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Storybook paragraphs containing word (65)

"शिरीष जी खुश होकर मुस्कराने लगे। मुस्कराते ही पान से रंगे उनके दाँत दिखने लगे। उन्होंने जल्दी से पानी पिया, फिर भीड़ छटने लगी। “लो जादू तो अभी हो गया,” शिरीष जी ने मज़ाक में कहा।"
उड़ने वाला ऑटो

"खुली साफ़ सड़क को देख कर शिरीष जी हैरान रह गए। शीशे में देखते हुए पीछे बैठी औरत से उन्होंने कहा, “हाँ बहन जी, बिलकुल जादू!”"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो

"“क्या फ़ायदा इसका?,” वह सोचने लगे। जीवन में ऐसा कुछ बहुत पहले कभी उन्होंने चाहा था। लेकिन अब वह जान गए थे कि जो सच है वह सच ही रहेगा। शिरीष जी को अब अपना ही चेहरा चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो

"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"एक बड़े से बर्तन में अम्मा ने थोड़ा-सा आटा लिया। उन्होंने उसमें थोड़ा-सा तेल और नमक डाला और फिर थोड़ा-सा पानी मिलाया।"
पूरी क्यों फूलती है?

"बाबा अब पूरी को पलट देते हैं ताकि वह दूसरी तरफ़ से भी सुनहरी हो जाये। उन्होंने कढ़ाई से पूरी निकाल ली है और उसे एक बर्तन में रख दिया है।"
पूरी क्यों फूलती है?

""रुको," मुत्तज्जी बोलीं, "जरा कुछ और याद करने दो। ओह! जब मैं तुम्हारे बराबर की, यानि 9 या 10 साल की थी, तब मेरे काका बम्बई से हमसे मिलने आए थे और उन्होंने हमें ऐसी साफ़ रेलगाड़ी के बारे में बताया था जिसमें सफ़र करने से कपड़े गंदे नहीं होते थे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""हाँ, के आर एस।" मुत्तज्जी ने बड़े प्यार से अज्जी को देखा और कहा, "तुम्हारी अज्जी मेरी पाँचवी संतान थी, सबसे छोटी, लेकिन सबसे ज़्यादा समझदार। तुम जानते हो बच्चों, मेरे बच्चे ख़ास समय के अंतर पर हुए। हर दूसरे मानसून के बाद एक, और जिस दिन तुम्हारी अज्जी को पैदा होना था, उस दिन तुम्हारे मुत्तज्जा का कहीं अता-पता ही नहीं था। बाद मेँ उन्होंने बताया कि वो उस दिन ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी का भाषण सुनने चले गए थे। और उस दिन उन्हें ऐसा जोश आ गया था कि वह सारे दिन बस "भारत छोड़ो” के नारे लगाते रहे। बुद्धू कहीं के... नन्हीं सी बच्ची को दिन भर परेशान करते रहे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""जरूरी तो नहीं," पुट्टा ने कहा, "क्योंकि मुत्तज्जी ने यह तो नहीं कहा कि उनका पहला बच्चा, उनकी शादी के 2 साल बाद पैदा हुआ था। उन्होंने तो बस यह कहा कि जिस साल उनकी शादी हुई उसी साल मैसूर में एक बांध बनाया गया था।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"अज्जा ने सिर हिला कर कहा, "हाँ, क्योंकि तब स्टीम इंजन होते थे जो कोयले से चलते थे, बिजली से नहीं।" उन्होंने कहा, "उसकी चिमनी से कोयले की काली राख निकल कर हर चीज़ पर चिपक जाती थी। बड़ी गंदगी हो जाती थी!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"”हाँ, यह नाइंसाफ़ी है। यही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिये उन्होंने निश्‍चय किया है कि वे दाँडी चल कर जायेंगे और समुद्र के पानी से नमक बनायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"अन्त में, गाँधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने धनी को पुकारा, ”यहाँ आओ, बेटा!“ धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।"
स्वतंत्रता की ओर

