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Storybook paragraphs containing word (470)

"उस मोटे राजा के पास एक पतला कुत्ता था। एक दिन मोटा राजा और उसका पतला कुत्ता  सैर करने गए।"
एक था मोटा राजा

"कुत्ते ने एक चिड़िया को देखा। वह कुत्ता उस चिड़िया के पीछे दौड़ा।"
एक था मोटा राजा

"पापा ने चिन्टू के लिए फ़ैंसी चश्मे खरीदे। माँ ने मेरे लिए एक चमकती नीली टोपी खरीदी और मुन्नी को मिली टॉफ़ी।"
चाँद का तोहफ़ा

"मेरी टोपी एक पुराने पीपल के पेड़ की डाली पर जा लटकी।"
चाँद का तोहफ़ा

"अगले दिन, स्कूल के बाद, माँ ने मुझे एक नई चमकती लाल टोपी दी।"
चाँद का तोहफ़ा

"“वह रोशनी कैसी?” वह चकित हुआ। एक छोटी सी रोशनी उड़ती हुई उसके पास आई।"
सो जाओ टिंकु!

"“मैं एक जुगनू हूँ,” जुगनू ने कहा। “मैं अँधेरे में चमकता हूँ!”"
सो जाओ टिंकु!

"“मैं एक लोमड़ी हूँ।” लोमड़ी ने कहा। “मैं रात को टहलने निकलती हूँ।”"
सो जाओ टिंकु!

"“मैं एक झींगुर हूँ।” झींगुर बोला।"
सो जाओ टिंकु!

"अर्जुन के तीन पहिये थे, एक हेड लाइट थी और एक हरे-पीले रंग का 
कोट भी था।
 दिल्ली के बहुत बड़े परिवार का वह एक हिस्सा था। जहाँ-जहाँ अर्जुन जाता, उसको हर जगह मिलते उसके रिश्तेदार, भाई-बहन, चाचा-चाची, मौसा-मौसी, वे सभी हॉर्न बजा बजाकर कहते, “आराम से जाना।”"
उड़ने वाला ऑटो

"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
 वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
 शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो

"लेकिन अर्जुन जानता था कि यह तो बस एक सपना है। ऑटो में हेलिकॉप्टर के पंख होना तो ठीक ऐसा था जैसे हाथी के पंख निकल आना, या फिर रॉकेट की तरह अंतरिक्ष में ढेर सारे डिब्बों वाली ट्रेन का होना।"
उड़ने वाला ऑटो

"गर्मी के दिन थे, भीड़-भाड़ वाले एक चौराहे पर अर्जुन खड़ा इंतज़ार कर रहा था। शिरीष जी के पीछे अधेड़ उम्र की सुरमई बालों वाली, पुरानी सी साड़ी पहने एक औरत बैठी थी।"
उड़ने वाला ऑटो

"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो

"“हम सबको और क्या चाहिए? थोड़ा-सा ज़ादू,” उस औरत ने कहा। बच्चे को कुछ रुपये देकर उसने दो बोतलें खरीद लीं। उसने एक बोतल शिरीष जी को दे दी।"
उड़ने वाला ऑटो

"“फट फट टूका, टूका टुक” करते हुए वह आगे बढ़ा और अपने एक भाई को मुस्करा कर कहा, “हेलो!”"
उड़ने वाला ऑटो

"शिरीष जी ने शीशे में खुद को देखा तो उन्हें एक हीरो जैसा चेहरा दिखाई दिया। उनके दाँत बिलकुल स़फेद और शरीर चमक रहा था। जोश में चिल्लाकर उन्होंने कहा, “हमें और पानी पीना चाहिए!”"
उड़ने वाला ऑटो

"उसकी जानी-पहचानी दुनिया में हर सफ़र का एक मक़सद था, हर मंज़िल के आगे एक नई मंज़िल थी।"
उड़ने वाला ऑटो

"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद 
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
 अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
 एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो

"“ध्यान से जाना भाई,” सड़क के नुक्कड़ से उसके एक भाई ने कहा।"
उड़ने वाला ऑटो

"ऊपर की एक खिड़की से उस औरत के नाती-नातिन ने हाथ हिलाया। ऑटो से नीचे उतर कर उसने शिरीष जी को किराया दिया।"
उड़ने वाला ऑटो

"हर सफ़र एक नया सफ़र, कभी न खत्म होने वाले एक लम्बे सफ़र का अनोखा हिस्सा।"
उड़ने वाला ऑटो

"जब उसे एक बड़ा सा जहाज़ दिखाई दिया पिशि ने गोता लगाया। उसके दोस्त तितर बितर हो गए।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"बादल गरजे और बिजली कड़की। पिशि ने सुध बुध खो दी। सागर बिलकुल काला पड़ गया। एक बड़ी सी लहर ने पिशि को जहाज़ के नीचे धकेल दिया। आह! उसके पेट पर घाव हो गया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में

"हमारी थालियों और हमारे दिमाग में हलवा-पूरी, खीर-पूरी और श्रीखंड-पूरी की एक ख़ास जगह होती है। छुट्टियों में तो छोले-पूरी या आलू-पूरी सबसे ज़्यादा पसंद किये जाते हैं। पूरी तलने की ख़ुशबू सब को अपनी ओर खींचती है। कढ़ाई में तैरती पूरी को देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। ज़रा उस सुनहरे रंग की करारी, गर्मागर्म फूली-फूली पूरी को तो देखिये। थाली में रखते ही सबसे गोल और सबसे फूली पूरी को लेने की हम कोशिश करते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"आटे में जैसे ही पानी डाला जाता है, यह अणु उसे पी लेते हैं। वे पानी पीने के बाद बड़े और मोटे हो जाते हैं। वे फैल जाते हैं। ज़ाहिर है कि उनके पास आराम से बैठने के लिये जगह नहीं होती है – इसलिए वह एक दूसरे को छूते हैं और धक्कामुक्की करते हैं। वे एक दूसरे से चिपक जाते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"कभी-कभी खेलते समय आप भी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक क़तार बनाते हैं और फिर वह पूरी क़तार ही एक साथ चलती है। उसी तरह कण भी एक दूसरे के साथ चिपक कर एक नेटवर्क सा बना लेते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"इस में एक राज़ छिपा है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"जब हम आटे को गूँधते हैं तो एक दूसरे से चिपके कण, फैलने लगते हैं और फिर इस तरह फैलने के बाद एक नया प्रोटीन बन जाता है, जिसे कहते हैं ग्लूटेन। ग्लूटेन, रबर की तरह लचीला होता है, इसलिए गूँधे हुये आटे को हम कोई भी आकार दे सकते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"इस गूँधे हुये आटे को अम्मा थोड़ी देर के लिये एक तरफ़ रख देती हैं। अब वह खीर बना रही हैं जैसे ही वह पूरियाँ बेलना शुरू करेंगी, हम वापिस आ जायेंगे।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अम्मा और बाबा दोनों तैयार हैं। अम्मा ने कढ़ाई चढ़ा (फ्राई पैन चढ़ा) कर उस में थोड़ा तेल डाल दिया है। वह गूँधे हुये आटे से थोड़ा सा आटा लेती हैं। अब वह एक पूरी बेल रही हैं। गर्म तेल में पूरी को डालते हैं। थोड़ी देर में पूरी फूल जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"दर असल पूरी के साथ यह होता है - गूँधे हुये आटे में ग्लूटेन होने की वजह से उसे बेला जा सकता है। जब इस आटे की एक छोटी सी लोई को बेला जाता है तो पूरी में ग्लूटेन की एक सतह बन जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"बाबा अब पूरी को पलट देते हैं ताकि वह दूसरी तरफ़ से भी सुनहरी हो जाये। उन्होंने कढ़ाई से पूरी निकाल ली है और उसे एक बर्तन में रख दिया है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अब एक कांटे की मदद से पूरी में एक छेद करते हैं। देखा, भाप कैसे बाहर निकल रही है। फूली हुई पूरी में हवा नहीं होती। उसमें भाप होती है, समझ गये!"
पूरी क्यों फूलती है?

"कभी-कभी पूरी को बेलने के बाद उस में जानबूझ कर एक कांटे से छोटे-छोटे छेद किये जाते हैं ताकि तलते समय जो भाप बने वह छेद से बाहर निकल जाये। इसी वजह से पूरी फूल नहीं सकती।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अब फिर इसे एक बड़े बर्तन में रख देते है अब बर्तन के अंदर रखे गूँधे आटे पर इतना पानी डालते है जिससे वो उसमे डूब जाए। पानी के अंदर डूबे आटे को गूँधते रहते है जब तक पानी का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता। इस पानी को फैक कर बर्तन में थोड़ा और ताजा पानी लेते है इसे तब तक करते रहे जब तक गुँधे आटे को और गूंधने से पानी सफ़ेद नहीं होता। इसका मतलब यह है कि आटे का सारा स्टार्च खत्म हो गया है और उसमें बस ग्लूटेन ही बचा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्च पानी में घुल जाता है लेकिन ग्लूटेन नहीं घुलता। अब इस बचे हुए आटे यानि ग्लूटेन से थोड़ा सा आटा लेते है इसे हम एक रबड़बैंड कि तरह खीच सकते है। अगर इसे खीच कर छोड़ते है तो यह वापस पहले जैसा हो जाता है। इससे इसके लचीलेपन का पता चलता है आप इसे चोड़ाई में फैला सकते है इससे पता चलता है कि इसमें कितनी प्लाटीसिटी है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"मधुमक्खियाँ एक बहुत फायदे के काम के लिए भी भन-भन करती हैं; वे पराग यानि छोटे-छोटे भुरभुरे दानों को एक फूल से दूसरे तक ले जाती हैं, जैसे कोई डाकिया चिट्ठियाँ पहुँचा रहा हो।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"2. मधुमक्खियों से जुड़ी एक मजेदार बात आपको बताते है, नन्ही मधुमक्खी के दिमाग की तरह काम करते समय इनका दिमाग बूढ़ा नहीं होता, वो बस किसी नन्ही मधुमक्खी के दिमाग की तरह काम करने लगता है अब आप भी चाहते है न एक मधुमक्खी बनना !"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"3. छत्ता यानि मधुमखियों का घर जैसे इंजीनियरिंग की एक मिसाल होता है! आप को क्या लगता है! छाते की तरह बेहतरीन षट्कोन (हेक्सागोनस) बनाने कि मदद से इसके मॉडल्स बनाइये! 4. तब शायद आपको इसका जवाब मिल जाए और तब आप समझ जाएंगे की अलग अलग फूलों के रस से बने शहद का स्वाद भी एकदम अलग अलग होता है!"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"सरला हड़बड़ा कर खड़ी हुई और बोली, "सॉरी मैडम!" मैं चील को देख रही थी। काश! हम भी चिड़िया की तरह उड़ पाते या फिर एक हवाई जहाज़ की तरह..."
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

""अरे वाह! क्या तुम जानती हो कि भारत की पहली महिला विमान चालक (पायलॉट) का नाम भी सरला था? मेरा नाम हंसा है, मतलब 'हंस'। क्या तुम जानती हो कि हंस भी उड़ने वाले बड़े पक्षियों में से एक हैं? अध्यापिका ने कहा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"सरला ने सीखा कि मानव भी उड़ सकते हैं, पर पक्षियों की तरह नहीं। हम मनुष्य के एक महान आविष्कार, हवाई जहाज़ में बैठकर विश्व के किसी भी नगर से उड़ान भर सकते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"इस महान यंत्र की सहायता से हम हवा में उड़ने का मज़ा ले सकते हैं। पक्षी हवाई जीव होते हैं जिन्हें उड़ने के लिए बाहरी यंत्र की ज़रूरत नहीं होती। आमतौर पर, एक पक्षी के पंख उसके शरीर से बड़े होते हैं। पंख बड़े हल्के होते हैं और इसलिए वे उड़ पाते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"अधिकांश हवाई जहाज़ तभी उड़ पाते हैं जब वे बहुत ही तेज़ी से दौड़ते हैं। रनवे हवाई अड्डा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हवाई जहाज़ों को अपनी गति बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय देता है। और अंत में वे उड़ान भरते हैं।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान जानते हैं कि उन्हें कहाँ जाना है, क्योंकि विमानचालक उन्हें चलाते हैं। ये चालक विमान के अंदर, सामने की एक जगह, जिसे चालक स्थल (कॉकपिट) कहते हैं, से उन्हें नियंत्रित (कंट्रोल) करते हैं। वे बहुत ही सटीक और आधुनिक डिवाइसों के द्वारा हवाई अड्डों (एक जगह जहाँ हवाई जहाज़ उड़ान भरते और उतरते हैं) के संपर्क में रहते हैं। जिस तरह हमारी मदद के लिए सड़क पर सिग्नल और पुलिस होती है, वैसे ही वायु यातायात नियंत्रक (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) होते हैं जो विमान चालक को बताते हैं कि कब और किस ओर उड़ान भरनी है और कब उड़ान भरना या उतरना सुरक्षित रहेगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"विमान वास्तव में एक विशाल पक्षी है! न सिर्फ़ इसका आकार पक्षी की तरह है, बल्कि ये उड़ते भी हैं, हालाँकि पक्षियों की तरह नहीं। सरला बड़ी होकर विमान चालक बनना चाहती है और हवाई जहाज़ उड़ाना चाहती है।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"2. 'फ़्लाइ - डोंट फ़्लाइ' गेम: मित्रों का एक समूह बनाओ और एक -दूसरे को बिना छुए कमरे के चारों तरफ़ जहाज़ की तरह उड़ो। डेन (चोर) एक कोने में खड़ा होकर उड़ने वाली और ना उड़ने वाली चीज़ों के नाम कहेगा। जैसे ही वह किसी ना उड़ने वाली चीज़ (जैसे कि मेज़/टेबुल) कहे तो जहाज़ों को ज़मीन पर उतरना (बैठ जाना) होगा। जो ग़लती करेगा, वह अगला डेन होगा।"
हवाई जहाज़ कैसे उड़ते हैं?

