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Storybook paragraphs containing word (461)

"मैंने पापा से पूछा, “क्या मैं उस सुंदर से डिब्बे को खोल लूँ?”"
अभी नहीं, अभी नहीं!

"बादल को मीनू"
कहानी- बादल की सैर

"कुछ बनबिलावों को मछ्ली पसंद हैं।"
बनबिलाव! बनबिलाव!

"कुत्ते ने एक चिड़िया को देखा। वह कुत्ता उस चिड़िया के पीछे दौड़ा।"
एक था मोटा राजा

"आखिरकार राजा ने कुत्ते को पकड़ ही लिया।"
एक था मोटा राजा

"पापा ने चिन्टू के लिए फ़ैंसी चश्मे खरीदे। माँ ने मेरे लिए एक चमकती नीली टोपी खरीदी और मुन्नी को मिली टॉफ़ी।"
चाँद का तोहफ़ा

"आपका क्या ख्याल है? क्या सूरज को टोपी की ज़रूरत है?"
चाँद का तोहफ़ा

"हम बगीचे में भी गए |पेड़ के पास छिप कर हमने लुका –छिपी खेला |हमने मेमने को भी खेलाया |"
मैं और मेरी दोस्त टीना|

"कोमल मैम कक्षा १ए को करके दिखा रही हैं।"
गप्पू नाच नहीं सकती

"तक धिमि तई! “अपने बाएँ हाथ को ऊपर उठाएँ!”"
गप्पू नाच नहीं सकती

"“मैं एक लोमड़ी हूँ।” लोमड़ी ने कहा। “मैं रात को टहलने निकलती हूँ।”"
सो जाओ टिंकु!

"“तुम कौन हो?” टिंकु ने पूछा।
 “मैं उल्लू हूँ।” जवाब आया।
 “मैं रात को अपने भोजन की तलाश में निकलता हूँ।”"
सो जाओ टिंकु!

"टिंकु और उसके दोस्त हँसे और उछले-कूदे। वे इधर से उधर लुढ़के, जब तक कि टिंकु को उबासी आने लगी। हा! वह बहुत थक गया था। “मुझे नींद आ रही है अब घर जाना है,” टिंकु बोला।"
सो जाओ टिंकु!

"“हाँ!” अम्मा बोली, “तुम्हारे रात के दोस्त रात को ही अपना काम करते हैं। वे रात को ही खाते और खेलते हैं। वे दिन में आराम करते हैं। तुम अब सो जाओ। नींद तुम्हें ताकत देगी, ताकि कल तुम अपने दिन के दोस्तों के साथ खेल सको। सो जाओ मेरे प्यारे बच्चे!”"
सो जाओ टिंकु!

"वह कभी शिकायत नहीं करता। क्योंकि ऑटो वाले शिरीष जी भी बहुत मेहनत करते थे। शिरीष जी की बूढ़ी हड्डियों में बहुत दर्द रहता था फिर भी वह अर्जुन के डैशबोर्ड को प्लास्टिक के फूलों और हीरो-हेरोइन की तस्वीरों से सजाये रखते। कतार चाहे कितनी ही लंबी क्यों न हो वह अर्जुन में हमेशा साफ़ गैस ही भरवाते। और जैसे ही अर्जुन की कैनोपी फट जाती वह बिना समय गँवाए उसे झटपट ही ठीक कर लेते।"
उड़ने वाला ऑटो

"अलग-अलग परिवारों को लाजपत नगर के बाज़ार ले जाना, अर्जुन को बहुत पसंद था। सैलानी जब चार पहियों की जगह तीन पहियों की सवारी चुनते तो उसका मन खुशी से झूम उठता। शिरीष जी के साथ कुतुब मीनार के पास पेड़ की छाँव में आराम करना उसे बहुत अच्छा लगता।"
उड़ने वाला ऑटो

"जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक था, अर्जुन को इस से ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो

"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
 वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
 शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो

"हँसते हुए वह औरत बोली, “जादू!”
 उस लड़के ने हामी भरते हुए उत्साह से सिर हिलाया। अर्जुन को लगा मानो उसका सिर बस अभी गिरा।"
उड़ने वाला ऑटो

"“हम सबको और क्या चाहिए? थोड़ा-सा ज़ादू,” उस औरत ने कहा। बच्चे को कुछ रुपये देकर उसने दो बोतलें खरीद लीं। उसने एक बोतल शिरीष जी को दे दी।"
उड़ने वाला ऑटो

"“फट फट टूका, टूका टुक” करते हुए वह आगे बढ़ा और अपने एक भाई को मुस्करा कर कहा, “हेलो!”"
उड़ने वाला ऑटो

"आगे बढ़ते ही अर्जुन को अचानक महसूस हुआ कि उसके पहिये पर दबाव कम होने लगा है, उसके सामने की भीड़ छँटने लगी है और वह बहुत आराम से आगे बढ़ गया है, “जाने दो अर्जुन भाई,” उसके चाचा ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो

"खुली साफ़ सड़क को देख कर शिरीष जी हैरान रह गए। शीशे में देखते हुए पीछे बैठी औरत से उन्होंने कहा, “हाँ बहन जी, बिलकुल जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो

"उसे सड़कों का बहुत बड़ा जाल दिखाई दिया मानो किसी शरारती मकड़े ने बनाया हो।
 फटी आँखों से शिरीष जी खुशी में चीख रहे थे। न तो वह हैंडल बार को पकड़े हुए थे और न ही गाड़ियों से बचने की कोशिश कर रहे थे।"
उड़ने वाला ऑटो

"उस औरत ने अपनी सुन्दर साड़ी को ठीक किया। शीशे में देखते हुए वह बोली, “भाई, आपका चेहरा!”"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो

"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद 
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
 अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
 एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो

"“क्या फ़ायदा इसका?,” वह सोचने लगे। जीवन में ऐसा कुछ बहुत पहले कभी उन्होंने चाहा था। लेकिन अब वह जान गए थे कि जो सच है वह सच ही रहेगा। शिरीष जी को अब अपना ही चेहरा चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो

"अर्जुन की हेड लाइट मद्धिम पड़ रही थी। उसे अब सब कुछ बेकार लग रहा था। वह शिरीष जी की बातें भाँप रहा था। अब वह उस औरत के भावों को भी समझ सकता था।"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू 
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था। 
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
 उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
 वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो

"ऊपर की एक खिड़की से उस औरत के नाती-नातिन ने हाथ हिलाया। ऑटो से नीचे उतर कर उसने शिरीष जी को किराया दिया।"
उड़ने वाला ऑटो

"“ऑटो, ऑटो, ऑटो”, ये आवाज़ें अर्जुन को बहुत अच्छी लगीं।"
उड़ने वाला ऑटो

"बादल गरजे और बिजली कड़की। पिशि ने सुध बुध खो दी। सागर बिलकुल काला पड़ गया। एक बड़ी सी लहर ने पिशि को जहाज़ के नीचे धकेल दिया। आह! उसके पेट पर घाव हो गया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"क्लीनर फ़िश नाम की मछलियों ने फटी खाल के टुकड़े खा लिए। पिशि को आराम महसूस हुआ। हिन्द महासागर में रहने वाली ५००० किस्म की मछलियाँ उसे पहले से भी ज़्यादा अच्छी लगने लगीं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"प्रिय पाठक, क्या आपको मालूम है कि प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में हिन्द महासागर को ‘रत्नाकर’ कहा जाता था? रत्नाकर यानि हीरे जवाहरात की खान। मैंटा रे मछलियाँ अक्सर सफ़ाई के ठिकानों पर जाया करती हैं। सफ़ाई के ठिकानों को कुदरत का अस्पताल कहा जा सकता है। यहीं एंजेल फ़िश जैसी छोटी मछलियाँ मैंटा रे के गलफड़ों के अन्दर और खाल के ऊपर तैरती हैं। वे क्लीनर फ़िश कहलाती हैं क्योंकि वे मैंटा रे के ऊपर मौजूद परजीवियों व मृत खाल को खा कर उसकी सफ़ाई करती हैं। मैंटा रे मछलियाँ विशाल होने के बावजूद बहुत कोमल स्वभाव की होती हैं। बड़ी शार्क, व्हेल मछलियाँ व मनुष्य उनका शिकार करते हैं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"मकान बनाने के लिए, कई सामान चाहिए होते हैं। जहाँ आप को मकान बनाना हो, वहीं उसे बनाने के सामान भी मिल जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"मकान बनाने से पहले आपको पता होना चाहिए कि आप को उस में क्या खूबी चाहिए।"
सबसे अच्छा घर

"छोटा सा, गोल, मिट्‌टी से बना, छप्पर की टोपी वाला। आसमान को छूता गगनचुंबी। उल्टी रखी कुल्फ़ी या आइसक्रीम के कोन जैसी टीपी।"
सबसे अच्छा घर

"खेमा: मंगोलिया के लोग लकड़ी के ढाँचे और मोटे ऊनी नमदे के कालीनों से ख़ूब गर्म और हल्के घर बनाते हैं। जब कहीं और जाना हो तो लोग लकड़ी की पट्टियों और नमदों को घोड़ों और याकों पर लाद कर मकान को भी साथ ले जाते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"लठ्‌ठों पर खड़े मकान: यह भला कैसा आकार है? किसी मकोड़े जैसा? लठ्‌ठों पर खड़े मकान नम, गीली ज़मीन से ऊपर रहने के कारण लोगों को सीलन से बचाते हैं। हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में भी ऐसे मकान दिखते हैं।"
सबसे अच्छा घर

"पर्व-त्योहार हमसब को अच्छे लगते हैं। तब ख़ूब मस्ती और शरारत करते हैं साथ ही ढेर सारा लज़ीज़ खाना भी खाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"हमारी थालियों और हमारे दिमाग में हलवा-पूरी, खीर-पूरी और श्रीखंड-पूरी की एक ख़ास जगह होती है। छुट्टियों में तो छोले-पूरी या आलू-पूरी सबसे ज़्यादा पसंद किये जाते हैं। पूरी तलने की ख़ुशबू सब को अपनी ओर खींचती है। कढ़ाई में तैरती पूरी को देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। ज़रा उस सुनहरे रंग की करारी, गर्मागर्म फूली-फूली पूरी को तो देखिये। थाली में रखते ही सबसे गोल और सबसे फूली पूरी को लेने की हम कोशिश करते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"लेकिन माँ अपनी पूरी को फूलाने के लिये ऐसे किसी भी तरीके का इस्तेमाल नहीं करती है – कमाल की बात है!"
पूरी क्यों फूलती है?

"इसकी वजह यह है कि इस आटे में कुछ है जिसे बहुत प्यास लगी है! आप को जब प्यास लगती है तो आप क्या करते हैं? आप पानी पीते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"आटे में दो तरह के प्रोटीन होते हैं - ग्लाइडीन और ग्लोटेनिन। इन दोनों प्रोटीन के अणुओं को बहुत प्यास लगती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"आटे में जैसे ही पानी डाला जाता है, यह अणु उसे पी लेते हैं। वे पानी पीने के बाद बड़े और मोटे हो जाते हैं। वे फैल जाते हैं। ज़ाहिर है कि उनके पास आराम से बैठने के लिये जगह नहीं होती है – इसलिए वह एक दूसरे को छूते हैं और धक्कामुक्की करते हैं। वे एक दूसरे से चिपक जाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अम्मा ने आटे को गूँध लिया है। वह अब अपनी हथेली में थोड़ा सा तेल लगा कर उसे अच्छी तरह गूँधने के लिये कह रही है। आटे को अच्छी तरह गूँधने के लिये मजबूत हाथ चाहिए। उनका कहना है कि अगर आटे को अच्छी तरह गूँधा नहीं जाता है तो पूरी नहीं फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"जब हम आटे को गूँधते हैं तो एक दूसरे से चिपके कण, फैलने लगते हैं और फिर इस तरह फैलने के बाद एक नया प्रोटीन बन जाता है, जिसे कहते हैं ग्लूटेन। ग्लूटेन, रबर की तरह लचीला होता है, इसलिए गूँधे हुये आटे को हम कोई भी आकार दे सकते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"इस गूँधे हुये आटे को अम्मा थोड़ी देर के लिये एक तरफ़ रख देती हैं। अब वह खीर बना रही हैं जैसे ही वह पूरियाँ बेलना शुरू करेंगी, हम वापिस आ जायेंगे।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अम्मा और बाबा दोनों तैयार हैं। अम्मा ने कढ़ाई चढ़ा (फ्राई पैन चढ़ा) कर उस में थोड़ा तेल डाल दिया है। वह गूँधे हुये आटे से थोड़ा सा आटा लेती हैं। अब वह एक पूरी बेल रही हैं। गर्म तेल में पूरी को डालते हैं। थोड़ी देर में पूरी फूल जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"दर असल पूरी के साथ यह होता है - गूँधे हुये आटे में ग्लूटेन होने की वजह से उसे बेला जा सकता है। जब इस आटे की एक छोटी सी लोई को बेला जाता है तो पूरी में ग्लूटेन की एक सतह बन जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"और जब पूरी को गर्म तेल में डालते हैं तो उसकी निचली सतह तेल की वजह से बहुत गर्म हो जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"याद है न कि आटे को गूँधने के लिये इस में पानी मिलाया गया था? ज़्यादा तापक्रम की वजह से पूरी के अंदर का पानी भाप बन कर उड़ जाता है। यह भाप बहुत ताकतवर होती है और इससे ग्लूटेन की सतह ऊपर चली जाती है। इसी वजह से पूरी फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"बाबा अब पूरी को पलट देते हैं ताकि वह दूसरी तरफ़ से भी सुनहरी हो जाये। उन्होंने कढ़ाई से पूरी निकाल ली है और उसे एक बर्तन में रख दिया है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"कभी-कभी पूरी को बेलने के बाद उस में जानबूझ कर एक कांटे से छोटे-छोटे छेद किये जाते हैं ताकि तलते समय जो भाप बने वह छेद से बाहर निकल जाये। इसी वजह से पूरी फूल नहीं सकती।"
पूरी क्यों फूलती है?