"3. इस यात्रा में गाँधी जी के साथ 78 स्वेच्छा कर्मियों (वालंटियरों) ने भाग लिया। उन्होंने 385 किलोमीटर की दूरी तय की।"
स्वतंत्रता की ओर

"हाँ, बिलकुल सही! उन्होंने ढक्कन को पेंच से कसा और ट्यूब के दूसरे हिस्से को पूरी तरह खुला छोड़ा। ट्यूब के बड़े पिछले हिस्से को भरना सचमुच आसान था! ख़ासकर जब तुम्हारे पास पेस्ट के साथ पंप के लिए कुछ हो, जैसे कि पिचकारी। इसके बाद यही करना बाकी रहा कि ट्यूब के उस खुले सिरे को कसकर बंद किया जाए ताकि पेस्ट बाहर न निकले।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"माँ हमें पीने को गर्म दूध देती हैं। कल उन्होंने मसालेदार मुरमुरे बनाए थे। और माँ ने कहा है कि कल वे पूड़ियाँ बनाने वाली हैं!"
गरजे बादल नाचे मोर

"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने आप खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब

""क्या तुम्हारा नाम घूम-घूम है?" उन्होंने धीरे से पूछा।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"आख़िरकार काम खत्म हुआ। उन्होंने ज़मीन पर गिरे रंग को पोंछा। उन्होंने दीवार पर गिरे रंग को पोंछा।"
नन्हे मददगार

"अम्मा बोली,"वह बहुत देर तक तुम्हारी मौसी से बात भी करती रही थीं। उन्होंने उस स्वेटर को भी पूरा किया, जो वह राजू के लिए बुन रही थीं। फिर वह टहलने निकल गई थीं।"अब मुझे खोज के लिए कई सूत्र मिल गए। मैंने घर में तुरंत ही नई जगहों पर ढूँढ़ना शुरू किया।"
नानी की ऐनक

"सब टीचर की ओर देख रहे थे।
 ऊपर-नीचे, बड़े ही ध्यान से।
 फिर उन्होंने एक दूसरे की ओर देखा।"
जंगल का स्कूल

"बिल्ली की पूँछ निकाल कर उन्होंने चुलबुल की पूँछ दोबारा लगा दी। अपनी पूँछ पाते ही चुलबुल ने चैन की साँस ली और खुश होकर घर की ओर चल दी।"
चुलबुल की पूँछ

"“जाओ! किताबें खरीद लाओ,” उन्होंने कहा।"
चलो किताबें खरीदने

"फिर उन्होंने अख़बार को मोड़ा और उसे इधर उधर खोसने लगीं।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"” जी हुज़ूर, उन्होंने खुद नमूने पसंद किये थे।“"
रज़ा और बादशाह

"मैडम ने कहा था कि मुझे तुम्हारी मदद करनी है और तुम्हें यह दिखाना है कि स्कूल में कौन सी जगह कहाँ है, क्योंकि तुम स्कूल में नई आई हो। लेकिन उन्होंने मुझे इस बारे में और कुछ नहीं बताया था।"
थोड़ी सी मदद

"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"मुझे लगता है कि मुझे यह बात पहले ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी- जब भी वार्षिकोत्सव आने वाला होता है, प्रिंसिपल साहब कुछ सनक से जाते हैं। वे तुम पर चिल्ला सकते हैं - वे किसी को भी फटकार सकते हैं। अगर ऐसा हो, तो बुरा न मानना। मेरी माँ कहती है कि वे बहुत ज़्यादा तनाव में आ जाते हैं, क्योंकि वार्षिकोत्सव कैसा रहा इससे पता चलता है कि उन्होंने काम कैसा किया है।"
थोड़ी सी मदद

"पता नहीं इसका क्या मतलब है, लेकिन वे बहुत परेशान दिखते हैं। तुमने उनके बाल देखे हैं? वह ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने बिजली का नँगा तार छू लिया हो और उन्हें करारा झटका लगा हो! वैसे, मुझे लगता है कि रानी ने उनकी कुर्सी पर मेंढक रख कर अच्छा नहीं किया।"
थोड़ी सी मदद