"मुत्तज्जी मुस्कराई, "देखो, मैं इतना जानती हूँ कि मेरे पैदा होने से करीब 5 साल पहले, हिन्दुस्तान भर के महाराजा और महारानियों के लिए दिल्ली में हुई दावत में हमारे महाराजा भी गए थे। एक अंग्रेज राजा और रानी भारत आए थे और तब हमारे महाराजा को सोने का तमगा मिला था।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बड़े दुख से मुत्तज्जी ने कहा, "हाँ, उस साल दशहरे के त्यौहार के समय, हमारे महाराजा ने एक बड़े बांध और उसके पास कई सुंदर बागों का उद्घाटन किया था। लेकिन मै वह सब नहीं देख सकी थी क्योंकि मैं बम्बई में थी।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""जरूरी तो नहीं," पुट्टा ने कहा, "क्योंकि मुत्तज्जी ने यह तो नहीं कहा कि उनका पहला बच्चा, उनकी शादी के 2 साल बाद पैदा हुआ था। उन्होंने तो बस यह कहा कि जिस साल उनकी शादी हुई उसी साल मैसूर में एक बांध बनाया गया था।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"लाइब्रेरी में पुट्टी को मैसूर के इतिहास के बारे में एक किताब मिली।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"उसने झटपट भारतीय रेलवे पर एक किताब निकाली और उसमें दिखाते हुए कहा, "देखो, इसमें लिखा है कि भारत में सबसे पहले इलेक्ट्रिक ट्रेन आई थी, 1925 में बंबई में।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""अज्जा, क्या 1911 के आस-पास कोई विदेशी राजा भारत आया था? ...और उसके लिए एक शाही दावत हुई थी?""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"अज्जा सोचने लगे, "1911... यह तारीख़ इतनी जानी-पहचानी सी क्यो लग रही है? आह! हाँ, उसी साल तो बम्बई में गेटवे ऑफ़ इंडिया बनाया गया था। और वह तो भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश राजा, जॉर्ज (पंचम) के स्वागत में बनवाया गया था। और तब एक नहीं, बल्कि कई बड़ी-बड़ी दावत हुई होंगी!" अज्जा ने ख़ुश होते हुए कहा।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""तुम दोनों तो बहुत बड़े जासूस हो गए हो!" अम्मा मुस्कायीं। "और मुझे लगता है तुम दोनों और मुत्तज्जी की ख़ास दावत होनी चाहिए - यानि एक बड़ा सा केक, गुलाबी आइसिंग और जिसके ऊपर लगा हो एक गुलाब!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"महाराजा महारानी की शानदार दावत (1911) – 1911 में ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज (पंचम) और उनकी पत्नी क्वीन मैरी, भारत में पहली बार आए थे, तब उन्होने 400 से ज्यादा भारतीय महाराजा और महारानियों के लिए एक शाही दावत दी थी, जिसे कहा गया था दिल्ली दरबार। इसमे आए 200,000 मेहमानों की दावत के लिए कई बेकरियों में हर दिन 20000 से ज्यादा ब्रैड बनाई गयी थी और 1000 से ज़्यादा कैटल और बकरों को काटा गया था! बादशाह ने कई भारतीय राजाओं को सोने के मेडल (तमगे) भी दिये थे, जिनमे मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वाडियार (चतुर्थ) भी शामिल थे!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ आ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव आ गया। और कृष्ण राजा सागर (के आर एस) रिसर्वोयर का निर्माण हुआ। आज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"साबरमति में सबको कोई न कोई काम करना होता-खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था-बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसन्द था क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।"
स्वतंत्रता की ओर

"”नमक?“ धनी चौंक कर उठ बैठा, ”नमक क्यों बनायेंगे? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है।“
 ”हाँ, मुझे मालूम है।“ बिन्दा हँसा, ”पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?“"
स्वतंत्रता की ओर

"”हाँ, ठीक बात है,“ कुछ सोचकर गाँधी जी बोले, ”मगर एक समस्या है। अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा? इतना चलने के बाद, मैं तो कमज़ोर हो जाऊँगा। इसलिये, जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे खूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे कि मेरी ताकत लौट आये।“"
स्वतंत्रता की ओर

"क्या? क्या मैंने अभी कहा - 'दातुन'? हाँ, बिलकुल सही! 1870 ई. में वे अपने दाँत साफ़ करने के लिए दातुन का उपयोग करते थे। दातुन एक पतली टहनी को तोड़कर बनाया गया टुकड़ा था जिसका अंतिम सिरा अस्त-व्यस्त सा था। कुछ भाग्यशाली बच्चों के पास दातुन के एक सिरे पर जंगली सूअर के बाल लगे होते थे, जिससे उसमें अलग चमक आती थी।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"यह डॉ. शेफील्ड का बेटा ल्यूसियस था, जिसने अब अपने दातुन को टूथपेस्ट के मर्तबान में डुबाने से इनकार कर दिया और फैसला किया कि वह आगे से दंतमंजन का उपयोग करेगा। लेकिन एक विचार उसके दिमाग में घूमता रहा - टूथपेस्ट के उपयोग का इससे बेहतर कोई तो तरीक़ा होगा!"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"तब एक समस्या सामने आई कि टूथपेस्ट को ट्यूब के अंदर भरा कैसे जाय? तुम ये कैसे करते?"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"कान कली (इयर बड) के उपयोग के लिए सोच रहे हो? या एक बहुत ही छोटा चम्मच? दातुन कैसा रहेगा?"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"आज टूथपेस्ट मशीन से भरी जाती है। सभी ढक्कन लगे खाली ट्यूब नीचे सिरे से क़तार में कन्वेयर बेल्ट से लगे आगे बढ़ते हैं जिनका दूसरा सिरा ऊपर की तरफ़ खुला होता है। एक बड़े बर्तन में टूथपेस्ट भरा होता है जो कन्वेयर बेल्ट के साथ लगा होता है।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"तभी अचानक उन्हें एक धीमी सी, किकियाती आवाज़ सुनाई द‍ी – “हैलो....!”"
आओ, बीज बटोरें!

"“अरे वाह, तुम लोगों ने त‍ो बहुत सारे बीज इकट्ठे कर लिए हैं", बैग देखकर पच्चा ने कहा। "वैसे क्या तुम लोग यह जानते हो कि ऐसे ही इमली के एक छोटे बीज से मैं बना हूँ? और अब मुझे देखो, कितना बड़ा हो गया हूँ। मेरी ढेर सारी शाखाएँ हैं जिन पर बहुत सारी गौरेया, गिलहरियाँ और कौए रहते हैं।“"
आओ, बीज बटोरें!

"“क्या तुम्हारे पास बैग में कोई फल है?“ पच्चा ने पूछा।  टूका ने अपने बैग से एक छोटा, लाल सेब और एक नरम केला निकाला।"
आओ, बीज बटोरें!

"“हां! और हर बीज में अंदर एक नन्हा पौधा होता है जो बाहर आने का इंतजार करता रहता है और दुनिया देखना चाहता है,“ पच्चा ने कहा।"
आओ, बीज बटोरें!

"और सबसे अद्भुत बात यह थी कि इतना बड़ा और महत्वपूर्ण पेड़ एक नन्हे से बीज से बनता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"हैलो! मेरा नाम पच्चा है, मैं एक इमली का पेड़ हूँ। लेकिन मेरे और भी कई नाम हैं। हिंदी में मुझे इमली, तमिल में पुली और बंगाली में तेंतुल कहा जाता है। वैज्ञानिक मुझे, टैमरिंडस इंडिका कहते हैं। चलिए मैं आपको अपने कुछ अन्य बीज मित्रों से मिलवाता हूँ। शायद उनमें से कईयों को आपने अपने भोजन की थाली में ज़रूर देखा होगा।"
आओ, बीज बटोरें!

"चावल सामान्य नाम: राइस या चावल। वैज्ञानिक मुझे कहते हैं: ऑरिज़ा सटाईवा। चावल, सबसे लोकप्रिय अनाजों में से एक है। जहां तक मुझे मालूम है, भारतीय घरों में अन्य अनाजों की तुलना में चावल सबसे ज़्यादा खाया जाता है। जब चावल पौधे पर लगा होता है तो उसके दानों पर जैकेट की तरह एक खुरदुरा, भूरे रंग का छिलका होता है जिसके कारण इसके दाने अंदर सुरक्षित और साबुत बने रहते हैं।"
आओ, बीज बटोरें!

"बनारस वाली शुभा मौसी ने मुझे कुछ सुंदर गीत सिखाए हैं। इन गीतों को कजरी कहते हैं। क्या आपको मालूम है कि सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रसिद्ध गायक थे मियाँ तानसेन? कहा जाता है कि वो “मियाँ की मल्हार” नाम का एक राग गाते थे तो वर्षा आ जाती थी। मैं भी संगीत सीखूँगी-शास्त्रीय संगीत।"
गरजे बादल नाचे मोर

"मनु ने बड़े वाले पेड़ से एक झूला बाँधा है और मैं अभी झूलना चाहती हूँ। झूलते हुए बारिश की ठंडी फुहार मेरे मुँह पर पड़ेगी।"
गरजे बादल नाचे मोर

"“संयोग से वहाँ आकाश में एक बैंगनी विमान उड़ता दिखाई दिया।"
तारा की गगनचुंबी यात्रा

"कीड़ा बोला घास में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"चिड़िया उड़ी आकाश में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"ट्रेन रुकी देवास में, बोलो एक साँस में ।"
बोलो एक साँस में

"साँप सरकता बाँस में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"खिल गए फूल पलाश में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"मच्छर कान के पास में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"फिरें जुगनू तलाश में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"सिक्के गिरे गिलास में, बोलो एक साँस में।"
बोलो एक साँस में

"कूदा कोई कपास में, तो क्या बोलें एक साँस में ?"
बोलो एक साँस में

"आज, मैं एक अंतरिक्ष यात्री हूँ।"
आज, मैं हूँ...

"आज, मैं हूँ एक शिल्पकार।"
आज, मैं हूँ...

"आज, मैं हूँ एक क्रिकेट खिलाड़ी।"
आज, मैं हूँ...

"आज, मैं हूँ, एक वनस्पति शास्त्री।"
आज, मैं हूँ...

"मैंने एक नए प्रकार के पौधे की खोज की है।"
आज, मैं हूँ...

"आज, मैं हूँ, एक नगाड़ा बजाने वाली।"
आज, मैं हूँ...

"मलार आज एक बहुत-बड़ा सा घर बनाने वाली है!"
मलार का बड़ा सा घर

"मलार ने गिलासों को एक के ऊपर एक रखना शुरू किया।"
मलार का बड़ा सा घर

"मलार ने गिलासों को उठाया और फिर से एक के ऊपर एक रखना शुरू किया।"
मलार का बड़ा सा घर

"- अपनी रसोई से एक गोल बर्तन"
मलार का बड़ा सा घर

"हम सब अपने-अपने घर, एक विशाल से घर के अंदर बनाते हैं। वह घर है हमारी पृथ्वी!"
जीव-जन्तुओं के घर

"मैं एक गैंडा हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?

"मैं एक मगरमच्छ हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?

"मैं एक जिराफ़ हूँ।"
हमारे मित्र कौन है?

"हर दिन, उसके पिता अन्य पक्षियों को पकड़ने में मदद करने के लिए एक पक्षी को जंगल में ले जाते हैं।"
बंटी और उसके गाते हुए पक्षी

""मेरा भी है अब एक दोस्त, अब मैं नही अकेला,"
सूरज का दोस्त कौन ?

"कप्तान राजू ने अपने जेट विमान को तेज़ी से बाईं ओर मोड़कर, एक क्षण मात्र से उसे आइफल टॉवर से टकराने से बचा लिया।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"राजू पहली बार हवाई-अड्डे के अंदर आया था। उस चौड़े-बड़े से पट्टे पर रखने में अम्मा की मदद की जो सामान को एक मशीन के अंदर ले जा रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"इसे अंग्रेजी में कन्वेयर बेल्ट कहते हैं। वर्दी पहने हुई, एक बहुत कठोर दिखने वाली महिला, मशीन के पीछे रखी स्क्रीन में देख कर सामान की जाँच कर रही थी। राजू स्क्रीन को देखकर हैरान रह गया। स्क्रीन में तो अटैची के साथ-साथ उसमें रखा सामान भी दिख रहा था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"आखिरकार राजू एक बड़े से हॉल में पहुँचा जिसकी दीवारे काँच की थीं। वह बाहर खड़े बहुत सारे हवाई जहाज़ देख पा रहा था।एक हवाई जहाज़ उड़ान भरने को तैयार था।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"तभी राजू ने देखा कि लोग गेट नंबर 8 के पास एक कतार में खड़े हो रहे हैं। "वह हमारा गेट है अम्मा। जहाज़ पर चढ़ने का समय हो गया।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"तभी स्पीकर में से एक आवाज़ आई… जानी-पहचानी आवाज़।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा

"गुड़हल (जवाकुसुम) के फूल में तंतु होते हैं, जो संख्या एक जैसे होते हैं।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"बांग्ला भाषा में एक ১"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"तितलियाँ! मुझे दिख रही हैं लाल,हरी और पीली तितलियाँ! अरे एक छोटी तितली मेरी अंगुली पर बैठी है! क्‍या आप को वह दिख रही है?"
तितलियां

""यह एक फिसलपट्टी है," माँ कहती हैं।"
टुमी के पार्क का दिन

""चलो एक नया रेत का किला बनाते हैं" टुमी ने कहा।"
टुमी के पार्क का दिन

""मैं गोगो के लिए एक फोटो लेती हूँ" माँ ने कहा."
टुमी के पार्क का दिन

"खेलों के मैदान में, मैं एक गेंद के रूप में हूं, और कई और खेल मैं भी!"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"और फिर भी एक जगह है जहां मुझे स्वागत नहीं है।"
ग़ोलू एक ग़ोल कि कहानी

"रविवार के दिन, माँ-बाबा ने मनु को एक लाल रंग की बरसाती ख़रीद कर दी।"
लाल बरसाती

"“आज नहीं बेटा! आज तो आसमान मे स़िर्फ एक नन्हा सफ़ेद बादल है,” माँ बोलीं।"
लाल बरसाती

"परवेज़ ने उसका हाथ पकड़ा और दोनों ने एक साथ छलांग लगा कर पार कर लिया।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“मुझे तो एक कोयल उस डाल पर बैठी दिख रही है!” उमा ने इशारा किया।"
कोयल का गला हुआ खराब

"“स्स्स्टेल्ला, मैंने क्क्कोयल को सससुना!” एक बार में एक एक शब्द बोला उसने।"
कोयल का गला हुआ खराब

"सभी के कान एक जैसे नहीं होते"
कोयल का गला हुआ खराब

"- जो लोग पूरी तरह से बधिर होते है, वो कुछ भी नहीं सुन सकते। परवेज़ आँशिक रूप से नहीं सुन सकता है। इसलिए उसे शीला मिस जैसी एक विशेष शिक्षक की ज़रूरत है जो उसे संकेत की भाषा, होंठों को पढ़ने और संवाद करने के अन्य तरीके सीखने में मदद कर सके।"
कोयल का गला हुआ खराब

"अचानक एक डाॅल्फ़िन ने उसके आगे पानी से बाहर छलाँग लगाई।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"उसे किनारे के पास पत्थर पर एक घोंघा दिखाई दिया।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"वहाँ घूम-घूम का एक बुज़ुर्ग घड़ियाल से सामना हुआ।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"उसने एक बड़ा सा साया अपनी ओर बढ़ते देखा। वह उसके पापा थे।"
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

""मैं एक अनोखे और मज़ेदार सफ़र पर गई थी, पापा!" घूम-घूम ने खिलखिलाकर कहा और बोली - "और कल फिर मुझे जाना है!""
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र

"हमारी ही तरह वह भी ज़्यादातर बढ़िया खाने और रहने की आरामदेह जगह या प्यार करने वाले परिवार की तलाश में एक से दूसरी जगह घूमते-फिरते हैं। कभी-कभी वे अपने उन दुश्मनों से बचने के लिए भी घूमते-फिरते हैं जो उन्हें पकड़ कर खा सकते हैं।"
सत्यम, ज़रा संभल के!

"यह एक नए दिन की शुरुआत थी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"एक गोजर एक बड़े से भूरे पत्ते के भीतर"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"अपनी हड़बड़ाहट में वह एक बड़े पत्थर"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“हे ईश्वर! ओह!! मेरा एक पैर टूट गया!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"पास ही एक नन्ही गौरैया दाना चुग रही थी।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“अरे तुमने एक पैर तोड़ लिया? अगर मेरे पास इतने पैर होते तो मैं भी एक तोड़ लेती! देखो! देखो मुझे!! मेरे दो पैर हैं। एक दूसरे के साथ चलते है। कोई परेशानी नहीं! आसान!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“अगर एक टूट भी गया तो उसकी इतनी परवाह क्यों करती हो। बंद करो ये सब नाटक!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"“मेरा एक पैर टूट गया और मुझे तकलीफ़ हो रही है।"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"अट्ठावन... ब्यानवे... एक सौ पंद्रह..."
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"मेरा एक सौ सैंतीसवाँ पैर!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"लटकती जड़ों वाला एक बरगद का पेड़ बड़ा है,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"हर कहीं, हर एक पेड़ की अपनी अहमियत है,"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"हर एक पेड़ की बात निराली है!"
हर पेड़ ज़रूरी है!

