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Storybook paragraphs containing word (93)

"मुझे पैरों की वाज़ रही है! कौन है? कौन है?"
मैं नहीं डरती !

"“मुझे नींद नहीं रही अम्मा!” टिंकु फुसफुसाया। लेकिन अम्मा ने उसकी बात सुनी ही नहीं। वह गहरी नींद में थी।"
सो जाओ टिंकु!

"टिंकु और उसके दोस्त हँसे और उछले-कूदे। वे इधर से उधर लुढ़के, जब तक कि टिंकु को उबासी ने लगी। हा! वह बहुत थक गया था। “मुझे नींद रही है अब घर जाना है,” टिंकु बोला।"
सो जाओ टिंकु!

"इस गूँधे हुये टे को अम्मा थोड़ी देर के लिये एक तरफ़ रख देती हैं। अब वह खीर बना रही हैं जैसे ही वह पूरियाँ बेलना शुरू करेंगी, हम वापिस जायेंगे।"
पूरी क्यों फूलती है?

""हाँ, के र एस।" मुत्तज्जी ने बड़े प्यार से अज्जी को देखा और कहा, "तुम्हारी अज्जी मेरी पाँचवी संतान थी, सबसे छोटी, लेकिन सबसे ज़्यादा समझदार। तुम जानते हो बच्चों, मेरे बच्चे ख़ास समय के अंतर पर हुए। हर दूसरे मानसून के बाद एक, और जिस दिन तुम्हारी अज्जी को पैदा होना था, उस दिन तुम्हारे मुत्तज्जा का कहीं अता-पता ही नहीं था। बाद मेँ उन्होंने बताया कि वो उस दिन ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी का भाषण सुनने चले गए थे। और उस दिन उन्हें ऐसा जोश गया था कि वह सारे दिन बस "भारत छोड़ो” के नारे लगाते रहे। बुद्धू कहीं के... नन्हीं सी बच्ची को दिन भर परेशान करते रहे।""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

""मज़ा गया! वाह, क्या बात है! हुर्रे!""
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"बांध जिसने कावेरी को बांधा (1932) – दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी बहती है। इस नदी की वजह से पूरा मैसूर बहुत उपजाऊ था। लेकिन, दूसरी नदियों की तरह, मानसून के दौरान, इसमे बाढ़ जाती थी और गर्मी के समय, यह सूख जाती थी। लेकिन इस नदी के उपर एक बांध बनने के साथ ही एक जबर्दस्त बदलाव गया। और कृष्ण राजा सागर (के र एस) रिसर्वोयर का निर्माण हु। ज भी इसी रिसर्वोयर से पूरे बंगलोर शहर को पीने का पानी मिलता है।"
मुत्तज्जी की उम्र क्या है?

"”मैं पके साथ रहा हूँ।“"
स्वतंत्रता की ओर

"”मैं पसे कुछ पूछना चाहता था,“ धनी थोड़ा घबराया। ”क्या मैं पके साथ दाँडी सकता हूँ?“ हिम्मत करके उसने कह डाला। गाँधी जी मुस्कराये, ”तुम अभी छोटे हो बेटा! दाँडी तो 385 किलोमीटर दूर है! स़िर्फ तुम्हारे पिता जैसे नौजवान ही मेरे साथ चल पायेंगे।“"
स्वतंत्रता की ओर

"क्या तुमने कभी बुरी सुबह बिताई है, जब तुमने धी नींद में बहुत सारा पेस्ट फैला दिया हो और अचानक से जगे, क्योंकि पूरा सिंक पेस्ट से भरा था और माँ याद दिला रही थी कि 20 मिनट में स्कूल बस दरवाज़े पर जाएगी। उस समय तुम यही चाह रहे होगे कि माँ वह सब साफ़ कर दे जो तुमने गंदा किया।"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"● क्या तुमने कभी दंत मंजन का उपयोग किया है? इसमें कितने तरह की खुशबू सकती है? क्या तुमने इसे खोजा है?"
टूथपेस्ट ट्यूब के अंदर कैसे आया?

