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Revision #2 (2022-01-21 14:00)
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Storybook paragraphs containing word (92)

"जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक था, अर्जुन को इस से ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए था।"
उड़ने वाला ऑटो

"शोरोगुल भरे रास्तों से कहीं ऊपर इस शांत माहौल में अर्जुन को याद 
आ रही थी मोटर कारें, साइकिलें और बसों से पटी सड़कें। उसने नीचे देखा। काम में जुटे उसके परिवार के सदस्यों की छोटी-छोटी कैनोपी पीले बिन्दुओं की तरह चमक रही थीं।
 अर्जुन को उन लोगों की भी याद आई जो हमेशा कहीं न कहीं जाने के लिए तैयार रहते थे।
 एक नई मंज़िल, एक नई जगह... “फट, फट, टूका, टूका, टुक।”"
उड़ने वाला ऑटो

"इसकी वजह यह है कि इस आटे में कुछ है जिसे बहुत प्यास लगी है! आप को जब प्यास लगती है तो आप क्या करते हैं? आप पानी पीते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"जब हम आटे को गूँधते हैं तो एक दूसरे से चिपके कण, फैलने लगते हैं और फिर इस तरह फैलने के बाद एक नया प्रोटीन बन जाता है, जिसे कहते हैं ग्लूटेन। ग्लूटेन, रबर की तरह लचीला होता है, इसलिए गूँधे हुये आटे को हम कोई भी आकार दे सकते हैं।"
पूरी क्यों फूलती है?

"दर असल पूरी के साथ यह होता है - गूँधे हुये आटे में ग्लूटेन होने की वजह से उसे बेला जा सकता है। जब इस आटे की एक छोटी सी लोई को बेला जाता है तो पूरी में ग्लूटेन की एक सतह बन जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"याद है न कि आटे को गूँधने के लिये इस में पानी मिलाया गया था? ज़्यादा तापक्रम की वजह से पूरी के अंदर का पानी भाप बन कर उड़ जाता है। यह भाप बहुत ताकतवर होती है और इससे ग्लूटेन की सतह ऊपर चली जाती है। इसी वजह से पूरी फूलती है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"पानी की मदद से आटा गूँध लेते है। आटे को गूँधते समय बस इतना ही पानी डाले कि आटा न बहुत कड़ा हो और ना ही बहुत मुलायम। हथेली के निचले हिस्से की मदद से कुछ मिनट तक इसे थोड़ा और गूँधते है। चाहें तो, थोड़ा सा तेल भी इस्तेमाल कर सकते है जिससे गुँधा आटा आपके हाथ में चिपके नहीं। गुँधे आटे को करीब 10 मिनट तक ढ़क कर रख देते है। अब इस गुँधे आटे को, कुछ मिनट के लिए दोबारा गूँधते है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"अब फिर इसे एक बड़े बर्तन में रख देते है अब बर्तन के अंदर रखे गूँधे आटे पर इतना पानी डालते है जिससे वो उसमे डूब जाए। पानी के अंदर डूबे आटे को गूँधते रहते है जब तक पानी का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता। इस पानी को फैक कर बर्तन में थोड़ा और ताजा पानी लेते है इसे तब तक करते रहे जब तक गुँधे आटे को और गूंधने से पानी सफ़ेद नहीं होता। इसका मतलब यह है कि आटे का सारा स्टार्च खत्म हो गया है और उसमें बस ग्लूटेन ही बचा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्च पानी में घुल जाता है लेकिन ग्लूटेन नहीं घुलता। अब इस बचे हुए आटे यानि ग्लूटेन से थोड़ा सा आटा लेते है इसे हम एक रबड़बैंड कि तरह खीच सकते है। अगर इसे खीच कर छोड़ते है तो यह वापस पहले जैसा हो जाता है। इससे इसके लचीलेपन का पता चलता है आप इसे चोड़ाई में फैला सकते है इससे पता चलता है कि इसमें कितनी प्लाटीसिटी है।"
पूरी क्यों फूलती है?

