम ने केवल भगवान की प्रार्थना की।"
मेहनत का फल

"सुबह मुखिया ने दोनों को चावल दिखाने को कहा। ओम ने आधे से ज़्यादा चावल साफ़ कर दिए थे। घनश्याम से बोला गया तो उसने कहा, “मैंने भगवान से प्रार्थना की है, चावल साफ़ हो गए होंगे।""
मेहनत का फल

"जब देखा गया तो चावल की पूरी बोरी उसी तरह थी। फिर मुखिया ने फ़ैसला सुनाया – “मेहनत करने से ही कार्य सफ़ल होता है। केवल ईश्वर के ऊपर आश्रित होकर प्रार्थना करने से कोई भी काम पूरा नहीं होता। अतः ओम ने ज़्यादा मेहनत की है। अतः उसे ज़्यादा रुपया मिलेगा।”"
मेहनत का फल

"मेंढक और कछुए भी बहुत डर गए। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब निराश होकर बैठ गये। रोज़ की तरह दादा से रेडियो छीनने कोई नहीं आया। आगे की चिन्ता सभी को सता रही थी।"
मछली ने समाचार सुने

"उसी समय उस शहर के मुखिया की बेटी गगरी उठाए पानी भरने वहाँ आई।"
मछली ने समाचार सुने

"मुखिया तुरंत नदी की ओर चल पड़ा। उसके आते ही दादा ने मुखिया का स्वागत कर उसे बिठाया। घर के भीतर की ओर पुकार कर कॉफ़ी बनाने के लिए कहा। फिर रेडियो पर सुनी बात बताई।"
मछली ने समाचार सुने

"“आपको कोई तकलीफ़ न हो इसकी व्यवस्था मैं करूँगा।” सभी की मानो जान में जान आई। कॉफ़ी पीकर मुखिया उनको निश्‍चित रहने का ढाँढस बँधा कर घर गया।"
मछली ने समाचार सुने

