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Storybook paragraphs containing word (50)
"एक पेड़ से दो चमकती"
सो जाओ टिंकु!
"“हम सबको और क्या चाहिए? थोड़ा-सा ज़ादू,” उस औरत ने कहा। बच्चे को कुछ रुपये देकर उसने दो बोतलें खरीद लीं। उसने एक बोतल शिरीष जी को दे दी।"
उड़ने वाला ऑटो
"आगे बढ़ते ही अर्जुन को अचानक महसूस हुआ कि उसके पहिये पर दबाव कम होने लगा है, उसके सामने की भीड़ छँटने लगी है और वह बहुत आराम से आगे बढ़ गया है, “जाने दो अर्जुन भाई,” उसके चाचा ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो
"आटे में दो तरह के प्रोटीन होते हैं - ग्लाइडीन और ग्लोटेनिन। इन दोनों प्रोटीन के अणुओं को बहुत प्यास लगती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"1. मधुमक्खी बहुत मेहनती होती है – सर्दी के मौसम में यह नो महीने तक ज़िंदा रह सकती है और गर्मियों में सिर्फ दो महीने तक! लगातार काम करने से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"संख्या दो आमने सामने लिख कर,"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"बांग्ला भाषा में संख्या दो ২ द्वितीय"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं
"“अरे तुमने एक पैर तोड़ लिया? अगर मेरे पास इतने पैर होते तो मैं भी एक तोड़ लेती! देखो! देखो मुझे!! मेरे दो पैर हैं। एक दूसरे के साथ चलते है। कोई परेशानी नहीं! आसान!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"वीना और विनय ने रंग के दो डिब्बे उठाए और हो गए काम के लिए तैयार।"
नन्हे मददगार
"“ओहो! तुमने तो फाटक को दो रंगों में रंग डाला!” पुताई वाला भैया भन्नाया। “चलो अब इसे ऐसे ही रहने देते हैं!” माँ ने कहा।"
नन्हे मददगार
" गप्पू ने दो छिलके फेंक दिये।"
पहलवान जी और केला
"हमारे साथ दो बड़े और दो छोटे थैले हैं।"
चाचा की शादी
"हर सुबह, जैसे ही उसके पापा दाढ़ी बनाना शुरू करते हैं, अनु भी उनके पास आकर बैठ जाती है। बड़े ध्यान से उन्हें दाढ़ी बनाते हुए देखती है। उसके पापा अपनी दो उँगलियों में एक छुटकू-सी कैंची पकड़े, कच-कच-कच... अपनी मूँछों को तराशने में जुट जाते हैं।
और अनु है कि कहती जाती है, “थोड़ा बाएँ... अब थोड़ा-सा दाएँ... पापा नहीं ना! आप अपनी मूँछों को और छोटा मत कीजिए!
आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे कट्टी हो जाऊँगी!”"
पापा की मूँछें
"एक घंटा बीता।
दो घंटे बीते।"
चलो किताबें खरीदने
"उसकी दो आँखें, चार पाँव और एक लम्बी पूँछ थी।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर
"उसे दो ख़तरनाक से कुत्ते दिखे। काका फ़ौरन उनके पास जा पहुँचा और उनकी खुशामद करने लगा,"
काका और मुन्नी
"मुझको दे दो थोड़ा दूध"
काका और मुन्नी
"एक हँसिया दे दो मुझे"
काका और मुन्नी
"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल
"कढ़ाई कर रहे थे लेकिन उसका मन दूर अपने घर हरदोई में था जहाँ उसकी अम्मी और दो बहनें रहती थीं। क्या उनको भी उसकी उतनी ही याद आती थी जितनी उनकी उसे?"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ अपने घर से दूर तो थी लेकिन परिवार का एक प्यारा-सा हिस्सा उसके पास भी तो था! उसकी प्यारी तोती मुनिया और दो कबूतर-लक्का और लोटन! ये तीनों उसका दिल बहलाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कबूतरों की गुटरगूँ सुनते हुए, दोनों फ़तेहपुर सीकरी के महल पर पहुँचे। भाले लिये दो पहरेदार, फाटक पर तैनात थे।"
रज़ा और बादशाह
"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह
"3. दो मुग़ल बादशाहों ने नये शहर बनवाये। अकबर ने आगरा के पास, फ़तेहपुर सीकरी बनवाया और शाहजहाँ ने दिल्ली में, शाहजहाँनाबाद। फ़तेहपुर सीकरी, आज वीरान पड़ा है पर शाहजहाँनाबाद (आज पुरानी दिल्ली कहलाता है) में आज भी लोग रहते हैं और वहाँ ज़िन्दगी की चहल-पहल बरक़रार है।"
रज़ा और बादशाह
"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद
"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद
"ओह! मुझे अभी अहसास हुआ है कि मैंने तुम्हें जो दो आखीरी पत्र लिखे हैं, उनमें मैंने तुम्हारे प्रॉस्थेटिक हाथ के बारे में बात ही नहीं की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैं इसके बारे में बिल्कुल ही भूल गया था और मेरे पास तुम्हें बताने के लिए और भी बातें थीं। मज़ेदार बात यह है कि तुम्हारे हाथ को लेकर अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं उठते। न जाने क्यों!"