"फिर जब वही मधुमक्खियाँ किसी और फूल के पास जा कर भन-भन करते हुए ज़ोर-शोर से नाचती हैं, तो इस धमा-चौकड़ी में दाने दूसरे फूलों पर गिर जाते हैं। फिर मधुमक्खियाँ और फूलों तक उड़ती हुई जाती हैं, कुछ दाने उठाती हैं व कुछ गिराती चलती हैं। यह कार्यक्रम इसी तरह चलता रहता है।"
मधुमक्खियाँ क्यों भन-भन करती हैं?

"पुट्टा ने कहा, "उन्होंने बताया था कि जब उनके बम्बई वाले अंकल ने उनको साफ रेलगाड़ी के बारे मे बताया था तब वह 9 -10 साल की थीं। अज्जा शायद इस बारे में जानते होंगें।”"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"याद है इस कहानी में मूताजी ने कितनी सारी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओ के बारे में बताया था? यह सारी घटनाए असल में हुईं थीं। तो चलो इनके बारे में थोड़ा और जानते हैं!"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ आ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव आ गया। और कृष्ण राजा सागर (के आर एस) रिसर्वोयर का निर्माण हुआ। आज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बिन्दा ने खोदना रोक दिया और कहा, ”तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस मुई बकरी को बाँधो! मेरा सारा पालक चबा रही है!“"
स्वतंत्रता की ओर

"”क्योंकि, यदि वे इस लम्बी यात्रा पर दाँडी तक पैदल जायेंगे तो यह खबर फैलेगी। अखबारों में फ़ोटो छपेंगी, रेडियो पर रिपोर्ट जायेगी!
और पूरी दुनिया के लोग यह जान जायेंगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिये लड़ रहे हैं। और ब्रिटिश सरकार के लिये यह बड़ी शर्म की बात होगी।“"
स्वतंत्रता की ओर

"3. इस यात्रा में गाँधी जी के साथ 78 स्वेच्छा कर्मियों (वालंटियरों) ने भाग लिया। उन्होंने 385 किलोमीटर की दूरी तय की।"
स्वतंत्रता की ओर

"वह इस गीत को बार-बार दोहराती रहती है, जिसे सुनकर टूका को बहुत हँसी आती है और इंजी भी ख़ुश होकर भौंकता है।"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने समझाया, “तुम इस सेब को खाना शुरू करो जब तक कि इसके बीच वाले हिस्से तक न पहुँच जाओ। सेब के बीच में तुम्हे छोटे-छोटे भूरे रंग के बीज दिखेंगे।“"
आओ, बीज बटोरें!

"पच्चा ने आगे समझाया “अब इस केले को बीच से आधा करो।“"
आओ, बीज बटोरें!

"हम सभी वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं पर किसान तो वर्षा के देवताओं की पूजा करते हैं।
 मानसून में मेरा आम का पौधा काफी लम्बा हो गया है। अब मुझे उसे सींचने की ज़रूरत नहीं पड़ती! पिछले महीने जब बड़ी तेज़ आँधी चली थी, मेरा पौधा मज़बूती से खड़ा रहा। क्या मेरा आम का पेड़ इस पेड़ के जितना बड़ा हो जायेगा?"
गरजे बादल नाचे मोर

"तो कौन इस दावत पर आता है?"
अरे, यह सब कौन खा गया?

""वह महिला अफ़सर सुरक्षा जाँच टीम की सदस्य है। उन्हें इस बात का ध्यान रखना होता है कि कोई भी यात्री अपने सामान में विस्फोटक या चाक़ू जैसी ख़तरनाक चीज़ें न ले जा पाए। हमें उनके काम में बाधा नहीं डालनी चाहिए।""
राजू की पहली हवाई-यात्रा

""क्या मैं इस पर जा सकती हूँ?""
टुमी के पार्क का दिन

"तुम्हें इस तरह चलना चाहिए - धी... रे... धी... रे...।”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर

