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Storybook paragraphs containing word (71)
"शिरीष जी खुश होकर मुस्कराने लगे। मुस्कराते ही पान से रंगे उनके दाँत दिखने लगे। उन्होंने जल्दी से पानी पिया, फिर भीड़ छटने लगी। “लो जादू तो अभी हो गया,” शिरीष जी ने मज़ाक में कहा।"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो
"आटे में जैसे ही पानी डाला जाता है, यह अणु उसे पी लेते हैं। वे पानी पीने के बाद बड़े और मोटे हो जाते हैं। वे फैल जाते हैं। ज़ाहिर है कि उनके पास आराम से बैठने के लिये जगह नहीं होती है – इसलिए वह एक दूसरे को छूते हैं और धक्कामुक्की करते हैं। वे एक दूसरे से चिपक जाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?
"मधुमक्खियाँ, ख़ासकर भौंरे, उड़ते हुए भन-भन की ज़ोरदार आवाज़ करते हैं। यह आवाज़ उनके पंखों के ऊपर-नीचे हिलने से होती है। जितने छोटे पंख होते हैं, उन्हें उतनी ही तेज़ी से हिलाना पड़ता है। और जितनी तेज़ी से पंख हिलते हैं, उतनी ही ज़ोर से आवाज़ होती है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
"जब मधुमक्खियाँ शहद चूसने के लिए फूलों पर बैठती हैं, तभी पराग के दाने उनके पाँवों व शरीर पर चिपक जाते हैं।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?
""अज्जी मुत्तज्जी की पाँचवी संतान हैं, और उनके सभी बच्चों के बीच 2 - 2 साल का अंतर है..." पुट्टा ने कहा "अगर अज्जी 1942 में पैदा हुईं...""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"पुट्टा ने कहा, "उन्होंने बताया था कि जब उनके बम्बई वाले अंकल ने उनको साफ रेलगाड़ी के बारे मे बताया था तब वह 9 -10 साल की थीं। अज्जा शायद इस बारे में जानते होंगें।”"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"गांधीजी का भाषण (1 942 ) - 8 अगस्त 1942 के दिन, बंबई के ग्वालिया टँक मैदान में गांधीजी ने 'भारत छोड़ो भाषण' दिया था। गांधीजी ने लोगों से कहा कि उन्हे अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ लड़ना होगा। इसके लिए उन्हे हिंसा नहीं, बल्कि उनके साथ असहयोग करना होगा। इसके 5 साल बाद, 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ो का शासन खत्म हुआ और भारत आज़ाद हुआ। आज उसी शांत क्रांति की स्मृति में ग्वालिया टैंक मैदान को अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है !"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"”बिन्दा चाचा,“ धनी उनके पास बैठ गया, ”आप भी यात्रा पर जा रहे हैं क्या?“"
स्वतंत्रता की ओर
"धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नीबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिन्दा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गाँधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दाँडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनायेंगे।"
स्वतंत्रता की ओर
"अगले दिन जैसे सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़ कर गाँधी जी को ढूँढने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बन्दगोभी देखते हुए बिन्दा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।"
स्वतंत्रता की ओर
"अन्त में, गाँधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने धनी को पुकारा, ”यहाँ आओ, बेटा!“ धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।"
स्वतंत्रता की ओर
