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Storybook paragraphs containing word (51)
"अर्जुन के तीन पहिये थे, एक हेड लाइट थी और एक हरे-पीले रंग का
कोट भी था।
दिल्ली के बहुत बड़े परिवार का वह एक हिस्सा था। जहाँ-जहाँ अर्जुन जाता, उसको हर जगह मिलते उसके रिश्तेदार, भाई-बहन, चाचा-चाची, मौसा-मौसी, वे सभी हॉर्न बजा बजाकर कहते, “आराम से जाना।”"
उड़ने वाला ऑटो
"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो
"शिरीष जी फिर से काम में जुट गए थे। उस शहर के जाने पहचाने जादू
के नशे में हर सिग्नल, हर साईन बोर्ड, हर मोड़ उनसे कुछ कह रहा था।
बहुत जल्द उनका पुराना जाना पहचाना चेहरा फिर शीशे में दिखने लगा था। वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना है। वह तो वहाँ पहुँच ही गये थे।
उस औरत की साड़ी फिर से फीकी पड़ गई थी लेकिन उसका चेहरा चमक रहा था।
वे ज़मीन पर पहुँच गए थे। अर्जुन के पहियों ने गर्म सड़क को छुआ। इंजन ने राहत की साँस ली..."
उड़ने वाला ऑटो
"विश्व के सबसे पहले एनसाइक्लोपीडिया, “अभिलाषितार्थ चिंतामणि” या मनासोललास जिसे राजा सोमेश्वर ने 12 सदी में लिखा था, के अनुसार उस समय में पूरी जैसी कोई चीज बनाई जाती थी जिसे पहालिका कहा जाता था तो पूरी कम से कम 800 साल पुरानी है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"बड़े दुख से मुत्तज्जी ने कहा, "हाँ, उस साल दशहरे के त्यौहार के समय, हमारे महाराजा ने एक बड़े बांध और उसके पास कई सुंदर बागों का उद्घाटन किया था। लेकिन मै वह सब नहीं देख सकी थी क्योंकि मैं बम्बई में थी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
""...तो मुत्तज्जी की चौथी संतान पैदा हुई थी 1942 - 2, यानी 1940 में, और तीसरी"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"महाराजा महारानी की शानदार दावत (1911) – 1911 में ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज (पंचम) और उनकी पत्नी क्वीन मैरी, भारत में पहली बार आए थे, तब उन्होने 400 से ज्यादा भारतीय महाराजा और महारानियों के लिए एक शाही दावत दी थी, जिसे कहा गया था दिल्ली दरबार। इसमे आए 200,000 मेहमानों की दावत के लिए कई बेकरियों में हर दिन 20000 से ज्यादा ब्रैड बनाई गयी थी और 1000 से ज़्यादा कैटल और बकरों को काटा गया था! बादशाह ने कई भारतीय राजाओं को सोने के मेडल (तमगे) भी दिये थे, जिनमे मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वाडियार (चतुर्थ) भी शामिल थे!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ आ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव आ गया। और कृष्ण राजा सागर (के आर एस) रिसर्वोयर का निर्माण हुआ। आज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?
"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने आधी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर आ जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?
"और सबसे अद्भुत बात यह थी कि इतना बड़ा और महत्वपूर्ण पेड़ एक नन्हे से बीज से बनता है।"
आओ, बीज बटोरें!
"तालाब की मछलियों में थी दोस्ती प्यारी"
सूरज का दोस्त कौन ?