"क्या चीज़ें जादू से इस गुटके से चिपक जाती हैं?"
जादुर्इ गुटका

"क्या स्टैपलर इस गुटके से चिपकेगा?"
जादुर्इ गुटका

"क्या स्टील का फुट्टा इस गुटके से चिपक सकता है?"
जादुर्इ गुटका

"क्या भूरी जटाओं वाला नारियल इस से चिपकेगा?"
जादुर्इ गुटका

"मुनिया जानती थी कि एक पंख वाले उस विशालकाय गजपक्षी ने घोड़े को नहीं निगला है। हाँ, वह इतना बड़ा तो था कि एक घोड़े को निगल जाता, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि उसने उसे निगल ही लिया था! नटखट झील के पास वाले उस जंगल से ग़ायब हुआ था जहाँ वह गजपक्षी रहता था। अधनिया गाँव में दो घोड़ों - नटखट और सरपट द्वारा खींचे जाने वाली केवल एक ही घोड़ागाड़ी थी। जंगल के अंदर बसे इस छोटे से गाँव में पीढ़ियों से लोगों को इस विशालकाय एक-पंख गजपक्षी के बारे में मालूम था। चूँकि वह किसी के भी मामले में अपनी टाँग नहीं अड़ाता था, इसलिए गाँव का कोई भी बंदा उसे छेड़ता न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"अधनिया एक छोटा, अलग-थलग गाँव था जिसमें हर कोई हर किसी को जानता था। गाँव में तो कोई चोर हो नहीं सकता था। दूधवाले ने कसम खाकर कहा था कि उसने नटखट को झील की ओर चौकड़ी भरकर जाते हुए देखा है। लेकिन वह इस बात का खुलासा न कर पाया कि आखिर नटखट बाड़े से कैसे छूट कर निकल भागा था। दिन में बारिश होने के चलते नटखट के खुरों के सारे निशान भी मिट चले थे और उन्हें देख पाना मुमकिन न था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“तुम्हारी इस बात का क्या मतलब है?” मुखिया गरजकर बोला।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"चन्देसरा कुछ ही दूर एक गाँव था। मुनिया इस सम्भावना को लेकर आशान्वित थी, लेकिन यह बात वह अपने पिताजी को नहीं कह सकती थी। उसके माँ-बाप उससे बहुत नाराज़ थे और रात को सोने के पहले भी वे उससे कुछ नहीं बोले थे। उनके सोते ही वह अपने बिस्तर से बाहर निकली, और दरवाज़े पर लटकी लालटेन लेकर वह घर के बाहर हो ली। गाँव पार करने के बाद वह चन्देसरा जाने वाले जंगल के रास्ते पर चल दी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“जैसा कि आप जानते हैं, कुछ साल पहले मैंने नटखट को बेच दिया था। कल मैं नटखट के भाइयों - बाँका और बलवान के द्वारा खींची जाने वाली बग्घी में सवार आपके गाँव से गुज़र रहा था। मुझे नहीं मालूम कि किस तरह से नटखट अपने आपको छुड़ा हमारे पीछे-पीछे भागकर चन्देसरा चला आया। मैं उसे पहचान न सका और यह समझ न पाया कि इसका करूँ तो करूँ क्या। फिर आज सुबह मैंने इस नन्ही-सी बच्ची को एक झोंपड़ी से दूसरी झोंपड़ी जाते और एक गुमशुदा घोड़े के बारे में पूछते हुए देखा। लेकिन या इलाही ये माजरा क्या है?” तीसरी बार उसने अपना वही सवाल किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"यह कहानी एक वास्तविक गजपक्षी से प्रेरित है। इस विशाल पक्षी, एलिफेंट बर्ड, को वैज्ञानिकों ने एपियोरनिस मेक्सिमस का नाम दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी था और मेडागास्कर के द्वीपों में पाया जाता था। वनों के नष्ट होने और आबादी बढ़ने से ये विशाल पक्षी 1700 ई. के आस-पास लुप्त हो गए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"बेचारा सृंगेरी श्रीनिवास। लगता है इस सालाना बाल-कटाई दिवस पर कोई उसके बाल नहीं काटेगा।"
सालाना बाल-कटाई दिवस

"गुफ़ा के अंदर चैन से सोया शेर इस शोर से तंग आ गया।"
सालाना बाल-कटाई दिवस

"काटो का मन हुआ, वह उचककर उन्हें छू ले। और इस चक्कर में वह पानी में जा गिरा। गिरते-गिरते काटो ने कुछ मछलियों को उसका रास्ता काटते हुए देखा। “मुझे बचाओ, बचाओ मुझे,” पानी की लम्बी घूँटें लेते हुए उसने उन्हें पुकारा।"
नौका की सैर