"1. मार्च 1930 में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये नमक कर के विरोध में दाँडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया। गाँधी जी और उनके अनुयायी, गुजरात में 24 दिन तक पैदल चले। पूरे रास्ते उनका स्वागत फूलों और गीतों से हुआ। विश्व भर के अखबारों ने यात्रा पर खबरें छापीं।"
स्वतंत्रता की ओर
"2. दाँडी में गाँधी जी और उनके साथियों ने समुद्र तट से नमक उठाया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी के बाद असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ और पूरे भारत में लोगों ने स्कूल, कॉलेज व दफ़्तरों का बायकॉट किया।"
स्वतंत्रता की ओर
"साल 1870 का था। स्थान न्यू लंदन, कनेक्टिकट, यूनाइटेड स्टेट्स; सुबह सात बजे बच्चे बिस्तर से कूदे, उनकी माँओं ने उन्हें दाँत साफ़ करने की जल्दी मचाई, उनके हाथ में दातुन (टूथस्टिक) और टूथपेस्ट के मर्तबान दिए।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"दरअसल, टूथपेस्ट भरे उसी चीनी मिट्टी के मर्तबान में घर के सभी सदस्य अपना दातुन डुबाते थे। यहाँ तक कि उनकी बूढ़ी चाची भी, जिनके पीले और काले दाँत उनके दातुन से मेल खाते थे।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"बर्तन के निचले हिस्से में लगे नल से घूमते कन्वेयर बेल्ट के साथ हरएक खाली ट्यूब भरता जाता है। लेकिन पेस्ट उनके सिरे तक नहीं भरा जाता, इन्हें आधा इंच खाली रखा जाता है ताकि अच्छी तरह बंद किया जा सके। अब ट्यूब दबाकर निकालने के लिए तैयार है।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
""वह महिला अफ़सर सुरक्षा जाँच टीम की सदस्य है। उन्हें इस बात का ध्यान रखना होता है कि कोई भी यात्री अपने सामान में विस्फोटक या चाक़ू जैसी ख़तरनाक चीज़ें न ले जा पाए। हमें उनके काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"एक बड़े शहर के किनारे कुछ बच्चे रहते थे। उनके घर के नज़दीक एक बड़ा मैदान था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना
"नीना हंस पड़ी और उनके साथ शामिल हो गयी।"
एक सफ़र, एक खेल
"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"क्या वह गायब हो जाएँगी? मैं दौड़कर उनके पास जाती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन
"पुताई वाले भैया ने उनके हाथ में ब्रश थमाए।"
नन्हे मददगार
"वे हमे ढूँढ रहे हैं।
उनके पीछे पीछे मेरी दादीजी आ रही हैं।"
चाचा की शादी
"मेरे दादाजी के पास एक छोटा सा थैला है।
उनके पास एक छड़ी भी है।"
चाचा की शादी
"मेरी मोटी चाची आ गयी हैं।
उनके साथ पतले चाचाजी भी हैं।"
चाचा की शादी
"अनु को अपने पापा की बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं। उनकी लटकने वाली चमचम चमकतीं लालटेनें, उनके तले प्याज़ के करारे-करारे पकौड़े, काग़ज़ से जो प्यारे-प्यारे कछुए वे बनाते हैं, अनु को सब अच्छे लगते हैं। यही नहीं, सीढ़ियाँ भी वे उचक-उचक कर चढ़ते हैं। और फिर मामा से उनकी वे कुश्तियाँ, जो वे मज़े लेने के लिए आपस में लड़ते हैं। मेहमानों के आने पर, वे हमेशा उन्हें हँसाते रहते हैं!"
पापा की मूँछें
"हर सुबह, जैसे ही उसके पापा दाढ़ी बनाना शुरू करते हैं, अनु भी उनके पास आकर बैठ जाती है। बड़े ध्यान से उन्हें दाढ़ी बनाते हुए देखती है। उसके पापा अपनी दो उँगलियों में एक छुटकू-सी कैंची पकड़े, कच-कच-कच... अपनी मूँछों को तराशने में जुट जाते हैं।
और अनु है कि कहती जाती है, “थोड़ा बाएँ... अब थोड़ा-सा दाएँ... पापा नहीं ना! आप अपनी मूँछों को और छोटा मत कीजिए!
आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे कट्टी हो जाऊँगी!”"