""आ गई मेरी बच्ची! कहाँ चली गई थी तू?""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अपनी प्रजाति का वह आखिरी जीव था और सैकड़ों वर्षों से यह प्रजाति विलुप्त मान ली गयी थी। लोग नहीं जानते थे कि उस प्रजाति का जीवित अवशेष, जो एक को छोड़ अपने बाकी सारे पंख गँवा चुका था, अब भी अधनिया के जंगलों में विचरता था। गजपक्षी और गाँव वाले एक दूसरे से एक सुरक्षित दूरी बनाये रखते थे। पर मुनिया नहीं। हालाँकि चलते समय वह लँगड़ाती थी, लेकिन थी बड़ी हिम्मत वाली। अक्सर वह जंगल में घुस जाती और एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी को देखने के लिए झील पर जाया करती थी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"सब लोगों ने सहमति में हुंकारा। मुनिया यह सारी कार्यवाही चुपचाप देखे जा रही थी। वह बोलना चाहती थी, लेकिन जिसकी अनुमति नहीं थी उसकी सज़ा क्या होगी? और अगर वह बोलती भी तो कौन उसकी बात पर यकीन करता?"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"लेकिन गाँव वाले सारथी को क्या जवाब देते? उनके सिर शर्म से झुके हुए थे। मुनिया के पिताजी अपनी बेटी के पास गये, और उसे अपनी गोद में उठाकर उसे वापस गाँव ले आये। बस फिर क्या था, उस दिन के बाद से कोई भी बच्चा मुनिया के लँगड़ाने पर नहीं हँसा। वे सब अब उसके दोस्त होना चाहते थे। लेकिन केवल भीमकाय ही मुनिया का अकेला सच्चा मित्र बना रहा। मुनिया की कहानी तमाम गाँवों में फैली, और दूरदराज़ के ग्रामीण फुसफुसाकर एक-दूसरे से कहते, “देखा, मुनिया जानती थी कि उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़े को नहीं डकारा!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"चंदू की थी बुद्धि थोथी"
सबरंग
""मौसी के विवाह में बजी थी शहनाई,"
संगीत की दुनिया
"एक थी गिलहरी। बड़ी नटखट, बड़ी चंचल। नाम था उसका चुलबुल।"
चुलबुल की पूँछ
"थकी हुई थी इसलिये उसे तुरन्त नींद आ गई। अचानक, ज़ोर की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूटी।"
चुलबुल की पूँछ
"कितनी शान्ति थी वहाँ!
कहीं कोई आवाज़ नहीं।"
चलो किताबें खरीदने
"चीकू जानती थी कि उसे अम्मा का कहना मानना चाहिए था।"
कचरे का बादल
"रीमा आंटी थैलियाँ उठाकर वहाँ से चली गई! अगले दिन जब चीकू सो कर उठी, तो बादल और भी छोटा हो गया था।चीकू मुस्कराई, वह समझ गई थी कि उसे क्या करना है।"
कचरे का बादल
"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी
"मछलियों के घर एक बुज़ुर्ग मछली थी जिसका कहना मेंढक और कछुए भी मानते थे। उसे सब दादा कहते थे।"
मछली ने समाचार सुने
"कढ़ाई कर रहे थे लेकिन उसका मन दूर अपने घर हरदोई में था जहाँ उसकी अम्मी और दो बहनें रहती थीं। क्या उनको भी उसकी उतनी ही याद आती थी जितनी उनकी उसे?"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कुछ ही रोज़ पहले मुमताज़ आबिदा ख़ाला के साथ लखनऊ आई थी जिससे कशीदाकारी के कुछ नए टाँके सीख सके और घर लौट कर बाकी औरतों को सिखा"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ अपने घर से दूर तो थी लेकिन परिवार का एक प्यारा-सा हिस्सा उसके पास भी तो था! उसकी प्यारी तोती मुनिया और दो कबूतर-लक्का और लोटन! ये तीनों उसका दिल बहलाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"भागती जा रही है, तेज़, तेज़...