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हुआ था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी आ गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा आया! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"मगर, इस बार नानी की ऐनक मुझे नहीं मिली...अब तक तो नहीं!"
नानी की ऐनक

""ओफ़! इस पूँछ के साथ तो मैं भाग भी नहीं पा रही हूँ। मेरी अपनी पूँछ कितनी हल्की थी। मैं कितने आराम से भाग सकती थी," चुलबुल अपनी गलती पर पछताने लगी। किसी तरह गिरते पड़ते वह फिर से डॉक्टर बोम्बो के अस्पताल पहुँची।"
चुलबुल की पूँछ

""अगर आप इस से देखें, तो आपको सब कुछ दिखेगा बड़ा और बेहतर!""
गुल्ली का गज़ब पिटारा

""मुझे इस पैकेट से तेल निकाल कर बोतल में डालना है, और देखो ना, बोतल का मुंह कितना छोटा है!मुझे यकीन है कि आज मेरी रसोई ज़रूर गंदी हो जाएगी।" मंगल चाचा ने कहा।"
गुल्ली का गज़ब पिटारा

"जब एक चौकीदार ने उन्हें रोका, चीनू नीचे कूदा। एक खाली बोरी लेकर वह अपने पिता जी के साथ गया। आज उन्हें जो भी सामान मिलेगा वह इस बोरी में भरा जायेगा।"
कबाड़ी वाला

"बाकी सभी की तरह लुहार भी मुन्नी के अंडों को बचाना चाहता था। उसने कहा, “अभी बनाता हूँ हँसिया। तुम ज़रा पीछे जाकर भट्ठी का दरवाज़ा खोलो और इस लोहे के टुकड़े को उसमें रख दो”"
काका और मुन्नी

"(Collage) हैं। कोलाज, अलग-अलग चीज़ों के टुकड़ों को जोड़कर एक नयी तस्वीर को बनाने का एक तरीका होता है। यह चीज़ें हाथों से बनी या इस किताब की तरह छपा हुआ काग़ज, अखबार और मैगज़ीन की कतरनें, पुराने कार्ड, छायाचित्र, कपड़ा, रिबन, सूखे फूल या पत्ते, या आसानी से मिल जानेवाली कोई भी चीज़ हो सकती है!"
काका और मुन्नी

"इस पृष्ठ में चार तत्वों वायु, जल, पृथ्वी और दहकते हुए सूर्य को दर्शाया गया है। जैसे इस किताब में कागज़ के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ है वैसे ही तुम कागज़ के टुकड़े"
काका और मुन्नी

"और जानते हो इस बार मुमताज़ उड़ कर कहाँ पहुँची? वह पहुँची एक बहुत ही प्राचीन नगरी में-जहाँ कोई रंग नहीं था! वहाँ उसने कितने ही लोग देखे-कुछ पैदल थे और कुछ बहुत ही बढ़िया, चमकदार गाड़ियों पर सवार थे। लेकिन हैरत की बात यह थी कि सब लोगों ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे-सुंदर, महीन कढ़ाई वाले चाँदनी से रौशन, चमकते सफ़ेद कपड़े!"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"फिर जब औरतों ने चिकन के कुरते पहनना शुरु किए तो यह काम रंगीन कपड़े पर भी होने लगा। लेकिन चिकन की बेहतरीन कढ़ाई सफ़ेद मलमल पर सफ़ेद धागे से ही होती है। यही इस काम का सार है, उसकी रूह है...और एक काबिल कशीदाकारिन का सबसे बड़ा इम्तिहान भी।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"जब मुमताज़ इस विस्मय-नगरी से लौटी तो उसने एक बड़ा सफ़ेद कपड़ा लिया और उस पर सफ़ेद धागे से फूल काढ़ने बैठ गई। उसने हरदोई के आमों और कश्मीर के बादाम के जैसे पत्ते काढ़े और फूलों के गुच्छों से लदी झाड़ियों के बीचोंबीच एक बहुत ही खूबसूरत मोर भी! वह किसी जादुई चादर से कम नहीं लगती थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"साँझी की प्राचीन कला आज भी भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा और वृंदावन में प्रचलित है। एक ज़माने में कलाकार पेड़ की पतली छाल का प्रयोग करते थे लेकिन अब तो तरह-तरह के कागज़ भी इस्तेमाल किये जाते हैं। नमूने बहुत विस्तृत होते हैं और अधिकतर धार्मिक दृश्य, फूल-पत्ते, वयन और रेखागणित संरचनाएँ दर्शाते हैं। इस जटिल कला का उपयोग मंदिरों में प्रतिमाएँ सजाने के लिए, कपड़े पर देवी-देवताओं के स्टैंसिल या बच्चों के लिए स्टैंसिल काटने के लिए किया जाता है। तस्वीर में रंग या चमक देने के लिए स्टैंसिल के नीचे रंगीन या धात्विक कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"दस्तकार हाट समिति भारतीय शिल्पकारों की एक विशाल संस्था है जो कि इस देश की पारंपरिक दस्तकारी से जुड़े लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कार्यरत है। चार कहानियों की इस शृंखला को चित्रित करने के लिए प्रांतीय कला और शिल्प के नमूनों का इस्तेमाल किया गया है जिससे भारत की भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक संवेदनाओं को साझा किया जा सके। हम युनेस्को, नई दिल्ली, के आभारी हैं जिनके योगदान से यह कार्य पूरा हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"”शुक्रिया! मैं राजपूत हूँ और इस नमूने को मेरे देश में बाँधनी कहते हैं।“"
रज़ा और बादशाह