पापा की मूँछें
"हम दौड़कर दादाजी के पास घर आये। उनके बिस्तर पर चढ़कर बैठ गये।"
चलो किताबें खरीदने
"उसे दो ख़तरनाक से कुत्ते दिखे। काका फ़ौरन उनके पास जा पहुँचा और उनकी खुशामद करने लगा,"
काका और मुन्नी
"अब्बू अच्छा-ख़ासा कमा लेते थे। इसलिए अम्मी को कढ़ाई का काम नहीं करना पड़ता था। कमरु और मेहरु पढ़ने के लिए मस्ज़िद के मदरसे जाती थीं जबकि अज़हर लड़कों के स्कूल जाते थे। कमरु और मेहरु थोड़ी-बहुत कढ़ाई कर लेती थीं लेकिन उनके काम की तारीफ़ कुछ ज़्यादा ही होती थी। उनके अब्बू ठेकेदार जो थे। आसपास रहने वाली सभी औरतों को काम मिलता रहे, उनके चार पैसे बन जाएँ-यह सब अब्बू ही तो करते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"अम्मी को पढ़ना-लिखना नहीं आता। वह तो यह भी नहीं जानती थीं कि व्यापारी को उनके काम का मेहनताना कितना देना चाहिए। पहले तो मैंने उन्हें थोड़ा हिसाब करना, गिनना सिखाया। लेकिन फिर हमें रुपयों की ज़रूरत पड़ने लगी। तब मैंने भी यही काम पकड़ लिया।” मुमताज़ बहुत हौले से, कुछ रुक कर बोली, “कभी-कभी तो अम्मी की इतनी याद आती है कि मैं रात-रात भर रोया करती हूँ।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"और फिर मुमताज़ ने अपनी नानी को देखा! एक चौड़ी सड़क के किनारे नीम के पेड़ तले बैठी थीं! मुमताज़ खुशी के मारे चिल्लाई और “नानी, नानी” करती उनके गले से लग गई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"”मैं हूँ रहमत खान, जहाँपनाह का दर्ज़ी। उनके अंगरखों के नये जोड़े लाया हूँ,“रज़ा के अब्बा ने कहा।"
रज़ा और बादशाह
"रज़ा ने झुक कर सलाम किया और फिर अपने बादशाह की तरफ़ देखा। एक खिदमतगार हाथ में डिब्बा लिये खड़ा था और अकबर उसमें से गहने चुन रहे थे। कद में बहुत लम्बे नहीं थे पर उनके एक तलवारबाज़ के जैसे चौड़े कन्धे थे। बड़ी बड़ी, थोड़ी तिरछी आँखें, नीचे की ओर मुड़ी मूँछें और ओठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था।"
रज़ा और बादशाह
"जानती हो कल क्या हुआ? गौरव, अली और सातवीं कक्षा के उनके दो और दोस्त स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे पीछे पड़ गए। तुम समझ ही गई होगी कि वह क्या जानना चाहते होंगे! उन्होंने मेरा बस्ता छीन लिया और वापस नहीं दे रहे थे। बाद में उन्होंने उसे सड़क किनारे झाड़ियों में फेंक दिया। उसे लाने के लिए मुझे घिसटते हुए ढलान पर जाना पड़ा। मेरी कमीज़ फट गई और माँ ने मुझे डाँटा।"
थोड़ी सी मदद
"पता नहीं इसका क्या मतलब है, लेकिन वे बहुत परेशान दिखते हैं। तुमने उनके बाल देखे हैं? वह ऐसे लगते हैं जैसे उन्होंने बिजली का नँगा तार छू लिया हो और उन्हें करारा झटका लगा हो! वैसे, मुझे लगता है कि रानी ने उनकी कुर्सी पर मेंढक रख कर अच्छा नहीं किया।"
थोड़ी सी मदद
