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Storybook paragraphs containing word (94)
"सभी लोग हँसते हुए उसकी तरफ इशारा करते हैं,"
गप्पू नाच नहीं सकती
"“मुझे नींद नहीं आ रही अम्मा!” टिंकु फुसफुसाया। लेकिन अम्मा ने उसकी बात सुनी ही नहीं। वह गहरी नींद में थी।"
सो जाओ टिंकु!
"चमकीला गोल-गोल चाँद पूरी रात चमकता रहा। उसकी शीतल चाँदनी चारों ओर बिखरी थी।"
सो जाओ टिंकु!
"लेकिन कहीं न कहीं अर्जुन के मन में एक इच्छा दबी हुई थी। वह उड़ना चाहता था।
वह सोचता था कि कितना अच्छा होता अगर उसके भी हेलिकॉप्टर जैसे पंख होते, वह उसकी कैनोपी के ऊपर की हवा को काट देते!
शिरीष जी अपने सिर को एक अँगोछे से लपेट लेते जो हवा में लहर जाता। और “फट फट टूका, टूका टुक,” आसमान में वे उड़ने निकल पड़ते।"
उड़ने वाला ऑटो
"एक बच्चा कार और ऑटो के बीच से बच-बचा कर आया। वह पानी बेच रहा था। ठन्डे पानी की एक बोतल निकालते समय उसकी आँखें चमकीले पत्थरों जैसी जगमगा रही थीं।"
उड़ने वाला ऑटो
"बहुत सी मछलियों का एक समूह उसके आसपास तैरने लगा। जिन मछलियों को वह खाती थी, वे उसकी जान बचाने वाली नर्सें बन गयीं थीं। उन्होंने उसका घाव साफ़ कर दिया।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"प्रिय पाठक, क्या आपको मालूम है कि प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में हिन्द महासागर को ‘रत्नाकर’ कहा जाता था? रत्नाकर यानि हीरे जवाहरात की खान। मैंटा रे मछलियाँ अक्सर सफ़ाई के ठिकानों पर जाया करती हैं। सफ़ाई के ठिकानों को कुदरत का अस्पताल कहा जा सकता है। यहीं एंजेल फ़िश जैसी छोटी मछलियाँ मैंटा रे के गलफड़ों के अन्दर और खाल के ऊपर तैरती हैं। वे क्लीनर फ़िश कहलाती हैं क्योंकि वे मैंटा रे के ऊपर मौजूद परजीवियों व मृत खाल को खा कर उसकी सफ़ाई करती हैं। मैंटा रे मछलियाँ विशाल होने के बावजूद बहुत कोमल स्वभाव की होती हैं। बड़ी शार्क, व्हेल मछलियाँ व मनुष्य उनका शिकार करते हैं।"
पिशि फँसी तूफ़ान में
"और जब पूरी को गर्म तेल में डालते हैं तो उसकी निचली सतह तेल की वजह से बहुत गर्म हो जाती है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"सीरिया मे दमसकस के पास की गई खुदाई से पता चलता है कि गेहूँ का इतिहास करीब 9000 साल पुराना है इसी जगह पर, गेहूं को बोने और उसकी फसल को काटने और साथ ही उसे पीसने के लिए जरूरी औज़ार भी मिले है।"
पूरी क्यों फूलती है?
"साबरमति में सबको कोई न कोई काम करना होता-खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था-बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसन्द था क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।"
स्वतंत्रता की ओर
"बिन्नी ने घास चबाते हुए सर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही थी। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।"
स्वतंत्रता की ओर
"”हाँ, वो तो हैं ही!“ बिन्दा की आँखों के आस-पास हँसी की लकीरें खिंच गईं, ”उन्होंने वायसरॉय को चिट्ठी भी लिखी है कि वे ऐसा करने जा रहे हैं! ब्रिटिश सरकार को तो पता ही नहीं कि उसकी क्या गत बनने वाली है!“"
स्वतंत्रता की ओर
"“मैं बोल रहा हूँ, पच्चा, इमली का पेड़।“ इंजी, ज़ोर से भौंकने लगा और अपनी पूँछ को और भी ज़्यादा तेज़ी से हिलाने लगा। उसकी पूँछ से"
आओ, बीज बटोरें!