"4. शाहजहाँ का मशहूर मयूर सिंहासन (पीकॉक थ्रोन) एक चौकोर चपटा आसन था। उसके हर कोने पर पतले खम्बे थे जो बेशकीमती नगीनों से सजे हुए थे। आसन के ऊपर एक छत्र था जिसके ऊपर नगीनों से जड़ी मोर की आकृति थी। बादशाह इस छत्र के नीचे, रेशमी गद्दियों की टेक लेकर बैठा करता था।"
रज़ा और बादशाह

"मैडम ने कहा था कि मुझे तुम्हारी मदद करनी है और तुम्हें यह दिखाना है कि स्कूल में कौन सी जगह कहाँ है, क्योंकि तुम स्कूल में नई आई हो। लेकिन उन्होंने मुझे इस बारे में और कुछ नहीं बताया था।"
थोड़ी सी मदद

"स्कूल से घर लौटते हुए अली, गौरव, सुमी और रानी, मुझसे बार-बार मेरी इस नई ज़िम्मेदारी के बारे में पूछते रहे। मैंने बात टालने की कोशिश की, लेकिन मुझे तो मालूम था कि मुझे क्या काम सौंपा गया है। मैंने उनसे कहा कि पता नहीं तुम लोग किस चीज़ के बारे में बात कर रहे हो। लेकिन यह बात सच नहीं थी। मुझे अच्छी तरह पता था कि वे किस के बारे में पूछ रहे हैं?"
थोड़ी सी मदद

"आज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल आ रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"पता है जब मैंने तुम्हें बस में देखा तो मैं बहुत हैरान हुआ था। मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मेरे पिता और तुम्हारे पिता एक ही जगह काम करते हैं! लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि तुम दफ़्तर की पिकनिक में आईं, क्योंकि पिछले साल जब हम दफ़्तर की पिकनिक पर गए थे तब उसमें मेरी उम्र का कोई भी बच्चा नहीं था और बड़ों के बीच अकेले-अकेले मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। मैं बहुत ऊब गया था।"
थोड़ी सी मदद

"तुम्हारा नया हाथ तो बहुत ही बढ़िया है! बुरा न मानना, लेकिन पुराना वाला हाथ कुछ उबाऊ था। बस था... नाम को। जबकि नया वाला तो बिल्कुल जादू जैसा है, और तुम उँगलियाँ भी चला सकती हो और उनसे चीजें भी पकड़ सकती हो! मुझे उम्मीद है कि अगर मैं तुमसे हाथ मिलाने के लिए कहूँ तो तुम बुरा नहीं मानोगी। अरे यह बात बस मेरे मुँह से यूँ ही निकल गई। कल देखेंगे कि क्या तुम इस से कुछ सामान भी उठा सकती हो।"
थोड़ी सी मदद