"युवा ध्यान चंद को हॉकी से बहुत प्रेम था। लड़कपन में वे और उनके दोस्त ताड़ के पेड़ से टहनियों को काट कर उनका उपयोग हॉकी स्टिक के रूप में किया करते थे।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"बहुत कम लोगों को यह पता है कि वे सेना में भर्ती होने के पहले से ही सेना के लिए हॉकी खेलने लग गए थे। १४ साल की उम्र में वे अपने पिताजी के साथ सेना की दो टीमों के बीच मैच देखने गए थे। जब एक टीम हारने लगी जो ध्यान चंद ने अपने पिताजी से कहा कि अगर उनके पास हॉकी स्टिक होती तो वे उस टीम को जिता देते।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"क्योंकि वे अपना खेल शुरु करने से पहले चाँद उगने का इंतजार किया करते थे, सेना में उनके साथी उन्हें चाँद कहा करते थे और यह नाम उनके साथ बरकरार रह गया। वो ध्यान चंद थे, जो चाँदनी रात में अपने हुनर को निखारते रहते थे।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"लेकिन वे सिर्फ़ हॉकी स्टिक के अपने कौशल के सहारे की ध्यान चंद नहीं बने। हॉकी, जो कि एक टीम का खेल है, उसमें ध्यान चंद एक प्रभावी टीम साथी के रूप में उभरे। जब वे मैदान में दौड़ रहे होते, उनका मस्तिष्क एक शतरंज की बाज़ी के रूप में सोचता। जैसे अपको पता होता है कि आपकी कक्षा में आपके मित्र कौन कौन से स्थान पर बैठते हैं और आप बिना देखे यह बता सकते हैं कि “काव्या यहाँ बैठती है, रोमिल यहाँ बैठता है” ध्यान चंद के लिए हॉकी ठीक वैसा ही था। बिना देखे उनको पता होता था कि उनके टीम के साथी कहाँ खड़े हैं, और वे किसको गेंद पास कर सकते हैं।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"और इन सटीक पासों की वजह से वे जादूगर के रूप में जाने जाते थे। उनके अवकाश प्राप्ति के कर्इ सालों बाद उन्होंने अपने सुंदर खेल के बारे में इस प्रकार से समझाया, “रहस्य मेरे दोनों हाथों, दिमाग और नियमित प्रशिक्षण में है।”"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"ध्यान जो कहना चाहते थे, वो यह है कि प्रतिभा एक चीज़ है। वो जानते थे कि उनके हाथ हॉकी के लिए एकदम अनुकूल थे, लेकिन खेल के अन्य महान सितारों की तरह प्रतिभा को प्रभावी बनाने के लिए जिस चीज़ की आवश्यकता होती है, वह है मेहनत। इतने लंबे समय तक जितने सर्वश्रेष्ठ तरीके से वे खेले, वैसा खेलने के लिए उनको अपने शरीर को दुरुस्त व दिमाग को चुस्त रखने की आवश्यकता थी।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"लोग कहा करते थे कि उनको छोटी उम्र से ही रबड़ी बहुत पसंद थी। उनकी माँ उनके लिए अक्सर रबड़ी बनाया करती थीं। क्या यही कारण था कि उनकी कलार्इयाँ लचकदार व जाँघें मज़बूत स्टील की स्प्रिंग जैसी थीं जो हॉकी खेलने में सहायता करती थीं?"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"सेना में अपनी सेवा के दौरान समे वर का हमेशा स्थानांतरण होता रहा, इसलिए समे वर दत्त कभी भी अपने बच्चों के लिए निर्बाध शिक्षा को सुनिश्चत नहीं कर सके। अंत में जब सरकार ने उन्हें झाँसी में अपना मकान बनाने के लिए कुछ ज़मीन दी, तभी उनके जीवन में कुछ ठहराव आया। लेकिन तब तक ध्यान छह साल तक पढ़ कर स्कूल छोड़ चुके थे।