"बाज़ार में यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ आते-जाते लोग नए-नए जोड़े पहने इतराते घूमते थे। दुकानों में मिठाइयों के ढेर मुँह में पानी भरते-इमरती, लड्डू, दिलबहार और चमचम, ज़ायकेदार गुनगुने बड़े कबाब, गर्मागर्म छुनछुन करती आलू की टिक्कियाँ...हर तरह का खाने का सामान, कपड़ा-लत्ता, चमचम करते चाँदी के ज़ेवरात-बाज़ार के चौक की दुकानें दुल्हन जैसी सजी थीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तोहफ़ों से लदीं, मेहरुनिस्सा और कमरुनिस्सा अपने भाई अज़हर मियाँ के साथ हाथों में मीठी-निमकी की पत्तलें लिए चली जा रही थीं। ईद के मौके पर तीनों को बहुत उम्दा चिकनकारी किए नए कपड़े मिले थे जिन्हें पहन कर उनका मन बल्लियों उछल रहा था। मेहरु के कुरते पर गहरे गुलाबी रंग के फूल कढ़े थे और कमरु भी फूल-पत्तीदार कढ़ाई वाला कुरता पहने थी। अज़हर मियाँ भी अपनी बारीक कढ़ी नई टोपी पहने काफ़ी खुश दिखाई देते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"बच्चे गोमती के किनारे वाले मेले पहुँच चुके थे। क्या मज़े-मज़े की चीज़े थीं वहाँ! रंगबिरंगी काँच की चूड़ियाँ, रिबन, हार, मिट्टी के बने पशु-पक्षी, सिपाही और गुड़िया-सब के लिए कुछ न कुछ! मेले की चकाचौंध में बच्चे अपनी बहन के बारे में सब भूल-भुला गए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ आबिदा ख़ाला, जो कि बच्चों की मौसी थीं, के घर अकेली ही बैठी थी। पास ही कोने में उसकी बैसाखियाँ रखी थीं। उसके हाथ तो"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के अब्बू के गुज़र जाने के बाद घर में पैसे की किल्लत रहने लगी थी। एक दिन आबिदा ख़ाला उसकी अम्मी से कहने लगीं कि मुहल्ले की औरतों को इकट्ठा करके कढ़ाई का काम शुरू करें।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"चाय के दौर चलते तो साथ ही चटपटी इधर-उधर की खूब गपशप भी होती लेकिन काम बराबर चलता रहता। शाम होती तो सब औरतें अपना काम समेटतीं और घर को रवाना होतीं। उन्हें अपने-अपने परिवार का खाना भी तो तैयार करना होता था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तीनों पंछी बहुत ही प्रतिभाशाली थे। लक्का कितनी ऊँची उड़ान भर लेता था। और लोटन मियाँ डाल-डाल, पात-पात, कभी कलैया तो कभी कलाबाज़ी, और कभी तो नाचने लग जाते! मुनिया भी कम निराली नहीं थी। किसी भी इंसान की बोली बोलना उसके बाएँ पंख का खेल था। मुमताज़ हमेशा मुनिया से उसकी नक्ल उतारने को कहती रहती। जब"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"ईद के दिन भी दोनों दोस्त अपने पंछियों की उछल-कूद देख रहे थे। मुन्नु को लगा मुमताज़ आज बहुत उदास है, इतनी उदास कि कहीं वह रो ही न दे। “क्या बात है, आपा, आज इतनी गुमसुम क्यों हो? क्या हरदोई की याद आ रही है? क्या वहाँ तुम्हारे और भी पालतू पंछी हैं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“हाँ, हमारी चिकनकारों की बिरादरी में लड़कियाँ पाठशाला कम ही जाती हैं। मेरी"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“देखती हूँ न! देखती हूँ कि मैं भी लोटन और लक्का की तरह नीले आसमान में उड़ रही हूँ और न जाने कहाँ-कहाँ जाती हूँ सपनों में,” मुमताज़ बोली, “शायद उड़ते-उड़ते किसी रोज़ कहीं नानी से मुलाकात ही हो जाए...।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“ऐसा है तो जल्दी से जाओ और अपनी नानी की चादर ले आओ, मैं तुम्हें एक खेल दिखाता हूँ,” मुन्नु रुआब से बोला। उसने मुमताज़ को चाँद पाशा के बारे में बताया। चाँद पाशा एक बीमार, बूढ़ा जादूगर था जिससे मुन्नु की मुलाकात अपने पिता के साथ फेरी लगाते हुई थी। उसने मुन्नु को एक बहुत ही मज़ेदार जादू सिखाया था। मुन्नु चाहता था कि मुमताज़ वह जादू देखकर अपना दुःख भूल जाए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ अंदर से चादर ले आई। यह चादर नानी ने अपने हाथों से काढ़ी थी, उनका अपनी दोहती के लिए आखिरी तोहफा। इतना सुंदर काम था-किनारी की बखिया भी, एक-एक टाँका मोती जैसा पिरोया हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ सोचने लगी। सोचने लगी वह बादलों के ऊपर उड़ रही है, नई-नई जगह देख रही है, नए-नए लोगों से मिल रही है। उसे लगा कि बखिया की तरह वह भी दूर"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"खुरशीद ने मुमताज़ को वह दुशाला दिखाया जो वे काढ़ रहे थे, “देखो बेटी, मैंने कश्मीर के पंछी और फूल अपने शॉल में उतार लिए हैं। यह है गुलिस्तान, फूलों से भरा बग़ीचा और ये रहीं बुलबुल। यह जो देख रही हो, इसे हम चश्म-ए-बुलबुल कहते हैं यानि बुलबुल की आँख। जिस तरह बुलबुल अपने चारों ओर देख सकती है, वैसे ही यह टाँका हर तरफ़ से एक जैसा दिखाई देता है!” कह कर खुरशीद ने मुमताज़ को वह टाँका काढ़ना सिखाया।