"वह एक ख़ास चमकीले स्याही वाले कलम या पैन से लिखता है।"
जादुर्इ गुटका

"अचानक, रिंकी को एक उपाय सूझा।"
जादुर्इ गुटका

"कहानी में जादुर्इ गुटका एक छड़ चुंबक है। चुंबक कर्इ आकारों के होते हैं। वे गोल, आयताकार, चौकोर या"
जादुर्इ गुटका

"तीन झींगुर उसकी मदद करने के लिए आगे बढ़े। फिर नारियल वाले मोटू भँवरे ने अपने दोस्तों को गिनना शुरू किया, “एक, दो, तीन, चार! चार तो एक सम संख्या है!”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"“मेरे नौ दोस्त मेरी मदद करने के लिए यहाँ हैं। नौ एक विषम संख्या है।”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"“अरे वाह, यह तो पूरे सोलह हैं! सोलह एक सम संख्या है।”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!

"तभी उसकी नजर एक मोमबत्ती पर पड़ी। वह उसकी ओर गया।"
मेंढक की तरकीब

"किनारे पर एक मोमबत्ती लगाई। फिर उसे जला दिया।"
मेंढक की तरकीब

"रोज़ स्कूल से आई, एक नया विचार लाई!"
रोज़ और रॉकी चले कम्पोस्ट बनाने

"दौड़ के पहुँचे पिछवाड़े, खोदा एक गड्ढा।"
रोज़ और रॉकी चले कम्पोस्ट बनाने

"टप! बारिश की एक बूँद द्रुवी के सिर पर गिरती है।"
द्रुवी की छतरी

"‘मुझे एक छतरी चाहिए,’ द्रुवी सोचती है।"
द्रुवी की छतरी

"‘पपीते के पेड़ के पत्तों से एक प्यारी छतरी बन सकती है,’ द्रुवी सोचती है।"
द्रुवी की छतरी

"वह एक पौधे के नीचे ठहरती है मगर उसके पतले से पत्ते मुड़ जाते हैं!"
द्रुवी की छतरी

"वह एक पत्ते के नीचे छिप जाती है।"
द्रुवी की छतरी

"अंडों पर एक कुत्ता लेटा था।"
कुत्ते के अंडे

"एक बड़े शहर के किनारे कुछ बच्चे रहते थे। उनके घर के नज़दीक एक बड़ा मैदान था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"घूमते फिरते बच्चों की तरफ ताकते हुए वह एक जगह पर बैठ गई।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"चलो दीदी की जगह को ख़ूबसूरत बनाएं। बच्चे कचरे से एक कुर्सी-टेबल ले आए।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"एक दिन उन्हें दीदी का पता किताब में मिल गया। बच्चे तुरंत दीदी की खोज में निकल पड़े। साथ में किताबों का थैला उठाना नहीं भूले। खोजते खोजते बच्चों ने एक बस का नंबर पढ़ लिया। चलते चलते उस सड़क का नाम समझ लिया। क्योंकि दीदी ने उन्हें सब सिखाया था।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"खोज खोज कर बच्चे परेशान हो गए। थक कर वापस जा ही रहे थे कि किसी ने एक लाल दुपट्टा देखा।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"बच्चे दौड़ कर वहाँ पहुंच गए। दीदी को एक दम गले लगाया।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"‘‘घास!’’ माँ और बाबा एक साथ बोले।"
एक सफ़र, एक खेल

"‘‘मुझे एक लम्बा सा जानवर दिख रहा है जिस पर भूरे रंग के धब्बे हैं,’’ बाबा ने कहा।"
एक सफ़र, एक खेल

"बाबा और माँ ने एक कंबल सीट पर बिछाया। फिर हवा वाले एक तकिये को फूंक कर फुलाया।"
एक सफ़र, एक खेल

"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अपनी प्रजाति का वह आखिरी जीव था और सैकड़ों वर्षों से यह प्रजाति विलुप्त मान ली गयी थी। लोग नहीं जानते थे कि उस प्रजाति का जीवित अवशेष, जो एक को छोड़ अपने बाकी सारे पंख गँवा चुका था, अब भी अधनिया के जंगलों में विचरता था। गजपक्षी और गाँव वाले एक दूसरे से एक सुरक्षित दूरी बनाये रखते थे। पर मुनिया नहीं। हालाँकि चलते समय वह लँगड़ाती थी, लेकिन थी बड़ी हिम्मत वाली। अक्सर वह जंगल में घुस जाती और एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी को देखने के लिए झील पर जाया करती थी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"दिन के समय वह गजपक्षी झील के पास आया करता या तो धूप तापने या फिर झील में पानी छपछपाते हुए अकेला खुद से ही खेलने। कभी-कभी वह पानी में आधा-डूब बैठा रहता और बाकी समय उसका कोई सुराग़ ही न मिलता। तब शायद वह घने जंगल के किसी बीहड़ कोने में बैठा आराम कर रहा होता। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी एक पेड़ जितना ऊँचा था। उसकी एक लम्बी और मज़बूत गर्दन थी, पंजों वाली हाथी समान लम्बी टाँगें थीं और भाले जैसा एक भारी-भरकम भाल था। उसके लम्बे-लम्बे पंजे और नाखून डरावने लगते थे।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"पर मुनिया जल्द ही यह जान गयी कि वह शर्मीला और घासफूस खाने वाला एक शान्त पक्षी है। वह बस झील के किनारे लगे पौधे और पत्तियाँ चबाता रहता। मुनिया को महसूस हुआ कि उसमें और उस गजपक्षी में कुछ समानता है। सही तो है, विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उड़ नहीं सकता था और मुनिया दौड़ नहीं सकती थी! गाँव के बाकी सारे बच्चे उसके लँगड़ाने का मज़ाक उड़ाते और अपने खेलों में उसे शामिल न करते। इसलिए उसे अकेले रहना ही अच्छा लगता।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"इससे पहले कि वह खुला मैदान पार कर पाती, कोई गोलाकार चीज़ उसके पाँवों से आ टकरायी। उसे देखने के लिए वह रुकी। किसी पेड़ का वह एक खोखला गोलाकार फल था। विशाल गजपक्षी खेलना चाहता था! फलनुमा गेंद पकड़ने के लिए उसने अपना एक पंजा ऊपर किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"इस प्रकार मुनिया की दोस्ती गजपक्षी से हो गई। अन्ततः जब उसे एक दोस्त मिला भी तो नटखट घोड़ा ग़ायब हो गया!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“तो... फिर जंगल ही में किसी ने उसे खा लिया होगा,” गाँव के मुखिया को सम्बोधित करते हुए एक हट्टा-कट्टा नौजवान बोला।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“सही है, इधर बरसों की आराम की ज़िन्दगी ने उसे ख़तरनाक बना दिया है,” मुनिया के पिताजी ज़ोर देकर बोले। “आज एक घोड़ा गया है, कल को हमारे बच्चों की बारी हो सकती है...”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"इस पर मुखिया गाँव वालों की गुस्सैल आवाज़ों से भी ऊँची आवाज़ में बोला, “भाइयों, यह बात सही है कि हमारा सामना एक राक्षस से है, लेकिन हमारे पास संख्या की शक्ति है। इसलिए आइये इकट्ठे हो अपनी हिम्मत बाँध उसे ख़त्म करें!” बदले में एक सहमति भरी हुंकार गूँज उठी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“लेकिन उस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी ने घोड़ा नहीं खाया,” मुनिया ने लँगड़ाते हुए आगे बढ़कर बहुत धीमे स्वर में कहा। “जिस वक्त घोड़ा ग़ायब हुआ, उस वक्त मैं उसके साथ वहीं पर थी!” समूची सभा में एक गहरा सन्नाटा सा छा गया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"व्हूऊऊऊ... जंगल की फ़िज़ा में उल्लू की आवाज़ गूँज रही थी। दूर से एक सियार के गुर्राने की आवाज़ आयी। यूँ लगता था जैसे पेड़ों की छायाएँ अपनी काली-काली उँगलियाँ लहरा रही हों।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मुनिया एक पल को तो ठिठकी पर अगले ही पल उसे जंगल में आराम से सोते उस महाकाय का ख़याल आया। वह अगर नहीं गयी तो वह शायद अगली रात भी न देख पाये। एक गहरी साँस लेकर उस आधी रात को ही जंगल से होकर चन्देसरा जाने वाले रास्ते पर लँगड़ाते-लँगड़ाते चल पड़ी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"लम्बी दाढ़ी और हल्के कूबड़ वाला एक आदमी अपने हाथ में नटखट की लगाम थामे नज़र आया। “क्या हो रहा है?” उसने अपना सवाल दोहराया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“जैसा कि आप जानते हैं, कुछ साल पहले मैंने नटखट को बेच दिया था। कल मैं नटखट के भाइयों - बाँका और बलवान के द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में सवार आपके गाँव से गुज़र रहा था। मुझे नहीं मालूम कि किस तरह से नटखट अपने आपको छुड़ा हमारे पीछे-पीछे भागकर चन्देसरा चला आया। मैं उसे पहचान न सका और यह समझ न पाया कि इसका करूँ तो करूँ क्या। फिर आज सुबह मैंने इस नन्ही-सी बच्ची को एक झोंपड़ी से दूसरी झोंपड़ी जाते और एक गुमशुदा घोड़े के बारे में पूछते हुए देखा। लेकिन या इलाही ये माजरा क्या है?” तीसरी बार उसने अपना वही सवाल किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"यह कहानी एक वास्तविक गजपक्षी से प्रेरित है। इस विशाल पक्षी, एलिफेंट बर्ड, को वैज्ञानिकों ने एपियोरनिस मेक्सिमस का नाम दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी था और मेडागास्कर के द्वीपों में पाया जाता था। वनों के नष्ट होने और आबादी बढ़ने से ये विशाल पक्षी 1700 ई. के आस-पास लुप्त हो गए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"मैं एक क़दम चलती हूँ। मैं दूसरा क़दम बढ़ाती हूँ। मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ।"
स्कूल का पहला दिन

"सोना ने पापा के एक कान के पीछे से पेन्सिल निकाली, और दूसरे कान के पीछे से रील।"
सोना सयानी

"जब गर्मी पड़ती है तो हम एक पंखा चला लेते हैं।"
मेरा घर

"अगले दिन सुबह-सुबह एक मक्खी उसकी नाक में जा बैठी।"
भीमा गधा

"साथ में आज माँ का एक नया गाना।"
चुन्नु-मुन्नु का नहाना

"नन्ही ने सलेट और चॉक उठाई। वह एक लम्बी रेलगाड़ी बनाना चाहती थी।"
छुक-छुक-छक

"लम्बी रेलगाड़ी के लिए नन्ही ने बनाया, एक बड़ा-सा धुआँ उगलता इंजन।"
छुक-छुक-छक

"बैठे-बैठे नन्ही ने फ़र्श पर एक डिब्बा बनाया। डिब्बे के साथ एक और डिब्बा, फिर एक डिब्बा, फिर एक और... नन्ही बनाती गई।"
छुक-छुक-छक

"मैंने हर एक कमरे में ढूँढा।"
खोया पाया

"मैंनें हर एक किताब के नीचे देखा।"
खोया पाया

"जंगल में एक बाग था।"
सैर सपाटा

"पुताई वाले अपने काम में लगे थे। उनमें से एक सीढ़ी पर था, और दूसरा छत से झूले पर लटक रहा था।"
नन्हे मददगार

"वीना ने फाटक को एक तरफ़ से रंगना शुरू किया। विनय ने दूसरी तरफ़ से।"
नन्हे मददगार

"‘‘आज तुम्हें नाच करवाता हूँ!’’ गप्पू ने एक छिलका फेंक दिया।"
पहलवान जी और केला

"गजानन को एक बीमारी लगी."
कहानी- गजानन गंजे

"माँ और सोना एक साथ काम करने लगे।"
सोना बड़ी सयानी

"मगर बीच में से हल्की सी, एक और आवाज़ आती,"
सोना बड़ी सयानी

"चाचा बोले, "नहीं, सोना, तुम बस ध्यान से देखो।" चाचा ने एक पतीले में रंग और खुशबू डाली।"
सोना की नाक बड़ी तेज

"और बुलाओ एक जना"
सबरंग

"और बुलाओ एक जना।"
सबरंग

"और बुलाओ एक जना।"
सबरंग

"और बुलाओ एक जना।"
सबरंग

"मैं हूँ एक नन्ही-सी बाला"
सबरंग

"मैं हूँ एक नन्ही-सी बाला"
सबरंग

"वह अपनी माँ के साथ एक शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में जा रहा था।"
संगीत की दुनिया

"उसने एक सुन्दर नीला कुर्ता पहना। माँ ने भी नीले रंग की साड़ी पहनी।"
संगीत की दुनिया

"माँ ने मौसी को एक फूलों का गुलदस्ता दिया।"
संगीत की दुनिया

"विवान यह सुनकर बहुत खुश हुआ और वह दोनो मौसी के साथ हाल के पीछे एक कमरे में गये।"
संगीत की दुनिया

"शहर के एक छोटे से बगीचे में पीपल का एक बड़ा सा पेड़ है। उस पेड़ पर गिलहरियों का एक परिवार रहता है। विक्की उस कुनबे का बड़ा ही शेखीमार सदस्य है। उसका चचेरा भाई काटो, दूर जंगल से उससे मिलने आया है।"
नौका की सैर

"“आज हम एक बड़ी नौका में घूमने जायेंगे,” विक्की ने काटो से कहा। काटो घबराया और"
नौका की सैर

"किनारे पर एक नाव बाँस से बँधी हुई थी। वे दोनों उसकी रस्सी खोलने भागे। नौका पर सवार होकर, वे सैर का मज़ा ले रहे थे।"
नौका की सैर

"कुछ ही देर में, नौका नदी में हिचकोले खाती, पेड़ों के बगल से हिलती डुलती आगे बढ़ी। काटो ने बहुत सारी बत्तखों को तैरते हुए देखा। मछलियाँ भी पानी से सिर निकालकर होंठ गोल करके “हैलो” बोलतीं। हंसों का एक जोड़ा भी अपनी लम्बी ख़ूबसूरत गर्दन मटकाते हुए पास से गुज़रा।"
नौका की सैर

"विक्की को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। वह नौका के एक छोर से दूसरे छोर तक कूदता रहा और"
नौका की सैर

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"मुझे लगता है कि नानी के अगले जन्मदिन पर एक और ऐनक खरीदने के लिए मैं पैसे जमा कर लेती हूँ।"
नानी की ऐनक

"अचानक मेरे सिर पर बारिश क़ी एक बूंद गिरती है,जब मैं आसमान की ओर देखता हूँ बूँदों क़ी झड़ी लग जाती है।"
बारिश हो रही छमा छम

"एक दिन सारे जानवर एक साथ इकट्ठा हुए।"
जंगल का स्कूल

"मिंकू बंदर बोला, “हमारे जंगल में एक स्कूल है।”"
जंगल का स्कूल

"मिंकू एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते हुए गया।"
जंगल का स्कूल