"इसके अलावा अगर पूरियों को कम तापक्रम पर तला जाता है तो उनमें भाप बहुत धीरे-धीरे बनती है, प्रेशर ठीक से नहीं बनता और फिर पूरी फूल नहीं पाती।"
पूरी क्यों फूलती है?

"पानी की मदद से आटा गूँध लेते है। आटे को गूँधते समय बस इतना ही पानी डाले कि आटा न बहुत कड़ा हो और ना ही बहुत मुलायम। हथेली के निचले हिस्से की मदद से कुछ मिनट तक इसे थोड़ा और गूँधते है। चाहें तो, थोड़ा सा तेल भी इस्तेमाल कर सकते है जिससे गुँधा आटा आपके हाथ में चिपके नहीं। गुँधे आटे को करीब 10 मिनट तक ढ़क कर रख देते है। अब इस गुँधे आटे को, कुछ मिनट के लिए दोबारा गूँधते है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अब फिर इसे एक बड़े बर्तन में रख देते है अब बर्तन के अंदर रखे गूँधे आटे पर इतना पानी डालते है जिससे वो उसमे डूब जाए। पानी के अंदर डूबे आटे को गूँधते रहते है जब तक पानी का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता। इस पानी को फैक कर बर्तन में थोड़ा और ताजा पानी लेते है इसे तब तक करते रहे जब तक गुँधे आटे को और गूंधने से पानी सफ़ेद नहीं होता। इसका मतलब यह है कि आटे का सारा स्टार्च खत्म हो गया है और उसमें बस ग्लूटेन ही बचा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्च पानी में घुल जाता है लेकिन ग्लूटेन नहीं घुलता। अब इस बचे हुए आटे यानि ग्लूटेन से थोड़ा सा आटा लेते है इसे हम एक रबड़बैंड कि तरह खीच सकते है। अगर इसे खीच कर छोड़ते है तो यह वापस पहले जैसा हो जाता है। इससे इसके लचीलेपन का पता चलता है आप इसे चोड़ाई में फैला सकते है इससे पता चलता है कि इसमें कितनी प्लाटीसिटी है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"सीरिया मे दमसकस के पास की गई खुदाई से पता चलता है कि गेहूँ का इतिहास करीब 9000 साल पुराना है इसी जगह पर, गेहूं को बोने और उसकी फसल को काटने और साथ ही उसे पीसने के लिए जरूरी औज़ार भी मिले है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"क्या ज्वार, बाजरे या चावल के आटे से पूरियाँ बन सकती है, अगर नहीं तो क्यों? गेहूँ के आटे से पूरियों के अलावा हम और क्या चीज़ें बना सकते हैं? अगर आटे में ज़्यादा पानी डाल दिया जाये तो क्या होगा? अगर हम आटे को खाना पकाने के दूसरे तरीकों, जैसे तंदूर या तवा पर पकाते हैं तो क्या होता है?"
पूरी क्यों फूलती है?

"अरे, यह कैसा शोर है? क्या यह मधुमक्खियों का कोकोड है, अपने दोस्तों को बुलाने के लिए? या फिर शहद दिख जाने का जश्न है?"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"मधुमक्खियाँ एक बहुत फायदे के काम के लिए भी भन-भन करती हैं; वे पराग यानि छोटे-छोटे भुरभुरे दानों को एक फूल से दूसरे तक ले जाती हैं, जैसे कोई डाकिया चिट्ठियाँ पहुँचा रहा हो।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"इन छोटे भुरभुरे दानों से पौधे बीज बनाते हैं। मधुमक्खियाँ इन छोटे दानों को लाने-ले जाने के काम में बड़ी उस्ताद हैं। उन्हीं की वजह से कई नए पौधे फलते-फूलते रहते हैं।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"वैसे क्या तुम अपनी साँसे सुन सकते हो? नहीं ना! पर मधुमक्खियाँ सुन सकती हैं। भन-भन की आवाज़ मधुमक्खियों के साँस लेने से भी होती है। उनका शरीर छोटा व कई टुकड़ों में बँटा होता है। तो जब साँस लेने से हवा अंदर जाती है, तो उसे कई टेढ़े-मेढ़े व ऊँचे-नीचे रास्तों को पार कर के जाना पड़ता है। और इसी वजह से भन-भन की आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"3. इन्सानो की तरह मधुमक्खियाँ भी चेहरे पहचानती है! चेहरे के हर हिस्से को वो पहले ध्यान से देखती है फिर उसे जोड़ कर चेहरा याद कर लेती है! तो याद रखे कि किसी भी मधुमक्खी को कभी छेड़े नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"4. केफीन – नाम के केमिकल को इस्तेमाल करते हुये पोंधे हानिकारक कीड़े मकोड़ों को दूर रखते है और इसी की मदद से यह जान जाती है कि कोई फूल कहाँ पर है और इसी तरह से वो बार बार वहाँ पहुचती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"1. मधुमक्खी नाच कर, छत्ते में रहने वाली बाकी मधुमक्खीयों को यह बताती है कि शहद कहाँ मिलेगा तो आप भी कोशिश कीजिये नाच कर कुछ बताने की और देखिये कि क्या आपके दोस्त आपकी बातों को समझ पाते है या नहीं!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"2. मधुमक्खी की तरह भिनभिनाने कि कोशिश कीजिये अपनी बाहों को उपर और नीचे (फ्लेप) कीजिये और देखिये कि क्या भिनभिनाट होती है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"3. छत्ता यानि मधुमखियों का घर जैसे इंजीनियरिंग की एक मिसाल होता है! आप को क्या लगता है! छाते की तरह बेहतरीन षट्कोन (हेक्सागोनस) बनाने कि मदद से इसके मॉडल्स बनाइये! 4. तब शायद आपको इसका जवाब मिल जाए और तब आप समझ जाएंगे की अलग अलग फूलों के रस से बने शहद का स्वाद भी एकदम अलग अलग होता है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"सरला को उड़ती चिड़िया देखना पसंद था।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"एक दिन, विज्ञान की कक्षा में खिड़की के बाहर वह आकाश में पंख फैलाए उड़ती चील देख रही थी। वह चिड़िया कितनी खुश होगी! उसे हवाई जहाज़ को उड़ते देखना भी बहुत पसंद था।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"सरला हड़बड़ा कर खड़ी हुई और बोली, "सॉरी मैडम!" मैं चील को देख रही थी। काश! हम भी चिड़िया की तरह उड़ पाते या फिर एक हवाई जहाज़ की तरह..."
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"पक्षी उड़ने के समय अपने पंख फड़फड़ाते हैं, लेकिन हमने हवाई जहाज़ के पंखों को फड़फड़ाते हुए कभी नहीं देखा! पक्षी अपने पंख फड़फड़ाते हैं ताकि वे अपने शरीर को ऊपर धकेलने में हवा का उपयोग कर सकें।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"इंजिन बहुत ही मज़बूत यंत्र है जो हवाई जहाज़ के दिमाग की तरह (तेज़) काम करती है। जिस तरह पक्षी अपना दिमाग लगाते हैं और सीखते हैं कि कैसे उड़ा जाय,वैसे ही इंजिन विमान को ज़मीन से ऊपर की ओर धकेलती है और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"जब विमान की इंजिन ईंधन को जलाती है तो वे बहुत ही तेज़ गति से गर्म गैसें छोड़ती हैं, जिससे इंजिन के पीछे हवा का दबाव बनता है और उससे विमान आगे बढ़ता है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमानों को उड़ान भरने और उतरने के लिए बड़ी लंबी सड़क की ज़रूरत होती है। इन लंबी सड़कोको 'रनवे' कहा जाता है। विमान को उड़ान भरने और उतरने से पहले रनवे पर बहुत ही तेज़ गति से दौड़ना होता है। हवा में ऊपर उठने के लिए विमान को बहुत ही तेज़ गति की ज़रूरत होती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"अधिकांश हवाई जहाज़ तभी उड़ पाते हैं जब वे बहुत ही तेज़ी से दौड़ते हैं। रनवे हवाई अड्डा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हवाई जहाज़ों को अपनी गति बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय देता है। और अंत में वे उड़ान भरते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान जानते हैं कि उन्हें कहाँ जाना है, क्योंकि विमानचालक उन्हें चलाते हैं। ये चालक विमान के अंदर, सामने की एक जगह, जिसे चालक स्थल (कॉकपिट) कहते हैं, से उन्हें नियंत्रित (कंट्रोल) करते हैं। वे बहुत ही सटीक और आधुनिक डिवाइसों के द्वारा हवाई अड्डों (एक जगह जहाँ हवाई जहाज़ उड़ान भरते और उतरते हैं) के संपर्क में रहते हैं। जिस तरह हमारी मदद के लिए सड़क पर सिग्नल और पुलिस होती है, वैसे ही वायु यातायात नियंत्रक (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) होते हैं जो विमान चालक को बताते हैं कि कब और किस ओर उड़ान भरनी है और कब उड़ान भरना या उतरना सुरक्षित रहेगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"1. दोस्तों के साथ इन खेलों के मज़े लें काग़ज़ के हवाई जहाज़ बनाओ और देखो कि किसका जहाज़ सबसे दूर जाता है। ज़रा सोचो, क्यों? क्या यह कमाल काग़ज़ का है या उसके बनाने के तरीक़े का? ग़ौर करो, क्या होता है जब कोई जहाज़ छोड़ा जाता है? जब तुम जहाज़ को छोड़ने के पहले उसके ऊपर फूँक मारते हो या उसके अंदर या कि उसके नीचे, तब क्या वहाँ कोई अंतर दिखता है?"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"2. 'फ़्लाइ - डोंट फ़्लाइ' गेम: मित्रों का एक समूह बनाओ और एक -दूसरे को बिना छुए कमरे के चारों तरफ़ जहाज़ की तरह उड़ो। डेन (चोर) एक कोने में खड़ा होकर उड़ने वाली और ना उड़ने वाली चीज़ों के नाम कहेगा। जैसे ही वह किसी ना उड़ने वाली चीज़ (जैसे कि मेज़/टेबुल) कहे तो जहाज़ों को ज़मीन पर उतरना (बैठ जाना) होगा। जो ग़लती करेगा, वह अगला डेन होगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"वह आज बहुत खुश थे! आज तो मुत्तज्जी जी का जन्मदिन था और उन दोनों को रेलगाड़ी से उनसे मिलने जाना था।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी इन जुड़वां भाई-बहन की माँ की माँ की माँ थीं! ओर वह मैसूर में अज्जी के साथ रहती थीं, जो इन दोनों की माँ की माँ, यानी नानी, थीं। किसी को पता नहीं था कि मुत्तज्जी का जन्मदिन असल में कब होता है, लेकिन अज्जी हमेशा से मकर सक्रांति की छुट्टी के दिन उनका जन्मदिन मनाती थीं।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""अम्मा, क्या केक खाने को मिलेगा?" पुट्टी ने पूछा। "एक बड़ा सा नरम-मुलायम स्पंजी केक, गुलाबी आइसिंग वाला और जिसके ऊपर गुलाब बना हो?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी ने दोनों को गले लगाते हुए कहा, "मैं कितने साल की हूँ? कौन जाने? और इससे फर्क भी क्या पड़ता है?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"मुत्तज्जी मुस्कराई, "देखो, मैं इतना जानती हूँ कि मेरे पैदा होने से करीब 5 साल पहले, हिन्दुस्तान भर के महाराजा और महारानियों के लिए दिल्ली में हुई दावत में हमारे महाराजा भी गए थे। एक अंग्रेज राजा और रानी भारत आए थे और तब हमारे महाराजा को सोने का तमगा मिला था।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""ओह! दावत! फिर तो वहाँ बहुत सारे केक रहे होंगे!" पुट्टी बोली। "वह कौन से राजा थे, मुत्तज्जी? अगर आप को यह पता हो तो हम जान सकते है कि वह यहाँ कब आए थे। फिर उसमे 5 जोड़ देने से पता चल जाएगा कि आप कब पैदा हुईं थीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""फिर कुछ साल बाद," मुत्तज्जी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "मेरी शादी हो गयी। उस समय कानून था कि शादी के लिए लड़की की उम्र कम से कम 15 साल होनी चाहिए, और मेरे पिता कानून कभी नहीं तोड़ते थे। तो उस समय मेरी उम्र करीब 16 साल की रही होगी। और मेरी शादी के बाद जल्द ही तुम्हारे मुत्तज्जा को बम्बई में नौकरी मिल गयी और हम मैसूर छोड़कर वहाँ चले गए।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""हाँ, के आर एस।" मुत्तज्जी ने बड़े प्यार से अज्जी को देखा और कहा, "तुम्हारी अज्जी मेरी पाँचवी संतान थी, सबसे छोटी, लेकिन सबसे ज़्यादा समझदार। तुम जानते हो बच्चों, मेरे बच्चे ख़ास समय के अंतर पर हुए। हर दूसरे मानसून के बाद एक, और जिस दिन तुम्हारी अज्जी को पैदा होना था, उस दिन तुम्हारे मुत्तज्जा का कहीं अता-पता ही नहीं था। बाद मेँ उन्होंने बताया कि वो उस दिन ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी का भाषण सुनने चले गए थे। और उस दिन उन्हें ऐसा जोश आ गया था कि वह सारे दिन बस "भारत छोड़ो” के नारे लगाते रहे। बुद्धू कहीं के... नन्हीं सी बच्ची को दिन भर परेशान करते रहे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"लाइब्रेरी में पुट्टी को मैसूर के इतिहास के बारे में एक किताब मिली।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""यह देखो!" उसने फुसफुसा कर कहा, " 'मैसूर की 2 सबसे मशहूर जगहों, के आर एस बांध और उसके पास बने वृन्दावन गार्डन्स, को 1932 में जनता के लिए खोला गया था।' ""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""मुत्तज्जी को लगता है की वह 16 साल की थीं जब उनकी शादी हुई थी," पुट्टी ने कहा,"लेकिन वह 15 या 17 या 18 साल की भी हो सकती थीं।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""मुत्तज्जी!" हाँफते -भागते दोनों सीधे मुत्तज्जी के कमरे मे घुस गए। "क्या मैसूर के महाराजा को ब्रिटेन के राजा जॉर्ज (पंचम) ने सोने का तमगा दिया था?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"महाराजा महारानी की शानदार दावत (1911) – 1911 में ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज (पंचम) और उनकी पत्नी क्वीन मैरी, भारत में पहली बार आए थे, तब उन्होने 400 से ज्यादा भारतीय महाराजा और महारानियों के लिए एक शाही दावत दी थी, जिसे कहा गया था दिल्ली दरबार। इसमे आए 200,000 मेहमानों की दावत के लिए कई बेकरियों में हर दिन 20000 से ज्यादा ब्रैड बनाई गयी थी और 1000 से ज़्यादा कैटल और बकरों को काटा गया था! बादशाह ने कई भारतीय राजाओं को सोने के मेडल (तमगे) भी दिये थे, जिनमे मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वाडियार (चतुर्थ) भी शामिल थे!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ आ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव आ गया। और कृष्ण राजा सागर (के आर एस) रिसर्वोयर का निर्माण हुआ। आज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"गांधीजी का भाषण (1 942 ) - 8 अगस्त 1942 के दिन, बंबई के ग्वालिया टँक मैदान में गांधीजी ने 'भारत छोड़ो भाषण' दिया था। गांधीजी ने लोगों से कहा कि उन्हे अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ लड़ना होगा। इसके लिए उन्हे हिंसा नहीं, बल्कि उनके साथ असहयोग करना होगा। इसके 5 साल बाद, 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ो का शासन खत्म हुआ और भारत आज़ाद हुआ। आज उसी शांत क्रांति की स्मृति में ग्वालिया टैंक मैदान को अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है !"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन-ही-मन बड़बड़ाया।"
स्वतंत्रता की ओर