"अ. कुछ नहीं। इस से आपको कोई लेना-देना नहीं।"
थोड़ी सी मदद

"आप दोस्ती करने के लिए ही बने हैं। सदा दूसरों की मदद को तैयार! आप इस बात का इन्तज़ार नहीं करते कि लोग मदद माँगें। लोगों के मदद माँगने से पहले ही आप मदद देने के लिए हाज़िर रहते हैं।"
थोड़ी सी मदद

"कल्लू भागता रहा। मन ही मन उसने सोचा, पूरा गाँव मेरे खिलाफ़ है, दिमाग का पेंच ढीला बदरी भी। मुझ गरीब का मज़ाक बनाने में उन्हें मज़ा आता है। फिर उसे झटके से याद आया कहानी-बहाने की समस्या तो अभी वैसी ही बनी हुई थी। विकराल और हल-विहीन। अम्मी बीमार थी और उसे नाश्ता बनाना था। नहीं। दो बार इस्तेमाल कर चुका था। इस बार नहीं चलेगा।"
कल्लू कहानीबाज़

"खेल के दौरान कर्इ अवसरों पर वे पूरे मैदान को दौड़ कर पार कर लिया करते थे और इस दौरान गेंद उनकी स्टिक से ऐसे चिपकी रहती थी मानो उसे गोंद से चिपका दिया गया हो, और गेंद तभी उनकी स्टिक से अलग होती जब वो गेंद को गोल पोस्ट के अंदर दाग दिया करते। पूरे समय के दौरान सभी खिलाड़ी और गोलकीपर असहाय नज़र आते।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"लेकिन जो चीज़ उनकी ख़ास बात बनकर उभरी थी वो था हॉकी स्टिक चलाने का उनका असाधारण कौशल, हॉकी स्टिक के साथ गेंद को इस प्रकार नियंत्रित करने की क्षमता, मानो मैदान में और कोर्इ खिलाड़ी है ही नहीं। मानो जैसे वे दोबारा रात को अकेले अपने खेल के मैदान में अभ्यास कर रहे हों।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"और इन सटीक पासों की वजह से वे जादूगर के रूप में जाने जाते थे। उनके अवकाश प्राप्ति के कर्इ सालों बाद उन्होंने अपने सुंदर खेल के बारे में इस प्रकार से समझाया, “रहस्य मेरे दोनों हाथों, दिमाग और नियमित प्रशिक्षण में है।”"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"टीम यूरोप रवाना होने से पहले अपने अभ्यास मैच में हार गर्इ - ध्यान ने टीम की ओर से दो गोल किये, लेकिन उनकी विरोधी बॉम्बे टीम ने तीन गोल कर दिये। इस हार ने टीम को जोश दिला दिया। उन्होंने इंग्लैंड व यूरोप में अभ्यास मैचों को इतने बड़े अंतर से जीता कि, मर्इ के महिने में जब टूर्नामेंट शुरु हुआ, बाकी टीमों के मन में ज़रूर भारत की इस तूफ़ानी टीम का डर बैठ गया होगा।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"एक स्थानीय अखबार ने इसके बारे में कुछ इस प्रकार से लिखा, “यह हॉकी का खेल नहीं है, यह जादू है, ध्यान चंद वास्तव में हॉकी के जादूगर हैं।” जिसने भी ध्यान चंद की स्टिक से गेंद को चिपके हुए देखा है, उसको वास्तव में यह पता है कि इन शब्दों का क्या अर्थ है।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"समस्या यह थी कि भारत की टीम ने ८ गोल कर दिये थे। एडोल्फ़ हिटलर ने क्या सोचा होगा? जर्मनों के सर्वश्रेष्ठ होने की धारणा को इस पराजय से कितनी ठेस पहुँची होगी?"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"उन्होंने कर्इ वर्षों तक वहाँ, और देश के कर्इ हिस्सों में विभिन्न कैंपों में प्रशिक्षण दिया। वे इस बात से बहुत खुश थे कि उनके बाद उनके पुत्र अशोक ने भी हॉकी खेलने की परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"दुर्भाग्य से तब तक भारत हॉकी की एक शक्ति से पतन की ओर अग्रसर था। वो विश् व कप शायद अंतिम महत्वपूर्ण टूर्नामेंट था जिसे भारत जीत पाया था। रिटायर्ड मेजर, जिसके पास इस खेल में विजय की इतनी गौरवशाली यादें थीं कभी इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए कि जो खेल उनके दिल के इतने करीब था, उसमें उनकी टीम इतना संघर्ष कर रही थी। जब १९७६ के मांट्रियल ओलंपिक में भारतीय टीम छठे स्थान पर रही तब ध्यान चंद ने दर्द बयान करते हुए कहा, “कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा।”"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"ध्यान चंद ने अपने अंतिम वर्ष अपने प्रिय स्थान झाँसी में बिताए। वहाँ रहने वाले लोग इस महान पुरूष को देखा करते थे, जो कभी बाज़ार जा रहे होते तो कभी अपने मित्रों से मिलने अथवा कभी घर के काम निपटाने के लिए सार्इकिल पर जाते हुए दिखार्इ दे जाते थे। उनका निधन ३ दिसम्बर १९७९ को नर्इ दिल्ली के एक अस्पताल में हुआ। उनका पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ झाँसी हीरोज़ ग्राउंड पर अंतिम संस्कार किया गया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"आज हम उनके जन्मदिन, २९ अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं, और भारतीय खेल जगत के सर्वकालिक सर्वोच्च पुरस्कार, ध्यान चंद पुरस्कार को उनके नाम पर रखा गया है। यदि भारत खेल में पुन: कभी शक्तिकेंद्र के रूप में उभरता है तो हम कह सकते हैं कि इसके पीछे इस महान व्यक्ति की प्रेरणा है। एक जादूगर जो कभी हॉकी खेलता था, जिसने पूरी दुनिया को रोमांचित कर दिया।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"मोरू को देख कर लगता था कि गंगा के इस पार या उस पार वाला मुहावरा उसी के लिये लिखा गया था। उसकी पसंद या नापसंदगी बड़ी ज़बरदस्त थी। जो काम वह नहीं करना चाहता वह कोई भी उससे करवा नहीं सकता था और न ही कोई उसे अपने मन का काम करने से रोक सकता था। मोरू एक पहेली जैसा था।"
मोरू एक पहेली