"दस मिनट बाद वह अपनी सीट पर ठीक तरह से कुर्सी की पेटी बाँध कर बैठ गए। जहाज़ चलने पर राजू खिड़की से बाहर देखने लगा। जहाज़ पहले धीरे-धीरे आगे बढ़ा फिर देखते ही देखते उसकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो गई। राजू को लगा कि उसकी कुर्सी थरथरा रही है।"
राजू की पहली हवाई-यात्रा
"“परवेज़, तुमने आज सुनने की मशीन नहीं लगायी है! तुम जानते हो ठीक से सुनने के लिए तुम्हें उसकी ज़रूरत पड़ती है न,”"
कोयल का गला हुआ खराब
"स्टेल्ला ने अपने दोनों हाथ हवा में हिलाए। इसका मतलब हुआ कि वो ताली बजा रही थी। परवेज़ ने संकेत भाषा के कई शब्द उसे सिखा दिए थे जो उसकी शीला मिस ने सुकर्ण स्कूल में सिखाये थे।"
कोयल का गला हुआ खराब
"शीला मिस कहतीं हैं कि उसकी आवाज़ भी ठीक हो जाएगी। समय लग सकता है, मगर ठीक ज़रूर होगी।"
कोयल का गला हुआ खराब
"- जो लोग परवेज़ से धीरे से बात करते हैं, वह उन्हें बेहतर समझ पाता है, और ख़ास तौर से जब वे उसकी तरफ देखकर बात कर रहे हों। परवेज़ ठीक से सुन नहीं सकता है, पर वो देख, सूँघ, समझ और सीख सकता है, वह महसूस कर सकता है, और पकड़म-पकड़ाई खेल सकता है।"
कोयल का गला हुआ खराब
"घूम-घूम ने छलाँग लगाई तो पहले उसकी नाक पानी से टकराई! और..."
घूम-घूम घड़ियाल का अनोखा सफ़र
"“अगर एक टूट भी गया तो उसकी इतनी परवाह क्यों करती हो। बंद करो ये सब नाटक!”"
एक सौ सैंतीसवाँ पैर
"तीन झींगुर उसकी मदद करने के लिए आगे बढ़े। फिर नारियल वाले मोटू भँवरे ने अपने दोस्तों को गिनना शुरू किया, “एक, दो, तीन, चार! चार तो एक सम संख्या है!”"
एक, तीन, पाँच, मदद! मदद!
"तभी उसकी नजर एक मोमबत्ती पर पड़ी। वह उसकी ओर गया।"
मेंढक की तरकीब
"दिन के समय वह गजपक्षी झील के पास आया करता या तो धूप तापने या फिर झील में पानी छपछपाते हुए अकेला खुद से ही खेलने। कभी-कभी वह पानी में आधा-डूब बैठा रहता और बाकी समय उसका कोई सुराग़ ही न मिलता। तब शायद वह घने जंगल के किसी बीहड़ कोने में बैठा आराम कर रहा होता। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी एक पेड़ जितना ऊँचा था। उसकी एक लम्बी और मज़बूत गर्दन थी, पंजों वाली हाथी समान लम्बी टाँगें थीं और भाले जैसा एक भारी-भरकम भाल था। उसके लम्बे-लम्बे पंजे और नाखून डरावने लगते थे।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया को यह अहसास हमेशा सताता रहता कि गजपक्षी को पता है कि मुनिया कहीं आसपास है, क्योंकि वह अक्सर उस पेड़ की दिशा में देखता जिसके पीछे वह छुपी होती। हर सुबह मुनिया गाँव के कुएँ से तीन मटके पानी भर लाती और लकड़ियाँ ले आती ताकि उसकी अम्मा चूल्हा फूँक सकें। इसके बाद वह हँसते-खेलते अपनी झोंपड़ी से बाहर चली जाती। अम्मा समझतीं कि वह गाँव के बच्चों के साथ खेलने जा रही है। उन्हें यह पता न था कि मुनिया जंगल में उस झील पर जाती है जहाँ वह विशालकाय एक-पंख गजपक्षी रहता था।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"एक दिन, मुनिया ने बाहर खुले में आने की हिम्मत बटोरी। अपना सिर घुमाये बिना उस विशालकाय ने पहले तो अपनी आँखें घुमाकर मुनिया को देखा और फिर उन्हे बंद कर उसने मुनिया के आगे बढ़ने की कोई परवाह नहीं की। उसके सिर पर भनभनातीं मक्खियों से ज़्यादा ध्यान न खींच पाने के चलते मुनिया धम्म से अपने पैर पटक उसकी ओर बढ़ी। अचानक उस विशालकाय ने अपना एक पंजा उठाया। मुनिया चीखी और झील के उथले पानी में सिर के बल गिर पड़ी। पानी में भीगी-भीगी जब वह झील से बाहर आयी तो क्या देखती है कि गजपक्षी का समूचा बदन हिलडुल रहा है। वह समझ गयी कि वह हँस रहा था!"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"झिझकते-झिझकते उसने वह गेंद उसकी ओर फेंकी। आड़े-तिरछे ढुलक कर उसने गेंद को अपनी चोंच में पकड़ लिया।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"सब लोगों ने सहमति में हुंकारा। मुनिया यह सारी कार्यवाही चुपचाप देखे जा रही थी। वह बोलना चाहती थी, लेकिन जिसकी अनुमति नहीं थी उसकी सज़ा क्या होगी? और अगर वह बोलती भी तो कौन उसकी बात पर यकीन करता?"