"साबरमति में सबको कोई न कोई काम करना होता-खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था-बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसन्द था क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।"
स्वतंत्रता की ओर

"उस दिन सुबह, धनी बिन्नी को हरी घास खिला कर, उसके बर्तन में पानी डालते हुए बोला, “कोई बात ज़रूर है बिन्नी! वे सब गाँधी जी के कमरे में बैठकर बातें करते हैं। कोई योजना बनाई जा रही है। मैं सब समझता हूँ।“"
स्वतंत्रता की ओर

"बिन्नी ने घास चबाते हुए सर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही थी। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर

"बिन्दा ने खोदना रोक दिया और कहा, ”तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस मुई बकरी को बाँधो! मेरा सारा पालक चबा रही है!“"
स्वतंत्रता की ओर

"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, बिल्कुल। मैं जानता हूँ वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाये। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो बेवकूफ़ी की बात हुई!“"
स्वतंत्रता की ओर

"”नमक की ज़रूरत सभी को है...इसका मतलब है कि हर भारतवासी, गरीब से गरीब भी, यह कर देता है,“ बिन्दा चाचा ने आगे समझाया।"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्‍चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, वो तो हैं ही!“ बिन्दा की आँखों के आस-पास हँसी की लकीरें खिंच गईं, ”उन्होंने वायसरॉय को चिट्ठी भी लिखी है कि वे ऐसा करने जा रहे हैं! ब्रिटिश सरकार को तो पता ही नहीं कि उसकी क्या गत बनने वाली है!“"
स्वतंत्रता की ओर

"धनी उस झोंपड़ी के पास पहुँचा जहाँ गाँधी जी ठहरे थे। उसने खिड़की से झाँक कर देखा। आश्रम के कई लोग गाँधी जी से बात कर रहे थे। धनी को सुनाई दिया कि वे दाँडी पहुँचने का रास्ता तय कर रहे थे, जिस पर वे पैदल चलेंगे। अपने पिता को भी इनके बीच देखकर धनी खुश हो गया।"
स्वतंत्रता की ओर

"दोपहर को जब आश्रम में थोड़ी शान्ति छाई, धनी अपने पिता को ढूँढने निकला। वह बैठ कर चरखा चला रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर

"गाँधी जी बड़े व्यस्त रहते थे। उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था। पर धनी को वह समय मालूम था जब उन्हें बात सुनने का समय होगा-रोज़ सुबह, वह आश्रम में पैदल घूमते थे।"
स्वतंत्रता की ओर

"अगले दिन जैसे सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़ कर गाँधी जी को ढूँढने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बन्दगोभी देखते हुए बिन्दा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर

"अन्त में, गाँधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने धनी को पुकारा, ”यहाँ आओ, बेटा!“ धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, ठीक बात है,“ कुछ सोचकर गाँधी जी बोले, ”मगर एक समस्या है। अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा? इतना चलने के बाद, मैं तो कमज़ोर हो जाऊँगा। इसलिये, जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे खूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे कि मेरी ताकत लौट आये।“"
स्वतंत्रता की ओर

"4. यात्रा 12 मार्च को शुरू होकर 5 अप्रैल, 1930 को समाप्त हुई। सबसे कम उम्र का यात्री 16 वर्ष का था।"
स्वतंत्रता की ओर

"क्या? क्या मैंने अभी कहा - 'दातुन'? हाँ, बिलकुल सही! 1870 ई. में वे अपने दाँत साफ़ करने के लिए दातुन का उपयोग करते थे। दातुन एक पतली टहनी को तोड़कर बनाया गया टुकड़ा था जिसका अंतिम सिरा अस्त-व्यस्त सा था। कुछ भाग्यशाली बच्चों के पास दातुन के एक सिरे पर जंगली सूअर के बाल लगे होते थे, जिससे उसमें अलग चमक आती थी।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"यह डॉ. शेफील्ड का बेटा ल्यूसियस था, जिसने अब अपने दातुन को टूथपेस्ट के मर्तबान में डुबाने से इनकार कर दिया और फैसला किया कि वह आगे से दंतमंजन का उपयोग करेगा। लेकिन एक विचार उसके दिमाग में घूमता रहा - टूथपेस्ट के उपयोग का इससे बेहतर कोई तो तरीक़ा होगा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"तब एक समस्या सामने आई कि टूथपेस्ट को ट्यूब के अंदर भरा कैसे जाय? तुम ये कैसे करते?"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"हाँ, बिलकुल सही! उन्होंने ढक्कन को पेंच से कसा और ट्यूब के दूसरे हिस्से को पूरी तरह खुला छोड़ा। ट्यूब के बड़े पिछले हिस्से को भरना सचमुच आसान था! ख़ासकर जब तुम्हारे पास पेस्ट के साथ पंप के लिए कुछ हो, जैसे कि पिचकारी। इसके बाद यही करना बाकी रहा कि ट्यूब के उस खुले सिरे को कसकर बंद किया जाए ताकि पेस्ट बाहर न निकले।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● कारखाने में ब्रश तैयार होने के बावजूद बहुत से लोग नीम या बबूल की पतली टहनी से दातुन करते हैं। दातुन हमारे दाँतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखते हैं, मगर क्या तुम जानते हो कि विश्व में सबसे अच्छा ब्रश कौन सा है? तुम्हारी उंगली! दंत-चिकित्सक मानते हैं कि यह दाँतों और मसूड़ों के लिए सबसे बेहतर है।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"चीजें इकट्ठी करना टूका और पोई को बहुत पसंद है। नदी के किनारे  बीने गए चिकने कंकड़, फ़र्न के घुमावदार और गुदगुदे पत्ते, सुर्ख़ लाल रंग के बटन जो उनकी स्कूल यूनिफॉर्म से गिरे हों - टूका और पोई सब बटोर लेते हैं। रोज़ ही, स्कूल के बाद, वे नदी के किनारे झुके हुए नारियल के पेड़ के पास मिलते हैं और अपने सबसे प्यारे दोस्त का इंतज़ार करते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका, पोई और इंजी, एक साथ टहलते हुए, सिर झुकाए, चमकती सड़क और उसके किनारों में, घास में और काई से ढकी चट्टानों पर कुछ मज़ेदार चीजों को ढूंढने में लगे रहते हैं। लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा मज़ा बीजों को इकट्ठा करने में आता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"की सुरीली ध्वनि निकलती है। पोई, इन फलियों को हिलाकर, उनकी ताल पर बहुत मज़ेदार गीत बनाती है।"
आओ, बीज बटोरें!

"वह इस गीत को बार-बार दोहराती रहती है, जिसे सुनकर टूका को बहुत हँसी आती है और इंजी भी ख़ुश होकर भौंकता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका और पोई ने एक-दूसरे को हैरानी से देखा। उन्हें आस-पास कोई नहीं दिखाई दे रहा था। तभी उन्हें दुबारा वह आवाज सुनाई दी, "यहां ऊपर देखो, ऊपर.....।” टूका और पोई ने ऊपर-नीचे, अपने आस-पास, चारों ओर देखा, लेकिन उन्हें कोई भी नहीं दिखा।"
आओ, बीज बटोरें!

"“मैं बोल रहा हूँ, पच्चा, इमली का पेड़।“ इंजी, ज़ोर से भौंकने लगा और अपनी पूँछ को और भी ज़्यादा तेज़ी से हिलाने लगा। उसकी पूँछ से"
आओ, बीज बटोरें!