"मोरू फिर से स्कूल में था। इस बार वह बहुत कुछ सीख रहा था। और उससे भी बड़ी बात यह थी कि उसे पढ़ना-लिखना अच्छा लग रहा था।"
मोरू एक पहेली

"तो, तुम इस सोच में डूबे रहते हो?"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"और, इस तरह जब आसमान के बादल गरजते हैं"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?

"घी के साथ गरम चावल, गरमा गरम साम्बर, तले हुए आलू, जिमीकंद और खसखस की खीर। और इस सब को ढंग से पचाने के लिए, ठंडी छाछ। इस आशा में कि वो रात को अच्छी नींद सो पाएंगे, राजा ने हर चीज़ को दो - दो बार खाया।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"विदूषक ने एक लम्बी, उब्काऊ सी कहानी शुरू की, इस उम्मीद से कि राजा उसे सुनते ही सो जायेंगे। आह, मगर हमारे राजा को चैन कहाँ था। बेचैन होकर पूछते रहे, “हाँ हाँ, वो तो ठीक है, मगर कहानी ख़तम कैसे होती है?”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राजा अपनी निद्राहीन प्रजा के लिए बहुत ही चिंतित हो उठे। अपने इस विस्तृत कार्यक्रम की सलाह तो हर किसी को वो दे नहीं सकते थे। उन्होंने अपने राजपुरोहित से सुझाव माँगा। उस बुद्दिमान इंसान को पता था कि यह एक जटिल समस्या है। “सभी से कहिए आज से पंद्रह दिन बाद नगर सभा में एकत्रित हों। सभी लोग गरम पानी से नहा कर, भोजन करके, सूर्यास्त पर हाज़िर हों। मैं सभी को आशीर्वाद देने के लिए निद्रा देवी को वहाँ बुलाऊँगा।”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"अच्छा हुआ जो हम इस 'लॉयनफ़िश’ से दूर रहे। इसके कांटे चुभने से चढ़ सकता है ज़हर!"
गहरे सागर के अंदर!