"यह सुनकर पास बैठे एक अंग्रेज़ अधिकारी ने उनको डाँट दिया और कहा कि गप्प नहीं हाँकनी चाहिये, लेकिन साथ ही उन्हें खेलने का एक अवसर भी दिया। अपनी कही बात का पालन करते हुए उन्होंने चार गोल किये।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"वो अधिकारी उस बात से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ध्यान चंद को बच्चा पलटन में शामिल कर लिया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"ध्यान चंद की मेहनत रंग लार्इ। लोग कहते हैं कि कर्इ बार वे रेल की पटरी पर अभ्यास किया करते थे और दौड़ते हुए कभी भी गेंद को पटरी से नीचे नहीं गिरने देते थे। शायद यही कारण था कि हॉकी के वास्तविक खेल में भी उन्होंने गेंद पर नियंत्रण के लिए बहुत नाम कमाया। आखिरकार उन्होंने इसे बड़ी मेहनत से रेल की पटरियों पर अभ्यास करके कमाया था।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"एक बार महान धावक मिल्खा सिंह ने ध्यान चंद से पूछा कि वे अपने खेल में इतने निपुण कैसे हैं। ध्यान चंद ने जवाब दिया कि वे एक खाली टायर को गोल से बाँध देते और पूरे दिन गेंद को उस टायर में से निकालते रहते। ध्यान चंद बहुत सारे गोल किया करते थे और आने वाले वर्षों में उन्होंने भारत के लिए बहुत से मैच और पदक जीते।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"और इन सटीक पासों की वजह से वे जादूगर के रूप में जाने जाते थे। उनके अवकाश प्राप्ति के कर्इ सालों बाद उन्होंने अपने सुंदर खेल के बारे में इस प्रकार से समझाया, “रहस्य मेरे दोनों हाथों, दिमाग और नियमित प्रशिक्षण में है।”"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"हालाँकि झाँसी में ध्यान स्कूल जाना बंद कर चुके थे, लेकिन उन्होंने अपने पिता"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"१९२० के दशक के मध्य में वे एक उभरते हुए हॉकी खिलाड़ी थे। उस दौरान उन्होंने सेना की टीम के साथ न्यूज़ीलैंड का दौरा भी किया, और अपनी टीम को २१ में से १८ मैच जीतने में सहयोग किया। स्वाभाविक रूप से उन्हें १९२८ में भारतीय टीम में चुन लिया गया जो एम्सटर्डम ओलंपिक जाने वाली थी।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"टीम यूरोप रवाना होने से पहले अपने अभ्यास मैच में हार गर्इ - ध्यान ने टीम की ओर से दो गोल किये, लेकिन उनकी विरोधी बॉम्बे टीम ने तीन गोल कर दिये। इस हार ने टीम को जोश दिला दिया। उन्होंने इंग्लैंड व यूरोप में अभ्यास मैचों को इतने बड़े अंतर से जीता कि, मर्इ के महिने में जब टूर्नामेंट शुरु हुआ, बाकी टीमों के मन में ज़रूर भारत की इस तूफ़ानी टीम का डर बैठ गया होगा।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"अपने इर्द गिर्द प्रसिद्धी का घेरा होने के बावजूद उनकी दृष्टि में उनका सर्वश्रेष्ठ मैच १९३३ का बैटन कप का फ़ाइनल मैच था, जो एक भारतीय टूर्नामेंट था। अपनी घरेलू टीम झाँसी हीरोज़ के लिए खेलते हुए उन्होंने अपने साथी खिलाड़ी र्इस्माइल को एक लंबा पास दिया, र्इस्माइल “जेसी ओवेन्स की गति से लगभग आधा मैदान भागे” और उन्होंने मैच का इकलौता गोल किया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"“मेरी पुरानी स्लेट टूट गई और मेरे पास नई खरीदने के पैसे नहीं हैं।” मोरू बोला। शिक्षक गुस्से में थे और उन्होंने अपनी छड़ी से मोरू को पीटा। मोरू धीरे से बोला, “अगर स्लेट होती तो भी मैं सवाल नहीं करता क्योंकि मैं करना नहीं चाहता।”"
मोरू एक पहेली