"धीमे ने कहा, “मुझे एक झूला मिला है।”"
जंगल का स्कूल

"मोटे और लम्बू को एक कमरा दिखा।"
जंगल का स्कूल

"तभी उन्हें एक दहाड़ सुनाई दी।"
जंगल का स्कूल

"फिर एक और ऊँची गरज।"
जंगल का स्कूल

"उसके बाद एक और ज़ोरदार गरज।"
जंगल का स्कूल

"सब टीचर की ओर देख रहे थे।
 ऊपर-नीचे, बड़े ही ध्यान से।
 फिर उन्होंने एक दूसरे की ओर देखा।"
जंगल का स्कूल

"और एक लाल रंग की पानी की बोतल।"
चाचा की शादी

"मेरे दादाजी के पास एक छोटा सा थैला है।
 उनके पास एक छड़ी भी है।"
चाचा की शादी

"हर सुबह, जैसे ही उसके पापा दाढ़ी बनाना शुरू करते हैं, अनु भी उनके पास आकर बैठ जाती है। बड़े ध्यान से उन्हें दाढ़ी बनाते हुए देखती है। उसके पापा अपनी दो उँगलियों में एक छुटकू-सी कैंची पकड़े, कच-कच-कच... अपनी मूँछों को तराशने में जुट जाते हैं।
 और अनु है कि कहती जाती है, “थोड़ा बाएँ... अब थोड़ा-सा दाएँ... पापा नहीं ना! आप अपनी मूँछों को और छोटा मत कीजिए!
 आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे कट्टी हो जाऊँगी!”"
पापा की मूँछें

"पापा जब नहा कर बाहर निकलते हैं तो अनु एक छोटी कंघी से बड़ी सफ़ाई से उनकी मूँछों के बाल काढ़ती है।"
पापा की मूँछें

"अनु हमेशा सोचा करती है, पापा अगर एक अच्छा कुरता पहन लें, सिर पर एक पगड़ी रख अपनी कमर पर एक तलवार लटका लें और एक घोड़े पर सवार हो जायें, तो कितने शानदार लगेंगे पापा!"
पापा की मूँछें

"ठीक एक चश्मे वाले सैनिक की तरह!"
पापा की मूँछें

"ये मोटी-मोटी मूँछ है उनकी! मूँछें काढ़ने के लिए उन्हें एक अच्छे-खासे मोटे कंघे की ज़रूरत पड़ती है।"
पापा की मूँछें

"तुती के पापा टेनिस बहुत अच्छी खेलते हैं। लेकिन सच में, उन्हें तो एक पहलवान होना चाहिये था।"
पापा की मूँछें

"वे यदि एक चुन्नट डली पगड़ी पहन लें, और अपने कंधे पर एक बड़ी-सी गदा उठा लें, तो बहुत रौबीले दिखेंगे!"
पापा की मूँछें

"अगर वे एक काला टोप और एक लम्बा काला ओवरकोट पहन लें... अपनी आँखों पर एक काला चश्मा लगा लें, तो वे एकदम उस टीवी वाले जासूस की तरह लगेंगे जो सब चोरों को पकड़ लेता है!"
पापा की मूँछें

"लेकिन सबसे बढ़िया मूँछें तो, पास वाले मकान में रहने वाले उन दादाजी की हैं! ऐसा लगता है मानो एक बड़ा-सा स़फेद बादल आसमान से उतर कर उनकी नाक के नीचे रहने चला आया है! अब उनका मुँह जो है, उस बादल के पीछे छिपा रहता है।"
पापा की मूँछें

"चींटी को रसोई घर में अंकुरित मूँग दाल का एक दाना मिला।"
दाल का दाना

"वहीं उसे एक दूसरी चींटी मिली।"
दाल का दाना

"दोनों ने एक दूसरे का मुँह छुआ। बात की।"
दाल का दाना

"रास्ते में एक औरत झाड़ू लगा रही थी।"
दाल का दाना

"दरवाज़े के पास एक कुत्ता सो रहा था।"
दाल का दाना

"कुत्ते ने एक आँख खोलकर चींटी को देखा।"
दाल का दाना

"बाहर बरामदे के पास एक चूज़ा घूम रहा था।"
दाल का दाना

"इस पुस्तक में चींटी को एक हरा अंकुरित मूँग का दाना मिला। अंकुरित दालें स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी होती हैं। हम किसी भी दाल को भिगो कर अंकुरित बना सकते हैं जैसे राजमा, सफ़ेद चना, काला चना, मटर आदि।"
दाल का दाना

"अलग अलग दालों के बारे में अपने मित्रों से साथ दाल के खेल खेलकर जानिए। घर के किसी बड़े से रसोई से विभिन्न प्रकार की दालों के दाने लेकर देने का अनुरोध कीजिये। उदाहरण के लिए, राजमा, अरहर या तूअर, सफ़ेद चना, सोयाबीन, साबुत मूँग और मटर के दाने। इन सब को एक बड़े कटोरे में डालिये।"
दाल का दाना

"एक खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बाँधिए। उसे दानों को छू कर पहचानना पड़ेगा। देखिये वह कितने दाने सही पहचान पाता है। यह खेल एक और तरह से भी खेला जा सकता है। सभी खिलाड़ी आँखें बंद करके दानों को अलग करने की कोशिश करें और देखें कि इसमें कितने सफल हो पाते हैं।"
दाल का दाना

"एक दिन एक पेड़ की डाल पर बैठी वह अखरोट खा रही थी। अचानक उसकी निगाह अपनी ही पूँछ पर पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ

""क्या किया जाए," चुलबुल सोच में पड़ गई। बहुत सोच-विचार के बाद उसके दिमाग में एक बात आई। क्यों न डॉक्टर बोम्बो भालू के पास चला जाये।"
चुलबुल की पूँछ

"उनके अस्पताल में विभिन्न जानवरों की पूँछ, टाँग, कान अलमारी में सजे हुए थे। जब तक डॉक्टर बोम्बो भालू आते हैं तब तक मैं अपने लिए एक पूँछ ही चुन लेती हूँ।"
चुलबुल की पूँछ

"लेकिन यह क्या? वह तो एक इंच भी पेड़ पर नहीं चढ़ पाई। कई बार उसने कोशिश की, हर बार वह गिर जाती। आखिर थक कर वह बैठ गई।"
चुलबुल की पूँछ

"डॉक्टर बोम्बो ने बन्दर की पूँछ हटा कर बिल्ली की पूँछ लगा दी। "यह पूँछ बन्दर की पूँछ से तो हल्की है," सोचते हुए चुलबुल चल पड़ी। पूँछ की अदला-बदली में वह अब तक बहुत थक गई थी। वह पास के एक पेड़ के पीछे लेट कर आराम करने लगी।"
चुलबुल की पूँछ

"अरे बाप रे बाप! एक बड़ा सा कुत्ता उसकी पूँछ देखकर उसे बिल्ली समझ उसकी ओर दौड़ता चला आ रहा था!"
चुलबुल की पूँछ

"उसके होठों पर एक गीत था।"
चुलबुल की पूँछ

"दुकानदार हमें देखकर मुस्कराया। मैंने एक मोटी किताब खरीदी जिसमें बहुत सी कहानियाँ थीं।"
चलो किताबें खरीदने

"मेरे भाई ने एक बड़ी किताब खरीदी जिसमें बहुत सी तसवीरें थीं।"
चलो किताबें खरीदने

"एक बार घर के अंदर एक चूहा आ गया।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

""घर के अंदर चूहा!" सब एक साथ चिल्ला उठे।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"उसकी दो आँखें, चार पाँव और एक लम्बी पूँछ थी।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

""क्या हुआ दादाजी, आज आप अख़बार क्यों नहीं पढ़ रहे हैं?" एक सुबह गुल्ली ने दादाजी से पूछा।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"अरे, यह क्या! एक बड़ी, चौड़े मुंह वाली कीप।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"जब एक चौकीदार ने उन्हें रोका, चीनू नीचे कूदा। एक खाली बोरी लेकर वह अपने पिता जी के साथ गया। आज उन्हें जो भी सामान मिलेगा वह इस बोरी में भरा जायेगा।"
कबाड़ी वाला

"चीनू दौड़ कर ठेले से एक और खाली बोरी ले आया। वे लिफ्ट में ऊपर जाने वाले थे! चीनू की आँखें बड़ी-बड़ी और गोल हो गईं।"
कबाड़ी वाला

"वहाँ उसे एक तितली मिली।"
उड़ते उड़ते

"वहाँ उसे एक गौरैया मिली।"
उड़ते उड़ते

"वहाँ उसे एक गरूड़ मिला।"
उड़ते उड़ते

"वहाँ उसे एक हवाई जहाज़ मिला।"
उड़ते उड़ते

"वहाँ उसे एक रॉकेट मिला।"
उड़ते उड़ते

"क्योंकि उसके सिर पर हमेशा एक बादल मँडराता।"
कचरे का बादल

"कचरे का एक बादल।"
कचरे का बादल

"फिर एक दिन अम्मा को बहुत गुस्सा आ गया, उसने कहा, "देखना अब यह कूड़ा हमेशा तुम्हारे साथ ही रहेगा!" चीकू हँसती रही।"
कचरे का बादल

"चीकू ने एक झाड़ू लेकर बादल को हटाने की कोशिश की,"
कचरे का बादल

"फिर एक दिन वो गायब हो गया।"
कचरे का बादल

"कभी सोचा है कि जो कचरा हम कूड़ेदान में फेंक देते है उसका क्या होता होगा? नहीं, वह हमारे सिर पर बादल बन कर नहीं मँडराता लेकिन जो भी कचरा हम फेंकते है वो हमारे घर के पास बने बड़े से कचराघर में जमा हो जाता है। सब कुछ एक साथ, सड़ती सब्जियाँ, टॉफ़ी के रैपर, किताबों-कापियों के फटे पन्ने।"
कचरे का बादल

"- छिलका रखने के लिए माँ या पापा से एक छोटा लिफ़ाफ़ा ले जाईये, स्कूल पहुँचने के बाद याद से छिलके को कूड़ेदान में डाल दीजिये।"
कचरे का बादल

"पंजाब के किसी गाँव में गेहूँ के खेतों के पास एक गुलमोहर के पेड़ पर मुन्नी गौरैया अपने घोंसले के पास बैठी थी। अपने तीन अनमोल छोटे-छोटे अंडों की निगरानी करती वह उनसे चूज़ों के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। मुन्नी सुर्ख लाल फूलों को देखती खुश हो रही थी कि तभी ऊपर की डाल पर एक काला साया दिखा। वह गाँव का लफंगा, काका कौवा था। मुन्नी घबराकर चीं-चीं करने लगी।"
काका और मुन्नी

"“ए मुन्नी! परे हट, मैं तेरे अंडे खाने आया हूँ,” वह चहक कर बोला। मुन्नी समझदार गौरैया थी। वह झटपट बोली, “काका किसी की क्या मजाल कि तुम्हारी बात न माने? लेकिन मेरी एक विनती है। मेरे अंडों को खाने से पहले तुम ज़रा अपनी चोंच धो आओ। यह तो बहुत गन्दी लग रही है।”"
काका और मुन्नी

"काका खुद को बहुत बाँका समझता था। उसे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह सा़फ -सुथरा नहीं दिख रहा। वह झटपट पानी की धारा के पास पहुँचा। वह धारा में अपनी चोंच डुबो ही रहा था कि धारा ज़ोर से चिल्लाई, “काका! रुको! अगर तुमने अपनी गन्दी चोंच मुझ में डुबोई तो मेरा सारा पानी गन्दा हो जायेगा। तुम एक कसोरा ले आओ। उस में पानी भरकर अपनी चोंच उसी में धो लो।”"
काका और मुन्नी

"“अजी ओ कुम्हार प्यारे, काका आया पास तुम्हारे एक कसोरा तुम बनाओ जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी

"जिससे बनाये वो एक कसोरा"
काका और मुन्नी

"काका जंगल में जा पहुँचा। उसे नुकीले सींगो वाला एक हिरन दिखा तो वह उससे बोला,"
काका और मुन्नी

"जिससे बनाये वो एक कसोरा"
काका और मुन्नी

"“अजी ओ भैया कुत्ते प्यारे, काका आया पास तुम्हारे आज तुम्हें दावत खिलवाऊँ मोटा-ताज़ा हिरन दिखाऊँ, बस सींग उसका मैं ले लूँगा उससे थोड़ी मिट्टी खोदूँगा मिट्टी कुम्हार को दे दूँगा जिससे बनाये वो एक कसोरा जिसमें मैं पानी भर लाऊँ अपनी गन्दी चोंच धुलाऊँ फिर खा लूँ मुन्नी के अंडे और काँव-काँव चिल्लाऊँ ताकि सभी सुनें और जान जायें मैं हूँ सबसे बाँका सबसे छैला कौवा!”"
काका और मुन्नी

"वो बनाएगा एक कसोरा"
काका और मुन्नी

"जिससे बनाएगा वो एक कसोरा"
काका और मुन्नी

"(Collage) हैं। कोलाज, अलग-अलग चीज़ों के टुकड़ों को जोड़कर एक नयी तस्वीर को बनाने का एक तरीका होता है। यह चीज़ें हाथों से बनी या इस किताब की तरह छपा हुआ काग़ज, अखबार और मैगज़ीन की कतरनें, पुराने कार्ड, छायाचित्र, कपड़ा, रिबन, सूखे फूल या पत्ते, या आसानी से मिल जानेवाली कोई भी चीज़ हो सकती है!"
काका और मुन्नी

"‘कोलाज’ शब्द फ़्रेंच शब्द ‘कोले’ से बना है जिसका अर्थ है- चिपकाना। एक कोलाज बनाने के लिए अलग-अलग चीज़ों, उन्हें काटने के लिए कैंची और फिर उन्हें चिपकाने के लिए ढेर सारे गोंद की ज़रूरत होती है।"
काका और मुन्नी

"तितली मुझको एक मिली।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"एक हाथ में झोला उनके, एक हाथ में छाता।"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"एक गाँव में दो दोस्त घनश्याम और ओम रहते थे। घनश्याम बहुत पूजा-पाठ करता था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि ओम अपने काम पर ध्यान देता था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा खेत खरीदा और सोचा कि मिलकर खेती करेंगे। जो फ़सल तैयार होगी, उसको बेचकर जो रुपए मिलेंगे, उसमें घर बनवाया जाएगा। ओम खेत में दिन-रात खूब मेहनत करता, जबकि घनश्याम भगवान की पूजा प्रार्थना में व्यस्त रहता।"
मेहनत का फल

"एक छोटा-सा गाँव था। वहाँ एक नदी थी।"
मछली ने समाचार सुने

"मछलियों के घर में एक बड़ा-सा रेडियो था। उनकी इज्ज़त इससे और भी बढ़ गई थी।"
मछली ने समाचार सुने

"मछलियों के घर एक बुज़ुर्ग मछली थी जिसका कहना मेंढक और कछुए भी मानते थे। उसे सब दादा कहते थे।"
मछली ने समाचार सुने