"हमने इस 'हनीकोम्ब मोरे ईल’ को ' क्लीनर रास ’ से अपने दांत साफ़ करवाते हुए देखा। इन्हीं मछलियों के एक दूसरे जोड़े ने हमारी रगड़ाई - सफ़ाई करने में भी दिलचस्पी दिखाई!"
गहरे सागर के अंदर!

"इस खेल में ऑक्टोपस की जीत हुई। आठ पैरों वाले ये जीव जन्मजात बहरूपिये होते हैं। यूं पाइपफ़िश भी छुपने के लिए रूप बदलने में किसी से कम नहीं!क्या इस तस्वीर में दो घोस्ट पाइपफ़िश नज़र आ रही हैं?"
गहरे सागर के अंदर!

"गौरैया चूहे के पास जाकर बोली, “मैं बाज़ार से एक अमरूद लाई। वह कँटीली झाड़ी में गिर गया। उस लड़के ने निकाल कर नहीं दिया। किसान, गाय, मछुआरे किसी ने मेरी बात नहीं मानी। तुम इस मछुआरे के जाल के टुकड़े कर दो।” चूहे ने कहा, “ना बाबा ना! जाल के टुकड़े नहीं करूँगा।”"
गौरैया और अमरूद

"“बेचारे साँप गर्मी से बेहाल हैं! काश, इन्हें यहाँ थोड़ी सी छाया मिल जाती! काश, इस उजाड़ जगह पर कुछ पेड़ होते!”"
जादव का जँगल

"जादव से साँपों को इस तरह धूप में झुलस कर मरते नहीं देखा जा रहा था। यह नज़ारा देख कर वह इतने दुःखी हुए कि वहीं बैठ कर रोने लगे।"
जादव का जँगल

"समय आने पर बाँस के अँखुओं में से जड़ें फूटीं, और बाँस के झुरमुट पनपने लगे। बाँसों के बढ़ने के साथ रेत पर छाया रहने लगी, और इस छाया में कीड़े-मकोड़े पनपने लगे।"
जादव का जँगल

"ख़ूब सारे पौधे और बीज लेकर जादव एक कुछ-पेड़ों-वाली-जगह जा पहुँचे, और इस तरह वह खाली जगह देख कर वहाँ पौधे रोपने लगे और बीज बोने लगे।"
जादव का जँगल

"इनमें से कुछ फल खाने आएँगे, कुछ पेड़ का रस पीने आएँगे, कुछ इसके फूलों का रस पीने आएँगे और कुछ जीव इस पेड़ पर जमघट लगाये जीवों को चट करने के चक्कर में होंगे! सभी पेट भरने के चक्कर में रहेंगे, ऐसा भी नहीं है। कुछ ऐसे भी जीव होंगे जो आपके पेड़ की छाँव में आराम करने, उसकी डालों में कुछ देर चैन की नींद लेने आएँगे। आपका पेड़ अलग-अलग जीवों के लिए अलग काम का होगा!"
जादव का जँगल

"उनकी आवाज़ साफ़ सुनाई दी, "ठीक है! एक शर्त है। आप ऐलान कर दीजिए कि इस शहर में हर सुबह और हर शाम को एक कहानी सुनाई जाएगी। इस तरह सबके पास कहानियाँ होंगी और वे अपना काम भी कर सकेंगे।""
कहानियों का शहर

"लांगलेन ने पूछा, "क्या वह हल्की-गहरी काली धारियों वाला बच्चा इस बिल्ली का नहीं है?""
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

""मैं वह वजह हूं जिसके जादू से इस प्लेट में यह स्वादिष्ट चीज़ें आई हैं!" यह कहने के साथ ही उन्होंने प्लेट पर ढका नैपकिन हटा दिया। प्लेट में गर्मागर्म वड़े रखे हुए थे।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"अपने इस 'बहुत ही अलग' गुणों वाले काल्पनिक जानवर का"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"एक दिन उसकी माँ ने काम के बीच उसकी बहन को घर पर रुकने के लिए बोला। तब लड़का बोला, "माँ, आज दीदी स्कूल क्यों नहीं जा रही है?" माँ ने जवाब दिया, "आज घर पर बहुत काम है इसलिए दीदी स्कूल नहीं जाएगी।" इस तरह कुछ दिन बीत गए।"
और दीदी स्कूल जाने लगी