"शिक्षक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने मोरू के गाल पर एक तमाचा मारा। मोरू का गाल सुर्ख लाल हो गया। अचानक ही उसकी आँखों से गर्म आँसू फूट पड़े। वह खड़ा हुआ और कमरे से बाहर भागा। बरामदे से नीचे उतर, धूल भरे मैदान को पार करके वह टूटे फाटक से सीधे बाहर निकल गया।"
मोरू एक पहेली

"एक दिन मोरू दीवार पर बैठा बच्चों को स्कूल जाते देख रहा था। अब उससे कोई नहीं पूछता था कि वह उनके साथ क्यों नहीं आता। बल्कि अब तो बच्चे उससे बचते थे क्योंकि वह डरते थे कि मोरू उन्हें परेशान करेगा। शिक्षक भी वहाँ से गुज़र रहे थे। मोरू ने उन्हें देखा। उन्होंने मोरू को देखा। न कोई मुस्कराया और न किसी ने भवें सिकोड़ीं।"
मोरू एक पहेली

"एक महीने बाद मोरू की माँ सुबह के दस-ग्यारह बजे उसे ढूँढ रही थीं। वह कहीं भी नहीं मिल रहा था। उन्होंने छत पर देखा पर उसकी पतंगें मायूस सी पानी की टंकी के पास पड़ी थीं। उन्होंने दीवार पर झाँका जहाँ वह रोज़ टाँगें झुलाए बैठा रहता था पर दीवार खाली थी। उन्होंने आम के पेड़ पर देखा जहाँ पत्तियाँ हवा में सरसरा रही थीं लेकिन किसी भी टहनी पर मोरू नहीं था।"
मोरू एक पहेली

"कल रात उन्हें नींद नहीं आई थी और न उसकी पिछली रात। न ही उससे पहले कुछ तीस रात। उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की। मगर वाक्य अस्पष्ट हो रहे थे!"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"“सुजाता,” एक रात अपनी रानी को धीरे से जगाते हुए उन्होंने पूछा, “तुम दिन भर इतनी फुर्तीली और चौकन्ना कैसे रहती हो?”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"“क्योंकि मैं रात को सोती हूँ,” उन्होंने झुंझलाकर बोला, “और आप को भी वही करना चाहिए।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"वित्त मंत्रीजी भी पीछे नहीं रहना चाहते थे। सो उन्होंने कहा, “मैं हर रात शहद मिलाकर गरम दूध पीता हूँ। बिलकुल सहज, कोई तामझाम नहीं। रसोइए को परेशान करने की भी ज़रुरत नहीं। और मैं हमेशा पूरे नौ घंटे सोता हूँ।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राज संगीतकार को यह खाने की कहानियाँ बिलकुल नहीं भा रही थीं। भरा पेट हो, तो वो गा ही नहीं सकते! मगर वो भी कुछ मदद करना चाहते थे। सो उन्होंने कहा, “हमारे वंश में, महाराज, हम निद्रा देवी का स्वागत हमेशा संगीत से ही करते हैं। नीलाम्बरी राग में गाई हुई कोई सुन्दर रचना, वीणा की संगत में... आ हा, परमानन्द!”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"जब तक उन्होंने खाना ख़त्म किया, ग्यारह बजने वाले थे। मगर, पुरानी आदतों को तोड़़ना आसान नहीं होता - उन्हें अब भी नींद नहीं आ रही थी।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"बिस्तर पर करवट बदलते बदलते वो परेशान हो गए और मुख्य मंत्री पर उन्हें बड़़ा ही गुस्सा आया। निद्रा देवी अब भी लापता थीं! उन्हें लगा, शायद उन्होंने भरपेट न खाया हो।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"“रसोइया!” उन्होंने चिल्ला कर बुलाया।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"“शायद संगीत सुन लूँ तो नींद आ जाए,” उन्होंने सोचा।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"वो चांदनी में चलते रहे, और पंछियों की धीमी चहक में राज महल के बड़े से बगीचे की परिक्रमा करते रहे। राजा को बड़ी शांति की अनुभूति हुई और उन्होंने सोचा, “आहा! यही समय है लौट कर सोने का।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"रानी ने मामले को अपने हाथों में लिया। उन्होंने दूध का एक छोटा गिलास मंगवाया, और मालिश वाले से राजा के पाँव भी दबवाए। कुछ ही देर में निद्रा देवी ने आकर आशीर्वाद दिया। आख़िरकार राजमहल में उस रात को शांति छा गई।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"हर दिन इसी तरह कार्यक्रम चलता रहा। वक़्त के साथ, कोट्टवी राजा थोड़़ा और जल्दी सोने लगे। दो हफ्ते में, उन्होंने देखा कि दूसरे गिलास दूध के साथ ही उन्हें नींद आ जाती थी। उसके कुछ हफ्ते बाद, सैर के तुरंत बाद सोने लगे वो। एक महीने बाद, विदूषक की कहानी ने सुला दिया राजा को।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राजा अपनी निद्राहीन प्रजा के लिए बहुत ही चिंतित हो उठे। अपने इस विस्तृत कार्यक्रम की सलाह तो हर किसी को वो दे नहीं सकते थे। उन्होंने अपने राजपुरोहित से सुझाव माँगा। उस बुद्दिमान इंसान को पता था कि यह एक जटिल समस्या है। “सभी से कहिए आज से पंद्रह दिन बाद नगर सभा में एकत्रित हों। सभी लोग गरम पानी से नहा कर, भोजन करके, सूर्यास्त पर हाज़िर हों। मैं सभी को आशीर्वाद देने के लिए निद्रा देवी को वहाँ बुलाऊँगा।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"यह साँप सामान्य, स्वस्थ साँपों की तरह सरसरा और लहरा नहीं रहे थे। जादव उनके बीच पहुँचे तो भी न तो उन्होंने फुफकारा, न वहां से भागे और न ही उन्हें काटने की कोशिश की। वह तो बस रस्सियों की तरह थके-हारे, अलसाये से पड़े रहे।"
जादव का जँगल