"टूका और पोई ने पच्चा को फूलों, चिकने पत्थरों और पकी हुई इमली से भरा अपना बैग दिखाया।"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने सभी को समझाया कि,“तुम लोगों ने जिन बीजों को इक्ट्ठा किया है, ये सभी पेड़ों के बच्चे हैं।“"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने समझाया, “तुम इस सेब को खाना शुरू करो जब तक कि इसके बीच वाले हिस्से तक न पहुँच जाओ। सेब के बीच में तुम्हे छोटे-छोटे भूरे रंग के बीज दिखेंगे।“"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने आगे समझाया “अब इस केले को बीच से आधा करो।“"
आओ, बीज बटोरें!

"शाम को टूका, पोई और इंजी घर वापस जाते हुए सड़क के किनारे के सभी पेड़ों को बड़े ध्यान से देखते हुए चल रहे थे।"
आओ, बीज बटोरें!

"अब भी टूका, पोई और इंजी हर शाम स्कूल के बाद मिलते हैं। लेकिन अब, टूका और पोई, उन चीजों को इक्ट्ठा करते हैं जिनमें वे पौधे उगा सकें। पुराने जूते, नारियल का कवच, यहां तक कि पानी की पुरानी बोतलें – सब कुछ, जिन्हें गमले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।"
आओ, बीज बटोरें!

"हैलो! मेरा नाम पच्चा है, मैं एक इमली का पेड़ हूँ। लेकिन मेरे और भी कई नाम हैं। हिंदी में मुझे इमली, तमिल में पुली और बंगाली में तेंतुल कहा जाता है। वैज्ञानिक मुझे, टैमरिंडस इंडिका कहते हैं। चलिए मैं आपको अपने कुछ अन्य बीज मित्रों से मिलवाता हूँ। शायद उनमें से कईयों को आपने अपने भोजन की थाली में ज़रूर देखा होगा।"
आओ, बीज बटोरें!

"कॉफी के बारे में तो आप सभी जानते होंगे, जिसे आपके मम्मी-पापा हर सुबह पीते हैं? ये कॉफी बैरीज़ से बनती है। बैरीज़ से मिलने वाले दानों को सुखाकर, भूनकर और पीसकर पाउडर बना दिया जाता है। दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में कॉफी के बागान हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"बैरीज़, सेब, केला, तरबूज और कटहल - इन सभी फलों में बीज होता है। कुछ बीजों को हम खा नहीं सकते हैं जैसे कि आम की गुठली। लेकिन कई बीज; जैसे कटहल के बीज; इन्हें पानी में भिगोने के बाद सब्ज़ी बनाकर खाए जा सकते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"सभी पौधों को मिट्टी से बहुत प्रेम होता है, लेकिन मूंगफली को धरती से ज्यादा ही प्यार है, इसी कारण ये जमीन के अंदर ही बढ़ती हैं। इसके छोटे-छोटे दाने खाने में बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं। इन दानों को कच्चा, उबालकर और भूनकर खाया जाता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"बारिश होते ही चाची को ज़ोर-ज़ोर से गाना अच्छा लगता है।"
गरजे बादल नाचे मोर

"बनारस वाली शुभा मौसी ने मुझे कुछ सुंदर गीत सिखाए हैं। इन गीतों को कजरी कहते हैं। क्या आपको मालूम है कि सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रसिद्ध गायक थे मियाँ तानसेन? कहा जाता है कि वो “मियाँ की मल्हार” नाम का एक राग गाते थे तो वर्षा आ जाती थी। मैं भी संगीत सीखूँगी-शास्त्रीय संगीत।"
गरजे बादल नाचे मोर

"माँ हमें पीने को गर्म दूध देती हैं। कल उन्होंने मसालेदार मुरमुरे बनाए थे। और माँ ने कहा है कि कल वे पूड़ियाँ बनाने वाली हैं!"
गरजे बादल नाचे मोर

"सभी पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाएँगे और खुश दिखाई देंगे। ठीक उस हरे दुपट्टे की तरह जिसे हरी भैया ने जयपुर से भेजा है। वो बता रहे थे कि उसे धानी चुनरिया कहते हैं। धानी जैसे धान के नन्हे पौधों का रंग। दादा कह रहे थे कि अच्छी बारिश होने से किसानों को अच्छी फसल मिलेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर

"बहुत लंबा है वो, इतना कि आकाश को छूता है।”"
तारा की गगनचुंबी यात्रा

"“बड़ी गिलहरियों ने मुझे ढेर सारी गिरियाँ खाने को दीं और "
तारा की गगनचुंबी यात्रा

"“तब उस विमान-चालक ने विमान को थोड़ा नीचे उतारा, "
तारा की गगनचुंबी यात्रा

"मलार ने गिलासों को एक के ऊपर एक रखना शुरू किया।"
मलार का बड़ा सा घर

"मलार ने गिलासों को उठाया और फिर से एक के ऊपर एक रखना शुरू किया।"
मलार का बड़ा सा घर

"- जितने पेपर कप आप को मिल सकें उतने पेपर कप"
मलार का बड़ा सा घर

"अम्मा को उठाना कितना आसान होता!"
क्या होता अगर?

"बंदर और सभी प्रकार के वानर पेड़ो को ही अपना घर बनाते हैं।"
जीव-जन्तुओं के घर

"चिड़िया उन सभी पिस्सूओं को खा जाती है।"
हमारे मित्र कौन है?

"मैं अपने दांतों को ब्रश नहीं कर सकता हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?

"चिड़िया अपनी चोंच से दांतों को साफ कर देती है।"
हमारे मित्र कौन है?

"पक्षियों को गीत गाते सुनकर बंटी को खुशी होती है।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"हर दिन, उसके पिता अन्य पक्षियों को पकड़ने में मदद करने के लिए एक पक्षी को जंगल में ले जाते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"वे पक्षियों को पकड़ लेते हैं और एक-एक करके अपने घर ले आते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"बंटी और उसके पिता पक्षियों को जंगल में ले जाते हैं और उन्हें मुक्त करते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"अगली सुबह, बंटी सभी पक्षियों को अपने घर के पेड़ के पास खुशी से गाते हुए सुनता है।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

"कप्तान राजू ने अपने जेट विमान को तेज़ी से बाईं ओर मोड़कर, एक क्षण मात्र से उसे आइफल टॉवर से टकराने से बचा लिया।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"राजू पहली बार हवाई-अड्डे के अंदर आया था। उस चौड़े-बड़े से पट्टे पर रखने में अम्मा की मदद की जो सामान को एक मशीन के अंदर ले जा रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"इसे अंग्रेजी में कन्वेयर बेल्ट कहते हैं। वर्दी पहने हुई, एक बहुत कठोर दिखने वाली महिला, मशीन के पीछे रखी स्क्रीन में देख कर सामान की जाँच कर रही थी। राजू स्क्रीन को देखकर हैरान रह गया। स्क्रीन में तो अटैची के साथ-साथ उसमें रखा सामान भी दिख रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"आखिरकार राजू एक बड़े से हॉल में पहुँचा जिसकी दीवारे काँच की थीं। वह बाहर खड़े बहुत सारे हवाई जहाज़ देख पा रहा था।एक हवाई जहाज़ उड़ान भरने को तैयार था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"दस मिनट बाद वह अपनी सीट पर ठीक तरह से कुर्सी की पेटी बाँध कर बैठ गए। जहाज़ चलने पर राजू खिड़की से बाहर देखने लगा। जहाज़ पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ा फिर देखते ही देखते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो गई। राजू को लगा कि उसकी कुर्सी थरथरा रही है।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"संख्या छह को उलट कर लिखने से मेंढक के सिर की छतरी / मशरूम बनती है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"तितलियाँ! मुझे दिख रही हैं तितलियाँ! मुझे दिख रहीं हैं चार तितलियाँ! क्या आप को भी दिख रही हैं?"
तितलियां

"तितलियाँ! मुझे दिख रही हैं लाल,हरी और पीली तितलियाँ! अरे एक छोटी तितली मेरी अंगुली पर बैठी है! क्‍या आप को वह दिख रही है?"
तितलियां

"तितलियाँ! मुझे भी तितली बनना है! क्‍या आप को भी आकाश मे उड़ना है?"
तितलियां

"रविवार के दिन, माँ-बाबा ने मनु को एक लाल रंग की बरसाती ख़रीद कर दी।"
लाल बरसाती

"मंगलवार को आसमान नीला था।"
लाल बरसाती

"बुधवार को बहुत गर्मी थी।"
लाल बरसाती

"गुरुवार को मनु पिकनिक पर गया।"
लाल बरसाती

"शुक्रवार को घटा थी।"
लाल बरसाती

"शनिवार को बिजली के ज़ोर-ज़ोर से कड़कने की आवाज़ हुई।"
लाल बरसाती

"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने आप खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"जल्दी ही सारे सहपाठी भी जुट जाते हैं गले में खिचखिच वाली कोयल को ढूँढने में।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“कू-ऊऊऊऊह-ऊऊऊऊह। परवेज़ दादी को उस गला खराब वाली कोयल के बारे में बताता है। दोनों चलकर सुकर्ण स्कूल पहुँचते हैं जहाँ बधिर बच्चे पढ़ते हैं।"
कोयल का गला हुआ खराब

"शाम को अपने घर के पास उसे स्टेल्ला मिल गयी।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“स्स्स्टेल्ला, मैंने क्क्कोयल को सससुना!” एक बार में एक एक शब्द बोला उसने।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- जो लोग पूरी तरह से बधिर होते है, वो कुछ भी नहीं सुन सकते। परवेज़ आँशिक रूप से नहीं सुन सकता है। इसलिए उसे शीला मिस जैसी एक विशेष शिक्षक की ज़रूरत है जो उसे संकेत की भाषा, होंठों को पढ़ने और संवाद करने के अन्य तरीके सीखने में मदद कर सके।"
कोयल का गला हुआ खराब

"- कुछ बच्चे चश्मा लगाते हैं ताकि वे अच्छी तरह से देख सकें, ठीक वैसे ही परवेज़ सुनने की मशीन लगाता है ताकि उसे सुनने में आसानी हो। उसे अपनी मशीन को लेकर थोड़ा सचेत रहने की ज़रूरत है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"उसने ख़ुद को अकेला पाया। परिवार के दूसरे सदस्य उसे छोड़ कर आगे निकल गए थे।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"एक ऊदबिलाव पास से गुज़रा। घूम-घूम ने उससे पूछा - "ऊद भाई, क्या आपने मेरे परिवार को देखा है?""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"* डाॅल्फ़िन को हिन्दी में 'सूंस' कहते हैं।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

""क्या आप मेरे परिवार को ढूँढने में मदद कर सकते हैं घोंघा मामा?" घूम-घूम ने पूछा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

""दादू, दादू! क्या आपने मेरे परिवार को देखा है?" घूम-घूम ने पूछा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

""तब तो मैंने तुम्हारे परिवार को ज़रूर देखा है।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"पापा ने झुक कर घूम-घूम को प्यार किया।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"इस पृष्ठ पर और अगले पृष्ठ पर चित्रों में तुम घूम-घूम के कितने दोस्तों को पहचान सकते हो?"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"सत्यम को रविवार का इंतज़ार रहता है क्योंकि हर रविवार वह माँ के साथ खेत पर जाता है।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"सूरज डूबने के बाद देर शाम को जब झींगुरों ने अपना राग अलापना शुरू किया, तब घर जाने का समय हो गया।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"उसने अपने पहले पंद्रह जोड़े पैरों को खींचा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"झूल रहा था। उसने गोजर को रोते हुए देखा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"मधुमक्खियों को बाँटें मकरंद का उपहार।"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"निबौरी है कीड़ों को दूर भगाने का उपचार।"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"रिंकी को अपने बड़े भाई की लिखार्इ अच्छी लगती है।"
जादुर्इ गुटका

"उसने मेज़ की दराज़ को खींच कर खोला।"
जादुर्इ गुटका

"दराज़ में एकदम नीचे, रिंकी को भैया का ख़ास पैन मिल गया।"
जादुर्इ गुटका

"रिंकी ने खींच कर कलम और गुटके को अलग किया।"
जादुर्इ गुटका

"बस किसी तरह कलम को पास लाने का कोर्इ तरीका मिल जाए।"
जादुर्इ गुटका

"अचानक, रिंकी को एक उपाय सूझा।"
जादुर्इ गुटका

"रिंकी काले गुटके को फुट्टे के पास लार्इ।"
जादुर्इ गुटका

"फिर वह फुट्टे को पलंग के नीचे सरकाती है"
जादुर्इ गुटका

"और अपनी बांह को आगे को तानती है।"
जादुर्इ गुटका

"चुंबक सभी चीज़ों से नहीं चिपकता। यह सिर्फ उन कुछ चीज़ों से चिपकता है जिनमें कुछ ख़ास तत्व होते हैं। किसी वस्तु को चुंबक से चिपकाने वाले यह ख़ास तत्व हैं लोहा, निकिल, स्टील और कोबाल्ट।"
जादुर्इ गुटका

"नारियल के पेड़ वाले मोटे-से भँवरे को गिनती बहुत पसंद है! वह फूलों की पत्तियाँ गिन रहा है!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"गुबरैला ने ज़ोर से धक्का दिया, और ज़ोर से, बहुत ज़ोर से! लेकिन वह उस नारियल के पेड़ वाले हट्टे-कट्टे भँवरे को पलट नहीं सकी।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"तीन झींगुर उसकी मदद करने के लिए आगे बढ़े। फिर नारियल वाले मोटू भँवरे ने अपने दोस्तों को गिनना शुरू किया, “एक, दो, तीन, चार! चार तो एक सम संख्या है!”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"लेकिन वह सब मिलकर भी नारियल वाले भँवरे को पलट नहीं सके!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"लेकिन फिर भी वो उस भँवरे को पलट नहीं पाए!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"नारियल पेड़ वाले गोलू भँवरे ने अपने सारे दोस्तों को गिना।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"लेकिन वो भी मुटल्ले भँवरे को पलट नहीं सके!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"“अरे कोई उन जालीदार पंखों वाले पतंगों को बुलाओ,” गुबरैला ने ज़ोर से कहा। नौ जालीदार पंखों वाले पतंगे मदद के लिए आगे आए।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"आख़िरकार, उन सब ने मिलकर उस मुटल्ले नारियल पेड़ के भँवरे को पलट ही दिया!"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"सम और विषम संख्याओं की वस्तुओं को गिनिए।"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"मेंढक को भूख लगी थी।"
मेंढक की तरकीब

"ज़रा मेरी पूँछ को पकड़ कर तो देखो।"
अरे...नहीं!