"बनारस वाली शुभा मौसी ने मुझे कुछ सुंदर गीत सिखाए हैं। इन गीतों को कजरी कहते हैं। क्या पको मालूम है कि सम्राट अकबर के दरबार में एक प्रसिद्ध गायक थे मियाँ तानसेन? कहा जाता है कि वो “मियाँ की मल्हार” नाम का एक राग गाते थे तो वर्षा जाती थी। मैं भी संगीत सीखूँगी-शास्त्रीय संगीत।"
गरजे बादल नाचे मोर

"रसोई से माँ के तले पकौड़ों की सुगन्ध रही है।"
गरजे बादल नाचे मोर

"जल्दी-जल्दी दोसा बनाती हुई अम्मा की वाज़ रही है।"
क्या होता अगर?

"मैं मुस्कराया। सपनों की दुनिया के बारे में सोच कर मज़ा रहा है।"
क्या होता अगर?

"समझ नहीं रही है।"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"पर कुछ समझ नहीं रहा है,"
कितनी मज़ेदार है बांग्ला संख्याएं

"तितलियाँ! देखो कैसे वे अपने कोय से बाहर रही हैं!"
तितलियां

"मिस मीरा अपने कामों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्होंने बच्चों को उनका मनपसंद काम सौंपा है, और वो है अपने प खेलना। स्टेल्ला और परवेज़ को बोर्ड पर चित्र बनाने में बड़ा मज़ा रहा है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"पर परवेज़ तो पहले ही उस पार कूद चुका था। फिर वापस फांद कर स्टेल्ला के पास जाता है।"
कोयल का गला हुआ खराब

"‘अरे नहीं! इससे तो बारिश का पानी पूरी तरह अंदर रहा है।’"
द्रुवी की छतरी

"बच्चे टिटहरी के पास गए।"
कुत्ते के अंडे

"पहले बच्चे दूर से घूर रहे थे। फिर थोड़ा करीब कर देखने लगे।"
दीदी का रंग बिरंगा खज़ाना

"माँ और बाबा को कुछ समझ में नहीं रहा था कि वह और क्या कर सकते हैं। फिर बाबा मुस्कराए।"
एक सफ़र, एक खेल

"इससे पहले कि वह खुला मैदान पार कर पाती, कोई गोलाकार चीज़ उसके पाँवों से टकरायी। उसे देखने के लिए वह रुकी। किसी पेड़ का वह एक खोखला गोलाकार फल था। विशाल गजपक्षी खेलना चाहता था! फलनुमा गेंद पकड़ने के लिए उसने अपना एक पंजा ऊपर किया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी वाज़ यी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह गे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस जाओ!” मुनिया के बाबूजी का देश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम गे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा दमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी

" ........."
चुन्नु-मुन्नु का नहाना

"गुफ़ा के अंदर चैन से सोया शेर इस शोर से तंग गया।"
सालाना बाल-कटाई दिवस

"याद गई अपनी माई।"
सबरंग

"काटो ठंड से काँपते हुए धूप में अपने को सुखाने की कोशिश कर रहा था। पास में विक्की चुपचाप बैठा हु था। जब काटो के बाल थोड़ा सूख गये और शरीर में थोड़ी गर्मी गयी, वह बोल उठा, “कितना मज़ा या! जब मेरे साथी इस किस्से को सुनेंगे तो उन्हें विश्‍वास ही नहीं होगा।” काटो को लग रहा था मानो वह एक बहुत बड़ा हीरो और जहाज़ का जाँबाज़ कप्तान बन गया हो!"
नौका की सैर

"एक लंबे अंतराल के बाद पेड़ पौधों में नयी पत्तियाँ रहीं हैं।"
बारिश हो रही छमा छम

"अभी ट्रेन यी नहीं है।
 बहुत से लोग रहे हैं।"
चाचा की शादी

"वे हमे ढूँढ रहे हैं।
 उनके पीछे पीछे मेरी दादीजी रही हैं।"
चाचा की शादी

"मेरी मोटी चाची गयी हैं।
 उनके साथ पतले चाचाजी भी हैं।"
चाचा की शादी

"शोर मचने लगा। ट्रेन रही है! ट्रेन रही है!
 सब ट्रेन में चढ़ने की कोशिश में थे। पर वह कहाँ हैं, जिनकी शादी में हम सब जा रहे हैं?"
चाचा की शादी

"मेरे पापा उन्हें ढूँढने लगते हैं। मेरे दादाजी भी ढूँढने लगते हैं। मेरी मम्मी परेशान लग रही हैं। लेकिन दादीजी मुस्करा रही हैं। “वह देखो,” दादी कहती हैं। छोटे चाचा दौड़ते हुए हमारी ओर रहे हैं।"
चाचा की शादी

"… जा बदरवा जा..."
बारिश में क्या गाएँ ?