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुरते को देखकर मुहल्ले की सब औरतें दंग रह गईं। कितनी उम्दा कढ़ाई, कितना सजीव चित्रण!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“हाँ, लेकिन हमें जल्दी ही कुछ करना होगा वरना सब के सब उसी की तारीफ़ के पुल बाँधते नज़र आएँगे,” कमरु ने कहा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दोनों बहनों ने एक तरकीब सोच ली। एक शाम जब मुमताज़ लक्का-लोटन के लिए दाने का इंतज़ाम करने निकली तो मेहरु ने काम करने के लिए मुमताज़ को दिया गया सारा रंगीन कपड़ा और धागे कहीं छिपा दिए। सिर्फ़ सफ़ेद कपड़ा ही बचा रहा, “तो अब देखते हैं,” मेहरु उँगलियाँ नचाती बोली, “हमारी प्यारी बहन की तारीफ़ कौन करता है!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“उदास न हो, आपा,” मुन्नु बोला, “नानी की चादर कब काम आएगी! जाओ, उसे ले आओ और खूब ध्यान लगाकर सोचो। कौन जाने आज तुम किस जादुई नगरी में पहुँच जाओ!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर जब औरतों ने चिकन के कुरते पहनना शुरु किए तो यह काम रंगीन कपड़े पर भी होने लगा। लेकिन चिकन की बेहतरीन कढ़ाई सफ़ेद मलमल पर सफ़ेद धागे से ही होती है। यही इस काम का सार है, उसकी रूह है...और एक काबिल कशीदाकारिन का सबसे बड़ा इम्तिहान भी।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कमरु और मेहरु ने तय किया कि वे मुमताज़ के लिए छपाई भी नहीं कराएँगी। लेकिन मुमताज़ भी अब ऐसी छोटी-मोटी रुकावटों से घबराने वाली कहाँ थी। सपनों ने उसकी कल्पना को पंख दे दिए थे और उसे कढ़ाई के नमूनों की कोई कमी नहीं थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर एक रोज़ ख़बर आई कि मुमताज़ की कढ़ी हुई उस सफ़ेद चादर को ईनाम मिला है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"ईनाम के जलसे में कमरु और मेहरु ने देखा कि सब मुमताज़ को कितनी इज़्जत दे रहे थे। कुछ-एक ने तो उन्हें भी ऐसी हुनर वाली लड़की की बहनें होने की बधाई दी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ कुछ पल तो ख़ामोश रही। फिर उसने अपना जादू अपनी बहनों को बताने का फ़ैसला कर लिया। मुस्करा कर, वह कमरु से बोली, “चलो, तुम भी मेरी नानी की चादर का एक कोना पकड़ो और ख़ूब ध्यान लगा कर सोचो।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"साँझी की प्राचीन कला आज भी भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा और वृंदावन में प्रचलित है। एक ज़माने में कलाकार पेड़ की पतली छाल का प्रयोग करते थे लेकिन अब तो तरह-तरह के कागज़ भी इस्तेमाल किये जाते हैं। नमूने बहुत विस्तृत होते हैं और अधिकतर धार्मिक दृश्य, फूल-पत्ते, वयन और रेखागणित संरचनाएँ दर्शाते हैं। इस जटिल कला का उपयोग मंदिरों में प्रतिमाएँ सजाने के लिए, कपड़े पर देवी-देवताओं के स्टैंसिल या बच्चों के लिए स्टैंसिल काटने के लिए किया जाता है। तस्वीर में रंग या चमक देने के लिए स्टैंसिल के नीचे रंगीन या धात्विक कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दस्तकार हाट समिति भारतीय शिल्पकारों की एक विशाल संस्था है जो कि इस देश की पारंपरिक दस्तकारी से जुड़े लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कार्यरत है। चार कहानियों की इस शृंखला को चित्रित करने के लिए प्रांतीय कला और शिल्प के नमूनों का इस्तेमाल किया गया है जिससे भारत की भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक संवेदनाओं को साझा किया जा सके। हम युनेस्को, नई दिल्ली, के आभारी हैं जिनके योगदान से यह कार्य पूरा हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"रज़ा के अब्बा, रहमत खान, भी कोई छोटे-मोटे आदमी नहीं थे। वह बादशाह के शाही दर्ज़ी थे। बादशाह उन्हीं के हाथ के अंगरखे पहनना पसंद करते थे-जी हाँ, चुस्त चूड़ीदार पायजामा और ढीला कोटनुमा कुरता-जिसे अंगरखा कहते हैं। यही थी बादशाह की पसंद की पोशाक।"
रज़ा और बादशाह