"मीठी ईद क्या आई कि लखनऊ में एक मेला-सा लग गया था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"एकएक अज़हर मियाँ रुक गए, “घर पर बैठी हमारी एक और बहन भी तो है जिसने आज नए कपड़े नहीं पहने हैं। हम में से किसी ने भी उसके बारे में सोचा तक नहीं।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के अब्बू के गुज़र जाने के बाद घर में पैसे की किल्लत रहने लगी थी। एक दिन आबिदा ख़ाला उसकी अम्मी से कहने लगीं कि मुहल्ले की औरतों को इकट्ठा करके कढ़ाई का काम शुरू करें।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"तब से मुहल्ले की औरतें हर रोज़ एक समय किसी किसी के यहाँ बरामदे में चारपाई-चटाई पर बैठने लगीं और रेडियो पर गाने सुनते-सुनते कपड़े काढ़ने लगीं। मुमताज़ की ज़िम्मेदारी औरतों को चाय पिलाने की थी जबकि बड़ी-बूढ़ियाँ अपने-अपने पानदान से गिलौरियाँ निकाल कर चबाती रहतीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ अपने घर से दूर तो थी लेकिन परिवार का एक प्यारा-सा हिस्सा उसके पास भी तो था! उसकी प्यारी तोती मुनिया और दो कबूतर-लक्का और लोटन! ये तीनों उसका दिल बहलाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"लखनऊ आकर मुमताज़ को एक और दोस्त मिला-पड़ोस के सब्ज़ी वाले का आठ साल का बेटा, मुन्नु! मुन्नु हर रोज़ अपने पिता के साथ सब्ज़ी-भाजी लिए जगह-जगह फेरी लगाता और अपने ख़ास अंदाज़ में गुहार लगाता, “सब्ज़ी ले लो...ओ...ओ।” हाल ही में उसकी दोस्ती मुमताज़ के साथ हुई थी। हर रोज़ मुमताज़ अपना नाश्ता उसके साथ बाँटती और खाते-खाते दोनों बच्चे लक्का और लोटन के खेल देखा करते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“ऐसा है तो जल्दी से जाओ और अपनी नानी की चादर ले आओ, मैं तुम्हें एक खेल दिखाता हूँ,” मुन्नु रुआब से बोला। उसने मुमताज़ को चाँद पाशा के बारे में बताया। चाँद पाशा एक बीमार, बूढ़ा जादूगर था जिससे मुन्नु की मुलाकात अपने पिता के साथ फेरी लगाते हुई थी। उसने मुन्नु को एक बहुत ही मज़ेदार जादू सिखाया था। मुन्नु चाहता था कि मुमताज़ वह जादू देखकर अपना दुःख भूल जाए।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“अच्छा, अब अपनी आँखें बंद करो और चादर का एक कोना थाम लो। दूसरा कोना मैं पकड़ लेता हूँ। अब एक लंबी साँस लो और खूब अच्छी तरह सोचो कि ऐसी कौन सी चीज़ है जो तुम्हें सबसे ज़्यादा चाहिए,” मुन्नु बोला।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"वे सब किसी दूर, अनजाने शहर में पहुँच गए थे। वहाँ पहाड़ नीले थे, और नीले-नीले आसमान में तरह-तरह के रंगों वाले पंछी उड़ रहे थे। नीचे वादी में फलों से लदे पेड़ और फूलों से महकते बग़ीचे थे। लोटन और लक्का मुमताज़ को लेकर एक फ़िरोज़ी रंग के तालाब के किनारे उतरे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"खुरशीद ने मुमताज़ को वह दुशाला दिखाया जो वे काढ़ रहे थे, “देखो बेटी, मैंने कश्मीर के पंछी और फूल अपने शॉल में उतार लिए हैं। यह है गुलिस्तान, फूलों से भरा बग़ीचा और ये रहीं बुलबुल। यह जो देख रही हो, इसे हम चश्म-ए-बुलबुल कहते हैं यानि बुलबुल की आँख। जिस तरह बुलबुल अपने चारों ओर देख सकती है, वैसे ही यह टाँका हर तरफ़ से एक जैसा दिखाई देता है!” कह कर खुरशीद ने मुमताज़ को वह टाँका काढ़ना सिखाया।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ अपनी कढ़ाई में जुट गई। उसके दिमाग में अपनी यात्रा के दौरान देखे कितने ही नए-नए नमूने घूम रहे थे। कुछ ही दिनों में मुमताज़ ने फूल-पत्तियों-पंछियों से भरा एक बड़ा ही खूबसूरत कुरता तैयार कर लिया। हर नमूने के बीचोंबीच चश्म-ए-बुलबुल कढ़ी थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दोनों बहनों ने एक तरकीब सोच ली। एक शाम जब मुमताज़ लक्का-लोटन के लिए दाने का इंतज़ाम करने निकली तो मेहरु ने काम करने के लिए मुमताज़ को दिया गया सारा रंगीन कपड़ा और धागे कहीं छिपा दिए। सिर्फ़ सफ़ेद कपड़ा ही बचा रहा, “तो अब देखते हैं,” मेहरु उँगलियाँ नचाती बोली, “हमारी प्यारी बहन की तारीफ़ कौन करता है!”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"और फिर मुमताज़ ने अपनी नानी को देखा! एक चौड़ी सड़क के किनारे नीम के पेड़ तले बैठी थीं! मुमताज़ खुशी के मारे चिल्लाई और “नानी, नानी” करती उनके गले से लग गई।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर जब औरतों ने चिकन के कुरते पहनना शुरु किए तो यह काम रंगीन कपड़े पर भी होने लगा। लेकिन चिकन की बेहतरीन कढ़ाई सफ़ेद मलमल पर सफ़ेद धागे से ही होती है। यही इस काम का सार है, उसकी रूह है...और एक काबिल कशीदाकारिन का सबसे बड़ा इम्तिहान भी।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"जब मुमताज़ इस विस्मय-नगरी से लौटी तो उसने एक बड़ा सफ़ेद कपड़ा लिया और उस पर सफ़ेद धागे से फूल काढ़ने बैठ गई। उसने हरदोई के आमों और कश्मीर के बादाम के जैसे पत्ते काढ़े और फूलों के गुच्छों से लदी झाड़ियों के बीचोंबीच एक बहुत ही खूबसूरत मोर भी! वह किसी जादुई चादर से कम नहीं लगती थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ के काम ने तो सभी का मन मोह लिया था। थोक के व्यापारी और चिकनदार-सबकी ज़ुबाँ पर हरदोई से आई एक छोटी-सी चिकनकारिन का ही नाम था! अपनी नुमाइशों में दिखाने के लिए कुछ आला, अमीर औरतें आबिदा खाला से मुमताज़ का काम माँगने आईं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"अब तो कमरु और मेहरु की जलन का ठिकाना ही नहीं रहा। मुमताज़ का कहीं और नाम न हो जाए, इसके लिए उन्होंने एक और योजना बनाई। काढ़ने से पहले कपड़े पर कच्चे रंग से नमूने की छपाई होती थी। कढ़ाई होने के बाद कपड़े को धोया जाता था जिससे वे सब रंग निकल जाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर एक रोज़ ख़बर आई कि मुमताज़ की कढ़ी हुई उस सफ़ेद चादर को ईनाम मिला है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"जलसे के बाद जब सब घर लौटे तो कमरु ने मुमताज़ से पूछा, “ऐसे सुंदर, एक से एक बढ़िया नमूने तुम कहाँ से लाईं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ कुछ पल तो ख़ामोश रही। फिर उसने अपना जादू अपनी बहनों को बताने का फ़ैसला कर लिया। मुस्करा कर, वह कमरु से बोली, “चलो, तुम भी मेरी नानी की चादर का एक कोना पकड़ो और ख़ूब ध्यान लगा कर सोचो।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"साँझी की प्राचीन कला आज भी भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा और वृंदावन में प्रचलित है। एक ज़माने में कलाकार पेड़ की पतली छाल का प्रयोग करते थे लेकिन अब तो तरह-तरह के कागज़ भी इस्तेमाल किये जाते हैं। नमूने बहुत विस्तृत होते हैं और अधिकतर धार्मिक दृश्य, फूल-पत्ते, वयन और रेखागणित संरचनाएँ दर्शाते हैं। इस जटिल कला का उपयोग मंदिरों में प्रतिमाएँ सजाने के लिए, कपड़े पर देवी-देवताओं के स्टैंसिल या बच्चों के लिए स्टैंसिल काटने के लिए किया जाता है। तस्वीर में रंग या चमक देने के लिए स्टैंसिल के नीचे रंगीन या धात्विक कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दस्तकार हाट समिति भारतीय शिल्पकारों की एक विशाल संस्था है जो कि इस देश की पारंपरिक दस्तकारी से जुड़े लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कार्यरत है। चार कहानियों की इस शृंखला को चित्रित करने के लिए प्रांतीय कला और शिल्प के नमूनों का इस्तेमाल किया गया है जिससे भारत की भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक संवेदनाओं को साझा किया जा सके। हम युनेस्को, नई दिल्ली, के आभारी हैं जिनके योगदान से यह कार्य पूरा हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"आज का दिन बड़ा ख़ास था। रज़ा ने अपने सबसे बढ़िया कपड़े पहने हुए थे। आज उसकी मुलाकात एक बड़ी आला हस्ती से होने वाली थी-बादशाह जलालुद्दीन अकबर से! मुग़ल सल्तनत के महान सम्राट!"
रज़ा और बादशाह

"पहरेदार एक और आदमी को लेकर आया जिसे देखकर रहमत ने झुक कर सलाम किया, “गर्मी के कपड़े लाया हूँ, धनी जी।”"
रज़ा और बादशाह

"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा ने झुक कर सलाम किया और फिर अपने बादशाह की तरफ़ देखा। एक खिदमतगार हाथ में डिब्बा लिये खड़ा था और अकबर उसमें से गहने चुन रहे थे। कद में बहुत लम्बे नहीं थे पर उनके एक तलवारबाज़ के जैसे चौड़े कन्धे थे। बड़ी बड़ी, थोड़ी तिरछी आँखें, नीचे की ओर मुड़ी मूँछें और ओठों के ऊपर एक छोटा सा तिल था।"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने अकबर को एक स़फेद अंगरखा पहनने में मदद करी। धनी सिंह एक बड़ा-सा आईना ले आये और राजा के सामने लेकर खड़े हो गये।"
रज़ा और बादशाह

"रहमत ने कई पटके उठाये और अकबर की कमर पर एक आसमानी रंग का पटका ऐसे बाँधा कि झालरदार सिरे आगे की तरफ़ लटकें।"
रज़ा और बादशाह

"रज़ा और उसके अब्बा ने, एक के बाद एक कई पटके बाँध कर दिखाये-हरा और पीला, नारंगी और जामनी, पर अकबर को कोई भी न सुहाया।"
रज़ा और बादशाह

"”उन्हें एक पटका दे दो,“अकबर ज़ोर से हँसे।”वह धुले से नीले रंग वाला। उनकी पगड़ी तो अब हमने रख ली है।“"
रज़ा और बादशाह

"इतिहास के कुछ रोचक तथ्य 1. रज़ा, बादशाह अकबर के शासनकाल में अब से 400 साल पहले रहता था। अकबर मुग़ल राजवंश का सबसे महान राजा था। वह एक प्रसिद्ध योद्धा भी था। उसे नये नमूनों के कपड़े पहनने का बहुत शौक़ था। वह पतंगबाज़ी और आम खाने का भी शौकीन था। 2. बाबर, मुग़ल राजवंश का संस्थापक, काबुल का राजा था। उसने 1526 में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया। अकबर, बाबर का पोता था। वह भी एक बड़ा कामयाब सेनापति था और अपने 49 साल के शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं हारा।"
रज़ा और बादशाह

"4. शाहजहाँ का मशहूर मयूर सिंहासन (पीकॉक थ्रोन) एक चौकोर चपटा आसन था। उसके हर कोने पर पतले खम्बे थे जो बेशकीमती नगीनों से सजे हुए थे। आसन के ऊपर एक छत्र था जिसके ऊपर नगीनों से जड़ी मोर की आकृति थी। बादशाह इस छत्र के नीचे, रेशमी गद्दियों की टेक लेकर बैठा करता था।"
रज़ा और बादशाह

"सच कहूँ तो ख़ुद मैं भी यह बात जानना चाहता हूँ और मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो लोग तुम्हारे बारे में मुझसे पूछते हैं। हाँ, मैंने पहले दिन ही, जब तुम कक्षा में आई थीं, गौर किया था कि तुम एक ही हाथ से सारे काम करती हो और तुम्हारा बायाँ हाथ कभी हिलता भी नहीं। पहले-पहल मुझे समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। फिर, जब मैं और नजदीक आया, तब देखा कि कुछ है जो ठीक सा नहीं है। वह अजीब लग रहा था, जैसे तुम्हारे हाथ पर प्लास्टिक की परत चढ़ी हो। मैं समझा कि यह किसी किस्म का खिलौना हाथ होगा। मुझे बात समझने में कुछ समय लगा। इसके अलावा, खाने की छुट्टी के दौरान जो हुआ वह मुझसे छुपा नहीं था।"
थोड़ी सी मदद

"आज मेरी बड़ी दीदी का फोन आया। वह दिल्ली में इँजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं। मैंने उन्हें बताया कि हमारी कक्षा में एक लड़की है और उसका एक हाथ नकली है। दीदी ने बताया कि उसे 'प्रॉस्थेटिक हैंड’ कहते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं आतीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी आ सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद

"उस दिन खाने की छुट्टी के दौरान जो कुछ हुआ, मैं देख रहा था। आख़िर मैं भी सब कुछ जानना चाहता हूँ। क्या किसी का एक ही हाथ होना कोई अजीब बात है? सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही ऐसा है या फिर तुम्हारी पूरी बाँह ही नकली... माफ़ करना, प्रॉस्थेटिक है?"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"तुम जानती हो न कि सँयोग क्या होता है? यह ऐसी बात है कि जैसे तुम कुछ कहो और थोड़ी देर में वही बात कुछ अलग तरीके से सच हो जाए। पिछले पत्र में मैंने तुम्हें सुमी और जूतों के फीतों के बारे में बताया था। और उसके बाद, आज, मैंने तुम्हें जूतों के फीते बाँधते हुए देखा। वाह, यह अद्भुत था! मैं सोचता हूँ कि तुमने यह काम मुझसे ज़्यादा जल्दी किया जबकि मैं दोनों हाथों से काम करता हूँ। अगर तुम मेरी दोस्त न होतीं तो मैं तुम्हारे साथ जूते के फीते बाँधने की रेस लगाता। नहीं, नहीं, शायद मैं तुम्हें कहता कि मुझे भी एक हाथ से फीते बाँधना सिखाओ।"
थोड़ी सी मदद

"सच बताऊँ? घर जाकर मैंने एक हाथ से जूते के फीते बाँधने की कोशिश की थी। लेकिन मेरे लिए यह कर पाना असम्भव है। तुम ऐसा कैसे कर पाती हो? शायद मैं यह बात कल तुमसे पूछूँ।"
थोड़ी सी मदद

"तुम्हारी बात सुनने के बाद, मैंने एक हाथ से बहुत सी चीजें करने की कोशिश की। लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है! मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि तुम नहाना, कपड़े पहनना, बैग संभालना जैसे काम ख़ुद ही कैसे कर लेती हो। उस दिन खाने की छुट्टी के बाद की बातचीत के बाद से मैंने महसूस किया कि तुम भले ही कुछ कामों को थोड़ा अलग ढँग से करती हो, लेकिन तुम भी वह सारे काम कर लेती हो जो बाकी सब लोग करते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"सुनो, हमारे साथ खेलने के बारे में मैने पहले जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। मुझे लगता है कि तुम सिर्फ़ शर्माती हो। और मैंने एक ही हाथ का इस्तेमाल करते हुए झूला झूलने की भी कोशिश की। और यह काम बहुत ही मुश्किल है, झूले को दोनों हाथों से पकड़ कर न रखा जाए तो शरीर का संतुलन नहीं बन पाता। लेकिन तुम जैसे जँगल जिम की उस्ताद हो। भले ही तुम बार पर लटक नहीं पातीं लेकिन तुम सचमुच बहुत तेज दौड़ती हो, अली से भी तेज, जिसे खेल दिवस पर पहला इनाम मिला था।"
थोड़ी सी मदद