"दीनू डायनासोर उनका गाना सुनने दौड़ा चला रहा था!"
बारिश में क्या गाएँ ?

"… जा बदरवा जा... बूँदों को बरसा जा!"
बारिश में क्या गाएँ ?

"जब चींटी उसके मुँह के पास से गुज़री तो कुत्ते को ज़ोर से छींक गयी। चींटी उछलकर दूर जा गिरी। दाना कुत्ते के मुँह के पास जा गिरा।"
दाल का दाना

"थकी हुई थी इसलिये उसे तुरन्त नींद गई। अचानक, ज़ोर की वाज़ सुनकर उसकी नींद टूटी।"
चुलबुल की पूँछ

"अरे बाप रे बाप! एक बड़ा सा कुत्ता उसकी पूँछ देखकर उसे बिल्ली समझ उसकी ओर दौड़ता चला रहा था!"
चुलबुल की पूँछ

"एक बार घर के अंदर एक चूहा गया।"
चूहा सिकंदर, घर के अंदर

"माँ की कहानी सुनते सुनते चन्दू को गहरी नींद गई।"
उड़ते उड़ते

"चन्दू ने कहा, “मज़ा रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"चन्दू ने कहा, “मज़ा रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"चन्दू बोला, “मज़ा रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"चन्दू बोला, “मज़ा रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"चन्दू ने कहा, “मज़ा रहा है।”"
उड़ते उड़ते

"फिर एक दिन अम्मा को बहुत गुस्सा गया, उसने कहा, "देखना अब यह कूड़ा हमेशा तुम्हारे साथ ही रहेगा!" चीकू हँसती रही।"
कचरे का बादल

"चीकू को गुस्सा गया। क्या बाला को मेरे सिर पर कचरे का बादल नहीं दिख रहा?"
कचरे का बादल

"लेकिन वह डरती कि कहीं कचरे का बादल फिर न जाए।"
कचरे का बादल

"पलकों पर भी ये जाएँ,"
ऊँट चला, भई! ऊँट चला

"लेकिन वह समाचार तो खुश करने वाला नहीं था, "नदी में दवाई छिड़क कर मछलियों को पकड़ने वाले रहे हैं। अनेकों नदियों से ऐसे ही वे लोग मछलियाँ पकड़ कर ले गये हैं।" यह सुनकर उसे गहरा धक्का लगा। बाकी मछलियों को भी यह समाचार पता चला।"
मछली ने समाचार सुने

"मेंढक और कछुए भी बहुत डर गए। क्या करें कुछ समझ में नहीं रहा था। सब निराश होकर बैठ गये। रोज़ की तरह दादा से रेडियो छीनने कोई नहीं या। गे की चिन्ता सभी को सता रही थी।"
मछली ने समाचार सुने

"ईद के दिन भी दोनों दोस्त अपने पंछियों की उछल-कूद देख रहे थे। मुन्नु को लगा मुमताज़ ज बहुत उदास है, इतनी उदास कि कहीं वह रो ही न दे। “क्या बात है, पा, ज इतनी गुमसुम क्यों हो? क्या हरदोई की याद रही है? क्या वहाँ तुम्हारे और भी पालतू पंछी हैं?”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"“चिकनकारी तो हम पिछली तीन पुश्तों से करते रहे हैं। मैंने अपनी अम्मी से और अम्मी ने नानी से यह हुनर सीखा,” मुमताज़ बोली, “मेरी नानी लखनऊ के फ़तेहगंज इलाके की थीं। लखनऊ कटाव के काम और चिकनकारी के लिए मशहूर था। वे मुझे नवाबों और बेग़मों के किस्से, बारादरी (बारह दरवाज़ों वाला महल) की कहानियाँ, ग़ज़ल और शायरी की महफ़िलों के बारे में कितनी ही बातें सुनाया करतीं। और नानी के हाथ की बिरयानी, कबाब और सेवैंयाँ इतनी लज़ीज़ होती थीं कि सोचते ही मुँह में पानी ता है! मैंने उन्हें हमेशा चिकन की स़फेद चादर ओढ़े हुए देखा, और जानते हो, वह चादर अब भी मेरे पास है।” नानी के बारे में बात करते-करते मुमताज़ की ँखों में अजीब-सी चमक गई, “मैंने अपनी माँ को भी सबुह-शाम कढ़ाई करते ही देखा है, दिन भर सुई-तागे से कपड़ों पर तरह-तरह की कशीदाकारी बनाते।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"भागती जा रही है, तेज़, तेज़...और तेज़। लोटन ने अपनी चोंच में चादर का तीसरा कोना और लक्का ने चौथा कोना पकड़ा और वे सब उड़ने लगे, ज़मीन नीचे छूटती जा रही थी और समान नज़दीक रहा था।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने