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"उन्होंने कर्इ वर्षों तक वहाँ, और देश के कर्इ हिस्सों में विभिन्न कैंपों में प्रशिक्षण दिया। वे इस बात से बहुत खुश थे कि उनके बाद उनके पुत्र अशोक ने भी हॉकी खेलने की परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"दुर्भाग्य से तब तक भारत हॉकी की एक शक्ति से पतन की ओर अग्रसर था। वो विश् व कप शायद अंतिम महत्वपूर्ण टूर्नामेंट था जिसे भारत जीत पाया था। रिटायर्ड मेजर, जिसके पास इस खेल में विजय की इतनी गौरवशाली यादें थीं कभी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए कि जो खेल उनके दिल के इतने करीब था, उसमें उनकी टीम इतना संघर्ष कर रही थी। जब १९७६ के मांट्रियल ओलंपिक में भारतीय टीम छठे स्थान पर रही तब ध्यान चंद ने दर्द बयान करते हुए कहा, “कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा।”"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"आज हम उनके जन्मदिन, २९ अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं, और भारतीय खेल जगत के सर्वकालिक सर्वोच्च पुरस्कार, ध्यान चंद पुरस्कार को उनके नाम पर रखा गया है। यदि भारत खेल में पुन: कभी शक्तिकेंद्र के रूप में उभरता है तो हम कह सकते हैं कि इसके पीछे इस महान व्यक्ति की प्रेरणा है। एक जादूगर जो कभी हॉकी खेलता था, जिसने पूरी दुनिया को रोमांचित कर दिया।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"जब वह थक जाता तो खुद को सीढ़ियों के जंगले पर फिसलते हुए देखता और सब अंक उसकी ओर हाथ हिला रहे होते। दोपहर के खाने में अक्सर सबके आधे पेट रह जाने पर ख़त्म हो जाने वाले चावल से नहीं, उन दोस्तों से नहीं जिन्हें खेल जमते ही घर जाना होता, अंक हमेशा मोरू के पास रहते। कभी न ख़त्म होने वाले अंक कि जब चाहे उनके साथ बाज़ीगरी करो, छाँटो, मिलाओ, बाँटो, एक पंक्ति में लगाओ, फेंको, एक साथ मिलाओ या अलग कर दो।"
मोरू एक पहेली
"उसके जैसे और बच्चे जिन्होंने स्कूल छोड़ दिया था, उनके साथ उसने मिलकर गुट बना लिया जो कि स्कूल जाने वाले बच्चों को चिढ़ाता और सताता था। अपने दोस्तों की स्कूल की कॉपियों से पन्ने फाड़कर वह हवाई जहाज़ बनाता। अपनी छत पर जा कर वह राह चलते लोगों पर गुलेल से ढेले मारता।"
मोरू एक पहेली
"एक दिन मोरू दीवार पर बैठा बच्चों को स्कूल जाते देख रहा था। अब उससे कोई नहीं पूछता था कि वह उनके साथ क्यों नहीं आता। बल्कि अब तो बच्चे उससे बचते थे क्योंकि वह डरते थे कि मोरू उन्हें परेशान करेगा। शिक्षक भी वहाँ से गुज़र रहे थे। मोरू ने उन्हें देखा। उन्होंने मोरू को देखा। न कोई मुस्कराया और न किसी ने भवें सिकोड़ीं।"
मोरू एक पहेली
"अगले दिन मोरू ने स्कूल छूटने का इन्तज़ार किया। जब सब बच्चे जा चुके थे और शिक्षक अकेले थे, मोरू चुपचाप अन्दर आया और दरवाज़े पर आ कर खड़ा हो गया। शोरोगुल और हँसी मज़ाक के बगैर स्कूल कुछ भुतहा सा लग रहा था। शिक्षक ने नज़र उठाई और बोले, “अच्छा हुआ जो तुम आ गये। मुझे तुम्हारी मदद चाहिये।” मोरू को अचरज हुआ। शिक्षक क्या मदद चाहते होंगे? उनके पास तो मदद के लिये स्कूल में बहुत से बच्चे थे। वे धीरे से बोले, “क्या तुम किताबों को छाँटने में मेरी मदद कर सकते हो?”"