"पिछली बार, हमारे स्कूल में तुम्हारे आने से पहले, हमें एक बाघ के बच्चे की फ़िल्म दिखाई गयी थी जो जँगल में भटक गया था। हम भी उसे लेकर चिंता में पड़ गए थे क्योंकि वह एक सच्ची कहानी थी। बाद में वह बाघ का बच्चा किसी को मिल जाता है और वह उसे उसके परिवार से मिला देता है। जानती हो ऐसी सच्ची कहानियों को डॉक्यूमेंट्री कहा जाता है। बाघ के बच्चे बड़े प्यारे होते हैं, हैं न?"
थोड़ी सी मदद

"पिछले बरस, हमारे घर के पास एक पिल्ला रहता था। वह भी बहुत प्यारा था, लेकिन फिर वह बड़ा हो गया और पहले जैसा प्यारा नहीं रह गया। अच्छा, अब चलता हूँ! मैं"
थोड़ी सी मदद

"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद

"अ. मज़ा आ गया! एक और दोस्त!"
थोड़ी सी मदद

"2. आपकी कक्षा की एक लड़की लँगड़ाते हुए चलती है। बाकी बच्चे उस पर हँसते हैं। आप क्या करेंगे?"
थोड़ी सी मदद

"कल्लू और उसका दोस्त दामू, सपने में नदी में एक विशाल मछली पकड़ रहे थे और आप सच मानें, मछली"
कल्लू कहानीबाज़

"रज़ाई फेंक के कल्लू ने बिस्तर छोड़ा। स्कूल देर से नहीं पहुँच सकता था वह! किसी हालत में नहीं। परसों मास्टर जी ने ऐसा धमकाया था कि एक दिन भी वह फिर देर से आया तो सज़ा ऐसी होगी कि वह याद रखेगा।उन्होंने तो यह भी कह डाला कि अगली कक्षा में नहीं चढ़ायेंगे। और इसके ऊपर से घंटों तक उसे कोने में कान पकड़ के खड़ा रहना पड़ा था।"
कल्लू कहानीबाज़

"“मुझे एक बढ़िया कहानी चाहिये। अभी।” अपनी चप्पलों को ढूँढ़ते कल्लू का दिमाग तेज़ी से दौड़ रहा था।"
कल्लू कहानीबाज़

"जब तक शब्बो अपनी बात पूरी करता, कल्लू घर से निकल कर गली के मुहाने पर पहुँच चुका था। शब्बो ने खिड़की से झाँक के देखा कि दौड़ते कल्लन भाई कोहरे के गुबार में आँख से ओझल हो गये। एक बड़ी सी मुस्कराहट शब्बो के चेहरे पर फैल गई।"
कल्लू कहानीबाज़

"उसकी बहन मुनिया एक अल्मारी के पीछे से प्रकट हुई। उसके चेहरे पर भी चौड़ी मुस्कान खेल रही थी। दोनों इतनी ज़ोर से हँसे कि मुनिया को हिचकियाँ आ गईं।
 निकलते हुए कल्लू ने रसोई से एक सूखी रोटी उठा ली थी। उसे चबाते हुए वह खुद से बात करते हुए चला जा रहा था।"कहानी कल्लन मियाँ। एक नई, मानने लायक कहानी नहीं तो फिर कोने में खड़े पाये जाओगे।”"
कल्लू कहानीबाज़

"जीवन एक रहस्य है- कल्लू को ऐसा ही लगता था। उसे स्कूल पसंद था, सच में पसंद था।"
कल्लू कहानीबाज़

"जब वे बस में लौट रहे थे तो दामू और उसने मिल के एक कमाल की योजना बनाई थी। नया राजमार्ग खजूरिया गाँव के बगल से निकलता था। दामू और कल्लन मिल के वहाँ एक ढाबा, एस टी डी फ़ोन बूथ, कमप्यूटर सेन्टर खोल सकते थे। दामू, जिसे सपने में भी खाने के ख़याल आते थे, ढाबा चला सकता था और कल्लू एस टी डी बूथ। बूथ से लोग घर को फ़ोन लगायेंगे और आस-पास के सभी गाँवों के लोग मण्डी में सब्ज़ी, गेहूँ और गन्ना भेजने से पहले इन्टरनेट पर आज के भाव देख सकते थे।"
कल्लू कहानीबाज़

"“नहीं मास्टर जी,” कल्लू की आँखों में आँसू छलक आये और ये सचमुच के आँसू थे। जब चाहो निकाल दो वाले मगरमच्छी आँसू नहीं। वह सच में शो में भाग लेना चाहता था। “मास्टर जी!” उसकी आवाज़ में घबराहट और बेचारगी दोनों थी
 “मैं वादा करता हूँ मैं फिर कभी देर नहीं करुँगा। एक मौका...”"
कल्लू कहानीबाज़

"“अच्छा ठीक है,” मास्टर जी थोड़े पसीज गये, “इस बार जाने दे रहा हूँ पर एक बार भी और देर से आये तो तुम शो से बाहर। समझ रहे हो?”"
कल्लू कहानीबाज़

"“एक अच्छी कहानी... एक विश्‍वास करने लायक बहाना।” पहले कितने बहाने खोजे थे उसने। आज एक नया बहाना खोजना इतना मुश्किल क्यों लग रहा था? उसके दिमाग में वह छवि कौंध गयी जहाँ मास्टर जी भवें सिकोड़े उसकी तरफ़ अविश्‍वास से घूर रहे हैं और वह हकलाता-तुतलाता बहाना बना रहा है। इतना मग्न था कल्लन कि सीधे भैंसों के झुण्ड से जा टकराया।"
कल्लू कहानीबाज़

"“हाँ, और एक अच्छी खासी कहानी भी बरबाद हो गई,” मास्टर जी ने हमदर्दी जताई “चलो, अब अन्दर तो आ ही जाओ।” “शब्बो को भुगतना पड़ेगा,” कल्लू ने दाँत पीसे, “छोड़ूँगा नहीं उसे।” “क्या करोगे?” “दूसरी टाँग तोड़ दूँगा!” कल्लू ने बिफ़र कर कहा।"
कल्लू कहानीबाज़

"तब हमने एक तरकीब अपनाई। हम दो दिन यहीं रुक कर लोगों से इसी बात पर चर्चा करने का सोच ही रहे थे कि तभी एक औरत पॉलिथीन में सब्ज़ी और फल के छिलके फेंकते हुए दिखी। हमने अपनी माँ से कहा कि वह उस औरत से बात करें जिस पर हमारी माँ ने सहमति दिखाते हुए कहा कि हम सब लोगों से बात करेंगे।"
पॉलिथीन बंद करो

"यह सब मैंने अपने गाँव में सीखा था। आज मेरे गाँव में किसी को न टी बी है न ही साँस लेने में दिक्कत क्योंकि मेरा गाँव एक पॉलिथीन मुक्त गाँव है। हम सब अन्य गाँव में उन्हें भी पॉलिथीन मुक्त बनाने के लिए एक ही नारा लगाते हैं – "पॉलिथीन बंद करो जीवन की शुरुआत करो।""
पॉलिथीन बंद करो

"बहुत कम लोगों को यह पता है कि वे सेना में भर्ती होने के पहले से ही सेना के लिए हॉकी खेलने लग गए थे। १४ साल की उम्र में वे अपने पिताजी के साथ सेना की दो टीमों के बीच मैच देखने गए थे। जब एक टीम हारने लगी जो ध्यान चंद ने अपने पिताजी से कहा कि अगर उनके पास हॉकी स्टिक होती तो वे उस टीम को जिता देते।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"यह सुनकर पास बैठे एक अंग्रेज़ अधिकारी ने उनको डाँट दिया और कहा कि गप्प नहीं हाँकनी चाहिये, लेकिन साथ ही उन्हें खेलने का एक अवसर भी दिया। अपनी कही बात का पालन करते हुए उन्होंने चार गोल किये।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"एक बार महान धावक मिल्खा सिंह ने ध्यान चंद से पूछा कि वे अपने खेल में इतने निपुण कैसे हैं। ध्यान चंद ने जवाब दिया कि वे एक खाली टायर को गोल से बाँध देते और पूरे दिन गेंद को उस टायर में से निकालते रहते। ध्यान चंद बहुत सारे गोल किया करते थे और आने वाले वर्षों में उन्होंने भारत के लिए बहुत से मैच और पदक जीते।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"लेकिन वे सिर्फ़ हॉकी स्टिक के अपने कौशल के सहारे की ध्यान चंद नहीं बने। हॉकी, जो कि एक टीम का खेल है, उसमें ध्यान चंद एक प्रभावी टीम साथी के रूप में उभरे। जब वे मैदान में दौड़ रहे होते, उनका मस्तिष्क एक शतरंज की बाज़ी के रूप में सोचता। जैसे अपको पता होता है कि आपकी कक्षा में आपके मित्र कौन कौन से स्थान पर बैठते हैं और आप बिना देखे यह बता सकते हैं कि “काव्या यहाँ बैठती है, रोमिल यहाँ बैठता है” ध्यान चंद के लिए हॉकी ठीक वैसा ही था। बिना देखे उनको पता होता था कि उनके टीम के साथी कहाँ खड़े हैं, और वे किसको गेंद पास कर सकते हैं।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"ध्यान जो कहना चाहते थे, वो यह है कि प्रतिभा एक चीज़ है। वो जानते थे कि उनके हाथ हॉकी के लिए एकदम अनुकूल थे, लेकिन खेल के अन्य महान सितारों की तरह प्रतिभा को प्रभावी बनाने के लिए जिस चीज़ की आवश्यकता होती है, वह है मेहनत। इतने लंबे समय तक जितने सर्वश्रेष्ठ तरीके से वे खेले, वैसा खेलने के लिए उनको अपने शरीर को दुरुस्त व दिमाग को चुस्त रखने की आवश्यकता थी।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"हुए, तब तक वे स्वयं एक बहुत ही सक्षम खिलाड़ी बन चुके थे।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"१९२० के दशक के मध्य में वे एक उभरते हुए हॉकी खिलाड़ी थे। उस दौरान उन्होंने सेना की टीम के साथ न्यूज़ीलैंड का दौरा भी किया, और अपनी टीम को २१ में से १८ मैच जीतने में सहयोग किया। स्वाभाविक रूप से उन्हें १९२८ में भारतीय टीम में चुन लिया गया जो एम्सटर्डम ओलंपिक जाने वाली थी।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"एम्सटर्डम में भारत ने ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क और स्विटज़रलेंड को हराया। २६ मर्इ को फ़ाइनल मैच में भारत ने नीदरलैंड को हराया। पूरे टूर्नामेंट के दौरान भारतीय टीम ने एक भी गोल नहीं खाया। भारत की ओर से किये गए २९ गोल में से ध्यान चंद ने १४ गोल किये।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"तब तक ध्यान चंद के छोटे भार्इ रूप भी टीम में आ चुके थे और दोनों भार्इयों ने मिल कर ३५ में से २५ गोल किये थे। एक अमेरिकी पत्रकार ने लिखा कि यह भारतीय टीम “पूर्व का एक तूफ़ान है।” और यह तूफ़ान अभी शुरु ही हो रहा था। १९३२ के अपने विजयी दौरे में भारतीय टीम ने ३७ मैचे खेले और इनमें ३३८ गोल किये। इनमें से १३३ ध्यान ने किये थे। १९३४ में ४८ मैचों में भारतीय टीम ने ५८४ गोल किये, जिसमें से ध्यान चंद ने २०१ गोल किये।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"लेकिन हिटलर की योजना को अधिक कामयाबी नहीं मिली, और इसका आंशिक कारण ध्यान चंद व भारतीय हॉकी टीम थी। पूर्व का तूफ़ान शांत नहीं हुआ था और उसने हंगरी, अमेरिका, जापान और फ़्रांस को हराते हुए फ़ाइनल में प्रवेश किया। जर्मनी भी फ़ाइनल में पहुँच चुका था, और हिटलर ने सोचा कि जर्मनी की टीम पूर्व से आए इन भूरे लोगों को अपना वास्तविक स्थान दिखा देगी। और फ़ाइनल में जर्मनी ने एक गोल कर दिया था, जो चारों टीमें मिलाकर भारत के ख़िलाफ़ अब तक नहीं कर पार्इ थीं।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"भारत के लिए एक और स्वर्ण पदक। ध्यान चंद के लिए कर्इ और गोल। अब वो एक ‘सुपरस्टार’ बन चुके थे, अपने ज़माने के रोजर फेडरर अथवा राहुल द्रविड। उनका भारत एवं उन अन्य सभी जगह असाधारण सम्मान होता जहाँ हॉकी खेली जाती।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"अपने इर्द गिर्द प्रसिद्धी का घेरा होने के बावजूद उनकी दृष्टि में उनका सर्वश्रेष्ठ मैच १९३३ का बैटन कप का फ़ाइनल मैच था, जो एक भारतीय टूर्नामेंट था। अपनी घरेलू टीम झाँसी हीरोज़ के लिए खेलते हुए उन्होंने अपने साथी खिलाड़ी र्इस्माइल को एक लंबा पास दिया, र्इस्माइल “जेसी ओवेन्स की गति से लगभग आधा मैदान भागे” और उन्होंने मैच का इकलौता गोल किया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"ध्यान चंद के लिए टीम वर्क, यानि पूरे दल के साथ समन्वय, हमेशा महत्वपूर्ण रहा। और शायद उनका जेसी ओवेन्स - एक महान धावक जिन्होंने बर्लिन में मैडल जीता और सिद्ध किया कि हिटलर के विचार कितने विकृत थे - के बारे में उल्लेख करना यह प्रदर्शित करता है कि वे ओलंपिक को कितना महत्वपूर्ण समझते थे।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"अशोक भी अपने पिता की भाँति एक विश्व स्तरीय खिलाड़ी थे जिनको हॉकी के कुछ अद् भुत कौशल अपने पिता से विरासत में मिले थे। अशोक ने १९७५ के फ़ाइनल में वो गोल किया था जिसने भारत को विश्व विजेता बनाया था।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"दुर्भाग्य से तब तक भारत हॉकी की एक शक्ति से पतन की ओर अग्रसर था। वो विश् व कप शायद अंतिम महत्वपूर्ण टूर्नामेंट था जिसे भारत जीत पाया था। रिटायर्ड मेजर, जिसके पास इस खेल में विजय की इतनी गौरवशाली यादें थीं कभी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए कि जो खेल उनके दिल के इतने करीब था, उसमें उनकी टीम इतना संघर्ष कर रही थी। जब १९७६ के मांट्रियल ओलंपिक में भारतीय टीम छठे स्थान पर रही तब ध्यान चंद ने दर्द बयान करते हुए कहा, “कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा।”"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"ध्यान चंद ने अपने अंतिम वर्ष अपने प्रिय स्थान झाँसी में बिताए। वहाँ रहने वाले लोग इस महान पुरूष को देखा करते थे, जो कभी बाज़ार जा रहे होते तो कभी अपने मित्रों से मिलने अथवा कभी घर के काम निपटाने के लिए सार्इकिल पर जाते हुए दिखार्इ दे जाते थे। उनका निधन ३ दिसम्बर १९७९ को नर्इ दिल्ली के एक अस्पताल में हुआ। उनका पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ झाँसी हीरोज़ ग्राउंड पर अंतिम संस्कार किया गया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"आज हम उनके जन्मदिन, २९ अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं, और भारतीय खेल जगत के सर्वकालिक सर्वोच्च पुरस्कार, ध्यान चंद पुरस्कार को उनके नाम पर रखा गया है। यदि भारत खेल में पुन: कभी शक्तिकेंद्र के रूप में उभरता है तो हम कह सकते हैं कि इसके पीछे इस महान व्यक्ति की प्रेरणा है। एक जादूगर जो कभी हॉकी खेलता था, जिसने पूरी दुनिया को रोमांचित कर दिया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"एक भारतीय विलक्षण प्रतिभा, एक पूर्ण भारतीय, चंद्रमा के तले जन्मा ध्यान चंद।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"मोरू को देख कर लगता था कि गंगा के इस पार या उस पार वाला मुहावरा उसी के लिये लिखा गया था। उसकी पसंद या नापसंदगी बड़ी ज़बरदस्त थी। जो काम वह नहीं करना चाहता वह कोई भी उससे करवा नहीं सकता था और न ही कोई उसे अपने मन का काम करने से रोक सकता था। मोरू एक पहेली जैसा था।"
मोरू एक पहेली