"बसन्त की खिली धूप में चारों ओर फूल हँस रहे थे।"
रज़ा और बादशाह

"कबूतरों की गुटरगूँ सुनते हुए, दोनों फ़तेहपुर सीकरी के महल पर पहुँचे। भाले लिये दो पहरेदार, फाटक पर तैनात थे।"
रज़ा और बादशाह

"काफ़ी लम्बा रास्ता था। रज़ा ने चारों तरफ़ देखा तो उसकी आँखें आश्‍चर्य से खुली की खुली रह गईं। मुग़लों के महल कितने सुन्दर थे! पतले नक्काशीदार खम्भे और मेहराब-सब लाल रंग के बालुकाश्म से बने हुए। कहीं कहीं फुलवारी वाले बग़ीचे, जिनमें कमलों से सजे तालाब और झिलमिलाते फव्वारे नज़र आ रहे थे। रज़ा ने मन से सोचा कि जन्नत ऐसी ही होती होगी।"
रज़ा और बादशाह

"बादशाह के कमरे के दरवाज़े पर इन्तज़ार करते हुए रज़ा ने धनी सिंह को ध्यान से देखा। दर्ज़ी का बेटा होने के नाते सबसे पहले कपड़ों पर नज़र टिकी। लाल और स़फेद, फूलदार सूती अंगरखा और स़फेद चूड़ीदार। धनी सिंह की नागरा की जूतियों की नोक अन्दर की तरफ़ उमेठी हुई थी। उनकी कमर पर कपड़े की पट्टी बँधी हुई थी जिसे पटका कहा जाता है। पर रज़ा को सबसे ज़्यादा पसन्द उनकी चटख़ लाल रंग की पगड़ी आई, जिस पर स़फेद और पीले चौरस और बुंदकियों का नमूना था।"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने झुक कर सलाम किया और फिर अपने बादशाह की तरफ़ देखा। एक खिदमतगार हाथ में डिब्बा लिये खड़ा था और अकबर उसमें से गहने चुन रहे थे। कद में बहुत लम्बे नहीं थे पर उनके एक तलवारबाज़ के जैसे चौड़े कन्धे थे। बड़ी बड़ी, थोड़ी तिरछी आँखें, नीचे की ओर मुड़ी मूँछें और ओठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था।"
रज़ा और बादशाह

"उनके आने की आहट पाते ही अकबर पलट कर मुस्कराये,”आओ रहमत! अंगरखे लाये हो? और यह लड़का कौन है तुम्हारे साथ?“"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने कई पटके उठाये और अकबर की कमर पर एक आसमानी रंग का पटका ऐसे बाँधा कि झालरदार सिरे आगे की तरफ़ लटकें।"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने धनी सिंह की पगड़ी की ओर इशारा किया,”वैसा लाल?“"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने लपक कर धनी सिंह की पगड़ी थामी। उसके लपेटे सीधे करके अकबर की कमर पर बाँध दी। जब तक अकबर आड़े-टेढ़े होकर अपने आप को आईने में निहार रहे थे,"
रज़ा और बादशाह

"”धनी, रहमत को अंगरखों और पटकों की कीमत अदा कर दो। हमें सारे चाहियें।“"
रज़ा और बादशाह

"”हुज़ूर,“रज़ा सँभल कर बोला,”धनी जी को पगड़ी की ज़रूरत पड़ेगी। हमने उनकी वाली तो ले ली है।“"
रज़ा और बादशाह

"इतिहास के कुछ रोचक तथ्य 1. रज़ा, बादशाह अकबर के शासनकाल में अब से 400 साल पहले रहता था। अकबर मुग़ल राजवंश का सबसे महान राजा था। वह एक प्रसिद्ध योद्धा भी था। उसे नये नमूनों के कपड़े पहनने का बहुत शौक़ था। वह पतंगबाज़ी और आम खाने का भी शौकीन था। 2. बाबर, मुग़ल राजवंश का संस्थापक, काबुल का राजा था। उसने 1526 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया। अकबर, बाबर का पोता था। वह भी एक बड़ा कामयाब सेनापति था और अपने 49 साल के शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं हारा।"
रज़ा और बादशाह