थोड़ी सी मदद
"“नहीं मास्टर जी,” कल्लू की आँखों में आँसू छलक आये और ये सचमुच के आँसू थे। जब चाहो निकाल दो वाले मगरमच्छी आँसू नहीं। वह सच में शो में भाग लेना चाहता था। “मास्टर जी!” उसकी आवाज़ में घबराहट और बेचारगी दोनों थी
“मैं वादा करता हूँ मैं फिर कभी देर नहीं करुँगा। एक मौका...”"
कल्लू कहानीबाज़
"कल्लू भागता रहा। मन ही मन उसने सोचा, पूरा गाँव मेरे खिलाफ़ है, दिमाग का पेंच ढीला बदरी भी। मुझ गरीब का मज़ाक बनाने में उन्हें मज़ा आता है। फिर उसे झटके से याद आया कहानी-बहाने की समस्या तो अभी वैसी ही बनी हुई थी। विकराल और हल-विहीन। अम्मी बीमार थी और उसे नाश्ता बनाना था। नहीं। दो बार इस्तेमाल कर चुका था। इस बार नहीं चलेगा।"
कल्लू कहानीबाज़
"तब हमने एक तरकीब अपनाई। हम दो दिन यहीं रुक कर लोगों से इसी बात पर चर्चा करने का सोच ही रहे थे कि तभी एक औरत पॉलिथीन में सब्ज़ी और फल के छिलके फेंकते हुए दिखी। हमने अपनी माँ से कहा कि वह उस औरत से बात करें जिस पर हमारी माँ ने सहमति दिखाते हुए कहा कि हम सब लोगों से बात करेंगे।"
पॉलिथीन बंद करो
"बहुत कम लोगों को यह पता है कि वे सेना में भर्ती होने के पहले से ही सेना के लिए हॉकी खेलने लग गए थे। १४ साल की उम्र में वे अपने पिताजी के साथ सेना की दो टीमों के बीच मैच देखने गए थे। जब एक टीम हारने लगी जो ध्यान चंद ने अपने पिताजी से कहा कि अगर उनके पास हॉकी स्टिक होती तो वे उस टीम को जिता देते।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"टीम यूरोप रवाना होने से पहले अपने अभ्यास मैच में हार गर्इ - ध्यान ने टीम की ओर से दो गोल किये, लेकिन उनकी विरोधी बॉम्बे टीम ने तीन गोल कर दिये। इस हार ने टीम को जोश दिला दिया। उन्होंने इंग्लैंड व यूरोप में अभ्यास मैचों को इतने बड़े अंतर से जीता कि, मर्इ के महिने में जब टूर्नामेंट शुरु हुआ, बाकी टीमों के मन में ज़रूर भारत की इस तूफ़ानी टीम का डर बैठ गया होगा।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"“क्या तुम इन्हें बाहर निकालने में मेरी मदद करोगे?” शिक्षक ने पूछा। मोरू ने किताबें बाहर निकालना शुरू किया। कुछ कहानियों की किताबें थीं जिनके आवरण पर तस्वीरें बनी थीं। कुछ में बड़े अक्षर थे। कुछ में इतने शब्द थे कि मालूम होता था उन्हें पन्नों में दबा के बैठाया गया हो। मोरू रोमांचित हो उठा। उसने दो साल से किसी किताब को हाथ नहीं लगाया था।"
मोरू एक पहेली
"फिर आई अंकों वाली किताबें। मोरू की आँखें और उंगलियों की तेज़ी कुछ ढीली पड़ी। मोटे अंक पतले अंकों के साथ नाच रहे थे। दो अंक एक के ऊपर एक ऐसे बैठ गये जैसे कोई ढुलमुल इमारत हो जो अपनी नींव भरने का इन्तज़ार कर रही हो। गुणा के सवालों में जैसे संख्या बढ़ती जाती थी, वो कुछ नाटे और नीचे की तरफ़ चौड़ाते लग रहे थे। भाग इसका ठीक उलटा था। शुरूआत में बड़ी संख्या और अगर ध्यान से करते जाओ तो अन्त में लम्बी पतली आकर्षक पूँछ बन जाती थी। अगर भाग्यशाली हो तो अन्त में कुछ नहीं बचेगा। एक-एक कर के सारे अंक और उनके करतब मोरू के पास लौट आये।"
मोरू एक पहेली
"दीदी, बता दो क्या कहती हैं"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?