मोरू एक पहेली
"फिर आई अंकों वाली किताबें। मोरू की आँखें और उंगलियों की तेज़ी कुछ ढीली पड़ी। मोटे अंक पतले अंकों के साथ नाच रहे थे। दो अंक एक के ऊपर एक ऐसे बैठ गये जैसे कोई ढुलमुल इमारत हो जो अपनी नींव भरने का इन्तज़ार कर रही हो। गुणा के सवालों में जैसे संख्या बढ़ती जाती थी, वो कुछ नाटे और नीचे की तरफ़ चौड़ाते लग रहे थे। भाग इसका ठीक उलटा था। शुरूआत में बड़ी संख्या और अगर ध्यान से करते जाओ तो अन्त में लम्बी पतली आकर्षक पूँछ बन जाती थी। अगर भाग्यशाली हो तो अन्त में कुछ नहीं बचेगा। एक-एक कर के सारे अंक और उनके करतब मोरू के पास लौट आये।"
मोरू एक पहेली
"राजा नल्लन अच्छे राजा थे। मगर हाल में, दिन के समय जागे रहना उनके लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था। दिन भर राजदरबार में जम्हाईयाँ लेते रहते थे। इसीलिए लोगों ने उन्हें कोट्टवी राजा बुलाना शुरू किया, क्योंकि तमिल भाषा में जम्हाई को कोट्टवी कहते हैं।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"राजा लौट कर लेट गए, चारों और एक स्वप्निल चुप्पी छाई हुई थी। अचानक उन्हें एक गड़़गड़़ाहट सी सुनाई दी। उनके पेट से।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"कि अब उनके निद्राहीन दिनों का अंत होने को है।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"एक संगीतकार ने धुन के बीच में ही जम्हाई ली और उसकी देखा देखी आस पास के बीस और जनों ने भी। फिर उनके पड़ोसियों ने जम्हाई ली और पूरी सभा में जम्हाइयों की लहर सी दौड़़ पड़़ी।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"* जिन जीवों के नाम ' बोल्ड ' अक्षरों में छपे हैं, उनके बारे में और ज़्यादा जानने के लिए किताब के आख़िरी पन्नों को देखें।"
गहरे सागर के अंदर!
"समुद्र की तली में हमें व्हाइटटिप रीफ़ शार्क का जोड़ा भी आराम करते हुए मिला। ये मछलियां बड़ी ज़रूर होती हैं, लेकिन ख़तरनाक नहीं, इसलिए हम उन्हें ठीक से देखने के लिए उनके काफ़ी पास तक जा पहुंचे।"
गहरे सागर के अंदर!
"यह साँप सामान्य, स्वस्थ साँपों की तरह सरसरा और लहरा नहीं रहे थे। जादव उनके बीच पहुँचे तो भी न तो उन्होंने फुफकारा, न वहां से भागे और न ही उन्हें काटने की कोशिश की। वह तो बस रस्सियों की तरह थके-हारे, अलसाये से पड़े रहे।"
जादव का जँगल
"जल्दी ही उनके रोपे वालकोल, अर्जुन, एजर, गुलमोहर, करोई, मोज और हिमोलू के पौधों ने जड़ें पकड़ लीं और बड़े होने लगे।"
जादव का जँगल
"बड़े होने पर उनके बीज बिखरने लगे। नए बीज से निकले पौधे जड़ें फैलाने लगे। नाज़ुक पौधे मोटे-मज़बूत तने वाले हो गये। तनों से और डालियाँ निकलीं, और डालियों आसमान को छूने की कोशिश करने लगीं।"
जादव का जँगल
"जितना समय उनके राजा ने दिया था उससे पहले ही दोनों ने अपना काम कर दिखाया।"
कछुआ और खरगोश
"मीमी ने जिससे भी कहानियाँ सुनाने की बात कही, उनके पास कहानियाँ सुनाने की फ़ुर्सत नहीं थी।"
कहानियों का शहर
"चौराहे पर जहाँ चारों ओर कार-स्कूटर की भीड़ लगी हुई थी, उनके बीच में पुलिस वाला बैठा कहानियाँ सुना रहा था! घरों में टेलीविजन चले ही नहीं। चारों तरफ़ बस कहानियाँ, सिर्फ़ कहानियाँ।"
कहानियों का शहर
"खिड़की के बाहर हल्की सी आवाज़ तैर रही थी। वहाँ मेयर का माली उनके अंगरक्षकों को कहानी सुना रहा था।"
कहानियों का शहर
"बिना समय गंवाए सही पकड़ा। और उन्है यह विशेषताएं उनके माता-पिता से मिली हैं, " इम्मा ने आगे जोड़ा।"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?
"मेरे नानाजी, जिन्हें हम बच्चे पूफ़ू कहते थे, उनकी ठुड्डी में गड्ढा था। उनके बच्चों में, जिनमें"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?
"जब उस लड़के ने अपनी माँ को टीचर की बात बताई तब उसकी माँ ने कहा कि उनके पास स्कूल जाने का समय नहीं है। अगले दिन उस लड़के ने मैडम को सारी बात बताई। फिर उसकी टीचर उसके घर गई।"
और दीदी स्कूल जाने लगी