"पेड़ों पर चढ़कर कच्चे आम तोड़ना 
मोरू को अच्छा लगता था। वह टहनियों 
पर रेंगते हुए ऐसी कल्पना करता मानो किसी घने जंगल में चीता हो। उसे कीड़े पकड़ना भी पसंद था। चमकदार पन्नी सी चमचमाते सर वाली हरी-नीली घोड़ा मक्खी, पतला और चरचरा सा टिड्डा, पीली तितली जिसका रंग पीले गुलाल सा उसकी उंगलियों पर उतर आता था। मोरू को पतंग उड़ाना भी अच्छा लगता था। जितनी ऊँची उड़ सके उतना अच्छा। सबसे ऊँची छतों पर चढ़ कर वह अपनी पतंग बादलों से कहीं ऊपर तक उड़ाता जैसे वह एक चमकता हुआ पक्षी हो जो सूरज तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हो।"
मोरू एक पहेली

"कभी-कभी तेज़ी से दो, कभी-कभी तीन-चार सीढ़ी एक साथ चढ़ा जा रहा है।"
मोरू एक पहेली

"जब वह थक जाता तो खुद को सीढ़ियों के जंगले पर फिसलते हुए देखता और सब अंक उसकी ओर हाथ हिला रहे होते। दोपहर के खाने में अक्सर सबके आधे पेट रह जाने पर ख़त्म हो जाने वाले चावल से नहीं, उन दोस्तों से नहीं जिन्हें खेल जमते ही घर जाना होता, अंक हमेशा मोरू के पास रहते। कभी न ख़त्म होने वाले अंक कि जब चाहे उनके साथ बाज़ीगरी करो, छाँटो, मिलाओ, बाँटो, एक पंक्ति में लगाओ, फेंको, एक साथ मिलाओ या अलग कर दो।"
मोरू एक पहेली

"एक दिन शिक्षक ने कुछ सवाल बोर्ड पर लिखे। सवाल आसान थे पर उबाऊ थे। बड़े सारे और सब एक जैसे। मोरू ने सवाल नहीं किये। उसका सवाल करने का मन नहीं कर रहा था और उसके पास स्लेट भी नहीं थी।"
मोरू एक पहेली

"उसकी स्लेट टूट गई थी और उसकी माँ के पास नई स्लेट खरीदने के पैसे नहीं थे। मोरू ने दीवार पर चढ़ने वाली सैकड़ों चींटियाँ गिनना शुरू किया। उसने बाहर पेड़ को देखा और उसे उसकी पत्तियाँ बिलकुल सही लगीं। सही पत्तियों की परछाईं भी सही होती है। मन ही मन मोरू ने स्कूल के अहाते की दीवार में टूटी ईंटों की संख्या गिनी। उसने हिसाब लगाया कि अगर हर ईंट की कीमत पाँच रुपये है तो सारे छेद भरने में एक हज़ार से ज़्यादा रुपये लगेंगे।"
मोरू एक पहेली

"शिक्षक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने मोरू के गाल पर एक तमाचा मारा। मोरू का गाल सुर्ख लाल हो गया। अचानक ही उसकी आँखों से गर्म आँसू फूट पड़े। वह खड़ा हुआ और कमरे से बाहर भागा। बरामदे से नीचे उतर, धूल भरे मैदान को पार करके वह टूटे फाटक से सीधे बाहर निकल गया।"
मोरू एक पहेली

"अगले दिन सुबह माँ ने उसे स्कूल के समय पर जगाया। पर मोरू नहीं उठा। वह पतली सी चारपाई पर कस के आँखें मूँदे पड़ा रहा। अगले दिन भी वही किस्सा था और उससे अगले दिन और उससे भी अगले दिन। कोई भी मोरू को वापस स्कूल आने के लिये मना नहीं पाया। एक हफ़्ता गुज़रा और फिर एक महीना। मोरू अपने घर के बाहर दीवार पर बैठा रहता।"
मोरू एक पहेली

"बरसात का मौसम आया और गरमी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुला। सबने सोचा कि अब तक मोरू भूल-भाल गया होगा और सबके साथ वह स्कूल चला जायेगा। “नहीं!” उसने ज़ोर से कहा। ऐसे ही एक साल गुज़र गया। सबने मोरू से कोई भी आशा रखनी छोड़ दी। शायद मोरू ने भी ऐसा ही किया। वह और बहुत कुछ करने लगा। बाज़ार में जा कर वह सब्ज़ीवालों की नाक में दम किये रहता।"
मोरू एक पहेली

"पुराने शिक्षक चले गये। एक नये नौजवान शिक्षक उनकी जगह आये।"
मोरू एक पहेली

"कुछ दिनों बाद शिक्षक फिर वहाँ से जा रहे थे। वह एक बहुत बड़ा थैला उठाये हुए थे। थैला बहुत भारी था। शिक्षक काफ़ी मुश्किल में थे। मोरू ने सर खुजलाया। शिक्षक धीरे-धीरे वहाँ से निकले। मोरू ने कुछ सोचा और फिर शिक्षक के पीछे भागा। बिना कुछ बोले उसने थैले को एक तरफ़ से थामा। शिक्षक को कुछ राहत मिली और दोनों मिल कर उस भारी बोझ को स्कूल तक ले गये।"
मोरू एक पहेली

"मोरू ज़मीन पर बैठ गया। किताबें उसके चारों तरफ़ फैली थीं। इतनी सारी कहानी की किताबें थीं। उसने जानवरों की कहानियों वाली एक साथ रखीं। तेंदुए की कहानी हाथी और ऊँटों वाली कहानी के साथ ज़्यादा अच्छी रहेगी। परी कथाएँ देवी-देवताओं की कहानियों के साथ रह सकती हैं। रहस्य कथाएँ अकेली रहेंगी। या शायद उन्हें नायकों और मशहूर व्यक्तियों की कहानियों के साथ रखना चाहिये?"
मोरू एक पहेली

"फिर आई अंकों वाली किताबें। मोरू की आँखें और उंगलियों की तेज़ी कुछ ढीली पड़ी। मोटे अंक पतले अंकों के साथ नाच रहे थे। दो अंक एक के ऊपर एक ऐसे बैठ गये जैसे कोई ढुलमुल इमारत हो जो अपनी नींव भरने का इन्तज़ार कर रही हो। गुणा के सवालों में जैसे संख्या बढ़ती जाती थी, वो कुछ नाटे और नीचे की तरफ़ चौड़ाते लग रहे थे। भाग इसका ठीक उलटा था। शुरूआत में बड़ी संख्या और अगर ध्यान से करते जाओ तो अन्त में लम्बी पतली आकर्षक पूँछ बन जाती थी। अगर भाग्यशाली हो तो अन्त में कुछ नहीं बचेगा। एक-एक कर के सारे अंक और उनके करतब मोरू के पास लौट आये।"
मोरू एक पहेली

"मोरू ने उन्हें कतार में खड़ा करवाया - सबसे छोटे बच्चे एक छोर पर और लम्बे वाले दूसरे छोर पर। उसने उन्हें हाथों में अंक पकड़ाए। अब सब आसान हो गया। जैसे छोटे और लम्बे बच्चों के साथ हुआ कि किसे कहाँ खड़ा होना था वैसे ही अंकों के साथ करना था।"
मोरू एक पहेली

"मुझे लगता है कि आकाश में एक बड़ा दानव, शायद कुंभकर्ण, सोया हुआ है,"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"आकाश में मोटर साइकिल चालकों का एक गुट है।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"और हमारे टी.वी. में, एक ही बटन दबाने पर,"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"दीवाली के एक बम की तरह,"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"प्रकृति में हर वस्तु छोटे-छोटे परमाणुओं से बनी है। हर एक परमाणु के बीच में एक नाभिक होता है, जिसमें दो प्रकार के कण होते हैं-प्रोटोन एवम् न्यूट्रॉन। नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन घूमते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हमारी धरती सूर्य के चक्कर काटती है।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"प्रकृति का यह नियम है कि विपरीत आवेश एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। बादल के निचले हिस्से वाले ॠण आयन धरती की सतह के धन आयनों को आकर्षित करते हैं। यह आयन एक दूसरे की ओर आते हैं ओर इसी से बिजली पैदा होती है-वही डरावनी बिजली, जो वर्षा के मौसम में अम्बर पर चमकती है।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"आओ एक चुम्बकीय गुब्बारा बनाएँ"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"“सुजाता,” एक रात अपनी रानी को धीरे से जगाते हुए उन्होंने पूछा, “तुम दिन भर इतनी फुर्तीली और चौकन्ना कैसे रहती हो?”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राजकवि ने कहा, “महल के बगीचे में एक हल्की सी सैर, मंद मंद हवा के बीच, पारिजात पर चांदनी बिखरती हुई.... आह! उस क्षण की मधुरता और सुंदरता आपकी सारी थकान को मिटा देगी महाराज। निद्रा देवी को शांत मन से बड़़ा लगाव है।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राज विदूषक ने और जोड़़ा, “अगर और किसी से काम न बने महाराज, तो एक अच्छी कहानी तो निश्चित रूप से आपको सुला देगी।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"“फटाफट मुझे एक गिलास गरम दूध में शहद मिलकर लाके दो!"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"कोट्टवी राजा ने एक ही सांस में उसे पी लिया। ओह! पेट कितना भर गया! उठना नामुमकिन, हिलना नामुमकिन और लेट कर सो जाना तो बिलकुल ही नामुमकिन।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"दोबारा संगीत शुरू हुआ। मगर एक के बाद एक, सभी उनिंदा कलाकार स्वर से हटते गए और गलत धुन बजाते रहे। बेसुरों की भरमार थी। निद्रा देवी उन्हें सुनते ही वहाँ से भाग निकलीं! और राजा फिर पूरी तरह जागे हुए, बहुत नाराज़ हुए।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"विदूषक ने एक लम्बी, उब्काऊ सी कहानी शुरू की, इस उम्मीद से कि राजा उसे सुनते ही सो जायेंगे। आह, मगर हमारे राजा को चैन कहाँ था। बेचैन होकर पूछते रहे, “हाँ हाँ, वो तो ठीक है, मगर कहानी ख़तम कैसे होती है?”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"निद्रा देवी को यह बेचैनी पसंद नहीं आई। सो वो दूर ही रहीं। एक घंटे बाद, थकी हुई आवाज़ लेकर विदूषक थका हारा सा अपने घर लौट गया। और राजा? वो तो अब भी जाग रहे थे।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राजा लौट कर लेट गए, चारों और एक स्वप्निल चुप्पी छाई हुई थी। अचानक उन्हें एक गड़़गड़़ाहट सी सुनाई दी। उनके पेट से।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"रानी ने मामले को अपने हाथों में लिया। उन्होंने दूध का एक छोटा गिलास मंगवाया, और मालिश वाले से राजा के पाँव भी दबवाए। कुछ ही देर में निद्रा देवी ने आकर आशीर्वाद दिया। आख़िरकार राजमहल में उस रात को शांति छा गई।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"हर दिन इसी तरह कार्यक्रम चलता रहा। वक़्त के साथ, कोट्टवी राजा थोड़़ा और जल्दी सोने लगे। दो हफ्ते में, उन्होंने देखा कि दूसरे गिलास दूध के साथ ही उन्हें नींद आ जाती थी। उसके कुछ हफ्ते बाद, सैर के तुरंत बाद सोने लगे वो। एक महीने बाद, विदूषक की कहानी ने सुला दिया राजा को।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राजा अपनी निद्राहीन प्रजा के लिए बहुत ही चिंतित हो उठे। अपने इस विस्तृत कार्यक्रम की सलाह तो हर किसी को वो दे नहीं सकते थे। उन्होंने अपने राजपुरोहित से सुझाव माँगा। उस बुद्दिमान इंसान को पता था कि यह एक जटिल समस्या है। “सभी से कहिए आज से पंद्रह दिन बाद नगर सभा में एकत्रित हों। सभी लोग गरम पानी से नहा कर, भोजन करके, सूर्यास्त पर हाज़िर हों। मैं सभी को आशीर्वाद देने के लिए निद्रा देवी को वहाँ बुलाऊँगा।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"सारा शहर एक जुट हुआ। सभी को बहुत ख़ुशी थी"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"उनकी मिनमिनाहट के कुछ ही क्षण बाद, एक नई माँ ने, जिसे सबसे ज़्यादा नींद आई हुई थी, एक जम्हाई ली। उसे देखकर उसके बच्चे ने भी जम्हाई ली। बच्चे के पिता ने यह देखा और... हाँ, जम्हाई ली।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"निद्रा देवी इतनी सारी जम्हाइयों की पुकार को कैसे अनसुना कर देतीं? वो शहर में भागी भागी आईं, और सभी को नींद के एक ठंड़े झोंके से छू गईं।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"और उस दिन के बाद से, वो हर रात कोट्टवी राजा के देश में हर एक को अपना आशीर्वाद देती रहीं। सभी लोग चैन से रात में सोते रहे।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"हम जैसे ही पहुंचे पानी के अंदर, 'येलोबैक फ़्यूज़िलीअर’ मछलियों के एक झुंड ने स्वागत किया पास आकर।"
गहरे सागर के अंदर!

"एक बड़े से 'टेबल कोरल’ नाम के मूंगे के आसपास देखे किस्म - किस्म के जीव अनेक। 'ओरिएंटल स्वीटलिप्स,’ ' पैरेटफ़िश,’ 'बैटफ़िश’ जैसी मछलियां देखीं आती - जाती, एक ख़ूबसूरत रंग - रूप वाली 'न्यूडीब्रैंक’ रही आसपास मंडराती।"
गहरे सागर के अंदर!

"हमने इस 'हनीकोम्ब मोरे ईल’ को ' क्लीनर रास ’ से अपने दांत साफ़ करवाते हुए देखा। इन्हीं मछलियों के एक दूसरे जोड़े ने हमारी रगड़ाई - सफ़ाई करने में भी दिलचस्पी दिखाई!"
गहरे सागर के अंदर!

"हमनें एक 'कोरल ग्रुपर’ को 'रीफ़ ऑक्टोपस’ के साथ लुका-छिपी खेलते भी देखा।"
गहरे सागर के अंदर!