"3. दो मुग़ल बादशाहों ने नये शहर बनवाये। अकबर ने आगरा के पास, फ़तेहपुर सीकरी बनवाया और शाहजहाँ ने दिल्ली में, शाहजहाँनाबाद। फ़तेहपुर सीकरी, आज वीरान पड़ा है पर शाहजहाँनाबाद (आज पुरानी दिल्ली कहलाता है) में आज भी लोग रहते हैं और वहाँ ज़िन्दगी की चहल-पहल बरक़रार है।"
रज़ा और बादशाह

"4. शाहजहाँ का मशहूर मयूर सिंहासन (पीकॉक थ्रोन) एक चौकोर चपटा आसन था। उसके हर कोने पर पतले खम्बे थे जो बेशकीमती नगीनों से सजे हुए थे। आसन के ऊपर एक छत्र था जिसके ऊपर नगीनों से जड़ी मोर की आकृति थी। बादशाह इस छत्र के नीचे, रेशमी गद्दियों की टेक लेकर बैठा करता था।"
रज़ा और बादशाह

"5. कई मुग़ल राजकुमारियाँ बहुत पढ़ी लिखी थीं। गुलबदन बेग़म ने अपने पिता, बाबर की जीवनी लिखी। शाहजहाँ की बेटी, जहाँआरा, शायर थीं।"
रज़ा और बादशाह

"6. मुग़लों के महलों में कई रसोईघर थे। हर रसोईघर से बादशाह के लिये खाना भेजा जाता। ज़ाहिर है कि जब बादशाह सलामत खाने बैठते तो वे तीस किस्म की लज़ीज़ चीज़ों में से अपनी पसन्द की चीज़ खाते। ओहो! मुँह में पानी भर आता है मुग़लई खाने का नाम आने पर- बिरयानी, पुलाओ, कलिया, कोर्मा-यह सब पकवान मुग़लई रसोईघरों से ही निकल कर आये हैं।"
रज़ा और बादशाह

"स्कूल से घर लौटते हुए अली, गौरव, सुमी और रानी, मुझसे बार-बार मेरी इस नई ज़िम्मेदारी के बारे में पूछते रहे। मैंने बात टालने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो मालूम था कि मुझे क्या काम सौंपा गया है। मैंने उनसे कहा कि पता नहीं तुम लोग किस चीज़ के बारे में बात कर रहे हो। लेकिन यह बात सच नहीं थी। मुझे अच्छी तरह पता था कि वे किस के बारे में पूछ रहे हैं?"
थोड़ी सी मदद

"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद

"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद

"आज मेरी बड़ी दीदी का फोन आया। वह दिल्ली में इँजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं। मैंने उन्हें बताया कि हमारी कक्षा में एक लड़की है और उसका एक हाथ नकली है। दीदी ने बताया कि उसे 'प्रॉस्थेटिक हैंड’ कहते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"उस दिन खाने की छुट्टी के दौरान जो कुछ हुआ, मैं देख रहा था। आख़िर मैं भी सब कुछ जानना चाहता हूँ। क्या किसी का एक ही हाथ होना कोई अजीब बात है? सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही ऐसा है या फिर तुम्हारी पूरी बाँह ही नकली... माफ़ करना, प्रॉस्थेटिक है?"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"सुमी अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकी। और खेलने के बाद भी उसे जूते के फीते बाँधने का ध्यान नहीं रहा, और वह उलझ कर गिर पड़ी। उसकी ठोड़ी में चोट लग गई। जब मैडम ने उसकी ठोड़ी की चोट देखी तो उस पर ऐंटीसेप्टिक क्रीम तो लगा दी, लेकिन उसे लापरवाही बरतने के लिए डाँट भी पड़ी। “जूतों के फीते बाँधे बिना पहाड़ों में दौड़ लगाई जाती है? घर जाते समय गिर पड़तीं या और कुछ हो जाता तो क्या होता?“"
थोड़ी सी मदद