"प्रकृति में हर वस्तु छोटे-छोटे परमाणुओं से बनी है। हर एक परमाणु के बीच में एक नाभिक होता है, जिसमें दो प्रकार के कण होते हैं-प्रोटोन एवम् न्यूट्रॉन। नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन घूमते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हमारी धरती सूर्य के चक्कर काटती है।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?
"परन्तु जब दो परमाणु आपस में टकराते हैं तो कभी-कभी इलेक्ट्रॉनों का आदान-प्रदान हो जाता है। अब जिस परमाणु से इलेक्ट्रॉन निकल गए उसमें प्रोटोनों की मात्रा इलेक्ट्रॉनों से अधिक हो जाती है। अतः उस परमाणु में धन आवेश हो जाता है। इसी तरह, जिस परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटोनों से अधिक हो जाती है, उसमें ॠण आवेश हो जाता है। इन आवेश वाले परमाणुओं को आयन कहते हैं।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?
"“मेरी माँ कहा करती थीं देवी भरे पेट को इंकार नहीं कर सकती। सो मैं अपने रसोइए से कहता हूँ कि मुझे शानदार भोजन बनाकर दे, गरम, मीठे पकवानों से भरा। बस, खाने के दो मिनट के अंदर, मैं पूरी नींद में होता हूँ।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"घी के साथ गरम चावल, गरमा गरम साम्बर, तले हुए आलू, जिमीकंद और खसखस की खीर। और इस सब को ढंग से पचाने के लिए, ठंडी छाछ। इस आशा में कि वो रात को अच्छी नींद सो पाएंगे, राजा ने हर चीज़ को दो - दो बार खाया।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"हर दिन इसी तरह कार्यक्रम चलता रहा। वक़्त के साथ, कोट्टवी राजा थोड़़ा और जल्दी सोने लगे। दो हफ्ते में, उन्होंने देखा कि दूसरे गिलास दूध के साथ ही उन्हें नींद आ जाती थी। उसके कुछ हफ्ते बाद, सैर के तुरंत बाद सोने लगे वो। एक महीने बाद, विदूषक की कहानी ने सुला दिया राजा को।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"इस खेल में ऑक्टोपस की जीत हुई। आठ पैरों वाले ये जीव जन्मजात बहरूपिये होते हैं। यूं पाइपफ़िश भी छुपने के लिए रूप बदलने में किसी से कम नहीं!क्या इस तस्वीर में दो घोस्ट पाइपफ़िश नज़र आ रही हैं?"
गहरे सागर के अंदर!
"जब हम अपनी 'बोट’ पर लौटने के लिए ऊपर जाने लगे, तब उड़ान भरने के अंदाज़ में तैरती मैंटा रे ने दर्शन देकर हमें रोमांचित कर दिया। दो रिमोरा मछलियां इसके दोनों ओर साथ - साथ तैर रही थीं।"
गहरे सागर के अंदर!
"फिर दो जग पानी डाल कर सींचें। आपको कई हफ़्ते तक मिट्टी सूखने पर सिंचाई करनी पड़ेगी, और इंतज़ार करना पड़ेगा तब कहीं गुठली में से पौधा निकलेगा! पौधे को बड़ा होने में बहुत समय लगता है। इसलिए फिक्र न करें, और जल्दबाज़ी तो बिलकुल भी नहीं!"
जादव का जँगल
"पड़ोसी राज्य पहुँचने का रास्ता बहुत कठिन था। काँटों और पत्थरों से भरा था। बीच में दो नदियाँ भी पड़ती थीं। चाहे कछुआ हो या खरगोश रास्ता आसानी से तय होने वाला नहीं था। और एक ही दिन में तो वह रास्ता तय करना असंभव ही था।"
कछुआ और खरगोश
""लेकिन सब कहते हैं कि मैं बिल्कुल इम्मा के जैसी दिखती हूं। देखो, यहां तक कि हमारी ठुड्डी में गड्ढे भी एक जैसे हैं जिससे हमारी ठुड्डी दो हिस्सों में बंटी हुई सी नज़र आती है।""
कहाँ गये गालों के गड्ढे?
""हां। सभी ऐसे जीव जो दो जीवों की संतान होते है, उनमें माता और पिता दोनों की विशेषताएं होती हैं," अप्पा ने समझाया।"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?
"गड्ढाः ठुड्डी के बीच का दबा हिस्सा जिससे ठुड्डी या ठोड़ी दो हिस्सों में बंटी हुई लगती है"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?
"क्या उसके बाल सीधे होंगे या घुंघराले? और उसकी नाक गोल-मटोल होगी या फिर तिकोनी? एक पैर, दो पैर या और भी ज़्यादा पैर? पूँछ कुत्ते की या फिर खूंखार शेर जैसी?"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?