"देखो, मेरी पत्तियों को मत छूना।"
अरे...नहीं!

"वे मेंढकोको तंग करती है और मच्छरों को अपना आहार बनाती है।"
द्रुवी की छतरी

"शाम को द्रुवी पास के जंगल में जाती है।"
द्रुवी की छतरी

"वह चिड़ियों के घोंसलों और मकड़ों के जालों को देखती है।"
द्रुवी की छतरी

"वह आसमान में घिर आए बादलों को नहीं देखती।"
द्रुवी की छतरी

"‘ये पत्ते बहुत अधिक छोटे हैं, चींटी को भी ढँक नहीं पाएंगे,’ द्रुवी सोचती है।"
द्रुवी की छतरी

"बहुत तेज़ हवा चल रही है लेकिन द्रुवी को अब तक अपने लिए छतरी नहीं मिली है।"
द्रुवी की छतरी

"अचानक द्रुवी बरगद के पेड़ को देखती है।"
द्रुवी की छतरी

"ज़रा उठाकर और अपने पेट को सूर्य की तरफ करके आराम करते हैं।"
द्रुवी की छतरी

"उसने अंडों को घास-फूस से ढँका।"
कुत्ते के अंडे

"चलो दीदी की जगह को ख़ूबसूरत बनाएं। बच्चे कचरे से एक कुर्सी-टेबल ले आए।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"बातों बातों में किताब पढ़ने लगे। अपने आप पढ़ते पढ़ते औरों को पढ़ाने लगे।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"बच्चे दौड़ कर वहाँ पहुंच गए। दीदी को एक दम गले लगाया।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"रोज़ शाम को मिलने लगे हैं। खूब हंसने और पढ़ने लगे हैं। मिल कर मौज मस्ती करने लगे हैं, बच्चे, दीदी और उनकी किताबें!"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"‘‘मेरे सारे दोस्तों-सहेलियों को मेरी याद ज़रूर आयेगी।"
एक सफ़र, एक खेल

"लेकिन नीना कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं है। रेलगाड़ी में माँ और बाबा ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की।"
एक सफ़र, एक खेल

"माँ और बाबा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह और क्या कर सकते हैं। फिर बाबा मुस्कराए।"
एक सफ़र, एक खेल

"बाबा और माँ ने एक कंबल सीट पर बिछाया। फिर हवा वाले एक तकिये को फूंक कर फुलाया।"
एक सफ़र, एक खेल

"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अपनी प्रजाति का वह आखिरी जीव था और सैकड़ों वर्षों से यह प्रजाति विलुप्त मान ली गयी थी। लोग नहीं जानते थे कि उस प्रजाति का जीवित अवशेष, जो एक को छोड़ अपने बाकी सारे पंख गँवा चुका था, अब भी अधनिया के जंगलों में विचरता था। गजपक्षी और गाँव वाले एक दूसरे से एक सुरक्षित दूरी बनाये रखते थे। पर मुनिया नहीं। हालाँकि चलते समय वह लँगड़ाती थी, लेकिन थी बड़ी हिम्मत वाली। अक्सर वह जंगल में घुस जाती और एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी को देखने के लिए झील पर जाया करती थी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"पर मुनिया जल्द ही यह जान गयी कि वह शर्मीला और घासफूस खाने वाला एक शान्त पक्षी है। वह बस झील के किनारे लगे पौधे और पत्तियाँ चबाता रहता। मुनिया को महसूस हुआ कि उसमें और उस गजपक्षी में कुछ समानता है। सही तो है, विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उड़ नहीं सकता था और मुनिया दौड़ नहीं सकती थी! गाँव के बाकी सारे बच्चे उसके लँगड़ाने का मज़ाक उड़ाते और अपने खेलों में उसे शामिल न करते। इसलिए उसे अकेले रहना ही अच्छा लगता।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"झिझकते-झिझकते उसने वह गेंद उसकी ओर फेंकी। आड़े-तिरछे ढुलक कर उसने गेंद को अपनी चोंच में पकड़ लिया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"और हर कोई उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी पर शक करने लगा। नटखट को सर्वत्र ढूँढ चुकने के बाद, मुनिया समेत गाँव के सभी छोटे-बड़े पुराने बरगद की छाँव तले गाँव की चौपाल पर इकट्ठा हुए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“तो... फिर जंगल ही में किसी ने उसे खा लिया होगा,” गाँव के मुखिया को सम्बोधित करते हुए एक हट्टा-कट्टा नौजवान बोला।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“सही है, इधर बरसों की आराम की ज़िन्दगी ने उसे ख़तरनाक बना दिया है,” मुनिया के पिताजी ज़ोर देकर बोले। “आज एक घोड़ा गया है, कल को हमारे बच्चों की बारी हो सकती है...”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया एक पल को तो ठिठकी पर अगले ही पल उसे जंगल में आराम से सोते उस महाकाय का ख़याल आया। वह अगर नहीं गयी तो वह शायद अगली रात भी न देख पाये। एक गहरी साँस लेकर उस आधी रात को ही जंगल से होकर चन्देसरा जाने वाले रास्ते पर लँगड़ाते-लँगड़ाते चल पड़ी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“जैसा कि आप जानते हैं, कुछ साल पहले मैंने नटखट को बेच दिया था। कल मैं नटखट के भाइयों - बाँका और बलवान के द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में सवार आपके गाँव से गुज़र रहा था। मुझे नहीं मालूम कि किस तरह से नटखट अपने आपको छुड़ा हमारे पीछे-पीछे भागकर चन्देसरा चला आया। मैं उसे पहचान न सका और यह समझ न पाया कि इसका करूँ तो करूँ क्या। फिर आज सुबह मैंने इस नन्ही-सी बच्ची को एक झोंपड़ी से दूसरी झोंपड़ी जाते और एक गुमशुदा घोड़े के बारे में पूछते हुए देखा। लेकिन या इलाही ये माजरा क्या है?” तीसरी बार उसने अपना वही सवाल किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"यह कहानी एक वास्तविक गजपक्षी से प्रेरित है। इस विशाल पक्षी, एलिफेंट बर्ड, को वैज्ञानिकों ने एपियोरनिस मेक्सिमस का नाम दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी था और मेडागास्कर के द्वीपों में पाया जाता था। वनों के नष्ट होने और आबादी बढ़ने से ये विशाल पक्षी 1700 ई. के आस-पास लुप्त हो गए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"भालू को पसंद थे रंग।"
रंग

"सूरज को नींद आई, वह सोने चला गया,"
और चीकू भी

"“सच सोना! तुमने मेरी बहुत मदद की,” पापा ने सोना को प्यार से कहा।"
सोना सयानी

"मुझे पेपे को चिढ़ाने में बहुत मज़ा आता है।"
टिमी और पेपे

"शाम को भीमा घाट से लौटा। मोती कुत्ता वहाँ आया।"
भीमा गधा

"शाम को भीमा ने कालू कौए को काँव-काँव करते देखा।"
भीमा गधा

"दोनों को गले लगाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना

"दोनों को पजामा पहनाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना

"दोनों को गले लगाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना

"दोनों को पजामा पहनाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना

"माँ आयीं। बोलीं, “लो पत्थर को मार दिया।”"
वह हँस दिया

"माँ आयीं। बोलीं, “लो पत्थर को मार दिया।”"
वह हँस दिया

"“तुम फाटक को अंदर से रंगो,” उसने वीना से कहा, “और तुम बाहर से!” उसने विनय से कहा।"
नन्हे मददगार

"वीना ने फाटक को एक तरफ़ से रंगना शुरू किया। विनय ने दूसरी तरफ़ से।"
नन्हे मददगार

"आख़िरकार काम खत्म हुआ। उन्होंने ज़मीन पर गिरे रंग को पोंछा। उन्होंने दीवार पर गिरे रंग को पोंछा।"
नन्हे मददगार

"और अन्त में अपने ऊपर गिरे रंग को भी पोंछा।"
नन्हे मददगार

"“ओहो! तुमने तो फाटक को दो रंगों में रंग डाला!” पुताई वाला भैया भन्नाया। “चलो अब इसे ऐसे ही रहने देते हैं!” माँ ने कहा।"
नन्हे मददगार

"गुस्साया पहलवान गप्पू को पकड़ने दौड़ा।"
पहलवान जी और केला

"मुझे पेपे को चिढ़ाने में बहुत मज़ा आता है।"
टिमी और पेपे

"गजानन को एक बीमारी लगी."
कहानी- गजानन गंजे

"वह गुरूजी के पास गया. गुरूजी हिरण को घुमा रहे थे."
कहानी- गजानन गंजे

"माँ ने सोना को कपड़ा और रंग दिए। सोना ने तीन चार ठप्पे उठा लिए।"
सोना बड़ी सयानी

"उसने माँ को कमर से पकड़ लिया।"
सोना बड़ी सयानी

"रबड़ी के पतीले को झटपट आग से उतार लिया।"
सोना की नाक बड़ी तेज

""रबड़ी चुस्की को बचा लिया!"
सोना की नाक बड़ी तेज

"सबसे पहली ‘रबड़ी-चुस्की’ सोना को देते हुए,"
सोना की नाक बड़ी तेज

"चाचा ने सोना को प्यार से थपथपाया!"
सोना की नाक बड़ी तेज

"अब तो सृंगेरी श्रीनिवास को बहुत लम्बे समय तक बाल नहीं काटने पड़ेंगे।"
सालाना बाल-कटाई दिवस

"गाजर को उखाड़ तब पाया।"
सबरंग

"मरतों को दे जीवन-दान"
सबरंग

"रोते लल्ला को चुमकारा"
सबरंग

"सुनकर दादी बड़ी घबराई राम-राम ही मुँह को आई।"
सबरंग

"रात को जब झींगुर गुंजाएँ"
सबरंग

"अच्छे-अच्छे बच्चों को वह"
सबरंग

"रोज सुलाने को आतीं।"
सबरंग

"मुझ को लेकर दूर उड़े।"
सबरंग

"माँ ने मौसी को एक फूलों का गुलदस्ता दिया।"
संगीत की दुनिया

"विवान ने हैरान होकर पूछा, "वाद्य-यंत्र क्‍या होता है?"मौसी ने विवान को समझाया, "वाद्य-यंत्रों से बजता है संगीत। आओ, तुम्हें इनसे परिचित करवाती हूँ।""
संगीत की दुनिया

"विवान को याद आया और वह गाते हुए बोला..."
संगीत की दुनिया

"कुछ ही देर में, नौका नदी में हिचकोले खाती, पेड़ों के बगल से हिलती डुलती आगे बढ़ी। काटो ने बहुत सारी बत्तखों को तैरते हुए देखा। मछलियाँ भी पानी से सिर निकालकर होंठ गोल करके “हैलो” बोलतीं। हंसों का एक जोड़ा भी अपनी लम्बी ख़ूबसूरत गर्दन मटकाते हुए पास से गुज़रा।"
नौका की सैर