"काफ़ी लम्बा रास्ता था। रज़ा ने चारों तरफ़ देखा तो उसकी ँखें श्‍चर्य से खुली की खुली रह गईं। मुग़लों के महल कितने सुन्दर थे! पतले नक्काशीदार खम्भे और मेहराब-सब लाल रंग के बालुकाश्म से बने हुए। कहीं कहीं फुलवारी वाले बग़ीचे, जिनमें कमलों से सजे तालाब और झिलमिलाते फव्वारे नज़र रहे थे। रज़ा ने मन से सोचा कि जन्नत ऐसी ही होती होगी।"
रज़ा और बादशाह

"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह

"वह साँस रोके खड़ा रहा। उसने देखा कि धनी सिंह मुस्करा रहे हैं-शायद उन्हें यह देख कर हँसी रही थी कि राजा साहब ने उनकी पगड़ी का पटका बना दिया था!"
रज़ा और बादशाह

"सुनो, मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहता हूँ। यह ठीक है कि तुम हमारे स्कूल में नई हो। लेकिन अगर तुम चाहती हो कि कोई तुम्हें घूर-घूर कर न देखे, और तुम्हारे बारे में बातें न करें, तो तुम्हें भी हर समय सबसे अलग-थलग खड़े रहना बंद करना होगा। तुम हमारे साथ खेलती क्यों नहीं? तुम झूला झूलने क्यों नहीं तीं? झूला झूलना तो सब को अच्छा लगता है। तुम्हें स्कूल में दो हफ्ते हो चुके हैं, अब तो तुम खुद भी सकती हो। मैं हमेशा तो तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता न।"
थोड़ी सी मदद

"ज जब सुमी, गौरव और मैं स्कूल रहे थे तो वे एक खेल खेल रहे थे, जो उन्होंने ही बनाया था। इस खेल को वे एक हाथ की चुनौती कह रहे थे। इस का नियम यह था कि तुम्हें एक हाथ से ही सब काम करने हैं- जैसेकि अपना बस्ता समेटना या फिर अपनी कमीज़ के बटन लगाना।"
थोड़ी सी मदद

"मुझे लगता है कि मुझे यह बात पहले ही तुम्हें बता देनी चाहिए थी- जब भी वार्षिकोत्सव ने वाला होता है, प्रिंसिपल साहब कुछ सनक से जाते हैं। वे तुम पर चिल्ला सकते हैं - वे किसी को भी फटकार सकते हैं। अगर ऐसा हो, तो बुरा न मानना। मेरी माँ कहती है कि वे बहुत ज़्यादा तनाव में जाते हैं, क्योंकि वार्षिकोत्सव कैसा रहा इससे पता चलता है कि उन्होंने काम कैसा किया है।"
थोड़ी सी मदद

"अ. मज़ा गया! एक और दोस्त!"
थोड़ी सी मदद

"“गया,” शब्बो ने हँसी दबा के गाना गाया, “मुनिया बाहर जा!”"
कल्लू कहानीबाज़

"उसकी बहन मुनिया एक अल्मारी के पीछे से प्रकट हुई। उसके चेहरे पर भी चौड़ी मुस्कान खेल रही थी। दोनों इतनी ज़ोर से हँसे कि मुनिया को हिचकियाँ गईं।
 निकलते हुए कल्लू ने रसोई से एक सूखी रोटी उठा ली थी। उसे चबाते हुए वह खुद से बात करते हुए चला जा रहा था।"कहानी कल्लन मियाँ। एक नई, मानने लायक कहानी नहीं तो फिर कोने में खड़े पाये जाओगे।”"
कल्लू कहानीबाज़

"“कहानी? कौन सी कहानी?” कल्लू ने गंभीर चेहरा बना के अचरज दिखाने की कोशिश की, “मैं कहानियाँ नहीं सुनाता... मतलब... कि” यह सब क्या हो रहा है, कल्लू ने सोचा, “एक-एक शब्द सौ प्रतिशत सच मास्टर जी।” “ज तो समय से पन्द्रह मिनट पहले गये कल्लन,” मास्टर जी की मुस्कान खिली।"
कल्लू कहानीबाज़