"तुम जानती हो न कि सँयोग क्या होता है? यह ऐसी बात है कि जैसे तुम कुछ कहो और थोड़ी देर में वही बात कुछ अलग तरीके से सच हो जाए। पिछले पत्र में मैंने तुम्हें सुमी और जूतों के फीतों के बारे में बताया था। और उसके बाद, आज, मैंने तुम्हें जूतों के फीते बाँधते हुए देखा। वाह, यह अद्भुत था! मैं सोचता हूँ कि तुमने यह काम मुझसे ज़्यादा जल्दी किया जबकि मैं दोनों हाथों से काम करता हूँ। अगर तुम मेरी दोस्त न होतीं तो मैं तुम्हारे साथ जूते के फीते बाँधने की रेस लगाता। नहीं, नहीं, शायद मैं तुम्हें कहता कि मुझे भी एक हाथ से फीते बाँधना सिखाओ।"
थोड़ी सी मदद

"सच बताऊँ? घर जाकर मैंने एक हाथ से जूते के फीते बाँधने की कोशिश की थी। लेकिन मेरे लिए यह कर पाना असम्भव है। तुम ऐसा कैसे कर पाती हो? शायद मैं यह बात कल तुमसे पूछूँ।"
थोड़ी सी मदद

"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद

"फ़िल्म सच में बहुत ही बढ़िया थी, है न? मैं इतना हँसा कि मेरा पेट दुखने लगा और मेरे आँसू निकल आए। जब भी स्कूल में फ़िल्म दिखाई जाती है मुझे बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि उस दिन पढ़ाई की छुट्टी।"
थोड़ी सी मदद

"पिछली बार, हमारे स्कूल में तुम्हारे आने से पहले, हमें एक बाघ के बच्चे की फ़िल्म दिखाई गयी थी जो जँगल में भटक गया था। हम भी उसे लेकर चिंता में पड़ गए थे क्योंकि वह एक सच्ची कहानी थी। बाद में वह बाघ का बच्चा किसी को मिल जाता है और वह उसे उसके परिवार से मिला देता है। जानती हो ऐसी सच्ची कहानियों को डॉक्यूमेंट्री कहा जाता है। बाघ के बच्चे बड़े प्यारे होते हैं, हैं न?"
थोड़ी सी मदद

"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद

"यह प्रश्नोत्तरी हल करके पता लगाएँ कि नए लोगों के बीच जगह बनाने की कोशिश कर रहे लोगों की मदद करने में आप कितने कारगर साबित हो सकते हैं!"
थोड़ी सी मदद

"2. आपकी कक्षा की एक लड़की लँगड़ाते हुए चलती है। बाकी बच्चे उस पर हँसते हैं। आप क्या करेंगे?"
थोड़ी सी मदद

"स. सहपाठियों से कहेंगे कि उसके जैसे होने की कल्पना करें।"
थोड़ी सी मदद

"अ. कक्षा की सबसे होशियार छात्रा से कहेंगे कि वह अपने नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे दे। ब. अध्यापिका से कहेंगे कि उसकी मदद करना उनका काम है। स. उससे पूछेंगे कि क्या उसे आपकी मदद चाहिए। 4. आपकी कक्षा की नई छात्रा जरा शर्मीली है। वह किसी के साथ नहीं खेलती। आप क्या करेंगे? अ. उससे कुछ नहीं कहेंगे। जब उसकी झिझक मिट जाएगी तब खेलने लगेगी। ब. उसे बुला कर खेल में शामिल होने को कहेंगे। स. उस के पास जा बैठेंगे। शायद वह बातें करने लगे।"
थोड़ी सी मदद

"आप दोस्ती करने के लिए ही बने हैं। सदा दूसरों की मदद को तैयार! आप इस बात का इन्तज़ार नहीं करते कि लोग मदद माँगें। लोगों के मदद माँगने से पहले ही आप मदद देने के लिए हाज़िर रहते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"आप स्वतन्त्र किस्म के व्यक्ति हैं और मानते हैं कि सभी को ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप को किसी की चिन्ता नहीं होती। बस आप दूसरों पर दबाव नहीं बनाना चाहते।"
थोड़ी सी मदद

"आप ज़रा शर्मीले लेकिन दयालु हैं। आप दूसरों की मदद करने और उन्हें सहज अनुभव करवाने के लिए जो भी कर सकते हैं जरूर करेंगे। लेकिन बिना किसी तरह का दिखावा किए।"
थोड़ी सी मदद