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“अपनी चुटिया तो बना नहीं सकती और चली हो हमें सलाह देने?” मुनिया के बाबूजी आँखें तरेरते हुए उसकी तरफ़ बढ़े। “जाओ, जाकर अपने दोस्तों के साथ खेलो!”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“एक वही राक्षस तो बस मेरा दोस्त है।” उसके पिताजी ने उसकी तरफ़ गुस्से से देखा। लेकिन वह रोयी नहीं और वहीं पर गाँव वालों के सामने खड़ी रही। “अरे लड़की को छोड़ो, हम लोग उस राक्षस को सवेरे-सवेरे धर लेंगे,” एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला। “तो फिर कल सुबह की बात पक्की,” मुखिया ने कहा और सभा विसर्जित हो गयी।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"मुनिया के पास सिर्फ एक रात थी। सवाल ये था कि वह उसकी बेगुनाही भला कैसे साबित करे? “सोचो मुनिया, सोचो!” फुसफुसाकर उसने खुद से कहा। “दूधवाले ने नटखट को झील की ओर जाने वाली सड़क पर तेज़ी से भागते हुए देखा था...लेकिन झील तक पहुँचने से पहले वह सड़क एक मोड़ लेती है और चन्देसरा की ओर जाती है। क्या पता नटखट अगर वहीं गया हो तो?”"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"अगली सुबह सारे गाँव वाले लाठियाँ, भाले, नुकीले पत्थर, और बड़े-बड़े चाकू लेकर जंगल झील पर इकट्ठे हुए। विशालकाय एक-पंख गजपक्षी उस वक्त झील के समीप आराम फ़रमा रहा था जब गाँव वालों की भीड़ उसकी ओर बढ़ी। पक्षी की पंखहीन पीठ धूप में चमक रही थी। वह धीरे से उठा और अपनी तरफ़ आती भीड़ को ताकने लगा। उसके विराट आकार को देख गाँव वाले थोड़ी दूर पर आकर रुक गये और आगे बढ़ने को लेकर दुविधा में पड़ गये। पल भर की ठिठक के बाद मुखिया चिल्लाया, “तैयार हो जाओ!” भीड़ गरजी, अपने-अपने हथियारों पर उनके हाथों की पकड़ और मज़बूत हुई और वे तैयार हो चले उस भीमकाय को रौंदने के लिए।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"“ठहरो!” सारे शोर-शराबे को चीर कर मुनिया की पतली सी आवाज़ आयी। भीड़ और उस महाकाय के बीच से लँगड़ाती हुई वह आगे बढ़ी। “मुनिया! तुरन्त वापस आ जाओ!” मुनिया के बाबूजी का आदेश था। “उसे पकड़ो तो!” मुनिया के बाबूजी और एक ग्रामीण उसकी ओर दौड़ पड़े। महाकाय को दो कदम आगे बढ़ता देख वे लोग रुक गये। “कोई बात नहीं... अगर तुम लोग यही चाहते हो तो हम लोग तुम दोनों से इकट्ठे ही निपटेंगे!” अपने हाथ में भाला उठाये वह हट्टा-कट्टा आदमी चीखा।"
विशालकाय एक-पंख गजपक्षी
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसकी भी नाक है।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब है उसकी भी आँखें हैं।"
टिमी और पेपे
"जवाब में वह कहता है, “भऊ।” इसका मतलब उसकी भी जीभ है।"
टिमी और पेपे
"उसकी परेशानी यह है कि उसकी नींद नहीं खुलती।"
भीमा गधा
"अगले दिन सुबह-सुबह एक मक्खी उसकी नाक में जा बैठी।"
भीमा गधा
"फिर उसकी चॉक खतम हो गई।"
छुक-छुक-छक
"किनारे पर एक नाव बाँस से बँधी हुई थी। वे दोनों उसकी रस्सी खोलने भागे। नौका पर सवार होकर, वे सैर का मज़ा ले रहे थे।"
नौका की सैर
"हंस ने उसकी पुकार सुनते ही पानी में अपना सिर डुबोया और बड़ी आसानी से काटो को अपनी चोंच में
उठाकर नौका में डाल दिया।"
नौका की सैर
"जब नौका किनारे पर पहुँची, काटो जल्दी से जल्दी सबको अपने कारनामे के बारे में बता देना चाहता था। दिन की सारी घटनाओं के बाद, काटो का सिर नौका की तरह चक्कर खा रहा था। खाने की मेज़ पर जैसे ही उसने सिर रखा, उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह गहरी नींद में डूब गया।"
नौका की सैर
"सच बात तो यह है कि अनु को सारे मूँछ वाले आदमी अच्छे लगते हैं। जैसे कि उसकी दोस्त तुती यानि स्मृति के पापा।"
पापा की मूँछें
"अनु सोचती है कि उसकी नाक के नीचे क्यों कोई मूँछ नहीं उगती?"