"“हाँ, और एक अच्छी खासी कहानी भी बरबाद हो गई,” मास्टर जी ने हमदर्दी जताई “चलो, अब अन्दर तो ही जाओ।” “शब्बो को भुगतना पड़ेगा,” कल्लू ने दाँत पीसे, “छोड़ूँगा नहीं उसे।” “क्या करोगे?” “दूसरी टाँग तोड़ दूँगा!” कल्लू ने बिफ़र कर कहा।"
कल्लू कहानीबाज़

"तब तक ध्यान चंद के छोटे भार्इ रूप भी टीम में चुके थे और दोनों भार्इयों ने मिल कर ३५ में से २५ गोल किये थे। एक अमेरिकी पत्रकार ने लिखा कि यह भारतीय टीम “पूर्व का एक तूफ़ान है।” और यह तूफ़ान अभी शुरु ही हो रहा था। १९३२ के अपने विजयी दौरे में भारतीय टीम ने ३७ मैचे खेले और इनमें ३३८ गोल किये। इनमें से १३३ ध्यान ने किये थे। १९३४ में ४८ मैचों में भारतीय टीम ने ५८४ गोल किये, जिसमें से ध्यान चंद ने २०१ गोल किये।"
ध्यान सिंह  'चंद'  : हॉकी के जादूगर

"अगले दिन मोरू ने स्कूल छूटने का इन्तज़ार किया। जब सब बच्चे जा चुके थे और शिक्षक अकेले थे, मोरू चुपचाप अन्दर या और दरवाज़े पर कर खड़ा हो गया। शोरोगुल और हँसी मज़ाक के बगैर स्कूल कुछ भुतहा सा लग रहा था। शिक्षक ने नज़र उठाई और बोले, “अच्छा हु जो तुम गये। मुझे तुम्हारी मदद चाहिये।” मोरू को अचरज हु। शिक्षक क्या मदद चाहते होंगे? उनके पास तो मदद के लिये स्कूल में बहुत से बच्चे थे। वे धीरे से बोले, “क्या तुम किताबों को छाँटने में मेरी मदद कर सकते हो?”"
मोरू एक पहेली

"अँधेरा हो चला था और स्कूल में बिजली नहीं थी। “अब तुम्हें घर जाना चाहिये मोरू, पर कल फिर सकते हो?” शिक्षक ने पूछा, “पर क्या उस समय ओगे जब बच्चे यहाँ हों?” अगले दिन स्कूल शुरू होने के कुछ देर बाद मोरू या। बच्चे उसे देख कर हैरान थे और कुछ डरे भी। अब तक मोरू का मौहल्ले के अकड़ू दादाओं में शुमार होने लगा था। “अब मेरी मदद करने वाला कोई है,” शिक्षक ने कहा।"
मोरू एक पहेली

"वहाँ मोरू नज़र रहा था। वह सर झुकाये ध्यान से अपनी कॉपी में कुछ देख रहा था। उसके माथे पर सोच की रेखाएँ दिख रही थीं और उसकी ँखों में गहरी तल्लीनता थी। वह अपनी उम्र के बाकी लड़कों के साथ गणित के मुश्किल सवाल हल करने में लगा हु था। शिक्षक की नज़र भी बाहर गई और वह मोरू की माँ की तरफ़ देख कर हल्के से मुस्कराये।"
मोरू एक पहेली