और तेज़। लोटन ने अपनी चोंच में चादर का तीसरा कोना और लक्का ने चौथा कोना पकड़ा और वे सब उड़ने लगे, ज़मीन नीचे छूटती जा रही थी और आसमान नज़दीक आ रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"रज़ा के अब्बा, रहमत खान, भी कोई छोटे-मोटे आदमी नहीं थे। वह बादशाह के शाही दर्ज़ी थे। बादशाह उन्हीं के हाथ के अंगरखे पहनना पसंद करते थे-जी हाँ, चुस्त चूड़ीदार पायजामा और ढीला कोटनुमा कुरता-जिसे अंगरखा कहते हैं। यही थी बादशाह की पसंद की पोशाक।"
रज़ा और बादशाह
"बादशाह के कमरे के दरवाज़े पर इन्तज़ार करते हुए रज़ा ने धनी सिंह को ध्यान से देखा। दर्ज़ी का बेटा होने के नाते सबसे पहले कपड़ों पर नज़र टिकी। लाल और स़फेद, फूलदार सूती अंगरखा और स़फेद चूड़ीदार। धनी सिंह की नागरा की जूतियों की नोक अन्दर की तरफ़ उमेठी हुई थी। उनकी कमर पर कपड़े की पट्टी बँधी हुई थी जिसे पटका कहा जाता है। पर रज़ा को सबसे ज़्यादा पसन्द उनकी चटख़ लाल रंग की पगड़ी आई, जिस पर स़फेद और पीले चौरस और बुंदकियों का नमूना था।"
रज़ा और बादशाह
"वह साँस रोके खड़ा रहा। उसने देखा कि धनी सिंह मुस्करा रहे हैं-शायद उन्हें यह देख कर हँसी आ रही थी कि राजा साहब ने उनकी पगड़ी का पटका बना दिया था!"
रज़ा और बादशाह
"पिछली बार, हमारे स्कूल में तुम्हारे आने से पहले, हमें एक बाघ के बच्चे की फ़िल्म दिखाई गयी थी जो जँगल में भटक गया था। हम भी उसे लेकर चिंता में पड़ गए थे क्योंकि वह एक सच्ची कहानी थी। बाद में वह बाघ का बच्चा किसी को मिल जाता है और वह उसे उसके परिवार से मिला देता है। जानती हो ऐसी सच्ची कहानियों को डॉक्यूमेंट्री कहा जाता है। बाघ के बच्चे बड़े प्यारे होते हैं, हैं न?"
थोड़ी सी मदद
"गणित के सवाल, विज्ञान,फुटबॉल खेलना और स्कूल के कार्यक्रमों में गाना - यह सब उसे पसंद था। पर फिर क्यों, क्यों वह कभी भी समय से स्कूल नहीं पहुँच पाता था? मास्टर जी भी यह समझ नहीं पाते थे। अब परसों की बात थी कि कल्लू की खिल्ली उड़ाते हुए बोले थे कि बेहतर होगा कि कल्लू रात को स्कूल के बरामदे में ही सो रहे और यह सुन के सब बच्चे कल्लू पर हँसे थे।"
कल्लू कहानीबाज़
"मुश्किल यह थी कि अब मामला गम्भीर होता जा रहा था। अब मास्टर जी ने अगर उसे कक्षा नौ में नहीं चढ़ाया तो कल्लू को लेने के देने पड़ जाने वाले थे क्योंकि अब्बू स्कूल छुड़ा के उसे खेतों में काम पर लगा देंगे। अब कौन पालक तोड़ेगा और गाजर और मटर बटोरेगा जब कि वह स्कूल जा सकता है।"
कल्लू कहानीबाज़
"भागते कल्लू के पास जवाब देने की फुर्सत कहाँ थी? धरमपाल चाचा को मज़ाक सूझता रहता है, बड़बड़ाते कल्लू ने कदम ताल न तोड़ी। यहाँ कल्लू की जान पर बन आई थी और उन्हें अपने पकोड़ों से फुर्सत नहीं। और कल्लू की स्कूल की देरी में हँसने वाली कौन सी बात थी? वह तो हर हफ़्ते की कहानी थी!"