"लेकिन अब भी उन्होंने पेड़ लगाना बंद नहीं किया है।"
जादव का जँगल

"सोलह साल की उम्र में ब्रह्मपुत्र के रेतीले किनारे पर साँपों को गर्मी में तड़प-तड़प कर मरते देख जादव बेहद दुःखी हुए, और उन्होंने वहाँकुछ छायादार पेड़ लगाने का फ़ैसला किया। सबसे पहले उन्होंने आसानी से पनपने वाले बाँस लगाए। बड़ी मेहनत से एक-एक करके लगातार पेड़ लगाते-लगाते उन्होंने पूरा जँगल ही खड़ा कर दिया। यह 1979 की बात है।"
जादव का जँगल

"दीदी स्कूल के बरामदे में बैठ गईं। उन्होंने एक छोटे से शेर के बारे में कहानी शुरू की जो जंगल में"
कहानियों का शहर

"शहर के मेयर को चिंता होने लगी, "अब क्या किया जाये?" समुद्र के किनारे अपने घर में चहलकदमी करते हुए उन्होंने अपने मंत्रियों से बात की।"
कहानियों का शहर

""मैं वह वजह हूं जिसके जादू से इस प्लेट में यह स्वादिष्ट चीज़ें आई हैं!" यह कहने के साथ ही उन्होंने प्लेट पर ढका नैपकिन हटा दिया। प्लेट में गर्मागर्म वड़े रखे हुए थे।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"घर जाकर उन्होंने उसकी माँ को समझाया कि जैसे लड़कों का पढ़ना ज़रूरी है, वैसे ही लड़कियों का भी पढ़ना ज़रूरी है। एक लड़की पढ़ लिख कर पूरे घर को अच्छे से संभाल सकती है।"
और दीदी स्कूल जाने लगी

"टीचर की बात लड़के की माँ को समझ में आ गई और उन्होंने अपनी बेटी को रोज़ स्कूल भेजना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनको देखकर गाँव के सभी लोग अपने बच्चों को रोज़ स्कूल भेजने लगे और फिर उनका गाँव बदलने लगा।"
और दीदी स्कूल जाने लगी