पापा की मूँछें
"एक दिन एक पेड़ की डाल पर बैठी वह अखरोट खा रही थी। अचानक उसकी निगाह अपनी ही पूँछ पर पड़ी।"
चुलबुल की पूँछ
"चुलबुल खुश हो गई। डॉक्टर बोम्बो ने उसकी पूँछ निकाल कर उसकी जगह बन्दर की पूँछ लगा दी।"
चुलबुल की पूँछ
"थकी हुई थी इसलिये उसे तुरन्त नींद आ गई। अचानक, ज़ोर की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूटी।"
चुलबुल की पूँछ
"अरे बाप रे बाप! एक बड़ा सा कुत्ता उसकी पूँछ देखकर उसे बिल्ली समझ उसकी ओर दौड़ता चला आ रहा था!"
चुलबुल की पूँछ
"काका ने खुशी-खुशी भट्ठी का दरवाज़ा खोला। तभी हवा का तेज़ झोंका आया और काका भट्ठी के कोयलों पर उलटा जा गिरा। उसकी पूँछ जल गयी। पूँछ की आग बुझाता काका चीखा,"
काका और मुन्नी
"मुमताज़ आबिदा ख़ाला, जो कि बच्चों की मौसी थीं, के घर अकेली ही बैठी थी। पास ही कोने में उसकी बैसाखियाँ रखी थीं। उसके हाथ तो"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कढ़ाई कर रहे थे लेकिन उसका मन दूर अपने घर हरदोई में था जहाँ उसकी अम्मी और दो बहनें रहती थीं। क्या उनको भी उसकी उतनी ही याद आती थी जितनी उनकी उसे?"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ के अब्बू के गुज़र जाने के बाद घर में पैसे की किल्लत रहने लगी थी। एक दिन आबिदा ख़ाला उसकी अम्मी से कहने लगीं कि मुहल्ले की औरतों को इकट्ठा करके कढ़ाई का काम शुरू करें।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ अपने घर से दूर तो थी लेकिन परिवार का एक प्यारा-सा हिस्सा उसके पास भी तो था! उसकी प्यारी तोती मुनिया और दो कबूतर-लक्का और लोटन! ये तीनों उसका दिल बहलाते थे।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"तीनों पंछी बहुत ही प्रतिभाशाली थे। लक्का कितनी ऊँची उड़ान भर लेता था। और लोटन मियाँ डाल-डाल, पात-पात, कभी कलैया तो कभी कलाबाज़ी, और कभी तो नाचने लग जाते! मुनिया भी कम निराली नहीं थी। किसी भी इंसान की बोली बोलना उसके बाएँ पंख का खेल था। मुमताज़ हमेशा मुनिया से उसकी नक्ल उतारने को कहती रहती। जब"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"लखनऊ आकर मुमताज़ को एक और दोस्त मिला-पड़ोस के सब्ज़ी वाले का आठ साल का बेटा, मुन्नु! मुन्नु हर रोज़ अपने पिता के साथ सब्ज़ी-भाजी लिए जगह-जगह फेरी लगाता और अपने ख़ास अंदाज़ में गुहार लगाता, “सब्ज़ी ले लो...ओ...ओ।” हाल ही में उसकी दोस्ती मुमताज़ के साथ हुई थी। हर रोज़ मुमताज़ अपना नाश्ता उसके साथ बाँटती और खाते-खाते दोनों बच्चे लक्का और लोटन के खेल देखा करते।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ नया टाँका जल्दी से सीख गई और उसकी उँगलियाँ शॉल पर दौड़ने लगीं।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"फिर जब औरतों ने चिकन के कुरते पहनना शुरु किए तो यह काम रंगीन कपड़े पर भी होने लगा। लेकिन चिकन की बेहतरीन कढ़ाई सफ़ेद मलमल पर सफ़ेद धागे से ही होती है। यही इस काम का सार है, उसकी रूह है...और एक काबिल कशीदाकारिन का सबसे बड़ा इम्तिहान भी।”"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"कमरु और मेहरु ने तय किया कि वे मुमताज़ के लिए छपाई भी नहीं कराएँगी। लेकिन मुमताज़ भी अब ऐसी छोटी-मोटी रुकावटों से घबराने वाली कहाँ थी। सपनों ने उसकी कल्पना को पंख दे दिए थे और उसे कढ़ाई के नमूनों की कोई कमी नहीं थी।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"मुमताज़ इतनी खुश थी कि पूछो मत! और वह चाहती थी कि उसकी इस खुशी में उसकी दोनों बहनें भी शरीक हों। उसने कमरु और मेहरु से कहा कि वे भी उसके साथ उस आयोजन में चलें। मुमताज़ की सच्ची खुशी देखकर और अपनी ईर्ष्या सोचकर दोनों को बहुत मलाल हुआ।"
मुमताज़ ने काढ़े अपने सपने
"आज का दिन बड़ा ख़ास था। रज़ा ने अपने सबसे बढ़िया कपड़े पहने हुए थे। आज उसकी मुलाकात एक बड़ी आला हस्ती से होने वाली थी-बादशाह जलालुद्दीन अकबर से! मुग़ल सल्तनत के महान सम्राट!"