कल्लू कहानीबाज़
"कल्लू भागता रहा। मन ही मन उसने सोचा, पूरा गाँव मेरे खिलाफ़ है, दिमाग का पेंच ढीला बदरी भी। मुझ गरीब का मज़ाक बनाने में उन्हें मज़ा आता है। फिर उसे झटके से याद आया कहानी-बहाने की समस्या तो अभी वैसी ही बनी हुई थी। विकराल और हल-विहीन। अम्मी बीमार थी और उसे नाश्ता बनाना था। नहीं। दो बार इस्तेमाल कर चुका था। इस बार नहीं चलेगा।"
कल्लू कहानीबाज़
"खेल के दौरान कर्इ अवसरों पर वे पूरे मैदान को दौड़ कर पार कर लिया करते थे और इस दौरान गेंद उनकी स्टिक से ऐसे चिपकी रहती थी मानो उसे गोंद से चिपका दिया गया हो, और गेंद तभी उनकी स्टिक से अलग होती जब वो गेंद को गोल पोस्ट के अंदर दाग दिया करते। पूरे समय के दौरान सभी खिलाड़ी और गोलकीपर असहाय नज़र आते।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"लेकिन जो चीज़ उनकी ख़ास बात बनकर उभरी थी वो था हॉकी स्टिक चलाने का उनका असाधारण कौशल, हॉकी स्टिक के साथ गेंद को इस प्रकार नियंत्रित करने की क्षमता, मानो मैदान में और कोर्इ खिलाड़ी है ही नहीं। मानो जैसे वे दोबारा रात को अकेले अपने खेल के मैदान में अभ्यास कर रहे हों।"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"समस्या यह थी कि भारत की टीम ने ८ गोल कर दिये थे। एडोल्फ़ हिटलर ने क्या सोचा होगा? जर्मनों के सर्वश्रेष्ठ होने की धारणा को इस पराजय से कितनी ठेस पहुँची होगी?"
ध्यान सिंह 'चंद' : हॉकी के जादूगर
"उसकी स्लेट टूट गई थी और उसकी माँ के पास नई स्लेट खरीदने के पैसे नहीं थे। मोरू ने दीवार पर चढ़ने वाली सैकड़ों चींटियाँ गिनना शुरू किया। उसने बाहर पेड़ को देखा और उसे उसकी पत्तियाँ बिलकुल सही लगीं। सही पत्तियों की परछाईं भी सही होती है। मन ही मन मोरू ने स्कूल के अहाते की दीवार में टूटी ईंटों की संख्या गिनी। उसने हिसाब लगाया कि अगर हर ईंट की कीमत पाँच रुपये है तो सारे छेद भरने में एक हज़ार से ज़्यादा रुपये लगेंगे।"
मोरू एक पहेली
"मोरू फिर से स्कूल में था। इस बार वह बहुत कुछ सीख रहा था। और उससे भी बड़ी बात यह थी कि उसे पढ़ना-लिखना अच्छा लग रहा था।"
मोरू एक पहेली
"कल रात उन्हें नींद नहीं आई थी और न उसकी पिछली रात। न ही उससे पहले कुछ तीस रात। उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की। मगर वाक्य अस्पष्ट हो रहे थे!"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"चींटी कुछ दूर रहती थी पर और कोई उपाय न होने की वजह से गौरैया उसके पास गई।"
गौरैया और अमरूद
"झटपट अमरूद खाने के इरादे से एक जगह जाकर बैठ गई। अमरूद पर एक चोंच ही मारी थी कि उसे सिर पर भारी चोट महसूस हुई। आँखों के आगे अँधेरा छा गया और वह गिर पड़ी। यह कैसे हुआ? जब उसने अमरूद खाना शुरू कि या था उसी समय एक कौआ एक लकड़ी के टुकड़े करे चोंच में दबाकर उड़ रहा था। वह लकड़ी का टुकड़ा उसकी चोंच से निकलकर गौरैया की खोपड़ी पर गिर पड़ा। बस, यहीं पर कहानी खतम!"
गौरैया और अमरूद
"मीमी एक छोटी सी लड़की थी जो एक भीड़-भाड़ वाले शहर में रहती थी।"
कहानियों का शहर
"शाम होने वाली थी और वह परेशान था।"
कहानियों का शहर
""इम्मा..." लांगलेन कुछ कहने वाली थी कि इम्मा ने उसे चुप कर दिया - "श...! धीरे, " इम्मा बोलीं।"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?