"कोट्टवी राजा को नींद रही थी। उनका मंत्रीमंडल किसी जटिल समस्या पर चर्चा कर रहा था और राजा ऊब गए थे।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"उनका सर फिर छाती पर लटका।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राजा की नज़र मुख्य मंत्रीजी की तोंद पर पड़ी। उन्हें पूरा यकीन गया।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"राज संगीतकार को यह खाने की कहानियाँ बिलकुल नहीं भा रही थीं। भरा पेट हो, तो वो गा ही नहीं सकते! मगर वो भी कुछ मदद करना चाहते थे। सो उन्होंने कहा, “हमारे वंश में, महाराज, हम निद्रा देवी का स्वागत हमेशा संगीत से ही करते हैं। नीलाम्बरी राग में गाई हुई कोई सुन्दर रचना, वीणा की संगत में... हा, परमानन्द!”"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"जब तक उन्होंने खाना ख़त्म किया, ग्यारह बजने वाले थे। मगर, पुरानी दतों को तोड़़ना सान नहीं होता - उन्हें अब भी नींद नहीं रही थी।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"“शायद संगीत सुन लूँ तो नींद जाए,” उन्होंने सोचा।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"रात की शान्ति में उस मधुर धुन को सुनने में क्या नंद रहा था। कोट्टवी राजा को चैन मिला। हा परमानंद!"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"हर दिन इसी तरह कार्यक्रम चलता रहा। वक़्त के साथ, कोट्टवी राजा थोड़़ा और जल्दी सोने लगे। दो हफ्ते में, उन्होंने देखा कि दूसरे गिलास दूध के साथ ही उन्हें नींद जाती थी। उसके कुछ हफ्ते बाद, सैर के तुरंत बाद सोने लगे वो। एक महीने बाद, विदूषक की कहानी ने सुला दिया राजा को।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"और फिर, अंत में, वो रात के भोजन के बाद ही सो गए। प्रायः हर सुबह वो चुस्ती से जागते! उनकी चाल में उचक गई और वो सभी की ओर देखकर मुस्कुराने लगे।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश

"इस खेल में ऑक्टोपस की जीत हुई। ठ पैरों वाले ये जीव जन्मजात बहरूपिये होते हैं। यूं पाइपफ़िश भी छुपने के लिए रूप बदलने में किसी से कम नहीं!क्या इस तस्वीर में दो घोस्ट पाइपफ़िश नज़र रही हैं?"
गहरे सागर के अंदर!

"वह जगह बिलकुल सूखी और गर्म थी। वहां की रेत भुरभुरी थी, और उस पर धारियाँ सी नज़र रही थीं।"
जादव का जँगल

"दूर से जो धारियाँ नज़र रही थीं, वह दरअसल साँप थे!"
जादव का जँगल

"जादव ने सोचा कि बीती रात पानी बढ़ा होगा जिससे यह किनारे पर गए होंगे।"
जादव का जँगल

"एक साल महानद सूखकर एक पतली सी धारा भर रह जाता तो दूसरे साल उसमें बाढ़ जाती। कभी उसके सैलाब में काफ़ी सारी रेत बह कर जाती, तो कभी उसकी धारा में तमाम रेत बह जाती। ज़ोरदार बारिश के दिन ए और चले गए। लेकिन जादव ने बाँस की रोपाई जारी रखी।"
जादव का जँगल

"कोई पास से तो कोई दूर से, तमाम सारे पक्षी मुलाई के लगाए पेड़ों में घोसले बनाने के लिए गए।"
जादव का जँगल

"वहाँपेड़ों की कमी नहीं थी, इसलिए वहाँ बसने के लिए जानवरों का ताँता लग गया। कोई कूद-फाँद कर या, कोई डाल-डाल पर छलाँगे मारते हुए, तो कोई मटक-मटक कर चलते हुए। गौर, हिरन, खरगोश और गिब्बन ए। हाथी ये, बाघ ए और गैंडे भी कर बस गए।"
जादव का जँगल

"जब जादव ने देखा कि साँप गए हैं, तो उनका जी भर या। वह धम्म से ज़मीन पर बैठ गए और ख़ुशी के ँसू उनकी ँखों से बह निकले। ख़ुशी के मारे उन्हें साँपों के काटने का भी डर नहीं रहा।"
जादव का जँगल

"बस ड्राइवर अपनी सीट पर से कूदकर गया और सुनने लगा। बस के सारे यात्रियों के साथ बैठकर उन्हें अपनी कहानियाँ सुनाने की ऐसी जल्दी मची थी, कंडक्टर अपना बैग, टिकट और पैसा बस में भूल या।"
कहानियों का शहर

""कभी-कभी ये विशेषताएं पिछली या उससे पहले वाली किसी पीढ़ी से जाती हैं।"
कहाँ गये गालों के गड्‌ढे?

"टीचर की बात लड़के की माँ को समझ में गई और उन्होंने अपनी बेटी को रोज़ स्कूल भेजना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनको देखकर गाँव के सभी लोग अपने बच्चों को रोज़ स्कूल भेजने लगे और फिर उनका गाँव बदलने लगा।"
और दीदी स्कूल जाने लगी