रज़ा और बादशाह
"काफ़ी लम्बा रास्ता था। रज़ा ने चारों तरफ़ देखा तो उसकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं। मुग़लों के महल कितने सुन्दर थे! पतले नक्काशीदार खम्भे और मेहराब-सब लाल रंग के बालुकाश्म से बने हुए। कहीं कहीं फुलवारी वाले बग़ीचे, जिनमें कमलों से सजे तालाब और झिलमिलाते फव्वारे नज़र आ रहे थे। रज़ा ने मन से सोचा कि जन्नत ऐसी ही होती होगी।"
रज़ा और बादशाह
"कमरे में घुसते हुए रज़ा का दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मेहराबदार दरवाज़ों से धूप अन्दर आ रही थी। नगीनों के रंगों वाला मोटा, रेशमी पर्शियन कालीन, उसकी रोशनी में रंग बिखेर रहा था। कमरे में एक ख़ूबसूरत नक्काशीदार पलंग और दो बड़ी सुन्दर कुर्सियाँ थीं। कम ऊँचे पलंग पर रेशमी ओर सुनहरी गद्दियाँ पड़ी थीं। पर्दे भी रेशमी थे!"
रज़ा और बादशाह
"सुमी अपने जूते के फीते नहीं बाँध सकी। और खेलने के बाद भी उसे जूते के फीते बाँधने का ध्यान नहीं रहा, और वह उलझ कर गिर पड़ी। उसकी ठोड़ी में चोट लग गई। जब मैडम ने उसकी ठोड़ी की चोट देखी तो उस पर ऐंटीसेप्टिक क्रीम तो लगा दी, लेकिन उसे लापरवाही बरतने के लिए डाँट भी पड़ी। “जूतों के फीते बाँधे बिना पहाड़ों में दौड़ लगाई जाती है? घर जाते समय गिर पड़तीं या और कुछ हो जाता तो क्या होता?“"
थोड़ी सी मदद
"अ. कक्षा की सबसे होशियार छात्रा से कहेंगे कि वह अपने नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे दे। ब. अध्यापिका से कहेंगे कि उसकी मदद करना उनका काम है। स. उससे पूछेंगे कि क्या उसे आपकी मदद चाहिए। 4. आपकी कक्षा की नई छात्रा जरा शर्मीली है। वह किसी के साथ नहीं खेलती। आप क्या करेंगे? अ. उससे कुछ नहीं कहेंगे। जब उसकी झिझक मिट जाएगी तब खेलने लगेगी। ब. उसे बुला कर खेल में शामिल होने को कहेंगे। स. उस के पास जा बैठेंगे। शायद वह बातें करने लगे।"
थोड़ी सी मदद
"“नहीं मास्टर जी,” कल्लू की आँखों में आँसू छलक आये और ये सचमुच के आँसू थे। जब चाहो निकाल दो वाले मगरमच्छी आँसू नहीं। वह सच में शो में भाग लेना चाहता था। “मास्टर जी!” उसकी आवाज़ में घबराहट और बेचारगी दोनों थी
“मैं वादा करता हूँ मैं फिर कभी देर नहीं करुँगा। एक मौका...”"