"काटो का मन हुआ, वह उचककर उन्हें छू ले। और इस चक्कर में वह पानी में जा गिरा। गिरते-गिरते काटो ने कुछ मछलियों को उसका रास्ता काटते हुए देखा। “मुझे बचाओ, बचाओ मुझे,” पानी की लम्बी घूँटें लेते हुए उसने उन्हें पुकारा।"
नौका की सैर

"विक्की को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। वह नौका के एक छोर से दूसरे छोर तक कूदता रहा और"
नौका की सैर

"हंस ने उसकी पुकार सुनते ही पानी में अपना सिर डुबोया और बड़ी आसानी से काटो को अपनी चोंच में
 उठाकर नौका में डाल दिया।"
नौका की सैर

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"दादा को भी हुई परेशानी।"
निराली दादी

"राजू ने कहा,"नानी आज बहुत व्यस्त रहीं। वह अपनी पेन्शन के लिए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख रही थीं।""
नानी की ऐनक

"अम्मा बोली,"वह बहुत देर तक तुम्हारी मौसी से बात भी करती रही थीं। उन्होंने उस स्वेटर को भी पूरा किया, जो वह राजू के लिए बुन रही थीं। फिर वह टहलने निकल गई थीं।"अब मुझे खोज के लिए कई सूत्र मिल गए। मैंने घर में तुरंत ही नई जगहों पर ढूँढ़ना शुरू किया।"
नानी की ऐनक

"पशु पक्षी भी बारिश में आनंदित होते हैं क्योंकि उन्हें पीने और बढ़ने को बहुत पानी मिल जाता है।"
बारिश हो रही छमा छम

"यहाँ किसी को पढ़ना नहीं आता।”"
जंगल का स्कूल

"मोटे और लम्बू को एक कमरा दिखा।"
जंगल का स्कूल

"किसी को भी पता नहीं था।"
जंगल का स्कूल

"मेरे भाई को भूख लगी है।
 वह चिप्स खाना चाहता है।"
चाचा की शादी

"उनका सूटकेस कपड़ों से भरा है।
 दोनों को अच्छे कपड़ों का बहुत शौक है।"
चाचा की शादी

"…आ जा बदरवा आ जा... बूँदों को बरसा जा!"
बारिश में क्या गाएँ ?

"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें

"अनु को अपने पापा की ये सारी चीज़ें अच्छी लगती हैं।"
पापा की मूँछें

"लेकिन क्या आप जानते हैं कि अनु को अपने पापा की कौन सी चीज़ सबसे ज़्यादा अच्छी लगती है?"
पापा की मूँछें

"हर सुबह, जैसे ही उसके पापा दाढ़ी बनाना शुरू करते हैं, अनु भी उनके पास आकर बैठ जाती है। बड़े ध्यान से उन्हें दाढ़ी बनाते हुए देखती है। उसके पापा अपनी दो उँगलियों में एक छुटकू-सी कैंची पकड़े, कच-कच-कच... अपनी मूँछों को तराशने में जुट जाते हैं।
 और अनु है कि कहती जाती है, “थोड़ा बाएँ... अब थोड़ा-सा दाएँ... पापा नहीं ना! आप अपनी मूँछों को और छोटा मत कीजिए!
 आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे कट्टी हो जाऊँगी!”"
पापा की मूँछें

"इसके बाद, वह मूँछ की नोकोको अपनी उँगलियों की चुटकी में पकड़ कर उमेठ देती है!"
पापा की मूँछें

"सच बात तो यह है कि अनु को सारे मूँछ वाले आदमी अच्छे लगते हैं। जैसे कि उसकी दोस्त तुती यानि स्मृति के पापा।"
पापा की मूँछें

"अगर वे एक काला टोप और एक लम्बा काला ओवरकोट पहन लें... अपनी आँखों पर एक काला चश्मा लगा लें, तो वे एकदम उस टीवी वाले जासूस की तरह लगेंगे जो सब चोरों को पकड़ लेता है!"
पापा की मूँछें

"अनु को दादाजी की चिन्ता होने लगी है... उस बादल के रहते वे खाना कैसे खा पाते होंगे भला?"
पापा की मूँछें

"चींटी को रसोई घर में अंकुरित मूँग दाल का एक दाना मिला।"
दाल का दाना

"चींटी दाने को खींचकर अपने घर की ओर ले जाने लगी।"
दाल का दाना

"चींटी को लगा, कोई नदी बह रही हो।"
दाल का दाना

"चींटी ने किसी तरह उस नदी को पार किया।"
दाल का दाना

"चींटी दाने को लेकर आगे बढ़ी तो रास्ते में उसे बाल्टी मिली।"
दाल का दाना

"चींटी दाने को लेकर बाल्टी पर चढ़ने लगी। लेकिन फिसलकर गिर पड़ी।"
दाल का दाना

"उन्होंने बाल्टी का चक्कर लगाया और दाने को खींचकर घर ले चलीं।"
दाल का दाना

"जब चींटी उसके मुँह के पास से गुज़री तो कुत्ते को ज़ोर से छींक आ गयी। चींटी उछलकर दूर जा गिरी। दाना कुत्ते के मुँह के पास जा गिरा।"
दाल का दाना

"कुत्ते ने एक आँख खोलकर चींटी को देखा।"
दाल का दाना

"चींटी दाल के दाने को लेकर फिर घर की ओर चल पड़ी।"
दाल का दाना

"क्या आप दालों को पहचानते हैं?"
दाल का दाना

"इस पुस्तक में चींटी को एक हरा अंकुरित मूँग का दाना मिला। अंकुरित दालें स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी होती हैं। हम किसी भी दाल को भिगो कर अंकुरित बना सकते हैं जैसे राजमा, सफ़ेद चना, काला चना, मटर आदि।"
दाल का दाना

"अलग अलग दालों के बारे में अपने मित्रों से साथ दाल के खेल खेलकर जानिए। घर के किसी बड़े से रसोई से विभिन्न प्रकार की दालों के दाने लेकर देने का अनुरोध कीजिये। उदाहरण के लिए, राजमा, अरहर या तूअर, सफ़ेद चना, सोयाबीन, साबुत मूँग और मटर के दाने। इन सब को एक बड़े कटोरे में डालिये।"
दाल का दाना

"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना

"डॉक्टर बोम्बो ने अपने चश्मे के ऊपर से देखते हुए पूछा, "तुम्हारी अपनी पूँछ को क्या हुआ?""
चुलबुल की पूँछ

""नहीं, यह पूँछ ठीक नहीं है। इसे बदलना पड़ेगा," यह कहते हुए उसने अपनी लम्बी पूँछ को हाथ से उठाने की कोशिश की। किसी तरह लड़खड़ाते हुए वह दोबारा डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल में पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ

"ताकि मैं अपने शरीर को सुन सकूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"क्या मैं अपने दिल को और तेज़ कर सकती हूँ? और आवाज़ भी बढ़ा सकती हूँ...?
 हाँ, अगर मैं बीस बार ऊपर-नीचे कूदूँ!"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"अब मैं अपने जबड़ों को चबाते हुए सुनना चाहती हूँ।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"आवाज़ को शरीर के सही अंग के साथ मिलाइए।"
चुप! मेरी नाक कुछ कह रही है...

"हम दोनों को पढ़ना बहुत अच्छा लगता है।"
चलो किताबें खरीदने

"उसने अपने पहले पंद्रह जोड़े पैरों को खींचा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"झूल रहा था। उसने गोजर को रोते हुए देखा।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"बिल्ली ने चूहे को देखा और बिस्तर के नीचे दुबक गई!"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"उन्होंने झाड़ू निकाला और चूहे को इधर-उधर ढूँढने लगी।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"फिर उन्होंने अख़बार को मोड़ा और उसे इधर उधर खोसने लगीं।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"दादी ने चूहे को देखा और बिस्तर के नीचे जा छुपीं। पापा ने धीमे से कहा,"अब क्या करूँ?""
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"छोटी ने चूहे को देखा और चूहा भागने लगा। छोटी उसके पीछे लपकी!"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"इस बार गुल्ली को क्या मिला?"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"चीनू कूद कर ठेले पर जा बैठा और उसने अपने पैर लटका लिये। पिता जी ने ठेले को धक्का दिया और ज़ोर से पुकार लगाई, “पेपरवाला...कबाड़ी!” चीनू ने भी पुकार लगाई। वाह! दोनों की क्या ज़ोरदार आवाज़ निकली!"
कबाड़ी वाला

"अब तो ठेले को धक्का देने के लिए चीनू को पिता जी का हाथ बँटाना पड़ा!"
कबाड़ी वाला

"“शुक्रिया पिता जी!” चीनू बोला उसके बाद, रात को खाने के लिए उन्हें उसे तीन बार बुलाना पड़ा!"
कबाड़ी वाला

"माँ की कहानी सुनते सुनते चन्दू को गहरी नींद आ गई।"
उड़ते उड़ते

"चन्दू को देखकर वे स़िर्फ मुस्काने लगे।"
उड़ते उड़ते

"माँ ने चन्दू को जगाया और कहा, “जागो, बेटा!”"
उड़ते उड़ते

"चन्दू ने माँ को प्यार किया और बोला, “सबसे अच्छा तो अब लग रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"चीकू को खाना भी अकेले खाना पड़ा।"
कचरे का बादल

"फिर एक दिन अम्मा को बहुत गुस्सा आ गया, उसने कहा, "देखना अब यह कूड़ा हमेशा तुम्हारे साथ ही रहेगा!" चीकू हँसती रही।"
कचरे का बादल

"चीकू ने एक झाड़ू लेकर बादल को हटाने की कोशिश की,"
कचरे का बादल

"उसने चीख-चीख कर बादल से हटने को कहा।"
कचरे का बादल

"उसने तो बादल को कूड़ेदान में फेंकने की भी"
कचरे का बादल

"इसके बाद चीकू ने बाला को देखा सड़क पर केले का छिलका फेंकते हुए।"
कचरे का बादल

"चीकू को गुस्सा आ गया। क्या बाला को मेरे सिर पर कचरे का बादल नहीं दिख रहा?"
कचरे का बादल

"वो चिल्लाई, "अरे बुदधू, छिलके को सड़क पर मत फेंको, कोई फिसल जाएगा!""
कचरे का बादल

"कचरे के बादल से डर कर, बाला ने, छिलके को कूड़ेदान में फेंक दिया।"
कचरे का बादल

"फिर चीकू ने देखा, कि रमा आंटी, प्लास्टिक की थैलियों को फेंक रहीं थीं।"
कचरे का बादल

"चीकू ने कहा, "आंटी, थैलियों को उठाकर दोबारा इस्तेमाल कीजिए।""
कचरे का बादल

"जब भी हम केले के छिलके या पेंसिल की छीलन सड़क पर फेंकते है, तो यह कचरा सड़क के किनारे इकठ्ठा हो जाता है। कुछ उन नालियों के अंदर चला जाता है और उन में जमा हो जाता है। रूकी हुई नालियों में मक्खी-मच्छर पैदा होते हैं जो बीमारियाँ फैलाते हैं! इससे हमारा पर्यावरण गन्दा होता है और अपने आसपास कूड़ा- कचरा तो किसी को भी अच्छा नहीं लगता। चीकू के दिल से पूछिये।"
कचरे का बादल

"- छिलका रखने के लिए माँ या पापा से एक छोटा लिफ़ाफ़ा ले जाईये, स्कूल पहुँचने के बाद याद से छिलके को कूड़ेदान में डाल दीजिये।"
कचरे का बादल

"- केले वाले लिफ़ाफ़े की तरह कई चीज़ें आपको बेकार लगती होंगी, लेकिन सब चीज़ें बेकार नहीं होतीं। छिलके के साथ लिफ़ाफ़े को बिल्कुल नहीं फेंकना, उसे वापस घर ले जाकर दोबारा इस्तेमाल कीजिये।"
कचरे का बादल

"- कूड़ेदान को ढक दीजिये जिससे उस में मक्खियाँ बिलकुल न पहुँच पाएँ।"
कचरे का बादल

"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी

"“ए मुन्नी! परे हट, मैं तेरे अंडे खाने आया हूँ,” वह चहक कर बोला। मुन्नी समझदार गौरैया थी। वह झटपट बोली, “काका किसी की क्या मजाल कि तुम्हारी बात न माने? लेकिन मेरी एक विनती है। मेरे अंडों को खाने से पहले तुम ज़रा अपनी चोंच धो आओ। यह तो बहुत गन्दी लग रही है।”"
काका और मुन्नी