"काफ़ी देर तक यह ' हॉक्सबिल टर्टल ’ मूंगे के कंकालों के जमने से बनी दीवार यानी ‘कोरल रीफ़’ के आसपास भूख मिटाने के लिए एक बढ़िया सा स्पंज तलाशता रहा और हम इसका पीछा करते रहे।"
गहरे सागर के अंदर!

"फ़ेदर स्टार भले ही देखने में पौधों जैसे हों, लेकिन यह वास्तव में एक किस्म के जंतु यानी जानवर ही होते हैं। यह अपनी पंख जैसी दिखने वाली बाजुओं से पानी में बहते प्लैंक्टन को पकड़ - पकड़ कर चट कर जाते हैं।"
गहरे सागर के अंदर!

"हमेशा साथ रहते हैं - जैसे बने हों एक दूजे के लिए! क्लाउनफ़िश सी अनैमॉनी के लहराते हुए डंक साफ़ रखने का काम करने के साथ दूसरी मछलियों को उनकी ओर खदेड़ने की कोशिश करती रहती हैं, ताकि अनैमॉनी उन मछलियों का शिकार कर सकें। सी अनैमॉनी भी क्लाउनफ़िश से बख़ूबी दोस्ती निभाते हैं... उन्हें डंक नहीं मारते, और छुपने की जगह देकर दुश्मन से बचाते हैं।"
गहरे सागर के अंदर!

"हॉक्सबिल टर्टल एक ऐसा समुद्री कछुआ होता है जिसका शरीर चपटा और कवच किनारों पर टेढ़ा - मेढ़ा होता है, और इसके मुंह की बनावट बाज की चोंच जैसी नोकीली और घुमावदार होती है।"
गहरे सागर के अंदर!

"मैंटा रे बड़ी विशाल मछलियां होती हैं, जिनके पंख पक्षियों के डैनों जैसे फैले हुए होते हैं। इनकी मदद से यह पानी के अंदर बिलकुल बाज़ और गिद्ध वाले अंदाज़ में धीरे - धीरे पंख चलाते हुए आगे बढ़ती हैं। कुछ मैंटा रे के डैने तो इतने बड़े होते हैं कि एक पंख के सिरे से दूसरी तरफ़ वाले पंख के सिरे तक की दूरी 23 फ़ीट तक हो सकती है!"
गहरे सागर के अंदर!

"एक गौरैया थी। एक दिन वह बाज़ार गई।"
गौरैया और अमरूद

"वहाँ से वह एक अमरूद लाई।"
गौरैया और अमरूद

"रास्ते में वह अमरूद एक कँटीली झाड़ी में गिर गया।"
गौरैया और अमरूद

"फिर गौरैया मछुआरे के पास जाकर बोली, “गाय को एक डंडा मारो।” लेकिन मछुआरा नहीं माना।"
गौरैया और अमरूद

"गौरैया चूहे के पास जाकर बोली, “मैं बाज़ार से एक अमरूद लाई। वह कँटीली झाड़ी में गिर गया। उस लड़के ने निकाल कर नहीं दिया। किसान, गाय, मछुआरे किसी ने मेरी बात नहीं मानी। तुम इस मछुआरे के जाल के टुकड़े कर दो।” चूहे ने कहा, “ना बाबा ना! जाल के टुकड़े नहीं करूँगा।”"
गौरैया और अमरूद

"झटपट अमरूद खाने के इरादे से एक जगह जाकर बैठ गई। अमरूद पर एक चोंच ही मारी थी कि उसे सिर पर भारी चोट महसूस हुई। आँखों के आगे अँधेरा छा गया और वह गिर पड़ी। यह कैसे हुआ? जब उसने अमरूद खाना शुरू कि या था उसी समय एक कौआ एक लकड़ी के टुकड़े करे चोंच में दबाकर उड़ रहा था। वह लकड़ी का टुकड़ा उसकी चोंच से निकलकर गौरैया की खोपड़ी पर गिर पड़ा। बस, यहीं पर कहानी खतम!"
गौरैया और अमरूद

"बरसों पहले जादव ब्रह्मपुत्र महानदी के किनारे-किनारे कहीं जा रहे थे कि वह एक बेजान, बिना-पेड़ों-वाली-जगह जा पहुँचे।"
जादव का जँगल

"वह तेज़ी से अपने गाँव की ओर दौड़े और वहाँ पहुँच कर बाँस के अँखुए एक थैले में ठूँस-ठूँस कर भरने लगे।“दूसरे पेड़-पौधे गर्म रेत में नहीं पनप पाएँगे, लेकिन बाँस लग जाएगा। बाँस बहुत कुछ सह सकता है!”"
जादव का जँगल

"एक साल महानद सूखकर एक पतली सी धारा भर रह जाता तो दूसरे साल उसमें बाढ़ आ जाती। कभी उसके सैलाब में काफ़ी सारी रेत बह कर आ जाती, तो कभी उसकी धारा में तमाम रेत बह जाती। ज़ोरदार बारिश के दिन आए और चले गए। लेकिन जादव ने बाँस की रोपाई जारी रखी।"
जादव का जँगल

"ख़ूब सारे पौधे और बीज लेकर जादव एक कुछ-पेड़ों-वाली-जगह जा पहुँचे, और इस तरह वह खाली जगह देख कर वहाँ पौधे रोपने लगे और बीज बोने लगे।"
जादव का जँगल

"जो कभी एक बिना-पेड़ों-वाली-जगह हुआ करती थी, ऐसी बँजर और बेकार जगह अब एक शानदार, हरियाली से भरी कई-पेड़ों-वाली-जगह बन गई थी।अब यहाँ हरे-भरे पेड़ लहलहा रहे थे।"
जादव का जँगल

"लेकिन जहाँ बहुत सारे पेड़ हों, वहाँ पेड़ों पर रहने वाले जीव-जंतु न हों, ऐसा कैसे हो सकता था? एक जीव से शुरू हुआ यह सिलसिला आगे बढ़ता चला गया।"
जादव का जँगल

"सुरीली आवाज़ में गाने वाले पक्षी भी आए, और तीखे स्वर बिखेरने वाले भी पक्षी आए, और वार्बलर, थ्रश, दुम हिलाकर फुदकने वाले पक्षी आए और एक स्वर में रट लगाने वाले पक्षी भी आए जादव के बनाए मधुबन में।"
जादव का जँगल

"इसके बाद जादव के मन में एक और विचार आया -"
जादव का जँगल

"जादव ‘मुलाई’ पायेंग एक पर्यावरण सँरक्षणकर्ता हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है, जो कि भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सबसे बड़े नागरिक सम्मानों में से एक है। जादव असम के माजुली गाँव में रहते हैं।"
जादव का जँगल

"आम खाया? मज़ा आया? एक और खाने का मन है? बेशक, आप दुकान पर जाकर ख़रीद सकते हैं। लेकिन इससे कहीं ज़्यादा मज़ा आएगा तब, वह भी मुफ़्त में, जब आप अपने खाए आम की गुठली से और आम तैयार करेंगे! बस इसके लिए आपको चाहिए ढेर सारा समय और धैर्य!"
जादव का जँगल

"सबसे पहले अपने घर के पास एक अच्छी सी ख़ाली जगह ढूँढें। आम खाने के बाद जो गुठली बचा कर रखी है, उसे बोने के लिए ऐसी जगह चुने जहाँ ज़मीन ज़्यादा सख़्त न हो और धूप ख़ूब आती हो। अपने दोस्त, भाई-बहन या किसी बड़े की मदद से आठ-दस इँच गहरा गड्ढा खोद कर बीज को उसमें डालें और मिट्टी से ढक दें।"
जादव का जँगल

"कुछ साल में, जब आप पहले से लंबे हो जाएँगे, तब आपका आम का पेड़ भी आपके साथ बढ़ रहा होगा। बढ़ते-बढ़ते वह एक बड़े पेड़ में बदल जाएगा जिस पर आप चाहें तो चढ़ सकेंगे, या फिर उसके साये में पिकनिक कर सकेंगे। तब शुरू होगा असली मज़ा! तब आपका पेड़ आम देने लगेगा, जिन्हें आप और आपके दोस्त खा सकेंगे। इससे भी ज़्यादा बढ़िया बात यह होगी कि आम खाना पसंद करने वाले तमाम दूसरे जीव भी आपके पेड़ की ओर खिंचे चले आएंगे - पक्षी, चींटियाँ, गिलहरियाँ, चमगादड़, बन्दर और मकड़ियाँ।"
जादव का जँगल

"तब आप रोज़ाना कुछ समय यह देखने में बिता सकते हैं कि आपके आम के पेड़ पर कौन आता है, कब आता है, और क्या करता है। आप जो कुछ देखें उसे एक जगह लिख कर रखें। इसके अलावा, आप जो कुछ देखें उसके चित्र भी बना कर रखें।"
जादव का जँगल

"देखा आपने, सिर्फ़ एक आम की गुठली के ज़रिये आपने कितना कुछ किया, कितना कुछ जाना?"
जादव का जँगल

""तुम दोनों में से किसी एक को पड़ोसी राज्य जाना पड़ेगा। मेरा संदेश उन्हें देकर उनका जवाब लेकर एक दिन के अन्दर वापस आना होगा।""
कछुआ और खरगोश

"पड़ोसी राज्य पहुँचने का रास्ता बहुत कठिन था। काँटों और पत्थरों से भरा था। बीच में दो नदियाँ भी पड़ती थीं। चाहे कछुआ हो या खरगोश रास्ता आसानी से तय होने वाला नहीं था। और एक ही दिन में तो वह रास्ता तय करना असंभव ही था।"
कछुआ और खरगोश

"तब खरगोश और कछुए ने एक साथ बैठकर बहुत सोचा। हम दोनों में से किसी एक से यह काम न होगा इसीलिए दोनों साथ मिलकर चलेंगे। जंगल के रास्ते पर खरगोश अपनी पीठ पर कछुए को बिठाकर दौड़ लगाएगा। नदी पार करते समय खरगोश कछुए की पीठ पर चढ़ जायेगा। यह तय करके दोनों को तसल्ली हुई।"
कछुआ और खरगोश

"मीमी एक छोटी सी लड़की थी जो एक भीड़-भाड़ वाले शहर में रहती थी।"
कहानियों का शहर

"दीदी स्कूल के बरामदे में बैठ गईं। उन्होंने एक छोटे से शेर के बारे में कहानी शुरू की जो जंगल में"
कहानियों का शहर

"कहानियाँ सुन सुन कर उन्हें पता चला, एक दूसरे को कहानियाँ कैसे सुनाई जाती हैं।"
कहानियों का शहर

"उन लोगों ने एक दूसरे को कहानियाँ सुनानी शुरू कर दीं।"
कहानियों का शहर

"उनकी आवाज़ साफ़ सुनाई दी, "ठीक है! एक शर्त है। आप ऐलान कर दीजिए कि इस शहर में हर सुबह और हर शाम को एक कहानी सुनाई जाएगी। इस तरह सबके पास कहानियाँ होंगी और वे अपना काम भी कर सकेंगे।""
कहानियों का शहर

"सबने जैसे चैन की साँस ली हो। तब से आज तक उस शहर में हर जगह एक कहानी सुबह और दूसरी रात को सुनाई जाती है!"
कहानियों का शहर

"उन्होंने लांगलेन को घुटनों के बल झुक कर अलमारी के नीचे देखते हुए पाया। उसके नीचे बिल्ली के तीन बच्चे धीमे-धीमे, म्याऊं-म्याऊं करते हुए एक दूसरे के साथ खेल रहे थे।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"अचानक, एक नारंगी बिल्ली खिड़की से कूद कर अंदर आई। वह पास खड़े लोगों की ओर देखे बिना फुर्ती के साथ कमरे की एक दीवार से सट कर लेट गई। तीनों बच्चे झटपट आकर उसका दूध पीने लगे।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""लेकिन सब कहते हैं कि मैं बिल्कुल इम्मा के जैसी दिखती हूं। देखो, यहां तक कि हमारी ठुड्डी में गड्ढे भी एक जैसे हैं जिससे हमारी ठुड्डी दो हिस्सों में बंटी हुई सी नज़र आती है।""
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""हां, यह एक विशेषता है, लांगलेन। कोई भी गुण या लक्षण जो तुम में है, वह एक"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""मेरे घुंघराले बाल अप्पा से मिली एक विशेषता है और ठुड्डी के बीच का गड्ढा आप से मिली हुई विशेषता है। क्या आपको यह विशेषताएं आपके अभिभावकों से मिली है?" "हां! तुमने"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""इस वजह से मैं आप सब की विशेषताओं का एक पुलिंदा हूं, बस " लांगलेन थोड़ी दुःखी होते हुए बोली। इम्मा ने उसे फुर्ती से गले लगा लिया। "नहीं लांगलेन, माता-पिता से बच्चों"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"में जाने को अनुवांशिकता कहते हैं। हमारी विशेषताएं एक समान हो सकती है, लेकिन हम में से हरेक अलग है। तुम्हारी तमाम विशेषताओं का मेलजोल तुम्हें विशिष्ट बनाता है!""
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""इम्मा, मेरा एक सवाल और है। *इबोक हमेशा कहती हैं कि हंसते समय आपके भी गालों में गड्ढे पड़ जाया करते थे। वह अब कहां गुम हो गए?""
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"अप्पा एक प्लेट लेकर आए जो ढकी हुई थी।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""और हम वह वजह हैं जो इन्हें गायब कर देंगे?" यह कहते हुए लांगलेन ने किसी के कहने-सुनने का इंतजार किए बिना एक वड़ा उठाकर अपने मुँह में भर लिया।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"पीढ़ीः एक ही समय में जन्म लेने और रहने वाले लोग"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"अपना पारिवारिक पेड़ बनाना जैसा कि आपको अब तक जान ही गए होंगे की लांगलेन की इम्मा (मम्मी) मणिपुर से हैं और अप्पा (पापा) तमिलनाडु से। क्या आप भी लांगलेन की तरह (पेज 7 और पेज 8) अपना पारिवारिक पेड़ बनाना चाहेंगे? एक कागज़ और पेन उठाइये और इसे तुरंत ही बनाइये। यदि आप कहीं भी अटक जाएं, तो अपने परिवार वालों की मदद लें।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"क्या उसके बाल सीधे होंगे या घुंघराले? और उसकी नाक गोल-मटोल होगी या फिर तिकोनी? एक पैर, दो पैर या और भी ज़्यादा पैर? पूँछ कुत्ते की या फिर खूंखार शेर जैसी?"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"एक गाँव में एक लड़का और उसका परिवार रहता था। उसके परिवार में दादा, दादी, माँ और दीदी थे। भाई-बहन दोनों साथ-साथ स्कूल में पढ़ते थे।"
और दीदी स्कूल जाने लगी

"घर जाकर उन्होंने उसकी माँ को समझाया कि जैसे लड़कों का पढ़ना ज़रूरी है, वैसे ही लड़कियों का भी पढ़ना ज़रूरी है। एक लड़की पढ़ लिख कर पूरे घर को अच्छे से संभाल सकती है।"
और दीदी स्कूल जाने लगी

"“मीरा, मैं आज तुम्हारे स्कूल गयी थी!” अम्मा ने एक दिन कहा।"
अम्मा जब स्कूल गयीं

"वह एक चिड़िया घर में काम करता था।"
कहाँ गया गोगो?

"गोरिल्ला एक बार में कितने केले खाता होगा?"
कहाँ गया गोगो?