कल्लू कहानीबाज़
"“एक अच्छी कहानी... एक विश्वास करने लायक बहाना।” पहले कितने बहाने खोजे थे उसने। आज एक नया बहाना खोजना इतना मुश्किल क्यों लग रहा था? उसके दिमाग में वह छवि कौंध गयी जहाँ मास्टर जी भवें सिकोड़े उसकी तरफ़ अविश्वास से घूर रहे हैं और वह हकलाता-तुतलाता बहाना बना रहा है। इतना मग्न था कल्लन कि सीधे भैंसों के झुण्ड से जा टकराया।"
कल्लू कहानीबाज़
"हाय मेरी किस्मत, अपने पर कुढ़ता हुआ रंभाती भैसों से बच के निकला। यहाँ जान के लाले पड़े हैं और मैं पहुँचा भी तो कहाँ? बदरी और उसकी मोटी भैसों के पास घास चरने। हाँफता, मिट्टी में फिसलता वह किसी तरह से वहाँ से भागा। बदरी, भैसों का अजीबोग़रीब मालिक अपनी मन भर की पगड़ी पहने डंडा लहरा रहा था और मोटी मूछों के पीछे मुस्करा रहा था।"
कल्लू कहानीबाज़
"किसी ने उसका कलम चुरा लिया? कलम तो उसके बस्ते में था। उसकी चप्पल टूट गई और उसे मरम्मत कराने जाना पड़ा। नहीं रे। चप्पल तो उसकी बिल्कुल नई थी।"
कल्लू कहानीबाज़
"दामू के घर से गुज़रते उसने देखा उसका सबसे प्यारा दोस्त और उसकी बहन सरु, आँगन में चारपाई पर बैठे नाश्ता खा रहे थे। हा! उन्हें भी देर हो गई थी, कल्लू ने विजयी भाव से सोचा और अभी तो वे खा रहे थे इसलिये मेरे बाद ही पहुँचेंगे। शायद मास्टर जी उन पर गुस्सा दिखाने में मुझे भूल ही जायें?"
कल्लू कहानीबाज़
"दामू ने कल्लू को देखा तो उसकी आँखें फैल गईं, “ओए कल्लू। मेरे लिये रुक जा यार!”"
कल्लू कहानीबाज़
"कल्लू ने पैरों पर ब्रेक लगाया और जल्दी-जल्दी बोलने लगा, “मास्टर जी, माफ़ कर दीजिये मुझे देरी हो गयी। पर आज बिल्कुल भी मेरी गलती नहीं थी! मुझे शब्बो को नहलाने के लिये मदद करनी थी। आप जानते हैं न उसकी टाँग टूट गई है और।“अचानक से कल्लू चुप हो गया। उसने कुछ ऐसा देखा जिससे कि उसकी ज़बान पर ताला पड़ गया। मास्टर जी, दुनिया के सबसे डरावने इन्सान, ठहाका मार के हँस रहे थे।"
कल्लू कहानीबाज़
"मोरू को देख कर लगता था कि गंगा के इस पार या उस पार वाला मुहावरा उसी के लिये लिखा गया था। उसकी पसंद या नापसंदगी बड़ी ज़बरदस्त थी। जो काम वह नहीं करना चाहता वह कोई भी उससे करवा नहीं सकता था और न ही कोई उसे अपने मन का काम करने से रोक सकता था। मोरू एक पहेली जैसा था।"
मोरू एक पहेली
"पेड़ों पर चढ़कर कच्चे आम तोड़ना
मोरू को अच्छा लगता था। वह टहनियों
पर रेंगते हुए ऐसी कल्पना करता मानो किसी घने जंगल में चीता हो। उसे कीड़े पकड़ना भी पसंद था। चमकदार पन्नी सी चमचमाते सर वाली हरी-नीली घोड़ा मक्खी, पतला और चरचरा सा टिड्डा, पीली तितली जिसका रंग पीले गुलाल सा उसकी उंगलियों पर उतर आता था। मोरू को पतंग उड़ाना भी अच्छा लगता था। जितनी ऊँची उड़ सके उतना अच्छा। सबसे ऊँची छतों पर चढ़ कर वह अपनी पतंग बादलों से कहीं ऊपर तक उड़ाता जैसे वह एक चमकता हुआ पक्षी हो जो सूरज तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हो।"
मोरू एक पहेली
"जब वह थक जाता तो खुद को सीढ़ियों के जंगले पर फिसलते हुए देखता और सब अंक उसकी ओर हाथ हिला रहे होते। दोपहर के खाने में अक्सर सबके आधे पेट रह जाने पर ख़त्म हो जाने वाले चावल से नहीं, उन दोस्तों से नहीं जिन्हें खेल जमते ही घर जाना होता, अंक हमेशा मोरू के पास रहते। कभी न ख़त्म होने वाले अंक कि जब चाहे उनके साथ बाज़ीगरी करो, छाँटो, मिलाओ, बाँटो, एक पंक्ति में लगाओ, फेंको, एक साथ मिलाओ या अलग कर दो।"