"काका खुद को बहुत बाँका समझता था। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह सा़फ -सुथरा नहीं दिख रहा। वह झटपट पानी की धारा के पास पहुँचा। वह धारा में अपनी चोंच डुबो ही रहा था कि धारा ज़ोर से चिल्लाई, “काका! रुको! अगर तुमने अपनी गन्दी चोंच मुझ में डुबोई तो मेरा सारा पानी गन्दा हो जायेगा। तुम एक कसोरा ले आओ। उस में पानी भरकर अपनी चोंच उसी में धो लो।”"
काका और मुन्नी

"और कुम्हार को दे दूँ"
काका और मुन्नी

"और कुम्हार को दे दूँ"
काका और मुन्नी

"काका को ज़ोरों की भूख लगी थी, वह तेज़ी से मँडराया तभी..."
काका और मुन्नी

"“अजी ओ भैया कुत्ते प्यारे, काका आया पास तुम्हारे आज तुम्हें दावत खिलवाऊँ मोटा-ताज़ा हिरन दिखाऊँ, बस सींग उसका मैं ले लूँगा उससे थोड़ी मिट्टी खोदूँगा मिट्टी कुम्हार को दे दूँगा जिससे बनाये वो एक कसोरा जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी

"कुत्तों को पिलाने के लिए"
काका और मुन्नी

"हिरन को मारने के लिए"
काका और मुन्नी

"मिट्टी कुम्हार को दे दूँगा"
काका और मुन्नी

"“सूखा पुआल खा कर दूध कहाँ से दूँ? हाँ थोड़ी रसीली घास खाने को मिल जाए तो मैं ज़रूर तुम्हें दूध दे दूँ,” भैंस ने रम्भा कर जवाब दिया।"
काका और मुन्नी

"कुत्तों को पिलाने के लिए"
काका और मुन्नी

"हिरन को मारने के लिए"
काका और मुन्नी

"मिट्टी कुम्हार को दे दूँगा"
काका और मुन्नी

"अब तक काका को बहुत ज़ोर की भूख लग चुकी थी,"
काका और मुन्नी

"भूखी भैंस को खिलाऊँ"
काका और मुन्नी

"कुत्तों को पिलाने के लिए"
काका और मुन्नी

"हिरन को मारने के लिए"
काका और मुन्नी

"और कुम्हार को दे दूँगा"
काका और मुन्नी

"बाकी सभी की तरह लुहार भी मुन्नी के अंडों को बचाना चाहता था। उसने कहा, “अभी बनाता हूँ हँसिया। तुम ज़रा पीछे जाकर भट्ठी का दरवाज़ा खोलो और इस लोहे के टुकड़े को उसमें रख दो”"
काका और मुन्नी

"(Collage) हैं। कोलाज, अलग-अलग चीज़ों के टुकड़ों को जोड़कर एक नयी तस्वीर को बनाने का एक तरीका होता है। यह चीज़ें हाथों से बनी या इस किताब की तरह छपा हुआ काग़ज, अखबार और मैगज़ीन की कतरनें, पुराने कार्ड, छायाचित्र, कपड़ा, रिबन, सूखे फूल या पत्ते, या आसानी से मिल जानेवाली कोई भी चीज़ हो सकती है!"
काका और मुन्नी

"इस पृष्ठ में चार तत्वों वायु, जल, पृथ्वी और दहकते हुए सूर्य को दर्शाया गया है। जैसे इस किताब में कागज़ के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ है वैसे ही तुम कागज़ के टुकड़े"
काका और मुन्नी

"इधर-उधर को मुड़ती थी,"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"बोझ ऊँट को ढोने दो।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"मारे पेंग गगन को छूले।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"सब को खूब थकाती गेंद।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल

"यह झगड़ा बढ़ गया तो दोनों मुखिया के पास गए। मुखिया ने दोनों की बात सुनकर दोनों को एक-एक बोरी कंकड़ मिला चावल दिया और बोला, “कल साफ़ करके ले आना। फिर मैं फ़ैसला सुनाऊँगा।""
मेहनत का फल

"सुबह मुखिया ने दोनों को चावल दिखाने को कहा। ओम ने आधे से ज़्यादा चावल साफ़ कर दिए थे। घनश्याम से बोला गया तो उसने कहा, “मैंने भगवान से प्रार्थना की है, चावल साफ़ हो गए होंगे।""
मेहनत का फल

"मेंढक और कछुए, मछली के परिवार को बड़ी इज्ज़त देते थे।"
मछली ने समाचार सुने

"इसीलिए बड़ी मछली रेडियो पर समाचार सुनने को तरसती रह जाती।"
मछली ने समाचार सुने

"फ़िल्मी गीत सुनना सभी को बहुत पसंद था। छोटी-छोटी मछलियाँ, मेंढक और कछुए हमेशा रेडियो से चिपके रहते।"
मछली ने समाचार सुने

"कई तरह से बच्चों को पटा कर, मिन्नतें कर, जब वह बच्चों से रेडियो लेती तब तक समाचार खतम ही हो जाते थे। “अब समाचार समाप्त हुए,” बस कभी कभार यही सुनने को मिलता।"
मछली ने समाचार सुने

"उस दिन भी यही सिलसिला चल रहा था। पर वह समाचार का आखिरी हिस्सा सुन पाई। उसे बहुत खुशी हुई कि कम से कम इतना तो सुनने को मिला।"
मछली ने समाचार सुने

"लेकिन वह समाचार तो खुश करने वाला नहीं था, "नदी में दवाई छिड़क कर मछलियों को पकड़ने वाले आ रहे हैं। अनेकों नदियों से ऐसे ही वे लोग मछलियाँ पकड़ कर ले गये हैं।" यह सुनकर उसे गहरा धक्का लगा। बाकी मछलियों को भी यह समाचार पता चला।"
मछली ने समाचार सुने

"मेंढक और कछुए भी बहुत डर गए। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सब निराश होकर बैठ गये। रोज़ की तरह दादा से रेडियो छीनने कोई नहीं आया। आगे की चिन्ता सभी को सता रही थी।"
मछली ने समाचार सुने

"मुखिया और दादा मछली अच्छे दोस्त थे। दादा ने उस लड़की से मुखिया को वहाँ आने का सन्देश भिजवाया।"
मछली ने समाचार सुने

"सभी को लगा कि दादा मछली ने अगर उस दिन वह समाचार न सुना होता तो यह दुर्घटना घट ही जाती।"
मछली ने समाचार सुने

"तोहफ़ों से लदीं, मेहरुनिस्सा और कमरुनिस्सा अपने भाई अज़हर मियाँ के साथ हाथों में मीठी-निमकी की पत्तलें लिए चली जा रही थीं। ईद के मौके पर तीनों को बहुत उम्दा चिकनकारी किए नए कपड़े मिले थे जिन्हें पहन कर उनका मन बल्लियों उछल रहा था। मेहरु के कुरते पर गहरे गुलाबी रंग के फूल कढ़े थे और कमरु भी फूल-पत्तीदार कढ़ाई वाला कुरता पहने थी। अज़हर मियाँ भी अपनी बारीक कढ़ी नई टोपी पहने काफ़ी खुश दिखाई देते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"उनके अब्बू ठेकेदारी करते थे। चौक के थोक का सामान रखने वाले दुकानदार उन्हें कपड़ा देते थे और अब्बू घर पर ही कढ़ाई का काम करने वाली औरतों से उस कपड़े पर चिकनकारी करवाते थे। दुकानदार हर औरत को कढ़ाई के हर कपड़े का पैसा देता था। अब्बू भी कपड़े के हिसाब से आढ़त पाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के अब्बू के गुज़र जाने के बाद घर में पैसे की किल्लत रहने लगी थी। एक दिन आबिदा ख़ाला उसकी अम्मी से कहने लगीं कि मुहल्ले की औरतों को इकट्ठा करके कढ़ाई का काम शुरू करें।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"चाय के दौर चलते तो साथ ही चटपटी इधर-उधर की खूब गपशप भी होती लेकिन काम बराबर चलता रहता। शाम होती तो सब औरतें अपना काम समेटतीं और घर को रवाना होतीं। उन्हें अपने-अपने परिवार का खाना भी तो तैयार करना होता था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कढ़े हुए कपड़े आबिदा ख़ाला कमरु और मेहरु के अब्बू को भेज देतीं और वे मेहनताने के साथ-साथ और कपड़ा भेजते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ ही रोज़ पहले मुमताज़ आबिदा ख़ाला के साथ लखनऊ आई थी जिससे कशीदाकारी के कुछ नए टाँके सीख सके और घर लौट कर बाकी औरतों को सिखा"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तीनों पंछी बहुत ही प्रतिभाशाली थे। लक्का कितनी ऊँची उड़ान भर लेता था। और लोटन मियाँ डाल-डाल, पात-पात, कभी कलैया तो कभी कलाबाज़ी, और कभी तो नाचने लग जाते! मुनिया भी कम निराली नहीं थी। किसी भी इंसान की बोली बोलना उसके बाएँ पंख का खेल था। मुमताज़ हमेशा मुनिया से उसकी नक्ल उतारने को कहती रहती। जब"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"लखनऊ आकर मुमताज़ को एक और दोस्त मिला-पड़ोस के सब्ज़ी वाले का आठ साल का बेटा, मुन्नु! मुन्नु हर रोज़ अपने पिता के साथ सब्ज़ी-भाजी लिए जगह-जगह फेरी लगाता और अपने ख़ास अंदाज़ में गुहार लगाता, “सब्ज़ी ले लो...ओ...ओ।” हाल ही में उसकी दोस्ती मुमताज़ के साथ हुई थी। हर रोज़ मुमताज़ अपना नाश्ता उसके साथ बाँटती और खाते-खाते दोनों बच्चे लक्का और लोटन के खेल देखा करते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"ईद के दिन भी दोनों दोस्त अपने पंछियों की उछल-कूद देख रहे थे। मुन्नु को लगा मुमताज़ आज बहुत उदास है, इतनी उदास कि कहीं वह रो ही न दे। “क्या बात है, आपा, आज इतनी गुमसुम क्यों हो? क्या हरदोई की याद आ रही है? क्या वहाँ तुम्हारे और भी पालतू पंछी हैं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते आ रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी आता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की आँखों में अजीब-सी चमक आ गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“नहीं, जाती थीं लेकिन कभी-कभी, सब्ज़ी-भाजी लेने या रिश्ते वालों के यहाँ। रेहाना और सलमा भी घर से बहुत कम ही निकलती हैं, और जब जाती हैं तो हमेशा सिर पर ओढ़नी लेकर। मेरी अम्मी बुरका पहनती हैं। मेरी बहनें तो कभी भी पढ़ने नहीं गईं लेकिन मैं आठवीं जमात तक पढ़ी हूँ। उसके बाद फिर मैं भी घर पर रह कर अम्मी और अपनी बहनों से कशीदाकारी सीखती रही हूँ,” मुमताज़ ने अपनी कहानी मुन्नु को सुनाई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“अच्छा आपा, रात में सपने देखती हो?” मुन्नु ने अपने दोस्त को बहलाने के लिए एकदम बात बदली।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“ऐसा है तो जल्दी से जाओ और अपनी नानी की चादर ले आओ, मैं तुम्हें एक खेल दिखाता हूँ,” मुन्नु रुआब से बोला। उसने मुमताज़ को चाँद पाशा के बारे में बताया। चाँद पाशा एक बीमार, बूढ़ा जादूगर था जिससे मुन्नु की मुलाकात अपने पिता के साथ फेरी लगाते हुई थी। उसने मुन्नु को एक बहुत ही मज़ेदार जादू सिखाया था। मुन्नु चाहता था कि मुमताज़ वह जादू देखकर अपना दुःख भूल जाए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"वे सब किसी दूर, अनजाने शहर में पहुँच गए थे। वहाँ पहाड़ नीले थे, और नीले-नीले आसमान में तरह-तरह के रंगों वाले पंछी उड़ रहे थे। नीचे वादी में फलों से लदे पेड़ और फूलों से महकते बग़ीचे थे। लोटन और लक्का मुमताज़ को लेकर एक फ़िरोज़ी रंग के तालाब के किनारे उतरे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"उनमें सबसे बुज़ुर्ग कशीदाकार, खुरशीद ने मुमताज़ को सलाम कहा और पूछा कि वह कहाँ से आई है। “जी, मैं लखनऊ से हूँ,” मुमताज़ ने भी बड़े मियाँ को सलाम किया, “मैं चिकनकार हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"खुरशीद ने मुमताज़ को वह दुशाला दिखाया जो वे काढ़ रहे थे, “देखो बेटी, मैंने कश्मीर के पंछी और फूल अपने शॉल में उतार लिए हैं। यह है गुलिस्तान, फूलों से भरा बग़ीचा और ये रहीं बुलबुल। यह जो देख रही हो, इसे हम चश्म-ए-बुलबुल कहते हैं यानि बुलबुल की आँख। जिस तरह बुलबुल अपने चारों ओर देख सकती है, वैसे ही यह टाँका हर तरफ़ से एक जैसा दिखाई देता है!” कह कर खुरशीद ने मुमताज़ को वह टाँका काढ़ना सिखाया।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ देर बाद खुरशीद ने मुमताज़ को कहवा-कश्मीरी चाय और ताज़े सिके गर्मागर्म नान पेश किए। उसने बताया कि कई साल पहले कश्मीर के कशीदाकारों ने लखनऊ के नवाब के यहाँ जाकर वहाँ के चिकनकारों के साथ काम किया था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुछ देर बाद लोटन और लक्का ज़मीन पर लौटे। मुमताज़ अपने नए दोस्तों को अलविदा कह कर लखनऊ की तरफ़ उड़ने लगी और चुटकी बजाते ही उसने देखा कि वह आबिदा ख़ाला के घर पर थी। वहाँ मुन्नु वैसे ही बैठा था जहाँ वह उसे छोड़ आई थी। मुमताज़ ने उसे अपनी कश्मीर-यात्रा के बारे में बताना शुरू ही किया था कि मुन्नु अपने पिता की आवाज़ सुनकर घर भागा।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कुरते को देखकर मुहल्ले की सब औरतें दंग रह गईं। कितनी उम्दा कढ़ाई, कितना सजीव चित्रण!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"लेकिन मेहरु और कमरु को अपनी बहन का काम देखकर खुशी कम, जलन ज़्यादा हुई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दोनों बहनों ने एक तरकीब सोच ली। एक शाम जब मुमताज़ लक्का-लोटन के लिए दाने का इंतज़ाम करने निकली तो मेहरु ने काम करने के लिए मुमताज़ को दिया गया सारा रंगीन कपड़ा और धागे कहीं छिपा दिए। सिर्फ़ सफ़ेद कपड़ा ही बचा रहा, “तो अब देखते हैं,” मेहरु उँगलियाँ नचाती बोली, “हमारी प्यारी बहन की तारीफ़ कौन करता है!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"और फिर मुमताज़ ने अपनी नानी को देखा! एक चौड़ी सड़क के किनारे नीम के पेड़ तले बैठी थीं! मुमताज़ खुशी के मारे चिल्लाई और “नानी, नानी” करती उनके गले से लग गई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"नानी ने मुमताज़ के माथे को बड़े प्यार से चूमा और बोली, “क्यों मेरी बच्ची, तू इतनी उदास क्यों है? तुझे शायद पता नहीं कि असली चिकनकारी रंगीन कपड़े पर तो होती ही नहीं। उसे तो सदियों से सफ़ेद मलमल पर ही काढ़ते थे क्योंकि यह कुरते आदमी ही पहना करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"कमरु और मेहरु ने तय किया कि वे मुमताज़ के लिए छपाई भी नहीं कराएँगी। लेकिन मुमताज़ भी अब ऐसी छोटी-मोटी रुकावटों से घबराने वाली कहाँ थी। सपनों ने उसकी कल्पना को पंख दे दिए थे और उसे कढ़ाई के नमूनों की कोई कमी नहीं थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर एक रोज़ ख़बर आई कि मुमताज़ की कढ़ी हुई उस सफ़ेद चादर को ईनाम मिला है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"शहर से मुमताज़ को न्यौता आया कि वह वहाँ आकर अपना ईनाम ले।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"ईनाम के जलसे में कमरु और मेहरु ने देखा कि सब मुमताज़ को कितनी इज़्जत दे रहे थे। कुछ-एक ने तो उन्हें भी ऐसी हुनर वाली लड़की की बहनें होने की बधाई दी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ कुछ पल तो ख़ामोश रही। फिर उसने अपना जादू अपनी बहनों को बताने का फ़ैसला कर लिया। मुस्करा कर, वह कमरु से बोली, “चलो, तुम भी मेरी नानी की चादर का एक कोना पकड़ो और ख़ूब ध्यान लगा कर सोचो।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दस्तकार हाट समिति भारतीय शिल्पकारों की एक विशाल संस्था है जो कि इस देश की पारंपरिक दस्तकारी से जुड़े लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कार्यरत है। चार कहानियों की इस शृंखला को चित्रित करने के लिए प्रांतीय कला और शिल्प के नमूनों का इस्तेमाल किया गया है जिससे भारत की भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक संवेदनाओं को साझा किया जा सके। हम युनेस्को, नई दिल्ली, के आभारी हैं जिनके योगदान से यह कार्य पूरा हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"बड़ी मूँछों वाले पहरेदार ने भँवें सिकोड़ीं,”क्या बादशाह को मालूम है कि तुम आने वाले हो?“"
रज़ा और बादशाह