मोरू एक पहेली
"उसकी स्लेट टूट गई थी और उसकी माँ के पास नई स्लेट खरीदने के पैसे नहीं थे। मोरू ने दीवार पर चढ़ने वाली सैकड़ों चींटियाँ गिनना शुरू किया। उसने बाहर पेड़ को देखा और उसे उसकी पत्तियाँ बिलकुल सही लगीं। सही पत्तियों की परछाईं भी सही होती है। मन ही मन मोरू ने स्कूल के अहाते की दीवार में टूटी ईंटों की संख्या गिनी। उसने हिसाब लगाया कि अगर हर ईंट की कीमत पाँच रुपये है तो सारे छेद भरने में एक हज़ार से ज़्यादा रुपये लगेंगे।"
मोरू एक पहेली
"शिक्षक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने मोरू के गाल पर एक तमाचा मारा। मोरू का गाल सुर्ख लाल हो गया। अचानक ही उसकी आँखों से गर्म आँसू फूट पड़े। वह खड़ा हुआ और कमरे से बाहर भागा। बरामदे से नीचे उतर, धूल भरे मैदान को पार करके वह टूटे फाटक से सीधे बाहर निकल गया।"
मोरू एक पहेली
"रोज़ मोरू कुछ देर के लिये आता और शिक्षक उसे कुछ काम और फिर उससे बड़ा काम दे देते। रोज़ मोरू को लगने लगा कि उसका अंकों से लगाव बढ़ता ही जा रहा है और उसकी योग्यता और रोमांच छोटे बच्चों में भी समाते जा रहे हैं।"
मोरू एक पहेली
"एक महीने बाद मोरू की माँ सुबह के दस-ग्यारह बजे उसे ढूँढ रही थीं। वह कहीं भी नहीं मिल रहा था। उन्होंने छत पर देखा पर उसकी पतंगें मायूस सी पानी की टंकी के पास पड़ी थीं। उन्होंने दीवार पर झाँका जहाँ वह रोज़ टाँगें झुलाए बैठा रहता था पर दीवार खाली थी। उन्होंने आम के पेड़ पर देखा जहाँ पत्तियाँ हवा में सरसरा रही थीं लेकिन किसी भी टहनी पर मोरू नहीं था।"
मोरू एक पहेली
"वहाँ मोरू नज़र आ रहा था। वह सर झुकाये ध्यान से अपनी कॉपी में कुछ देख रहा था। उसके माथे पर सोच की रेखाएँ दिख रही थीं और उसकी आँखों में गहरी तल्लीनता थी। वह अपनी उम्र के बाकी लड़कों के साथ गणित के मुश्किल सवाल हल करने में लगा हुआ था। शिक्षक की नज़र भी बाहर गई और वह मोरू की माँ की तरफ़ देख कर हल्के से मुस्कराये।"
मोरू एक पहेली
"(दीदी, क्या उसकी अम्मी उसकी पिटाई नहीं करतीं? अगर घर पर मैंने कभी ऐसे गुस्सा दिखाया तो अम्मी तो मेरी कस कर पिटाई करतीं!)"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?
"और बारिश उसकी नींद में बाधा डालती है।"
दीदी, दीदी, बादल क्यों गरजते हैं?
"कल रात उन्हें नींद नहीं आई थी और न उसकी पिछली रात। न ही उससे पहले कुछ तीस रात। उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की। मगर वाक्य अस्पष्ट हो रहे थे!"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"एक संगीतकार ने धुन के बीच में ही जम्हाई ली और उसकी देखा देखी आस पास के बीस और जनों ने भी। फिर उनके पड़ोसियों ने जम्हाई ली और पूरी सभा में जम्हाइयों की लहर सी दौड़़ पड़़ी।"
कोट्टवी राजा और उनींदा देश
"' सी अनैमॉनी ’ की आड़ में ' क्लाउनफ़िश ’ को मिलती है छत जैसी छाया। बड़ी होशियारी से करती हैं उसकी रखवाली, लेकिन आख़िरकार पास से उसकी तस्वीर खींचने का मौका हाथ आया!"
गहरे सागर के अंदर!