"”यहीं ठहरो। मैं शाही खिदमतगार को बुलाता हूँ,“पहरेदार ने अन्दर का रुख किया।"
रज़ा और बादशाह

"पहरेदार एक और आदमी को लेकर आया जिसे देखकर रहमत ने झुक कर सलाम किया, “गर्मी के कपड़े लाया हूँ, धनी जी।”"
रज़ा और बादशाह

"बादशाह के कमरे के दरवाज़े पर इन्तज़ार करते हुए रज़ा ने धनी सिंह को ध्यान से देखा। दर्ज़ी का बेटा होने के नाते सबसे पहले कपड़ों पर नज़र टिकी। लाल और स़फेद, फूलदार सूती अंगरखा और स़फेद चूड़ीदार। धनी सिंह की नागरा की जूतियों की नोक अन्दर की तरफ़ उमेठी हुई थी। उनकी कमर पर कपड़े की पट्टी बँधी हुई थी जिसे पटका कहा जाता है। पर रज़ा को सबसे ज़्यादा पसन्द उनकी चटख़ लाल रंग की पगड़ी आई, जिस पर स़फेद और पीले चौरस और बुंदकियों का नमूना था।"
रज़ा और बादशाह

"”शुक्रिया! मैं राजपूत हूँ और इस नमूने को मेरे देश में बाँधनी कहते हैं।“"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने अकबर को एक स़फेद अंगरखा पहनने में मदद करी। धनी सिंह एक बड़ा-सा आईना ले आये और राजा के सामने लेकर खड़े हो गये।"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा और उसके अब्बा ने, एक के बाद एक कई पटके बाँध कर दिखाये-हरा और पीला, नारंगी और जामनी, पर अकबर को कोई भी न सुहाया।"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने देखा कि अब्बा के माथे पर परेशानी झलक रही थी। हाय, अगर बादशाह सलामत को पटके पसन्द नहीं आये तो क्या वे सारे कपड़े लौटा देंगे, मुझे फ़ौरन कुछ करना होगा, उसने सोचा।"
रज़ा और बादशाह

"”हूँ...“अकबर ने धनी सिंह के मूछों वाले चेहरे को घूर कर देखा और कहा,”ठीक है, देखते हैं।“"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने लपक कर धनी सिंह की पगड़ी थामी। उसके लपेटे सीधे करके अकबर की कमर पर बाँध दी। जब तक अकबर आड़े-टेढ़े होकर अपने आप को आईने में निहार रहे थे,"
रज़ा और बादशाह

"”धनी, रहमत को अंगरखों और पटकों की कीमत अदा कर दो। हमें सारे चाहियें।“"
रज़ा और बादशाह

"”हुज़ूर,“रज़ा सँभल कर बोला,”धनी जी को पगड़ी की ज़रूरत पड़ेगी। हमने उनकी वाली तो ले ली है।“"
रज़ा और बादशाह

"इतिहास के कुछ रोचक तथ्य 1. रज़ा, बादशाह अकबर के शासनकाल में अब से 400 साल पहले रहता था। अकबर मुग़ल राजवंश का सबसे महान राजा था। वह एक प्रसिद्ध योद्धा भी था। उसे नये नमूनों के कपड़े पहनने का बहुत शौक़ था। वह पतंगबाज़ी और आम खाने का भी शौकीन था। 2. बाबर, मुग़ल राजवंश का संस्थापक, काबुल का राजा था। उसने 1526 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया। अकबर, बाबर का पोता था। वह भी एक बड़ा कामयाब सेनापति था और अपने 49 साल के शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं हारा।"
रज़ा और बादशाह

"माँ कहती है कि लोगों को घूरना अच्छी बात नहीं है। लेकिन मैं तो देखता हूँ कि सभी तुम्हें घूरते हैं। वे मुझे भी घूरते हैं क्योंकि मुझे तुम्हारे साथ रहना होता है, तुम्हारा ध्यान रखने के लिए। तुम हमारे स्कूल में क्यों आइं? तुमने अपनी पढ़ाई उसी स्कूल में जारी क्यों नहीं रखी जहाँ तुम पहले पढ़ती थीं?"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"जानने को बेचैन, मैं"
थोड़ी सी मदद

"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
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"पिछली बार, हमारे स्कूल में तुम्हारे आने से पहले, हमें एक बाघ के बच्चे की फ़िल्म दिखाई गयी थी जो जँगल में भटक गया था। हम भी उसे लेकर चिंता में पड़ गए थे क्योंकि वह एक सच्ची कहानी थी। बाद में वह बाघ का बच्चा किसी को मिल जाता है और वह उसे उसके परिवार से मिला देता है। जानती हो ऐसी सच्ची कहानियों को डॉक्यूमेंट्री कहा जाता है। बाघ के बच्चे बड़े प्यारे होते हैं, हैं न?"
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"मुझे लगता है कि मुझे यह बात पहले ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी- जब भी वार्षिकोत्सव आने वाला होता है, प्रिंसिपल साहब कुछ सनक से जाते हैं। वे तुम पर चिल्ला सकते हैं - वे किसी को भी फटकार सकते हैं। अगर ऐसा हो, तो बुरा न मानना। मेरी माँ कहती है कि वे बहुत ज़्यादा तनाव में आ जाते हैं, क्योंकि वार्षिकोत्सव कैसा रहा इससे पता चलता है कि उन्होंने काम कैसा किया है।"
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"ओह! मुझे अभी अहसास हुआ है कि मैंने तुम्हें जो दो आखीरी पत्र लिखे हैं, उनमें मैंने तुम्हारे प्रॉस्थेटिक हाथ के बारे में बात ही नहीं की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैं इसके बारे में बिल्कुल ही भूल गया था और मेरे पास तुम्हें बताने के लिए और भी बातें थीं। मज़ेदार बात यह है कि तुम्हारे हाथ को लेकर अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं उठते। न जाने क्यों!"
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"1. आपकी अध्यापिका ने कक्षा में नए आए साथी को पूरा स्कूल दिखाने को कहा है। आप क्या सोचेंगे?"
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"3. आपके नए सहपाठी को पहले पढ़ाए गये पाठ समझने में दिक्कत हो रही है। आप क्या करेंगे?"
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"अ. कक्षा की सबसे होशियार छात्रा से कहेंगे कि वह अपने नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे दे। ब. अध्यापिका से कहेंगे कि उसकी मदद करना उनका काम है। स. उससे पूछेंगे कि क्या उसे आपकी मदद चाहिए। 4. आपकी कक्षा की नई छात्रा जरा शर्मीली है। वह किसी के साथ नहीं खेलती। आप क्या करेंगे? अ. उससे कुछ नहीं कहेंगे। जब उसकी झिझक मिट जाएगी तब खेलने लगेगी। ब. उसे बुला कर खेल में शामिल होने को कहेंगे। स. उस के पास जा बैठेंगे। शायद वह बातें करने लगे।"
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"आप दोस्ती करने के लिए ही बने हैं। सदा दूसरों की मदद को तैयार! आप इस बात का इन्तज़ार नहीं करते कि लोग मदद माँगें। लोगों के मदद माँगने से पहले ही आप मदद देने के लिए हाज़िर रहते हैं।"
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"आप स्वतन्त्र किस्म के व्यक्ति हैं और मानते हैं कि सभी को ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप को किसी की चिन्ता नहीं होती। बस आप दूसरों पर दबाव नहीं बनाना चाहते।"
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