"बड़ी दुखी हुई कि किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। तब उसे अपनी दोस्त चींटी की याद आई।"
गौरैया और अमरूद
"झटपट अमरूद खाने के इरादे से एक जगह जाकर बैठ गई। अमरूद पर एक चोंच ही मारी थी कि उसे सिर पर भारी चोट महसूस हुई। आँखों के आगे अँधेरा छा गया और वह गिर पड़ी। यह कैसे हुआ? जब उसने अमरूद खाना शुरू कि या था उसी समय एक कौआ एक लकड़ी के टुकड़े करे चोंच में दबाकर उड़ रहा था। वह लकड़ी का टुकड़ा उसकी चोंच से निकलकर गौरैया की खोपड़ी पर गिर पड़ा। बस, यहीं पर कहानी खतम!"
गौरैया और अमरूद
"एक साल महानद सूखकर एक पतली सी धारा भर रह जाता तो दूसरे साल उसमें बाढ़ आ जाती। कभी उसके सैलाब में काफ़ी सारी रेत बह कर आ जाती, तो कभी उसकी धारा में तमाम रेत बह जाती। ज़ोरदार बारिश के दिन आए और चले गए। लेकिन जादव ने बाँस की रोपाई जारी रखी।"
जादव का जँगल
"आपकी बोई हुई गुठली में से अंकुर फूटने के बाद वह आम के स्वस्थ पौधे के रूप में पनप जाए, तो तैयार रहें उसकी सिंचाई, देखभाल और पहले से भी ज़्यादा इंतज़ार के लिए! ध्यान रखें कि कहीं आपके पोधे को कीड़े-मकोड़े या कोई जानवर न खा जाएँ या फिर कोई उसे अपने पैरों तले न रौंद जाएँ। अगर इंतज़ार करते-करते आप ऊबने लगें तो कुछ किताबें पढ़ डालें, कुछ गीत गुनगुना लें, और कुछ और पौधे लगा दें!"
जादव का जँगल
"इनमें से कुछ फल खाने आएँगे, कुछ पेड़ का रस पीने आएँगे, कुछ इसके फूलों का रस पीने आएँगे और कुछ जीव इस पेड़ पर जमघट लगाये जीवों को चट करने के चक्कर में होंगे! सभी पेट भरने के चक्कर में रहेंगे, ऐसा भी नहीं है। कुछ ऐसे भी जीव होंगे जो आपके पेड़ की छाँव में आराम करने, उसकी डालों में कुछ देर चैन की नींद लेने आएँगे। आपका पेड़ अलग-अलग जीवों के लिए अलग काम का होगा!"
जादव का जँगल
"मीमी थोड़ा घबराई। उससे कभी किसी ने ऐसा सवाल नहीं किया था! सोचते हुए उसकी आँखें गोल हुईं, "क्या आप शेर की कहानी सुना सकती हैं?""
कहानियों का शहर
"क्या उसके बाल सीधे होंगे या घुंघराले? और उसकी नाक गोल-मटोल होगी या फिर तिकोनी? एक पैर, दो पैर या और भी ज़्यादा पैर? पूँछ कुत्ते की या फिर खूंखार शेर जैसी?"
कहाँ गये गालों के गड्ढे?
"एक दिन उसकी माँ ने काम के बीच उसकी बहन को घर पर रुकने के लिए बोला। तब लड़का बोला, "माँ, आज दीदी स्कूल क्यों नहीं जा रही है?" माँ ने जवाब दिया, "आज घर पर बहुत काम है इसलिए दीदी स्कूल नहीं जाएगी।" इस तरह कुछ दिन बीत गए।"
और दीदी स्कूल जाने लगी
"एक दिन स्कूल में उसकी टीचर बोली, "बेटा, तुम रोज़ स्कूल आते हो लेकिन तुम्हारी दीदी क्यों नहीं आती?" उस लड़के ने टीचर को बताया कि माँ बोलती है कि दीदी पढ़ कर क्या करेगी? यह सुनकर उसकी टीचर बोली, “बेटा, अपनी माँ से कहना कि वह कल आकर मुझसे बात करें।”"
और दीदी स्कूल जाने लगी
"जब उस लड़के ने अपनी माँ को टीचर की बात बताई तब उसकी माँ ने कहा कि उनके पास स्कूल जाने का समय नहीं है। अगले दिन उस लड़के ने मैडम को सारी बात बताई। फिर उसकी टीचर उसके घर गई।"
और दीदी स्कूल जाने लगी
"घर जाकर उन्होंने उसकी माँ को समझाया कि जैसे लड़कों का पढ़ना ज़रूरी है, वैसे ही लड़कियों का भी पढ़ना ज़रूरी है। एक लड़की पढ़ लिख कर पूरे घर को अच्छे से संभाल सकती है।"
और दीदी स्कूल जाने लगी